-शीतांशु कुमार सहाय
झारखंड की 14 वर्षीया आदिवासी लड़की निर्मला टोप्पो हाथियों के झुण्ड को भगाने में माहिर है। उसकी इसी कला से प्रभावित होकर ओड़िशा वन विभाग ने निर्मला को जून 2013 में राउरकेला स्टेडियम में उधम मचा रहे हाथियों के झुण्ड को भगाने के लिए बुलाया था। हाथियों के झुण्ड को भगाने के एवज में उस किशोरी को मेहनताना भी दिया गया। निर्मला झारखण्ड के सिमडेगा जिले के आदिवासी इलाके की रहने वाली हैं। वह राउरकेला अकेली नहीं; बल्कि गाँव के 10 नौजवान भी उसके साथ गये थे।
यों बनी लेडी टार्जन
निर्मला की माँ को हाथियों ने तब मार दिया था, जब वह जंगल में लकड़ी चुनने गई थी। इस घटना का निर्मला पर गहरा असर हुआ। जब वह महज 10 साल की हुई, तब उसने अपने पिता मरिनस टोप्पो से हाथियों के झुण्ड से निपटने की कला सीखनी शुरू की।
यों भगाती है हाथी
वह हाथियों को कैसे भगाती है? उसने बताया कि पहले वह प्रार्थना करती है फिर हाथियों को अपनी भाषा यानी मुण्डारी में कहती है कि वे चले जाएँ। इसके बाद हाथी चले जाते हैं।
काफी लोकप्रिय है निर्मला
सिमडेगा के सामाजिक कार्यकर्ता नील जस्टिन बेक कहते हैं- निर्मला उन जगहों पर काफी लोकप्रिय हैं, जहाँ हाथियों का झुण्ड खेतों में लगी फसलों को बर्वाद कर देते हैं या फिर लोगों को क्षति पहुँचाते हैं। उन्होंने बताया कि निर्मला जंगली हाथियों से अपनी जुबान यानी मुण्डारी भाषा में बात कर उन्हें वापस जाने के लिए मनाती है। हाथी उसकी भाषा समझते हैं। अब कहीं भी अगर हाथियों का उत्पात होता है, तो लोग इलाके में वन विभाग को नहीं, बल्कि निर्मला और उसके दल को ही बुलाते हैं। हालाँकि कई सामाजिक संगठन हाथी से बात करने वाली बात को अंधविश्वास मानते हैं।
वन क्षेत्र अधिकारी के अनुसार, ओड़िशा वन विभाग के 20 कर्मचारियों को निर्मला का दल हाथियों को भगाने का गुर सीखा रहा हैं।
हाथियों की दो प्रजातियाँ
झारखण्ड में वन विभाग के प्रमुख एके मिश्र के अनुसार, राज्य में हाथियों की संख्या करीब 700 है। यहां पाये जाने वाले हाथियों में दो प्रजातियां हैं। इनमें से एक सरगुजा के हाथी कहलाते हैं, जो छत्तीसगढ़ से झारखंड आते-जाते रहते हैं। दूसरी प्रजाति सिंहभूम के हाथियों की है, जो स्वभाव से उग्र होते हैं। जब हाथियों की संख्या बढ़ी तो वे अपना दल बना अलग-अलग घूमने लगे।
शराब के शौकीन हाथी
श्री मिश्र का कहना है कि झारखंड के जंगलों में रहने वाले आदिवासी महुए से शराब बनाते हैं। इसकी खुशबू भी हाथियों को आदिवासियों के घरों तक खींच लाती है। कभी-कभी हाथियों का झुंड सिर्फ शराब पीने के लिए घरों को तोड़कर घुस जाता है। झारखंड के वन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि पिछले 10 साल में इंसानों और हाथियों के संघर्ष में 400 लोग मारे जा चुके हैं। इनमें सबसे ज्यादा लोग सिंहभूम व संथाल परगना के इलाक़े में मारे गये हैं।
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