शीतांशु कुमार सहाय / Sheetanshu Kumar Sahay
झारखंड में राज्यसभा चुनाव से शुरू हुए प्रेशर पॉलिटिक्स का क्लाइमेक्स लोकसभा चुनाव में देखने को मिलेगा। यह खेल आगे-आगे और भी रोमांचक होने वाला है। मात्र पाँच विधायकों के बल पर जिस तरह राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने राज्यसभा चुनाव में अपनी दावेदारी ठांेकी और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) को झुकने पर मजबूर कर दिया, यह इशारा है कि लोकसभा चुनाव में भी सीट बँटवारे पर राजद चुप नहीं बैठेगा। काँग्रेस-झामुमो के बीच लोकसभा को लेकर 10-4 का जो फॉर्मूला तैयार हुआ है, उसमें भी हाइ वोल्टेज ड्रामा देखने को मिलेगा। पर, इस फॉर्मूले पर झामुमो के ही कई नेता एतराज जता चुके है। वैसे राजद की दबिश बढ़ी तो मामला और उलझ सकता है।
-राज्यसभा चुनाव कई मायनों में अलग
इस बार का राज्यसभा चुनाव झारखंड के लिये कई मायनों में अलग है। खरीद-फरोख्त की राजनीति से दूर इस बार के चुनाव में सŸााधारी गठबंधन ही लपेटे में है। नामांकन के अंतिम दिन तक काँग्रेस-झामुमो और राजद आपस में प्रत्याशी को लेकर उलझे रहे। राजद शुरू से ही प्रत्याशी देने को लेकर अडिग था। काँग्रेस-झामुमो का ड्रामा अंतिम समय तक चला। इसमें नुकसान पूरी तरह से झामुमो को उठाना पड़ा है। 24 घंटे में ही प्रत्याशी की घोषणा के बाद उसका नाम वापस लेने से झामुमो की साख को बड़ा झटका लगा है। अब पार्टी के अंदर ही द्वंद शुरू हो गया है। झामुमो के 3 विधायकों मथुरा महतो, विद्युत वरण महतो और जगन्नाथ महतो ने पार्टी प्रमुख शिबू सोरेन को इस्तीफा सौंप दिया है। राजद द्वारा सरकार से समर्थन वापसी के दबाव के आगे झामुमो की भद्द पीट गयी है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अब चाहे जो दलील दे लें, पूरे प्रकरण में उनकी पार्टी का राजनीतिक कद छोटा हुआ है।
-लोकसभा चुनाव में झामुमो के लिए परेशानी
राजनीतिक जानकारों की माने तो, आनेवाला लोकसभा चुनाव सरकार के साथ-साथ झामुमो के लिए फिर से कई परेशानी खड़ी कर सकता है। सीट बँटवारे को लेकर गठबंधन दलों में खटास की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। राज्यसभा चुनाव में जो भी देखने को मिला है, उससे स्पष्ट है कि राज्य सरकार में शामिल तीनों दलों में आपसी समन्वय का अभाव है। सरकार में साथ होकर भी इनकी राहें अलग-अलग हैं। बहरहाल, चुनावी दंगल के कंटीले रास्तों पर तीनों दलों ने अपने-अपने कदम बढ़ा दिये हैं लेकिन झामुमो को सबसे अधिक संभल कर चलने की जरुरत है। कहीं ऐसा न हो कि लोकसभा चुनाव भी राज्यसभा की तरह झामुमो को कटघरे में खड़ा कर दे। राज्यसभा चुनाव में जल्दबाजी में लिये गये अपरिपक्व निर्णय से राजनीतिक परिदृश्य में झामुमो बैकफुट पर आ गया है।
-राजनीतिक वादाखिलाफी व धोखा हुआ : झामुमो
झामुमो ने दिवंगत झामुमो नेता सुधीर महतो की पत्नी सविता महतो को उम्मीदवार बनाये जाने का निर्णय लिया था लेकिन सरकार चलाने के लिए राजनीतिक मजबूरियों की वजह से झामुमो को सहयोगियों के आगे झुकना पड़ा। झामुमो ने इस पूरे प्रकरण पर गंभीर नाराजगी व्यक्त की है। झामुमो के केंद्रीय कोर कमेटी के सदस्य सुप्रियो भट्टाचार्य ने इसे राजनीतिक वादाखिलाफी करार दिया है। उन्होंने कहा कि 27 जनवरी को पार्टी ने सविता महतो को उम्मीदवार बनाये जाने का निर्णय लिया और सभी से समर्थन का आग्रह किया था। पर, रातभर में ही सारी राजनीतिक परिस्थितियाँ बदल गयीं। माटी का दम्भ और खुद को शहीद निर्मल महतो की विरासत पर चलने का दम्भ भरने वाली आजसू पार्टी और राष्ट्रीय पार्टी काँग्रेस और भाजपा नेताओं ने स्थानीय उम्मीदवार को नजरअंदाज किया। उन्होंने इसे राजनीतिक धोखाधड़ी करार दिया। इधर, झामुमो ने सविता महतो को केडी सिंह के इस्तीफे से खाली हुई सीट से राज्यसभा भेजने का संकेत दिया है। झामुमो का दावा है कि इसमें राजद और काँग्रेस की ओर से भी सहयोग का भरोसा दिलाया गया है।
-झारखंड उच्च न्यायालय का फैसला आने तक राज्यसभा चुनाव न हो : अजय मारु
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद अजय मारु ने राँची में कहा है कि वर्ष 2010 के राज्यसभा चुनाव में केडी सिंह ने चुनाव में जीत हासिल की थी लेकिन उस चुनाव को उनकी ओर से और वैद्यनाथ राम की ओर से उच्च न्यायालय में चुनाव याचिका दायर कर चुनौती दी गयी है। अजय मारु ने कहा कि जिस तरह से हटिया विधानसभा चुनाव को लेकर दायर चुनाव याचिका पर सुनवाई पूरी नहीं हो गयी, तब तक उपचुनाव नहीं हो पाया, उसी तरह से इस मामले में भी उनकी ओर से उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर आग्रह किया जायेगा कि जब तक केडी सिंह के खिलाफ दायर चुनाव याचिका का निष्पादन नहीं हो जाता है, तब तक उपचुनाव पर रोक लगनी चाहिए। उन्होंने बताया कि केडी सिंह ने भले ही पश्चिम बंगाल से राज्यसभा चुनाव लड़ने के लिए झारखंड की राज्यसभा सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया है लेकिन जब तक मामले का निपटारा नहीं हो जाता है, तब तक चुनाव नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि एक समय में राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव कहते थे कि उनकी लाश पर झारखंड बनेगा, लेकिन आज उसी के सामने खुद को आंदोलनकारी बनाने वाले झामुमो नेता झुक गये। उन्होंने कहा कि यदि भाजपा और ऑजसू पार्टी की ओर से निर्दलीय प्रत्याशी परिमल नथवाणी को समर्थन नहीं दिया जाता, तो फिर से चुनाव में गेम हो जाता, राजद और कांग्रेस के उम्मीदवार चुनाव जीत जाते, लेकिन झामुमो की सविता महतो चुनाव हार जाती।
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