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बुधवार, 29 जनवरी 2014

संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट : भारत में सबसे ज्यादा निरक्षर, शिक्षा मिले मातृभाषा में ही / UN Report : Maximum Unlettered in Bharat, Education Under Mothertongue


-शीतांशु कुमार सहाय / Sheetanshu Kumar Sahay
संयुक्त राष्ट्र संघ का एक संगठन यूनेस्को ने अपने 2013-14 के ‘शिक्षा वैश्विक निगरानी रिपोर्ट’ में कहा हैं कि विश्वस्तर पर सर्वाधिक निरक्षर भारत में हैं। जाहिर है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने बच्चों के समझने वाली भाषा में पढ़ाने की वकालत की है। यह बताने की आवश्यकता नहीं कि बच्चे अपनी मातृभाषा में ही सबसे सहज महसूस करते हैं। यही बात भारत के नीति-नियन्ता नहीं समझा पाते हैं। वे केवल अग्रेजी की पूँछ पकड़कर ही विकास करना चाहते हैं और देश की पूरी उच्च शिक्षा अंग्रेजी में ही सम्भव है। इस अव्यावहारिक सरकारी कदम के कारण ही देश में अब भी विश्वस्तर पर सबसे अधिक निरक्षर हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ का संगठन यूनेस्को की ओर से प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया कि निरक्षर व्यस्कों की संख्या भारत में सबसे ज्यादा है। भारत में निरक्षरों की आबादी सबसे ज्यादा है। यही नहीं अमीरों और गरीबों के बीच शिक्षा के स्तर में भारी असमानता है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में अनपढ़ वयस्कों की आबादी करीब 28.70 करोड़ है। यह दुनिया में अशिक्षित लोगों का कुल 37 प्रतिशत है। रिपोर्ट में कहा गया है-- 2015 के बाद के लक्ष्यों के लिए प्रतिबद्धता जरूरी है; ताकि सबसे ज्यादा पिछड़े समूह तय लक्ष्यों के मापदंडों पर खरे उतर सकें। इसमें विफलता का अर्थ यह हो सकता है कि प्रगति का पैमाना आज भी संपन्न को सबसे ज्यादा लाभ पहुंचाने पर आधारित है। रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक स्तर पर प्राथमिक शिक्षा पर दस प्रतिशत खराब गुणवत्ता की शिक्षा पर खर्च हो रहा है। इन हालातों के चलते गरीब देशों में चार युवा लोगों में एक कुछ भी नहीं पढ़ सकता। भारत में गरीब और अमीर राज्यों के बीच शिक्षा के स्तर को लेकर भारी असमानता है। अमीर राज्यों की सबसे गरीब लड़की गणित में थोड़ा बहुत जोड़ और घटाव कर लेती है। भारत के संपन्न राज्यों में से एक केरल में प्रति छात्र शिक्षा का खर्च 685 डॉलर (करीब 42 हजार 627 रुपये) था। अगर शिक्षक अनुपस्थित रहने या कक्षा में पढ़ाने की तुलना में निजी ट्यूशन को ज्यादा महत्त्व देते हैं तो गरीब बच्चों के अध्यापन की प्रक्रिया को नुकसान पहुँच सकता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि नीति निर्माताओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पाठ्यक्रम सभी की नींव मजबूत करने वाला हो। यह ऐसी भाषा (मातृभाषा) में और ऐसी गति से पढ़ाया जाए जिसे बच्चा समझ सके।

-सार्वभौमिक साक्षरता और निराशाजनक स्थितियाँ
रिपोर्ट में आगे कहा गया कि भारत की सबसे अमीर युवतियों को सार्वभौमिक साक्षरता मिल चुकी है लेकिन निर्धनतम युवतियों के लिए ऐसा 2080 तक ही सार्वभौमिक साक्षरता संभव है। भारत में मौजूद ये निराशाजनक स्थितियाँ यह विफलता दर्शाती हैं कि सबसे ज्यादा जरूरतमंदों तक पर्याप्त सहयोग नहीं पहुँचा है। 2013-14 सभी के लिए शिक्षा वैश्विक निगरानी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में साक्षरता दर 1991 में 48 प्रतिशत थी। 2006 में यह बढ़कर 63 प्रतिशत पहुँच गई। यानी जनसंख्या में वृद्धि की तुलना में निरक्षरों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है। यूनेस्को की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में सबसे अमीर युवतियों को पहले ही वैश्विक स्तर की साक्षरता मिल चुकी है लेकिन सबसे गरीब के लिए ऐसा 2080 तक ही संभव है। भारत में शिक्षा के स्तर में मौजूद भारी असमानता दर्शाती है कि सबसे ज्यादा जरूरतमंदों को पर्याप्त सहयोग नहीं मिला।
-प्रतिबद्धता जरूरी
रिपोर्ट में कहा गया कि 2015 के बाद के लक्ष्यों में एक प्रतिबद्धता जरूरी है; ताकि सबसे ज्यादा पिछड़े समूह तय लक्ष्यों के मापदंडों पर खरे उतर सकें। इसमें विफलता का अर्थ यह हो सकता है कि प्रगति का पैमाना आज भी संपन्न को सबसे ज्यादा लाभ पहुँचाने पर आधारित है। प्राथमिक शिक्षा पर किए जाने वाले खर्च का 10 प्रतिशत खराब गुणवत्ता की शिक्षा के कारण नष्ट हो जाता है। इस खराब गुणवत्ता की शिक्षा बच्चों को सिखाने में विफल रहती है। इस स्थिति के कारण चार में से एक युवा एक वाक्य तक नहीं पढ़ सकता।
-अमीर और गरीब राज्यों के बीच भारी असमानता
ग्रामीण भारत में अमीर और गरीब राज्यों के बीच भारी असमानता है लेकिन अमीर राज्यों में भी गरीब लड़कियों का गणित बेहद खराब है। महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे संपन्न राज्यों में अधिकतर ग्रामीण बच्चे 2012 में पाँचवीं कक्षा तक पहुंचे थे। इनमें से महाराष्ट्र के महज 44 प्रतिशत और तमिलनाडु के महज 53 प्रतिशत बच्चे ही दो अंकों वाले घटाव के सवाल कर सके थे। अमीर राज्यों में से इन राज्यों की लड़कियों का प्रदर्शन लड़कों से बेहतर था। तीन में से दो लड़कियाँ गणनाएँ कर सकती थीं। महाराष्ट्र की संपत्ति के बावजूद यहाँ की गरीब लड़कियाँ मध्यप्रदेश की लड़कियों की तुलना में थोड़ा ही बेहतर प्रदर्शन कर सकीं। रिपोर्ट में कहा गया कि मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में फैली गरीबी पाँचवीं कक्षा तक बच्चों के रूकने को प्रभावित करती है। उत्तर प्रदेश में महज 70 प्रतिशत गरीब बच्चे और मध्य प्रदेश में महज 85 प्रतिशत गरीब बच्चे पाँचवीं तक पढ़ पाते हैं।  यों इस विश्वस्तरीय रपट से स्पष्ट होता है कि भारत में शिक्षा के नाम पर खर्च हो रहे जनता के अरबों रुपयों का सकारात्मक परिणाम नहीं दीख रहा है। क्या केन्द्र या राज्यों की सरकारें इस बारे में कुछ कह पायेंगी?

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