-शीतांशु कुमार सहाय / Sheetanshu Kumar Sahay
बचपन! एक ऐसा शब्द जिसके उच्चारण करने मात्र से ही एक प्यारी-सी तस्वीर उभरती है, नन्हीं-सी जान की कल्पना में खो जाता है मन। जी मचल उठता है और पोर-पोर से प्यार छलकने लगता है! सबके साथ ऐसा होता है, मेरे साथ, उनके साथ और आपके साथ भी। चाहे कोई विवाहित हो या अविवाहित, सन्तानवान हो या निःसन्तान, समाज के हित में कार्य करता हो या जिसके कार्य से समाज का अहित हो रहा हो, गृहस्थ हो या वैरागी, शासक हो या शासित, भोगी हो या अपरिग्रही, गुरु हो या शिष्य- सबको बचपन से प्यार होता ही है।
यहाँ एक ऐसे बच्चे की तस्वीर प्रस्तुत है जिसे परवरदीगार ने मेरे पुत्र के रूप में 6 फरवरी 2011 को मेरी पत्नी की गोद में भेजा। सबको उसके हिस्से के कार्य करने का आदेश देकर ही जगतनियन्ता ने सृष्टि का एक हिस्सा बनाया है। मैं, आप और वो- सभी अपने हिस्से का कार्य कर रहे हैं। पर, कोई सर्वशक्तिमान के नियमानुसार कार्य कर रहा है तो कोई नियमविरुद्ध। आप कौन-सा और कैसा कार्य कर रहे हैं, यह तो आप ही जानें। पर, इतना तो सत्य है कि जिस बच्चे ने मुझे पिता का दर्जा दिया, वह बचपन से ही आदिशक्ति द्वारा प्रदत्त कार्य को जानता है और तदनुरूप ही सृष्टि का कार्य कर रहा है। जैसा कि गुरु-कृपा से मुझे ज्ञात है, वह समाज का बेहतर हितैषी सिद्ध होगा। परम्परागत शिक्षा से पृथक ही उसकी शिक्षा-दीक्षा निश्चित है। विश्व की जनसंख्या में एक अदद की वृद्धि करने वाला यह शख्स अभ्युदय के नाम से जाना जायेगा। विश्व में किसी से उसे कोई भौतिक वस्तु नहीं चाहिये। उसे केवल आप जैसे बन्धुओं-हितैषियों के आशीर्वाद की आवश्यकता है।
19 फरवरी 2011 को खींची गयी ये तस्वीरें हैं जिसमें विविध रूप में अभ्युदय नजर आ रहा है।
माँ रीना की ममता की छाँव में
पिता की गोद में स्वतन्त्र मुस्कान
चाचा संतोष कुमार सहाय से वार्ता करने का प्रयास
मामा प्रभात कुमार के साथ प्रेम के पल
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