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सोमवार, 3 फ़रवरी 2014

विद्या की देवी माँ सरस्वती के पावन चरणों में नमस्कार! / Maa Saraswati Ko Namaskar!

मूर्तिकार के घर पर माँ शारदे की प्रतिमाएँ सजी हैं। इन्हें भक्तगण क्रय करके ले जाते हैं।


-शीतांशु कुमार सहाय
विद्या की देवी माँ सरस्वती के पावन चरणों में नमस्कार है। वसन्त पंचमी के अवसर पर कीजिये उन की आराधना! आइये इस मंत्र से उन की उपासना करें.....  
या कुन्देन्दु तुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ।।१।।
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमाद्यां जगद्व्यापनीं ।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यांधकारपहाम्।।
हस्तेस्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम् ।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्।।२।।

जल में क्यों विसर्जित करते हैं देवी देवताओं की मूर्तियों को?

     आखिर देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को जल में ही क्यों विसर्जित कर दिया जाता है? शास्त्रों के अनुसार जल ब्रह्म का स्वरूप माना गया है; क्योंकि सृष्टि के आरंभ में और अंत में संपूर्ण सृष्टि में सिर्फ जल ही जल होता है। जल बुद्घि और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। इस के देवता गणपति को माना गया है। जल में ही श्रीहरि का निवास है, इसलिए जल को नारायण भी कहते हैं। 
     माना जाता है कि जब जल में देव प्रतिमाओं को विसर्जित किया जाता है, तो देवी-देवताओं का अंश मूर्ति से निकलकर वापस अपने लोक को चला जाता है यानी परब्रह्म में लीन हो जाता है। यही कारण है कि मूर्तियों और निर्माल को जल में विसर्जित किया जाता है।

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