शीतांशु कुमार सहाय
राजीव गाँधी हत्या मामले में तीनों मुजरिम को बड़ी राहत देते हुए उच्चतम न्यायालय ने केंद्र की तरफ से दया याचिका पर विचार किये जाने के फैसले में 11 वर्ष की देरी के आधार पर आज 18 फरवरी 2014 को उनकी मौत की सजा को आजीवन कारावास (उम्रकैद) में बदल दिया। मुख्य न्यायाधीश पी सदाशिवम की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र की इस दलील को खारिज कर दिया कि उनकी दया याचिका पर फैसला करने में अनुचित विलंब नहीं हुआ है और फांसी की सजा का इंतजार कर रहे बंदी पीड़ा से नहीं गुजरे हैं। इस खंडपीठ में न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति एसके सिंह भी हैं। पीठ ने कहा कि वे केंद्र के दृष्टिकोण को नहीं स्वीकार सकते और मुजरिमों- संतन, मुरुगन और पेरारिवलन की मौत की सजा उम्रकैद में बदली जाती है और अगर सरकार उनकी सजा में कोई अतिरिक्त कटौती करती है तो वह स्वीकार्य होगी। उन्होंने केंद्र से समय से राष्ट्रपति को परामर्श देने को कहा जिससे कि बिना अनुचित देरी के दया याचिकाओं पर फैसला किया जा सके। देश के पूर्व प्रधानमंत्री और काँग्रेस के 'प्रथम परिवार' माने जाने वाले नेहरू-गाँधी परिवार के नेता राजीव गाँधी की 1991 में आत्मघाती हमले में जान जाना देश आज भी भूल नहीं पाया है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि राजीव गाँधी के हत्यारों को मौत की सज़ा से बच जाने के लिए कौन जिम्मेदार है? क्या इसके लिए सियासत जिम्मेदार है या इसके लिए लापरवाही दोषी है? देश में पिछले 9-10 सालों से उसी काँग्रेस पार्टी की सरकार है जिसके नेता राजीव गाँधी थे। राजीव गाँधी के तीन हत्यारों की फाँसी की सज़ा को उम्रकैद में तब्दील किए जाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से देश में फाँसी की सज़ा को लेकर बहस तेज होने के आसार हैं। फैसला आने के बाद पूर्व आईपीएस किरण बेदी ने कहा भी कि जिन लोगों ने इतनी लंबी सजा झेल ली है, उन्हें फाँसी दिया जाना अमानवीय है। उनका कहना है कि सबसे बड़े लोकतंत्र में मौत की सजा पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। फाँसी की सज़ा को लेकर बहस को पंजाब पुलिस के पूर्व डीजी केपीएस गिल ने 1993 में हुए बम विस्फोट के दोषी देविंदर पाल सिंह भुल्लर की फाँसी की सज़ा पर टिप्पणी करते हुए कहा, 'भुल्लर की पत्नी का अपने पति की मानसिक सेहत ठीक न होने को बुनियाद बनाकर फाँसी की सज़ा को उम्रकैद में तब्दील करने की माँग कर रही हैं। क्या सभी आतंकवादियों को मानसिक समस्या नहीं होती है?' वर्ष 2001-11 के बीच 10 सालों में भारतीय अदालतों में 1,455 लोगों को मौत की सज़ा सुनाई गई। औसतन हर वर्ष 132.27 लोगों को यह सज़ा मिली लेकिन इनमें से ज्यादातर सजाएँ बाद में चलकर उम्रकैद में तब्दील कर दी गईं। इन 10 वर्षों में आतंकवाद से जुड़े मामलों को छोड़ दिया जाए तो सिर्फ धनंजय चटर्जी को फाँसी की सज़ा दी गई। धनंजय को अगस्त, 2004 में 14 साल की लड़की के साथ बलात्कार करने के मामले में दोषी पाए जाने पर फाँसी दी गई थी।
दया याचिका रही लंबित : माफ कर दिया या राजनीतिक कारण
मौत की सज़ा पाने वाले कई अपराधियों के पास इससे बचने का अंतिम विकल्प राष्ट्रपति के पास दया याचिका भेजने का होता है लेकिन जिन मामलों का राजनीति से जुड़ाव होता है, उनमें फैसले लेने में सरकार हिचकती है। सरकार अंतिम फैसले से पहले राजनीतिक नफा-नुकसान का आकलन करती है। यही वजह है कि ऐसी दया याचिकाएँ लंबे समय तक राष्ट्रपति या केंद्र सरकार के पास पड़ी रहती हैं। तकनीकी कारणों से देर होने की वजह से अपराधी सुप्रीम कोर्ट में सज़ा देने में देर को मुद्दा बनाते हैं और कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट इसी आधार पर फाँसी की सज़ा को उम्र कैद में तब्दील कर देती है। आज के दौर में काँग्रेस संगठन में सबसे ताकवतर नेता राजीव गाँधी की पत्नी सोनिया गाँधी और उनके बेटे राहुल गाँधी हैं। ऐसे में राजीव गाँधी के हत्यारों की दया याचिका इतने सालों से लंबित कैसे रह गई? यह सवाल बना हुआ है। क्या इसके पीछे तमिल राजनीति वजह थी या कोई और सियासी कारण? चूँकि, यह तर्क भी कई लोगों के गले नहीं उतरता कि सोनिया गाँधी ने राजीव के हत्यारों को माफ कर दिया है, इसलिए उनकी मौत की सज़ा का उम्रकैद में तब्दील होना अचरज भरा नहीं है। अगर यही तर्क है तो देश में लंबे समय से लंबित पड़ी अन्य दया याचिका डालने वाले कैदियों की भी जान बख्शी जानी चाहिए।
दुनिया में मौत की सज़ा
एमनेस्टी इंटरनेशनल के आँकड़ों के मुताबिक दुनिया के 98 देशों में किसी भी अपराध के लिए मौत की सज़ा का प्रावधान खत्म हो चुका है। अब भी 58 देश में मौत की सज़ा बरकरार है। 2012 में दुनिया के 58 देशों में 1,722 लोगों को मौत की सज़ा दी गई। 2011 में 63 देशों में 1,923 लोगों को मौत की सज़ा दी गई। इन आँकड़ों में चीन की संख्या शामिल नहीं है; क्योंकि चीन मौत की सज़ा से जुड़े आँकड़े नहीं देता है। ईरान में 2007 से 2012 के बीच 1663 लोगों को मौत की सज़ा दी गई। इस मामले में वह दुनिया का नंबर एक देश है। ईरान के बाद सऊदी अरब का नंबर है जहां 423 लोगों को ऐसी सज़ा दी गई। इराक में 256, अमेरिका में 220, पाकिस्तान में 171 लोगों को 2007 से 2012 के बीच 5 सालों में मौत की सज़ा दी गई।
सोनिया कर चुकी हैं नलिनी को माफ
1999 में तत्कालीन काँग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन को चिट्ठी लिखकर राजीव गाँधी के तीन हत्यारों और मुरुगन की पत्नी नलिनी को हुई फाँसी की सज़ा को उम्रकैद में बदलने की अपील की थी। चिट्ठी में कहा गया था कि सोनिया और उनके बच्चे नलिनी को मौत की सजा दिए जाने के खिलाफ हैं। तब नलिनी की बेटी की उम्र 8 साल थी। तब सोनिया के हवाले से कहा गया था, 'मेरे पति के निधन का दुख मेरे बच्चों को लंबे समय तक झेलना पड़ा और इसी वजह से हमलोग इस बात के खिलाफ हैं कि अब दुनिया में कोई बच्चा अपने पिता या माँ को न खोए।' 2008 में प्रियंका वाड्रा ने नलिनी से जेल में जाकर मुलाकात की थी। तब नलिनी के हवाले से कहा गया था कि प्रियंका के आने की वजह से नलिनी को लगता है कि उनके सारे पाप धुल गए। नलिनी इनदिनों जेल में है।
श्रीपेरंबदूर में राजीव गाँधी स्मारक
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