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मंगलवार, 18 फ़रवरी 2014

तेलंगाना / TELANGANA


-शीतांशु कुमार सहाय
अब तक तेलंगाना आन्ध्र प्रदेश का हिस्सा रहा है। पर, 18 फरवरी 2014 को लोकसभा से तेलंगाना विधेयक के पारित होने से आन्ध्र प्रदेश को बाँटकर तेलंगाना अलग राज्य के गठन का रास्ता पूरी तरह साफ हो गया है। यह भारत का 29वाँ राज्य होगा। इसकी राजधानी हैदराबाद होगी। लोकसभा में आज 18 फरवरी 2014 को तेलंगाना विधेयक के पारित करने के साथ ही तेलंगाना क्षेत्र में जश्न मनाया जा रहा है तो दूसरी ओर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन किरण कुमार रेड्डी अपने पद से इस्तीफा देने की तैयारी में हैं। तेलंगाना का विरोध कर रही वाईएसआर काँग्रेस ने लोकसभा में विधेयक के पारित होने के विरोध में कल बंद का ऐलान किया है। वाईएसआर कांग्रेस के प्रमुख और सांसद जगनमोहन रेड्डी ने दिल्ली में संवाददाताओं से कहा कि इस देश के इतिहास में यह एक काला दिन है। मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी इस्तीरफा देने की तैयारी में हैं।
अब तक आंध्र प्रदेश में मुख्य तौर पर तीन क्षेत्र थे- तेलंगाना, तटीय आंध्र और रायलसीमा। तेलंगाना करीब 114,840 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ क्षेत्र है। 2011 की जनगणना के मुताबिक इस इलाके की आबादी 3, 52, 86,757 है जो आंध्र प्रदेश की कुल आबादी का 41.6 प्रतिशत है। तेलंगाना में 10 जिले आते हैं- हैदराबाद, आदिलाबाद, खम्मम, करीमनगर, महबूबनगर, मेडक, नलगोंडा, निजामाबाद, रंगारेड्डी और वारंगल। हैदराबाद, वारंगल, निजामाबाद और करीमनगर तेलंगाना इलाके के 4 सबसे बड़े शहर हैं। तेलंगाना क्षेत्र में पश्चिम से पू्र्व की ओर मुसी, मंजीरा, कृष्णा और गोदावरी नदियां बहती हैं। 294 सदस्यों वाले आंध्र प्रदेश विधानसभा में तेलंगाना क्षेत्र से 107 सदस्य आते हैं।
तेलंगाना नाम
तेलंगाना पहले हैदराबाद स्टेट का हिस्सा था। इस इलाके को मराठवाड़ा से अलग करने और तेलुगू भाषी इलाके की पहचान को बरकरार रखने के लिए इसे तेलंगाना नाम दिया गया। हिंदू धर्म की मान्यता के मुताबिक भगवान शिव कलेश्वरम, श्रीशैलम और द्रक्षरमा नाम के पहाड़ों पर लिंग के तौर पर अवतरित हुए थे। ये तीनों पहाड़ 'त्रिलिंग देसा' नाम के इलाके की सीमा तैयार करते हैं। त्रिलिंग देसा आज के दौर में मोटे तौर पर कृष्णा और गोदावरी नदियों के बीच का इलाका है और इसे तेलंगाना क्षेत्र कहते हैं।
तेलंगाना आंदोलन
तेलंगाना आंदोलन संयुक्त आंध्र प्रदेश से तेलंगाना को अलग करने के लिए उस दौर से चल रहा है जब मद्रास स्टेट से तेलुगू भाषी इलाके को अलग राज्य बनाए जाने की मांग की जा रही थी। पोट्टी श्रीरामुलु नाम के राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ता ने 1952 में मद्रास स्टेट से तेलुगू भाषियों के लिए अलग राज्य की मांग करते हुए अपनी जान दे दी थी। श्रीरामुलु 19 अक्टूबर, 1952 को आमरण अनशन पर बैठे थे और 15-16 दिसंबर, 1952 की रात उनकी मौत हो गई। श्रीरामुलु के निधन से मद्रास स्टेट के तेलुगू भाषी इलाके में हिंसा फैल गई। इससे केंद्र सरकार पर दबाव बढ़ गया। आखिरकार 1 नवंबर, 1953 को मद्रास स्टेट से अलग आंध्र प्रदेश राज्य का गठन कर दिया गया। राज्य पुनर्गठन आयोग ने तेलंगाना को अलग राज्य बनाए जाने की सिफारिश की थी। लेकिन 1 नवंबर, 1956 को हैदराबाद स्टेट के तहत आने वाले तेलंगाना को भी आंध्र प्रदेश में शामिल कर दिया गया। इस समझौते को जेंटलमैंस एग्रीमेंट कहा गया। लेकिन आंध्र प्रदेश के वजूद में आने के 12 साल बाद से तेलंगाना आंदोलन ने तेजी पकड़ी। 1969 में अलग तेलंगाना की मांग उग्र हो गई और इस मुद्दे पर भड़की हिंसा में सैकड़ों जानें गईं। बीच के दशकों में तेलंगाना की मांग को लेकर छोटे-बड़े आंदोलन चलते रहे। लेकिन 90 के दशक में इस मांग ने तेजी पकड़ी। तेलंगाना को अलग करने के लिए जारी मौजूदा आंदोलन 1996 से चल रहा है। अलग तेलंगाना राज्य की मांग को लेकर अब तक सैकड़ों लोग जान दे चुकी है।
तेलंगाना का नकारात्मक पहलू
सिंचाई के लिए बारिश पर रहना पड़ता है निर्भर। नहरों की कमी। तेलंगाना में औसतन 32,532 हेक्टेयर जमीन पर नहरों के पानी से सिंचाई होती है, जबकि सीमांध्रा क्षेत्र में 1,14,811 हेक्टेयर खेती की जमीन पर नहरों के पानी से सिंचाई होती है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की एक स्टडी रिपोर्ट 'प्राइसिंग ऑफ पैडी :  अ केस स्टडी ऑफ आंध्र प्रदेश' के मुताबिक तेलंगाना में कुल कृषि योग्य जमीन के 15 प्रतिशत हिस्से में नहरों के पानी से सिंचाई होती है जबकि 85 प्रतिशत हिस्से में सिंचाई के लिए कुंओं और टैंकों पर निर्भर रहना पड़ता है। जबकि तटीय आंध्र में खेतों के 57.1 प्रतिशत हिस्से में नहर के पानी से जबकि 43 प्रतिशत जमीन पर कुंओं और टैंकों के पानी से सिंचाई की जाती है। तेलंगाना के किसानों के लिए यह बहुत ही अहम मुद्दा है। उनका मानना है कि उनके इलाके में नहरों का विकास उस तरह से नहीं किया गया है, जैसा होना चाहिए। तेलंगाना समर्थकों का कहना है कि अलग राज्य बनने से इस तरह की समस्याओं का समाधान होगा और इलाके के प्राकृतिक संसाधनों पर उनका हक होगा। 
तेलंगाना का सकारात्मक पहलू
आंध्र प्रदेश का 45 प्रतिशत जंगल तेलंगाना क्षेत्र में है। तेलंगाना बना तो कृष्णा नदी का 68 प्रतिशत पानी आंध्र प्रदेश से छिन जाएगा। देश के पास मौजूद कोयले के कुल भंडार का 20 प्रतिशत हिस्सा तेलंगाना की धरती के नीचे जमा है। तेलंगाना लाइसस्टोन (चूने का पत्थर) से भी भरपूर इलाका है जिसकी सीमेंट उद्योग में जरुरत पड़ती है। तेलंगाना में बॉक्साइट और माइका खनिज भी भरपूर मात्रा में मिलता है। तेलंगाना क्षेत्र के तहत आने वाला हैदराबाद आंध्र प्रदेश का सबसे विकसित शहर है। पिछले कुछ दशकों में हैदराबाद देश के सबसे तेजी से विकसित हो रहे शहरों में शामिल हो गया है। यहां आईटी, फार्मा सेक्टर, बायोटेक्नॉलजी, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर, एविएशन और डिफेंस से जुड़े उद्योग स्थापित हैं। हैदराबाद के अलग तेलंगाना राज्य में चले जाने का भी संयुक्त आंध्र प्रदेश के समर्थकों को डर है लेकिन तेलंगाना समर्थकों को लगता है कि हैदराबाद उनके राज्य में आने से उनका प्रदेश तेजी से तरक्की करेगा।

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