-शीतांशु कुमार सहाय।
देश ने पहली बार महसूस किया कि आदिवासियों का भी कोई दर्शन होता है। आदिवासियों के दर्शन को जानने और आदिवासी दार्शनिकों के विचारों से देशवासियों के ज्ञान में वृद्धि करने का मन बनाया गया है। झारखंड की राजधानी राँची में पहली बार आदिवासी दर्शन और साहित्य पर राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन होने जा रहा है। यह आयोजन भारत में भी पहला है। 22 व 23 मार्च 2014 को राँची के एसडीसी के बिशप कॉन्फ्रेंस हॉल में आयोजित इस सेमिनार में देश के विभिन्न राज्यों से आदिवासी लेखक, विद्वान और रिसर्च स्कॉलर जुटेंगे। सेमिनार का उद्घाटन इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय आदिवासी विश्वविद्यालय के कुलपति टीवी कट्टीमनी करेंगे। ‘झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखाड़ा’ और जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग मारवाड़ी कॉलेज के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम के अंत में आदिवासी दर्शन और साहित्य पर घोषणा पत्र भी जारी किया जायेगा। अखाड़ा के केंद्रीय प्रवक्ता केएम सिंह मुंडा ने बताया कि 2-दिवसीय सेमिनार पाँच सत्रों में आयोजित होगा। पहले दिन कथा-साहित्य पर और दूसरे दिन आदिवासी कविताओं पर आदिवासी दर्शन के आलोक में विमर्श होगा। इस अवसर पर झारखंडी पुस्तक मेला और झारखंड के संघर्ष व सृजन पर एक चित्र प्रदर्शनी भी लगेगी। उन्होंने बताया कि इससे पूर्व 21 मार्च की शाम से तीन दिनों का आदिवासी-दलित राष्ट्रीय नाट्य समारोह भी शुरू होगा जिसमें देश के चुनिंदा व लोकप्रिय नाटकों का प्रदर्शन होगा। अब देखते हैं कि आदिवासियों के दर्शन का प्रथम राष्ट्रीय कार्यक्रम कितना सफल होता है?
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