-शीतांशु कुमार सहाय
आज अर्थात् 9 अप्रैल 2014 का दिन भारतीय पत्रकारिता जगत में ‘काला दिन’ के रूप में दर्ज हो गया। इस दिन पत्रकारों, पत्रकारिता जगत और मीडिया घरानों को प्रभावित करनेवाले अतिमहत्त्वपूर्ण घटना घटी। पर, अत्यन्त अफसोस की बात है कि इस समाचार को देश के सभी समाचार पत्रों ने अपनी सुर्खियों से हटा दिया। यों कहें कि इसे किसी ने तरजीह ही नहीं दी। इस समाचार को प्रकाशित या प्रसारित ही नहीं किया गया। पत्रकारिता के इस अन्धेरगर्दी में ‘जनसत्ता एक्सप्रेस’ व ‘भड़ांस4मीडिया’ जैसे कुछ सितारे भी हैं जिन्होंने इसे अपने वेबपोर्टल पर इसे छापा।
मैं जिस अतिमहत्त्वपूर्ण समाचार की बात कर रहा हूँ, वह समाचार माध्यमों में कार्यरत पत्रकारों व गैर पत्रकारों को मजीठिया वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार वेतन, भत्ते व छुट्टियाँ आदि का लाभ देने से सम्बन्धित है। दरअसल, 7 अप्रैल 2014 को सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया था कि देश के सभी छोटे-बड़े मीडिया घरानों को अपने पत्रकारों व गैर पत्रकारों को मजीठिया वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार वेतन, भत्ते व छुट्टियाँ आदि का लाभ अप्रैल 2014 से देना पड़ेगा। साथ ही न्यायालय के आदेश के अनुसार यह वेतन आयोग 11 नवंबर 2011 से लागू होगा जब इसे सरकार ने पेश किया था और 11 नवंबर 2011 से मार्च 2014 के बीच बकाया वेतन भी पत्रकारों को एक साल के अंदर चार बराबर किस्तों में दिया जाएगा। इसके साथ ही मजीठिया वेतन आयोग की सिफारिश के अनुसार अप्रैल 2014 से नया वेतन लागू किया जाएगा।
सर्वोच्च न्यायालय के 7 फरवरी वाले आदेश पर कुछ मीडिया घरानों एबीपी प्रा.लि., इंडियन एक्सप्रेस लिमिटेड, इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी, प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया, राजस्थान पत्रिका प्रा. लिमिटेड, उषोदया पब्लिकेशंस और द प्रिंटर्स (मैसूर) प्रा.लि. आदि ने पुनर्विचार याचिका दायर कर दी। इसे आज यानि 9 अप्रैल 2014 को सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई के याग्य न करार देते हुए खारिज कर दिया। इस समाचार को किसी भी अखबार ने तरजीह नहीं दी और 9 अप्रैल 2014 को ‘पत्रकारिता जगत का काला दिन’ सिद्ध कर दिया। आखिर ऐसे अखबार किस मुँह से पाठकों के बीच अपने को स्वच्छ व निष्पक्ष साबित करते हैं! उनकी पक्षपात तो जगजाहिर हो गयी। क्या ऐसे समाचार माध्यमों के समाचारों पर पूरी तरह विश्वास करना चाहिये ???
जनसत्ता एक्सप्रेस में समाचार---
''मजीठिया वेज बोर्ड को लेकर फैसले पर पुनर्विचार के लिए सुप्रीम कोर्ट में पहुंचे अखबार मालिकों को करारा झटका लगा है। इस मामले को लेकर दाखिल पुनर्विचार याचिकाओं पर माननीय मुख्य न्यायमूर्ति पी. सथशिवम की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने आज संक्षिप्त सुनवाई के बाद करीब दो बजे खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय प्रिंट मीडिया और समाचार एजेंसियों से जुड़े कर्मचारियों के लिए बहुत बड़ी खुशखबरी है। वेतन वृद्धि और एरियर को लेकर टालमटोल कर रहे मालिकान के लिए अब इससे बचने का कोई कानूनी रास्ता नहीं रहा गया है। दो दिन से इस पर मीडया से जुड़े सभी लोगों की नजरें लगी हुई थीं। इस पीठ के दो अन्य न्यायाधीशों में रंजन गोगोई और शिवा कीर्ति सिंह शामिल रहे। याचिका दाखिल करने वालों में आनंद बाजार पत्रिका निकालने वाले समूह एबीपी प्रा.लि., इंडियन एक्सप्रेस लिमिटेड, इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी, प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया, राजस्थान पत्रिका प्रा. लिमिटेड, उषोदया पब्लिकेशंस और द प्रिंटर्स (मैसूर) प्रा.लि. के नाम शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट के ताजा कदम से अखबारों, पत्रिकाओं और समाचार एजेंसियों में कार्यरत पत्रकारों और गैर-पत्रकारों को अपने बढ़े वेतन एवं एरियर के लिए अब और इंतजार नहीं करना पड़ेगा।''
जनसत्ता एक्सप्रेस ने समाचार को छापने के बाद नीचे में लिखा- ''आपको बता दें कि मजीठिया वेजबोर्ड पर सुप्रीम कोर्ट ने 7 फरवरी 2014 को फैसला सुनाया था कि इसे संस्थान लागू करें। पर अखबार मालिकों ने मिलकर इसे न लागू कराने का प्लान बनाया और उस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा पर वहां से उन्हें निराशा हाथ लगी है। सो सभी मीडियाकर्मियों को एक बार बधाई...।''
....और मेरी तरफ से समाचार छापने पर बधाई!
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