उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी को करारे झटके ने पीएम नरेंद्र मोदी के 64वें जन्मदिन का जश्न ही फीका कर दिया। मोदी के खास सिपहसालार अमित शाह अपने पहले ही इम्तेहान में ही फेल हो गए। जिन राज्यों में गैर बीजेपी सरकारें थीं वहां तो बीजेपी फिसली ही, अपने राज्यों में भी उसकी भद पिट गई। जानने की कोशिश करते हैं कि किन 5 बड़ी वजहों से बीजेपी को करारी हार मिली।
कारण 1 : नहीं चला लव जेहाद
यूपी में भाजपा को महज 3 सीटें ही नसीब हुईं। 8 सीटें समाजवादी पार्टी की झोली में गईं। ये सभी सीटें बीजेपी विधायकों के सांसद बन जाने पर खाली हुई थीं। बीजेपी ने यूपी उपचुनाव में लव जेहाद को बड़ मुद्दा बनाया। लेकिन जनता ने सिरे से इसे खारिज कर दिया। अमित शाह ने योगी आदित्यनाथ पर दांव खेला, योगी ने जमकर मेहनत भी की, लेकिन जनता को लव जेहाद के मुद्दे को नकार दिया। साफ है कि सिर्फ उग्र हिंदुत्व के सहारे सत्ता तक नहीं पहुंचा जा सकता। विकास का एजेंडा जनता के सामने रखना ही होगा। चौंकाने वाली बात ये है कि ऐसा नतीजा तब आया जब बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने चुनाव से खुद को दूर रखा। बावजूद इसके बीजेपी का प्रदर्शन शर्मनाक रहा। आखिलेश राज में यूपी का हाल किसी से छिपा नहीं है, बावजूद इसके सपा के शानदार प्रदर्शन ने यूपी में बीजेपी के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है।
कारण 2 : महंगाई का मुद्दा
चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस नीत यूपीए सरकार पर महंगाई को लेकर जबरदस्त हमला बोला। अपनी हर रैली में मोदी ने जनता को कांग्रेस के उस वादे की याद दिलाई जिसमें 100 दिनों के भीतर महंगाई से निजात दिलाने की बात कही गई थी, लेकिन अपनी सरकार के 100 दिन में मोदी जनता को महंगाई से राहत नहीं दिला पाई। सब्जियों खासकर टमाटर के दाम आसमान पर पहुंच गए। मोदी का अच्छे दिन लाने का वादा पार्टी पर बैकफायर कर गया। आखिर में जनता का गुस्सा बीजेपी पर उतरा।
कारण 3 : भाजपा नहीं मोदी
उपचुनाव के नतीजों से साफ हो गया कि लोकसभा चुनाव में जनता ने भाजपा नहीं मोदी के नाम पर वोट दिया था। मोदी के नाम पर ही लोग ही घरों से बाहर निकले। लेकिन उपचुनाव में मोदी नहीं बल्कि बीजेपी मैदान में थी। राजस्थान, गुजरात में लोगों ने बीजेपी को नकार दिया। अब बीजेपी एंटी इंकम्बेंसी का बहाना भी नहीं कर सकती क्योंकि यूपी जैसे महत्वपूर्ण राज्य में भी बीजेपी गोते लगा गई। उसके हिस्से महज 3 सीटें ही आईं। जबकि सभी 11 सीटें उसके पास ही थी। इससे पहले उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और कर्नाटक विधानसभा उपचुनाव में भी बीजेपी झटका खा चुकी है। यानि आने वाले वक्त में बीजेपी के लिए खतरे की घंटी।
कारण 4 : भाजपा का अति आत्मविश्वास
उपचुनाव में भाजपा का अति आत्मविश्वास भी उसे ले डूबा। राजस्थान, गुजरात में पार्टी ने सभी लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। लेकिन उपचुनाव के नतीजे बिल्कुल उलट रहे। मोदी के जाते ही गुजरात में कांग्रेस ने पैर जमाने शुरु कर दिए और राजस्थान में वसुंधरा का ओवर कॉन्फिडेंस ही उन्हें ले डूबा। खुद वसुंधरा का करीबी उम्मीदवार भी चुनाव हार बैठा। कांग्रेस ने युवा नेता सचिन पायलट के हाथों चुनाव की कमान सौंपी और नतीजा सामने आया। शायद, बीजेपी को लगने लगा था कि यूपी में मचे हाहाकार के बाद अब बस जनता सीधे उसके पास ही आएगी। नेता हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। लेकिन जनता ने बता दिया कि सत्ता इतनी आसानी से नहीं मिलती, इसके लिए मेहनत करनी होती है।
कारण 5 : बेलगाम बयानबाजी
भाजपा नेता की बेलगाम बयानबाजी ने भी बीजेपी का बेड़ा गर्क किया। गोवा जैसे छोटे राज्य से उग्र बयान आए। खास तौर पर हिंदुत्व को लेकर। कई मंत्रियों ने तो हिंदू राष्ट्र की वकालत तक कर डाली। इसके अलावा श्रीराम सेना जैसे हिंदुत्ववादी संगठनों के उभार और उनके उग्र बयानों ने सेकुलर धारा के लोगों एकजुट कर दिया। इसका साफ असर चुनाव नतीजों ने नजर आया। इसी का फायदा कांग्रेस और सपा को मिला। मोदी जिस कांग्रेस मुक्त भारत की बात कर रहे थे, उसे संजीवनी मिल गई। कलह से जूझ रही कांग्रेस के लिए चुनाव नतीजे किसी वरदान से कम नहीं दिख रहे।
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