आज सोमवार 15 सितम्बर 2014 को मेरे पुत्र अभ्युदय ने जिन्दगी की पहली परीक्षा दी। यह परीक्षा जिन्दगी जीने की नहीं; जिन्दगी में ‘आगे’ बढ़ने के लिए परम्परागत पढ़ाई की परीक्षा थी। अगले चार दिनों तक परीक्षा चलेगी। लोअर किंडरगार्डेन (एलकेजी) की परीक्षा प्रातः आठ बजे से दस बजे तक हुई। इस दौरान की विद्यालीय घटनाओं की चर्चा उसने ‘विचित्र अंदाज’ में अपनी माँ से की। एक बात तो यह बतायी कि परीक्षा में मैडम (शिक्षिका) सबकुछ भूल जाती है। उसने किसी प्रश्न का उत्तर पूछा तो शिक्षिका ने याद न रहने की बात कही। उसे पहली बार यह भी अनुभव हुआ कि परीक्षा में स्वयं ही लिखना पड़ता है, किसी से पूछकर या किसी का देखकर नहीं। वास्तव में अभ्युदय ने जिन्दगी की सच्चाई बतायी कि जिन्दगी में आगे बढ़ने के लिए ‘अकेला’ ही आगे आना होता है, तभी मंजिल मिल पाती है। .....तो मित्रों अभ्युदय को अपना आशीर्वाद दें और आत्मपरीक्षण करें कि आप इन दिनों जिन्दगी की किस ‘परीक्षा’ से गुजर रहे हैं या किस ‘परीक्षा’ में उत्तीर्ण होने के लिए और कितनी सामर्थ्य जुटानी होगी।
इति शुभम्!
-शीतांशु
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