-शीतांशु कुमार सहाय
रासायनिक विश्लेषणों से यह बात सामने आयी है कि अनेक खाद्योपयोगी घटक तथा लोहा, कैल्शियम, गंधक, पोटेशियम एवं विटामिन आदि गुड़ में भरपूर मात्रा में उपलब्ध है। गुड़ में पैनथीनिक एसिड, नायसिन, थियासिन, रीबोप्लेविन, पायरिडोक्सिन, बायोटिन, फालिक एसिड तथा आइनोसिटल इतनी मात्रा में पाए जाते हैं कि यह एक प्रमुख सामग्री के रूप में गिना जाता है। गुड़ के प्रत्येक 100 ग्राम भाग में प्रोटीन 0.4 ग्राम, वसा 0.1 ग्राम, खनिज 0.6 ग्राम, कैल्शियम 80 मि.ग्रा, फास्फोरस 40 मि.ग्रा, लोहा 11.4 मि.ग्रा आदि पोषक तत्व होते हैं। गुड़ गन्ने से तैयार एक शुद्ध, अपरिष्कृत पूरी चीनी है। यह खनिज और विटामिन है जो मूल रूप से गन्ने के रस में ही मौजूद हैं। यह प्राकृतिक होता है। पर लिए ज़रूरी है की देशी गुड लिया जाए, जिसके रंग साफ़ करने में सोडा या अन्य केमिकल का प्रयोग न हुआ हो। यह थोड़े गहरे रंग का होगा। इसे चीनी का शुद्धतम रूप माना जाता है। गुड़ का उपयोग मूलतः दक्षिण एशिया मे किया जाता है। भारत के ग्रामीण इलाकों मे गुड़ का उपयोग चीनी के स्थान पर किया जाता है। लखनऊ के भारतीय गन्ना शोध संस्थान के प्रोसेस इंजीनियरिंग के डा.जसवंत सिंह ने गुड़ की पोषण गुणवत्ता को जोरदार तरीके से रेखांकित किया है। डा.सिंह के अनुसार चीनी बनाने की प्रक्रिया के कारण उसमें हर प्रकार के विटामिन खनिज और पोषक तत्व नष्ट अलग हो जाते हैं। इसके विपरित गुड़ बनाते समय उसमें रिड्युसिंग शुगर और अन्य खनिजों की मात्रा और बढ़ जाती है। डा.सिंह का तो दावा है कि ग्रामीण इलाकों में डायबीटिज इसलिये कम होती है कि वहां गुड़ अधिक खाया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार गुड़ जल्दी पचने वाला, खून बढ़ाने वाला व भूख बढ़ाने वाला होता है। गुड़ के साथ पकाए चावल खाने से बैठा हुआ गला व आवाज़ खुलती है। गुड़ की तासीर गर्म है। भारतवर्ष में जबसे गन्ने का उत्पादन प्रारम्भ हुआ तभी से इसका उपयोग गुड़ उत्पादन के निमित्त किया जा रहा है। भारतीय वैदिक कालीन इतिहास में गन्ने की खेती एवं विभिन्न अवसरों पर विभिन्न प्रकार के गुड़ के उपयोग के विषय में वर्णन आता है। सन् 1920 से पूर्व गन्ने की खेती केवल गुड़ एवं खाण्डसारी उद्योग के लिये ही की जाती थी। वर्तमान में हमारे देश में लगभग 80 लाख टन गुड़ विभिन्न रूपों में प्रतिवर्ष उत्पादित किया जाता है जिसकी लगभग 56 प्रतिशत मात्रा अकेले उ0प्र0 में ही बनाई जाती है। रोजाना 20 ग्राम गुड़ खाएं। चरक संहिता और आयुर्वेदाचार्य बागभट्ट ने भी लोगों को खाना खाने के बाद रोजाना थोड़ा सा गुड़ खाने की सलाह दी है। अंग्रेजों के शासनकाल में गन्ना उत्पादक काश्तकार खाण्डसारी के बजाय गुड़ बनाना पसंद करते थे जबकि अंग्रेजों को चीनी की जरुरत होती थी। जब गुड़ निर्माताओं ने चीनी मिलों को गन्ने की आपूर्ति बंद कर दी तो अंग्रेजों ने गुड़ बनाने पर ही प्रतिबंध लगाने के साथ ही इसे गैर कानूनी भी घोषित कर दिया। पूजा-अर्चना हवन आदि धार्मिक कार्यों में भी गुड़ का प्रयोग किया जाता है।
रासायनिक विश्लेषणों से यह बात सामने आयी है कि अनेक खाद्योपयोगी घटक तथा लोहा, कैल्शियम, गंधक, पोटेशियम एवं विटामिन आदि गुड़ में भरपूर मात्रा में उपलब्ध है। गुड़ में पैनथीनिक एसिड, नायसिन, थियासिन, रीबोप्लेविन, पायरिडोक्सिन, बायोटिन, फालिक एसिड तथा आइनोसिटल इतनी मात्रा में पाए जाते हैं कि यह एक प्रमुख सामग्री के रूप में गिना जाता है। गुड़ के प्रत्येक 100 ग्राम भाग में प्रोटीन 0.4 ग्राम, वसा 0.1 ग्राम, खनिज 0.6 ग्राम, कैल्शियम 80 मि.ग्रा, फास्फोरस 40 मि.ग्रा, लोहा 11.4 मि.ग्रा आदि पोषक तत्व होते हैं। गुड़ गन्ने से तैयार एक शुद्ध, अपरिष्कृत पूरी चीनी है। यह खनिज और विटामिन है जो मूल रूप से गन्ने के रस में ही मौजूद हैं। यह प्राकृतिक होता है। पर लिए ज़रूरी है की देशी गुड लिया जाए, जिसके रंग साफ़ करने में सोडा या अन्य केमिकल का प्रयोग न हुआ हो। यह थोड़े गहरे रंग का होगा। इसे चीनी का शुद्धतम रूप माना जाता है। गुड़ का उपयोग मूलतः दक्षिण एशिया मे किया जाता है। भारत के ग्रामीण इलाकों मे गुड़ का उपयोग चीनी के स्थान पर किया जाता है। लखनऊ के भारतीय गन्ना शोध संस्थान के प्रोसेस इंजीनियरिंग के डा.जसवंत सिंह ने गुड़ की पोषण गुणवत्ता को जोरदार तरीके से रेखांकित किया है। डा.सिंह के अनुसार चीनी बनाने की प्रक्रिया के कारण उसमें हर प्रकार के विटामिन खनिज और पोषक तत्व नष्ट अलग हो जाते हैं। इसके विपरित गुड़ बनाते समय उसमें रिड्युसिंग शुगर और अन्य खनिजों की मात्रा और बढ़ जाती है। डा.सिंह का तो दावा है कि ग्रामीण इलाकों में डायबीटिज इसलिये कम होती है कि वहां गुड़ अधिक खाया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार गुड़ जल्दी पचने वाला, खून बढ़ाने वाला व भूख बढ़ाने वाला होता है। गुड़ के साथ पकाए चावल खाने से बैठा हुआ गला व आवाज़ खुलती है। गुड़ की तासीर गर्म है। भारतवर्ष में जबसे गन्ने का उत्पादन प्रारम्भ हुआ तभी से इसका उपयोग गुड़ उत्पादन के निमित्त किया जा रहा है। भारतीय वैदिक कालीन इतिहास में गन्ने की खेती एवं विभिन्न अवसरों पर विभिन्न प्रकार के गुड़ के उपयोग के विषय में वर्णन आता है। सन् 1920 से पूर्व गन्ने की खेती केवल गुड़ एवं खाण्डसारी उद्योग के लिये ही की जाती थी। वर्तमान में हमारे देश में लगभग 80 लाख टन गुड़ विभिन्न रूपों में प्रतिवर्ष उत्पादित किया जाता है जिसकी लगभग 56 प्रतिशत मात्रा अकेले उ0प्र0 में ही बनाई जाती है। रोजाना 20 ग्राम गुड़ खाएं। चरक संहिता और आयुर्वेदाचार्य बागभट्ट ने भी लोगों को खाना खाने के बाद रोजाना थोड़ा सा गुड़ खाने की सलाह दी है। अंग्रेजों के शासनकाल में गन्ना उत्पादक काश्तकार खाण्डसारी के बजाय गुड़ बनाना पसंद करते थे जबकि अंग्रेजों को चीनी की जरुरत होती थी। जब गुड़ निर्माताओं ने चीनी मिलों को गन्ने की आपूर्ति बंद कर दी तो अंग्रेजों ने गुड़ बनाने पर ही प्रतिबंध लगाने के साथ ही इसे गैर कानूनी भी घोषित कर दिया। पूजा-अर्चना हवन आदि धार्मिक कार्यों में भी गुड़ का प्रयोग किया जाता है।
सफेद जहर है चीनी
गुड़ को स्वास्थ्य के लिए अमृत जबकि चीनी
को सफेद जहर माना गया है।
आयुर्वेद में किये गये शोध
से पता चला है कि गुड़ के मुकाबले चीनी को पचाने में पांच गुणा ज्यादा ऊर्जा खर्च होती
है। यदि गुड़ को पचाने मे 100 कैलोरी ऊर्जा लगती है तो चीनी को पचाने में 500 कैलोरी
खर्च होती है।
गुड़ में कैल्शियम के साथ
फास्फोरस भी होता है जो हड्डियों को मजबूत करने में सहायक माना जाता है। वहीं चीनी
हड्डियों के लिए नुकसानदायक होती है क्योंकि चीनी इतने अधिक तापमान पर बनाई जाती है
कि गन्ने के रस में मौजूद फास्फोरस भस्म जाता है। फास्फोरस कफ को संतुलित करने में
भी सहायक माना जाता है।
आयुर्वेद का मानना है कि
गुड़ में मौजूद क्षार शरीर मौजूद अम्ल (एसिड) को खत्म करता है इसके विपरीत चीनी के
सेवन से अम्ल बढ़ जाता है जिससे वात रोग पैदा होते है। वैद्य सलाह देते हैं कि नीरोग
रहने और दीर्घायुता के लिए भोजन के बाद नियमित रूप से 20 ग्राम गुड़ का सेवन किया जाना चाहिए।
गुड़ के तमाम फायदों के बावजूद आयुर्वेद में कुछ पदार्थों के साथ इसके सेवन को निषेध
माना है जिनमें दूध में मिला कर पीने की मनाही की गयी है। हालांकि पहले गुड़ खाएं और
फिर दूध पिएं, आपकी सेहत ठीक रहेगी और कई रोगों से बचाव होगा। चीनी की चाय की जगह गुड़ की चाय अधिक
स्वास्थ्यकर मानी जाती है।
गुड़ गन्ने से तैयार एक शुद्ध प्राकृतिक आहार
है। यह खनिज और विटामिन का मुख्य स्रोत है जो मूल रूप से
गन्ने के रस
में ही मौजूद हैं। यह प्राकृतिक
होता है। गुड़ के सेवन के दौरान ध्यान रखें कि यह पूरी तरह देसी ही हो, जिसके
रंग साफ़ करने में
सोडा या अन्य केमिकल का प्रयोग न हुआ हो। शुद्ध गुड़ लालिमा लिए हुए भूरा होता है। पीला या चमकीला गुड़ लाभदायक नहीं है, यह जहर है।
गुड के औषधीय गुण---
-आयुर्वेदिक चिकित्सा के अनुसार गुड़ का
उपभोग गले और फेफड़ों के
संक्रमण के उपचार में लाभदायक
होता है।
-गुड़ लोहतत्व का एक प्रमुख स्रोत है और रक्ताल्पता (एनीमिया) के शिकार व्यक्ति को चीनी के स्थान पर इसके सेवन की सलाह दी जाती
है।
- देसी गुड़ प्राकृतिक रुप से तैयार किया
जाता है तथा कोई रसायन इसके प्रसंस्करण के लिए
उपयोग नहीं किया जाता है, जिससे इसे अपने मूल
गुण को नहीं खोना पड़ता है, इसलिए यह लवण जैसे महत्वपूर्ण खनिज से युक्त होता है।
- गुड़ सुक्रोज और ग्लूकोज जो शरीर के
स्वस्थ संचालन
के लिए आवश्यक खनिज और विटामिन
का एक अच्छा स्रोत है।
- गुड़ मैग्नीशियम का भी अच्छा स्रोत
है जिससे मांसपेशियों, नसों और रक्त वाहिकाओं को थकान से राहत मिलती है।
- गुड़ सोडियम की कम मात्रा के साथ-साथ
पोटेशियम
का भी एक अच्छा स्रोत है,
इससे रक्तचाप को नियंत्रित बनाए रखने मेंमदद मिलती है।
- भोजन के बाद थोडा सा गुड खा ले; सारा
भोजन अच्छे से और जल्दी पच जाएगा।
- गुड़ रक्तहीनता से पीड़ित लोगों के लिए बहुत अच्छा है, क्योंकि यह लोहे का एक अच्छा
स्रोत है यह
शरीर में हीमोग्लोबिन स्तर
को बढाने में मदद करता है।
- यह सेलेनियम के साथ एक एंटीऑक्सीडेंट
के रूप में कार्य
करता है।
- गुड़ में मध्यम मात्रा में कैल्शियम,
फास्फोरस और
जस्ता होता है जो बेहतर
स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करता है।
- यह रक्त की शुद्धि में भी मदद करता
है, पित्त
की आमवाती वेदनाओं और विकारों
को रोकने के साथ-साथ गुड़ पीलिया के इलाज में भी मदद करता
है।
- गुड़ शरीर को विषाक्त पदार्थों से छुटकारा
पाने में मदद करता है। सर्दियों में, यह शरीर के तापमान को विनियमित करने में मदद करता है।
- यह खांसी, दमा, अपच, माइग्रेन, थकान
व इसी तरह
की अन्य स्वास्थ्य सम्बन्धी
समस्याओं से निपटने में
मदद करता है।
- यह संकट के दौरान तुरन्त ऊर्जा देता
है।
- लड़कियों के मासिक धर्म को नियमित करने
यह मददगार होता है।
- गुड़ गले और फेफड़ों के संक्रमण के
इलाज में फायदेमंद
होता है।
- यह व्यक्ति के तंत्रिका तंत्र को मजबूत
करने में सहायक होता है।
- गुड़ शरीर में जल के अवधारण को कम करके
शरीर के वजन को नियंत्रित करता है।
- गुड़ उच्चस्तरीय
वायु प्रदूषण में रहनेवाले लोगों को इससे लड़ने
में मदद करता है।
-गुड़ मूत्र की रुकावटों को दूर करता है।
-गुड़ जितना पुराना हो उतना अधिक गुणों
से युक्त होता है।
-गुड़ में पाया जाने वाला क्षारीय गुण रक्त
की अम्लता को दूर करता है।
-मेहनतकश एवं खिलाड़ियों के लिये तो यह
किसी वरदान से कम नहीं है। बढ़ते बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं के लिये बहुत उपयोगी होता
है।
-कोई भी आसव, आरिष्ट बिना गुड़ के नहीं
बनाए जाते हैं।
-राज निघण्टुकार के अनुसार, गुड़ हृदय के
लिये हितकारक, त्रिदोष नाशक, मल-मूत्र के रोगों को नष्ट करने वाला, खुजली और प्रमेह
नाशक, थकान दूर करने वाला एवं पाचन शक्ति को बढ़ाने वाला है।
-250 ग्राम कच्चा पीसा जीरा और 125 ग्राम गुड़
को मिला कर इसकी गोलियाँ बना लें। दो-दो गोली नित्य दिन में तीन बार खाने से मूत्र
विकार में लाभ मिलता है। जैसे मूत्र नहीं होना, मूत्र में जलन आदि।
-भावप्रकाश के अनुसार, गुड़ का अदरक के
साथ सेवन कफ को छाँटता है, हरड के साथ पित्त का नाश करता है और सौंठ के साथ सम्पूर्ण
वातज रोगों में लाभकारी है।
-प्राचीनकाल से ही हमारे यहाँ गुड़ का हर
मांगलिक कार्य में उपयोग होता है। बिना गुड़ के मांगलिक कार्य अधूरा माना जाता है।
-शुभ कार्य के प्रारंभ में गुड़ को शगुन
माना गया है। किसी भी शुभ कार्य के लिये प्रस्थान के समय गुड़ को मूंह में डालकर जाने
से सफलता प्राप्त होती है।
-प्रसव के पश्चात स्त्रियों को गुड़ देना
प्राचीनकाल से चला आ रहा है। शिशु जन्म के बाद गर्भाशय की पूर्ण रूप से सफाई न होने
पर अनेक विकार होने की संभावना बनी रहती है। अत: शिशु के जन्म के 3 दिन तक प्रसूता
को गुड़ के पानी के साथ सौंठ दी जाती है।
-वैज्ञानिकों एवं चिकित्सकों का कहना है
कि यौवन क्षमता बनाए रखने तथा दीर्वजीवन के लिये गुड़ का प्रयोग अच्छा रहता है।
-बढ़ते हुए बच्चों के लिये यह एक अत्यन्त
उत्तम खाद्य है। यदि बच्चों को उचित मात्रा में दूध न मिले तो उन्हें कुछ मात्रा में
गुड़ देना चाहिये। जो बच्चे रिकेट दांत के क्षय या कैल्शियमहीनता की दूसरी बीमारियों
से पीड़ित हो उनको हमेशा चीनी की जगह पर्याप्त गुड़ देना चाहिये।
-गुड़ और काले तिल के लड्डू बच्चों को देने
से बच्चों का बिस्तर में पेशाब करना दूर हो जाता है।
-छोटा बच्चा यदि गलती से तम्बाकू खा ले
तो विशाक्तता से बचने के लिये गुड़ अथवा गन्ने का रस बच्चे को पिलायें।
-इसमें एंटी एलर्जिक तत्व हैं इसलिए दमा
के मरीजों के लिए इसका सेवन काफी फायदेमंद है। गुड़ और काले तिल के लड्डू खाने से सर्दी
में अस्थमा परेशान नहीं करता।
-गुड़ एवं सरसों का तेल बराबर मात्रा में
मिलाकर सेवन करने से श्वास एवं दमा में लाभ होता है।
-सर्दी या अन्य किसी कारण से गले में खराश
हो तो आवाज बैठ जाने पर दो काली मिर्च, 50 ग्राम गुड़ के साथ खाने से यह शिकायत दूर
हो जाती है।
-पतले दस्त लगने पर एवं तेज बुखार के कारण
शरीर में पानी की कमी हो जाने पर गुड़ के पानी में नींबू का रस मिलाकर देने से तत्काल
राहत मिलती है; क्योंकि गुड़ ग्लूकोज के समान कार्य करता
है।
-भोजन के साथ गुड़ खाने से थकान दूर होती
है।
-भोजन के बाद गुड़ खाने से गैस नहीं बनती
है।
-सर्दी, जुकाम या कफ बहुत बनता हो तो अदरक
व गुड़ बराबर मात्रा में दिन में तीन बार लेने से आराम मिलता है।
-अगर ज़ुकाम जम गया हो तो गुड़ पिघला कर
उसकी पपड़ी बना कर खिलाएं। गुड़ और घी मिला कर खाने से कान का दर्द ठीक हो जाता है।
-गुड़ का हलवा खाने से स्मरणशक्ति भी बढ़ती
है।
-गुड़ शरीर का रक्त साफ करता है और मेटाबॉलिज्म
ठीक करता है।
-गुड़ रक्त से टॉक्सिन दूर करता है जिससे
त्वचा दमकती है और मुहांसे की समस्या नहीं होती है।
- प्रतिदिन गुड़ के एक टुकड़े के साथ अदरक
के सेवन से सर्दियों में जोड़ों के दर्द से दूर रहा जा सकता है।
-जिन महिलाओं को पीरियड्स के दौरान अधिक
दर्द होता है उनके लिए गुड़ का सेवन काफी फायदेमंद है। चूंकि यह पाचन ठीक रखता है इसलिए
पीरियड्स के दर्द से आराम में यह फायदेमंद है।
-एक वर्ष पुराना गुड़ रूचिवर्धक, अग्निवर्धक,
लघु एवं वात पित्त नाशक होता है। ज्वर का नाश करने वाला एवं हृदय को बल देने वाला होता
है।
-नया गुड़ हल्का खारा, वीर्यवर्धक, बात
कफ नाशक होता है मगर यह पित्त एवं रक्त के रोगियों के लिये हानिकारक होता है।
-गुड़ को गुनगुन पानी में घोलकर उसमें
शुद्ध घी की दो बूंदें डालकर सेवन करने से पेट के कृमि बाहर निकल जाते हैं। पेट साफ
हो जाता है।
-गुड़ को गुनगुने दूध में मिलाकर दिन में
दो बार पीने से मूत्र खुलकर आता है।
-गुड़ में हरड़ के चूर्ण को मिलाकर अग्नि
प्रदीप्त होती है, जिससे पाचन शक्ति बढ़ती है, और भूख ठीक से लगती है।
-गुड़ में अजमायन मिलाकर शल्य पट्टी बाँध
देने से पांव अथवा किसी अन्य अंग में लगा कांटा, कांच, कंकण आदि बाहर निकल जाते हैं।
-दो पके हुये केले लेकर इनके गूदे में
गुड़, नमक या दही मिलाकर खाने से पेचिश दूर हो जाती है।
-गुड़ को तिल के क्वाथ में मिलाकर सेवन
करने से बंद मासिक स्त्राव पुनः प्रारम्भ हो जाता है।
-आधे सिर का दर्द होने पर 10 ग्राम गुड़
5 ग्राम देशी घी में मिलाकर सूर्योदय से पहले एवं बाद में सेवन करने से दर्द में आराम
मिलता है।
-एक-एक दिन का गैप देकर आने वाले ज्वर
में गुड़ और फिटकरी का चूर्ण मिलाकर छोटी गोलियां बनाकर खाने से पुराने से पुराना ज्वर
भी ठीक हो जाता है। यह नुस्खा 95 प्रतिशत कामयाब है।
-बाजरे की खिचड़ी में गुड़ डालकर खाने से
नेत्र-ज्योति बढ़ती है।
-बीस ग्राम गुड़ और एक चम्मच आँवले का
चूर्ण नित्य लेने से वीर्य की दुर्बलता दूर होती है और वीर्य पुष्ट होता है।
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चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठे पन्थ असाढ़े बेल।
सावन साग न भादों दही, क्वार करेला न कातिक मही।।
अगहन जीरा पूसे धना, माघे मिश्री फागुन चना।
ई बारह जो देय बचाय, वहि घर बैद कबौं न जाय।।
(यदि व्यक्ति चैत में गुड़, बैसाख में
तेल, जेठ में यात्रा, आषाढ़ में बेल, सावन में साग, भादों में दही, क्वाँर (आश्विन या मार्गशीर्ष) में करेला, कार्तिक में मट्ठा अगहन में
जीरा, पूस में धनिया, माघ में मिश्री और फागुन में चना, ये वस्तुएँ स्वास्थ्य के लिए
कष्टकारक होती हैं। जिस घर में इनसे बचा जाता है, उस घर में वैद्य कभी नहीं आता क्योंकि
लोग स्वस्थ बने रहते हैं।)
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गुड़-चना बंदरों को खिलाने से मिट जाते हैं पुराने पाप
भाग्य का हमारे सुख और दुख का सीधा संबंध
है। शास्त्रों के अनुसार हमारे कर्मों से ही भाग्य या नसीब बनता है। हमें जीवन में
कितना सुख मिलेगा और कितना दुख ये पूर्व समय और पूर्व जन्म में किए गए कर्मों के आधार
पर निर्भर है। किसी व्यक्ति को कुंडली के किसी ग्रह दोष के कारण अधिक परेशानियों का
सामना करना पड़ रहा है तो इसका मतलब यही है कि उसका भाग्य साथ नहीं दे रहा है। भाग्य
संबंधी परेशानियों को दूर करने के लिए ज्योतिष शास्त्र में एक सटीक उपाय बताया है,
जिससे शुभ फल प्राप्त होने लगते हैं। शास्त्रों के अनुसार पुराने समय से ही किसी भी प्रकार की समस्या
या मनोकामना की पूर्ति के लिए हनुमानजी का पूजन श्रेष्ठ उपाय माना गया है। कलयुग में
हनुमानजी बहुत ही जल्द प्रसन्न होने वाले देवता माने गए हैं। इनकी नियमित आराधना से
कुंडली के सभी ग्रह दोष भी शांत हो जाते हैं। साथ ही पुराने पाप कर्मों का अशुभ प्रभाव
भी नष्ट हो जाता है और व्यक्ति को दुर्भाग्य से छुटकारा मिल जाता है। हनुमानजी को प्रसन्न करने के लिए कई उपाय
बताए गए हैं। इन्हीं उपायों में से एक उपाय है बंदरों को गुड़-चना खिलाना। हर शनिवार
को यदि भक्त बंदरों को गुड़-चना खिलाता है तो उसके ज्योतिषीय दोष दूर हो जाते हैं।
रुके हुए कार्य पूर्ण होने लगते हैं और भाग्य साथ देने लगता है। बंदरों को गुड़-चना
खिलाने से हनुमानजी प्रसन्न होते हैं क्योंकि स्वयं बजरंग बली को वानर रूप में ही पूजा
जाता है।
एक जगह तो अपने लिखा की दूध में गुड़ न मिलाये फिर बाद में आपने लिखा कि गुनगुने दूध में गुड़ मिलाकर ले ! ये समझ नही आया, कृपया बताने की कृपा करे कि दूध में गुड़ ले अथवा नही !
जवाब देंहटाएंसारांश जी !
जवाब देंहटाएंगुड़ में दूध न मिलाने का अर्थ है कि अधिकतर लोग लाल के बदले साफ गुड़ लेते हैं जिसमें सोडा या डिटर्जेण्ट मिला होता है। इससे दूध फट जाता है। गुनगुने दूध में गुड़ लेने का कारण अवश्य जानें। हमेशा लाल गुड़ ही प्रयोग करें।
Nice information... Keep writing
जवाब देंहटाएंYe bataiye sir kya ham pechis rog me gur ka sewan Kar dakte hai.
जवाब देंहटाएंआप ने अपना नाम नहीं बताया है। आप पेचिस में गुड़ खा सकते हैं, लाभ होगा।
जवाब देंहटाएं