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गुरुवार, 23 जुलाई 2015

अब सस्ता हुआ सोना, तब 18 रुपये में मिलता था दस ग्राम सोना / Now cheap gold, then ten grams of gold was 18 ruppes to get in



-2007 में सोने ने छुआ था 10 हजार का आँकड़ा
-शीतांशु कुमार सहाय
सोने के दाम देश में सामान्यतः 24 हजार 200 रुपये में 10 ग्राम होने पर इसे सस्ता कहा जा रहा है। ज्वेलरी दुकानों में जेवरात बनवाने और खरीदने के लिए होड़ है लेकिन एक जमाना वह भी रहा है, जब दस ग्राम सोना 18 रुपये में था। वर्ष 1925 में 10 ग्राम सोने का भाव महज 18.75 रुपये था। इसके बाद के वर्षों में सोने के दाम और सस्ते हो गये थे। वर्ष 1930 में तो 10 ग्राम सोना अठारठ रुपये पाँच आने में मिल रहा था। वर्ष 1958 तक सोना कितना सस्ता था, इसका अंदाज इससे लगाया जा सकता था कि 10 ग्राम सोने का दाम तब सौ रुपये भी नहीं था। तब दस ग्राम सोने का रेट 95.38 रुपये प्रति था।
-आज अधिक सस्ता है सोना
बीते दिनों को याद करते हुए एक बुजुर्ग ने बताया कि कल की तुलना में सोना आज अधिक सस्ता है। उन्होंने बताया कि वर्ष 83-84 में उन्होंने अपनी बहन की शादी के लिए सोना खरीदा था। तब दस ग्राम सोने का रेट 1800 रुपये प्रति दस ग्राम था। उन्होंने बताया कि तब बतौर मेडिकल ऑफिसर उनकी तनख्वाह 1500 रुपये महीना थी। उस समय एक महीने के पैसे से दस ग्राम सोना भी खरीदना मुश्किल था। आज बतौर प्रोफेसर उनकी तनख्वाह एक लाख रुपये से अधिक है और सोना प्रति दस ग्राम 24,200 रुपये है। एक अन्य प्रौढ़ ने बताया कि वर्ष 1980 में उनकी शादी हुई थी। तब 20 ग्राम सोने का हार बनाने में महज 2700 रुपये लगे थे। उस समय सोने का रेट 1330 रुपये प्रति दस ग्राम था। उन्होंने बताया कि उस समय लोगों की तनख्वाह बहुत कम थी। इसलिए आज सस्ता लगनेवाला सोना उस समय भी महंगा ही था।
-1959 में सोने ने लगाया था शतक
वर्ष 1959 में सोने ने शतक लगा लिया और इस वर्ष दस ग्राम सोने का दाम 102 रुपये 56 पैसे हो गया। सोने ने 200 रुपये प्रति दस ग्राम का आँकड़ा 1972 में छुआ। इस साल सोने के दाम 202 रुपये प्रति दस ग्राम हो गये थे। 1980 में सोना हजार रुपये को पार कर गया था। इस वर्ष सोने के दाम 1330 रुपये प्रति दस ग्राम हो गये थे। हालाँकि सस्ती के इस जमाने में भी लोगों के लिए सोना महंगा ही था।
-10000 का आँकड़ा
वर्ष 2007 में सोना 10,800 रुपये प्रति दस ग्राम हो गया। 2011 में इसने 26,400 रुपये का स्तर छू लिया। इस साल हाल के दिनों में सोने के रेट में गिरावट आयी है और इसके 23,000 रुपये प्रति दस ग्राम तक जाने का अनुमान बाजार के जानकार लगा रहे हैं।
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यों चढ़ते गये सोने के मूल्य
वर्ष             मूल्य प्रति दस ग्राम
1925           18.75 रुपये
1958           95.38 रुपये
1972           202 रुपये
1976           506 रुपये
1980           1330 रुपये
1996           5160 रुपये
2007           10,800 रुपये
2011           26,400 रुपये

शनिवार, 4 जुलाई 2015

भारत का सामाजिक, आर्थिक, जातीय जनगणना 2011 चिंताजनक / worrisome : India's Social, Economic, Ethnic Census 2011

शुक्रवार 3 जुलाई 2015 को केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने नयी दिल्ली में सामाजिक-आर्थिक एवं जातीय जनगणना रिपोर्ट- 2011 जारी किया।

-शीतांशु कुमार सहाय

-देश में कुल 24.39 करोड़ परिवार हैं।

-6.68 लाख परिवार भीख माँगते हैं।

-4.08 लाख परिवार कचरा बीनते हैं।

-5.39 करोड़ ग्रामीण परिवार जीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं।

-9.16 करोड़ परिवार दिहाड़ी के आधार पर हाथ से किये जानेवाले श्रम से आय कमाते हैं।

-44.84 लाख परिवार दूसरों के घरों में घरेलू सहायक हैं।

 

1931 के बाद पहली बार शुक्रवार 3 जुलाई 2015 को केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने नयी दिल्ली में सामाजिक-आर्थिक एवं जातीय जनगणना रिपोर्ट- 2011 जारी किया। केन्द्र सरकार की ओर से जारी किये गये सामाजिक, आर्थिक और जातीय जनगणना रिपोर्ट- 2011 काफी चिन्ताजनक है। देश में ग्रामीण और शहरी दोनों तरह के परिवार मिलाकर कुल 24.39 करोड़ परिवार हैं। 17.91 करोड़ परिवार गांवों में रहते हैं। कुल ग्रामीण परिवारों में से 5.39 करोड़ परिवार जीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं। ग्रामीण इलाकों में 5.37 करोड़ (29.97 प्रतिशत) परिवार भूमिहीन हैं और उनकी आजीविका का साधन मेहनत-मजदूरी है। 2.37 करोड़ (13.25 प्रतिशत) ग्रामीण परिवार एक कमरे के कच्चे घर में रहते हैं। 21.53 प्रतिशत या 3.86 करोड़ ग्रामीण परिवार अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति के हैं।
9.16 करोड़ परिवार दिहाड़ी के आधार पर हाथ से किये जानेवाले श्रम से आय कमाते हैं। करीब 44.84 लाख परिवार दूसरों के घरों में घरेलू सहायक के तौर पर काम करके आजीविका चलाते हैं। 4.08 लाख परिवार कचरा बीनकर और 6.68 लाख परिवार भीख माँगकर अपना घर चला रहे हैं। यह आँकड़ा गरीबी के विभिन्न पहलुओं को दर्शाता है। साथ ही केन्द्र और राज्य सरकार की ओर से गरीबों व आम लोग के लिए चलाये जा रहे विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं पर प्रश्न चिह्न भी लगाता है।
आय के स्रोत के लिहाज से 9.16 करोड़ परिवार (51.14 प्रतिशत) दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर हैं जिनके बाद खेती पर निर्भर परिवारों का स्थान है जो 30.10 प्रतिशत हैं। जनगणना के मुताबिक 2.5 करोड़ (14.01 प्रतिशत) परिवार आय के अन्य स्रोतों पर निर्भर हैं जिनमें सरकारी सेवा, निजी क्षेत्र और सार्वजनिक उपक्रम शामिल हैं। इसके अलावा 4.08 लाख परिवार आजीविका के लिए कचरा बीनने पर निर्भर हैं जबकि 6.68 लाख परिवार भीख और दान पर निर्भर हैं।
देश के करोड़ों परिवार दो जून की रोटी के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। 17.18 प्रतिशत घरों की आय 5-10 हजार रुपये पर निर्भर हैं, वे कहाँ से महंगा मोबाईल खरीदकर इण्टरनेट सेवा का लाभ उठा पायेंगे।

प्रधानमंत्री से गुहार

गरीबी जैसे दंश से देश को उबारने के लिए गरीबों व ग्रामीण क्षेत्रों पर पूरी तरह से ध्यान दिया जाय। ऐसी योजनाएँ लायी जायें जो पूरी तरह से ग्रामीणों एवं गरीबों को लाभ दिलानेवाली हो, जिसका फायदा सीधे लाभुकों के बैंक एकाउण्ट में जाय। समयानुसार योजनाओं की केन्द्रीय स्तर पर समीक्षा की जाय। तब कहीं जाकर भारत समृद्व देश बन पायेगा।
राष्ट्रीय स्थिति और बिहार की स्थिति---
सामाजिक, आर्थिक एवं जाति जनगणना- 2011 के मुताबिक  बिहार के कुल ग्रामीण परिवारों में से 65 प्रतिशत भूमिहीन हैं। देश स्तर पर यह आँकड़ा 56 प्रतिशत है। देशभर में सबसे अधिक 98 प्रतिशत ग्रामीण भूमिहीन परिवार चंडीगढ़ में हैं। बिहार के गांवों में सिर्फ 3.89 प्रतिशत परिवार सरकारी नौकरी में हैं और 54.33 प्रतिशत भूमिहीन परिवार मजदूरी करते हैं। सरकारी नौकरी का राष्ट्रीय औसत पांच प्रतिशत है। रिपोर्ट में कहा गया कि देश के सिर्फ 4.6 प्रतिशत ग्रामीण परिवार आयकर देते हैं जबकि वेतनभोगी ग्रामीण परिवारों की संख्या 10 प्रतिशत है। आयकर देनेवाले अनुसूचित जाति के परिवारों की संख्या 3.49 प्रतिशत है जबकि अनुसूचित जनजाति के ऐसे परिवारों की संख्या मात्र 3.34 प्रतिशत है। बिहार में 2.73 प्रतिशत ग्रामीण परिवार आयकर या पेशा कर देते हैं। राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में दोपहिया व चारपहिया वाहनोंवाले परिवार 11.70 प्रतिशत और 10 हजार से ऊपर की आमदनी वाले 6.87 प्रतिशत परिवार हैं।
ग्रामीण भूमिहीनों के मामले में बिहार से चंडीगढ़, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, पश्चिम बंगाल, दमन, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश आगे हैं। 1931 के बाद यह पहली जनगणना है जिसमें क्षेत्र विशेष, समुदाय, जाति एवं आर्थिक समूह संबंधी विभिन्न किस्म के ब्योरे हैं और भारत में परिवारों की प्रगति का आकलन किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, कुल ग्रामीण जनसंख्या के 56 प्रतिशत हिस्से के पास भूमि नहीं है, जिनमें 70 प्रतिशत अनुसूचित जाति और 50 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति के लोग भूमिहीन हैं। इसके अलावा 11 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास फ्रिज है और 20.69 प्रतिशत के पास एक मोटरगाड़ी या एक मत्स्य नौका है। सबसे ज्यादा अनुसूचित जाति की आबादी पंजाब में 36.74 प्रतिशत है।
सिर्फ आठ हजार अनुसूचित जाति के पास कार---
बिहार में अनुसूचित जाति के करीब 85 हजार ग्रामीण परिवारों (2.83 प्रतिशत) की आय 10 हजार रुपये मासिक से ज्यादा है जबकि राष्ट्रीय औसत 4.69 प्रतिशत है। राज्य में सिर्फ आठ हजार अजा परिवारों के पास चारपहिया वाहन हैं। 22 प्रतिशत के पास कोई फोन नहीं है।
18.42 प्रतिशत की आय कृषि से---
देश के कुल ग्रामीण परिवारों में से 30.10 प्रतिशत परिवार जीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं, जबकि बिहार में यह आँकड़ा 18.42 प्रतिशत है। बिहार में 1.25 करोड़ ग्रामीण परिवार (70.59 प्रतिशत) दिहाड़ी मजदूर हैं जबकि देश में 9.16 करोड़ (51.14 प्रतिशत) परिवार दिहाड़ी से अपनी रोजी कमाते हैं। बिहार में 54.33 प्रतिशत भूमिहीन परिवार अनियमित रूप से मजदूरी करते हैं।
मकान के मामले में आगे---
ग्रामीण परिवारों के पास मकान के मामले में जम्मू-कश्मीर को छोड़ बिहार बाकी सबसे आगे है। देश में 94 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास मकान हैं जबकि बिहार में 98.81 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास अपना मकान है, जिनमें  57 फीसदी कच्चे व 42 प्रतिशत पक्के मकान हैं। 
हर तीसरा परिवार भूमिहीन मजदूर---
रपट से संकेत मिलता है कि गांवों में हर तीसरा परिवार भूमिहीन है, जो अपनी आजीविका के लिए शारीरिक श्रम पर निर्भर है। बिहार में यह संख्या आधे से ज्यादा है।
ये लोग शामिल नहीं---
इस सेंसस में वे परिवार शामिल नहीं हैं, जो 14 तय पैरामीटर में से किसी एक में भी शामिल हैं। मसलन खेती से जुड़ीं मशीनें, वाहन, 50 हजार रुपये से ज्यादा सीमा वाला किसान क्रेडिट, तीन से ज्यादा कमरों वाले पक्के मकान, लैंडलाइन फोन और फ्रिज जैसी अन्य चीजें जिनके पास हैं, वे इसमें शामिल नहीं किये गये हैं।
कहाँ होगा उपयोगी---
ये आँकड़े सबके लिए आवास, शिक्षा एवं कौशल विकास, मनरेगा, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, विशिष्ट रूप से समर्थ लोगों के लिए पहलों, महिलाओं के नेतृत्व वाले परिवारों के लिए हस्तक्षेप और वंचितों के साक्ष्य के आधार पर परिवारों-व्यक्तियों की पात्रता तय करने के संबंध में इसका अर्थपूर्ण उपयोग किया जायेगा। इससे अंत्योदय मिशन का रास्ता साफ होगा; ताकि ग्राम पंचायत गरीबी उन्मूलन योजना के जरिये परिवारों की गरीबी घटाई जा सके।

कुल परिवार

भारत        - 179164754
बिहार        - 17662724

वेतनभोगी
                         भारत                                                         बिहार
कुल                17338251 (9.68 प्रतिशत)                   106431 (6.03 प्रतिशत)
सरकारी           8989248 (5.02 प्रतिशत)                     713201 (4.04 प्रतिशत)
निजी               6407754 (3.58 प्रतिशत)                      241753 (1.37 प्रतिशत)

शिक्षा
                                    भारत                                                         बिहार

अनपढ़                       315786931 (35.73 प्रतिशत)          42890099 (43.85 प्रतिशत)
प्राइमरी से कम          123427659 (13.97 प्रतिशत)          19269966 (19.70 प्रतिशत)
प्राइमरी तक              157111009 (17.18 प्रतिशत)          14745696(15.08 प्रतिशत)
मिडिल स्कूल तक      119620648 (13.53 प्रतिशत)           8618739 (8.18 प्रतिशत)
सेकेंडरी तक               84619867 (9.57 प्रतिशत)                6179917 (6.32 प्रतिशत)
हायर सेकेंडरी              47821608 (5.41 प्रतिशत)                3552680 (3.63 प्रतिशत)
स्नातक और ऊपर        30513307 (3.45 प्रतिशत)                2231780 (2.28 प्रतिशत)

संपत्ति                        
                                        भारत                                                बिहार
फ्रिज                          19772939 (11.04 प्रतिशत)          461067 (2.61 प्रतिशत)
लैंडलाइन  फोन             1785476 (1 प्रतिशत)                107625 (0.61 प्रतिशत)
मोबाइल                    122453752 (68.35 प्रतिशत)        14510889 (82.16 प्रतिशत)
लैंड लाइन+मो.           4874886 (2.72 प्रतिशत)              154778 (0.88 प्रतिशत)
गाड़ी                             37077942 (20.69 प्रतिशत)        2066897 (11.70 प्रतिशत)
(गाड़ी में दो, तीन, चार पहिया के साथ मछली पकड़ने वाला मोटरबोट भी शामिल)

भूमि स्वामित्व
                                           भारत                                                    बिहार
कुल जमीन                  1057522765.188 हेक्टेयर                       307346303.18 हेक्टेयर
भूमि वाले परिवार        78378173 हे. (44 प्रतिशत)                     6169414 हे. (35 प्रतिशत)
भूमिहीन परिवार        100777240 हे. (56 प्रतिशत)                    11490154 हे. (65 प्रतिशत)

जातीय संरचना
भारत
एससी        33065266 (18.46 प्रतिशत)
एसटी        19646873 (10.97 प्रतिशत)

बिहार
एससी        2997987  (16.97 प्रतिशत)
एसटी        286284        (1.62 प्रतिशत)

बुधवार, 1 जुलाई 2015

‘डिजिटल इंडिया’ का शुभारंभ / DIGITAL INDIA LAUNCHED BY PM NARENDRA MODI



-शीतांशु कुमार सहाय
बुधवार 1 जुलाई 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में डिजिटल इंडिया वीक लांच कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को केंद्र सरकार की महत्‍वाकांक्षी योजना ‘डिजिटल इंडिया’ का शुभारंभ किया। उन्होंने ये भी कहा कि जल्द ही सरकार मोबाइल पर आने वाली है। और ई- गवर्नेंस वाली सरकार एम-गवर्नेंस में बदलने वाली है। पीएम मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत टेलिकॉम मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद के धन्यवाद के साथ की। उन्होंने कहा कि करोड़ों देशवासियों का सपना साकार होगा। लाखों लोगों को रोजगार मिलेगा। उन्होंने कहा कि आज अब तक हुई घोषणा के अनुसार करीब 18 लाख लोगों को तो रोजगार मिलेगा। पीएम मोदी ने कहा कि बच्चा भी मोबाइल की ओर आकर्षित हो रहा है। अब वह बड़ों की जेब से मोबाइल खींचता है। बच्चा भी डिजिटल ताकत को समझता है। उन्होंने कहा कि समय की मांग है, हम इस बदलाव की जरूरत को समझें और आगे बढ़ें। पहले लोग नदियों के किनारे पर बसते थे, फिर हाइवे जहां बने वहां शहर बसा, लेकिन अब मानव जाति वहां बसेगी जहां से ऑप्टिकल फाइबर गुजरेगा। मुकेश अंबानी ने 250 हजार करोड़ के निवेश का एलान किया। कार्यक्रम में दस हजार लोग मौजूद थे। कार्यक्रम में 400 से भी ज्‍यादा टॉप इंडस्ट्रियलिस्ट्स बुलाए गए। मोदी सरकार इस स्कीम के जरिए सभी ग्राम पंचायतों को ब्रॉडबैंड से जोडऩा चाहती है। इसके अलावा, ई-गर्वनेंस को बढ़ावा देना और पूरे भारत को इंटरनेट से कनेक्ट करना इस मुहिम का मुख्य लक्ष्य है।
पीएम ने आगे कहा, 'हमें जो भी विरासत है उसके साथ आधुनिक टेक्नोलॉजी को जोड़ना होगा। देश में 25-30 करोड़ इंटरनेट यूजर हैं, यह काफी बड़ी संख्या है। लेकिन इससे वंचित लोग भी दुनिया में सबसे ज्यादा है। अब डिजिटल इंडिया को वहां ले जाना है जहां के लोगों तक इसकी पहुंच नहीं है। जो वंचित रहेंगे वो पिछड़े रह जाएंगे।'
मोदी ने कहा, 'डिजिटल डिवाइड की वजह से भविष्य में समाज में खाई बन जाएगी। इसलिए गरीब से गरीब तक इसकी पहुंच होनी चाहिए। यह सुविधा गांव के गरीब तक पहुंचनी चाहिए। तभी वह विकास का लाभ ले पाएगा। इसलिए सरकार दूर सुदूर गांव में इस सुविधा को उपलब्ध कराने की कोशिश कर रही है। ताकि वह अपनी जरूरत के हिसाब से इसका प्रयोग कर सके।'
पीएम ने डिजिटल ताकत का महत्‍व बताते हुए कहा, 'आज बच्चा भी गूगल गुरु की सहायता लेना जानता है। मिनिमन गवर्नमेंट-मैक्सीमम गवर्नेंस में तकनीक का बहुत बड़ा योगदान है। ई-गवर्नेंस जल्दी ही एम-गवर्नेंस में बदलने वाला है। मोदी नहीं मोबाइल गवर्नेंस में बदल जाएगा। इसके लिए हमें खुद को तैयार करना होगा।'
उन्‍होंने आगे कहा, 'ई-गवर्नेंस, ईजी और इकोनॉमिकल गवर्नेंस है। भविष्य के लिए जरूरी है। इससे लोगों को तमाम सुविधाओं का लाभ मिलेगा। आने वाले समय में बच्चों की किताब का बोझ में भी यही खत्म कर देगा। आगे जल्द ही बैंक भी पेपरलेस हो जाएगी। बैंकिंग कारोबार प्रेमाइसेस लेस हो जाएगा। सब कारोबार तकनीक पर हो जाएगा। 19वीं शताब्दी से इसकी आहट हो गई। औद्योगिक क्रांति का लाभ नहीं ले पाए क्योंकि हम गुलाम थे। जब आईटी रिवोल्यूशन आया तब हमें इसका फायदा उठाना है।'
मोदी ने कहा, 'पेट्रोलियम इम्पोर्ट हमारी मजबूरी है। यह समझ से परे है कि दूसरा सबसे बड़ा आयात इलेक्ट्रॉनिक गुड्स का है। जब इतनी तरक्की है तो क्या यहां इलेक्ट्रॉनिक गुड्स नहीं बनना चाहिए। डिजिटल इंडिया के माध्यम से हम इस ओर बढ़ना चाहते हैं।'
पीएम मोदी ने कहा, 'हम नौजवानों को हर मदद देने को तैयार हैं। आने वाले दिनों में हम स्टार्टअप के क्षेत्र में जल्द ही दूसरे नंबर पर होंगे। गूगल क्यों भारत में नहीं बना।  हम देश के नौजवानों से आह्वान है कि वे भारत में ऐसी योजना बनाएं। मेक इन इंडिया के साथ डिजाइन इन इंडिया भी जरूरी है।'
पीएम मोदी ने कहा कि दुनिया में रक्तविहीन युद्ध के बादल मंडरा रहे हैं। ऐसे में मानव जाति को सुख चैन की जिंदगी देने के लिए भारत आगे आ सकता है। रक्तविहीन युद्ध यानी साइबर सिक्योरिटी के क्षेत्र में भारत के नौजवान कोई तकनीक दे सकते हैं। क्या यहां का जवान दुनिया को विश्वास दिला सकता है। इसे चुनौती के रूप में स्वीकार करना होगा। ऐसे में मानव जाति के सुख के लिए साइबर सिक्योरिटी जरूरी है। आज हजारों मील दूर बैठा बच्चा भी कंप्यूटर की मदद से मुसीबत बन सकता है। जरूरी है कि ऐसी व्यवस्थाओं को बनाया जाए कि दुनिया सुरक्षित महसूस करे। इसमें भी हमें आत्मनिर्भर बनना होगा। भविष्य में तमाम डिजिटल लॉकर मिलेंगे। हाई स्पीड डिजिटल हाईवे की अब जरूरत है। मैं ऐसा सपना देखता हूं कि भ्रष्टाचार पर रोक के लिए डिजिटल माध्यम जरूरी है। ऐसा कोयला खदानों की नीलामी में किया गया।

-ब्रॉडबैंड हाईवे
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डिजिटल इंडिया सप्ताह का उद्घाटन किया जिसमें ब्रॉडबैंड हाईवे बनाने की बात कही। सड़क का हाईवे तो सुना था, लेकिन यह ब्रॉडबैंड हाईवे क्या है। हम आपको बताने जा रहे हैं इस खबर में। असल में ब्रॉडबैंड हाईवे एक काल्पनिक डिजिटल सड़क है, जिस पर हर प्रकार की सुविधाएं ई-गवरनेंस के माध्यम से मिलेंगी। नागरिक सेवायें इलेक्‍ट्रॉनिक रूप से उपलब्‍ध करायी जायेंगी और नागरिकों तथा प्राधिकारियों की एक दूसरे के साथ बातचीत कराने के लिये माध्यम बनाये जायेंगे। डिजिटल इंडिया में ब्रॉडबैंड हाईवे को डिजिटल इंडिया का एक मुख्‍य स्‍तम्‍भ के रूप में माना जा रहा है। देश के नागरिकों को सेवाओं की आपूर्ति में सहायता करने के लिए प्रौद्योगिकी को उपलब्‍ध कराने और समर्थ बनाने के लिए जुड़ाव एक मानदंड है यह। इलेक्‍ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने ई-शासन में ई-क्रांति ढांचा, भारत सरकार के लिए ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर अपनाने पर नीति, ई-शासन प्रणालियों में ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर अपनाने के लिए ढांचा, भारत सरकार के लिए ओपन एप्‍लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेसेज (एपीआई) के लिए नीति, भारत सरकार की ई-मेल नीति, भारत सरकार की सूचना प्रौद्योगिकी संसाधनों के उपयोग पर नीति, सरकारी एप्‍लीकेशन के साधन कोड को खोलने के लिए सहयोगपूर्ण एप्‍लीकेशन विकास पर नीति, कलाउड रेडी एप्‍लीकेशन के लिए एप्‍लीकेशन विकास एवं रि-इंजीनियरिंग दिशानिर्देश जैसी नीति पहल शुरू की हैं। देश को कैसे जोड़ेगा ब्रॉडबैंड हाईवे विभिन्‍न पूर्वोत्‍तर राज्‍यों और अन्‍य राज्‍यों के छोटे और मुफस्सिल शहरों में बीपीओ केन्‍द्र खोलने के लिए बीपीओ स्थापित किये जायेंगे। इलेक्‍ट्रॉनिक्स विकास निधि (ईडीएफ) नीति का उद्देश्‍य नवाचार, अनुसंधान और विकास, उत्‍पाद और विकास को प्रोत्‍साहन देने उपक्रम निधियों के आत्मनिर्भर पारिस्थितिकी प्रणाली का सृजन करने के लिए देश में आईपी का संसाधन पूल स्‍थापित किया जायेगा। फलेक्सिबल इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स के उभरते हुये क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को प्रोत्‍साहित करने के लिए फलेक्सिबल इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स के लिए राष्‍ट्रीय केन्‍द्र बनाया जायेगा। इसके अंतर्गत् इंटरनेट ऑन थिंक्‍स (आईओटी) के लिए उत्‍कृष्‍टता केन्‍द्र इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, ईआरएनईटी और नेस्‍सोकेम की संयुक्‍त पहल है। 2019 तक डिजिटल इंडिया के अनुमानित प्रभाव से सभी पंचायतों में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी से जोड़ा जायेगा। कन्या कुमारी से लेकर श्रीनगर तक सभी स्कूलों और विश्वविद्यालयों में वाई-फाई और सार्वजनिक रूप से वाई-फाई हॉटस्‍पोर्ट उपलब्‍ध हो जाएंगे। प्रत्‍यक्ष और अप्रत्‍यक्ष रूप से इस कार्यक्रम से भारी संख्‍या में सूचना प्रौद्योगिकी, टेलीकॉम और इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स रोजगार पैदा होंगे। इस ब्रॉडबैंड हाईवे के माध्यम से पूरा भारत डिजिटल रूप से सशक्त बनेगा। यह वो हाईवे है जो स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, बैंकिंग जैसे क्षेत्रों से संबंधित सेवाओं की आपूर्तिमें सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग में शीर्ष स्‍थान पर ले जायेगा।

-सरकार कितना खर्च करेगी?
-डिजिटल इंडिया पर सरकार ने 1 लाख करोड़ रुपए खर्च करने का लक्ष्य रखा है। हर गांव को नेशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क के दायरे में लाया जाएगा। मार्च 2015 तक 50 हजार गांवों का जोड़ने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन अभी 30 हजार पंचायतें ही इस नेटवर्क से जुड़ पाई हैं।
-देश में अभी क्या है स्थिति?
-इन्फॉर्मेशन एंड टेक्नोलॉजी टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट इंडेक्स के मुताबिक भारत इंटरनेट कनेक्टिविटी, लिट्रेसी और बैंडविड्थ जैसे मामलों में 166 देशों की लिस्ट में 129वें स्थान पर है। भारत मालदीव, मंगोलिया, केन्या, कजाख्स्तान, फिजी, निकारागुआ से भी पीछे है। देश में 20 करोड़ लोग यानी करीब 15% आबादी इंटरनेट का इस्तेमाल कर रही है। जबकि चीन में 60 करोड़ लोग यानी 44% आबादी इंटरनेट यूज़ करती है।
-बिजली की कमी बड़ा रोड़ा
बिजली के बगैर डिजिटल इंडिया का सपना सपना ही रह जाएगा। सरकार भारत को डिजिटल इंडिया बनाने पर फोकस कर रही है, लेकिन इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरत बिजली की है। देश में बिजली की कमी है। अभी फिलहाल देश में 80 हजार मेगावॉट बिजली है, लेकिन मांग हैं एक लाख 37 हजार मेगावाट की। उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में बिजली की दो-तिहाई की कमी है। यूपी में गांवों में बिजली ही नहीं आती है। लोग मोबाइल रिचार्ज तक नहीं कर पात हैं तो डिजिटल इंडिया कहां से होगा। तिवारी के अनुसार एक मेगावॉट बिजली बनाने में 6 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। सरकार के पास बजट कहां है? उनके अनुसार एक मेगावॉट सोलर एनर्जी पैदा करने के लिए 7-10 एकड़ की जरूरत होती है, इतनी जमीन कहां से लाएंगे?
-इंटरनेट स्पीड है समस्या
भारत में इंटरनेट स्पीड काफी कम है। भारत में 1-2 एमबीपीएस डाउनलोड स्पीड है, जबकि साउथ कोरिया और हांगकांग जैसे देशों में काफी ज्यादा है। उनके अनुसार डिजिटल इंडिया का सपना साकार करने के लिए इंटरनेट स्पीड में बढ़ोतरी बहुत जरूरी है। अचिन जाखड़ के अनुसार मेट्रो शहरों मे लोगों को इंटरनेट स्पीड मिल भी रही है, लेकिन छोटे शहरों और गांवों की हालत बहुत खराब है। लोग ई-गर्वनेंस से जुड़ना चाहते हैं, लेकिन स्पीड की दयनीय स्थिति में लोग मुंह मोड़ने लगते हैं। सरकार को डिजिटल इंडिया के सपने को साकार करने के लिए इंटरनेट स्पीड की ओर जरूर ध्यान देना होगा। इंटरनेट फैसिलिटी और लिट्रेसी भारत में एक बड़ी समस्या है। दक्षिण कोरिया की 98 फीसदी आबादी इंटरनेट इस्तेमाल करती है, लेकिन भारत में यह आंकड़ा अभी काफी कम है। इसके अलावा भारत में लोग कम्प्यूटर और टैब से ज्यादा मोबाइल का इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन भारत में इंटरनेट की स्पीड और स्मार्टफोन की काफी दिक्कत है जिसपर भारत को ध्यान देने की जरूरत है। इंटरनेट साक्षरता भी भारत में बड़ी समस्या है। भारत की कोशिश है कि देश के दूरदराज में इस तरह के केंद्र बनाकर ज्यादा से ज्यादा लोगों को डिजिटल फैसिलिटी उपलब्ध कराई जाएं।
-सभी बड़ी इंटरनेट कंपनियों के सर्वर भारत के बाहर
सभी बड़ी अमेरिकी इंटरनेट कंपनियों के सर्वर भारत से बाहर हैं। यदि सर्वर भारत में लगाया जाए तो प्रति सर्वर औसतन एक हजार लोगों को रोजगार मिल सकता है। इसके अलावा भारत में सर्वर होने से सुरक्षा जेंसियों को अपराध नियंत्रण में भी मदद मिल सकेगी और इन कंपनियों की भारत में कानूनी जवाबदेही भी बन पाएगी। इस खामी के चलते दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश पर केंद्र को सरकारी अधिकारियों के लिए नई ई-मेल पॉलिसी लानी पड़ी, जिसके अनुसार विदेशी इंटरनेट कंपनियों के सर्वर के माध्यम से सरकारी कार्यों के लिए ई-मेल का प्रयोग गैर-कानूनी है। दुर्भाग्य है कि इतने स्पष्ट आदेश और कानून के बावजूद भारत सरकार के 45 लाख से अधिक कर्मचारी-अधिकारी तथा राज्य सरकारों के करोड़ों अधिकारी विदेशी ई-मेल सेवाओं का गैर-कानूनी प्रयोग कर रहे हैं।