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रविवार, 3 मई 2020

त्रेता का नेता Treta Ka Neta

-अमित कुमार नयनन 

कालयन्त्र मिल गया था इक दिन,
संयोग के चौराहे पर।
बटन दबाते ही आ पहुँचा,
समय के तिराहे पर।
फैसला करना था आखिर,
जाना किस चौराहे पर?
तुरन्त मन में पूर्वजों का हाल आ गया,
कैसा था पहले का जग?
दिल में यह सवाल आ गया।
उधेड़बुन में जल्दी से रावण का ख़्याल आ गया।
अगले पल कलियुग से त्रेता के द्वार परं था,
पलक झपकते ही पाया रावण के दरबार में था।
लम्बी-चौड़ी थी दरबार जमात,
पर मेरे लिए था हवालात।
मेरा आवास बना कारावास,
जीवन के जंजाल में था।
सीताहरण तब तक हो चुका था,
इसी कारण मेरा मरण हो चुका था।
राम दूत समझ पकड़ा गया था,
बेवज़ह इसी कारण हो रावण से झगड़ा गया था।
रावण को बहुत समझाया,
साथ ही कालयन्त्र भी दिखलाया।
जिद्दी रावण समझ न पाया,
तुरन्त उस ने पुष्पक मँगवाया और डंका बजवाया-
ख़ुद को कलियुग का बेटा कहता है,
बहुत यह टें-टाँ करता है।
अच्छी बात है कलियुग जाऊँगा,
वहाँ भी रावणराज फैलाऊँगा।
सिर अपना था पीट लिया,
दूसरे ही क्षण-
रावण ने कलियुग में झट से खींच लिया।
कलियुग की उसे ज़्यादा जानकारी न थी,
अतः गुस्से में चाणक्य का बटन दबवा दिया था,
चन्द्रगुप्त काल में पहुँचा दिया था।
चाणक्य की कूटनीति के सामने
रावण लगभग हार चुका था,
उस का बण्टाधार हो चुका था।
ज्ञात हो-
त्रेतावासी के समय कूटनीति का चलन न था,
निहत्थे पर वार करना आज की भाँति प्रचलन न था,
एक से एक लड़ने का पहले का कानून था,
रावण पर सौ चढ़े थे,
टूटा उस का जुनून था।
वह ए भाई ए भाई चिल्लाता रहा,
शतकांे से मार खाता रहा।
अन्ततः उस ने उल्टा-सीधा बटन दबा दिया,
खुद को औरंगजेब काल पहुँचा दिया।
औरंगजेब इसे देखते ही चिल्लाया-
लगता है तू मेरी गद्दी पर कब्जा करने है आया।
बाप को नहीं बख्शा,
तो हिन्दू धर्मग्रन्थ के पात्र को बख्शूँगा?
सवाल ही नहीं पैदा होता,
मैं तो तेरा खून चुसँूगा।
सैनिकों!
पकड़ लो इसे और खत्म कर डालो,
इस के पास पड़ा कालयन्त्र हथिया लो।
यह आया है कलियुग में शासन करने,
वह भी मेरे काल में,
यह क्या करेगा शासन मुझ पर,
मैं ही आ रहा हँू त्रेता में,
तुम सब पर शासन करने हर काल में।
इस के ख़त्म होते ही
फिर कोई रामायण नहीं रह जायेगा।
जब रावण ही नहीं रहेगा,
कोई राम-राम नहीं कह पायेगा।
बड़ा अच्छा मौका है,
किस ने तुम्हें रोका है!
जाओ जाकर इतिहास ही बदल डालो
और इतिहास के हर पन्ने पर
औरंगजेब-ही-औरंगजेब लिख डालो।
भागने लगे तो छली शिवाजी के इलाके में ंखदेड़ देना
उस के बाद तुम्हें इस से कुछ नहीं है लेना-देना।
वह भी तो हिन्दू हो रावण का दुश्मन है,
उस का तो ऐसे भी ऐसों पर कुपित मन है।
ख़ुदा कसम!
जब वह इसे मारेगा तो बड़ा मजा आयेगा।
फिर मेरे काल के नाम पर
औरंगजेबचरितमानस लिखा जायेगा।
बाप रे!
यहाँ अच्छा आदमी भी छली है,
फिर तो मुझ से भी बली है।
यह सोच फिर रावण भागा,
पलक झपकते बटन को दाबा
और पहुँच गया
द्वितीय विश्वयुद्ध काल में।
साथ पहँुचा दिया हिटलर के हॉल में।
हिटलर उस समय लाखों यहूदियों को मार रहा था,
भंेड़़-बकरियों की तरह!
हमें भी गैस चेम्बर में डाल रहा था।
गैस का पहला झोंका पड़़ते ही
रावण एकदम हड़़बड़़ा गया।
उल्टा-सीधा बटन दबाकर,
हिरोशिमा में गिरते परमाणु बम के बीच पहँुचा दिया।
वहाँ की तपिश से जब भागा तो
नागासाकी में गिरते परमाणु बम मंे फँसवा दिया।
और इस तरह जब बुरी तरह परेशान हो गया,
तो कालयन्त्र को थमा दिया।
फिर बोला-
अपना कालयन्त्र ले जाओ।
मुझ को मेरे घर पहँुचाओ.....वरना अम्मा मारेगी।
देख रहे हो दशा तुम मेरी।
उँ....!
मेरे को बहुत मारेगी,
मेरी अम्मा मारेगी।
उस पर आखिर तरस आ गया,
अवश भी था वश आ गया।
बोला- बात मैं ने दिल की रक्खी,
तो बात उस ने भी जारी रक्खी।
यहाँ तो मुझ से भी बड़ा रावण मौजूद है,
आखिर इस में मेरा क्या वज़ूद है।
मैं अपने त्रेता को बचा लँू,
मेरे लिए वही बहुत है।
बहुत सुनी थी-
भविष्यवाणी कलियुग के बारे में
कि वहाँ का हर पल रावणराज होगा
लेकिन आज रावण ने देख लिया है,
उस ने पलभर में कितने विष पीया है।
यह युग रावणराज से बहुत बड़़ा है,
जहाँ रावण भी हाथ बाँधे खड़ा है।
डर है कि
आज के बाद
कोई और न पहँुच जाय
त्रेता में
सामर्थ्य नहीं लड़ने का उन से
इस लंका के नेता में!

(२२ वर्ष पूर्व प्रकाशित कविता संकलन 'डगर' से उद्धृत)

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