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गुरुवार, 7 मई 2020

ए प्रभु
A PRABHU


अमित कुमार नयनन

(१)


धरती पर बढ़ते पाप देखकर,
इस पर बढ़ते अत्याचार देखकर,
रोज बढ़ते गुनाह देखकर,
प्रभु घबरा गये!
बदनामी न हो जाय उन की,
उत्थान करने आ गये।
मगर
उत्थान का कोई रास्ता नहीं दीख रहा था,
उन की बात कोई नहीं सीख रहा था।
वह समझ गये,
उत्थान नहीं उद्धार की कड़ी है,
जो समय से पहले आन पड़ी है।
सोचे कोई बात नहीं-
कोई अन्य सृष्टि बना लूँगा,
कोई और सभ्यता बसा लूँगा;
जहाँ कोई नाम लेनेवाला होगा,
कोई न बदनाम करनेवाला होगा।
कीड़े-मकोड़ों की तरह
अच्छे में बुरे मिल गये थे।
अच्छों के बल पर बच जायेंगे,
यह सोच उन्होंने ये रास्ता अपनाया था।
पर, प्रभु को तो गुस्सा हो आया था
कि उन का यहाँ कोई नाम लेनेवाला नहीं है,
कोई ‘राम-राम’ कहनेवाला नहीं है।
चतुर दुनियावालों ने बात पकड़ ली,
साथ ही ‘राम-राम’ की रट जकड़ ली।
मगर, प्रभु गुस्से में थे,
इसलिए ‘राम-राम’ भी
‘मरा-मरा’ सुनायी दे रहा था।
गुस्सा इतना कि
मरे को भी मारने की शक्ति दे रहा था।
कटार उठी संहार को,
भूलेे संसार के प्यार को।

तभीे अच्छों की आवाज़ आयीे-
प्रभु!
हम पुण्यात्मा हैं!
बेवज़ह हमारी क्यों कर रहे हो पिटायी?
कुछ तो रहम करो,
ज़िन्दगी भर अत्याचार सहे हैं,
अब तो मर्म करो;
इन्होंने तो ज़िन्दगी भर सताया है।
तुम भी सताओगे तो हम कहाँ जायेंगे?
इस बात का कुछ तो शर्म करो।

प्रभुजी सोच में पड़ गये!
ये बीच में कहाँ से पड़ गये,
अभी से पीछे क्यों पड़ गये।
संहार के बाद राग अलापना था,
अभी से क्यूँ पीछे पड़ गये।
डपट पड़े कुछ सोच बड़े जोर से-
मुझे और गुस्सा आ रहा है तुम्हारे शोर से।
शान्त रहो नहीं तो बना-बना मारूँगा,
जगह भी नहीं मिलेगी,
ऐसे कब्रिस्तान में गाड़ूँगा।
संहार के वक़्त टाँग अड़ा रहे हो,
सृष्टि-रक्षा की पट्टी पढ़ा रहे हो।
सारी ग़लती तुम्हारी ही है।
कैसा पुण्य करते हो
कि पापी बढ़ जाते हैं।
तुम देखते रहते हो,
वे सिर पर चढ़ जाते हैं।
बुरे तुम्हारी ‘शालीनता’ से बचे,
इसलिए मुझे आना पड़ा,
तुम्हारी जगह आकर मुझे कटार उठाना पड़ा,
फिर भी तुम मेरे भक्त हो,
इसलिए सारी ग़लती माफ़ करता हूँ।
आइन्दा मत करना ऐसा
फिलहाल तुम्हें भी साफ करता हूँ।

अच्छों का खून खौल गया,
बदल तुरन्त माहौल गया।
अच्छाई के लिए लड़नेवालों को
आक्रोश आ गया।
प्रभु ने उन्हें कैसे कह दिया तमाशबीन,
यह सुन और जोश आ गया।
तुरन्त ही बिगड़ पड़े,
मोर्चा बना झगड़ पड़े-
यह कैसा हुक्म है?
ये तो सरासर जुल्म है।
याद रखो प्रभु!
मरकर भी जी जायेंगे,
हम तुम्हारा खून पी जायेंगे।
यहाँ तक का हक़ तुम्हारा है,
फिर बेड़ा गर्क तुम्हारा है।
चलो ऊपर बतायेंगे,
चुल्लूभर पानी में डुबायेंगे।
जिधर से भी गुजरोगे,
वहीं मोर्चा लगायेंगे।

मोर्चे ने तो
अच्छे-अच्छों के दाँत खट्टे कर दिये हैं,
चलते-फिरतों के भट्ठे कर दिये हैं-
बाप रे! कहाँ फँस गया।
प्रभु का मुख मलीनता से हँस गया-
हे-हे...!
मैं तो मज़ाक कर रहा था,
सृष्टि-अन्त में तुम्हारी परीक्षा ले रहा था।
तुम में कौन अच्छे बच्चे हैं?
कौन-कौन दिल के सच्चे हैं?
तुम सभी कसौटियों पर खरे उतरे हो,
इसलिए तुम्हारा आह्वान करता हूँ,
सृष्टि-संहार में मदद करो मेरी।
मैं अभी ऐलान करता हूँ-
तुम मरकर भी अमर रहोगे,
ऊपर चलो शत्रुओं से बेख़बर रहोगे।
यह धरती तुम्हारे रहने लायक नहीं है,
यहाँ कौन नालायक नहीं है!
देखो-
यहाँ बिजली-पानी की व्यवस्था ठीक नहीं है,
यहाँ तुम्हारा रहना ठीक नहीं है,
बीमारियों से रोज लड़ोगे,
मेरे बिना मारे ही मरोगे।
अच्छा हो उद्धार-कर्म में हाथ बँटाओ,
मेरे हाथों वीरगति पाओ;
इस तरह
मरने का कोर्स भी पूरा हो जायेगा,
वहाँ चलो वो भी होगा पूरा
जो अधूरा रह जायेगा।

धरती पर सुख न दे सके,
तो खाक वहाँ दिलवायेंगे;
जैसे मर रहे हैं यहाँ,
वहाँ भी मारे जायेंगे।
-बुद्धिजीवियों की राय थी।
प्रभु भड़क उठे-
तुम्हीं बुद्धिजीवियों के चलते बेड़ा गर्क है;
तभी वहाँ नरक है,
दूसरों की बुद्धि मार देते हो,
रास्ता अपना कर पार देते हो।
मैं प्रभु हूँ,
मेरा विश्वास करो;
कहो- प्रभु अब संहार करो।

प्रभु! आप चले जाइये,
जाते-जाते इज्ज़त बचाइये।
हमारे गुस्से का ठिकाना नहीं है,
सीधे-सीधे बता दीजिये-
आप को जाना है
या जाना नहीं है?
हम बहुत देर से सह रहे हैं,
शालीनता से कह रहे हैं;
यदि आप रास्ता नहीं नापेंगे,
युगों-युगों तक आप को शापेंगे।
यदि हमें यही दिन दिखलाना था
तो क्यूँ हमारा निर्माण किया?
बड़ाई लुटने की ख़ातिर
हमें ही मार कहना चाहते हो?
लो निर्वाण किया!

बदनामी बढ़ती जा रही थी,
प्रभु पर विपदा आ रही थी;
मगर अनुभवी बुद्धि ने चमत्कार दिखलाया,
बुद्धिजीवियों को भी बरगलाया-
वाह-वाह!
तुम तो खरे सोने हो,
क्यूँ पड़े हो यहाँ रोने को;
मेरी एक और परीक्षा पास कर गये,
सफल मेरा विश्वास कर गये।
ऊपर सारी जगह खाली है,
तेरा प्रभु ही वहाँ का माली है;
चलो, मरने को तैयार हो जाओ,
इन के संग ऊपर चले जाओ।
मन में मेरा नमन करो,
जी भरकर स्मरण करो-

हे प्रभु!
मरने की शक्ति देना;
अपने प्रति और भक्ति देना।
तुम्हीं मेरा प्यार हो,
तेरे हाथों ही संहार हो।
जिस तरह पापी भी तरसे तेरे हाथों मरने को,
वैसे ही हम भी खड़े तेरे हाथों मरने को;
हम को बुद्धि आ रही है,
स्वर्ग में किस्मत जा रही है;
इसलिए सफल मेरा जन्म करो,
तुम अपना करम करो।

बुद्धिजीवी थे फिर भड़कने को
पर प्रभु ने कहा रूकने को-
यह क्या पागलपन है तुम्हारा,
स्वर्ग छोड़ रहे हो हमारा;
जिस की ख़ातिर रोज पूजा करते थे,
कर्म न कोई दूजा करते थे।
पूजा कर-कर मर जाते हो,
तब कहीं जाकर स्वर्ग पाते हो।
आज जब किस्मत हो उजली चली है,
तो क्यों बेवज़ह हो खुजली चली है;
जो आया स्वर्ग ठुकरा रहे हो,
मरकर भी इसे ही माँगोगे।
क्यों अपने साथ दूसरों को भी मुकरा रहे हो?
बुद्धि की भी हद होती है,
उस की भी कोई सरहद होती है।
ज़्यादा बुद्धि नाशवान है,
जरा कम रखनेवाला ही भाग्यवान है।
जो सब से कम रखे
वह तो मेरे लिए भगवान है,
म.....मेरा मतलब है, वह महान है।

प्रभु अन्त में लड़खड़ा गये,
पर किसी तरह बचा गये।
अच्छों ने शालीनता से कहा-
प्रभु!
बन्द पाप की हद करो,
लो हमारा वध करो;
सफल हमारासंहार करो।

जाने कब इन की बुद्धि फिर जाये,
शायद ही ऐसा मौक़ा फिर आये,
इन की बुद्धि का ठिकाना नहीं है,
यह सुअवसर गँवाना नहीं है।
सोच बिना एक पल गँवाये
प्रभु जो थे खड्ग उठाये,
उसे तुरन्त चला दिया;
प्रभु किसे कहते हैं, बतला दिया।


(२)

घटना के दूसरे चरण में,
भक्त पड़े प्रभु के चरण में।
प्रभु उस से चरण दबवा रहे थे,
चरण-स्पर्श की महिमा बतला रहे थे-
पहले चरण के स्पर्श से दुःख चले जायेंगे,
दूसरे चरण के स्पर्श से सुख चले आयेंगे।
इसलिए
सर्वसुख की कामना हो तो
दोनों चरण दबाओ;
देर न हो जाय कहीं,
ऐसा मौक़ा फिर आये न आये कहीं,
इसलिए समय मत गँवाओ।
अपने भक्तों के सुख की खातिर ही
दोनों चरणों को
खुले साँढ़ की तरह छोड़ दिया हैै,
आज भक्तों के लिए ही
इसे उन की तरफ मोड़ दिया है।
सुनहरे अवसर का लाभ उठा लो,
सारे पुण्य अपने नाम करवा लो।
बुरे लोग से भी कहा था,
मगर वे टाँग दबाने की जगह टाँग खींचने लगे;
मेरा लहू पीकर मुझे ही सींचने लगे।
एक दिन तो टाँग की जगह गला दबाने लगे,
मुझ पर चढ़ मुझे ही बताने लगे-
प्रभु! 
टाँग की तरह
गला दबाने का हक़ भी हमारा है,
सो तब से टाँग दबाने का काम तुम्हारा है,
तभी स्वर्ग का सहारा है।
सुबह से लेकर रात तक,
जागने से लेकर सोने तक,
तुम ही मेरे साथ रहो;
तुम ही मेरे जगन्नाथ रहोगे।

बुरे क्या करेंगे?
अच्छों ने पूछा।
करेंगे कोई कर्म दूजा।
बोलते प्रभु जारी रहे-
भक्तों! तेरा कर्म जारी रहे।
वैसे भी बुरे हैं ही इसलिए
कि वे कोई कर्म नहीं करते हैं,
कितना भी समझा लो उन को
रत्तीभर भी शर्म नहीं करते हैं।
तुम अच्छे हो ही इसलिए कि 
कर्म करते हो, शर्म करते हो;
इसलिए बुरे काम करें न करें 
तुम अपना कर्म करो,
हर बात पूछते समय थोड़ा शर्म करो;
ये भी क्या बतलाना पड़ेगा,
हर लफ़्ज समझाना पड़ेगा?
ज़्यादा चों-चों किया तो 
चों-चों का मुरब्बा बना दूँगा।
काम करने से जी चुराते हो,
सब को बतला दूँगा।
इसलिए पहले काम करो,
तब जाकर आराम करो।
जब बुरे कुछ करेंगे ही नहीं,
अच्छे कुछ न किये तो अच्छे रहेंगे ही नहीं;
इसलिए जब सारा काम हमारा है,
तो फिर तुम क्या करोगे
जो हर पल तुम्हारा है।
हर समय खटिया तोड़ोगे तो 
तुम्हारी खटिया खड़ी कर दी जायेगी,
लगता है, 
तभी हमारे प्रभु को अक्ल आयेगी।

तेवर बदलते देखकर प्रभु ने दिमाग लगाया-
कैसी बात करते हो भक्तों,
मैं तो दिन-रात तुम्हारी सेवा में हाज़िर हूँ;
मैं प्रभु हूँ,
इसलिए हर ज़वाब में माहिर हूँ;
सो मेरा काम भाषण देना है,
अतः रोज-रोज प्रवचन सुनाऊँगा;
तुम्हारी भटकती बुद्धि को ठिकाने लगाऊँगा।
बुद्धि तो आप
हमारी ठिकाने लगवा ही चुके हैं,
पृथ्वी से ऊपर लाकर तो मरवा ही चुके हैं;
अब हमारा जल्द बन्दोबस्त न हुआ तो
हम तुम्हारा बन्दोबस्त कर देंगे,
जैसे बोरिया-बिस्तर हमारा कसवाया पृथ्वी से,
वैसे ही तुम्हारा भी कस देंगे,
लाख चिल्लाते रहो,
तुम को हम कर पस्त देंगे;
जिस तरह हमारी बुद्धि का ठिकाने लगाया है,
उसी तरह तुम्हें भी ठिकाने लगा देंगे;
भक्त किसे कहते हैं,
एक बार में समझा देंगे।


भाँड़ में जाओ तुम सब,
मुझ से नहीं सहा जायेगा अब;
चले जोओ यहाँ से
आइन्दा मुँह मत दिखलाना,
कहता हूँ कसम से
तुम्हें मुझे कोई पाठ नहीं सिखलाना।
मैं सारे काम उन से करवा लूँगा,
तुम्हारे बगैर स्वर्ग चला लूँगा।
प्रभु चिल्ला उठे,
अन्दर से बिलबिला उठे-
तुम क्या मेरी व्यथा जानो,
कैसे स्वर्ग चलता है;
सुन मूर्ख कथा मेरी,
बेवज़ह क्यों मचलता है।

(३)

बुरे लोग को जब काम दिया,
इन्होंने जीना हराम किया।
स्वर्ग को नरक बना दिया,
कोई न फर्क बचा दिया। 
भात-दाल-रोटी-सब्जी सब जला बनाते थे,
हमेशा ही कच्चा-पक्का खिलाते थे।
इस से सारे अच्छों का पेट खराब हो गया,
कोई न पचानेवाला रह गया;
अन्ततः ठेका वापस ले लिया
और अच्छों को दे दिया। 
तब से यही प्रथा है,
अच्छे बनाते हैं,
बुरे पहले खाते हैं;
ताकि गड़बड़ न होने पाये,
तब यदि बचा तो अच्छे पाते हैं,
जूठन को प्रसाद मान पचा जाते हैं।
पर, घबराओ मत!
इस बार फसल अच्छी हुई है,
इसलिए भोजन भरपेट मिलेगा।

खैर.....कथा आगे बढ़ती है,
पैसा ही हमारी शक्ति है 
जो टैक्स से आता है;
आजकल वहाँ रंगदारी टैैक्स लग जाता है।
बुरे बेरोज़गार हो गये,
किसी काम के नहीं थे बेकार हो गये।
मैं ने उन्हें किसी काम का नहीं पाया,
इसलिए उन्हें कोई काम दे नहीं पाया;
मैं उन्हें कोई काम न दे सका
तो तुम भूखों मरने लगे,
जीने के सवाल तलब करने लगे;
अन्ततः उन्होंने ये रास्ता चुन लिया,
मैं ने भी सिर धुन लिया।
मगर, इस से एक फायदा हुआ,
टैक्स पहले से ज़्यादा आने लगे;
उन पैसों से वे नरक बनाने लगे।
आल वहाँ बड़ी चहल-पहल है, 
मेहनत की कमाई का फल है।
कारण इस का यह था कि
अच्छे अधिकतर टैक्स मॉ कर देते थे,
जबकि बुरे बचत भी साफ कर देते थे;
इन्हें टैक्स लेने का ढंग मालूम था,
भले कहने को ये जुल्म था;
मगर मैं नहीं मानता ये जुल्म है,
ये तो सरकारी हुक्म है।

आगे.....
ये मेरा नाम जपने का
टैक्स का आधा ले लेते हैं,
उसे हम भी खुशी से दे देते हैं।
स्वर्ग और नरक की अब
फिफ्टी की पार्टनरशिप है;
जैसे-तैसे आधा मिल जाता है,
नहीं तो अकाल में वो भी स्लीप है।
ये सब तुम्हारे कर्मों का ही फल है,
जो तेरा प्रभु प्रभुता को तरस रहा है,
बेचारे पर दुःख बरस रहा है।
मैं ने अपनी कुण्डली दिखलायी है,
पण्डित ने खराब दशा बतलायी है;
शनि की महादशा है तभी यह दशा है,
साथ ही इस की साढ़े साती भी है,
इसलिए इतना सताली भी हैः
मेरा एक क्षण वर्षों का
हिसाब ही मुझे मरवा रहा है।
साढ़े साती को
करोड़ों-अरबों में बतला रहा है।
जाने तब तक बचूँगा भी या नहीं,
फिर इस सृष्टि का क्या होगा;
किस ने है भला यह सोचा?
प्रभु अब बस करो।
हम भटक गये थे,
बेवज़ह तुम्हारी राह में अटक गये थे,
अब समझे हम,
आप ने कितना दुःख पाया है!
उन नरकाधीशों ने आप को कितना सताया है!
आप की कसम अब वे नहीं बचेंगे,
हमारे हाथों ही मरेंगे।
-सारी बात जान अच्छों को गुस्सा आ गया।
प्रभु को यह दृश्य बहुत ही भा गया,
उन की आँखें डबडबा आयीं,
पुरानी बात याद हो आयी;
जब उन के बहुत अनुचर थे
जो हाँ-में-हाँ मिलाते थे,
इस बात पर 
वह अपना चौड़ा सीना फुलाते थे।
मगर मर वह सच गया है,
उन का सीना पिचक गया है।
वर्तमान पर आते-आते
वे एकदम घबरा गये,
एकदम से हड़बड़ा गये-
भूलकर भी मत जाना,
क्यूँ चाहते हो मुझे मरवाना।
युद्ध में वे ज़्यादा निपुण हैं,
भले ही वे पूर्ण निर्गुण हैं।
सो आत्महत्या मत करो,
वरना मेरी हत्या हो जायेगी,
तुम्हारे बिना अपनी गाड़ी कैसे चल पायेगी?
काम करने की आदत नहीं है,
यह मौत है सीधी बगावत नहीं है;
खाना किस से बनवाऊँगा?
मैं तो भूखों मर जाऊँगा।
इसलिए
सृष्टि-रक्षा के लिए जुल्म सहो,
सदा मुझे प्रभु कहो।

(इस लम्बी कविता 'ए प्रभु' का प्रकाशन १९९८ में कविता संग्रह 'डगर' में हुआ था, जो अब भी प्रासंगिक है।) 

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