-अमित कुमार नयनन
विश्वप्रसिद्ध विनाशलीला
विश्वप्रसिद्ध विनाश लीलाओं में एक अध्याय और जुड़ गया। क्या यह अन्त की शुरुआत है? अभी १०० वर्ष हुए हैं और दुनिया तृतीय विश्वयुद्ध के मुहाने पर खड़ी है।
पब्लिक
प्रथम विश्वयुद्ध और द्वितीय विश्वयुद्ध जिन्होंने भी नहीं देखा है, उन के लिए तृतीय विश्वयुद्ध देखने का यह ‘स्वर्णिम अवसर’ है। अलबत्ता कुछ लोग जो जीवन की शतकीय पारी खेल चुके और नॉटआउट हैं, उन के लिए तीनों विश्वयुद्ध देखने का ‘सौभाग्य’ प्राप्त होने जा रहा है। ईश्वर ने उन्हें तीनों विश्वयुद्धों का साक्षी होने और उन के गुण-धर्म वगैरह का आकलन और समीक्षा कर दुनिया को बताने, दुनिया का मार्गदर्शन करने के लिए उन्हें धरती पर भेजा है। अलबत्ता यह तभी हो पायेगा, जब वह इस युद्ध को पूरी तरह देखेंगे। अन्यथा तृतीय विश्वयुद्ध का हिस्सा तो वह बन ही चुके हैं, हम सभी की तरह।
मेरे विचार से, युगदर्शन के रूप में सिर्फ़ एक विश्वयुद्ध देखनेवाले साधारण, दो विश्वयुद्ध देखनेवाले स्पेशल और तीनों विश्वयुद्ध देखनेवाले वीआईपी क्लास की श्रेणी में हैं। इस प्रकार तीनों विश्वयुद्ध देखनेवाले सब से सीनियर, दो विश्वयुद्ध देखनेवाले सीनियर और एकमात्र विश्वयुद्ध देखनेवाले जुनियर हैं।
१०० वर्ष में ही तीसरा विश्वुयुद्ध?
अरे! इस क्रम में यह बात तो भूल ही रहा था कि १०० वर्ष में ही तीनों विश्वुयुद्ध की नौबत आ गयी! इस निर्णायक घड़ी में हमें सिर्फ़-और-सिर्फ़ सही फैसले लेने की ज़रूरत है। ये फैसले सही तभी हो सकते हैं, जब ये पूरी तरह पक्षपातरहित और तटस्थ हों। वक़्त पर सही फैसले लेना और सही समय पर सही फैसला लेना वास्तव में एक सही इंजीनियर का गुण होता है।
फैसला
फैसला हमें करना है। सिर्फ़-और-सिर्फ़ हमें करना है। हमारा फैसला ही हमारे अच्छे-बुरे का फैसला करेगा। यही हमारे भविष्य की दिशा तय करेगा। इस से अच्छी बात क्या हो सकती है कि अपनी ज़िन्दगी के सारे फैसले हमारे हाथ में हैं और न सिर्फ़ हमारे हाथ में हैं; बल्कि उस के न्यायकर्ता भी हम ही हैं। हमारा भविष्य सिर्फ़-और-सिर्फ़ हम तय करते हैं!
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