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शुक्रवार, 29 मई 2020

कोरोना और विश्व Corona & World

-अमित कुमार नयनन
     अब दुनिया पहले जैसी नहीं रही। देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान, कितना बदल गया इन्सान। इन्सान बदला, इसलिए उस के लिए दुनिया बदल गयी।
     वीराना! सारी दुनिया वीरान पड़ी हुई है। सारी दुनिया वीराना बन गयी है। दुनिया की सारी सड़कंे वीरान पड़ी हुई हैं। गली, कूचे, मुहल्लों में सन्नाटा पसरा हुआ है। सारी जगह वीरानगी छायी हुई है।
     ऐसा कैसे हो सकता है? ऐसा तो किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा। ऐसा लगता है जैसे स्वप्न देख रहे हैं।
     कोराना ने पूरी दुनिया को कारावास में बदल दिया। सभी अपने घर में नज़रबन्द हैं। मानो सभी अपने ‘सेल’ में बन्द हों। हर कोई अपने आवास में रहकर भी मानो कारावास में बैठा है। सारी दुनिया अपने ही घर में नज़रबन्द है।   
     सावधान....विश्राम! कोरोना ने सारी दुनिया को सावधान कर दिया और दुनिया विश्राम पर चली गयी- अनिश्चितकाल के लिए।

कोरोना का विश्व

     यह कुछ समय पहले तक अस्तित्वविहीन, कुछ वर्षो पहले तक अज्ञात, कुछ महीनों पहले तक गुमनाम, कुछ दिनो पहले तक अनाम रहे कोरोना की दुनिया है!

विश्व नज़रबन्द

     विश्व ने समस्त विश्व में होनेवाली नकारात्मक गतिविधियों पर अपनी आँखें मूँद ली थी, इसलिए समस्त विश्व को आज अपने ही घर में नज़रबन्द होना पड़ा है। कोई गली, कोई मुहल्ला, कोई शहर बन्द करता है, यहाँ तो सारा विश्व ही बन्द है। आँखें मँूदने का आँखों देखा फल ऐसा मिलेगा, किस ने सोचा था? 
     विश्व का महत्त्वपूर्ण मसलों पर भी चुप रहना, अपराध या अपराधसम स्थितियों पर भी चुप्पी बाँधे रहना.....ने ही उसे इस स्थिति में पहुँचाया है। जब एकाएक वैश्विक आपदा आ गयी। यहाँ तक कि मनुष्य का अस्तित्व तक खतरे में पड़ गया।
     कोरोना के कई अर्थ निकाल रहे हैं भई! एक अर्थ यह भी है कि ‘कुछ करो नऽ’। जी हाँ! सारी दुनिया माथापच्ची में डूबी है। इस आफत से छुटकारा कैसे पाया जाय? कोरोना ने पहले ही शॉट में बाउण्ड्रीलाइन पार करा दुनिया को घर में घुसे रहने पर मज़बूर कर दिया।
     विश्व हक्का-बक्का है। काटो तो खून नहीं है। काटनेवाले को भी काटो तो खून नहीं है, फिर भी खून चूसनेवाला खूनी है। कल चमन था, आज यह सहरा हुआ! देखते-ही-देखते यह क्या हुआ? हम से क्या भूल हुई जो ये सजा हम का मिली, अब तो चारों ही तरफ बन्द हैं दुनिया की गली। गलियाँ सूनसान, दुनिया वीरान!

आँखों देखी

     इन्सान खुली आँखों से स्वप्न देख रहा है। उसे आँखों देखी पर विश्वास नहीं हो रहा है। उसे अभी आँखों के आगे कुछ नहीं सूझ रहा है। लोग को अपनी ही आँखों देखी पर विश्वास नहीं हो रहा था कि कल तक जिस दुनिया में वह खुलकर जी रहे थे, अचानक उसे क्या हो गया? जिस दुनिया पर वे राज कर रहे थे, अचानक ही एक वायरस का गुलाम हो गया।
     कोरोना का जिस ने भी उपहास किया, स्वयं ही उपहास का पात्र हो गया। जिस ने भी उस का मज़ाक उड़ाया स्वयं ही मज़ाक का पात्र बन गया और जिस ने दाँत दिखाये, उस के करतब को देखकर दाँत निपोरने को विवश हो गये।

कोरोना कथानक

     ऐसा लगता है जैसे यह किसी कहानी का प्लॉट या फिल्म की स्क्रिप्ट है। मगर वास्तविकता यह है कि यह एक जीता जागता सच है!
     दुनिया अच्छी-खासी चल रही थी। अचानक ऐसा क्या हुआ कि सबकुछ थम-सा गया, चलती-फिरती ज़िन्दगी अचानक रूक-सी गयी। ऐसा लगा जैसे ज़िन्दगी में पाउज बटन दबा दिया हो। ज़िन्दगी फ्रीज हो गयी हो। जिं़दगी फ्रीज हो या कूलर.....माहौल बिल्कुल कूल नहीं है!

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