प्रस्तोता : शीतांशु कुमार सहाय
रावण जब ब्राह्मण के वेश में सीता-हरण के लिए आया तो वह अपने तप-बल से यह जान गया कि अतिदुर्लभ सोमतिती विद्या से खींची गयी अग्नि और विद्युत तरंगों से युक्त अत्यन्त विध्वन्सक इस रेखा को वह पार नहीं कर सकता है तो उस ने छल से माँ सीता को ही रेखा के बाहर बुला लिया और अपहरण करने में सफल रहा।
सोमतिती विद्या भारत की प्राचीन विद्याओ में से एक है। इस का अन्तिम प्रयोग द्वापर युग में महाभारत युद्ध के दौरान हुआ था। वर्तमान कलियुग में इस दुर्लभ विद्या का ज्ञाता कोई नही है।
महर्षि शृंगी ने सोमतिती विद्या के सन्दर्भ में बताया है कि वेदमन्त्र "सोमंब्रहि वृत्तं रत: स्वाहा वेतु सम्भव ब्रहे वाचम प्रवाणम अग्नं ब्रहे रेत: अवस्ति" के माध्यम से इस विद्या का प्रयोग किया जाता है। यह वेदमंत्र सोमना कृतिक यन्त्र का है। इसे पृथ्वी और बृहस्पति के मध्य अंतरिक्ष में स्थापित किया जाता है। कृतिक यंत्र जल, वायु और अग्नि के परमाणुओं को अपने अन्दर सोखता है और विशेष प्रकार से अग्नि और विद्युत के परमाणुओं को वापस बाहर की तरफ धकेलता है।
ऊपर जिस वेदमन्त्र का उल्लेख किया गया है उसे सिद्ध करने से सोमना कृतिक यंत्र स्वयं में अग्नि और वायु में उपस्थित जल के परमाणु अवशोषित कर लेता है। उन परमाणुओं में आकाशीय विद्युत को शामिल किया जाता है। इस के उपरान्त अग्नि, जल और विद्युत के परमाणुओं को एक पंक्ति में व्यवस्थित किया जाता है। इस प्रकार एक अत्यन्त शक्तिशाली किरण का निर्माण होता है। यन्त्र की सहायता से इन विशेष किरणों द्वारा पृथ्वी पर गोलाकार रेखा खींची जाती है जो सोमतिती रेखा कहलाती है। इस के अन्दर जो भी रहेगा वह सुरक्षित रहेगा लेकिन बाहर से अन्दर अगर कोई बलात् प्रवेश करना चाहे तो उसे अग्नि और विद्युत का ऐसा झटका लगेगा कि वहीं भस्म बनकर उड़ जायेगा।
एक बार महर्षि भारद्वाज ऋषि-मुनियों के साथ भ्रमण करते हुए वशिष्ठ आश्रम पहुँचे तो उन्होंने महर्षि वशिष्ठ से पूछा-- अयोध्या के राजकुमारों की शिक्षा कहाँ तक पहुँची?
महर्षि वशिष्ठ ने बताया कि राम आग्नेयास्त्र, वरुणास्त्र और ब्रह्मास्त्र का सन्धान करना सीख लिया है। यह धनुर्वेद में पारंगत हो गया है। महर्षि विश्वामित्र से लक्ष्मण दुर्लभ सोमतिती विद्या सीख रहा है।
त्रेतायुग के उस काल में पृथ्वी पर चार गुरुकुलों में सोमतिती विद्या सिखायी जाती थी। ये चार गुरुकुल थे- महर्षि विश्वामित्र का गुरुकुल, महर्षि वशिष्ठ का गुरुकुल, महर्षि भारद्वाज का गुरुकुल और उदालक गोत्र के आचार्य शिकामकेतु का गुरुकुल।
लक्ष्मण सोमतिती विद्या के इतने प्रसिद्ध जानकर के रूप में विख्यात हुए कि कालान्तर में यह विद्या सोमतिती के बदले लक्ष्मण रेखा कहलाई जाने लगी।
महर्षि दधीचि, महर्षि शाण्डिल्य भी सोमतिती विद्या को जानते थे।
भगवान श्रीकृष्ण ने इस विद्या का अन्तिम बार पृथ्वी पर प्रयोग किया। उन्होंने महाभारत धर्मयुद्ध में कुरुक्षेत्र के युद्ध भूमि के चारों तरफ सोमतिती रेखा खींच दी थी; ताकि युद्ध में प्रयुक्त भयंकर शस्त्रास्त्रों का प्रतिकूल प्रभाव युद्धक्षेत्र से बाहर के प्राणियों पर न पड़े।
सोमतिती की तरह कई दुर्लभ विद्याओं के जानकार प्राचीन भारत में रहते थे। भारतीय ग्रन्थों में आज भी कई कल्याणकारी विद्याओं के रहस्य छिपे हैं।
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