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सोमवार, 12 अगस्त 2013

आईएनएस विक्रान्त : तीसरी सोमवारी का उपहार


शीतांशु कुमार सहाय
    चल रहा है इन दिनों सावन का महीना। सावन यानी भगवान शिव की उपासना का विशेष महीना। इस विशेष महीने में भी सोमवार का दिन विशेषों-में-विशेष है। तभी तो भारत सरकार ने देशवासियों को तीसरी सोमवारी को विशेष उपहार दिया। पुराने लड़ाकू जलपोत ‘आईएनएस विक्रान्त’ की याद ताजा करने के लिए सोमवार को स्वदेशी तकनीक वाले नये ‘आईएनएस विक्रान्त’ को समुद्र में उतारा गया। 10 वर्षों के अथक प्रयास और 2 वर्षों की अप्रत्याशित देरी के बाद स्वदेशी विमानवाहक पोत विक्रान्त के जलावतरण के साथ ही विश्व के उन गिने-चुने देशों में भारत शामिल हो गया जो समुद्र में तैरते हवाई अड्डे के डिजाइन, विकास और निर्माण की क्षमता रखते हैं। कोचिन शिपयार्ड लिमिटेड में पल रहा देश का स्वप्न सोमवार को उस समय साकार हो गया, जब दक्षिणी नौसैनिक कमान में आयोजित समारोह के दौरान रक्षा मंत्री एके एण्टनी की उपस्थिति में उनकी पत्नी एलिजाबेथ एण्टनी ने विधिवत् विक्रान्त के जलावतरण की रस्म पूरी की। यों पोण्टून की पालकी पर सवार होकर 45 हजार टन का विमानवाहक पोत कोचिन के निकट समुद्र में उतर गया। इस तरह भारत ने अपनी नौसेना की रणनीति एवं सामरिक क्षमता को और अधिक मारक, प्रभावशाली व प्रतिरोधी बनाने की दिशा में एक और ऐतिहासिक कदम बढ़ाया। विक्रान्त युद्धपोत के तरण क्षेत्र का लगभग 90 प्रतिशत, संचालन क्षेत्र का लगभग 60 प्रतिशत और लड़ाकू आयुधों का करीब 30 प्रतिशत भाग स्वदेश में निर्मित है। इटली की कम्पनी फिनकेनथियेरी ने इसका प्रोपेल्शन सिस्टम बनाने में मदद की है। एविशन सिस्टम में रूस का नेवल डिजाइन ब्यूरो सहायता दे रहा है।

    भारतीयों के लिए आईएनएस विक्रान्त का नाम नया नहीं है। भारत ने सन् 1957 में ब्रिटेन से एक रनवे वाला विमानवाही पोत ‘एचएमएस हरक्यूलिस’ खरीदा था। भारत में लाकर इसका नाम रखा गया था ‘आईएनएस विक्रान्त’। आईएनएस विक्रान्त भारत का पहला विमानवाही लड़ाकू जहाज था जिसने 1971 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में शत्रुओं के छक्के छुड़ा दिये थे। 4 मार्च 1997 को आईएनएस विक्रान्त सेवामुक्त हो गया। तब से यह मुम्बई तट पर संग्रहालय की शक्ल में खड़ा है। उसी पुराने जहाज को सम्मान देने के लिए देश ने अपने पहले स्वदेशी विमानवाही पोत का नाम भी ‘आईएनएस विक्रान्त’ ही रखा है। इसे ‘डायरेक्टोरेट ऑफ नेवल डिजाइन’ ने डिजाइन किया तथा कोचिन शिपयार्ड लिमिटेड में इसका निर्माण किया गया है। 2006 में इसका निर्माण कार्य शुरू हुआ। रक्षा मंत्री ने 28 फरवरी 2009 में इस पोत के निर्माण की विधिवत् शुरुआत की थी जबकि स्टील काटने का कार्य 2007 में ही शुरू हो चुका था। उस समय एण्टनी ने आशा की थी कि यह पोत 2014 में नौसेना में शामिल हो जाएगा। नौसेना के अनुसार, समुद्र में उतारे जाने के एक वर्ष बाद ही इसके समुद्री परीक्षण शुरू हो पाएंगे। यों 2018 तक यह नौसेना बेड़े में शामिल हो पाएगा। उस समय 2 लड़ाकू युद्धपोतों रूस से खरीदा एडमिरल गोर्शकोव यानी ‘आईएनएस विक्रमादित्य’ और स्वदेशी ‘आईएनएस विक्रान्त’ की मौजूदगी के बाद ‘आईएनएस विराट’ को सेवामुक्त किया जा सकेगा। विक्रमादित्य इस वर्ष के अन्त तक नौसेना बेड़े में शामिल होगा। जहाँ तक नये आईएनएस विक्रान्त की बात है तो यह कई विशेषताओं से भरा है। 16 हजार टन फौलाद को काटकर इसे बनाया गया है। 4 गैस टरबाइन 24 मेगावाट ऊर्जा पैदा करेंगे। पूरे कोचिन शहर की बिजली की जरूरत को पूरा करने में यह ऊर्जा सक्षम है। इसका डेक 10 हजार वर्ग मीटर का है। मतलब फुटबॉल के  2 मैदानों से भी बड़ा। इसमें लगभग 3500 किलो मीटर लम्बी केबल इस्तेमाल की गयी है जो दिल्ली से कोचिन तक पहुँच सकती है। 38 हजार टन इसका भर है जो 56 किलो मीटर प्रति घंटे की रफ्तार से समुद्र पर चल सकता है। यह अर्ली अलार्मिंग सिस्टम से भी लैस है जो शत्रुओं की पनडुब्बी के पास पहुँचने से पहले ही सूचित कर देगा। यह सतह से 50 फीट ऊँचा, 262 मीटर लम्बा और 62 मीटर चौड़ा है। इस पर एक साथ 1550 नौसैनिक तैनात होंगे। यह विमानवाहक पोत अपने साथ 35 लड़ाकू विमानों को लेकर चल सकेगा। इस पर 2 वायुयान रनवे हैं जिनसे हर तीसरे मिनट विमान उड़ान भर सकेंगे। यह मिग 29-के, स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमानों व कामोव-31 हेलीकॉप्टरों से लैस होगा। साथ ही विक्रान्त पर सतह से हवा में मार करने वाली लम्बी दूरी की एलआर सैम मिसाइलें भी तैनात होंगी।

    विश्व की 9 देशों की नौसेनाओं के पास 22 वायुयान वाहक युद्धपोत हैं जो अभी संचालन में हैं। केवल अमेरिका, रूस तथा ब्रिटेन ने ही 40, 000 टन से अधिक के विमान वाहक पोत बनाये हैं। भारत इस कतार में चौथा देश है। सितम्बर 2012 में चीन ने यूक्रेन से पहला विमानवाहक पोत खरीदकर समुद्र में परीक्षण के लिए भेजा है। सोमवारी के ‘विक्रान्त उपहार’ के लिए धन्यवाद दीजिये इसके निर्माण में लगे भारतीय अभियन्ताओं सहित अन्य सहयोगियों को।

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