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रविवार, 26 अप्रैल 2015

इंडिया का नाम भारत होना चाहिए : बदलेगा देश का नाम, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र व राज्यों को भेजा नोटिस / BHARAT V/S INDIA


-शीतांशु कुमार सहाय
सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार 25 अप्रैल 2015 को बहुत ही अहम फैसला लिया है कोर्ट ने कहा है कि इंडिया का नाम भारत होना चाहिए, इस मांग वाली याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने केंद्र के साथ ही सभी प्रदेशों और केंद्र शासित प्रदेशों से इस संदर्भ में जवाब मांग लिया है। महाराष्ट्र के सामाजिक कार्यकर्ता निरंजन भटवाल ने इस याचिका में बोला है कि संविधान में इंडिया शब्द का प्रयोग केवल संदर्भ के रूप में ही हुआ है। भारत का ही प्रयोग आधिकारिक रूप में होना चाहिए। इंडिया नाम को बदलकर भारत के नाम से पहचाना जाना चाहिए इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट एक जनहित याचिका दायर की गई है। इस याचिका में देश का नाम इंडिया से बदलकर भारत किए जाने की मांग की गई है। इस पर शीर्ष अदालत ने देश के नामकरण पर उठाए गए सवालों का परीक्षण करने का फैसला किया है। केंद्र और राज्य सरकारों से जवाब मांगा गया है कि क्या ‘इंडिया’ नाम को बदलकर ‘भारत’ कर दिया जाना चाहिए। चीफ जस्टिस एचएल दत्तू और जस्टिस अरुण मिश्रा की पीठ ने सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस भी जारी किया। याचिका में केंद्र को किसी सरकारी उद्देश्य के लिए और आधिकारिक पत्रों में इंडिया नाम का इस्तेमाल करने से रोकने की मांग की गई है। यह याचिका महाराष्ट्र के सामाजिक कार्यकर्ता निरंजन भटवाल ने दायर की। उन्होंने कहा कि यहां तक कि गैर सरकारी संगठनों और कॉर्पोरेट्स को भी सभी आधिकारिक और अनाधिकारिक उद्देश्यों के लिए ‘भारत’ का इस्तेमाल करने का निर्देश दिया जाना चाहिए। जनहित याचिका में कहा गया है कि संविधान सभा में देश का नाम रखने के लिए ‘भारत, हिंदुस्तान, हिंद और भारतभूमि या भारतवर्ष’ नाम रखने के प्रमुख सुझाव आए थे। इसके अलावा याचिका में कई और दलीलें दी गई है। संविधान की धारा 1 में इंडिया शब्द का इस्तेमाल गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 और इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 के संदर्भ को प्रदर्शित करने के लिए किया गया है। इस आधार पर इंडिया शब्द का प्रयोग सही नहीं है। इसके अलावा यह भी पूछा गया गया कि क्या इंडिया शब्द को दुनियाभर के कूटनीतिक संबंधों को भुनाने के लिए किया गया। फिलहाल इस देश का नाम इंडिया रखने को लेकर कोई लिखित दस्तावेज नहीं है तो फिर यह नाम कैसे पड़ा।
निरंजन भटवाल ने यह याचिका दायर की है। भटवाल का कहना है कि ऐसा कोई ऐतिहासिक सबूत नहीं है जिसमें भारतीय उपमहाद्वीप को इंडिया के नाम से पुकारा गया हो या इसके निवासियों को इंडियंस कहा गया हो। याचिका के मुताबिक, 'मुगल शासकों ने भी कभी हमें इंडिया नहीं कहा। इंडिया शब्द ब्रिटिश शासन के दौरान चलन में आया।' याचिका कहती है कि संविधान लिखे जाने के दौरान डॉ. बीआर आंबेडकर ने भी इस मुद्दे पर संविधान सभा में खासी बहस की थी। हालांकि, इस बहस का नतीजा स्पष्ट नहीं है। याचिका ने संविधान के अनुच्छेद 1 का हवाला दिया जिसके मुताबिक, ''इंडिया, यानी भारत, राज्यों का समूह होगा।'' सत्ताधारी बीजेपी ने बेंगलुरु में अपने अधिवेशन में विदेश नीति पर एक प्रस्ताव पास किया था जिसमें इंडिया की जगह बार-बार भारत शब्द का ही इस्तेमाल हुआ था। संविधान की धारा 395 में स्पष्ट तौर से भारत शब्द का उल्लेख हुआ है।

शनिवार, 18 अप्रैल 2015

पटना उच्च न्यायालय का शताब्दी समारोह : मूलभूत अधिकारों के संरक्षण में न्यायपालिका की भूमिका अहम : राष्ट्रपति / Centenary of the Patna High Court



 
-शीतांशु कुमार सहाय
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शनिवार 18 अप्रैल 2015 को पटना में पटना उच्च न्यायालय के शताब्दी समारोह का उद्घाटन किया। समारोह में राष्ट्रपति ने अपने अभिभाषण में कहा कि पटना उच्च न्यायालय के 100 वर्ष पूरा होना ऐतिहासिक क्षण है। मूलभूत अधिकारों के संरक्षण में न्यायपालिका की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। आजादी के बाद पटना उच्च न्यायालय ने कई ऐतिहासिक फैसले दिये हैं। न्यायपालिका ने हमेशा संविधान की रक्षा की है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में न्यायालय का सूचना तकनीक से लैस होना जरूरी है। राष्ट्रपति ने कहा कि पटना उच्च न्यायालय के 100 साल में प्रवेश करना ऐतिहासिक क्षण है। बिहार ने देश को कई न्यायाधीश दिये। यहीं से देश को पहला राष्ट्रपति मिला। इस समारोह का विधिवत् उद्घाटन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दीप प्रज्वलित कर किया। दीप प्रज्जवल के समय राष्ट्रपति के साथ बिहार के राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी, भारत के मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू भी साथ रहे। शताब्दी समारोह पूरे साल भर तक चलेगा। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एचएलदत्तू ने समारोह की अध्यक्षता की।

-लंबित मामले और न्यायाधीशों के रिक्त पद
श्री मुखर्जी ने अदालतों में लंबित मामलों की संख्या पर चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि पटना उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या 43 है जबकि वर्तमान में सिर्फ 31 न्यायाधीश काम कर रहे हैं और 12 सीटें रिक्त हैं। श्री मुखर्जी ने कहा कि कोर्ट में जजों की कमी है। न्यायाधीशों की कमी के कारण लंबित मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है। लंबित मामलों की संख्या लाखों में पहुँच गई है। उन्होंने कहा कि इन खाली सीटों को भरने की आवश्यकता है; ताकि आम आदमी को त्वरित और समय पर न्याय मिले।
-बढ़ाई जाय न्यायाधीशों की संख्या
राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने कहा कि त्वरित एवं गुणवतापूर्ण न्याय लोकतांत्रिक व्यवस्था में बहुत जरूरी है। आम आदमी को कम खर्च पर न्याय मिलना चाहिये। उन्होंने अदालतों में बड़ी संख्या में लंबित मुकदमों का शीघ्र निष्पादन किये जाने की आवश्यकता बतायी और कहा कि मामलों के शीघ्र निष्पादन के लक्ष्य को हासिल करने के लिये न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ अदालतों एवं अन्य आधारभूत सुविधाओं को उपलब्ध कराना जरूरी है। राष्ट्रपति ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय से लेकर निचली अदालत तक बड़ी संख्या में मुकदमें लंबित हैं, इसके लिये उच्चतम न्यायालय से लेकर निचले अदालतों तक में लंबित मुकदमों के निष्पादन के लिए गंभीर प्रयास किये जाने चाहिये। कई राज्यों के उच्च न्यायालय और निचली अदालतों में भी न्यायाधीशों के पद रिक्त हैं, जो लंबित मुकदमों के निपटारे में विलम्ब का बड़ा कारण है। उन्होंने न्यायालयों में रिक्तयों को भरने के लिये तेजी से कार्रवाई करने पर बल दिया और कहा कि बहाली में गुणवता से कोई भी समझौता नहीं किया जाना चाहिये। 

-न्यायालय में सूचना तकनीक
राष्ट्रपति ने कहा कि आज न्यायालय को भी सूचना तकनीक से लैस करने की जरूरत है। सूचना तकनीक से जुड़ने के बाद जरूरतमंदों को समय पर न्याय मिल सकेगा। उन्होंने कहा कि सूचना तकनीकी एवं कम्प्यूटर का इस्तेमाल मुकदमों के रिकॉर्ड के संधारण और त्वरित निष्पादन में मददगार हो सकता है।
-न्यायपालिका एवं कार्यपालिका
राष्ट्रपति श्री मुखर्जी ने कहा कि संविधान में न्यायपालिका एवं कार्यपालिका की जिम्मेदारियों का स्पष्ट उल्लेख है। न्यायालय के कई ऐतिहासिक फैसलों ने कार्यपालिका को अपनी जिम्मेदारी निभाने का रास्ता भी दिखाया है।
-डाक टिकट, स्मारिका व शताब्दी भवन

पटना हाईकोर्ट के 100 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में इस अवसर पर राष्ट्रपति ने शताब्दी समारोह के दौरान पटना हाईकोर्ट के शताब्दी भवन का शिलान्यास भी किया गया। शताब्दी समारोह पर डाक टिकट भी जारी किया गया। राष्ट्रपति ने इस अवसर पर पटना हाईकोर्ट के शताब्दी समारोह स्मारिका का विमोचन भी किया गया।
-पटना उच्च न्यायालय का स्वर्णिम इतिहास
राष्ट्रपति ने पटना उच्च न्यायालय के स्वर्णिम इतिहास की चर्चा करते हुए कहा कि ये गर्व की बात है कि डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और सच्चिदानंद जैसे लोग यहाँ वकालत करते थे, जिनका योगदान संविधान के निर्माण में भी रहा था। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद देश के प्रथम राष्ट्रपति बने। पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बीपी सिन्हा, न्यायाधीश आरएन लोढ़ा एवं न्यायाधीश ललित मोहन शर्मा बाद में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बने।
-मुख्य न्यायाधीश नरसिम्हा को गर्व   
इस मौके पर पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एल नरसिम्हा रेड्डी ने सभी गणमान्य अतिथियों का स्वागत किया। अपने संबोधन में न्यायाधीश रेड्डी ने कहा कि पटना उच्च न्यायालय के 100 साल पूरे होने पर गर्व की अनुभूति हो रही है। यह क्षण सभी के लिए ऐतिहासिक है। बिहार महापुरूषों की धरती है। पटना उच्च न्यायालय ने कई देश को कई महान न्यायाधीश दिये हैं।
-केंद्रीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा
केंद्रीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा- मैं पटना की धरती पर राष्ट्रपति महोदय का स्वागत करता हूँ। उन्होंने कहा कि पटना उच्च न्यायालय का इतिहास गौरवशाली रहा है। पटना उच्च न्यायालय ने देश को कई न्यायाधीश दिये हैं। अपने 100 साल के सफर में इसने कई मानदण्ड स्थापित किये हैं। श्री प्रसाद ने कहा कि राजेन्द्र प्रसाद ने भी पटना उच्च न्यायालय में वकालत की थी। कई नेताओं ने भी यहाँ वकालत किया है।
- केंद्रीय कानून मंत्री सदानंद गौड़ा ने कहा
इस अवसर पर केंद्रीय कानून मंत्री सदानंद गौड़ा ने कहा कि मैं अपने आप को गौरवशाली महसूस कर रहा हूँ कि मुझे पटना उच्च न्यायालय के शताब्दी समारोह में भाग लेने का अवसर मिला। उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य उच्च न्यायालय के ऊपर पड़नेवाले दबाव को कम करना है। लंबित मामलों को घटना हमारा प्रयास है। श्री गौड़ा ने कहा कि न्यायिक व्यवस्था को मजबूत बनाया जायेगा; ताकि लोगों को किसी प्रकार की कोई परेशान न हो। केन्द्रीय कानून मंत्री सदानंद गौड़ा ने समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों के रिक्त पदों को भरने के साथ-साथ आधारभूत सुविधाएँ मुहैया कराने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में लंबित मामलों को देखते हुए महसूस किया जा रहा है कि अन्य माध्यम से भी विवादों को निपटाये जाने के लिए रास्ते तलाश किये जायें।

-बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा
पटना उच्च न्यायालय को इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए जिन चीजों की जरूरत होगी, राज्य सरकार उसे उपलब्ध करायेगा। पटना उच्च न्यायालय को राज्य सरकार की ओर से पूरा सहयोग मिलेगा। साथ ही पटना उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या भी बढ़नी चाहिये। उक्त बातें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पटना उच्च न्यायालय के शताब्दी समारोह के अवसर पर अपने संबोधन में कही। इस अवसर पर मुख्यमंत्री राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को शताब्दी समारोह में अपना किमती समय देने के लिए धन्यावद दिया। श्री कुमार ने कहा कि बिहार के लिए आज गौरव का दिन है और राष्ट्रपति का इस अवसर पर इसमें शामिल होना बिहारवासियों के लिए खुशी का क्षण है। पटना हाईकोर्ट के 100वें साल में प्रवेश करने पर उन्होंने बिहार की जनता को शुभकामनाएँ भी दी। इस अवसर पर उन्होंने पटना हाईकोर्ट के इतिहास पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि 1913 में हाईकोर्ट के भवन निर्माण आरंभ किया गया था। 1916 में तीन साल बाद भवन के बनने के बाद इसमें कार्य प्रारंभ हुआ। मुख्य न्यायाधीश समेत 7 न्यायाधीशों से पटना हाईकोर्ट में काम की शुरूआत हुई थी। इस अवसर पर श्री कुमार ने कहा कि न्याय के साथ विकास में न्यायापालिका का महत्त्वपूर्ण स्थान है। कानून राज्य में न्यायापालिका की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। मुख्यमंत्री श्री कुमार ने पटना उच्च न्यायालय के शताब्दी समारोह को संबोधित करते हुए कहा- राज्य में न्याय के साथ विकास, सबको न्याय दिलाने एवं राज्य में कानून का राज स्थापित करने में न्यायपालिका की बड़ी भूमिका है। जब मैंने राज्य का कार्यभार संभाला तो मेरी पहली प्राथमिकता सुशासन और न्याय के साथ विकास की थी। स्पीडी ट्रायल की व्यवस्था कर अपराधियों को सजा दिलाने का सर्वाधिक दर बिहार में रहा है।

-पटना उच्च न्यायालय का इतिहास
1916 में पटना उच्च न्यायालय ने अपना काम प्रारंभ किया था। 1913 से इसके भवन के निर्माण का कार्य प्रारंभ हुआ था। 3 वर्षों के अन्दर निर्माण कार्य पूरा हुआ और 7 न्यायाधीशों के साथ पटना उच्च न्यायालय ने अपना काम शुरू किया। बाद में 1948 में उड़ीसा उच्च न्यायालय, फिर 2000 में झारखण्ड उच्च न्यायालय की स्थापना हुई।
-महत्त्वपूर्ण सहभागिता
इस अवसर पर पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एल नरसिम्हा रेड्डी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, केंद्रीय विधि मंत्री सदांनद गौड़ा, केंद्रीय संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद भी मौजूद हैं। वहीं समारोह में सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान और पूर्व मुख्य न्यायाधीश, पटना हाईकोर्ट के वर्तमान और पूर्व न्यायाधीश सहित कई मंत्री भी उपस्थित रहे। साथ ही बिहार विधान परिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह, बिहार विधानसभा के अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी, बिहार के विधि मंत्री नरेन्द्र नारायण यादव सहित राज्य मंत्रिमण्डल के मंत्रीगण, न्यायाधीश, वरिष्ठ अधिकारी एवं गणमान्य व्यक्ति बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
-राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की विदाई

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी अपने दो दिवसीय बिहार दौरे के बाद शनिवार 18 अप्रैल 2015 को विशेष विमान से पटना से नयी दिल्ली वापस लौट गये। राष्ट्रपति को पटना हवाई अड्डा के स्टेट हैंगर में आयोजित एक समारोह में विदाई दी गयी। इस अवसर पर सशस्त्र पुलिस बल ने उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया तथा उन्होंने संयुक्त टुकड़ी से सलामी ली। हवाई अड्डा पर राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, बिहार विधानसभा के अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी, बिहार विधानसभा के उपाध्यक्ष अमरेन्द्र प्रताप सिंह, विधान परिषद मंे प्रतिपक्ष नेता सुशील कुमार मोदी, विधानसभा में प्रतिपक्ष नेता नन्द किशोर यादव, जल संसाधन मंत्री विजय कुमार चौधरी सहित बिहार सरकार के कई मंत्री सहित अन्य गणमान्य लोग भी मौजूद रहे।  हवाई पट्टी पर भी, मुख्यमंत्री एवं वरीय अधिकारियों ने महामहिम राष्ट्रपति को फूलों का गुलदस्ता भेंट किया और उनके सुखद यात्रा एवं सफल जीवन की कामना की। राष्ट्रपति ने मुख्यमंत्री को इस अवसर पर दो पुस्तकं भी भेंट कीं। मुख्यमंत्री ने राष्ट्रपति जी को पुनः बिहार आने के लिए कहा।



शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

बुधवार, 15 अप्रैल 2015

इन्सेफलाइटिस पर 28 करोड़ रुपये से अधिक खर्च, नतीजा शून्य निकला / ENCEPHALITIS


-करोड़ों रुपये खर्च होने पर केवल बदला इन्सेफलाइटिस का नाम- नया नाम है इन्सेफेलोपैथी /ENCEPHALOPATHY
-शीतांशु कुमार सहाय
पिछले सात वर्षों में मौत ही मौत! अब भी यह सिलसिला बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में चल ही रहा है। जिले में इन्सेफलाइटिस के शोध, दवा व अन्य मदों में पिछले दो वर्षों में 28 करोड़ रुपये से अधिक खर्च दिखाये गये पर नतीजा शून्य निकला। हर साल गर्मी में मौत का पर्याय बनकर बच्चों पर कहर ढाहनेवाले इन्सेफलाइटिस का सिर्फ नाम ही तो बदला है। इन्सेफलाइटिस के बजाय ‘इन्सेफेलोपैथी’ हो गया है। केंद्र सरकार के इस खर्च (28 करोड़ रुपये) में यदि बिहार राज्य सरकार के खर्च को मिला दिया जाय तो यह रकम काफी अधिक हो जायेगी। देश-विदेश की कई जाँच एजेंसियाँ लगीं पर नतीजा ढाक के तीन पात। स्मरणीय है कि पिछले कई वर्षों से उत्तर बिहार में इन्सेफलाइटिस से बच्चों की मौत का सिलसिला नहीं रूक रहा है। सबसे अधिक प्रभाव मुजफ्फरपुर जिले में देखने को मिलता है। कारण जानने के लिए शोध मद में केंद्र सरकार ने करोड़ों रुपये खर्च किये पर अभी तक किसी खास नतीजे पर नहीं पहुँचा जा सका है। बच्चों के इलाज में बिहार सरकार भी करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। फलतः इस वर्ष भी लक्षण के आधार पर ही इलाज चलेगा। गर्मी के दस्तक देते ही इंसेफेलोपैथी के मरीजों का इलाज के लिए आना शुरू हो गया है। मौसम की तल्खी बढ़ती गयी तो मरीजों की संख्या भी बढ़ती जाती है।
-इन्सेफेलोपैथी के हाई रिस्क जोन में मुजफ्फरपुर के 694 गाँव
इन्सेफेलोपैथी के हाई रिस्क जोन में मुजफ्फरपुर जिले के 694 गाँव आते हैं। स्वास्थ्य विभाग की ओर से कराये गये शोध में यह आँकड़ा सामने आया है। वर्ष 2010 से 2014 तक लगातार इन गाँवों में तथा इसके आस-पास मरीज मिले हैं। जिले के सिविल सर्जन ने इन प्रखंडों में इन्सेफेलोपैथी बीमारी से बचाव के लिए चिकित्सक व मेडिकल स्टाफ को जरूरी टिप्स देने का काम प्रारम्भ किया है। इन्सेफेलोपैथी के हाई रिस्क जोन में जिले का मुसहरी, मीनापुर, बोचहाँ, काँटी प्रखंडों के ग्राफ सबसे ऊपर हैं। मुजफ्फरपुर जिला प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग इन क्षेत्रों के गाँवों पर पूरी नजर रखेगा। लोगों में जागरुकता लाने व बीमारी के नियन्त्रण के लिए इन गाँवों में माइकिंग कराने व घर-घर में पर्चा पहुँचाने का निर्णय लिया गया है। बच्चों के शत-प्रतिशत टीकाकरण के साथ ही एक-एक परिवार को जागरुक करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है; ताकि कम-से-कम बच्चे इस साल प्रभावित हो सकें।
-डा. जैकब मानते हैं लीची को कारण

इन्सेफेलोपैथी के शोध में लगे चेन्नई के वरीय वैज्ञानिक डॉ. जैकब जॉन की पिछले दिनों आयी शोध रपट पर सवालिया निशान लगने शुरू हो गये हैं। शोध में उन्होंने इस बीमारी के पीछे लीची को भी एक कारण माना था। पर, इस साल तो 15 अप्रैल तक लीची में फूल से फल का निकलना शुरू हुआ, फिर भी श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल (एसकेएमसीएच) व केजरीवाल अस्पताल में इन्सेफलाइटिस प्रभावित मरीजों का आना शुरू हो गया है। कई संदिग्ध मरीज भी सामने आये हैं। इस शोध पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए लीची उत्पादक किसान भोलानाथ झा इस बीमारी के शोध में लगे यहाँ के चिकित्सक, स्वास्थ्य एवं प्रशासन के वरीय अधिकारी का कहना है कि इसके शोध में सही कारणों का पता लगाना जरूरी है। मुसहरी स्थित लीची अनुसन्धान केन्द्र के निदेशक डॉ. विशाल नाथ ने कहा है कि वर्षों से लीची हमारी पहचान व मौसमी फल है। इन्सेफलाइटिस बीमारी का कारण लीची नहीं कुछ दूसरा है जिसपर सामूहिक रूप से शोध जरूरी है।
-डॉ. गोपाल बताते हैं तापमान को जिम्मेदार

इस बीमारी के एक अन्य शोधकर्ता व एसकेएमसीएच के वरीय शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. गोपाल शंकर सहनी का कहना है कि इस बीमारी का सबसे बड़ा कारण तापमान यानी गर्मी है। जब तापमान बढ़ता है, मरीजों का बढ़ना शुरू हो जाता है और तापमान के घटते ही घटने लगती है मरीजों की संख्या।




बुधवार, 8 अप्रैल 2015

दो सौ से अधिक कौओं की मौत, बर्ड फ्लू की आशंका / MORE THAN 200 CROWS DEAD


-शीतांशु कुमार सहाय
झारखण्ड राज्य के खूटी जिलान्तर्गत कर्रा थाना परिसर स्थित पेड़ों पर बैठे दो सौ से अधिक कौओं की अचानक हुई मौत से लोगों में दहशत का आलम है। लोगों को इस बात का भय सता रहा है कि कहीं यह बर्ड फ्लू की निशानी तो नहीं है। जानकारी के अनुसार, थाना परिसर में लगे पेड़ों पर कौए तथा अन्य पक्षी रात को अपना बसेरा बनाते हैं। मंगलवार 7 अप्रैल 2015 की शाम को भी लोगों ने पक्षियों की चहचहाट सुनी, पर सुबह लोगों ने देखा कि पेड़ों के नीचे दौ सौ से अधिक कौए मरे पड़े हैं। आधा दर्जन चील की भी मौत हो गयी। पक्षियों की इस तरह की अचानक मौत से लोग अचम्भित तो हैं ही, उन्हें इस बात का भय सता रहा है कि यह कोई बड़े खतरे की घण्टी तो नहीं है। खूँटी क्षेत्र में किसी पक्षी विशेषज्ञ के नहीं रहने के कारण कौओं की मौत का कारणों का पता नहीं चल सका है।

मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

चितरंजन और वाराणसी की तर्ज पर विकसित होगा मढ़ौरा : रुडी / MARHAURA DIESEL LOCOMOTIVE (Rail Engine) FACTORY


-100 इंजन प्रतिवर्ष की क्षमता होगी मढ़ौरा रेल डीजल इंजन कारखाने की
-वाराणसी लोकोमोटिव कारखाने से बेहतर है मढ़ौरा रेल डीजल इंजन कारखाना

जिस प्रकार लोकोमोटिव कारखाने की वजह से चितरंजन और वाराणसी का विकास हुआ ठीक उसी प्रकार सारण जिले का मढ़ौरा भी अब देश के पटल पर अपनी एक अलग पहचान बनायेगा। इंजन कारखाने की शुरूआत से रेल नेटवर्क में मढ़ौरा ही नहीं सारण की अपनी पकड़ बढ़ जायेगी। इसकी वजह से क्षेत्र की आधारभूत संरचना का विकास होना भी तय है। प्रधानमंत्री व स्थानीय सांसद-सह-केन्द्रीय मंत्री राजीव प्रताप रुडी मिलकर इस कार्यक्रम को मुकाम तक पहुँचाने में लगे हैं। मढ़ौरा इंजन कारखाने से लगभग एक़ लाख लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलेगा। गौरतलब है कि बिहार के विकास को लेकर केन्द्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली की अध्यक्षता में केन्द्र सरकार के मंत्रियों की एक उच्चस्तरीय बैठक नई दिल्ली के नॉर्थ ब्लॉक स्थित वित्त मंत्रालय के कार्यालय में सोमवार 6 अप्रैल 2015 को हुई थी, जिसमें बिहार के विकास की रूपरेखा तय की गई। बैठक में राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, केन्द्रीय मंत्री राजीव प्रताप रुडी, ऊर्जा मंत्री पीयुष गोयल, पेट्रॉलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान, मानव संसाधन विकास मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी, केन्द्रीय मंत्री राम कृपाल यादव, केन्द्रीय मंत्री गिरीराज सिंह, केन्द्रीय मंत्री डा॰ महेश शर्मा, केन्द्रीय मंत्री अशोक गजापति एवं रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा के अलावा अन्य वरिष्ठ मंत्री व सभी विभागीय सचिव उपस्थित थे। उक्त बातों की जानकारी केन्द्रीय कौशल विकास एवं उद्यमिता (स्वतंत्र) प्रभार-सह-संसदीय कार्य राज्य मंत्री राजीव प्रताप रुडी ने मीडिया को दी।  
श्री रुडी ने कहा कि औद्योगिक क्षेत्र के रूप में पूरे बिहार में पहचान रखनेवाले मढ़ौरा का रेल डीजल इंजन कारखाना रेलवे की आय को बढ़ानेवाली एक महत्त्वपूर्ण परियोजना है। यह फैक्ट्री वाराणसी की डीजल लोकोमोटिव कारखाने से कई मामले में बेहतर है। इस परियोजना के पूरा हो जाने पर उच्च क्षमता व हाई स्पीडवाले करीब 100 इंजन प्रतिवर्ष निर्मित होंगे जिनकी बिक्री देश के अलावा दूसरे देशों को भी की जानी है। हाई स्पीडवाली डीजल लोकोमोटिव (इंजन) की दुनियाभर में माँग हीं मढ़ौरा की इस परियोजना को रेलवे की एक महत्त्वपूर्ण परियोजना बनाती है। बैठक में स्थानीय सांसद-सह-केन्द्रीय मंत्री श्री रुडी ने सारण जिले की वैसी लंबित विभिन्न योजनाओं से वित्त मंत्री को अवगत कराया जिनके कार्यान्वयन से बिहार के विकास को गति मिल सकती है। केन्द्रीय मंत्री ने बताया कि राज्य में केन्द्र सरकार की विभिन्न परियोजनाओं के लंबित होने का मुख्य कारण भूमि अधिग्रहण में राज्य सरकार की उदासीनता रही है।
श्री रुडी ने इस बात पर दुःख व्यक्त किया कि लालू प्रसाद यादव जब रेलमंत्री थे तब कारखाने की घोषणा के साथ-साथ भूमि अधिग्रहण शुरू करवाया था पर जब इसके लिए धन की आवश्यकता पड़ी, तब योजना को किनारे लगा दिया गया। आज नीतीश कुमार भी भूमि अधिग्रहण का विरोध कर बिहार की जनता के साथ राजनीति कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अन्य स्थानों की तरह मढ़ौरा में कारखाने के लिए जमीन प्राप्त करने में कोई परेशानी नहीं है। यहाँ लोग बिना किसी विरोध के रेलवे को भूमि देने के लिए तैयार हैं परन्तु कुछ लोग अपनी राजनीति की रोटी सेंकने के लिए क्षेत्र के विकास में अवरोध उत्पन्न कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि पूर्व में भी श्री रुडी ने मढ़ौरा की विभिन्न योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए पूर्ववर्ती केन्द्र की संप्रग सरकार से लेकर राज्य सरकार तक प्रयास किया था परन्तु पूर्ववर्ती सरकारों की संवेदनहीनता के कारण कभी भी ये योजनाएँ फलीभूत नहीं हो पायीं। श्री रुडी ने कहा कि केन्द्र का लक्ष्य राज्य की भौगोलिक दशा और दिशा को ध्यान में रखकर विकास के विविध प्रारूपों के नियोजन और कार्यान्वयन से समग्र विकास का लक्ष्य हासिल करना है। इसके अतिरिक्त बिहार के विकास के संदर्भ में उन बुनियादी शर्तों को भी पूरा करने का है जिसमें अंतिम व्यक्ति का हित सर्वोपरि हो। श्री रुडी के प्रवक्ता धनंजय तिवारी ने यह जानकारी दी।

शनिवार, 4 अप्रैल 2015

झारखण्ड के मुख्यमंत्री, मंत्रियों, विरोधी दल के नेता व विधायकों के वेतन में दुगुनी वृद्धि / Doubling the salaries of Jharkhand Chief Minister, Ministers, Opposition leader and legislators



-शीतांशु कुमार सहाय / Sheetanshu Kumar Sahay           
अभी कुछ ही दिन हुए हैं झारखण्ड में भारतीय जनता पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार बने हुए। तीन महीने से भी कम समय में रघुवर सरकार ने झारखण्ड के माननीयों के वेतन भत्ते को बढ़ाने हेतु समिति का गठन भी कर दिया। और तो और 13 मार्च 2015 को गठित इस समिति ने मात्र 12 दिनों के अंदर ही अपनी रिपोर्ट भी सौंप दी। 24 मार्च को सौंपे गये रिपोर्ट को यदि सरकार अक्षरशः लागू करती है तो झारखण्डी माननीयों का वेतन भत्ता लगभग दोगुना हो जायेगा। वर्तमान में विधानसभा अध्यक्ष व मुख्यमंत्री को 1 लाख 33 हजार रूपये बतौर वेतन भत्ता मिलता है जो समिति के अनुशंसा के अनुसार बढ़कर 2 लाख 20 हजार रूपये प्रतिमाह हो जायेगा। वहीं मंत्रियों व नेता विपक्ष का वेतन भत्ता 1 लाख 17 हजार से बढकर 2 लाख 10 हजार हो जायेगा तो विधायकों को मिलने वाला वेतन भत्ता 96 हजार रूपये से बढ़कर 1 लाख 75 हजार रूपये हो जायेगा। माननीयों के लिए अच्छे दिन लाने वाले इस वृद्धि से झारखण्ड सरकार पर सलाना 80 करोड़ रूपये का अधिक बोझ पड़ने का अनुमान है।
गौरतलब है कि 15 नवंबर 2000 में झारखण्ड बनने के बाद से यहां के विधायकों के वेतन भत्ते में 3 बार वृद्धि की जा चुकी है। गरीब जनता वाले इस राज्य के माननीयों के वेतन में सबसे पहली वृद्धि 21 दिसंबर 2001 को हुई। पुनः 21 सितंबर 2005 और 3 सितंबर 2011 को इनके लिए वेतन भत्ते में वृद्धि करनी पड़ी। इस बार गरीब गुरबों की बात करने वाली मासस के विधायक अरूप चटर्जी के नेतृत्व में बनी विधानसभा समिति ने मात्र 12 दिनों में ही अपनों के वेतन भत्ते में वृद्धि की सिफारिश कर दी। इस समिति के कार्य करने की तीव्रता को देखकर लोगों के मन में एक आह बरबस आ ही जाता है कि काश! झारखण्ड के विकास के लिए बने में हर इक योजना पर इतनी तीव्रता से काम होता तो आज झारखण्ड का कायाकल्प ही हो जाता है। बात सिर्फ इतनी सी नहीं है कि झारखण्डी माननीयों के वेतन भत्ते में वृद्धि हो रही है। इस वृद्धि की सबसे बड़ी बात यह है कि विधायकों के वेतन वृद्धि के घोर विरोधी रहे भाकपा माले के पूर्व विधायक विनोद सिंह की अनुपस्थिति में इस वृद्धि का किसी भी विधायक ने विरोध करने का साहस तक नहीं दिखाया। विनोद सिंह के पहले विधायकों के वेतन वृद्धि का विरोध उनके पिता भाकपा माले के ही पूर्व विध्ाायक स्वर्गीय महेन्द्र सिंह किया करते थे।
अभी कुछ ही दिन हुए थे जब सरकार ने अपने मंत्रियों के एसयूवी गाड़ी खरीदने की स्वीकृति दी थी। झारखण्ड की जनता जानना चाहती है कि जिस राज्य के बहुसंख्यक लोगों को एक अदद साइकिल तक नसीब नहीं होती है वहां के मंत्रियों के लिए इतनी महंगी गाड़ियों की आवश्यकता भला क्या है ? यह सर्वविदित है कि खनिज संपदा के मामले में धनी इस राज्य के 40 प्रतिशत से भी अधिक की आबादी जहां दो जून रोटी के संघर्षरत है। किसान आज भी खेती के लिए मानसून पर ही आश्रित हैं। आज भी झारखण्ड में सिंचाई की स्थिति राज्य बनने के पहले जैसी ही है भले ही सरकारी आंकड़े कुछ कहते हों। मानसून के साथ जुआ खेलते हुए किसान किसी तरह साल में एक बार ही फसल उपजा पाते हैं। किसान कहना चाहती है काश! हमारे बारे में हमारी सरकार ने ऐसे ही तेजी से काम किया होता तो आज हम भी समृद्धि के मामले में पंजाब और हयिाणा के किसानों का टक्कर दे रहे होते। सरकारी कार्यालयों में वर्षों से पड़े रिक्त पदों को सरकार फंड के अभाव में भर नहीं पा रही है। नगरपालिकाओं में तो आजादी के बाद से बहाली तक नहीं हो पाई है। ऐसे में झारखण्डी माननीयों के वेनत भत्ते में वृद्धि आम आदमी के मन में निश्चित ही टीस पैदा करती है।
पता नहीं ऐसा क्यों है कि हर मसले पर अपनी अलग-अलग राय रखने वाले तमाम राजनीतिक दल माननीयों के वेतन भत्ते में वृद्धि के मामले में इतनी एकजुट कैसे हो जाती है ? झारखण्ड के अधिकतर विभागों की स्थिति ऐसी है कि वर्षों से यहां कम्प्यूटर ऑपरेटर का पद तक सृजित नहीं किया जा सका है जबकि आज के युग में कम्प्यूटर के बिना किसी भी विभाग का काम चल नहीं सकता है। 400-500 रूपये दैनिक की दर से अनुबंध्ा पर वर्षों से काम करने वाले कम्प्यूटर ऑपरेटर आज भी अपने कार्यालय के बॉस के रहमोकरम पर कार्य कर रहे हैं। सबसे दुखद बात यह कि झारखण्ड बनने के 14 वर्ष बीत जाने के भी आज तक किसी भी सरकार ने अनुबंध पर काम करने वाले इन कम्प्यूटर ऑपरेटरों के लिए श्रम विभाग में मानदेय की दर निर्धारित करना भी जरूरी नहीं समझा। ऐसे में इन बेचारों के मन में विधायकांे के वेतन भत्ते में हो रही वेतन वृद्धि पर प्रश्न उठना स्वभाविक है।
झारखण्ड में वर्षों से शिक्षा का अलख जलाने वाले पारा शिक्षकों के वेतन वृद्धि व स्थायीकरण के मुद्दे पर हरेक सरकार ने इन्हें केवल आश्वासन का घूंट पिलाने का ही काम किया है। झारखण्ड सरकार के द्वारा इनके समस्याओं के निराकरण के लिए समिति बनाई गई। पर समिति की सिफारिश का कुछ पता नहीं। ऐसे कितनी ही समितियां हैं जिनके द्वारा सालों से कोई रिपोर्ट नहीं दी गई है। कई बार तो पिछली सरकारों ने माना कि पारा शिक्षकों को स्थायी करना संभव नहीं है क्योंकि इससे राज्य सरकार पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ बढ़ेगा। भला ऐसे में पारा शिक्षकों से ईमानदारीपूर्वक कार्य करने की आशा कैसे की जा सकती है। आज वर्षों से पारा शिक्षक के रूप में कार्य कर सरकार नौकरी प्राप्त करने की उम्र सीमा खो चुके हजारों युवाओं के मन से एक ही सवाल उठ रहा है क्या मानीनयों के वेतन भत्ते में होने वाली वृद्धि से राज्य सरकार पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ नहीं पड़ेगा ? माननीयों के वेतन भत्ता में वृद्धि पर पारा शिक्षका संघ के प्रदेश नेता विक्रांत ज्योति कहते हैं कि लोकतंत्र में आज राजा हित प्रजा हित से ऊपर हो चुका है। यही कारण है कि वर्षों से कार्य करने वाले पारा शिक्षकों की समस्याओं के समाधान के बदले सरकार और विपक्ष अपने हित पर काम करने में मशगुल हैं। पारा शिक्षकों की बात छोड़ दीजिये आज सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले मासूमों के मन में भी सवाल उठ रहा है। देश के भावी कर्णध्ाार अपने भाग्य विधाताओं से पूछ रहा है कि पैसे के अभाव में हमारे छात्रवृत्ति व पोशाक में कटौती की जाती है तो ऐसे में आपके वेतन वृद्धि के लिए पैसे कहां से आ जाते हैं ? अभी-अभी विधानसभा में मुख्यमंत्री रघुवर दास ने बयान दिया कि मनरेगा कर्मियों के मानदेय में वृद्धि करने की कोई योजना सरकार के पास नहीं है। अर्थात् रोजगार सेवकों का मानदेय बढ़ने वाला नहीं हैं। भला ऐसे में अनुबंध पर काम करने वाले रोजगार सेवक अपने भाग्य निर्माताओं से पूछ ही सकता है कि माननीयों के वेतन भत्ते में वृद्धि के मामले में रघुवर राज में ऐसा रवैया क्यों नहीं अपनाया जाता है ?
अभी हाल ही की बात है। यहां वर्षों से झारखण्ड शिक्षा परियोजना परिषद् के अध्ाीन प्रखंड साधन सेवी व संकुल साधन सेवी यानि बीआरपी व सीआरपी कार्य कर रहे हैं। शिक्षाधिकार कानून के मुताबिक इस पद पर आसीन व्यक्तियों के लिए बीएड या समकक्ष की डिग्री होना आवश्यक माना गया है। अनुमानित तौर पर पूरे राज्य मे लगभग 4000 बीआरपी-सीआरपी कार्यरत हैं जिनमें से प्रशिक्षित की संख्या मात्र 500 के आसपास है। अप्रशिक्षित बीआरपी-सीआरपी के लिए जब प्रशिक्षण की बात आई तो परियोजना के कार्यकारिणी ने वित्तीय भार का हवाला देते हुए फैसला लिया कि अप्रशिक्षित बीआरपी-सीआरपी को प्रशिक्षित किया जायेगा, लेकिन उनके प्रशिक्षण में होने वाले व्यय का वहन संबंधित बीआरपी-सीआरपी करेंगे। विदित हो कि इन अप्रशिक्षित बीआरपी-सीआरपी को प्रशिक्षण कराने में अनुमानित तौर पर बमुश्किल केवल 5 करोड़ रूपये ही खर्च होना है। अब भला जिस राज्य की सरकार अपने माननीयों के वेतन भत्ते के लिए सलाना 80 करोड़ रूपये का अतिरिक्त बोझ झेल सकती है तो बीआरपी-सीआरपी के लिए केवल 5 करोड़ रूपये खर्च नहीं कर सकती है ? ऐसे में उम्र के बेकाम पड़ाव में पहुंचे ऐसे युवाओं के मन में भी सवाल है कि हमारे माननीय क्या केवल अपने बारे में ही सोचते रहेंगे ? जिस शिक्षा विभाग का काम आज बीआरपी-सीआरपी के बिना चल नहीं सकता है उस पद को स्थायी करने की जहमत भी किसी सरकार ने नहीं उठाया जबकि इस पद की स्वीकृति आरटीई में भी है जिसमें इस पद को संकुल समन्वयक का नाम दिया गया है।
लोकसभा चुनाव 2014 के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने ‘अच्छे दिन आयेंगे’ का नारा दिया था। जनता का तो पता नहीं पर वेतन भत्ते में वृद्धि के द्वारा झारखण्ड के माननीयों के लिए अच्छे दिन लाने की तैयारी की जा रही है। लोकसभा चुनाव के समय भाजपा ने एक और नारा दिया था- ‘सबका साथ, सबका विकास‘। माननीयों के वेतन वृद्धि के मामले को देख कर आम आदमी अपने निजाम से पूछ रही है क्या यही है सबका साथ, सबका विकास। आम आदमी कह रहा है कि अपनी वेतन वृद्धि के मामले में भाजपा ने सबका यानि सभी विध्ाायकों का साथ मिला और सभी विधायकों के वेतन में होने वाली वृद्धि से सबका विकास भी हो जायेगा। आम आदमी सोच रहा है हमारी सरकार ने अपने लोगों यानि विधायकों के लिए तो यह नारा सच कर दिखाया। अब देखना है कि राज्य की जनता के लिए यह नारा कब और कितना सार्थक सिद्ध हो पाता है ? 

हनुमान जयन्ती पर आरोग्यभारत की ओर से असीम शुभकामनाएँ ! / Limitless Greetings from the Arogyabharat on Hanuman Jayanti 2015



चैत्र पूर्णिमा के दिन भगवान शिव के रुद्रावतार भगवान हनुमान की जयन्ती मनायी जाती है। इस अवसर पर भगवान हनुमान सभी भक्तों पर असीम कृपा का वर्षण करें! आरोग्यभारत की चाहत है कि बजरंगबली सब पर अनुकम्पा बनाये रखें और उनकी चाहत पूरी करें। आरोग्यभारत का निःशुल्क उपयोगवाला indian-hospitals.in शीघ्र ही आरम्भ होनेवाला है। इस पर भारत के सभी राज्यों के सभी जिलों में उपलब्ध सम्पूर्ण स्वास्थ्य सुविधाएँ एक साथ उपलब्ध होंगी। आरोग्यभारत से जुड़ें और भारत सरकार द्वारा घोषित ‘डिजिटल इण्डिया आन्दोलन’ को मजबूती प्रदान करें।