-अमित कुमार नयनन
राम-कृष्ण अब झगड़ पड़े हैं,
बात-बात पर बिगड़ पड़े हैं;
कौन समझाये इन को आखिर
अवतार-पुरुष सब से बड़े हैं।
देख रहे कलियुग में आकर
पाप के नये-नये रास रचाकर,
लाइन में इस के हर एक खड़े हैं;
लगता है कल्कि के आने तक
कर अपना फैसला ख़ुद डालेंगे,
अवतार-पुरुष होने का नाता;
‘कल्कि’ को माना है भ्राता,
दुःख है समय से पहले हर डालेंगे।
कहते राम-कृष्ण घबराये हुए हैं,
पर देखते हैं कि
यहाँ तो कल्कि पहले से ही
अवतार महासम्मेलन बुलाये हुए हैं।
ऐ कल्कि!
अपनी तुम गद्दी बचा लो,
समय से पहले कल्कि-युग बुला लो।
यह कलियुग बड़ा इतरा रहा है,
तेरी इज़्ज़त बिखड़ा रहा है,
कल्कि-युग का दे दिलासा
कलियुग से भगा रहा है।
देख नहीं रहे,
कभी नहीं कोई भागा था इतना तेज
जितनी तेज यह भाग रहा है।
जब कोई नहीं बचेगा
तो वहाँ जाकर तू ख़ाक
मानवता के दुश्मनों को डसेगा।
अरे!
केवल पन्नों पर ही अपने अक्षर सँवारेगा,
तो याद रख वहाँ तू केवल मच्छर मारेगा।
याद रख कल्कि!
हमें स्थान भले ही युगों ने दिया है,
पर हम ने नहीं कभी ख़ुद का युगों में जिया।
यह अकाट्य सच है कि
हम ने युगों के घर में रहकर भी
हमेशा उन पर शासन किया है।
इतिहास ने हमेशा ही
हमें सार्वभौमिक और सार्वकालिक पाया है,
इस सत्य को आज तक
कोई नहीं झुठला पाया है।
मगर यह युग आज हमें झुठला रहा है;
कल्कि-युग का दिलासा दे
तुम्हें कलियुग से भगा रहा है।
इसलिए मेरी मानो,
समय से पहले कल्कि-युग बुला लो;
सारा सेहरा अपने नाम करवा लो।
-परशूराम ने डाँट लगायी,
साथ ही प्रेमपूर्वक सारी बात समझायी।
बात अवतारों को जँच गयी,
जो कि कलियुग तक भी पहुँच गयी।
कलियुग अवतारों की शक्ति जानता था;
जो युग-काल से ऊपर जीते हैं,
उन्हें भली-भाँति पहचानता था।
वह अविलम्ब महासम्मेलन में प्रकट हुआ-
हुजूर!
मेरे हेतु यह हाल विकट हुआ
मगर क्या करूँ?
मैं मज़बूर हूँ,
पाप के भार से चूर हूँ;
आपन बिना सोचे-समझे
तीनों युगों का भार मुझ पर डाल दिया है,
एक बार में कर बेहाल दिया है।
अब और ज़्यादा भार उठाने की
मुझ में शक्ति नहीं है,
मुझ में भी भक्ति नहीं है,
जो मेरे भाई सत्, त्रेता और द्वापर की आप में थी;
मगर याद रखिये-
हर एक की स्थिति दूसरे से बदला भी।
तीनों ने उत्तरोत्तर अधिक दुःख पाया है,
उन्हें आपन अपनी अँगुलियों पर नचाया है।
सारे भक्त आ गये नज़र में,
मगर इस ‘युग-भक्त’ का
आज तक न उद्धार हो पाया है।
मुझे जितना पिटना है, पिटिये,
सरेआम जलील कर घसीटिये;
मगर आज मैं फैसला कर ही लौटूँगा
या फिर यहीं मर मिटूँगा।
‘भठयुग’ आये न आये,
मुझे अफसोस न होगा;
मगर उसे दुःख उठाना पड़ा,
ऐसा कोई आक्रोश न होगा।
अवतार बड़ी दुविधा में थे,
कलियुग की भाँति विपदा में थे।
नरसिंह ने जुबान खोली-
कलियुग का संकट हल हो गया;
व्यर्थ ही मन बेकल हो गया।
मन में इक राह सूझी है,
मानव की छोटी बुद्धि है;
क्यों न इन्हें लड़वाकर ख़त्म कर डालें,
सेहरा अवतारों के सिर मढ़वा लें।
साथ ही
भठयुग का दुःख कलियुग को दे डालें,
सुखी बना भठयुग को डालें।
कलियुग को भाई की चिन्ता है,
इस तरह यह मसला भी हल हो जायेगा;
साथ ही भ्रातृ-पुण्य उठा
अवतारों से उपहारस्वरूप युग में जन्म पुनः जायेगा।
इस तरह एक पन्थ दो काज हो जायेगा,
कलियुग सुखी साथ ही
कल्कि अवतार हो जायेगा।
कलियुग ने सिर ठोक लिया,
अवतारों ने फिर पोट लिया;
भठयुग का बोझ भी अब लद चुका था।
अवतारों ने अपनी ख़ातिर
कलियुग को मरवा डाला;
कल्कि-युग दे युग का दिलासा,
पुनः हरा युगों को डाला।
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