गुरुवार, 8 अगस्त 2024

कल्कि 2898 एडी के निर्माण से पूर्व अमित कुमार नयनन की प्रकाशित रचनाएँ Published Works of Amit Kumar Nayanan Before The Production of Kalki 2898 AD


सुप्रिय पाठकों, आप सात अगस्त 2024 के पोस्ट में पढ़ चुके हैं कि हिन्दी कहानीकार अमित कुमार नयनन ने अपनी कहानी के चोरी होने का आरोप चर्चित फिल्म 'कल्कि 2898 एडी' के निर्देशक और निर्माता पर लगाया है। साथ ही उन्होंने इस सम्बन्ध में कई प्रमाण भी दिये हैं। अपने प्रमाणों के आधार पर अमित कुमार नयनन ने पटना जिला एवं सत्र न्यायालय में एक मुकदमा भी दायर किया है। नयनन की ओर से अधिवक्ता संजय कुमार सिंह हैं। इस के पूर्व फिल्म के निर्माण से जुड़े लोगों को कानूनी नोटिस भी भेजी गयी थी जिस पर कोई प्रत्युत्तर प्राप्त नहीं हुआ। 

     इस सम्बन्ध में अधिवक्ता संजय कुमार सिंह का कहना है कि आखिर कोई कहानीकार अपनी रचना किस प्रकार सुरक्षित रखे? काॅपीराइट वाली कहानियों को भी चुराकर अपनी रचना बताकर लोग फिल्म बना रहे हैं। यह निश्चित रूप से अपराध है। क्यों फिल्म वाले कहानीकार को क्रेडिट नहीं देना चाहते? अधिवक्ता संजय कुमार सिंह ने आश्चर्य जताया कि हाल के दशकों में निर्देशक ही कहानीकार हो गये हैं।  फिल्मी दुनिया से किस षड्यन्त्र के तहत कहानीकार दूर कर दिये गये? आखिर इस के पीछे राज क्या है? उन्होंने कहा कि मुकदमे के ट्रायल के दौरान इस राज पर से पर्दा उठाया जायेगा। उन्होंने कहा कि अमित कुमार नयनन द्वारा दायर मुकदमा सभी कहानीकारों के हक़ में है। 

फिल्म 'कल्कि 2898 एडी' के निर्माण की घोषणा से पूर्व अमित कुमार नयनन की सम्बन्धित रचनाएँ https://sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.com/ और https://aknayan.blogspot.com/ पर प्रकाशित हुई थीं। इन रचनाओं को आप नीचे दिये गये लिंक पर पढ़ सकते हैं.....

1) The Great God : The Additional Features--- http://aknayan.blogspot.com/2024/08/the-great-god-additional-features.html

2) कोरोना वायरस Coronavirus--- https://sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.com/2020/04/coronavirus.html

3) कोरोना वायरस (2) Coronavirus (Episode-2)--- https://sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.com/2020/04/coronavirus-episode-2.html

4) कोरोना वायरस (3) कलियुग के ऋषियों की तपस्या का परिणाम--- https://sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.com/2020/05/coronavirus-3-result-of-sagess-penance.html

5) Corona Thought (1)--- https://sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.com/2020/05/coronavirus-thought-1.html

6) Corona Thought (2)--- https://sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.com/2020/05/coronavirus-thought-2.html

7) त्रेता का नेता Treta Ka Neta--- https://sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.com/2020/05/blog-post.html

8) ए प्रभु A Prabhu--- https://sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.com/2020/05/blog-post_7.html

9) अवतार पुरुष Avatar Purush--- https://sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.com/2020/05/avatar-purush.html

10) Madmax--- http://aknayan.blogspot.com/2023/09/madmax.html

11) अमित कुमार 'नयनन' की वृहद् रचना 'द गाॅड' का प्रकाशन शीघ्र--- https://sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.com/2017/04/amit-kumar-nayans-massive-composition.html?m=0

     अमित कुमार नयनन का स्पष्ट रूप से यह आरोप है कि उन की वेबसाइट पर उपर्युक्त प्रकाशित रचनाओं में से तथ्यों को चुराकर बिना उन की सहमति के और बिना उन्हें पारिश्रमिक दिये 'कल्कि 2898 एडी' में उपयोग किये गये हैं। यह आपराधिक कृत्य है। 

     फिल्म 'कल्कि 2898 एडी' पर कहानी चोरी के आरोप वाला 7 अगस्त 2024 का पोस्ट इस लिंक पर क्लिक करके पढ़ें.....

https://sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.com/2024/08/2898-kalki-2898-ad-accused-of-story.html?m=0

बुधवार, 7 अगस्त 2024

योग दिवस : विश्वगुरु का आधुनिक अभियान 2015 से आरम्भ



-शीतांशु कुमार सहाय
     विश्व ने रविवार 21 जून 2015 को प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया। पूरे विश्व के लोग इस दिन भारतीय योगियों के आदेश पर झुकते रहे, उठक-बैठक करते रहे, हाथ-पैर मोड़ते रहे और अपूर्व शान्ति के लिए सृष्टि के प्रथम अक्षर ‘ऊँ’ का पवित्र उच्चारण कर धरती से अन्तरिक्षपर्यन्त पावनता का वातावरण कायम करते रहे। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ, जब विश्वविरादरी एक साथ एक ही कार्य किया हो। इस विश्व कीर्तिमान से हम भले ही प्रसन्न हो जायें और प्रसन्न होने का विषय भी है, पर हमसे अधिक प्रसन्नता उसे है जिसने हमें धरती पर भेजा। जगद्नियन्ता भगवान मनुष्य के इस सामूहिक प्रयास से निश्चित ही बेहद प्रसन्न हैं; क्योंकि ऐसी सकारात्मक सामूहिकता विश्वविरादरी ने इससे पूर्व कभी नहीं दिखायी। विश्व को ज्ञान का प्रथम प्रकाश देनेवाला भारत ‘विश्वगुरु’ के रूप में जाना जाता रहा है। अपने उसी रूप को पुनः भारत ने प्रदर्शित किया है, बिना किसी आर्थिक लाभ लिये ही विश्व को योग का अमूल्य उपहार प्रदान किया है। विश्वव्यापी अशान्ति के बीच अमोघ शान्ति का मूलमन्त्र दिया है। शस्त्रास्त्रों की होड़ को समाप्त करने का सूत्र दिया है। पतित होकर गर्त्त में गिर रहे मनुष्य को पावनता के शिखर पर पहुँचने का सोपान उपलब्ध कराया है। रिश्ते-नातों को भूलकर हर किसी से काम-पिपासा को तृप्त करनेवालों को तृप्ति का नया साधन सुलभ कराया है, जहाँ की नैतिकता कभी अनैतिकता का अवलम्बन प्राप्त नहीं करती।
मनुष्य को भगवान बनानेवाले योग के विश्व दिवस के आगाज का समय बड़ा ही पावन है। अभी विश्व में प्रचलित सबसे प्राचीन वैज्ञानिक दिनपत्री (कैलेण्डर) विक्रम सम्वत् के अनुसार 21 जून 2015 को आषाढ़ अधिमास की पंचमी तिथि है। अधिमास को मलमास या पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं जिस दौरान देवाराधना का विशेष महत्त्व होता है। यों हिजरी सम्वत् 1436 का सबसे पवित्र महीना रमजान चल रहा है और प्रत्येक मुसलमान इस पूरे महीने में (योग के नियमानुसार ही) संयमित-संस्कारित जीवन व्यतीत करते हैं, अल्लाह की उपासना में समय बिताते हैं। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि योग दिवस मनाने पर जब संयुक्त राष्ट्रसंघ में मतदान हुआ तो विश्व के 177 देशों ने भारत के इस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया था जिनमें 47 इस्लामी देश हैं। वैसे भी सनातनी (हिन्दू) से अधिक योग मुसलमान करते हैं जो प्रतिदिन 5 बार वज्रासन में बैठकर अल्लाह की खिदमत करते हैं, नमाज पढ़ते हैं और चरण स्पर्श की मुद्रा में सिर भी झुकाते हैं। इसी तरह भारतीय निर्देशन में अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर विश्व ने असीम शान्ति के लिए परवरदीगार के सामने सिर झुकाया।
भारतीय मनीषियों द्वारा प्रदत्त अमूल्य सांस्कृतिक उपहार योग को आत्मसात् कर विश्व के सभी देश धन्य हो गये! धन्य हैं भारत के वे सभी योगी भी जिन्होंने सभी देशों में जाकर 21 जून 2015 को उन देशों के निवासियों को योग करवाया और इसके मर्म को समझाया। हालाँकि अँग्रजों ने लगभग 200 वर्षों तक भारत को न केवल लूटा; बल्कि इसके तमाम तकनीकों, उत्पादन इकाइयों, राष्ट्रीय व धार्मिक एकता को तहस-नहस किया। यों निर्यातक देश भारत आयातक बन गया। विश्वगुरु भारत दीन-हीन दीखने लगा। पर, अब स्थितियाँ बदल रही हैं, इसमें प्रत्येक भारतीय अपना सहयोग दे तो फिर से भारत विश्वगुरु बन सकता है। वैसे 21 जून 2015 को विश्वविरादरी को योग के भारतीय वरदान से अभिसिक्त कर हमने विश्वगुरु बनने की राह पर एक आधुनिक कदम आगे बढ़ा दिया है। शीघ्र ही हम आयुर्वेद के प्रति भी ऐसा ही करनेवाले हैं और उसके बाद कई और कदम बढ़ाये जायेंगे, बस सरकार के सही कदम का साथ देते जाइये। कई ऐसी बातें हैं जिन्हें बोलकर या लिखकर बताना उचित नहीं, सही समय पर सही व्यावहारिक कदम ही उठाये जायेंगे और यही उचित भी है। मैं 1991 से लगातार योग कर रहा हूँ और औषधिविहीन जीवन जी रहा हूँ। बहुत आवश्यक होने पर ही औषधि का सेवन करता हूँ। ....तो मानिये मेरी सलाह और प्रतिदिन योग करें और योग के पश्चात् श्रीमद्भगवद्गीता के कुछ श्लोक अर्थ सहित अवश्य पढ़ें, शेष कार्य भगवान करते जायेंगे। इति शुभम्!


कल्कि 2898 एडी पर कहानी चोरी का आरोप, मुकदमा दर्ज Kalki 2898 AD Accused of Story Theft, Case Registered

 

     अमित कुमार नयनन की बहुप्रतिक्षित रचना 'टीजी -द गाॅड-द ग्रेट गाॅड' एक अद्भुत व अभूतपूर्व रचना है। यह वर्षों के रिसर्च से तैयार अमूल्य रचना है। इस की सुरक्षा हेतु कोर्ट में सन् 2008 से ही 8 कहानियों के लिए सूचना-पत्र दर्ज है। इस अति महत्त्वपूर्ण रचना पर फिल्म निर्माण के लिए सन् 2008 ईस्वी से प्रख्यात अभिनेता अमिताभ बच्चन को वर्षों से उन के विश्वस्त सूत्रों के माध्यम से अमित कुमार नयनन द्वारा प्रेषित की जा रही थी। इतना कुछ होने के बावजूद नयनन की यह कहानी चोरी कर ली गयी और इस पर एक चर्चित फिल्म का निर्माण किया गया जो पिछले दिनों 'कल्कि 2898 एडी' के नाम से प्रदर्शित की गयी। कथित चोरी की कहानी पर बनी यह फिल्म करोड़ों रूपये की कमाई कर चुकी है। 

     अमित कुमार नयनन का कहना है कि 20 सितंबर 2008 को अमिताभ बच्चन के वेबसाइट 'बिग अड्डा डाॅट काॅम' पर उन्होंने बच्चन से संपर्क किया था तथा 'टाइमजी' के नाम से स्वयं और अमिताभ बच्चन के बीच नाट्य-भूमिका भी लिखी थी। इस रचना को 12 मार्च 2009 को उन्होंने बच्चन के पते पर भेजा था तथा अगले दिन 13 मार्च 2009 को फिल्म राइटर्स एसोसिएशन से उसे रजिस्टर्ड भी कराया था। तब से आजतक रिसर्च के दौरान कहानी जितनी बार भी परिवर्तित और परिवर्द्धित हुई, वह अंश भी विश्वस्त सूत्रों के माध्यम से अमिताभ बच्चन तक पहुँचायी गयी। ऐसा अमित कुमार नयनन कहते हैं। दशकों के रिसर्च से बनी अपनी कहानी के चोरी होने से व्यथित अमित आगे कहते हैं कि वह रचना के अपग्रेडेड वर्जन का भी 13 अगस्त 2013 को रजिस्ट्रेशन कराया। इस के बाद 11 फरवरी 2014 को इस कहानी का काॅपीराइट रजिस्ट्रेशन हुआ। कहानी की सुरक्षा के तमाम कानूनी प्रक्रियाओं के बाद भी अमित को बिना सूचित किये उन की कहानी पर  चोरी-छिपे 'प्रोजेक्ट के' के नाम से फिल्म बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी और प्रदर्शित होते समय नाम बदलकर 'कल्कि 2898 एडी' कर दिया गया। लेखक की जगह अमित कुमार नयनन का नाम नहीं है; बल्कि पर्दे पर और सभी प्रचार सामग्रियों पर निर्देशक नाग अश्विन ने अपना ही नाम प्रदर्शित किया है। फिल्म मे प्रभास, अमिताभ बच्चन, कमल हासन, दीपिका पादुकोण, दिशा पाटनी और ब्रह्मानंदम मुख्य भूमिकाओं में शामिल हैं। 

     अमित कुमार नयनन के अनुसार, उन की विस्तृत शोध पर आधारित इस कहानी को एक फिल्म में समेट पाना सम्भव नहीं है। नयनन की इस  बात और बल मिला जब 'कल्कि 2898 एडी' का निर्माण करनेवाली संस्था वैजयन्ती मूवीज और निर्माता सी. अश्विनी दत्त की ओर से इस के दूसरे भाग की शूटिंग होने की बात स्वीकारी। 

     उल्लेखनीय है कि अमित कुमार नयनन की रचना 'ए प्रभु', 'त्रेता का नेता', 'अवतार पुरुष' और 'कोरोनावायरस भाग-1, 2, 3' का हिन्दी वर्जन तथा 'कोरोनावायरस' का अँग्रेजी वर्जन के साथ ही 'कोराना थाॅट 1, 2' के इनपुट्स का भी इस रचना में समावेश है। इन सभी रचनाओं के भी रजिस्ट्रेशन के कागजात अमित कुमार नयनन के पास उपलब्ध है। नयनन की तमाम रचनाएँ वेबसाइट https://sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.com/ पर 2020 से ही मौजूद है। साथ ही टीजी - द गाॅड-द ग्रेट गाॅड/ अमित कुमार नयनन के संपादन से संबंधित अधिसूचना वेबसाइट पर 2 अप्रैल 2017 को स्पष्ट रूप से जारी की गयी थी।

     अमित कुमार नयनन की सम्बन्धित कई रचनाओं को आप इस वेबसाइट पर भी देख सकते हैं।  

     अमित कुमार नयनन बताते हैं कि उन की बहुप्रतीक्षित रचना 'टीजी - द गाॅड-द ग्रेट गाॅड' एक अद्भुत और अभूतपूर्व रचना है। यह काफी रिसर्च से तैयार अमूल्य रचना है। अमित की बात मानें तो सन् 2008 ईस्वी से अमिताभ बच्चन को उन के विश्वस्त सूत्रों के माध्यम से लगातार प्रेषित की जा रही थी जो लीक हो गयी या लीक कर दी गयी।  तत्पश्चात् प्राप्त सम्पर्क सूत्रों के माध्यम से इस पर वार्ता चल रही थी। तभी इस बीच प्रोड्यूसर तलाशने के क्रम में यह रचना अवैध रूप से वैजयन्ती मूवीज के हाथ लग गयी। अमित स्पष्ट कहते हैं कि उन की रचना  'टीजी - द गाॅड-द ग्रेट गाॅड' को व इस में निहित तथ्यों व तत्त्वों को अवैध तरीके से 'कल्कि 2898 एडी' में रूपांतरित किया गया है। 

     नयनन ने कहा, वैजयन्ती मूवीज के प्रोड्यूसर सी अश्विन दत्त ने अपने सन-इन-ला नाग अश्विन को प्रमोेट करने के लिए इस रचना का अवैध इस्तेमाल किया। उन्होंने अपने डायरेक्टर सन-इन-ला को डायरेक्शन के अलावा अभूतपर्व कहानी का लाभ देने के लिए राइटर का भी लाभ देने के क्रम में ऐसा किया। वैजंयंती मूवीज की 'कल्कि 2898 एडी' की निर्माण प्रक्रिया आरंभ से ही संदेह के घेरे में रही है। मुहूर्त के समय इस फिल्म का नाम 'प्रभास 21' फिर 'प्रोजेक्ट के' रखा गया। लगभग एक साल बाद जब शूटिंग पूरी हो गयी, तब इसे साइंस फिक्शन बताया गया। अन्तिम नामकरण के दौरान  'कालचक्र' नाम पर भी विचार किया गया और अन्ततः 'कल्कि 2898 एडी' के नाम से प्रदर्शित किया गया है। प्रदर्शन के दौरान इसे साइंस मिथ फिक्शन बताया गया। पूर्व के नाम और विषय-वस्तु से मिथ कम्बीनेशन का पता नहीं चलता था। नयनन आगे कहते हैं कि अपनी गोपनीयता को बचाये रखने के लिए इन्होंने पहला ट्रेलर जो साइंस बेस्ड था,  उसे तो पहले जारी किया मगर दूसरा ट्रेलर काफी देर से फिल्म रिलीज से मात्र 6 दिन पूर्व 21 जून 2024 को जारी किया। 

     वैजयंती मूवीज द्वारा ऑफिशियल न्यूज जारी नहीं होने के कारण अमित कुमार नयनन पहले कोई कारण बताओ नोटिस वगैरह नहीं भेज पाए मगर वैजयंती मूवीज के प्रथम ट्रेलर रिलीज के बाद 7 जून 2024 को वैजयंती मूवीज को लीगल नोटिस भेजा। फिल्म प्रदर्शन तथा उस के बाद भी कुछ दिनों तक उत्तर का इंतजार किया मगर कोई उतर न आने के बाद 11 जुलाई 2024 को पटना सिविल कोर्ट में टीएस 298/24 मुकदमा दायर किया। 

     

सोमवार, 24 जून 2024

25 जून : आपातकाल के ५० साल / June 25 : Emergency ' Golden Jubilee', The Murder of Democracy

 

इन्दिरा गाँधी और लाल कृष्ण आडवाणी 



-शीतांशु कुमार सहाय

     भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी को जब 12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राजनारायण की चुनाव संबंधी याचिका पर फैसला सुनाया कि चुनाव संबंधी भ्रष्टाचार के लिए वह दोषी हैं तब उन की लोकसभा की सदस्यता समाप्त हो गयी। इंदिरा गाँधी ने इस फ़ैसले को मानने से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की घोषणा की और 26 जून को आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी गई। पूरे देश में लोकनायक जयप्रकाश नारायण (जेपी) सहित तमाम जागरूक लोग ने 25 जून 1975 को इंदिरा गाँधी के इस्तीफे की माँग को लेकर दिल्ली के रामलीला मैदान की सभा में हिस्सा लिया। जेपी ने तालियों के बीच रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियाँ ‘‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’’ का उद्बोधन किया। 25 जून को ही जेपी ने घोषणा की कि इंदिरा गाँधी को इस्तीफे के लिए मजबूर करने के लिए अहिंसक प्रदर्शन और सत्याग्रह किया जायेगा। जेपी ने सेना और पुलिस को गैर-कानूनी आदेशों का पालन नहीं करने की सलाह दी। जेपी और आम जनता की आवाज तथा माँगों को कुचलने के लिये इंदिरा गाँधी ने 25 जून कीे मध्य रात्रि में बिना मंत्रिमंडल की सलाह के आंतरिक आपातकाल लगाने की प्रस्ताव पर राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद को हस्ताक्षर करने को बाध्य किया। इस के साथ ही कानून की दृष्टि से समानता का अधिकार एवं मौलिक अधिकारों के कार्यान्वयन के लिए न्यायालय में अपील करने के अधिकारों को राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 359 के अंतर्गत निरस्त करने के संबंध में आदेश जारी कर दिया। 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 मास की अवधि में भारत में आपातकाल घोषित था। 

न्यायालय के आदेश को न मानी इन्दिरा 

      मामला 1971 में हुए लोकसभा चुनाव का था जिस में उन्होंने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी राज नारायण को पराजित किया था लेकिन चुनाव परिणाम आने के चार साल बाद राज नारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी। उन की दलील थी कि रायबरेली से इंदिरा गाँधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग किया, तय सीमा से अधिक खर्च किए और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए ग़लत तरीकों का इस्तेमाल किया। अदालत ने इन आरोपों को सही ठहराया। इस के बावजूद इंदिरा गाँधी टस-से-मस नहीं हुईं। यहाँ तक कि काँग्रेस पार्टी ने भी बयान जारी कर कहा कि इंदिरा का नेतृत्व पार्टी के लिए अपरिहार्य है। आकाशवाणी पर प्रसारित अपने संदेश में इंदिरा गाँधी ने कहा, "जब से मैं ने आम आदमी और देश की महिलाओं के फायदे के लिए कुछ प्रगतिशील क़दम उठाए हैं, तभी से मेरे ख़िलाफ़ गहरी साजिश रची जा रही थी।" 

26 जून को आंतरिक आपातकाल की घोषणा

      26 जून 1975 को इंदिरा गाँधी ने देश में आंतरिक आपातकाल की घोषणा कर दी एवं लोकनायक जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, नानाजी देशमुख, जॉर्ज फर्नांडिस, राजनारायण, मधु लिमये और काँग्रेसी युवा तुर्क नेता चन्द्रशेखर, रामधन, कृष्णकांत, मोहन धारिया तथा देश के वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर सहित लाखों विरोधी दल के नेता कार्यकर्ता, सामाजिक संगठन के लोग एवं पत्रकार को जेल में डाल दिया गया। अखबारों पर सेंसरशिप लगा दी गयी। नागरिकों के मूलभूत अधिकारों को स्थगित कर दिया गया। जय प्रकाश नारायण ने अपनी-जेल डायरी में व्यथित हृदय से लिखा था, ’’लोकतंत्र के क्षितिज को विस्तृत करने की बात तो एक ओर रह गयी और मानों लोकतंत्र ही एकाएक काल का ग्रास बन गया।’’ इस प्रकार दुनिया के सब से बड़े लोकतंत्र को तानाशाही में बदल डाला गया। 

लालकृष्ण आडवाणी की आत्मकथा में आपातकाल

      ''8.00 बजे आकाशवाणी से समाचार सुनने के लिए मैंने रेडियो चलाया। मुझे आकाशवाणी समाचारवाचक की परिचित आवाज के स्थान पर इंदिरा गाँधी की ग़मगीन आवाज़ सुनायी दी। यह उन का राष्ट्र के नाम किया जानेवाला अचानक प्रसारण था, इस सूचना के साथ कि राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 352 के अंतर्गत आपातकाल घोषित कर दिया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आंतरिक अशांति से निबटने के लिए आपातकाल लागू करना आवश्यक था।''

-लालकृष्ण आडवाणी, 
वरिष्ठ भाजपा नेता एवं 
पूर्व उपप्रधानमंत्री, भारत

(यह वरिष्ठ भाजपा नेता एवं पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की आत्मकथा 'मेरा देश मेरा जीवन' से लिया गया है। प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का लोकार्पण 25 जून 2015 को भोपाल में श्रीश्री रविशंकर ने किया।)

http://sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.in

बुधवार, 5 जून 2024

Lok Sabha General Elections 2024 FINAL RESULTS

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  BJP leader and Prime Minister Narendra Modi got the mandate to become the Prime Minister for the third consecutive time. Counting of votes took place on 4 June 2024 and in the evening he thanked and addressed the public after the result of Lok Sabha General Election 2024 came in favour.
RESULTS :-

1) Bhartiya Janata Party (BJP) :- 240

2) Indian National Congress (INC) :- 99

3) Samajwadi Party (SP) :- 37

4) All India Trinamool Congress (AITC) :- 29

5) Dravida Munnetra Kazhagam (DMK) :- 22

6) Telugu Desam (TDP) :- 16

7) Janata Dal (United) JD(U) :- 12

8) Shiv Sena (Uddhav Balasaheb Thackrey) (SHSUBT) :- 9

9) Nationalist Congress Party Sharadchandra Pawar (NCPSP) :- 8

10) Shiv Sena (SHS) :- 7

11) Lok Janshakti Party (Ram Vilas) (LJPRV) :- 5

12) Yuvajana Sramika Rythu Congress Party (YSRCP) :- 4

13) Rashtriya Janata Dal (RJD) :- 4

14) Communist Party of India (Marxist) CPI(M) :- 4

15) Indian Union Muslim League (IUML) :- 3

16) Aam Aadmi Party (AAP) :- 3

17) Jharkhand Mukti Morcha (JMM) :- 3

18) Janasena Party (JSP) :- 2

19) Communist Party of India (Marxist-Leninist) (Liberation) CPI(ML)(L) :- 2

20) Janata Dal (Secular) JD(S) :- 2

21) Viduthalai Chiruthaigal Katchi (VCK) :- 2

22) Communist Party of India CPI :- 2

23) Rashtriya Lok Dal (RLD) :- 2

24) Jammu & Kashmir National Conference (JKN) :- 2

25) United People’s Party Liberal (UPPL) :- 1

26) Asom Gana Parishad (AGP) :- 1

27) Hindustani Awam Morcha (Secular) (HAMS) :- 1

28) Kerala Congress (KEC) :- 1

29) Revolutionary Socialist Party (RSP) :- 1

30) Nationalist Congress Party (NCP) :- 1

31) Voice of the People Party (VOTPP) :- 1

32) Zoram People’s Movement (ZPM) :- 1

33) Shiromani Akali Dal (SAD) :- 1

34) Rashtriya Loktantrik Party (RLTP) :- 1

35) Bharat Adivasi Party (BAP) :- 1

36) Sikkim Krantikari Morcha (SKM) :- 1

37) Marumalarchi Dravida Munnetra Kazhagam (MDMK) :- 1

38) Aazad Samaj Party (Kanshi Ram) (ASPKR) :- 1

39) Apna Dal (Soneylal) (ADAL) :- 1

40) AJSU Party (AJSUP) :- 1

41) All India Majlis-E-Ittehadul Muslimeen (AIMIM) :- 1

42) Independent :- 7

Total :- 543

गुरुवार, 4 अप्रैल 2024

जीवन के घटनाक्रमों को समझना आवश्यक Necessary To Understand The Events Of Life



-शीतांशु कुमार सहाय 

      कृपया समय निकालकर पूरा पढ़ें और कुछ समझ में आये तभी लाइक या कमेण्ट करें। जब आप इसे पूरा पढ़ेंगे, तो कुछ मेरे बारे में और बहुत-सी बातें अपने सन्दर्भ में समझ पायेंगे। हड़बड़ाहट में नहीं, समझ-समझकर पढ़िये....

      अगर आप का जीवन ख़ुशहाल है, भौतिक रूप से साधनसम्पन्न है, तो भी उस की सीमा निर्धारित है। वास्तव में प्रकृति में कुछ भी स्थिर और अनन्त नहीं है; क्योंकि प्रकृति ही स्थिर और अनन्त नहीं है। सब कुछ प्रतिक्षण बदल रहे हैं। किसी वस्तु या घटना की निरन्तरता सृष्टि के लिए उचित नहीं है और जब मनुष्य अपनी हठधर्मिता से कृत्रिम निरन्तरता जारी रखने का प्रयास करता है तो अनर्थ हो जाता है। मीठे भोजन की निरंतरता मधुमेह, तो नमकीन की निरन्तरता उच्च रक्तचाप का कारण बन सकता है। ऐसे कई उदाहरण आप इस विश्व में देख सकते हैं। 

      एक बार की बात है बलराम और श्रीकृष्ण को मथुरा छोड़ना पड़ा था और जंगल में भटकना पड़ रहा था। उन के पास पर्याप्त भोजन और आराम का समय भी नहीं था। तब बलरामजी ने श्रीकृष्ण से प्रश्न किया- "हमारे साथ ये सब क्यों हो रहा है, जबकि तुम मेरे साथ हो?" 

      भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया, "जब जीवन आप के साथ बहुत अच्छी तरह घटित होता है, तो आप शिकायत नहीं करते। जब आप कुछ विशेष स्थितियों को अच्छा और शेष को बुरा मानते हैं या कुछ स्थितियों को मनचाहा और बाकी को अवांछित मानते हैं। क्या उस समय आप स्वयं से पूछते हैं कि आप के साथ ये सब क्यों हो रहे हैं?" 

      द्वापर युग के इन दो भाइयों ने अपनी लौकिक लीला के इस वार्तालाप में जीवन का गूढ़ रहस्य समझाया है। हालाँकि यह वार्तालाप और लम्बी है, तथापि यहाँ आलोच्य सन्दर्भ में उस अपूर्व वार्तालाप का इतना ही अंश पर्याप्त है। 

      वास्तव में आप जीवन को केवल जीवन के रूप में नहीं देखते। जैसे ही आप आध्यात्मिकता में कदम रखते हैं, जीवन आप के साथ ज़बर्दस्त तरीके से घटित होता है। मतलब यह कि सब कुछ तेजी से घटित होता हुआ, भागता हुआ प्रतीत होता है। अगर आप किसी वस्तु की पहचान अच्छा या बुरा के रूप में नहीं करते, तो आप देखेंगे कि जीवन अत्यन्त तीव्रता से घटित हो रहा है। अच्छी या बुरी जैसी श्रेणी केवल आप बनाते हैं। सच तो यह है कि न कुछ अच्छी है और न कुछ बुरी, केवल जीवन घटित होता है। कुछ लोग उस का आनन्द उठाते हैं, कुछ लोग उसे झेलते हैं। हम बस इस बात का ध्यान रख सकते हैं कि हर कोई इस का आनन्द उठाये। मूलभूत स्तर के दृष्टिकोण से देखें तो इस धरती पर होनेवाली घटनाएँ कोई महत्त्व नहीं रखतीं। मैं चाहता हूँ कि आप अच्छे और बुरे की पहचान के बिना अपने जीवन की ओर देखें। जीवन अत्यन्त तीव्रता से घटित हो रहा है।

      परमसत्ता, जिसे भगवान कहते हैं, ईश्वर कहते हैं। वह परमसत्ता दीखती नहीं लेकिन उस के कई रूप दिखायी देते हैं। प्रकृति उसी सत्ता का दृश्यमान रूप है। प्रकृति के अन्तर्गत ही जीवन और घटनाएँ दिखायी देती हैं। 

      अगर आप आध्यात्मिकता की ओर मुड़ना चाहते हैं, तो इस का मतलब है कि प्राकृतिक रूप से आप जीवन के एक बड़े अंश की चाह करते हैं। इसे यों समझें कि जीवन में जिस वस्तु को भी पाने का प्रयास करते हैं, वह जीवन का एक बड़ा हिस्सा पाने की कोशिश होती है। 

      जिस के पास कार नहीं होती, उसे लगता है कि कार वाले लोग बड़े ख़ुशकिस्मत होते हैं। कार निश्चित रूप से आरामदेह और सुविधाजनक होती है, मगर वह कोई ख़ुशकिस्मती नहीं है। अगर विश्व में कारें होती ही नहीं, तो किसी को कार पाने की इच्छा नहीं होती। समस्या यह है कि आप दूसरों से इस तरह अपनी तुलना करते हैं, तो यह विषाद का कारण बन जाता है। अगर जिन के पास कार नहीं है, वे कार वाले से अपनी तुलना न करें, तो उन्हें पैदल चलने या साइकिल चलाने में कोई समस्या नहीं होगी, कोई लज्जा नहीं होगी, किसी प्रकार का दुःख नहीं होगा।

      मैं अस्तित्व के रूप में जीवन की बात कर रहा हूँ। अभी, आप बहुत-सी ऐसी चीजों या घटनाओं को जीवन मानते हैं, जिन का वास्तव में जीवन की वास्तविकता से कोई वास्ता नहीं है। ऐसी तुलना या ऐसा सोच केवल एक विकृत मानसिक अवस्था है। कई दुःख केवल इसी कारण होते हैं। 

      जब आध्यात्मिक रास्ते पर चलते हैं, तो आन्तरिक स्थितियाँ बहुत तेज गति से परिवर्तित होती हैं। इस के कई कारण हैं। एक मूलभूत कारण प्रारब्ध है। इस जीवन के लिए जो कर्म मिले हैं, उसे ही प्रारब्ध कहते हैं। 

      सृष्टि बहुत करुणामयी है। अगर वह इसी जीवन में आप के सारे कर्म दे देती, जिसे संचित कर्म कहते हैं, तो आप मर जाते। बहुत लोग इसी जीवन की स्मृतियों को नहीं झटक पाते। मान लीजिये कि मैं आप को गहरी तीव्रता में आप के सौ जीवनकालों की याद दिला दूँ, तो अधिकतर लोग उस स्मृति का बोझ न सह पाने पर तुरंत प्राण त्याग देंगे। इसलिए, सृष्टि और प्रकृति आप को उतना प्रारब्ध देती है, जितना आप संभाल सकें। अगर आप प्रकृति द्वारा सौंपे गये कर्मों पर ही चलें और आप कोई नया कर्म उत्पन्न नहीं करते– जो संभव नहीं है, तो सौ जन्मों के कर्मों को नष्ट करने के लिए, आप को कम-से-कम सौ और जन्म लेने पड़ेंगे। इन सौ जीवनकालों की प्रक्रिया में हो सकता है कि आप और हज़ार जीवनकालों के लिए कर्म इकट्ठा लें।

      जब कोई आध्यात्मिक पथ पर होता है, तो वह अपने गंतव्य यानी मुक्ति पर पहुँचने की हड़बड़ी में होता है।  वह सौ या हज़ार जीवनकाल नहीं लेना चाहता, वह जल्दी अपने लक्ष्य को पा लेना चाहता है। अगर विशेष रूप में दीक्षा दी जाय, तो मुक्ति के आयाम खुलते हैं जो अन्यथा नहीं खुलते। अगर आप आध्यात्मिक रास्ते पर नहीं होते, तो हो सकता है कि आप अधिक आरामदेह और शांतिपूर्ण जीवन बिता रहे होते, मगर साथ ही एक निर्जीव जीवन भी जी रहे होते। जब आप के साथ कोई मूलभूत चीज घटित नहीं होती, तो आप जीवन से अधिक मृत्यु के निकट होते हैं। 

      आध्यात्मिक प्रक्रिया में प्रवेश का मतलब है, जीवन को वास्तविक रूप से अनुभव करने की इच्छा रखना। जहाँ तक दशकों में नहीं पहुँचा जा सकता, आध्यात्मिकता से वहाँ कुछ दिनों में पहुँचा जा सकता है। यह केवल कहने की बात नहीं है, यह जीवन की सच्चाई है। भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में यही समझाया है। 

      आध्यात्मिक व्यक्ति किसी घटना को अच्छा या बुरा नहीं मानता, उस का सरोकार केवल इस बात से होता है कि जीवन उस के लिए कितनी तीव्रता से घटित हो रहा है। अच्छाई और बुराई समाज से जुड़ी होती है, उन का जीवन से कोई लेना-देना नहीं। अगर आप गुरु प्रदत्त साधना करते हैं, तो आप अपने प्रारब्ध तक सीमित नहीं रहते। गुरु आप की स्थिति के अनुसार ही आप के कालचक्र को तेज करते हैं। दस जीवन के कर्मों को संभालना है तो जीवन की गति संसार से थोड़ी तेज होगी लेकिन अगर सौ जीवनकालों के कर्मों को अभी संभालना है, तो निश्चय ही जीवन बहुत तीव्रता से घटित होगा। ऐसे में संतुलन बनाये रखना बहुत आवश्यक होता है। इस दौरान यदि सामाजिक स्थितियों के असर में आकर किसी से अपनी तुलना करने लगे, तो जीवन जिस गति से घटित होता है, उस से यह लग सकता है कि जीवन में कुछ गड़बड़ है लेकिन वास्तव में ऐसा कुछ नहीं होता।

      अगर आप आध्यात्मिक होना चाहते हैं, तो इस का मतलब है कि आप अभी जैसे हैं, उस में परिवर्तन चाहते हैं, चरम प्रकृति को अर्थात् परमसत्ता को पाना चाहते हैं, आप असीमित होना चाहते हैं, आप मुक्ति चाहते हैं। इस चाहत को पूरा करने के लिए बहुत अधिक ऊर्जा की आवश्यकता है। साधना के माध्यम से गुरु आप में इस ऊर्जा की पूर्ति करते हैं। अत्यधिक ऊर्जा के कारण ही जीवन तेज गति से, ज़बर्दस्त गति से घटित होता है।

      इतने शब्दों को लिखने का एक ही मतलब है कि जीवन के घटनाक्रमों को समझना आवश्यक है। अगर जीवन में भौतिक दु:खों की बारम्बारता बनी हुई है तो समझना चाहिए कि आप को ईश्वर की निकटता शीघ्र मिलेगी। इस के लिए आडम्बर और प्रचार से दूर रहनेवाले एक गुरु की खोज कीजिये। 

      कृष्णं वन्दे जगद्गुगुरुम्।

शुक्रवार, 13 अक्तूबर 2023

मोबाइल (दूरभाष) का पूरा नाम क्या है Full Form Of Mobile (Phone)

 -शीतांशु कुमार सहाय 

    मोबाइल की फुल फॉर्म "मॉडिफाइड ऑपरेशन बाइट इंटिग्रेशन लिमिटेड एनर्जी" (Modified Operation Byte Integration Limited Energy) है। जी हाँ, इतना लम्बा नाम ही है उस डिवाइस का जो आप के हाथ में रहती है।

गुरुवार, 5 अक्तूबर 2023

अकिलीज़ का योग में महत्त्वपूर्ण भूमिका Important Role Of Achillies In Yoga

 


-शीतांशु कुमार सहाय
 

      बायीं एँड़ी के ऊपर एक स्थान पर 'अकिलीज़' (Achilles) होता है। इस का पूरा नाम अकिलीज़ टेण्डन (Achilles tendon) है। इस पर दबाव बनाने से मस्तिष्क शान्त होता है। इस का स्पर्श यदि मूलाधार से हो तो अपूर्व लाभ होता है। इसलिए योगी बैठते समय पहले बायाँ पैर मोड़कर एँड़ी को गुदामार्ग पर लगाते हैं तो अकिलीज़ स्वतः मूलाधार से स्पर्श होने लगता है। इस के उपरान्त दायाँ पैर मोड़ते हैं।  

     हालाँकि दोनों पैरों की एँड़ियों के ऊपर अकिलीज़ होता है लेकिन बायीं अकिलीज़ का योग में महत्त्वपूर्ण भूमिका है।  

      Achilles tendon ऊत्तकों का मजबूत जोड़ है जो पिण्डली की मांसपेशियों को एँड़ी की हड्डियों से जोड़ता है। जब यह जोड़ टूट जाता है या फट जाता है, तो इसे Achilles tendon टूटना के रूप में जाना जाता है। यह घटना अधिकतर खिलाड़ियों, जिम में अधिक व्यायाम करनेवालों, अधिक दौड़ने से या तेज गति से यहाँ-वहाँ भागकर कार्य करनेवालों के साथ घटती है। 

      नियमित योग करने से अकिलीज़ टेण्डन के टूटने या फटने की घटना नहीं होती। सामान्य विज्ञान या चिकित्सा विज्ञान से बहुत ऊपर का विज्ञान है योग। आप भी ऊपर बताये गये स्थिति में बैठकर लाभ प्राप्त कर सकते हैं। 


बुधवार, 20 सितंबर 2023

पितृपक्ष : श्राद्ध का है धर्म में वैज्ञानिक महत्त्व Scientific Reason Of Sharadh In Sanatan Dharma

 


-शीतांशु कुमार सहाय 

      मैं ने यह आलेख फेसबुक के एक मित्र से साभार लिया है। कुछ संशोधन के साथ यहाँ प्रस्तुत किया गया है..... 

      एक व्यक्ति को नदी में तर्पण करते देख एक फकीर अपनी बाल्टी से जल गिराकर जाप करने लगा कि घर पर स्थित उस की प्यासी गाय को जल मिले। श्राद्ध कर रहे व्यक्ति द्वारा पूछने पर उस फकीर ने कहा, "जब आप के चढाये जल और भोग आप के पुरखों को मिल जाते हैं तो मेरी गाय को भी मिल जायेगा। इस कारण श्राद्ध कर रहा व्यक्ति बहुत लज्जित हुआ।

      यह मनगढ़न्त कहानी सुनाकर मेरा अभियन्ता मित्र ठठाकर हँसने लगा और मुझ से बोला, "सब पाखण्ड है जी!"

      अधिकतर मित्र मुझ से ऐसी बकवास करने से पहले ज़्यादा सोच-समझकर ही बोलते हैं; क्योंकि, पहले मैं सामनेवाले की पूरी बात सुन लेता हूँ उस के बाद ही प्रत्युत्तर देता हूँ।

      मै ने कुछ नहीं कहा। मैं ने मेज पर से कैलकुलेटर उठाकर एक नम्बर डायल किया और अपने कान से लगा लिया। बात न हो सकी तो मैं ने अभियन्ता मित्र की तरफ देखकर कहा कि पता नहीं टेलीफोन कम्पनी वाले कैसे निकम्मे अभियन्ता को रखते हैं जो नेटवर्क भी सही नहीं रख सकता। 

      मेरी बात सुनकर अभियन्ता मित्र भड़क गये और बोले, "ये क्या मज़ाक है! 'कैलकुलेटर' में मोबाइल का फंक्शन कैसे काम करेगा?"

      तब मैंने कहा, "तुम ने सही कहा। वही तो मैं भी कह रहा हूँ कि स्थूल शरीर छोड़ चुके लोग के लिए बनी व्यवस्था जीवित प्राणियों पर कैसे लागू होगी!?"

      इस पर इञ्जीनियर साहब अपनी झेंप मिटाते हुए कहने लगे, "ये सब पाखण्ड है। अगर यह सच है तो इसे सिद्ध कर दिखाओ।"

      अब मैं थोड़ा सन्दर्भ बदला। "तुम यह बताओ कि न्युक्लीयर पर न्युट्रान के प्रहार या टकराव से क्या ऊर्जा निकलती है?"

      "बिल्कुल! इट्स काॅल्ड एटॉमिक एनर्जी।"

      फिर, मै ने उन्हें एक चॉक और पेपरवेट देकर कहा, "अब आप के हाथ में बहुत सारे न्युक्लीयर्स भी हैं और न्युट्रांस भी। अब तुम इन में से ऊर्जा निकालकर दिखाओ।"

      मेरा मित्र समझ गया और तनिक लजा भी गया। वह बोला, ऐसा है कि एक काम याद आ गया। बाद में बात करते हैं।"

      कहने का मतलब यह है कि यदि, हम किसी विषय या तथ्य को प्रत्यक्षतः भौतिक रूप से सिद्ध नहीं कर सकते तो इस का एक महत्त्वपूर्ण अर्थ यह भी है कि हमारे पास समुचित ज्ञान, संसाधन वा अनुकूल परिस्थितियाँ नहीं हैं। इस का तात्पर्य यह कतई नहीं कि वह तथ्य ही गलत है। वास्तव में हवा में तो हाइड्रोजन और ऑक्सीजन दोनों मौजूद है, फिर हवा से ही जल क्यों नहीं बना लेते!

      अब आप हवा से जल नहीं बना रहे हैं तो इस का मतलब यह थोड़े ना घोषित कर दोगे कि हवा में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन ही नहीं है.

हमारे द्वारा श्रद्धा से किए गए सभी कर्म दान आदि आध्यात्मिक ऊर्जा के रूप में हमारे पितरों तक अवश्य पहुँचते हैं.

इसीलिए, व्यर्थ के कुतर्को मे फँसकर अपने धर्म व संस्कार के प्रति कुण्ठा न पालें...!

और हाँ...

जहाँ तक रह गई वैज्ञानिकता की बात तो....

क्या आपने किसी भी दिन पीपल और बरगद के पौधे लगाए हैं...या, किसी को लगाते हुए देखा है?

क्या फिर पीपल या बरगद के बीज मिलते हैं ?

इस का जवाब है नहीं....

ऐसा इसीलिए है क्योंकि... बरगद या पीपल की कलम जितनी चाहे उतनी रोपने की कोशिश करो परंतु वह नहीं लगेगी.

इसका कारण यह है कि प्रकृति ने यह दोनों उपयोगी वृक्षों को लगाने के लिए अलग ही व्यवस्था कर रखी है.

जब कौए इन दोनों वृक्षों के फल को खाते हैं तो उनके पेट में ही बीज की प्रोसेसिंग होती है और तब जाकर बीज उगने लायक होते हैं.

उसके पश्चात कौवे जहां-जहां बीट करते हैं, वहां वहां पर यह दोनों वृक्ष उगते हैं.

और... किसी को भी बताने की आवश्यकता नहीं है कि पीपल जगत का एकमात्र ऐसा वृक्ष है जो round-the-clock ऑक्सीजन (O2) देता है और वहीं बरगद के औषधि गुण अपरम्पार है.

साथ ही आप में से बहुत लोगों को यह मालूम ही होगा कि मादा कौआ भादो महीने में अंडा देती है और नवजात बच्चा पैदा होता है.

तो, इस नयी पीढ़ी के उपयोगी पक्षी को पौष्टिक और भरपूर आहार मिलना जरूरी है...

शायद, इसलिए ऋषि मुनियों ने कौवों के नवजात बच्चों के लिए हर छत पर श्राघ्द के रूप मे पौष्टिक आहार की व्यवस्था कर दी होगी.

जिससे कि कौवों की नई जनरेशन का पालन पोषण हो जाये......

इसीलिए....  श्राघ्द का तर्पण करना न सिर्फ हमारी आस्था का विषय है बल्कि यह प्रकृति के रक्षण के लिए नितांत आवश्यक है.

साथ ही... जब आप पीपल के पेड़ को देखोगे तो अपने पूर्वज तो याद आएंगे ही क्योंकि उन्होंने श्राद्ध दिया था इसीलिए यह दोनों उपयोगी पेड़ हम देख रहे हैं.

अतः.... सनातन धर्म और उसकी परंपराओं पे उंगली उठाने वालों से इतना ही कहना है कि.... 

जब दुनिया में तुम्हारे ईसा-मूसा-भूसा आदि का नामोनिशान नहीं था...

उस समय भी हमारे ऋषि मुनियों को मालूम था कि धरती गोल है और हमारे सौरमंडल में 9 ग्रह हैं.

साथ ही... हमें ये भी पता था कि किस बीमारी का इलाज क्या है...

कौन सी चीज खाने लायक है और कौन सी नहीं...?

भारत की स्वतंत्रता के बाद सात दशक तक धर्म से जुड़ी ऐसी वैज्ञानिक बातों को अंधविश्वास और पाखंड साबित करने का काम हुआ है। अब धीरे-धीरे सनातन संस्कृति पुनर्जीवित हो रही है। लोग मूल ग्रन्थ न पढ़कर सुनी हुई बातों पर विश्वास करते थे।

शनिवार, 29 जुलाई 2023

जीवन को आनन्दमय बनाइये Make Life Fun

-शीतांशु कुमार सहाय 

      छोटी-छोटी बातों पर ध्यान दें और जीवन को सहज, सरल और आनन्दपूर्ण बनाएँ। बहस, तकरार, क्रोध, दमन, शोषण, ईर्ष्या, धोखेबाजी और लालच से क्षणिक लाभ मिलता हुआ दीख सकता है लेकिन शान्ति, प्रसन्नता या आनन्द की प्राप्ति नहीं हो सकती।

      अब से १५० साल बाद, आज इस आलेख को पढ़नेवाले हम में से कोई भी जीवित नहीं रहेगा। अभी हम जिस चीज पर लड़ रहे हैं उस का ७० प्रतिशत से १०० प्रतिशत पूरी तरह से भुला दिया जायेगा। शब्द को पूरी तरह से रेखांकित करें।

      अगर हम अपने से १५० साल पहले की स्मृतियों में जाएँ, तो वह सन् १८७३ ईस्वी होगी। उस समय दुनिया को अपने सिर पर उठानेवालों में से कोई भी आज जीवित नहीं है। इसे पढ़ने वाले हम में से लगभग सभी को उस युग के किसी भी व्यक्ति के चेहरे की कल्पना करना मुश्किल होगा।

      थोड़ी देर रूकें और कल्पना करें कि कैसे उन में से कुछ ने अपने रिश्तेदारों को धोखा दिया और दर्पण के एक टुकड़े के लिए उन्हें दास के रूप में बेच दिया। कुछ लोग ने ज़मीन के एक टुकड़े या रतालू या कौड़ियों के कन्द या एक चुटकी नमक के लिए परिवार के सदस्यों को मार डाला। वह रतालू, कौड़ी, दर्पण या नमक कहाँ है जिस का उपयोग वे डींगें हाँकने के लिए कर रहे थे? यह अब हमें अजीब लग सकता है लेकिन हम मनुष्य कभी-कभी कितने मूर्ख होते हैं, ख़ासकर जब बात पैसे, ताकत या प्रासंगिक बनने की कोशिश की आती है!

      जब आप दावा करते हैं कि इण्टरनेट युग आप की स्मरण-शक्ति को सुरक्षित रखेगा, उदाहरण के तौर पर माइकल जैक्सन को लें। आज से ठीक १४ साल पहले २००९ में माइकल जैक्सन की मौत हो गयी। कल्पना कीजिये कि जब माइकल जैक्सन जीवित थे तो उन का पूरी दुनिया पर कितना प्रभाव था। आज के कितने युवा उन्हें विस्मय के साथ याद करते हैं! यानी क्या वे उन्हें जानते भी हैं? आने वाले १५० वर्षों में, जब भी उन के नाम का उल्लेख किया जायेगा, बहुत से लोग के लिए हृदय में कोई घण्टी नहीं बजेगी।       आइये, जीवन को आसान बनाएँ। इस दुनिया से कोई भी जीवित नहीं जायेगा। जिस भूमि के लिए आप लड़ रहे हैं और मरने-मारने को तैयार हैं, उस भूमि को किसी ने छोड़ दिया है, वह व्यक्ति मर चुका है, सड़ चुका है और भुला दिया गया है। वही आप का भी भाग्य होगा। आनेवाले १५० वर्षों में, आज हम जिन वाहनों या दूरभाष यन्त्रों का उपयोग डींगें हाँकने के लिए कर रहे हैं, उन में से कोई भी प्रासंगिक नहीं रहेगा। इसलिए जीवन को आसान बनाइये!

      प्रेम को नेतृत्व करने दीजिये। एक-दूसरे के लिए वास्तव में प्रसन्न रहिये। कोई द्वेष नहीं, कोई चुगली नहीं. कोई ईर्ष्या नहीं. कोई तुलना नहीं। जीवन कोई प्रतिस्पर्द्धा नहीं है। जीवन के अन्त में, हम सभी दूसरी ओर चले जायेंगे। यह सिर्फ एक प्रश्न है कि वहाँ पहले कौन पहुँचता है। निश्चित रूप से यह शत प्रतिशत सच है कि हम सभी एक दिन वहाँ जायेंगे। अतः पुनः विनती करता हूँ आप से कि अपने जीवन को जटिल नहीं, आसान बनाइये। 

मंगलवार, 11 अप्रैल 2023

पहली बार विश्व का मानचित्र भारत ने बनाया India Made The World Map For The First Time

११वीं शताब्दी में रामानुजाचार्य द्वारा महाभारत के श्लोकों के आधार पर बनाया गया विश्व का मानचित्र

-शीतांशु कुमार सहाय 

      एशिया, अफ्रीका, उत्तर अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और अण्टार्कटिक महाद्वीपों को इंगित करनेवाले मानचित्र का आविष्कार कहाँ हुआ? महादेशों और महासागरों को अभिव्यक्त करनेवाले रेखाचित्र की शुरुआत किस ने की? इन दो प्रश्नों के उत्तर में कई देश अपना दावा ठोंकते हैं। इन दावों को तथ्य के आधार पर पड़ताल करता हूँ। 

      पृथ्वी के महाद्वीपों के मानचित्र को लेकर कई दावे अब तक सामने आये हैं। इस सन्दर्भ में कई बातें कही जाती रही हैं। कोई कहता है कि सम्पूर्ण धरती का मानचित्र रोमन सभ्यता में बना था तो कोई इसे नार्वे के वाइकिंग्स की देन मानता है। पुर्तगाली और फ्रेंच भी पृथ्वी के भौगोलिक मानचित्र को अपनी खोज बताने से नहीं चूकते। इसी तरह अमेरिका के कोलम्बस को भारत की खोज का श्रेय दिया जाता है। ये सभी दावे तथ्यहीन हैं। उपर्युक्त दावों के दावेदार समर्थन में कोई ठोस प्रमाण नहीं दे पाते।

      सत्य यह है कि पृथ्वी का पहला भौगोलिक मानचित्र का निर्माण भारत में हुआ। चूँकि सृष्टि का आरम्भ भारत से हुआ, इसलिए समस्त ज्ञान का प्राकट्य भारत में हुआ और इन का विश्वव्यापी प्रसार भी। ऐसे में यह कहना कि किसी कोलम्बस ने भारत को खोजा तो यह बड़ी हास्यास्पद बात है। 

      भारतीय सभी क्षेत्रों में विश्व की अन्य सभ्यताओं से आगे थे। इस का प्रमाण हैं प्राचीन भारतीय ग्रन्थ जिन में अथाह ज्ञान भरे पड़े हैं। यहाँ मैं भौगोलिक मानचित्र की बात कर रहा हूँ। महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास ने विश्व को भौगोलिक मानचित्र का ज्ञान दिया। हालाँकि भारतीयों को यह ज्ञान वेदव्यास के प्रादुर्भाव से पूर्व भी था। वेदव्यास ने केवल उस भौगोलिक ज्ञान को पुस्तक के रूप में पहली बार संकलित किया। इस तथ्य को इस प्रकार समझिये कि वेदव्यास से पूर्व भी वेद और उस के ज्ञान का प्रसार था। वह ज्ञान श्रोत्र (सुनकर समझना) रूप में था। इसे सर्वसाधारण के लिए पुस्तक के रूप में संकलित किया वेदव्यास ने ही। इसलिए महर्षि कृष्णद्वैपायन का नाम वेदव्यास हो गया। वेदों के अलावा १०८ उपनिषद, १८ पुराण, महाभारत (इसी एक भाग श्रीमद्भगवद्गीता है) आदि ग्रन्थों में उन्होंने अतुलित ज्ञान का विशाल भण्डार दिया है। 

      महर्षि वेदव्यास ने ही भौगोलिक मानचित्र का ज्ञान विश्व समुदाय को दिया। उन्होंने महाभारत में पृथ्वी का पूरा मानचित्र हजारों वर्ष पूर्व ही दे दिया था।महाभारत में कहा गया है कि यह चन्द्रमण्डल से देखने पर पृथ्वी (स्थलीय भाग) दो अंशों मे शश (शशक या खरगोश) तथा अन्य दो अंशों में पिप्पल ( पीपल के पत्तों) के रुप में दिखायी देती है।

      इस आलेख के आरम्भ में जो मानचित्र दिया गया है, उसे ११वीं शताब्दी में रामानुजाचार्य द्वारा महाभारत के भीष्म पर्व के जिन श्लोकों के आधार पर बनाया गया, उन श्लोकों को आप भी जानिये...

“सुदर्शनं प्रवक्ष्यामि द्वीपं तु कुरुनन्दन।

परिमण्डलो महाराज द्वीपोऽसौ चक्रसंस्थितः॥

यथा हि पुरुषः पश्येदादर्शे मुखमात्मनः। 

एवं सुदर्शनद्वीपो दृश्यते चन्द्रमण्डले॥ 

द्विरंशे पिप्पलस्तत्र द्विरंशे च शशो महान्।”

      ऊपर के श्लोकों में कहा गया है... "हे कुरुनन्दन ! सुदर्शन नामक यह द्वीप चक्र की भाँति गोलाकार स्थित है, जैसे पुरुष दर्पण में अपना मुख देखता है, उसी प्रकार यह द्वीप चन्द्रमण्डल में दिखायी देता है। इस के दो अंशों में पिप्पल और दो अंशों में महान शश (शशक, खरहा या खरगोश) दिखायी देता है।"

      अब यहाँ मैं श्लोकों की बात को सत्य रूप में देखता हूँ। आलेख के आरम्भ में जो मानचित्र है उसे उलटकर देखेंगे तो वह खरहा और पीपल के पत्तों की तरह दिखायी देगा...

पृथ्वी का उल्टा मानचित्र 


सोमवार, 3 अप्रैल 2023

भौतिक जीवन और भौतिकता के नियम Physical Life And The Laws Of Materiality


 -शीतांशु कुमार सहाय 

      शिव को कभी किसी समस्या से नहीं गुजरना पड़ा। हाँ, ऐसे कुछ ऐसी स्थितियाँ अवश्य उत्पन्न हुईं, जब वे विचलित दीखे,जैसे कि जब उन्होंने अपनी प्रिया पत्नी सती को खो दिया तब वे कुछ समय तक गहरे दुख में रहे। पर, कुछ समय बाद, वह फिर से ठीक हो गये। हर किसी के साथ ऐसा ही होता है। अपने किसी बहुत पात्र को खोने के बाद भी कुछ समय तक दुख में रहने के बाद आप जीवन में आगे बढ़ जाते हैं। उन्हें भी उसी स्थिति का सामना करना पड़ा, इस में कोई बड़ी बात नहीं थी। कृष्ण को भी कई स्थितियों से गुजरना पड़ा और मेरे जीवन में भी ऐसा ही हुआ है। स्थितियाँ आती हैं, मगर कोई पीड़ा नहीं होती। चाहे जो भी हो जाय, उस से आप टूटते नहीं हैं, कमजोर नहीं पड़ते।

      अब प्रश्न यह है कि ऐसी स्थितियाँ कृष्ण, शिव, ईसा मसीह या मेरे सामने भी क्यों आती हैं? एक बार जब आप दुनिया में जीवन जीने का चयन कर लेते हैं, तो आप दुनिया के नियमों के वश में हो जाते हैं। मैं मानव निर्मित नियमों की बात नहीं कर रहा हूँ। पर, एक बार जब आप एक भौतिक शरीर अपनाने और दुनिया में एक भूमिका निभाने का फैसला कर लेते हैं, तो आप भी उन नियमों के अधीन हो जाते हैं, जो भौतिक अस्तित्व को नियन्तत करते हैं। 

      इसीलिए श्रीकृष्ण ने धर्म की बात की, गौतम बुद्ध ने धम्म की बात की और हम मूलभूत यौगिक सिद्धान्त की बात कर रहा हूँ; क्योंकि ये सिद्धान्त, धम्म या धर्म, जीवन के भौतिक आयाम को रास्ता दिखाते हैं या भौतिकता का मार्गदर्शन करते हैं। ईश्वर ऊपर बैठकर सारा प्रबन्ध नहीं कर रहे, सारा खेल कुछ नियमों और एक निश्चित प्रणाली के अनुसार संचालित हो रहा है।

      एक बार जब आप भौतिक आयाम में प्रवेश करने का मन बना लेते हैं, तो उस भौतिकता के नियम आप पर भी लागू होते हैं, चाहे आप कोई भी हों। आप कृष्ण हों, शिव हों या सद्‌गुरु हों – अगर आप विष पियेंगे, तो आप की मृत्यु हो जायेगी। हो सकता है कि आप के अंदर बहुत आवश्यक होने पर किसी-न-किसी तरह कुछ स्थितियों से परे जाने की क्षमता हो। हो सकता है कि आप की मौत न हो मगर फिर भी आप को कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी। उस से आप बच नहीं सकते। अगर आप छत से नीचे गिरेंगे, तो कुछ न कुछ टूटेगा ही, चाहे आप जो भी हों – क्योंकि आप ने भौतिक में रहने का फैसला किया है। अगर आप ऐसी स्थिति में होना चाहते हैं, जहाँ कहीं से गिरकर भी आप को कुछ न हो, तो आप को शरीरहीन होना पड़ेगा। जब आप भौतिक शरीर छोड़ देते हैं, तो भौतिक नियम आप पर लागू नहीं होते। जब तक आप के पास एक भौतिक शरीर है, आप भौतिकता के नियमों के अधीन होते हैं। दूसरे आयामों पर भी यही बात लागू होती है। जब आप भौतिक या अभौतिक जीवन से ऊब जाते हैं, तभी मुक्ति की चाह उत्पन्न होती है।

      जब आप भौतिक दुनिया में होते हैं, तो इस भौतिक दुनिया के कुछ मूर्ख आप को धौंस दिखाते हैं। जब आप शरीरहीन दुनिया में होते हैं, तो कुछ शरीरहीन मूर्ख आप को धौंस दिखाते हैं। जब आप दिव्य दुनिया में होते हैं, तो कुछ दिव्य मूर्ख आप को तंग करते हैं। इन चीजों को देखते हुए, बुद्धिमान लोग मुक्ति चाहते हैं। आप ऐसी स्थिति में होना चाहते हैं, जहाँ कोई भी आप के ऊपर धौंस न जमा सके। किसी भी चीज के अधीन न होने के लिए आप को ऐसी स्थिति में आना होगा जहाँ या तो आप ‘कुछ नहीं’ हों या ‘सब कुछ’ बन जायें। इसे आप दोनों तरह से देख सकते हैं। आप को असीम हो जाना होगा; ताकि कोई भी आप को अधीन न कर सके। भले ही आप अपने अंदर असीम हों लेकिन एक बार जब आप भौतिक शरीर में रहना तय कर लेते हैं, तो भौतिक नियम आप के ऊपर लागू होते हैं। 

      यही कारण है कि अधिकतर ज्ञानी जीव अपने शरीर में नहीं रहते। एक बार जब उन्हें परे जाने की कुञ्जी मिल जाती है, तो उन्हें शरीर से चिपके रहने और भौतिकता के अधीन रहने में कोई समझदारी नहीं लगती। यह ऐसा ही है, मानो आप देश के प्रधान मंत्री हों और एक छोटे से गाँव में आने पर पंचायत का प्रमुख आप पर धौंस जमाये। सभी ज्ञानी प्राणियों का यही अनुभव होता है। उन के पास परे जाने की कुञ्जी होती है, वे कहीं और हो सकते हैं मगर एक भौतिक शरीर अपना लेने के बाद भौतिक क्षेत्र की हर चीज और हर इंसान लाखों अलग-अलग रूपों में उन पर मर्जी चलाता है। श्रीकृष्ण ने कई बार यह कहा है कि ईश्वर के रूप में उन्हें इन चीजों के अधीन होने की आवश्यकता नहीं होती; क्योंकि उन्होंने एक मानव शरीर अपनाया, वे भौतिक आयाम में धर्म की स्थापना करना चाहते थे, इसलिए उन्हें भौतिक नियमों के अधीन होना पड़ा। कुछ लोग उन की पूजा करते थे। पर, कुछ अलग प्रवृत्ति के लोग बार-बार ग्वाला कहकर उन की हँसी उड़ाते थे। प्यार से नहीं; बल्कि नीचा दिखाने के लिए उन्हें 'गोपाल' कहा। उन्हें यह सब सहन करने की आवश्यकता नहीं होती मगर उन्होंने धर्म की स्थापना का बीड़ा उठाया था, इसलिए उन्हें ऐसे कई अपमान सहने पड़े।

शनिवार, 11 मार्च 2023

हनुमान द्वादशनाम स्तोत्र Hanuman Dwadashnam Stotra

 


-शीतांशु कुमार सहाय 

      भगवान शिव के रुद्रावतार भगवान हनुमानजी कलियुग में भक्तों के संरक्षण के लिए सशरीर पृथ्वी पर निवास कर रहे हैं। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन के ध्वज में वास करनेवाले अपने अप्रतिम भक्त हनुमानजी को कलियुग के अन्त तक सशरीर पृथ्वी पर निवास करने का आदेश दिया। वे भक्तों में आध्यात्मिकता को प्रगाढ़ कर धर्म-मार्ग पर प्रेरित करते हैं। नकारात्मक अदृश्य शक्तियों (प्रेत, यक्ष, पिशाच आदि) से रक्षा करते हैं। संकटों से उबारते हैं। 

      चूँकि कलियुग का अन्त बहुत निकट है। अतः हमें धर्म-मार्ग का अनुसरण करते हुए भगवान हनुमानजी की आराधना करनी चाहिये; ताकि युग के परिवर्तन के दौरान होनेवाले कष्टों से बच सकें और मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो सके।

      यहाँ प्रस्तुत है 'हनुमान द्वादशनाम स्तोत्र'। इसे ब्रह्म-मुहूर्त में पढ़ने या ध्यानपूर्वक सुनने से निश्चय ही कल्याण होता है।

हनुमानञ्जनीसूनुर्वायुपुत्रो महाबल:।
रामेष्ट: फाल्गुनसख: पिङ्गाक्षोऽमितविक्रम:॥
उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशन:।
लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा॥

      हनुमानजी के द्वादश (बारह) नाम ये हैं :-

१. हनुमान,

२. अञ्जनीपुत्र,

३. वायुपुत्र,

४. महाबल,

५. रामेष्ट,

६. फाल्गुनसखा,

७. पिङ्गाक्ष,

८. अमितविक्रम,

९. उदधिक्रमण,

१०. सीताशोकविनाशक,

११. लक्ष्मणप्राणदाता,

१२. दशग्रीवस्य दर्पहा। 

मंगलवार, 7 मार्च 2023

होली : जीवन का अभिन्न अंग है रंग Holi : Colour Is An Integral Part Of Life

 शीतांशु कुमार सहाय

   

    
हो-ली अर्थात् किसी के साथ हो लेने को ही 
होली की संज्ञा दी जाती है। चूँकि ईश्वर ने मनुष्य को बुद्धि के उपरान्त विवेक भी दिया है, इसलिए विवेकानुसार अच्छाई के साथ ही होना मनुष्यता को प्रदर्शित करेगा। मनुष्यता प्रदर्शित करते हुए अच्छाई के साथ हो लीजिये और तब देखिये कि होली का कितना मज़ा आता है! मज़ा तो तब सजा में बदल जाता है, जब बुराई के साथ हो लिया जाता है। यकीन मानिये कि होली में अधिकतर बुराई को ही आत्मसात् करने की एक परम्परा-सी चल पड़ी है। खूब नशा करो और जी भरकर हुल्लड़बाजी करोअगर कोई प्रतिकार करे तो जबर्दस्ती करो और सामनेवाला अगर शक्तिशाली निकला तो बुरा न मानो होली है का घिसा-पिटा जुमला सुना दो। यही सूत्र वाक्य हो गया है आजकल होली का। इसे कभी भी उचित नहीं ठहराया जा सकता। 
      उपर्युक्त संदर्भ को यदि अपने ऊपर लागू करवाएँ तो आप को शालीन होली का अभद्र स्वरूप दिखायी देगा। जो शालीन है उसे शालीन ही रहने दीजिये। "प्यार को प्यार ही रहने दोकोई और नाम न दो।शानदार परम्परा को बिगाड़ने का अनधिकृत अधिकार अपने हाथों में लेकर स्वयं को निन्दा का पात्र बनाना उचित तो नहीं। वास्तव में होली का सरोकार न नशे से है और न ही अभद्रता से। इस का सम्बन्ध तो अहंकारशून्य होकर सौहार्द फैलाने से है। यह सौहार्द केवल सनातन धर्म से ही आबद्ध न होकर सम्पूर्ण समाज से जुड़ा है। 

       सौहार्द से पारस्परिक प्रेम का ऐसा प्रणयन होता है जो युगों-युगों तक घर-परिवार-समाज को स्नेह की शीतल छाया प्रदान करता रहता है। ऐसे वातावरण में अहंकारशून्य अर्थात् संस्कारित संतति उत्पन्न होती है। ऐसे संस्कारवानों से ही समतामूलक समाज की उत्पत्ति होती है। समानता पर आधारित समाज के निर्माण में जब प्रह्लाद को भारी समस्या का सामना करना पड़ाघर-परिवार का भी सहयोग नहीं मिलायहाँ तक कि पिता हिरण्यकश्यप (हिरण्यकशिपु) भी जान के दुश्मन बन गये तब भगवान को आना ही पड़ा। सामाजिक सौहार्द के शत्रु का अवसान हुआ और फिर से अमन-चैन का राज कायम हुआ। यह पौराणिक घटना केवल धर्मारूढ़ नहींबल्कि सर्वधर्म समभाव पर लागू होनेवाला वैज्ञानिक सत्य है। इसे नकारा नहीं जा सकता। वैज्ञानिकता यह कि किसी भी प्राणी-योनि में जन्म लेकर अमरता को आत्मसात् नहीं किया जा सकता। कोई-न-कोई एक कारण होगा ही जिस के कारण मौत को गले लगाना पड़ेगा। इसी कारण न धरतीन आकाशन पाताल मेंन दिन मेंन रात मेंन किसी अस्त्र-शस्त्र से और किसी मानव-दानव-देव के हाथों न मरने का वरदान पाकर हिरण्यकश्यप अपने को अमर समझने की भूल कर बैठा। इसलिए भगवान को नरसिंह का रूप धारण कर संधि काल में अपने घुटने पर रखकर भयानक नाखूनों से उसे मृत्यु दण्ड देना पड़ा। यहाँ जाननेवाली वैज्ञानिकता यह है कि दूसरों को सताते समय अहंकारवश अपने को अमर समझने की भूल
होली की मङ्गलकामना 

की जाती है। इसी 
भूल को जला डालना ही वास्तविक होलिका दहन है। 

       समस्त भूलों व दुष्प्रवृत्तियों को जलाने के पश्चात् रंगों से होली खेलने की बारी आती है। लालपीलेहरेनीले- सभी रंग मिलकर एक हो जाते हैं। रंगों से सराबोर सब के चेहरे एक जैसे लगते हैं। किसी में कोई फर्क नहीं रह जाता है। सभी समान नजर आते हैं। होली अपनी समता यहीं प्रकट करती है। विभिन्न रंगों में छिपे चेहरों में कौन खरबपति और कौन खाकपति हैयह पता लगाना मुश्किल होता है। कौन खाते-खाते परेशान है और कौन खाये बिना, रंगों के बीच यह विभेद भी सम्भव नहीं। 
     याद रखिये कि जीवन का अंग है रंगइसे दुत्कारिये नहीं स्वाकारिये। वसन्त के इस रंगीले पर्व के माध्यम से अपने जीवन में भी नवविहान लाइयेरंगीन हो जाइये होली के साथ!
 

मंगलवार, 24 जनवरी 2023

अन्दमान-निकोबार के इक्कीस द्वीपों को मिले परमवीर चक्र विजेताओं के नाम Twentyone Islands Of Andaman-Nicobar Got The Names Of Paramveer Chakra Winners

 प्रस्तोता : शीतांशु कुमार सहाय 

      भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सुभाष चन्द्र बोस की जयन्ती 'पराक्रम दिवस' के अवसर पर २३ जनवरी २०२३ को अन्दमान-निकोबार द्वीप समूह के इन इक्कीस द्वीपों के नाम परमवीर चक्र विजेताओं के नाम पर रखने की घोषणा की...

1. INAN 198- नायक जदुनाथ सिंह (भारत-पाक युद्ध 1947)

2. INAN 474- मेजर राम राघोबा राणे (भारत-पाक युद्ध 1947)

3. INAN 308- ऑनरेरी कैप्टन करम सिंह (भारत-पाक युद्ध 1947)

4. INAN 370- मेजर सोमनाथ शर्मा (भारत-पाक युद्ध 1947)

5. INAN 414- सूबेदार जोगिंदर सिंह (भारत-चीन युद्ध 1962)

6. INAN 646- लेफ्टिनेंट कर्नल धन सिंह थापा (भारत-चीन युद्ध 1962)

7. INAN 419- कैप्टन गुरबचन सिंह (भारत-चीन युद्ध 1962)

8. INAN 374- कम्पनी हवलदार मेजर पीरू सिंह (भारत-पाक युद्ध 1947)

9. INAN 376- लांस नायक अलबर्ट एक्का (भारत-पाक युद्ध 1971)

10. INAN 565- लेफ्टिनेंट कर्नल अर्देशिर तारापोर (भारत-चीन युद्ध 1962)

11. INAN 571- हवलदार अब्दुल हमीद (भारत-पाक युद्ध 1965)

12. INAN 255- मेजर शैतान सिंह (भारत-चीन युद्ध 1962)

13. INAN 421- मेजर रामास्वामी परमेश्वरन (श्रीलंका में भारतीय शांति सेना के शहीद 1987)

14. INAN 377- फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों (भारत-पाक युद्ध 1971)

15. INAN 297- सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल (भारत-पाक युद्ध 1971)

16. INAN 287- मेजर होशियार सिंह (भारत-पाक युद्ध 1971)

17. INAN 306- कैप्टन मनोज पांडेय (कारगिल युद्ध 1999)

18. INAN 417- कैप्टन विक्रम बत्रा (कारगिल युद्ध 1999)

19. INAN 293- नायक सूबेदार बाना सिंह (सियाचिन में पाकिस्तान से पोस्ट छीनी 1987)

20. INAN 193- कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव (कारगिल युद्ध 1999)

21. INAN 536- सूबेदार मेजर संजय कुमार (कारगिल युद्ध 1999)


शनिवार, 14 जनवरी 2023

२०८० तक मकर संक्रान्ति १५ जनवरी को ही, जानिये महत्ता, धार्मिकता और ऐतिहासिकता Makar Sankranti Only on 15th January, Know Significance, Religiosity & Historicity




    -शीतांशु कुमार सहाय 

      सन् २०८० ईस्वी तक मकर संक्रान्ति १५ जनवरी को ही मनायी जायेगी। यह धारणा सही नहीं है कि मकर संक्रान्ति केवल १४ जनवरी को ही मनायी जाती है। यह पृथ्वी, सूर्य आदि की खगोलीय गति पर आधारित है। यह गूढ़ ज्ञान पूरी तरह भारतीय ज्योतिषीय गणना है। हमारे इस प्राचीन वैज्ञानिक प्रगति को देखकर आज का विज्ञान और वैज्ञानिक हतप्रभ हैं। इस गणना का परिणाम आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर भी पूरी तरह सच सिद्ध होता है। वास्तव में सूर्य के उत्तरायण होने के प्रथम दिवस को मकर संक्रान्ति का पर्व मनाया जाता है। इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं। सूर्य के उत्तरायण अवधि (छः माह) को पुण्य काल माना जाता है। भगवान ने 'श्रीमद्भगवद्गीता' में भी इस की चर्चा करते हुए कहा है कि इस काल में मृत्यु को प्राप्त होने वाला जीव देवलोक में जाता है या जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है। यही कारण है कि शर-शय्या के कष्ट को सहते हुए भी भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा की और तब प्राण त्यागे। यहाँ मकर संक्रान्ति की महत्ता, धार्मिकता और ऐतिहासिकता पर सामान्य नज़र डालते हैं :- 

गंगा मिली थीं सागर से

      मकर संक्रांति के दिन ही स्वर्ग से पृथ्वी पर आने के बाद माँ गंगा महर्षि भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई नदी रूप में सागर में जाकर मिली थीं। वर्तमान में उस सागर को बंगाल की खाड़ी कहते हैं। जिस स्थान पर बंगाल की खाड़ी में गंगा मिलती है, उस स्थान को गंगा सागर कहा जाता है। इस उपलक्ष्य में मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगा सागर में मेला लगता है और विश्व भर के श्रद्धालु यहाँ डुबकी लगाते हैं। इस दिन गंगा, अन्य नदियों और तीर्थों में स्नान करने की पवित्र परम्परा है।

 श्राद्ध और तर्पण का दिन 

     महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए मकर संक्रान्ति के दिन तर्पण किया था। राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों का गंगाजल, अक्षत, तिल से श्राद्ध व तर्पण किया था। तब से मकर संक्रांति स्नान और मकर संक्रांति श्राद्ध तर्पण की प्रथा आज तक प्रचलित है। पावन गंगा जल के स्पर्श मात्र से राजा भगीरथ के पूर्वजों को स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी। कपिल मुनि ने वरदान देते हुए कहा था, "हे माँ गंगे! त्रिकाल तक जन-जन का पापहरण करेंगी और भक्तजनों की सात पीढ़ियों को मुक्ति एवं मोक्ष प्रदान करेंगी। गंगा जल का स्पर्श, पान, स्नान और दर्शन सभी पुण्यफल प्रदान करेगा।"

गंगा को पृथ्वी पर क्यों लाये भगीरथ

      एक कथा के अनुसार, एक बार राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ किया और अपने अश्व को विश्व-विजय के लिए छोड़ दिया। इन्द्रदेव ने उस अश्व को छल से कपिल मुनि के आश्रम में बाँध दिया। जब कपिल मुनि के आश्रम में राजा सगर के साठ हजार पुत्र युद्ध के लिए पहुँचे तो कपिल मुनि ने शाप देकर उन सब को भस्म कर दिया। राजा सगर के पोते अंशुमान ने कपिल मुनि के आश्रम में जाकर विनती की और अपने परिजनों के उद्धार का रास्ता पूछा। तब कपिल मुनि ने बताया कि इन के उद्धार के लिए गंगा को धरती पर लाना होगा। तब राजा अंशुमान ने तप किया और अपनी आनेवाली पीढ़ियों को यह सन्देश दिया। बाद में अंशुमान के पुत्र दिलीप के यहाँ भगीरथ का जन्म हुआ और उन्होंने अपने पूर्वज की इच्छा पूर्ण की। भगीरथ की तपस्या के प्रभाव से ही स्वर्ग में प्रवाहित होनेवाली पवित्र नदी गंगा पृथ्वी पर आयीं। पृथ्वीवासी माँ की पवित्र संज्ञा देते हुए गंगा की पूजा करते हैं। 

असुरों के अन्त का दिन 

      मकर संक्रान्ति के दिन ही भगवान विष्णु ने असुरों का अन्त कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। उन्होंने सभी असुरों के सिरों को मन्दार पर्वत में दबा दिया था। इसलिए यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को समाप्त करने का सन्देश देता है।

दैनिक सूर्य पूजा 

      अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में दैनिक सूर्य पूजा का प्रचलन चला आ रहा है। रामकथा में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा नित्य सूर्य पूजा का उल्लेख मिलता है। मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य की विशेष आराधना होती है।

सूर्य की सातवीं किरण

      सूर्य की सातवीं किरण भारतवर्ष में आध्यात्मिक उन्नति की प्रेरणा देनेवाली है। सातवीं किरण का प्रभाव भारत वर्ष में गंगा-यमुना के मध्यभूमि पर अधिक समय तक रहता है। इस भौगोलिक स्थिति के कारण ही हरिद्वार और प्रयाग में माघ मेला अर्थात् मकर संक्रान्ति या पूर्ण कुम्भ अथवा अर्द्धकुम्भ मेले के विशेष धार्मिक उत्सव का आयोजन होता है। 

      यहाँ यह जानने की बात है कि भारतीय हजारों-लाखों वर्ष पूर्व ही यह जानते थे कि सूर्य से सात प्रमुख रंगों की किरणें निकलती हैं। आधुनिक विज्ञान ने तो प्रिज्म के आविष्कार के बाद यह जान सका कि धूप में सात रंग की किरणें हैं- बैंगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी और लाल। इन रंगों के मिश्रण से अनेक रंग बनाये जा सकते हैं।  

भीष्म और उत्तरायण सूर्य

      द्वापर युग में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा की थी। उत्तरायण में देह छोड़नेवाली आत्माएँ या तो कुछ काल के लिए देवलोक में चली जाती हैं या पुनर्जन्म के चक्र से उन्हें छुटकारा मिल जाता है। भीष्म का श्राद्ध-संस्कार भी सूर्य की उत्तरायण गति में हुआ था। फलतः आज तक पितरों की प्रसन्नता के लिए तिल अर्घ्य एवं जल तर्पण की प्रथा मकर संक्रान्ति के अवसर पर प्रचलित है।

पुत्र के घर जाते हैं सूर्यदेव 

      मकर संक्रान्ति के दिन सूर्यदेव अपने पुत्र शनिदेव के घर (मकर) एक महीने के लिए जाते हैं। विदित हो कि मकर राशि के स्वामी शनि हैं। मतलब यह कि मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं। पहले कुम्भ राशि के स्वामी धे शनिदेव। इस सन्दर्भ में एक कथा जानिये। 

सूर्य और शनि की कथा

      कथा के अनुसार, सूर्यदेव ने शनि और उन की माता छाया को स्वयं से अलग कर दिया था। इस कारण शनि के प्रकोप के चलते उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था। तब सूर्यदेव के दूसरे पुत्र यमराज ने रोग को ठीक किया। रोगमुक्त होने के बाद सूर्यदेव ने क्रोधवश शनि के घर कुम्भ को जला दिया था। तत्पश्चात् यमराज के समझाने पर वे जब शनि के घर गये तो उन्होंने वहाँ देखा कि सबकुछ जल चुका था केवल काला तिल ही शेष बचा था। अपने पिता को देखकर शनिदेव ने उन का स्वागत उसी काले तिल से किया। इस से प्रसन्न होकर सूर्य ने उन्हें दूसरा घर ‘मकर’ उपहार में दे दिया। इस के बाद सूर्यदेव ने शनि को कहा कि जब वे उनके नये घर मकर में आयेंगे, तो उन का घर फिर से धन-धान्य से भर जायेगा। साथ ही कहा कि मकर संक्रान्ति के दिन जो भी काले तिल और गुड़ से मेरी पूजा करेगा उस के सभी कष्ट दूर हो जायेंगे।

श्रीकृष्ण के लिए यशोदा का व्रत 

      माता यशोदा ने श्रीकृष्‍ण के लिए व्रत किया था तब सूर्य उत्तरायण हो रहे थे। मतलब यह कि उस दिन मकर संक्रान्ति थी। तभी से पुत्र और पुत्री के सौभाग्य के लिए मकर संक्रान्ति के व्रत का प्रचलन प्रारंभ हुआ।

पुण्यकाल 

      मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण गति करने लगते हैं। इस दिन से देवताओं का छः माह आरम्भ होता है, जो आषाढ़ मास तक रहता है। सूर्य के उत्तरायण होने के बाद से देवों की ब्रह्म मुहूर्त उपासना का पुण्यकाल प्रारम्भ हो जाता है। इस काल को ही परा-अपरा विद्या की प्राप्ति का काल कहा जाता है। इसे साधना का सिद्धिकाल भी कहा गया है। इस काल में देव प्रतिष्ठा, गृह निर्माण, यज्ञ कर्म आदि शुभ कर्म किये जाते हैं। मकर संक्रान्ति के एक दिन पूर्व से ही व्रत उपवास में रहकर योग्य पात्रों को दान देना चाहिए।

आराधना का विशेष अवसर

     वास्तव में मकर संक्रांति का पर्व ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश, आद्यशक्ति और सूर्य की आराधना एवं उपासना का पावन व्रत है, जो तन-मन-आत्मा को शक्ति प्रदान करता है। इस के प्रभाव से प्राणी की आत्मा शुद्ध होती है। संकल्प शक्ति बढ़ती है। ज्ञान तन्तु विकसित होते हैं। मकर संक्रान्ति चेतना को विकसित करनेवाला पर्व है।

तिल के छः प्रयोग अवश्य करें 

      विष्णु धर्मसूत्र में उल्लेख है कि पितरों की आत्मा की शान्ति के लिए और स्वयं के स्वास्थ्यवर्द्धन तथा सर्वकल्याण हेतु तिल के छः प्रयोग पुण्यदायक एवं फलदायक होते हैं- तिल जल से स्नान करना, तिल दान करना, तिल से बना भोजन, जल में तिल अर्पण, तिल से आहुति, तिल का उबटन लगाना।

खिचड़ी की परम्परा 

मकर संक्रान्ति के दिन खिचड़ी ग्रहण करने की परम्परा बहुत ही पुरानी है। एक ऐतिहासिक कथा के अनुसार, आतंकी और मुस्लिम हमलावर अलाउद्दीन खिलजी और उस की सेना के विरुद्ध बाबा गोरखनाथ (गोरक्षनाथ) और उन के शिष्यों (योगियों) ने भी धर्म और आमजन की रक्षा के लिए  जमकर युद्ध किया था। युद्ध के कारण समयाभाव में योद्धा योगी भोजन पकाकर खा नहीं पाते थे। इस कारण योगियों की शारीरिक शक्ति घटती जा रही थी। तब बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और हरी सब्जियों और औषधियों (मसालों) को मिलाकर एक व्यञ्जन तैयार किया। इसे 'खिचड़ी' की संज्ञा दी गयी। यह कम समय और कम परिश्रम में बनकर तैयार हो गया। इस के सेवन से योगी शारीरिक रूप से ऊर्जावान भी रहते थे। खिलजी जब भारत छोड़कर गया तो योगियों ने मकर संक्रान्ति के उत्सव में प्रसाद के रूप में खिचड़ी बनायी। इस कारण प्रतिवर्ष मकर संक्रान्ति पर खिचड़ी बनाने और ग्रहण करने की परम्परा चल पड़ी। गोरखपुर में बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाकर इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।

      



      भगवान की कृपा आप पर बनी रहे!


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सोमवार, 9 जनवरी 2023

जैन के चौबीस तीर्थंकर Twentyfour Tirthankaras of Jainism



 -शीतांशु कुमार सहाय 

     सनातन धर्म का एक महत्त्वपूर्ण सम्प्रदाय 'जैन' है। विश्व में इस के करोड़ों अनुयायी हैं। इस की विशालता को देखते हुए इसे 'जैन धर्म' की भी संज्ञा दी जाती है। जैन सम्प्रदाय में कुल २४ तीर्थंकर हुए। इन के क्रमवार नाम जानिये :-

१. ऋषभदेव जी (आदिनाथ),
२. अजितनाथ जी,
३. सम्भवनाथ जी,
४. अभिनन्दननाथ जी,
५. सुमतिनाथ जी,
६. पद्मप्रभुनाथ जी,
७. सुपार्श्वनाथ जी,
८. चन्दाप्रभुनाथ जी,
९. . सुमतिनाथ जी,
१०. शीतलनाथ जी,
११. श्रेयांसनाथ जी,
१२. वासुपूज्यनाथ जी,
१३. विमलनाथ जी,
१४. अनन्तनाथ जी,
१५. धर्मनाथ जी,
१६. शान्तिनाथ जी,
१७. कुन्थुनाथ जी,
१८. अरहनाथ जी,
१९. मल्लिनाथ जी,
२०. सुव्रतनाथ जी,
२१. नमिनाथ जी,
२२. नेमिनाथ जी (अरिष्टनेमिनाथ जी)
२३. पार्श्वनाथ जी और 
२४. वर्द्धमान महावीर स्वामी जी।