शनिवार, 25 अप्रैल 2020

कोरोना वायरस Coronavirus (Episode-1)

कोरोनाशास्त्रम् -१

-अमित कुमार नयनन

कोरोना काल

         मानव इतिहास का वह काल जब समय स्थिर हो गया है और मानव अस्तित्व इस काल में कैद होकर रह गया है। धरती पर मानव इतिहास का यह ऐतिहासिक पल है!

कोरोना और मिथक

         महाभारत में अर्जुन को जब भगवान श्रीकृष्ण उपदेश दे रहे थे उस दौरान काल स्थिर हो गया था। समय की सारी स्थितियाँ एक काल में और एक ही स्थिति में कैद होकर रह गयी हैं! मानव सभ्यता के सारे रास-रंग स्थिर हो गये हैं मानो शिव के त्रिनेत्र ने काम-रति को भस्म कर दिया है। 
        कोरोना ने वामन अवतार की तरह पूरी दुनिया में दौड़ क्या लगायी, सारी दुनिया उस के संक्रमण का शिकार हो गयी। रक्तबीज की तरह कोरोना वायरस धरती पर पसर गया है। 
         जिस तरह रक्तबीज का जहाँ-जहाँ खून टपकता, वहाँ उस की शक्ति के समान ही प्रतिरूप जन्म ले लेता था, ठीक उसी तरह कोरोना स्पर्श मात्र से ही अदृश्य दुश्मन की तरह प्रकट हो शिकार करता जा रहा है। इस प्रकार यह रक्तबीज से भी भयानक है। रक्तबीज के संहार के लिए माँ शक्ति को माँ महाकाली का अवतार लेना पड़ा था इस के संहार के लिए भी उसी प्रकार के प्रयास हो रहे हैं। महाकाली के अवतार का जिस प्रकार काल और महाकाल साक्षी हैं, उसी प्रकार कोरोना के संहार के लिए भी महाकाली अवतार के लिए काल-महाकाल साक्षी बनेंगे।
         महाभारत काल की भाँति महाभारत युद्ध से पहले जिस तरह समय ‘स्थिर’ हो गया था, उसी तरह सबकुछ ‘स्थिर’ हो गया है। सभी ‘कालचिन्तन’ में लगे हैं, गीतोपदेश की भाँति विविध उपदेश की झड़ी लगी है। इस में देश-विदेश सभी लगे हैं। इस में जीवन-दर्शन, प्राणी-दर्शन से लेकर तमाम प्रकार के दर्शन- वेबदर्शन-सह-देवदर्शन की झड़ी लगी है। एक ऐसी लड़ी जो पहले से लगी है, एक ऐसी लड़ी जो लड़ी जा रही है- बुराइयों के विरूद्ध, विविध दर्शनों के बीच।  
          एक ही साथ कई इतिहास पुनर्घटित हो रहे हैं, पुनर्जीवित हो रहे हैं। 
        उस वक़्त श्रीकृष्ण उपदेश दे रहे थे। इस वक़्त भी समय और स्थिति उपदेश दे रहे हैं। हालाँकि धरती के सब से बुद्धिमान प्राणी को उपदेश देने के लिए भगवान या समय या स्थिति या किसी और के पास भी कुछ बचा नहीं है। सतयुग से कलियुग तक सारे उपदेश तो इन्होंने दे डाले। अब समय है आत्ममन्थन का। अमृतमन्थन का। मगर क्या यह हलाहल के बिना हो पायेगा। और इस हलाहल को पीयेगा कौन? पीने वाला शिव कहाँ मौजूद है?

कोरोना उवाच

         कोरोना एक विषाणु है जीवाणु नहीं। वायरस है, बैक्टीरिया नहीं।
        कोरोना कहता है: मैं विषाणु हूँ, जीवाणु नहीं; वायरस हूँ, बैक्टीरिया नहीं। इसलिए मैं नर या नारी भी नहीं हूँ.....मगर.....अगर.....प्रकृति देवी की कृपा से जीव का रूप भी ले सकता हूँ। इस प्रकार नर-नारी दोनों मुझ में समाये हैं, मैं नर-नारी दोनों हूँ!

अर्द्धनारीश्वर कोरोना

         इस प्रकार अर्द्धनारीश्वर कोरोना का उदय हो चुका है।

नरसिंहावतार कोरोना

         कोरोना बारबार, बारम्बार अपने रूप बदलने में मेधावी है। उस की इस मेधा में उसे एक साथ कई जीवरूप लेने व कई जीवोंरूपों के साथ एकसाथ प्रकट होने की क्षमता को प्रकट कर दिया है। इस प्रकार ‘नरसिंहावतार कोरोना’ का उदय भी हो चुका है।


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