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रविवार, 31 मई 2020

कोरोनो और विश्वयुद्ध Corona & World War

-अमित कुमार नयनन 

विश्वप्रसिद्ध विनाशलीला

     विश्वप्रसिद्ध विनाश लीलाओं में एक अध्याय और जुड़ गया। क्या यह अन्त की शुरुआत है? अभी १०० वर्ष हुए हैं और दुनिया तृतीय विश्वयुद्ध के मुहाने पर खड़ी है।

पब्लिक

     प्रथम विश्वयुद्ध और द्वितीय विश्वयुद्ध जिन्होंने भी नहीं देखा है, उन के लिए तृतीय विश्वयुद्ध देखने का यह ‘स्वर्णिम अवसर’ है। अलबत्ता कुछ लोग जो जीवन की शतकीय पारी खेल चुके और नॉटआउट हैं, उन के लिए तीनों विश्वयुद्ध देखने का ‘सौभाग्य’ प्राप्त होने जा रहा है। ईश्वर ने उन्हें तीनों विश्वयुद्धों का साक्षी होने और उन के गुण-धर्म वगैरह का आकलन और समीक्षा कर दुनिया को बताने, दुनिया का मार्गदर्शन करने के लिए उन्हें धरती पर भेजा है। अलबत्ता यह तभी हो पायेगा, जब वह इस युद्ध को पूरी तरह देखेंगे। अन्यथा तृतीय विश्वयुद्ध का हिस्सा तो वह बन ही चुके हैं, हम सभी की तरह।
     मेरे विचार से, युगदर्शन के रूप में सिर्फ़ एक विश्वयुद्ध देखनेवाले साधारण, दो विश्वयुद्ध देखनेवाले स्पेशल और तीनों विश्वयुद्ध देखनेवाले वीआईपी क्लास की श्रेणी में हैं। इस प्रकार तीनों विश्वयुद्ध देखनेवाले सब से सीनियर, दो विश्वयुद्ध देखनेवाले सीनियर और एकमात्र विश्वयुद्ध देखनेवाले जुनियर हैं।

१०० वर्ष में ही तीसरा विश्वुयुद्ध?

     अरे! इस क्रम में यह बात तो भूल ही रहा था कि १०० वर्ष में ही तीनों विश्वुयुद्ध की नौबत आ गयी! इस निर्णायक घड़ी में हमें सिर्फ़-और-सिर्फ़ सही फैसले लेने की ज़रूरत है। ये फैसले सही तभी हो सकते हैं, जब ये पूरी तरह पक्षपातरहित और तटस्थ हों। वक़्त पर सही फैसले लेना और सही समय पर सही फैसला लेना वास्तव में एक सही इंजीनियर का गुण होता है।

फैसला

     फैसला हमें करना है। सिर्फ़-और-सिर्फ़ हमें करना है। हमारा फैसला ही हमारे अच्छे-बुरे का फैसला करेगा। यही हमारे भविष्य की दिशा तय करेगा। इस से अच्छी बात क्या हो सकती है कि अपनी ज़िन्दगी के सारे फैसले हमारे हाथ में हैं और न सिर्फ़ हमारे हाथ में हैं; बल्कि उस के न्यायकर्ता भी हम ही हैं। हमारा भविष्य सिर्फ़-और-सिर्फ़ हम तय करते हैं!

शनिवार, 30 मई 2020

कोरोना इतिहास चलचित्र Corona History Channel

-अमित कुमार नयनन
     कोरोना ने दुनिया के लिए घर बैठे हिस्ट्री चैनल खोल दिया है। इस के आप दर्शक भी हैं और पात्र भी। 
     कोरोना ने हमें वर्तमान में स्थिर कर भविष्य के दर्शन पर रोक लगा दिया है। अल्पकाल के लिए ही सही लेकिन इतिहास की ओर धकेल दिया है। कोरोना ने एक ओर जहाँ अतीत के भविष्य की सभ्यता को स्थिर कर मानव को अतीत की परछायी दिखायी है, वहीं उस ने अतीत की यात्रा का फ्री ट्रैवल पैकेज भी दिया है।
     एक वक़्त था, जब मनुष्य धरती पर नया-नया आया था। तब सिर्फ़ जंगली जीव-जन्तु, जलचर, पक्षी वगैरह जीव रहते थे। फिर मनुष्य ने सभ्यता बनायी तो जंगल और जीव-जन्तु सिमट गये, दुबक गये।
     मनुष्य जब तक वाहन नहीं बनाया था, तब तक पैदल ही देश-परदेस की यात्रा करता था और वह भी बहुत ज़रुरत पड़ने पर। ध्यान से देखिये, कोरोना ने इतने ही समय में सब कुछ चलचित्र की तरह दिखला दिया जिस के असली पात्र आप और हम ही हैं।
     कोरोना ने अतीत की झाँकी दिखायी। कोरोना न इन्सान को घरों के अन्दर दुबककर रहने के लिए मज़बूर किया है। इस ने बताया और दिखाया- देखो! जब तुम धरती पर आये थे, तब यह दुनिया कैसी लगती थी और आज यह कैसी दीख रही है? तब पर्यावरण कैसा था, अब कैसा है?
     तब जीव-जन्तु और सभी प्राणी समस्त दुनिया में निर्भय हो विचरण करते थे। उस ज़माने में लोग पैदल ही देशाटन करते थे। आज की उन्नत दुनिया में वह दृश्य देख और जी लिया जैसा आरम्भिक काल में जीया था- सैकड़ों कोस पैदल.....। 
     इतिहास के मानव ने केवल इतिहास जीया था जबकि वर्तमान के मानव ने इतिहास और वर्तमान दोनों जीया है। इस प्रकार आज का मनुष्य वास्तव में इतिहास के मनुष्य से ज़्यादा सौभाग्यशाली है। यह सौभाग्य कोरोना की वज़ह से सम्भव हुआ है।
     कोरोना ने अतीत की झाँकी दिखायी है। अतीत का फ्री टूर पैकेज! एक रुपया भी खर्च नहीं और पूरी दुनिया ने एक साथ यात्रा कर ली अतीत और वर्तमान की। ...ओह! यह अनुभव तो सचमुच स्वर्णिम है!

शुक्रवार, 29 मई 2020

कोरोना और विश्व Corona & World

-अमित कुमार नयनन
     अब दुनिया पहले जैसी नहीं रही। देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान, कितना बदल गया इन्सान। इन्सान बदला, इसलिए उस के लिए दुनिया बदल गयी।
     वीराना! सारी दुनिया वीरान पड़ी हुई है। सारी दुनिया वीराना बन गयी है। दुनिया की सारी सड़कंे वीरान पड़ी हुई हैं। गली, कूचे, मुहल्लों में सन्नाटा पसरा हुआ है। सारी जगह वीरानगी छायी हुई है।
     ऐसा कैसे हो सकता है? ऐसा तो किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा। ऐसा लगता है जैसे स्वप्न देख रहे हैं।
     कोराना ने पूरी दुनिया को कारावास में बदल दिया। सभी अपने घर में नज़रबन्द हैं। मानो सभी अपने ‘सेल’ में बन्द हों। हर कोई अपने आवास में रहकर भी मानो कारावास में बैठा है। सारी दुनिया अपने ही घर में नज़रबन्द है।   
     सावधान....विश्राम! कोरोना ने सारी दुनिया को सावधान कर दिया और दुनिया विश्राम पर चली गयी- अनिश्चितकाल के लिए।

कोरोना का विश्व

     यह कुछ समय पहले तक अस्तित्वविहीन, कुछ वर्षो पहले तक अज्ञात, कुछ महीनों पहले तक गुमनाम, कुछ दिनो पहले तक अनाम रहे कोरोना की दुनिया है!

विश्व नज़रबन्द

     विश्व ने समस्त विश्व में होनेवाली नकारात्मक गतिविधियों पर अपनी आँखें मूँद ली थी, इसलिए समस्त विश्व को आज अपने ही घर में नज़रबन्द होना पड़ा है। कोई गली, कोई मुहल्ला, कोई शहर बन्द करता है, यहाँ तो सारा विश्व ही बन्द है। आँखें मँूदने का आँखों देखा फल ऐसा मिलेगा, किस ने सोचा था? 
     विश्व का महत्त्वपूर्ण मसलों पर भी चुप रहना, अपराध या अपराधसम स्थितियों पर भी चुप्पी बाँधे रहना.....ने ही उसे इस स्थिति में पहुँचाया है। जब एकाएक वैश्विक आपदा आ गयी। यहाँ तक कि मनुष्य का अस्तित्व तक खतरे में पड़ गया।
     कोरोना के कई अर्थ निकाल रहे हैं भई! एक अर्थ यह भी है कि ‘कुछ करो नऽ’। जी हाँ! सारी दुनिया माथापच्ची में डूबी है। इस आफत से छुटकारा कैसे पाया जाय? कोरोना ने पहले ही शॉट में बाउण्ड्रीलाइन पार करा दुनिया को घर में घुसे रहने पर मज़बूर कर दिया।
     विश्व हक्का-बक्का है। काटो तो खून नहीं है। काटनेवाले को भी काटो तो खून नहीं है, फिर भी खून चूसनेवाला खूनी है। कल चमन था, आज यह सहरा हुआ! देखते-ही-देखते यह क्या हुआ? हम से क्या भूल हुई जो ये सजा हम का मिली, अब तो चारों ही तरफ बन्द हैं दुनिया की गली। गलियाँ सूनसान, दुनिया वीरान!

आँखों देखी

     इन्सान खुली आँखों से स्वप्न देख रहा है। उसे आँखों देखी पर विश्वास नहीं हो रहा है। उसे अभी आँखों के आगे कुछ नहीं सूझ रहा है। लोग को अपनी ही आँखों देखी पर विश्वास नहीं हो रहा था कि कल तक जिस दुनिया में वह खुलकर जी रहे थे, अचानक उसे क्या हो गया? जिस दुनिया पर वे राज कर रहे थे, अचानक ही एक वायरस का गुलाम हो गया।
     कोरोना का जिस ने भी उपहास किया, स्वयं ही उपहास का पात्र हो गया। जिस ने भी उस का मज़ाक उड़ाया स्वयं ही मज़ाक का पात्र बन गया और जिस ने दाँत दिखाये, उस के करतब को देखकर दाँत निपोरने को विवश हो गये।

कोरोना कथानक

     ऐसा लगता है जैसे यह किसी कहानी का प्लॉट या फिल्म की स्क्रिप्ट है। मगर वास्तविकता यह है कि यह एक जीता जागता सच है!
     दुनिया अच्छी-खासी चल रही थी। अचानक ऐसा क्या हुआ कि सबकुछ थम-सा गया, चलती-फिरती ज़िन्दगी अचानक रूक-सी गयी। ऐसा लगा जैसे ज़िन्दगी में पाउज बटन दबा दिया हो। ज़िन्दगी फ्रीज हो गयी हो। जिं़दगी फ्रीज हो या कूलर.....माहौल बिल्कुल कूल नहीं है!

गुरुवार, 28 मई 2020

किस धातु के बर्तन हैं लाभदायक और कौन हानिकारक
Which Metal Utensils are Beneficial & Which are Harmful



-शीतांशु कुमार सहाय
     स्वस्थ रहने के लिए कई उपायों का पालन करना पड़ता है। पर, एक उपाय ऐसा भी है जिस पर आम तौर पर ध्यान जाता ही नहीं है। इस बुलेटिन में आप जानेंगे कि किस प्रकार बर्तन हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। जिन धातुओं के बर्तनों में हम भोजन पकाते हैं या भोजन ग्रहण करते हैं, उन के अंश भोजन में शामिल हो जाते हैं जो शरीर को लाभ या हानि पहुँचाते हैं। मतलब यह कि धातुओं का सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है। किस प्रकार के बर्तन में भोजन पकाना चाहिये? किन धातुओं के बर्तन में खाने से शरीर नीरोग रहता है? किस धातु के बर्तन में भोजन करने से क्या लाभ या हानि है? वह कौन धातु है जिस का बर्तन भारत के हर घर में है और वह सब से ज़्यादा हानिकारक है? इन सब के बारे में अभी तुरन्त आप जानेंगे.....


सोना Gold

     सब से पहले जानते हैं स्वर्ण अर्थात् सोने से बने बर्तन के बारे में। सोना गर्म धातु है। सोने से बने बर्तन यानी पात्र में भोजन बनाने और करने से शरीर के आन्तरिक और बाहरी अंग सुदृढ़, बलवान और स्वस्थ बनते हैं। आँखों की ज्योति बढ़ाने में सोने का महत्त्वपूर्ण योगदान है। त्वचा की झुर्रियों और बुढ़ापे के लक्षणों से शरीर को मुक्त रखने में सोना सक्षम है। 
     सोना बहुत महँगा धातु है। इसलिए अधिकतर लोग आर्थिक रूप से इतने सक्षम नहीं होते कि सोने के पात्रों का उपयोग कर सकें। ऐसी स्थिति में अन्य लाभदायक धातुओं के पात्र में भोजन पकायें या खायें लेकिन सप्ताह में एक बार किसी साफ पत्थर पर सोने का बिस्कुट या सोने का कोई आभूषण रगड़कर उसे चाट लें तो सोने से होनेवाले सभी लाभों को आप प्राप्त कर सकते हैं। सोने के पात्र में मांस, मछली, अण्डा, अधिक खट्टे पदार्थ, दही आदि न रखें और न खायें।   

चाँदी Silver

     अब रजत अर्थात् चाँदी की चर्चा करते हैं। चाँदी को ठण्डा धातु माना जाता है। यह शरीर को आन्तरिक ठण्डक प्रदान करती है। शरीर को शान्त रखने में चाँदी सक्षम हैैै। चाँदी के बर्तन में भोजन बनाने और करने से दिमाग तेज होता है, आँखें स्वस्थ रहती हैं और आँखों की रोशनी बढ़ती है। चाँदी पित्तदोष, कफ और वायुदोष को नियन्त्रित करती है। 
     सोने से सस्ती है चाँदी, फिर भी अधिकतर लोग इतने सामर्थ्यवान नहीं हैं कि चाँदी के बर्तन में भोजन बनायें और खायें। पर, कुछ उपाय तो किया ही जा सकता है। हर महीने हज़ारों रुपये दवाइयों पर खर्च करने से बचने के लिए चाँदी के बर्तनों पर कुछ हज़ार रुपये खर्च कर दीजिये। आप चाँदी के चम्मच, गिलास और कटोरी से इस की शुरुआत करें और स्वास्थ्य लाभ करते हुए प्रगति के पथ पर आगे बढ़ें। चाँदी के बर्तन में अण्डा या कोई मांसाहार, खट्टा पदार्थ, दही खाना वर्जित है।  

काँसा Bronze

     स्वर्ण और रजत की अपेक्षा काँसा सस्ता है। ताम्बे में राँगा मिलाने से काँसा बनता है। प्रत्येक भारतीय घर में काँसे के कुछ बर्तन मिल ही जाते हैं। काँसे के बर्तन में खाना पकाने और खाने से बुद्धि तेज होती है और रक्त में शुद्धता आती है। साथ ही रक्तपित्त तथा अम्लपित्त के रोग शान्त हो जाते हैं और भूख सामान्य रूप से बढ़ती है। एक प्रयोग के आधार पर कहा गया है कि काँसे के बर्तन में भोजन पकाने से केवल 3 प्रतिशत ही पोषक तत्त्व नष्ट होते हैं। काँसे के पात्र में पके भोजन बुद्धिवर्द्धक, स्वादिष्ट और रुचि उत्पन्न करनेवाले होते हैं। जो व्यक्ति उष्ण प्रकृतिवाले हैं, मतलब यह कि जिन्हें सामान्य लोग की अपेक्षा अधिक गर्मी लगती है या जिन्हें बात-बात पर क्रोध आता है, वे काँसे के पात्र में भोजन पकायें और खायें। जिन्हें किसी प्रकार का चर्मरोग है, यकृत यानी लीवर से सम्बन्धित रोग है या हृदय की कोई बीमारी है तो काँसे के पात्र स्वास्थ्यप्रद साबित होंगे। 
     याद रखिये, काँसे के बर्तन में खट्टे खाद्य पदार्थ नहीं परोसनी चाहिये। खट्टी चीजें काँसा धातु से प्रतिक्रिया कर विषैली हो जाती हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है। 

ताम्बा Copper

     ताम्बे का बर्तन स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा है। इस धातु के बर्तन में भोजन पकायें या खायें तो स्वास्थ्य सुधरता है, कई रोगों से मुक्ति मिलती है, रक्त शुद्ध होता है, स्मरण-शक्ति बढ़ती है, लीवर यानी यकृत से सम्बन्धित रोग दूर होते हैं और शरीर से विषैले तत्त्व निकल जाते हैं। 
    याद रखिये, ताम्बे के बर्तन में दूध नहीं पीना चाहिये। इस से शरीर को नुकसान होता है। 

पीतल Brass

    काँसे की तरह ही पीतल भी मिश्र धातु है। ताम्बा और जस्ता मिलाकर पीतल का निर्माण होता है। पीतल के बर्तनों में पका भोजन खाने से कृमि रोग, कफ और गैस से जुड़ी समस्याएँ नहीं होतीं। पीतल धातु में भोजन जल्दी पकता है; क्योंकि यह तुरन्त गर्म हो जाता है। इस से ईंधन की बचत होती है और भोजन भी स्वादिष्ट बनता है। 
     जिन्हें कब्ज, गैस या पेट की कोई बीमारी है, उन्हें पीतल के बर्तन में भोजन ग्रहण करना चाहिये। पीतल में पका भोजन शरीर को अपेक्षाकृत अधिक ऊर्जा प्रदान करता है। पीतल का भोजन आँखों के लिए बहुत लाभदायक है। पीतल के बर्तन में भोजन पकाने और भोजन करने से कृमि रोग, कफ और वायुदोष की बीमारी नहीं होती। 
विशेषज्ञों की बात मानें तो पीतल में भोजन पकाने से केवल चार से सात प्रतिशत पोषक तत्त्व ही ख़त्म होते हैं, इसलिए इस में भोजन पकाना और खाना काफ़ी फायदेमन्द होता है। 
     याद रखें कि पीतल में दही या अन्य खट्टा पदार्थ नहीं रखना चाहिये।

लोहा Iron

     अब लोहे के बर्तन के सन्दर्भ में जानते हैं। लौह पात्रों में बने भोजन को ग्रहण करने से शरीर की शक्ति बढ़ती है। लौह्तत्त्व शरीर में ज़रूरी पोषक तत्त्वों को बढ़ाता है। लोहा कई रोगों को ख़त्म करता है। लोहे के बर्तन में पकाये भोजन को ग्रहण करने से पीलिया यानी जौण्डिस में लाभ होता है और यकृत स्वस्थ हो जाता है। साथ ही शरीर में सूजन वाले रोग और कामला रोग समाप्त हो जाते हैं। शरीर में अगर खून की कमी है, हीमोग्लोबिन की मात्रा कम है यानी एनीमिया रोग है तो लोहे के बर्तन में बना भोजन अमृत के समान है।
     याद रखिये, लोहे के पात्र में भोजन पकाना चाहिये मगर इस में खाना नहीं चाहिये। लोहे में खाने से बुद्धि कम होती है और मस्तिष्क का नाश होता है। लोहे के पात्र में दूध पीना अच्छा माना जाता है। 

इस्पात या स्टेनलेस स्टील Steel or Stainless Steel

     इस्पात या स्टेनलेस स्टील के बर्तन हानिकारक नहीं होते तो लाभदायक भी नहीं होते। स्टील के बर्तनों में भोजन पकाने से न पोषक तत्त्वों में कमी आती है और न ही वृद्धि होती है। वर्तमान में सभी घरों में स्टेनलेस स्टील के बर्तन मिलते हैं।

एल्युमीनियम Aluminium

     बॉक्साइट नामक खनिज से बनता है एल्युमीनियम। स्टील की तरह ही एल्युमीनियम ने अधिकतर भारतीय घरों में अपनी पैठ बना ली है। एल्युमीनियम वास्तव में आयरन और कैल्शियम को सोखता है, इसलिए एल्युमीनियम के बर्तनों का उपयोग नहीं करना चाहिये। एल्युमीनियम में भोजन पकाने और खाने से शरीर को केवल हानि ही है, लाभ कुछ नहीं। 
     अगर आप एल्युमीनियम का उपयोग करते हैं तो इस से होनेवाली हानि को भी जान लीजिये। इस से हड्डियाँ कमजोर होती हैं, मानसिक बीमारियाँ होती हैं, लीवर यानी यकृत और तन्त्रिका तन्त्र अर्थात् नर्वस सिस्टम को क्षति पहुँचती है, स्मरण शक्ति कमजोर होती है, अचानक वृक्क यानी किडनी फेल हो सकती है, यक्ष्मा यानी टीबी, दमा यानी अस्थमा, गैस्ट्रिक, मधुमेह यानी डायबिटीज जैसे घातक रोग हो सकते हैं। भोजन के माध्यम से एल्युमीनियम का अंश जब शरीर में पहुँचता है तो पाचनतंत्र, मस्तिष्क, हृदय, अन्तःस्रावी ग्रन्थियों और आँखों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
     एल्युमीनियम के बर्तनों में पकाने-खाने से मुँह में छाले, पेट का अल्सर, एपेण्डिसाइटिस, पथरी, माईग्रेन, जोड़ों का दर्द, सर्दी, बुखार, बुद्धि की कमी, अवसाद यानी डिप्रेशन, सिरदर्द, अतिसार यानी डिसेण्ट्री, पक्षाघात यानी लकवा आदि बीमारियाँ होने की सम्भावना ज़्यादा रहती है। हानिकारक पक्ष को जानकर कई लोग अपने घर में अब एल्युमीनियम के बर्तनों का प्रयोग नहीं करते। पर, उन के घरों में प्रेशर कूकर एल्युमीनियम के ही हैं। एल्युमीनियम के प्रेशर कूकर की जगह स्टील का प्रेशर कूकर उपयोग में लाएँ।
     याद रखिये, एल्युमीनियम के प्रेशर कूकर मंे भोजन पकाने से 85 से 90 प्रतिशत तक पोषक तत्त्व समाप्त हो जाते हैं। घर से अगर एल्युमीनियम धातु के बर्तन हटा दिये जायें तो निश्चय ही दर्जनों रोग भाग जायेंगे।

मिट्टी Soil

    प्राचीन काल में सब से पहले मनुष्य ने मिट्टी के बर्तनों का ही उपयोग करना सीखा। कालान्तर में धातुओं के प्रयोग होने लगे। मिट्टी के पात्रों में भोजन पकाने से ऐसे पोषक तत्त्व मिलते हैं, जो बीमारियों को शरीर से दूर रखते हैं। इस बात को अब आधुनिक विज्ञान भी सिद्ध कर चुका है कि मिट्टी के बर्तनों में पके भोजन को खाने से कई तरह के रोग ठीक होते हैं। 
     आयुर्वेद के अनुसार, अगर भोजन को पौष्टिक और स्वादिष्ट बनाना है तो उसे धीरे-धीरे ही पकना चाहिये। भले ही मिट्टी के बर्तनों में भोजन पकाने पर अपेक्षाकृत अधिक समय लगता है लेकिन इस से स्वास्थ्य को पूरा लाभ मिलता है। मिट्टी के बर्तन में पके खाद्य पदार्थ के १०० प्रतिशत पोषक तत्त्व सुरक्षित रहते हैं।
     मिट्टी में एण्टी एलर्जी तत्त्व होते हैं। पेट के रोगियों के लिए मिट्टी के बर्तन में खाना और पकाना फायदेमन्द होता है। मिट्टी के बर्तन भोजन को पौष्टिक बनाये रखते हैं। मिट्टी के बर्तनों में पके भोजन को ग्रहण करने से मासिक स्राव के दौरान होनेवाले रक्त प्रदर और नाक से खून आना जैसी समस्याओं से राहत मिलती है। 
   याद रखें, मिट्टी के बर्तन में प्रतिदिन भोजन नहीं करना चाहिये। पत्थर या मिट्टी के बर्तनों में नियमित भोजन करने से लक्ष्मी का क्षय होता है। दूध और दूध से बनी सामग्रियों के लिए सब से उपयुक्त है मिट्टी के बर्तन। 
     .....तो आप ने जान लिया कि आप के लिए कौन धातु लाभदायक है और कौन घातक। केवल घातक धातुओं को घर के बाहर कीजिये और परिवार के साथ जीवन का आनन्द लीजिये।

कोरोना लॉकडाउन Corona Lockdown

Lockdown-5

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Unlock-1


-अमित कुमार नयनन
     कुछ दिनों पहले की ही बात है..... It was Just a Few Days Ago --जनता कर्फ्यू, लॉकडाउन-1, लॉकडाउन-2, लॉकडाउन-3, लॉकडाउन-4..... हमारे प्रिय प्रधानमंत्री भी कुछ कम नहीं हैं। उन्होने भी पहले ‘प्रथम दिन’ एक दिन का लॉकडाउन कर सारे देश को अपने ही घर में घुसवा दिया। फिर शाम होते ही देशवासियों के हाथ ताली बजवा दी, थाली पिटवा दी और फिर उन्हें उन के ही द्वारा अगले 21 दिनों के लिए अपने घरों कैद करवा दिया।
     देश के लोग अपनी ही इच्छित कैद के लिए अपने हाथों ताली बजाकर सहर्ष घर में घुस गये। इस तरह हर इन्सान अपने ही घर में नज़रबन्द हो गया। जनता पहले 1 दिन फिर दिन 21 दिन के बाद लॉकडाउन खुलने का इन्तज़ार कर ही रही थी कि 21 दिन का लॉकडाउन और बढ़ गया। हॉलीडे पिकनिक के साथ गुलामी का फ्र्री पैकेज साथ मिला था- ऐसा टूर पैकेज भला कब, किसे मिलता है! यह कोरोना ने सम्भव कराया। इस के लिए हम सभी को कोरोना का शुक्रगुज़ार होना चाहिये। उसे आभार प्रकट करना चाहिये। सारी दुनिया का हाल बेहाल कर उस ने चारा ही क्या छोड़ा था? इसलिए हमारे प्रधानमंत्री के पास चारा ही क्या बचा था? इसलिए कोरोना उत्पात तक के लिए उन्होंने हमारे हाथों ही ताली बजवा हमें हमारे ही हाथों अपने ही घर में कैद करवा दिया।
     पहले दिन तो लगा कि मजा आ रहा है। फिर लगा कि मजा तो सजा बन गयी। इस के बाद लगा, चलो! कुछ दिनों की बात है। उस के बाद फिर कुछ दिन आगे बढ़ा तो लगा कुछ दिन और सही। पर, अब भी बात हो रही है कि सबकुछ चरणबद्ध तरीके से खुलेगा, जहाँ आप के चरण से लेकर सबकुछ बँधे रहेंगे यानी पूरी सावधानी से। पहले की तरह कुछ भी नहीं रहेगा। सवाल है कि कितने दिन और? हर एक्सटेन्शन से हर किसी को टेंशन हो रही है तो जबाब है कोई जवाब नहीं।
     कोरोना से पहले अधिकतर लोग कर्फ्यू का मतलब ठीक से जानते थे, लॉकडाउन का नहीं। लॉकडाउन के अर्थ को सही पहचान सही मायने में कोरोना कृपा से कोरोना काल में मिली है। लॉकडाउन को सही मायने में कोरोना का शुक्रगुजार होना चाहिये। अन्यथा वह डिक्शनरी में उस शब्द की भाँति था जैसा कोई नेता पार्टी में रहकर भी गुमनाम रहता है। यह गुमनाम अब नामचीन हो गया है! रोमांचक बात यह कि नामचीन बनने की इस की शुरुआत चीन से ही हुई है! 
      लॉकडाउन जिस में पहले से ही ‘डाउन’ है, डाउनफॉल की शुरुआत है जिस ने अपने आरम्भ काल में ही समस्त विश्व को अपने घरों में रहने के लिए मजबूर कर दिया। 
     इशारा समझिए। दुनिया बदल चुकी है। जो स्वतंत्र जीवन हम जी चुके वह अतीत की बात है। इस दुनिया पर एक वायरस जन्म ले चुका है जिस के हम गुलाम हैं। अब हम वही करेंगे जो वह कहेगा, जो वह चाहेगा, जो वह.....गा!

मंगलवार, 26 मई 2020

कोरोना मण्डली Corona Mandali

-अमित कुमार नयनन
     कोरोना की कुण्डली में कोरोना की मण्डली का योग लिखा था। इसलिए कोरोना के जन्म के साथ ही कोरोना की मण्डली भी जगजाहिर हो गयी। भगवान शिव और माँ दुर्गा के पास जिस प्रकार भूत-प्रेत, पिशाच, योगिनी की मण्डली हैं, उसी प्रकार कोरोना की अपनी मण्डली है।
     कोरोना की अपनी मण्डली, अपना फोर्स है। अपना टास्क फोर्स है। जिसे टास्क मिला है कि सारी दुनिया को लाइनहाजिर करो। इसलिए कोरोना के सामने कोरोना मण्डली ने दुनिया को एक लाइन में लाइनहाजिर कर दिया। इस हाजिर-नाजिर के बाद दुनिया की हाजिरी के साथ दुनिया की क्लास लगनी तय थी। क्लास भी लगी फर्स्ट क्लास!
     कोरोना के पास चूँकि कई प्रकार की दैवीय शक्तियाँ हैं, इसलिए वह अपने साथ कोरोना मण्डली के रूप में कई भूत, प्रेत, गण, पिशाच, योगिनियाँ आदि लेकर घूम रहा है। एक ओर जहाँ इस के कई प्रतिरूप हैं, वहीं दूसरी ओर कई अवतार भी हैं। ये निरन्तर बढ़ते ही जा रहे हैं और खोजबीन के साथ लगातार सामने आते जा रहे हैं। दुनिया खोज में लगी है, कोरोना बीन बजा रहा है। खोजबीन!
     दुनिया चैन की वंशी बजा रही थी, चैन की नीन्द सो रही थी, कुम्भकर्णी नीन्द- तभी न जाने कहाँ से कोरोना नाम का असुर उस की चिरनिद्रा में खलल डालने आ गया। निद्रा बनाम चिरनिद्रा की चीर-फाड़ करने में लग गया। जो उस के अर्थात् कोरोना के साथ हुआ था, जो उस ने सिखा था- मानो दुनिया की सीख उसी पर आजमा रहा हो। दुनिया ने उस के साथ जो किया, वह वही उस के साथ कर रहा था। इसे कहते हैं- जैसे को तैसा और बोए को काटना।

सोमवार, 25 मई 2020

कोरोना वायरस- ३ : कलियुग के ऋषियों की तपस्या का परिणाम Coronavirus-3 : The Result of the Sages's Penance of Kali Yuga

कोरोनाशास्त्रम्-३

-अमित कुमार नयनन
     अमृत मन्थन प्रयोगशाला में कलियुग के ऋषि-मुनि तपस्या में लीन हैं। ईश्वर से वरदान प्राप्त कर विविध प्रकार की उपलब्धि प्राप्त कर रहे हैं। 
     यह दुनिया स्वर्ग के समान थी। इस पर धरती के इन्द्र दरबार लगा कई देवताओं से मिलकर राजकाज चला रहे थे। इस दरबार में सभी प्रकार के देवता विराजमान थे। सभी प्रकार के देवता दरबारी थे। इन के दरबार में इन के विविध कारनामों की अप्सराएँ नृत्य कर रही थीं। तभी कोरोना नाम का एक असुर न जाने कहाँ से इन की सभा में खलल डालने आ गया। इस असुर ने विविध देवताओं की आराधना कर विविध आसुरी शक्तियाँ हासिल कर ली थीं। उन्हीं आसुरी शक्तियों के बल पर वह अजेय हो गया था और स्वर्गरूपी विश्व में तहलका मचा रहा था। इन्द्र का सिंहासन डोलने लगा था। एक बार फिर! एक बार फिर इन्हें त्रिदेव याद आये। मगर वरदान लेकर आये कोरोनासुर को स्थितियों के अनुसार समय से पहले ख़त्म करना सम्भव न था। उसे वरदान के सम्मान के साथ ही संहार किया जा सकता था।
     इन्द्र का सिंहासन डोलने लगा था। स्वर्ग में अफरातफरी मच गयी थी। सारे देवता इधर-से-उधर भाग रहे थे। कोरोनासुर को वश में करना किसी एक देवता के वश में नहीं था। अपने कारनामों से समस्त विश्व को अचम्भित कर देनेवाला महाप्रतापी महादानव कोरोनासुर को वश में करने के लिए विश्व के सारे देवता तपस्या करने लगे। हालाँकि उन की तपस्या का ही एक परिणाम कोरोनासुर भी है। अब आगे-आगे देखिये होता है क्या...? 

ईश्वर और कोरोनासुर

     ईश्वर का नियम है कि जो भी मेहनत करता है, उसे वह उस का फल अवश्य देते हैं। इस क्रम में आसुरी शक्तियाँ भी उन से वरदान प्राप्त कर उस का दुरूपयोग करने की कोशिश करती हैं। अलबत्ता, बुरे का अन्त बुरा होता है- यह भी विधि का विधान है। अपने बुरे अन्त से पूर्व कोरोनासुर अपनी अँगुलियों के इशारे पर दुनिया को नचा रहा है। दुनिया को नाको चने चबवा रहा है।
     कोरोना वायरस शृंखला के पहले के दो भागों को भी पढ़ें ;-

कोरोना वायरस' - २ (कोरोनाशास्त्र - २) Coronavirus-2

कोरोना वायरस' - १ (कोरोनाशास्त्र - १) Coronavirus-1


भारतीय संस्कृति में आध्यात्मिकता व धर्म चर्चा Discussion of Spirituality & Religion in Indian Culture

धर्म का केन्द्र और सारतत्त्व है प्रणव
-शीतांशु कुमार सहाय
     भारतीय संस्कृति में विभिन्नता उस का दूषण नहीं वरन् भूषण है। यहाँ सनातन यानी हिन्दू धर्म के अगणित रूपों और सम्प्रदायों के अतिरिक्त बौद्ध, जैन, सिक्ख, इस्लाम, ईसाई, यहूदी आदि धर्मों की विविधता का भी एक सांस्कृतिक समायोजन देखने को मिलता है।
     हिन्दू धर्म के विविध सम्प्रदाय एवं मत सारे देश में फैले हुए हैं, जैसे वैदिक मत, शैव, वैष्णव, शाक्त आदि पौराणिक धर्म, राधा-वल्लभ सम्प्रदाय, श्री सम्प्रदाय, आर्यसमाज, समाज आदि। परन्तु इन सभी मतवादों में सनातन धर्म की एकरसता खण्डित न होकर विविध रूपों में गठित होती है। यहाँ के निवासियों में भाषा की विविधता भी इस देश की मूलभूत सांस्कृतिक एकता के लिए बाधक न होकर साधक प्रतीत होती है।
     'अध्यात्म' शब्द अधि+आत्म– इन दो शब्दों से बना है। अधिक-से-अधिक आत्म अर्थात् स्वयं को समझना ही अध्यात्म है। आत्मा को आधार बनाकर जो चिन्तन या कथन हो, वह अध्यात्म है। भारतीय आध्यात्मिकता में धर्मान्धता को महत्त्व नहीं दिया गया। इस संस्कृति की मूल विशेषता यह रही है कि व्यक्ति अपनी परिस्थितियों के अनुरूप मूल्यों की रक्षा करते हुए कोई भी मत, विचार अथवा धर्म अपना सकता है। यही कारण है कि यहाँ समय-समय पर विभिन्न धर्मों के उदय तथा साम्प्रदायिक विलय होते रहे हैं। 
    आध्यात्मिकता हमारी संस्कृति का प्राणतत्त्व है। इस में ऐहिक अथवा भौतिक सुखों की तुलना में आत्मिक अथवा पारलौकिक सुख के प्रति आग्रह देखा जा सकता है। चतुराश्रम-व्यवस्था (अर्थात् ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वाणप्रस्थ व संन्यास आश्रम) तथा पुरुषार्थ-चतुष्ट्य (धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष) का विधान मनुष्य की आध्यात्मिक साधना के ही प्रतीक हैं। इन में जीवन का मुख्य ध्येय धर्म अर्थात् मूल्यों का अनुरक्षण करते हुए मोक्ष माना गया है।
     आज धर्म के जिस रूप को प्रचारित एवं व्याख्यायित किया जा रहा है उस से बचने की ज़रूरत है। धर्म मूलतः संप्रदाय नहीं है। ज़िंदगी में हमें जो धारण करना चाहिये, वही धर्म है। नैतिक मूल्यों का आचरण ही धर्म है। धर्म वह पवित्र अनुष्ठान है जिस से चेतना का शुद्धिकरण होता है। धर्म वह तत्त्व है जिस के आचरण से व्यक्ति अपने जीवन को चरितार्थ कर पाता है। यह मनुष्य में मानवीय गुणों के विकास की प्रभावना है, सार्वभौम चेतना का सत्संकल्प है। 
     मध्ययुग में विकसित धर्म एवं दर्शन के परम्परागत स्वरूप एवं धारणाओं के प्रति आज के व्यक्ति की आस्था कम होती जा रही है। मध्ययुगीन धर्म एवं दर्शन के प्रमुख प्रतिमान थे- स्वर्ग की कल्पना, सृष्टि एवं जीवों के कर्ता रूप में ईश्वर की कल्पना, वर्तमान जीवन की निरर्थकता का बोध, अपने देश एवं काल की माया एवं प्रपंचों से परिपूर्ण अवधारणा। उस युग में व्यक्ति का ध्यान अपने श्रेष्ठ आचरण, श्रम एवं पुरुषार्थ द्वारा अपने वर्तमान जीवन की समस्याओं का समाधान करने की ओर कम था, अपने आराध्य की स्तुति एवं जय गान करने में अधिक था।
     धर्म और अध्यात्म के मार्ग पर चलकर अगर भगवद्कृपा प्राप्त करनी है तो कोई परिश्रम करने की ज़रूरत नहीं है, केवल इन्द्रियों को वश में कर मन को शुद्ध रखने का प्रयास आज से ही आरम्भ के दीजिये।

बुधवार, 20 मई 2020

कोरोना परिचय Corona Introduction

-अमित कुमार नयनन
कोरोना कपोल-कल्पना, गल्प-गॉशिप नहीं है। यह एक जीती-जागती सच्चाई है। अजूबा है! कोरोना! यह नाम कुछ और भी हो सकता था, हो सकता है! इसे कुछ और नाम भी दिया जा सकता था मगर इस की क्षमता पर कोई-न-कोई प्रकृति का नुमाइन्दा इन्सान की क्लास लेने तो आने ही वाला था- यह या इस जैसा!

नोवेल बनाम नोबल कोरोना

नोवेल कोरोना कहीं से भी 'नोबल' नहीं है। इस का अर्थ यह मत समझिये कि इस में नो-बल है; क्योंकि इस में बल बहुत है। सोचिये कि जब यह दिखायी नहीं देता तब इस से विश्व में इतना भय व्याप्त है। अगर यह दिखायी देता तो भय कितना गुना अधिक होता!? 

असुर कोरोना

कोरोना एक असुर, एक दानव, एक राक्षस है! अतीत में शुम्भ-निशुम्भ, हिरण्यकशिपु, रावण जैसे न जाने कितने असुर पैदा हुए हैं। यह उसी असुर वंश की वंशावली का नया कलयुगी अवतार है। यह असुरों का नया कलयुगी उत्तराधिकारी है।

विलक्षण कोरोना

कोरोना जन्म से ही विलक्षण है। कोरोना में जन्मपूर्व और जन्मजात विलक्षण लक्षण हैं। इस में अधिकतर दैवीय लक्षण हैं। सच कहा जाय तो जिस प्रकार यह परिणाम दे रहा है, इस के लक्षण को दैवीय तो कतई नहीं कहा जा सकता; बल्कि कुलक्षण कहना ज़्यादा या बिल्कुल सही होगा। इसलिए यह कहा जाय कि इस के पास दैवीय शक्तियाँ हैं जिन का उपयोग वह असुर कार्य के लिए कर रहा है, तो बिल्कुल ग़लत न होगा।
कोरोना के अधिकतर कृत्य जो जन्मपूर्व व शिशुकाल में लक्षित हैं, वे श्रीकृष्ण के जन्मपूर्व, जन्म के साथ, जन्म के बाद की लीलाओं से मेेल खाते हैं। अलबत्ता श्रीकृष्ण भगवान थे, अतः उन्होंने अपनी महाशक्तियों का उपयोग विश्वकल्याण, विश्वरक्षा, अधर्म का नाश, धर्म की रक्षा, धर्म की स्थापना के लिए किया। चूँकि कोरोना असुर है, इसलिए वह अपनी शक्तियों का उपयोग मानव प्रताड़ना और विश्वविनाश के लिए कर रहा है। 

अदृश्य कोरोना

कोरोना का एक विशेष विशिष्ट गुण है कि यह दृश्य होकर भी अदृश्य है। इसे विशेष सूक्ष्मदर्शी यन्त्रों से देखा जा सकता है। विशेष भौतिक यन्त्रों से ही इस के लक्षणों की पहचान की जा सकती है। इस के चेहरे, लक्षण और स्वभाव के आकलन किये जा सकते हैं। हालाँकि इस के विविध व बहुरूपिया चरित्र के कारण इस का चेहरे, लक्षण और स्वभाव सभी परिवर्तनशील हैं। इस का कोई एक चरित्र नहीं है, इसलिए यह त्रियाचरित्र से भी ज़्यादा विचित्र है। कहा जाता है कि स्त्री का निर्माण करनेवाले ब्रह्माजी भी उस का चरित्र यानी त्रियाचरित्र नहीं समझ पाये। तो समझ लीजिये कि सृष्टि और ब्रह्माण्ड के जन्मदाता ब्रह्माजी भी इसे नहीं समझ पाये तो आप और हम क्या समझेंगे। इसलिए कोरोना हम सब को कुछ नहीं समझ रहा है। अब आप और हम भगवान भरोसे हैं!

रक्तचरित्र कोरोना

कोरोना जन्म से ही रक्तचरित्र, रक्तपिपासु और रक्तबीज है। इस प्रकार यह उस शैतान देवता की तरह हो गया है जिसे ज़िन्दा रहने के लिए रक्त-ही-रक्त चाहिये। वह रक्तवर्णी है। वह रक्तरंजित है। वह रक्तिम है। जहाँ रक्त-ही-रक्त के अलावा कोई भी रिक्त स्थान नहीं है। इसे जीने के लिए खून, खून, खून और बस खून ही चाहिये। मतलब यह कि यह दुनिया का खून पी रहा है।

बहुरूपिया कोरोना

कोरोना बार-बार अपने चेहरे बदल रहा है। वह कई चेहरों के साथ नरसिंहावतार की तरह भी प्रकट हो रहा है। कोरोना में रूप व लक्षण बदलने की विलक्षण क्षमता है। अतः इसे पहचाना जाना अब मुश्किल हो रहा है। इस अनविजिबल महाबली दैवी शक्तियों से लैस असुर का जो हर क्षण किसी-न-किसी की बलि लिये जा रहा है, को किस प्रकार वश में किया जाय, किसी को समझ नहीं आ रहा। इस के हाथों निरन्तर शहीद हो रहे लोग का बलिदान कहीं व्यर्थ तो नहीं जायेगा?

करामाती कोरोना

करामाती कोरोना की चमत्कारी शक्ति बढ़ती ही जा रही है। अब उस ने तैरना और उड़ना भी शुरू कर दिया है। सुना है कि अभी यह शुरूआती दौर में है। शुरुआती दौर में भी इस की गति बहुत तेज है। आगे और भी तेज होगी इस की गति। कोरोना को कुछ समय पहले जानता कौन था? आज सब जानता है। इसलिए कि इस की गति बहुत तेज है। कमर कस लीजिये, शुरुआती गति है यह, अभी सुपरफास्ट की स्पीड आनेवाली है।

कोरोना वंशावली

अजातशत्रु कोरोना

कोरोना के बारे में कहा जाता है कि जन्म के साथ इस ने अपने पिता को लील लिया था। यह अपने पिता की हत्या का कारण बना था, अतः यह पितृहन्ता है। इस ने अपने पिता की हत्या कर दी थी, अतः यह अजातशत्रु है। प्रयोगशाला में नवरूप में मूर्त्तरूप देकर जन्म दे रहे इस के पिता डॉ. ली वेनलियांग को उस के देश के शासकों ने बेटे कोरोना से पीड़ित होने का हवाला देकर परमगति पर भेज दिया था। यों कोरोना ने पिता के ‘परमार्थ’ के कारण अन्ततोगत्वा सद्गति प्रदान की थी। उस के पिता के परमार्थ का फल कोविड-19 का ‘उपहार’ इन दिनों पूरा विश्व ‘भोग’ रहा है। 

कलियुगी सन्तान

कोरोना कलियुग के उन देवताओं की नाज़ायज़ औलाद है जो स्वयं किसी असुर से कम नहीं है। इन्द्र जिस प्रकार स्वर्ग का सिंहासन बचाये रखने के लिए हमेशा येन-केन-प्रकारेण शक्तियाँ अर्जित-वर्द्धित करते रहने में व्यस्त और सजग रहते थे, उसी प्रकार कलियुग के देवताओं ने भी अति उत्साह में ऐसे महाशक्तिशाली असुर को जन्म दे डाला जो उन से भी ज़्यादा शक्तिशाली निकला। जो अलादीन के चिराग के जिन्न की तरह प्रभुत्वशाली था। दुनिया में प्रेत की तरह प्रकट हुआ यह वैताल अगिया-वैताल बन विश्वरूपी सोने की लंका में हनुमानजी की तरह जगह-जगह छलाँग लगाकर आग लगा रहा है। इसलिए दुनिया सोने लायक नहीं रही। दुनिया की आँखों की नीन्द गायब है; क्योंकि विश्व की जीती-जागती दुनिया में आग लग गयी है।

कोरोना बैटमैन Corona Batman

-अमित कुमार नयनन
     कोरोना के जन्म के लिए कभी प्रयोगशाला, कभी चमगादड़ तो कभी इस पर और कभी उस को दोष दिया जा रहा है। पर, इस सन्दर्भ में अपनी ग़लती कोई नहीं मानना चाहता। स्वयं को दोष कोई नहीं देना चाहता।
     कोरोना असल में चमगादड़ यानी बैट की जीन से बना वायरस-बैट है और कोरोना से प्रभावित हर एक मनुष्य बैटमैन है। कोरोना से प्रभावित दुनिया में बैट-मैन का मेला लग गया है और अभी गिनती जारी है। आप और हम कब फन्तासी की दुनिया से जुड़ गए और उस के जीते-जागते पात्र बन गये, पता भी नहीं चला, अलबत्ता इतनी मौतों के बाद मनुष्य को जीते-जागते पात्र कहना सही नहीं होगा। साथ ही यकीन मानिये, हम जो जीवन जी रहे हैं, वह कोई कपोल-कल्पना नहीं है। ...तो इस का मतलब यह हुआ कि यथार्थ की दुनिया में फन्तासी का विलय हो चुका है।    
     चमगादड़ की तो बात ही छोड़िये। चमगादड़ के अहोभाग्य कि विश्व में हॉरर फिल्मों के अलावा उसे मानव समाज ने कभी इतना सम्मान दिया हो। मानो इस से पहले धरती पर कभी चमगादड़ थे ही नहीं! उसे कभी इतना ख़ौफनाक समझा गया हो, ऐसा प्रमाण भी नहीं है। 
     कभी कैंसर और एड्स के विषाणु धरती पर नये थे, आज नोवेल कोरोना वायरस है। पर, इस से इतर चमगादड़ कब से विषाणु पैदा करने लगे? यह आश्चर्य भी है और प्रश्न भी। सच तो यह है कि मनुष्य के प्रयोग ने ही चमगादड़ों को इतना ख़तरनाक बना दिया।
     कुछ दिनों से चमगादड़ों को नोवेल कोरोना का बाप घोषित और सिद्ध कर दिया गया है। चमगादड़ की इस औलाद की सारी दुनिया दुश्मन बन गयी है। हर कोई इसे मिटा देना चाहता है। जल्द-से-जल्द इस का वज़ूद समाप्त कर देने को आतुर है। यह आतुरता इसलिए; ताकि इन्सान के काले कारनामों, ग़लत करतूतों और सनकी भूल का सबूत जल्द-से-जल्द नष्ट हो जाय। जिस प्रकार यह जल्द-से-जल्द प्रकट हो गया, उसी प्रकार जल्द-से-जल्द नष्ट हो जाय। ऐसी भी क्या जल्दी है? अभी तो शुरूआत है!

कोरोना, मनुष्य और चमगादड़

     इन्सान ने जिस प्रकार विविध जीवों का, चमगादड़ों का खून पीया था, उन्हीें के खून से सना और बना नोवेल कोरोना पिशाच बना इन्सानों का खून पी रहा है। कोरोना नरपिशाच बन चुका है।

कोरोना और चमगादड़

     कोरोना से कोरोना के स्वयं के अलावा एक और चरित्र को भी फायदा हुआ। कोरोना वायरस के कारनामों से जितना सम्मान चमगादड़ों को मिला है, उतना सम्मान चमगादड़ को कभी अपने कारनामों से नहीं मिला होगा!
     इन्सान ने पहले नरपिशाच की तरह चमगादड़ों का खून पीया फिर उसी को मेन विलेन बना दिया। उस पर प्रयोग ख़ुद किये और जब प्रयोग के परिणाम उलट आये तो अपने कुकर्मों का सारा दोष उस निरीह प्राणी पर थोप दिया- उन घोटालेबाजों की तरह जो अनाज की घोटालेबाजी की रपट लिखते समय चूहों का ज़िक्र करना कभी नहीं भूलते और फिर चूहों को ही मेन विलेन बना देते हैं।
     इन्सान चमगादड़ों को इस प्रकार दोष दे रहा है, मानो आज से पहले धरती पर चमगादड़ कभी थे ही नहीं। अचानक ही प्रकट हो गये, अचानक ही खूनी बन गये।

ब्रैम स्टोकर, ड्रैकुला, चमगादड़, कोरोना

     ब्रैम स्टोकर ने जब ‘ड्रैकुला’ लिखी होगी, तब सोचा भी नहीं होगा कि ड्रैकुला का सेनावाहिनी किरदार चमगादड़ फिल्मों का तो लोकप्रिय पिशाच पात्र बनेगा ही, साथ ही आनेवाले समय में वैज्ञानिकों का भी चहेता नरपिशाच बन जायेगा। आज यदि ब्रैम स्टोकर ड्रैकुला पर फिल्म लिखते तो चमगादड़ मण्डली को कोरोना मण्डली के साथ दिखाते ही या फिर आनेवाले समय में बै्रम स्टोकर की ड्रैकुला पर फिल्म बनी तो आश्चर्य नहीं कि इस के आनेवाले किसी सीक्वल में चमगादड़ मण्डली में कोरोना मण्डली के दर्शन हो जाय। 
     ...तो ब्रैम स्टोकर का कोरोना से और कोरोना का ब्रैम स्टोकर से कनेक्शन हो ही गया। अलबत्ता ब्रैम स्टोकर के समय कोरोेना का और कोरोना के समय ब्रैम स्टोकर का कोई कनेक्शन नहीं है फिर भी इन का एक-दूसरे से कनेक्शन हो ही गया। इसे कहते हैं कोरोना कनेक्शन। .....किस्मत कनेक्शन!

सोमवार, 18 मई 2020

कोरोना नामकरण Corona Nomenclature

-अमित कुमार नयनन
     कोरोना के नाम संस्कार का तो मामला कुछ ऐसा है कि इस का नामकरण काफ़ी पहले ही हो गया था मगर कुछ समय पहले तक लोग कोरोना का नाम तक नहीं जानते थे। अब यह नाम सब की ज़्ाुबान पर है, बच्चे-बच्चे की ज़ुबान पर है। पूरे विश्व में अब कोरोना का नाम ‘सम्मान’ से लिया जाता है। इस के प्रशंसकों, आलोचकों और विरोधियों की संख्या भी अनगिनत है।
     श्रीकृष्ण भगवान की तरह कोरोना के कई नाम हैं- कोरोना, को-रोना, कोरो-ना, को-रो-ना......आप समझेंग स्पेलिंग मिस्टेक हैं मगर सच मानिये, यक़ीन कीजिये मिस्टेक आप कर रहे हैं। ये सभी नाम कोरोना के ही हैं; क्योंकि कोरोना के कारनामों के हिसाब से उक्त सारे कोरोना पर पूरी तरह ठीक और सटीक बैठते हैं। 
कोरोना जहाँ इस का वैज्ञानिक नाम है, वहीं को-रोना का अर्थ रोना का संयुक्त अभ्यास भी है तो कोरो-ना का मतलब कुछ करो ना है जो कि सभी इस अदृश्य को देखते ही बोलना शुरू हो जाते हैं तो को-रो-ना इस का ज्योतिषीय नाम है।
     कोरोना में ‘कोरो’ अर्थात् ‘कुछ करो’ और ‘रोना’ पहले से ही लिखा है, इसलिए रोना इस में पहले से ही मौज़ूद है। ‘कोरोना’ में ‘रोना’ पहले से लिखा है, इसलिए दुनिया आज रो रही है।

कोरोना नामचीन

     कोरोना नामचीन है; क्योंकि उस का जन्म चीन में हुआ है। कोरोना नामचीन के नाम में जन्म से ही ‘नाम’ छिपा था, इसलिए चीन का ही कोरोना को जन्म देने का, नामवर करने का, नामचीन बनाने का जन्मसिद्ध अधिकार था। कोरोना को नामवर-नामचीन बनाने का ठेका चीन का था, इसलिए चीन ने कोरोना को नामचीन बनाने का ठेका लिया।  

नामचीन कोरोना

     कोरोना में एक अत्यन्त ही खास बात है और वह यह कि वह स्वयं तो नामचीन है ही; बल्कि जिस के साथ वह जुड़ जाता है, वह भी नामचीन हो जाता है।
इसे ऐसे देखिये-
     वुहान! जिसे दुनिया में कोई नहीं जानता था। जिस के बारे में विश्व का एटलस लेकर खोजना पड़ता था, बताना पड़ता था। वहाँ कोरोना का जन्म क्या हुआ, किसी अवतार की जन्मस्थली की भाँति वुहान प्रसिद्ध ही नहीं विश्वप्रसिद्ध हो गया। आज बच्चे-बच्चे से लेकर बची सारी दुनिया की ज़ुबान पर है। सारे लोग भले किसी देश की राजधानी के बारे में न बता पाएँ, मगर दुनिया में वुहान कहाँ पर है, ज़रूर बता देंगे।
     कोरोना जब देश से परदेस गया तो जिस देश और स्थान में गया, वह देश-स्थान भी प्रसिद्ध हो गया। इटली, स्पेन, इंग्लैंड, फ्रान्स, अमेरिका, रूस, भारत वगैरह-वगैरह। इन में छोटे-बड़े सभी देश हैं। ये सभी देश विश्व मानचित्र पर पहले से थे मगर सब ओर इन की ही चर्चा होने लगी। इन को कोरोना की कृपा से इन्हें तात्कालिक विश्वप्रसिद्धि तत्काल हासिल हो गयी। मानो आप के अप्लाई करने से पहले ही इण्टरनेशनल परमिट मिल गया हो।
     कोरोना किमजोंग के उत्तर कोरिया में, सऊदी अरब राजमहल, इंग्लैंड राजमहल, बोरिस जॉनसन, अमेरिका व्हाइट हाउस- जहाँ-जहाँ पहुँचता गया, उन्हें प्रसिद्ध करता गया।
     इस में भी सब से रोमांचक बात यह कि अगर यह जान ले भी लेता है तो भी शख्स मरणोपरान्त भी प्रसिद्ध हो जाता है। आप अगर बॉर्डर पर युद्ध में शहीद होते हैं तो भी शायद उतना सम्मान और प्रसिद्धि मिले न मिले, कोरोना से मरनेवाला नामचीन और अमर दोनांे हो जाता है। लोग कहते हैं- देखो! बेचारा कोरोना से मर गया। भले लोग ज़िन्दा में कोरोना मरीज से किसी अछूत की तरह व्यवहार करें मगर कोरोना से मरने के बाद कोरोना उन्हें मरणोपरान्त प्रसिद्धि के साथ सहानुभूति वोट भी दिलवा ही देता है। इस के साथ ही दुनिया कितनी मतलबी, वैरागी है, यहाँ अपना कोई नहीं, का सत्य दिखलाते हुए आप के मरने के बाद उस अंजाम तक भी लिये जाता है कि आप को कन्धा देने के लिए चार जन तक नहीं मिलते। इसलिए कोरोना मोक्षदायक कोरोना भी है। मोक्षदायक कोरोना का कहना है; बल्कि साफ कहना है कि कोई किसी के लिए जीता-मरता नहीं। यह दुनिया मतलबी है, ऐसी है, वैसी है। कोरोना कहता है- धरती पर अकेले ही आये थे तो अपने साथ औरों को क्यों घसीटना चाहते हो? अकेले आये हो तो अकेले ही.....समझ गये नऽ! हाँ! 
     कोरोना जहाँ प्रकट हुआ, उस ‘स्थान’, जिस से जुड़ा वह ‘विशेष’, जिसे कोरोना के कारण जीवन से मोक्ष मिला, ‘उसे’ भी कीर्ति प्रदान करता है।
     जिस प्रकार पारस के छुने से लौह भी स्वर्ण हो जाता है, उसी प्रकार कोरोना के होने मात्र से अज्ञात भी गुमनाम और नामचीन हो जाता है।
     इस समाज के कई लोग इस कारण भाग्यशाली और प्रसिद्ध हो गये, अज्ञात और गुमनाम नामचीन हो गये; क्योंकि सिर्फ़ कोरोना ने उन्हें छू लिया। इस समाज में बहुत सारे निठल्ले लोग हैं जो सिर्फ़ समाज पर ही नहीं, स्वयं पर भी बोझ हैं। ऐसे लोग सिर्फ़ इस कारण प्रसिद्ध हो गये; क्योंकि कोरोना ने उन्हें परमगति प्रदान कर दी। जीते-जी उन्हें भले लोग न जाने हों मगर मरने के बाद दुनिया उन्हें अवश्य जान गयी। अपने जीवन की कीमत आप ने भले न समझी हो मगर कोरोना ने बा-इज़्ज़त समझी कि मरने के बाद भी आप की कीर्ति दुनिया जान रही है।

कोरोना डाई हार्ड आशिक

     कोरोना एक डाई हार्ड आशिक भी है। एक ऐसा आशिक जो प्यार के लिए मरना और मारना भी जानता है। कोरोना का प्रेम अमर है। कोरोना का प्रेम अमरत्व प्रदान करता है। कुछ इस तरह कि अपने साथ लिये जाता है। एक बार इस ने जिसे अपना बना लिया, उस के लिए दुनिया बेगानी हो गयी। कोरोना एक सच्चे प्रेमी की तरह मरते दम तक साथ नहीं छोड़ता। कोरोना का कहना है- इस दुनिया में सिर्फ मैं तुम्हारा हूँ और तुम मेरे हो!

शनिवार, 16 मई 2020

अवतार-पुरुष Avatar Purush



-अमित कुमार नयनन
राम-कृष्ण अब झगड़ पड़े हैं,
बात-बात पर बिगड़ पड़े हैं;
कौन समझाये इन को आखिर
अवतार-पुरुष सब से बड़े हैं।

देख रहे कलियुग में आकर
पाप के नये-नये रास रचाकर,
लाइन में इस के हर एक खड़े हैं;
लगता है कल्कि के आने तक
कर अपना फैसला ख़ुद डालेंगे,
अवतार-पुरुष होने का नाता;
‘कल्कि’ को माना है भ्राता,
दुःख है समय से पहले हर डालेंगे।
कहते राम-कृष्ण घबराये हुए हैं,
पर देखते हैं कि
यहाँ तो कल्कि पहले से ही
अवतार महासम्मेलन बुलाये हुए हैं।

ऐ कल्कि!
अपनी तुम गद्दी बचा लो,
समय से पहले कल्कि-युग बुला लो।
यह कलियुग बड़ा इतरा रहा है,
तेरी इज़्ज़त बिखड़ा रहा है,
कल्कि-युग का दे दिलासा
कलियुग से भगा रहा है।
देख नहीं रहे,
कभी नहीं कोई भागा था इतना तेज
जितनी तेज यह भाग रहा है।
जब कोई नहीं बचेगा
तो वहाँ जाकर तू ख़ाक
मानवता के दुश्मनों को डसेगा।

अरे!
केवल पन्नों पर ही अपने अक्षर सँवारेगा,
तो याद रख वहाँ तू केवल मच्छर मारेगा।
याद रख कल्कि!
हमें स्थान भले ही युगों ने दिया है,
पर हम ने नहीं कभी ख़ुद का युगों में जिया।
यह अकाट्य सच है कि
हम ने युगों के घर में रहकर भी
हमेशा उन पर शासन किया है।
इतिहास ने हमेशा ही
हमें सार्वभौमिक और सार्वकालिक पाया है,
इस सत्य को आज तक
कोई नहीं झुठला पाया है।
मगर यह युग आज हमें झुठला रहा है;
कल्कि-युग का दिलासा दे
तुम्हें कलियुग से भगा रहा है।
इसलिए मेरी मानो,
समय से पहले कल्कि-युग बुला लो;
सारा सेहरा अपने नाम करवा लो।
-परशूराम ने डाँट लगायी,
साथ ही प्रेमपूर्वक सारी बात समझायी।

बात अवतारों को जँच गयी,
जो कि कलियुग तक भी पहुँच गयी।
कलियुग अवतारों की शक्ति जानता था;
जो युग-काल से ऊपर जीते हैं,
उन्हें भली-भाँति पहचानता था।
वह अविलम्ब महासम्मेलन में प्रकट हुआ-
हुजूर!
मेरे हेतु यह हाल विकट हुआ
मगर क्या करूँ?
मैं मज़बूर हूँ,
पाप के भार से चूर हूँ;
आपन बिना सोचे-समझे
तीनों युगों का भार मुझ पर डाल दिया है,
एक बार में कर बेहाल दिया है।
अब और ज़्यादा भार उठाने की
मुझ में शक्ति नहीं है,
मुझ में भी भक्ति नहीं है,
जो मेरे भाई सत्, त्रेता और द्वापर की आप में थी;
मगर याद रखिये-
हर एक की स्थिति दूसरे से बदला भी।
तीनों ने उत्तरोत्तर अधिक दुःख पाया है,
उन्हें आपन अपनी अँगुलियों पर नचाया है।
सारे भक्त आ गये नज़र में,
मगर इस ‘युग-भक्त’ का
आज तक न उद्धार हो पाया है।
मुझे जितना पिटना है, पिटिये,
सरेआम जलील कर घसीटिये;
मगर आज मैं फैसला कर ही लौटूँगा
या फिर यहीं मर मिटूँगा।
‘भठयुग’ आये न आये,
मुझे अफसोस न होगा;
मगर उसे दुःख उठाना पड़ा,
ऐसा कोई आक्रोश न होगा।
अवतार बड़ी दुविधा में थे,
कलियुग की भाँति विपदा में थे।

नरसिंह ने जुबान खोली-
कलियुग का संकट हल हो गया;
व्यर्थ ही मन बेकल हो गया।
मन में इक राह सूझी है,
मानव की छोटी बुद्धि है;
क्यों न इन्हें लड़वाकर ख़त्म कर डालें,
सेहरा अवतारों के सिर मढ़वा लें।
साथ ही
भठयुग का दुःख कलियुग को दे डालें,
सुखी बना भठयुग को डालें।
कलियुग को भाई की चिन्ता है,
इस तरह यह मसला भी हल हो जायेगा;
साथ ही भ्रातृ-पुण्य उठा
अवतारों से उपहारस्वरूप युग में जन्म पुनः जायेगा।
इस तरह एक पन्थ दो काज हो जायेगा,
कलियुग सुखी साथ ही 
कल्कि अवतार हो जायेगा।
कलियुग ने सिर ठोक लिया,
अवतारों ने फिर पोट लिया;
भठयुग का बोझ भी अब लद चुका था।

अवतारों ने अपनी ख़ातिर 
कलियुग को मरवा डाला;
कल्कि-युग दे युग का दिलासा,
पुनः हरा युगों को डाला।

बुधवार, 13 मई 2020

आत्मनिर्भर भारत अभियान को पूरा जानिये KNOW FULL DESCRIPTION ABOUT AATMNIRBHAR BHARAT ABHIYAN


कोविड-19 ने देश और देश दुनिया के सामने बहुत से संकट खड़े किए हैं और चुनौती के समय में देश को अग्रसारित करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा सूक्ष्म, लघु व मध्यम वर्गीय गृह उद्योग (MSMEs)के लिए निम्नलिखित 16 घोषणाएं की है क्या आप जानते हैं एमएसएमई जोकि 12 हजार करोड़ से ज्यादा लोगों को रोजगार उपलब्ध कराता है देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है आइए जानते हैं सरकार द्वारा कौन सी घोषणाएँ की गई हैं--

  • Rupee 3 lakh Crore Collateral free automatic loan for business including MSMEs
  • MSMEs सहित व्यापार के लिए रुपये 3 लाख करोड़ संपार्श्विक नि: शुल्क स्वचालित ऋण
  • Rupee 20000 Crore subordinate debt for MSMEs
  • MSMEs के लिए रु। 20000 करोड़ अधीनस्थ ऋण
  • Rupees 50000 crore equity infusion through MSMEs fund of funds
  • MSMEs के फंड के माध्यम से रुपए 50000 karod इक्विटी इन्फ्यूशन
  • MSMEs की नई परिभाषा
  • New Definition Of MSMEs
  • Global Tender For to be disallowed upto rs 200 crores
  •  ग्लोबल टेंडर 200 करोड़ रुपये तक का है
  • Other Interventions For MSMEs
  • एसएमई के लिए अन्य हस्तक्षेप
  • Rs 2500 Crore EPF Support For Business and Workers For 3 More Months
  • 3 और महीनों के लिए व्यापार और श्रमिकों के लिए 2500 करोड़ रुपये का ईपीएफ समर्थन
  • EPF Contribution reduced for business and workers for 3 months
  • ईपीएफ अंशदान 3 महीने के लिए व्यापार और श्रमिकों के लिए कम हो गया
  • Rs 30000 Crore Liquidity facility for NBFCS/HCs/MFIs
  • एनबीएफसीएस / एचसी / एमएफआई के लिए 30000 करोड़ रुपये की तरलता सुविधा
  • Rs 45000 Cr Partial Credit Guarantee Scheme For NBFC
  • एनबीएफसी के लिए 45000 करोड़ रुपये की आंशिक क्रेडिट गारंटी योजना
  • Rs 90000 Crore Liquidity injection for DISCOMs
  • DISCOM के लिए 90000 करोड़ रुपये की तरलता इंजेक्शन
  • Relief to Contractors
  • ठेकेदारों को राहत
  • Extension of registration and completion date of real estate projects under RERA
  • RERA के तहत रियल एस्टेट परियोजनाओं के पंजीकरण और पूर्णता तिथि का विस्तार
  • Rs 50000 cr Liquidity through TDs/TCS reduction
  • टीडीएस / टीसीएस कटौती के माध्यम से 50000 करोड़ रुपये की तरलता
  • Other Tax Measures
  • अन्य कर उपाय
PM Modi आत्मनिर्भर योजना

भारत निरंतर ही बहुत ही बड़ी बड़ी जानलेवा बीमारियों जैसे टीवी पोलियो कुपोषण जैसी बीमारी से लड़ता आया है पूर्व की भांति इस बार भी हमारा संकल्प कोरोनावायरस आपदा कोविड-19 को हराना है और विश्व कल्याण में पुनः अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाना है | किसी भी देश के विकास में और उसे आत्मनिर्भर बनाने के लिए मुख्यतः 5 चीजों की आवश्यकता होती है

  • अर्थव्यवस्था  (Economy)
  • आधारिक संरचना (better Infrastructure)
  • प्रणाली (System)
  • जनसांख्यिकी (Demography)
  • मांग और आपूर्ति (Dempand & Supply Chain)

आत्मनिर्भर भारत अभियान के संकल्प

  • कोरोनावायरस संकट का सामना करते हुए नए संकल्प के साथ देश को विकास के नए दौर में ले जाने के लिए देश के विभिन्न वर्गों को एक साथ जोड़ा जाएगा और देश को विकास यात्रा की एक नई गति प्रदान की जाएगी
  • इस अभियान के अंतर्गत देश के मजदूर श्रमिक किसान लघु उद्योग कुटीर उद्योग मध्यमवर्गीय उद्योग सभी पर विशेष ध्यान अथवा बल दिया जाएगा यह पैकेज इन सभी उद्योगों को 20 लाख करोड़ की सहायता प्रदान करेगा जो कि भारत के एक गरीब नागरिक की आजीविका का साधन है
  • यह पीएम मोदी राहत पैकेज देश के उत्तरी श्रमिक व्यक्ति के लिए है जो हर स्थिति में देशवासियों के लिए परीक्षण करता है और देश को बुलंदी की ओर अग्रसर करता है

आत्मनिर्भर भारत अभियान के लाभार्थी

  • देश का गरीब नागरिक
  • श्रमिक
  • प्रवासी मजदूर
  • पशुपालक
  • मछुआरे
  • किसान
  • संगठित क्षेत्र व असंगठित क्षेत्र के व्यक्ति
  • काश्तकार
  • कुटीर उद्योग
  • लघु उद्योग
  • मध्यमवर्गीय उद्योग

PM Modi राहत पैकेज के लाभ

  • 10 करोड़ मजदूरों को लाभ होगा
  • MSME से जुड़े 11 करोड़ कर्मचारियों को फायदा
  • इंडस्ट्री से जुड़े 3.8 करोड़ लोगों को लाभ पहुंचेगा
  •  टेक्सटाइल इंडस्ट्री से जुड़े 4.5 करोड़ कर्मचारियों को लाभ पहुंचेगा |
  • ये आर्थिक पैकेज हमारे कुटीर उद्योग, गृह उद्योग, हमारे लघु-मंझोले उद्योग, हमारे MSME के लिए है, जो करोड़ों लोगों की आजीविका का साधन है |
  • इस आर्थिक पैकेज से गरीब मजदूरों, कर्मचारियों के साथ ही होटल तथा टेक्सटाइल जैसी इंडस्ट्री से जुड़े लोगों को फायदा होगा।

आत्मनिर्भर भारत अभियान राहत पैकेज के अंतर्गत महत्वपूर्ण क्षेत्र

  • कृषि प्रणाली (Reformation Of Agricultural Supply Chain & System)
  • सरल और स्पष्ट नियम कानून (Rational Tax System)
  • उत्तम आधारिक संरचना (Reformation Of Infrastructure)
  • समर्थ और संकल्पित मानवाधिकार ( Capable Human Resources)
  • बेहतर वित्तीय सेवा (A Good Financial System)
  • नए व्यवसाय को प्रेरित करना (To Motivate New Business)
  • निवेश को प्रेरित करना (Provide Good Investment Opportunities)
  • मेक इन इंडिया (Make In India Mission)

अभियान का निष्कर्ष

आत्मनिर्भरता आत्मबल और आत्मविश्वास से ही संभव है आइए हम मिलकर देश के विकास में योगदान दें और वैश्विक आपूर्ति चयन में अपनी भूमिका निभाएं प्यारे देशवासियों आज भारत के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती इस आपदा के रूप में खड़ी है भारत की संस्कृति और भारत के संस्कार हमें संसार के सुख सहयोग और शांति की चिंता सिखाती है आइए मिलकर अपनी पूरी संकल्प शक्ति के साथ इस महामारी का सामना करें और भारत को विकास की दिशा में अग्रसर करने के लिए योगदान दें।


मंगलवार, 12 मई 2020

प्याज का अनजाना सच, शरीर पर क्या असर डालता है प्याज Unknown Truth Of Onion, What Effect Does Onion Have On The Body

-शीतान्शु कुमार सहाय
प्याज से होनेवाले लाभ के बारे में तो आप जानते हैं। इस के फायदों के बारे में आप कई जगह पढ़े होंगे। प्याज के गुणगान वाले वीडियो भी आप ने देखा होगा। इसे खानेवाले कहते हैं कि इस के बिना भोजन में स्वाद ही नहीं आता। अधिकतर लोग सब्जी में प्याज का प्रयोग अवश्य करते हैं। घर में, होटल या रेस्तरां में या किसी भोज में प्याज का ख़ूब प्रयोग होता है। सलाद के रूप में भी इस का उपयोग किया जाता है। अभी आप जानिये कि प्याज से कितना हानि है। आश्चर्य मत कीजिये, प्याज खाने से हानि भी हो सकती है, इस के बारे में बहुत कम लोग को पता है। प्याज खाने के साथ लोग कुछ गलतियाँ भी करते हैं, जो कई रोगों के कारण बनते हैं। इन सब के बारे में अभी तुरन्त जानिये....

प्याज से हानि का वीडियो

         १. प्याज का सब से अधिक उपयोग लोग कच्चा ही करते हैं। सलाद के रूप में, आलू का भरता या बैंगन का भरता में, टमाटर की चटनी में, भुंजा के साथ, झाल-मूढ़ी में, सत्तू के साथ या रोटी और भात के साथ कच्चे प्याज का सेवन किया जाता है। याद रखिये कि जिस समय खाना है, ठीक उसी समय प्याज को काटिये। कटे हुए प्याज अगर बहुत देर तक रखे रहते हैं तो वे हानिकारक बैक्टीरिया यानी जीवाणुओं और वायरस यानी विषाणुओं से दूषित हो जाते हैं। प्याज में यह गुण है कि काटने के बाद वह आसपास के हानिकारक जीवाणुओं को अवशोषित करने लगता है। ऐसे प्याज को खाने से आप बीमार पड़ सकते हैं। इस से भोजन विषाक्तता यानी फ़ूड पॉइजनिंग का खतरा बहुत अधिक बढ़ जाता है। 
         २. सुबह कम काम करना पड़े, इसलिए अधिकतर महिलाएँ रात में ही सब्जियाँ और प्याज काटकर रख लेती हैं। छात्रावासों में रहनेवाले विद्यार्थी भी ऐसी गलती करते हैं। इसी तरह होटल या रेस्तरां में भी सलाद के लिए प्याजों को रात में ही या सुबह जल्दी काटकर पूरे दिन के लिए रख लिया जाता है। यह प्याज स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक है। अधिक देर तक काटकर रखे गये प्याज बहुत जल्दी विषैले हो जाते हैं; क्योंकि यह बैक्टीरिया और वायरस से संक्रमित हो जाते हैं। प्याज में बैक्टीरिया और वायरस को अवशोषित करने की ख़ास क्षमता होती है। आयुर्वेद के अनुसार, अगर फ्लू और अन्य संक्रामक रोग से घर को मुक्त रखना है तो खिड़की पर या कमरे में कई जगह प्याज काटकर रख देना चाहिये। इसलिए पहले से कटा हुआ प्याज खाने से बचिये। 
         ३. आप ने अभी जाना कि प्याज बैक्टीरिया और वायरस को अवशोषित करता है। जो ज़्यादा प्याज खाते हैं, उन के शरीर में प्याज के गुण मौज़ूद होते हैं। इस कारण रोगों के कीटाणुओं के सामने हमारी बॉडी रेजिसटेंस पावर कम हो जाती है। मतलब यह कि शरीर में रोग से लड़ने की क्षमता घट जाती है।
         ४. कभी भी प्याज का अधिक मात्रा में सेवन नहीं करना चाहिये। अधिक प्याज का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। अगर आप बार-बार प्याज खाने के शौक़ीन हैं, तो इस शौक को आज ही बदल दीजिये। प्याज में पोटेशियम पाया जाता है जो शरीर के अन्दर पहुँचकर कार्डियोलिवर सिस्टम को हानि पहुँचाता है जिस के कारण सीने में जलन या तेज जलन की शिकायत हो सकती है। 
         ५. जब प्याज की नई फसल आती है तो उस के हरे पत्तों का ख़ूब उपयोग होता है। हरे प्याज की चटनी, पकौड़ी और कई प्रकार के व्यंजन  के रूप में इस का ज़्यादा उपयोग किया जाता है। याद रखें, हरे प्याज में विटामिन-के अधिक मात्रा में होता है जो शरीर में कोमाडिन की मात्रा को बढ़ा देता है। इस कारण रक्त पतला हो जाता है। ऐसे में चोट लगने या दुर्घटना होने पर अत्यधिक रक्तस्राव होगा और स्थिति नाजुक हो सकती है। 
         ६. ज़्यादा प्याज खानेवाले को कब्जियत, गैस, एसिडिटी और बवासीर की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। हालाँकि प्‍याज का उपयोग पेट के कई रोगों के उपचार में किया जाता है लेकिन प्‍याज के अत्‍यधिक सेवन से गैस्ट्रिक, पेट में जलन, उल्टी और मतली की समस्‍याओं का सामना करना पड़ता है। अगर कब्जियत, गैस, एसिडिटी और बवासीर जैसी समस्या है तो प्याज छोड़ दें, बहुत लाभ होगा। फैक्ट जानिये कि अधिक प्याज खाने से शरीर में फाइबर की मात्रा बढ़ जाती है जिस की वजह से खाने को पचाने में दिक्कत होती है और पेट साफ़ नहीं हो पाता, कब्ज हो जाता है। इस के साथ ही पेट में दर्द की शिकायत होती है।
         ७. आप ने सुना होगा या आस-पड़ोस में देखा होगा कि जो मीठा भोजन का शौक़ीन नहीं है, वह भी मधुमेह का शिकार हो गया। जो बहुत शारीरिक परिश्रम करता है, उसे भी डायबिटीज हो जाता है। इस का प्रमुख कारण है प्याज। प्याज में ग्लूकोज और फ्रेक्टोज बड़ी मात्रा में पाये जाते हैं जो शरीर में तेजी से शर्करा यानी शुगर की मात्रा को बढ़ाते हैं। यही कारण है कि प्याज खानेवाले मधुमेह यानी डायबिटीज के शिकार हो जाते हैं जिस के चलते कई अन्य तरह के रोग होने लगते हैं। अगर डायबिटीज ने पकड़ लिया तो प्याज को छोड़ दीजिये, अच्छा महसूस करेंगे और डायबिटीज की दवा अगर ले रहे हैं तो उस की मात्रा घटती जायेगी।
       ८. अगर आप प्याज के प्रेमी हैं तो प्याज न खानेवालों की अपेक्षा आप का पाचन तन्त्र निश्चित रूप से कमजोर होगा। कभी भोजन न पचने की शिकायत होगी, कभी खट्टी डकार आयेगी, कभी बिना खाये हुए भी पेट भरा हुआ महसूस होगा। अगर ऐसा हो रहा है तो समझिये कि प्याज की प्रतिक्रिया आप पर हो रही है।    
         ९. अगर आप ने कच्चे प्याज का सेवन किया है तो आप की साँसों में बहुत देर तक बदबू रहती है, जो सल्‍फर की अधिक मात्रा के कारण होता है। बाद में यह दाँतों की बदबू में बदल जाता है। अधिक प्याज खाने से दाँत और मसूढ़े कमजोर हो जाते हैं।
        १०. प्याज का सब से बड़ा कुप्रभाव जीभ पर पड़ता है। प्याज में ऐसे तत्त्व पाये जाते हैं जो जीभ की वास्तविक स्वाद क्षमता को कम कर देते हैं। ऐसे में प्याज खानेवाले ज़रूरत से ज़्यादा तेज स्वाद ग्रहण करने लगते हैं जो बाद में अन्य कई रोगों का कारण बनता है।   
         ११. गर्भवती महिलाओं को अधिक प्याज खाने से बचना चाहिये। इस से  गर्भस्थ शिशु के विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता है। साथ ही खट्टी डकार, पेट या सीने में जलन और भोजन पचने की समस्या हो सकती है। इसी तरह स्तनपान करानेवाली महिलाएँ अधिक प्याज खायेंगी तो बच्चे को पेट दर्द, उल्टी या अन्य समस्या हो सकती है। बेहतर होगा कि गर्भवती और स्तनपान करानेवाली महिलाएँ प्याज न खाएँ। 
         १२. प्याज रक्तचाप को कम करता है, इसलिए निम्न रक्तचाप यानी लो ब्लडप्रेशर की समस्या है तो प्याज आप के लिए जहर है। प्याज खाते रहनेवाले का लो ब्लडप्रेशर कभी ठीक नहीं हो सकता।
         १३. ह्रदय रोगों से पीड़ित लोग के लिए प्याज हानिकारक प्रभाव पैदा करता है। ऐसी स्थिति में प्याज का सेवन नहीं करना चाहिये।
         १४. किसी तरह की शल्यक्रिया यानी ऑपरेशन कराये हैं तो प्याज आप के लिए हानिकारक है। 
       १५. प्याज से एलर्जी होनेवाले लोग को एस्पिरिन की दवाएँ और प्याज नहीं लेना चाहिये; क्योंकि इस से प्याज की संवेदनशीलता बढ़ जाती है। 
         १६. प्याज का सेवन करते समय किसी लिथियम की दवाएँ लेने से पहले चिकित्सक से परामर्श अवश्य कर लें।
        १७. जब हम प्याज काटते हैं तो आँखों से आँसू निकलते हैं। प्याज में गन्धक यानी सल्फर की अत्यधिक मात्रा पाये जाने के कारण ऐसा होता है। सल्फर डाइऑक्साइड एक ऐसा तत्त्व है जो वायु प्रदूषण का कारण होता है और इस से आँखों में एलर्जी होने की सम्भावना बढ़ जाती है। प्याज का सल्फर डाइऑक्साइड ही पाचन तन्त्र को खराब कर देता है और गैस्ट्रिक उत्पन्न करता है। 
         १८. अब मैं बता रहा हूँ कि प्याज का सब से खतरनाक असर क्या होता है। अगर प्याज ज़्यादा खायी जाय तो पेट में सल्फर सीमेंट की परत की तरह जमा हो जाता है। सल्फर डाइऑक्साइड शरीर में घुलकर यानी डिजॉल्व होकर सल्फ्यूरिक एसिड बनाता है जो रक्त नलिकाओं यानी नस को संकुचित और कड़ा बना देता है और सामान्य रक्त प्रवाह को बाधित करता है। कालांतर में यह स्थिति हृदयाघात अर्थात् हर्ट अटैक का कारण बनता है। इसलिए प्याज को भोजन से निकाल दें या अत्यन्त कम मात्रा में प्याज खाएँ। 
       १९. बहुत कम मात्रा में ही प्याज ग्रहण करना चाहिये जिसे शरीर पचा सकता है। सब्जी में, सलाद में, मांसाहार में जब ताबड़तोड़ प्याज खाते हैं तो प्याज की लुग्दी शरीर में जमा हो जाती है जिस से सामान्य भोजन करते रहने के बावजूद कमजोरी होने लगती है। 
         २०. जो प्याज खाने के आदि हैं, उन की मानसिक स्थिति पर प्रतिकूल असर पड़ता है। प्याज अगर पच भी जाये तो भी यह स्मरण शक्ति को कम कर देता है। प्याज खाने से सोचने की क्षमता भी कम हो जाती है। प्याज खानेवाले लोग सोचते तो हैं मगर किसी निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले ही उन्हें गुस्सा आ जाता है, उत्तेजना अधिक बढ़ जाती है। ऐसे लोग गलत काम कर जाते हैं। अगर आप के साथ ऐसा हो रहा है तो आज से ही प्याज को तिलांजलि दे दीजिये। 
         जब इतनी हानि है तो प्याज क्यों खाते हैं? कमेन्ट बॉक्स में ज़रूर लिखिये। अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखिये।

रविवार, 10 मई 2020

कम्युनिस्ट चीन की कुण्डली का पहली बार ज्योतिषीय आकलन : घोर संकट की शुरुआत Astrological Assessment of the Horoscope of Communist China for the First Time: The Beginning of the Great Crisis

चीन की कुण्डली
-अमित कुमार नयनन
        कई देशों की राजनीतिक आज़ादी का निश्चित समय दुनिया के पास है, इसलिए उन की जन्म-कुण्डली का निर्माण और आकलन आसान है। मसलन भारत की आज़ादी का समय १५ अगस्त की रात्रि १२ बजे सन् १९४७ ईस्वी है मगर चीन की आज़ादी का कोई निश्चित समय निर्धारित नहीं है। इसलिए इस की जन्म-कुण्डली को लेकर विविध विरोधाभास हैं। 
       चीन की कुण्डली को लेकर विविध विरोधाभासी तथ्य प्रचलित हैं। चीन की कुण्डली की गणना कम्युनिस्ट शासन के सत्ता सम्भालने के समय को लेकर होती है मगर इस में भी विरोधाभास है। कोई इसे सुबह, तो कोई शाम को मानता है। सुबह ८ बजे के लगभग रेडियो से कम्युनिस्ट पार्टी की चीन पर सत्ता संभालने की उद्घोषणा हुई थी। इस के उपरांत ३-४ बजे शाम या किसी भी समय इसे विधिवत् रूप से अंजाम दिया गया।
       इस प्रकार समय की विविधता का मसला अपनी जगह है मगर यह चीन की विशुद्ध कुण्डली नहीं है; बल्कि चीन के साथ कम्युनिस्ट पार्टी के सत्ता संभालने की कुण्डली भी है, इसलिए इसे इन दोनों की कुण्डली कहना भी उपयुक्त होगा। इस में यह स्पष्ट करना ज़रूरी है कि इसे चीन की विशुद्ध कुण्डली या कम्युनिस्ट पार्टी की विशुद्ध कुण्डली कहना सही नहीं है; बल्कि चीन पर कम्युनिस्ट पार्टी के शासन की शुरूआत की विशुद्ध कुण्डली कहना बिल्कुल सही होगा। तमाम गणना में यह बात स्पष्ट है। इसलिए चीन में कम्युनिज्म की पकड़ की इस कुण्डली के साथ चीन के भविष्य की ज़्यादा सूक्ष्मता और सटीकता से गणना करना सही होगा और उस के परिणाम भी सही आयेंगे।  
       सभी प्रकार से समस्त समय को ध्यान में रखकर समस्त प्रकार की कुण्डली की गणना करने पर पाया गया कि १ अक्तूबर १९४९ ईस्वी लगभग सुबह ८ बजे बिजिंग (पेईचिंग) का समय ही प्रामाणिक है। 

कम्युनिज्म बनाम चीन 

कुण्डली : चीन : १ अक्तूबर १९४९ लगभग प्रातः ८ बजे  बिजिंग
ग्रह राशि         अंश         कला
सूर्य              ०५              १४          २६
चंद्र ०९               ०७          ४४
मंगल ०३               २१          ३७
बुध ०५               २०          १२
बृहस्पति ०८               २९          २८
शुक्र ०६               २६          ०४
शनि ०४               २०          ००
राहु ११               २३          ४९
केतु ०५              २३          ४९
       लग्न में लग्नेश बनाम शुक्र का अपनी ही राशि तुला में स्वगृही होना व पञ्चमहापुरूष योग में से एक योग मालव्य योग बनाना इस के दीघार्यु व स्वस्थ होने को स्पष्ट करता है। पञ्चमहापुरूष योग में से हर एक योग विश्वप्रसिद्ध होने की क्षमता रखता है। इसलिए आज भी कम्युनिस्ट पार्टी चीन में चिरकालिक शासन कर रही है और इस शासन पर आजतक कोई भी हावी नहीं हो पाया है जो इस के स्वस्थ होने की प्रामाणिकता है।
       बृहस्पति का तृतीय भाव में स्वगृही होना पराक्रमी होने का सबूत है, तृतीय भाव स्वबल का है अर्थात जातक के पास अपनी शक्तियाँ होंगी जिस के आधार पर वह किसी भी प्रकार की बाधा को पार करने में स्वयं ही सक्षम होगा। साथ ही तृतीय भाव का स्वामी ही षष्ठ भाव का स्वामी भी है, षष्ठ भाव शत्रु का है और इस प्रकार षष्ठेश भी स्वगृही है अर्थात् वह शत्रुओं पर भी विजय पाने में समर्थ होगा। 
       यहाँ यह स्पष्ट कर देना अनिवार्य है कि राशि १२ होते हैं तो ग्रह ९ और प्रत्येक राशि का कोई-न-कोई ग्रह राशि स्वामी होता है। इस प्रकार ये ९ ग्रह ही १२ राशियों के स्वामी होते हैं, इसलिए अगर ९ ग्रह स्वराशि हों तब भी ३ स्थान खाली रह जाते हैं। इस का अर्थ यह कतई नहीं है कि वे तीन खाली स्थान स्वगृही नहीं माने जाएंगे। वह स्थान भी स्वगृही ही है जिस के राशि स्वामी ग्रह किसी अन्य राशि के स्वराशि में बैठे हैं। सूर्य व चन्द्रमा की मात्र एक ही राशि होती है, अतः इन के लिए स्वगृही होने का अर्थ केवल एक राशि पर निर्भर है जबकि मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र की दो-दो राशियाँ हैं :- मंगल की राशियाँ मेष और मकर, बुध की राशियाँ मिथुन और कन्या, बृहस्पति की राशियाँ धनु और मीन तथा शुक्र की राशियाँ वृष और तुला हैं।
       स्वगृही के मामले में एक और भी रोमांचक बात है। ज्योतिषशास्त्र में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि अगर कोई भी ग्रह स्वगृही है तो वह जिस घर में बैठा है, उस के अलावा जिस दूसरे घर में नहीं बैठा है, वह पहले घर की अपेक्षा दूसरे घर के लिए पहले घर से भी अधिक दूसरे घर में दुगुने प्रभाव से ज़्यादा शुभ फल देगा। इसलिए यह माना जाना चाहिये कि चीन कम्युनिस्ट सरकार स्वबल के आधार पर तो किसी भी प्रकार की विकट परिस्थतियों से निपटने में सक्षम है ही, वह विकट-से-विकट शत्रुओं को उस से भी बुरे प्रकार से खात्मा करने में सक्षम है। कम्युनिस्ट चीन की विविध दमनकारी नीतियाँ इस का प्रमाण हैं। उस के स्वबल का आलम यह है कि वह संयुक्त राष्ट्र संघ का स्थायी प्रतिनिधि है, अंतर्राष्ट्रीय संधियों या आदेश तक का पालन न कर दक्षिण चीन सागर में खुलेआम मनमानी करता है चीन। साथ ही अपने देश और बाहर के लोग पर भी विविध दमनकारी नीतियाँ भी चलाता है। यह इस का स्वबल ही है। और नहीं तो क्या है? अलबत्ता संयुक्त राष्ट्र संघ के सुरक्षा परिषद में स्थायी प्रतिनिधि होने का श्रेय लग्नेश शुक्र का स्वराशि होकर केंद्र में बैठने को विशेष रूप से जाता है; क्योंकि यह पञ्चमहापुरूष जो कि विश्व प्रसिद्ध करने की क्षमता रखता है। 
       ऐसी शुभ व शक्तिशाली कुण्डली में जब तक दशाएँ विपरीत नहीं होती हैं, तब तक सब कुछ स्वतः सही चलता रहता है। दशाएँ सही हैं या विपरीत या विरोधाभासी सब कुछ स्थिति और गणना वगैरह पर निर्भर करता है।

चीन का मानचित्र
गोचर फलाफल

       गोचर के अनुसार २०१९ से २०२० के दौरान सूर्य, बुध, शुक्र, बृहस्पति ४ ग्रह जन्म की राशियों से गोचर करेंगे व इन का प्रभाव २०२० के अन्तिम महीने तक होगा। कुण्डली के जन्मकालिक स्थितियों से तुलना करने पर स्थानानुसार व स्थितिनुसार आकलन करने पर इन के विविध फल कुछ इस प्रकार आये हैं।
       बृहस्पति धनु गोचर २९ मार्च २०१९ से २० नवंबर २०२० तक है। बृहस्पति कम्युनिस्ट चीन की कुण्डली में धनु राशि में ही है। अतएव बृहस्पति के धनु संचरण के दौरान तृतीय भाव के फल विशेष तौर पर प्राप्त होंगे। बृहस्पति तृतीय भाव में स्वगृही होकर सबल है मगर यह रोग, ऋण, रिपु के मालिक षष्ठ भाव का भी मालिक है, अतः इस के परिणाम भी उसे इस दौरान प्राप्त होंगे।
       बृहस्पति की स्थिति चीन की कुण्डली में स्वबल और पराक्रम का मालिक होने के कारण बृहस्पति धनु संचरण २९ मार्च २०१९ को आरंभ हुआ जो कम्युनिस्ट चीन की कुण्डली में तृतीय भाव में बृहस्पति धनु राशि में ही स्वगृही है। बृहस्पति की धनु राशि में संचरण की यह अवस्था कई बार वक्री मार्गी होकर पूर्व राशि वृश्चिक व उत्तर राशि मकर तक में भमण के बाद भी स्वराशि में आकर वृह. की धनु राशि अवस्था २० नवंबर २०२० तक है। तृतीय भाव के उक्त तमाम फल सहित बृहस्पति के तमाम फल कम्युनिस्ट चीन को प्राप्त होंगे। इस प्रकार बृहस्पति के षष्ठेश का तमाम फल चीन को प्राप्त होंगे। इस प्रकार स्वबल, पराक्रम, शत्रु विजय वगैरह के फल कम्युनिस्ट चीन को प्राप्त होंगे। मगर सूर्य, बुध का द्वादश संचरण सितंबर से अक्टूबर २०१९ और सितम्बर से अक्तूबर २०२० में उक्त दशाओं में चीन के लिए समस्याएं पैदा करेगा। 
       बृहस्पति २९ मार्च २०१९ को स्वराशि धनु में प्रवेश किये। बृहस्पति १० अप्रैल २०१९ को वक्री होकर २२ अप्रैल २०१९ को वृश्चिक में गये जहाँ से ११ अगस्त २०१९ को मार्गी होकर ५ नवंबर २०१९ को वृश्चिक से धनु राशि में प्रवेश किये।
  • बृहस्पति का धनु प्रवेश : २९ मार्च २०१९
  • बृहस्पति का वृश्चिक प्रवेश : २२ अप्रैल २०१९
  • बृहस्पति का धनु प्रवेश : ०५ नवंबर २०१९
  • बृहस्पति का मकर प्रवेश : ३० मार्च २०२०
  • बृहस्पति का धनु प्रवेश : ३० जून २०२०
  • बृहस्पति का मकर प्रवेश : २० नवंबर २०२०
       बृहस्पति धनु से मकर राशि में ३० मार्च २०२० को प्रवेश कर गए। बृहस्पति ३० जून २०२० को वक्री होकर मकर राशि से धनु राशि में पुनः प्रवेश करेंगे। बृहस्पति २० नवंबर २०२० को धनु से मकर राशि में संचरण करेंगे।

  • सूर्य का कन्या राशि संचरण : १७ सितम्बर २०१९ से १८ अक्तूबर २०१९
  • बुध का कन्या राशि संचरण : ११ सितम्बर 2019 से 29 सितम्बर २०१९
  • शुक्र का तुला राशि संचरण  : ०४ अक्टूबर 2019 से 28 अक्तूबर २०१९
  • सूर्य का कन्या राशि संचरण : १७ सितम्बर २०२० से १७ अक्तूबर २०२०
  • बुध का कन्या राशि संचरण  : ०२ सितम्बर २०२० से २२ सितम्बर २०२०
  • शुक्र का तुला राशि संचरण : ११ सितम्बर २०२० से २९ सितम्बर २०२०
       कम्युनिस्ट चीन की कुण्डली में सूर्य, बुध द्वादश भाव में कन्या राशि में संयुक्त हैं, अतः इन के इसी भाव से गोचर करना कम्युनिस्ट चीन के लिए बाधाकारक व समस्या पैदा करनेवाला है। 
       २०१९ की ग्रह रिपोर्ट यह है कि ११ सितम्बर २०१९ से १८ अक्तूबर २०१९ का समय कम्युनिस्ट चीन के लिए अत्यंत ही परेशानी भरा था; क्योंकि सूर्य, बुध का कन्या राशि में द्वादश प्रभाव से संचरण प्रभावी था। साथ ही १७ सितम्बर २०१९ से २९ सितम्बर २०१९ तक सूर्य, बुध दोनो कन्या राशि में साथ थे। अतः यह सर्वाधिक विपत्ति का दौर था। द्वादश भाव अस्पताल का भी है, अतः अस्पताल की समस्या को भी स्पष्ट कर रहा है। द्वादश भाव अस्पताल, व्यय, अभियोग, व्यापारिक आर्थिक नुकसान वगैरह का है, इसलिए यह सभी समस्याएँ उस वक्त ज्यादा प्रभावी हो गई थीं। इसी प्रकार २०२० में भी यह समस्याएँ सूर्य, बुध कन्या संचरण के दौरान ज्यादा प्रभावी होंगी। सूर्य, कन्या संचरण २ सितंबर २०२० से १७ अक्टूबर २०२० तक प्रभावी है। यह समय कम्युनिस्ट चीन के लिए प्रतिकूल है, चीन के लिए बाधाकारक और परेशानी बढ़ानेवाली है। सूर्य, बुध का संयुक्त कन्या संचरण १७ सितम्बर से २२ सितम्बर २०२० तक है जो इस अल्प अवधि में ही मगर विशेष तौर पर अधिकाधिक समस्याएँ पैदा करेगा।
      शुक्र कुण्डली में तुला राशि में है, अतः २०१९ में शुक्र के तुला संचरण ४ अक्तूबर २०१९ से २८ अक्टूबर २०१९ के दौरान स्थितियों में सुधार के संकेत हैं जबकि १७ नवंबर २०२० से ११ दिसंबर २०२० के दौरान कम्युनिस्ट चीन के लिए विविध विपरीत स्थितियों पर नियंत्रण के संकेत हैं। इस समय शुक्र, बृहस्पति कुण्डली की राशि क्रमशः तुला, धनु में १७ से २० नवंबर २०२० तक होंगे। ये दोनो ही कुण्डली में शुभ हैं। अतः यह अवधि विशेष रूप से शुभ होगी।    
       विश्व का वर्तमान संकट चीन के घोर संकट के लिए शुरुआत है। चीन की वर्तमान ख़ुशी ज्यादा दिनों तक टिकनेवाली नहीं है। आनेवाले कुछ वर्ष चीन पर बेहद भारी पड़नेवाले हैं और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के ओठों की मुस्कान गायब होनेवाली है। स्थितियाँ और भी विकट हो सकती हैं। नयी चुनौती, संघर्ष, युद्ध की स्थिति बन सकती है। उस की वर्तमान स्थिति और प्रभुत्व पर चुनौती या संकट आ सकता है।

महादशा और अन्तर्दशा आकलन  

       चीन को 'कम्युनिस्ट चीन' कहना अधिक तार्किक होगा; क्योंकि कुण्डली कम्युनिज्म शासन के चीन सत्ता संभालने के आधार पर बनी है। 
       इस समय कम्युनिस्ट चीन शनि में बृहस्पति की दशा से गुजर रहा है। ८ सितंबर २०२० से बुध महादशा आरंभ हो जायेगी। द्वादशेश बुध द्वादश में ही सूर्य और केतु से संयुक्त हैं, अतएव बुध महादशा चीन के लिए सही नहीं है। 
       बुध और केतु का प्रभाव चीन पर पड़ रहा है। २०२० से २०४४ तक उस के लिए बेहद परेशानी वाला समय होगा। यही नहीं, सन् २०३७ ईस्वी तक चीन के संघर्ष का आरंभिक दौर दिखायी दे रहा है। ८ सिंतबर २०२० से द्वादशेश बुध की १७ वर्षीय महादशा आरंभ हो रही है। द्वादश भाव व्यय, बाधा, अप्रत्याशित घटनाओं का है इसलिए इस समय कम्युनिस्ट चीन के लिए यह समय सही नहीं है। द्वादश में सूर्य, बुध, केतु की युति है इसलिए इन की परस्पर दशाएँ भी बिल्कुल सही नहीं होंगी। इन में बुध और केतु दोनों की क्रमबद्ध महादशा २०२० से आरंभ है जिस में पहले बुध की १७ वर्षीय तत् केतु की ७ वर्षीय महादशा होगी। इस प्रकार कम्युनिस्ट चीन २०४४ तक पूर्ण नकारात्मक प्रभाव में है। बुध महादशा में सूर्य, बुध, केतु की अंतर्दशा विशेषतः सही नहीं है, जिन में बुध में बुध व बुध में केतु की दशा आरंभ में ही आरंभ है जो कि ११ सितंबर २०२० से २०२५ तक चलेगी। बुध महादशा में सूर्य की अंर्तदशा भी बहुत बाद में नहीं है वह भी 2026 में है। केतु महादशा में सूर्य, बुध, केतु की अंतर्दशा में सर्वप्रथम केतु में केतु २०३७, केतु में सूर्य २०३९, केतु में बुध की अन्तर्दशा को है। यह तमाम दशाएं कम्युनिस्ट चीन के लिए बहुत ही ज्यादा परेशानी वाली होंगी।

बुध महादशा : ११ सितम्बर २०२० से ११ सितम्बर २०३७

  • बुध महादशा में बुध की अन्तर्दशा ८ अक्तूबर २०२० से ५ मार्च २०२३ तक। 
  • बुध महादशा में केतु की अन्तर्दशा  ५ मार्च २०२३ से २ मार्च २०२४ तक
  • बुध महादशा में सूर्य की अन्तर्दशा २ जनवरी २०२७ से ८ नवम्बर २०२७ तक

केतु महादशा : ११ सितम्बर २०३७ से ११ सितम्बर २०४४

  • केतु महादशा में केतु की अन्तर्दशा  ८ अक्तूबर २०३७ से ५ मार्च २०३८ तक।
  • केतु महादशा में सूर्य की अन्तर्दशा ५ मई २०३९ से ११ सितम्बर २०३९ तक। 
  • केतु महादशा में बुध की अन्तर्दशा ११ अक्तूबर २०४३ से ८ अक्तूबर २०४४ तक। 

घातक कदम उठा सकता है चीन

       चीन की वैश्विक गतिविधियाँ भी अत्यन्त चुनौतीपूर्ण होंगी। चीन को केन्द्र-बिन्दु बनाकर विश्व के कई शक्तिशाली देश उस पर तरह-तरह के प्रतिबन्ध लगायेंगे। इस के विपरीत चीन आर्थिक प्रतिबन्धों से बौखला जायेगा और वह विश्व समुदाय के प्रति और घातक कदम उठा सकता है। हालाँकि युद्ध किसी भी समस्या का हल नहीं है, परन्तु चीन को सबक सिखाने के लिए विश्व के किसी देश द्वारा चीन पर हमला हो सकता है या अपने ऊपर लगे आरोपों-प्रतिबन्धों की खि़लाफ़त स्वरूप चीन किसी प्रतिद्वन्द्वी देश पर सशस्त्र आक्रमण कर सकता है।

१७ साल का संक्रमण काल

         २०३७ तक संघर्ष या महासंघर्ष (विश्वयुद्ध?) का दौर हो सकता है। मतलब यह कि विश्व और चीन के लिए सन् २०२० से २०३७ ईस्वी तक सम्बन्धों में खटास और अशान्ति का दौर रहेगा। इस अवधि में न चाहते हुए भी संघर्ष अर्थात् युद्ध की त्रासदी झेलनी पड़ सकती है। भारत सहित कई देश युद्ध को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायेंगे। इतना होने के बाद भी अगर युद्ध हुआ तो चीन किसी भी हद तक जा सकता है। इस दौरान चीन और शेष विश्व को बहुत ही समझदारी से काम लेना होगा; ताकि विश्वशान्ति ख़तरे में न पड़े।

साम्यवादी बन जाते हैं शोषक

       चीन में कम्युनिस्ट सरकार है। कम्युनिस्ट को हिन्दी में साम्यवाद या समाजवाद कहा गया; क्योंकि समानता के साथ समाज गठन के सिद्धान्त को कम्युनिस्टों ने अपनाया। पर, गरीबों की बात करनेवाला कम्युनिस्ट अब बदल गया है, बिल्कुल बदल गया है। ‘आम आदमी का कोई शोषण न करे’- इस लुभावने सन्देश के साथ सत्ता प्राप्त करते ही साम्यवादी स्वयं ‘शोषक’ बन जाते हैं। शी जिनपिंग ने तो शोषण की हद कर दी। जिनपिंग ने ऐसा कानून बनाया कि अब चीन में उन के जीते-जी राष्ट्रपति का निर्वाचन होगा ही नहीं, वे आजीवन चीन के राष्ट्रपति बने रहेंगे। इस कारण चीन के अन्दर भी जिनपिंग ने अपने विरोधियों की फौज खड़ी कर ली है।

जिनपिंग, चीन और कोरोना 

         जिनपिंग और चीन दोनों की नींव हिला देने की क्षमता लेकर उभरा है नोवेल कोरोना विषाणु। स्वरांक नियम से चीन और जिनपिंग के लिए कोरोना बिल्कुल ही नकारात्मक प्रभाव के अति प्रभाव से प्रभावी है। इन दोनो के लिए यह इनकी जड़ें हिला देने की क्षमता रखता है। दशाएँ विपरीत होने से यह आशंका और बलवती होती है। अतः अति सावधानी अपेक्षित है। कम्युनिज्म और शी जिनपिंग के लिए भी अगले सतरह वर्ष का दौर बिल्कुल सही नहीं है। कम्युनिज्म और जिनपिंग के लिए भी यह दौर बिल्कुल सही नहीं है। कम्युनिज्म की शासकीय और आर्थिक गतिविधियाँ बिल्कुल तहस-नहस हो जाने के संकेत हैं। साथ ही नये दुश्मन, नयी समस्याओं, बाधाओं, अन्तर्राष्ट्रीय उलझन से भी दो-चार होना पड़ेगा। यह दौर २०२८ तक विशेष तौर पर है।     

भारत नयी शक्ति के साथ उभरेगा

         ग्रहों की दशाएँ विपरीत होने से यह आशंका और बलवती होती है कि कई प्रकार के संकटों के तूफान चीन के विरुद्ध खड़े होंगे। अतः अति सावधानी अपेक्षित है। इस परिदृश्य में भारत नयी शक्ति के साथ विश्व-क्षितिज पर उभरेगा। विश्वयुद्ध के सन्निकट खड़े मानव समुदाय के लिए विश्वशान्ति की कामना करनेवाला सब से बड़ा देश भारत है और यही रहेगा। भारत को छोड़कर कमोबेश सभी देश युद्ध के मूड में हैं। विश्वशांति की कामना किजीए कि सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय। वसुधैव कुटंुबकम्। विश्वशांति खतरे में ना पड़े। विश्वशान्ति की कामना कीजिये; ताकि सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय और वसुधैव कुटुम्बकम् की भारतीय परम्परा पर आँच न आये और इस परम्परा का लाभ विश्व समुदाय को मिल सके।