सोमवार, 18 जनवरी 2016

घोड़ा बाबा मंदिर : झारखण्ड के सरायकेला के इस मन्दिर में प्रसाद की जगह चढ़ाया जाता है घोड़ा / Horse Baba Temple: This temple of Jharkhand's Saraikela place offerings are plated horse


प्रसाद के रूप में चढ़ाये गये मिट्टी के घोड़ों का ढेर

-शीतांशु कुमार सहाय
मन्दिर में जहाँ प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है घोड़ा! यह सुनकर सभी को आश्चर्य होता है। पर, सच्चाई यह है कि झारखण्ड के सरायकेला जिले के गम्हरिया प्रखण्ड (ब्लॉक) में घोड़ा बाबा मंदिर है। यहाँ मन्नत पूरी होने पर लोग घोड़ा चढ़ाते हैं। यह घोड़ा असली घोड़ा नहीं; बल्कि मिट्टी का होता है। जमशेदपुर से करीब 10 किलोमीटर दूर सरायकेला मार्ग पर गम्हरिया के पास सड़क के किनारे घोड़ा बाबा का मन्दिर है। 
मकर संक्रांति के दूसरे दिन इस मन्दिर में काफी भीड़ होती है। साल मंे एक बार ही इस मन्दिर में भीड़ होती है। घोड़ा बाबा मंदिर में दूर-दूर से लोग इनकी भक्ति में लीन होने के लिए और अपनी मुरादें पूरी करने के लिए आते हैं। यहाँ किसी भगवान या देवता की पूजा नहीं होती है; बल्कि घोड़ा बाबा की आराधना की जाती है। 
प्रसाद के रूप घोड़ा-हाथी चढ़ाते है 
जब श्रद्धालुओं की मुरादें पूरी हो जाती हैं तो लोग प्रसाद के रूप में मिट्टी के घोड़े या हाथी चढ़ाते हैं। खास बात यह है कि इस मन्दिर में जो प्रसाद केला, नारियल भक्तों को मिलता है, उसे भक्त घर नहीं ले जा सकते हैं। आपको जितना प्रसाद खाना है, यहीं खाएँ और अगर नहीं खा सकते हैं तो उसे किनारे रख दें; ताकि उस पर किसी का पैर न लगे। 
महिलाओं का प्रवेश था वर्जित
इस मन्दिर में पूर्व में महिलाओं का प्रवेश वर्जित था लेकिन धीरे-घीरे यह प्रथा लुप्त हो गयी। इस मन्दिर का संचालन कर रही कुम्भकार (कुम्हार) जाति के घर की महिलाएँ आज भी मन्दिर नहीं आती हैं। हालाँकि 18 साल से कम उम्र की लड़कियाँ इस जगह आ सकती हैं। 
300 साल पहले हुआ मन्दिर का निर्माण
इस मन्दिर में घोड़े की पूजा की प्रथा 300 साल पुरानी है। कहानी यह है कि भगवान कृष्ण और बलराम ने घोड़े पर सवार होकर खेती के लिए इस ग्राम का दौरा किया था और फिर बलराम ने अपने हल से गम्हरिया की धरती पर खेती की नींव रखी थी। भागवान कृष्ण व बलराम के जाने के बाद उनके घोड़े गम्हरिया में ही रह गये। तब से ही गम्हरिया में घोड़ा बाबा की पूजार्चना हो रही है। कालान्तर में यहाँ पूजा की अद्भुत प्रथा प्रचलित हुई और लोग घोड़ा बाबा को उन्हीं की प्रतिकृति चढ़ाने लगे। वर्तमान मन्दिर का निर्माण 300 वर्षों पूर्व हुआ माना जाता है।

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