षष्ठी देवी को ही छठी मइया कहते हैं। भगवती षष्ठी ब्रह्माजी की मानसी कन्या हैं। मूलप्रकृति के छठे अंश से प्रकट होने के कारण इन का नाम ‘षष्ठी देवी’ है। छठी मैया जगत को अनवरत् मंगल प्रदान कर रही हैं।
छठ व्रत कथा देखने-सुनने के लिए नीचे के लिंक पर क्लिक करें :
छठी मइया समय-समय पर असुरों का संहार करती रहीं और भक्तों का उद्धार करती रहीं। वह अब भी असुरों का नाश कर रही हैं। वर्तमान कलियुग में असुर सूक्ष्म रूप से हमारे मन-मस्तिष्क में प्रवेश कर गये हैं। हमारे अन्दर के ये असुर हमारे दुर्गुण के रूप में, कुकर्म के रूप में और रोग के रूप में प्रकट हो रहे हैं। इन असुरों से बचने के लिए हमें अनिवार्य रूप से छठी मइया की पूजा करनी चाहिये। छठ में तो सूर्यदेव के साथ छठी माता की पूजा स्वतः हो जाती है। छठ व्रत में ब्रह्म और शक्ति दोनों की पूजा साथ-साथ की जाती है, इसलिए व्रत करने वालों को दोनों की पूजा का फल मिलता है। अन्य किसी भी व्रत में ऐसा नहीं है। कई ग्रन्थों में षष्ठी देवी का वर्णन है। सामवेद की कौथुमी शाखा में भी इन की चर्चा है।
सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर युग में भी छठी माता की आराधना होती रही है। द्वापर युग में पाण्डव की पत्नी द्रौपदी ने महर्षि धौम्य के बताने पर छठ व्रत किया और युधिष्ठिर को पुनः राजपाट प्राप्त हुआ। उस से पूर्व के काल में नागकन्या के उपदेश से सुकन्या ने छठ किया था।
यों करें छठी मइया की पूजा
इन की प्रतिमा या चित्र बनाकर पूजा की जा सकती है। शालग्राम की प्रतिमा बनायी जा सकती है। बिना प्रतिमा के केवल कलश स्थापित करके भी पूजा हो सकती है। वटवृक्ष के जड़वाले भाग में छठी माई की उपस्थिति मानकर अर्चना करनी चाहिये। अगर ये सब सम्भव न हो तो घर की दीवार को साफ कर लें और उस पर चित्र बनाकर प्रकृति के छठे अंश से प्रकट होनेवाली शुद्धस्वरूपिणी भगवती छठी की पूजा करनी चाहिये।
भगवती देवसेना अर्थात् छठी माई का पूजन प्रतिदिन हो रहा है; क्योंकि प्रतिदिन और प्रतिक्षण जन्म का क्रम जारी है। श्रद्धावानों को प्रतिमाह शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठी मइया की पूजा करनी चाहिये। प्रतिदिन या प्रतिमाह षष्ठी तिथि को भगवती षष्ठी की पूजा न कर सकें तो वर्ष में दो बार चैत्र और कार्तिक में होनेवाले छठ में से कोई एक छठ व्रत तो करना ही चाहिये। छठ को ही रविषष्ठी व्रत या सूर्यषष्ठी व्रत भी कहते हैं।
षष्ठी देवी का ध्यान इस मंत्र से करें
श्रीमन्मातरमम्बिकां विधि मनोजातां सदाभीष्टदां
स्कन्देष्टां च जगत्प्रसूं विजयदां सत्पुत्र सौभाग्यदाम् ।
सद्रत्नाभरणान्वितां सकरुणां शुभ्रां शुभां सुप्रभां
षष्ठांशां प्रकृतेः परां भगवतीं श्रीदेवसेनां भजे ॥
षष्ठांशां प्रकृते: शुद्धां सुप्रतिष्ठाण्च सुव्रताम्।
सुपुत्रदां च शुभदां दयारूपां जगत्प्रसूम्।।
श्वेतचम्पकवर्णाभां रत्नभूषणभूषिताम्।
पवित्ररूपां परमां देवसेनां परां भजे।।
ध्यान के बाद
ॐ ह्रीं षष्ठीदेव्यै स्वाहा इस अष्टाक्षर मंत्र से आवाहन, पाद्य, अर्ध्य, आचमन, स्नान, वस्त्राभूषण, पुष्प, धूप, दीप, तथा नैवेद्यादि उपचारों से देवी का पूजन करना चाहिए। इस के साथ ही देवी के इस अष्टाक्षर मंत्र का तुलसी या लाल चन्दन के माला से यथाशक्ति जप करना चाहिए। देवी के पूजन तथा जप के बाद षष्ठीदेवी स्तोत्र का पाठ श्रद्धापूर्वक करना चाहिए। एक वर्ष तक इस के पाठ से नि:संदेह संतान की प्राप्ति होगी।
षष्ठी देवी स्तोत्र
मैं यहाँ छठी मइया अर्थात् षष्ठी देवी के स्तोत्र का उल्लेख कर रहा हूँ जो सम्पूर्ण कामनाओं को प्रदान करनेवाला, सब का मनोरथ पूर्ण करनेवाला है--
नमो देव्यै महादेव्यै सिद्धै शान्त्यै नमो नम:।
शुभायै देवसेनायै षष्ठीदेव्यै नमो नम:।।१।।
वरदायै पुत्रदायै धनदायै नमो नम:।
सुखदायै मोक्षदायै च षष्ठीदेव्यै नमो नम:।।२।।
सृष्ट्यै षष्ठांशरूपायै सिद्धायै च नमो नम:।
मायायै सिद्धयोगिन्यै षष्ठीदेव्यै नमो नम:।।३।।
सारायै शारदायै च परादेव्यै नमो नम:।
बालाधिष्ठातृदेव्यै च षष्ठीदेव्यै नमो नम:।।४।।
कल्याणदायै कल्याण्यै फलदायै च कर्मणाम्।
प्रत्यक्षायै च सर्वभक्तानां षष्ठीदेव्यै नमो नम:।।५।।
पूज्यायै स्कन्दकान्तायै सर्वेषां सर्वकर्मसु।
देवरक्षणकारिण्यै षष्ठीदेव्यै नमो नम:।।६।।
शुद्धसत्त्वस्वरूपायै वन्दितायै नृणां सदा।
हिंसाक्रोधवर्जितायै षष्ठीदेव्यै नमो नम:।।७।।
धनं देहि प्रियां देहि पुत्रं देहि सुरेश्वरि।
धर्मं देहि यशो देहि षष्ठीदेव्यै नमो नम:।।८।।
भूमिं देहि प्रजां देहि विद्यां देहि सुपूजिते।
कल्याणं च जयं देहि षष्ठीदेव्यै नमो नम:।।९।।
इति श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे इतिखण्डे नारदनारायणसंवादे षष्ठ्युपाख्याने श्रीषष्ठीदेविस्तोत्रं सम्पूर्णम्
षष्ठी देवी स्तोत्र का हिन्दी अर्थ
देवी को नमस्कार है! महादेवी को नमस्कार है! भगवती सिद्धि और शान्ति को नमस्कार है! शुभा, देवसेना और देवी षष्ठी को बार-बार नमस्कार है! १
वर, संतान और धन देनेवाली देवी को नमस्कार है! सुख और मोक्ष प्रदान करनेवाली षष्ठी देवी को बार-बार नमस्कार है! २ मूलप्रकृति के छठे अंश से प्रकट होनेवाली भगवती सिद्धा को नमस्कार है! माया और सिद्धयोगिनी षष्ठी देवी को बारम्बार नमस्कार है! ३
सारा, शारदा और परादेवी को नमस्कार है! बालकों की अधिष्ठातृ षष्ठी देवी को बार-बार नमस्कार है! ४
कल्याणदायक, कल्याणस्वरूपिणी, कर्मों के फल प्रदान करनेवाली और भक्तों को प्रत्यक्ष दर्शन देनेवाली षष्ठी देवी को बारम्बार नमस्कार है! ५
सब के लिए सम्पूर्ण कार्यों में पूजा प्राप्त करने की अधिकारिणी देवी भगवान स्कन्द यानी कार्तिकेय की पत्नी हैं। देवों की रक्षा करनेवाली हे षष्ठी देवी, आप को बार-बार नमस्कार है! ६
मनुष्य जिन की सदा वन्दना करते हैं, जो शुद्धसत्त्वस्वरूपा हैं, जो हिंसा और क्रोध से रहित हैं, उन भगवती षष्ठी को नमस्कार है! ७
हे सुरेश्वरि! आप मुझे धन दीजिये, प्यारी पत्नी दीजिये और पुत्र प्रदान करने की कृपा कीजिये। हे षष्ठी देवी! आप मुझे यश अर्थात् सामाजिक सम्मान प्रदान कीजिये और विजय दीजिये। आप को बार-बार नमस्कार करता हूँ! ८
हे सुपूजिते! आप मुझे भूमि दीजिये, प्रजा अर्थात् प्रिय लोग की संगति दीजिये और विद्या प्रदान कीजिये। कल्याण करनेवाली और जय प्रदान करनेवाली षष्ठी देवी को बार-बार नमस्कार है! ९
षष्ठी देवी स्तोत्र की महिमा
ब्रह्मवैवर्तमहापुराण में ही षष्ठीदेवी स्तोत्र के बाद इस का फल बताया गया है। जो व्यक्ति माता षष्ठी के इस स्तोत्र को एक वर्ष तक श्रवण करता है, वह अगर सन्तानहीन है तो दीर्घजीवी सुन्दर पुत्र प्राप्त कर लेता है। जो एक वर्ष तक भक्तिपूर्वक देवी की पूजा कर यह स्तोत्र सुनता है या पढ़ता है तो उस के सम्पूर्ण पाप समाप्त हो जाते हैं। वन्ध्या स्त्री यदि इस स्तोत्र का नियमित पाठ करे या किसी के पाठ करने पर भक्तिपूर्वक श्रवण करे तो वह सन्तानोत्पत्ति की योग्यता प्राप्त कर लेती है। उसे माँ देवसेना की कृपा से गुणवान, यशस्वी, दीर्घायु व श्रेष्ठ पुत्र की प्राप्ति होती है। काकवन्ध्या अथवा मृतवत्सा स्त्री एक वर्ष तक षष्ठी देवी के स्तोत्र का श्रवण करने के फलस्वरूप भगवती षष्ठी के आशीर्वाद से पुत्रवती हो जाती है। सन्तान को कोई रोग होने पर माता-पिता एक मास तक इस स्तोत्र का श्रवण करें, षष्ठी देवी की कृपा से बालक निश्चय ही नीरोग हो जायेगा।
ऊँ ह्रीं षष्ठीदेव्यै स्वाहा
इस मन्त्र से छठी मइया की पूजा की जाती है। यथाशक्ति इस अष्टाक्षर महामन्त्र का जप भी करें। जो व्यक्ति इस मन्त्र का एक लाख जप करता है, उसे अवश्य ही उत्तम पुत्र की प्राप्ति होती है, ऐसा ब्रह्माजी ने कहा है।
बच्चे की छट्ठी में षष्ठी की पूजा
प्राचीन काल में जब प्रियव्रत ने छठी माई की प्रथम पूजा की तब से प्रत्येक महीने में शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि को भगवती षष्ठी की पूजा का व्रत मनाया जाने लगा। इसी तरह बच्चों के जन्म के बाद प्रसवगृह में छठे दिन, इक्कीसवें दिन और अन्नप्राशन के शुभ अवसरों पर यत्नपूर्वक छठी मइया की पूजा होने लगी।
कर्म सब से बलवान
राजा प्रियव्रत को माता षष्ठी ने बताया कि सुख-दुःख, भय, शोक, दर्प, मंगल-अमंगल, सम्पत्ति और विपत्ति- ये सब कर्म के अनुसार होते हैं। अपने ही कर्म के प्रभाव से कोई मनुष्य अनेक सन्तानों को जन्म देता है और कुछ लोग सन्तानहीन भी होते हैं, किसी को मरा हुआ पुत्र होता है और किसी को दीर्घजीवी। मनुष्य को कर्म का फल भुगतना ही पड़ता है। कोई गुणवान है तो कोई मूर्ख, कोई आरोग्यवान है तो कोई रोगी, कोई रूपवान है तो कोई कुरूप या अंगहीन, कोई धर्मी है तो कोई अधर्मी, किसी के कई विवाह होते हैं तो कोई अविवाहित रह जाता है- ये सब कर्म के अनुसार ही होते हैं। कर्म सब से बलवान है।
माता के कई नाम
भगवती षष्ठी ब्रह्माजी की मानसी कन्या हैं। मूलप्रकृति के छठे अंश से प्रकट होने के कारण इन का नाम ‘षष्ठी देवी’ है। भक्त इन्हें प्यार से ‘छठी मइया’ और ‘छठी माता’ कहते हैं। देवताओं को रण में सहायता पहुँचाने और जगत पर शासन करने के कारण इन्हें ‘देवसेना’ कहा जाता है। देवसेना के नाम से ही यह सम्पूर्ण मातृकाओं में प्रसिद्ध हैं। इन के स्वामी शिवपुत्र कार्तिकेय हैं।
अनवरत् कल्याण
इन की अपार कृपा से पुत्रहीन को सुयोग्य पुत्र, पत्नीहीन पुरुष को आज्ञाकारिणी पत्नी, पतिहीन कन्या को गुणवान पति, मूर्ख को ज्ञान, दरिद्र को धन तथा कर्मशील व्यक्ति को कर्मों के उत्तम फल प्राप्त होते हैं। छठी मैया जगत को अनवरत् मंगल प्रदान कर रही हैं।
आदिशक्ति का रूप
छठी मइया आदिशक्ति का ही रूप हैं। आदिशक्ति को ही हम परमपिता परमेश्वर भी कहते हैं। सृष्टि में जो भी सजीव-निर्जीव और चर-अचर इन स्थूल आँखों से दिखायी दे रहे हैं, वे सब आदिशक्ति के ही रूप हैं। कई ऐसे सूक्ष्म पदार्थ भी हैं जो इन आँखों से नहीं दिखायी देते, वे भी उन्हीं के रूप हैं, उन्हीं की रचना है। उन्हीं का अंश हम भी हैं, आप भी हैं- वह परमात्मा और हम सब के अन्दर आत्मा। इस तरह हमें जानना चाहिये कि छठी मइया सदैव हमारे साथ है। छठी मइया प्राणियों के कल्याण में निरन्तर संलग्न हैं।
प्रथम भक्त प्रियव्रत
प्रियव्रत नाम के एक राजा थे। वे स्वायम्भुव मनु के पुत्र थे। प्रियव्रत योग-साधक होने के कारण विवाह करना नहीं चाहते थे। सदा तपस्या में संलग्न रहते थे। सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी की आज्ञा और सत्प्रयत्न से उन्होंने मालिनी से विवाह तो कर लिया पर कई वर्षों तक सन्तान उत्पन्न नहीं हुई। तब महर्षि कश्यपजी ने पुत्रेष्टियज्ञ कराया और मालिनी गर्भवती हो गयीं। पुत्र उत्पन्न हुआ जो अत्यन्त सुन्दर था, पर जन्म के साथ ही उस की मृत्यु हो गयी। घर-परिवार में प्रसन्नता की जगह उदासी छा गयी। मृत पुत्र के शव का अन्तिम संस्कार करने के लिए राजा प्रियव्रत और रानी श्मशान पहुँचे। वहाँ छठी मइया प्रकट हुईं और उसे जीवित कर दीं। तब प्रियव्रत ने विधिवत उन की पूजा की और षष्ठी देवी के पूजन की परम्परा चल पड़ी।
छठी मइया की जय!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें