गुरुवार, 29 अगस्त 2019

फिट इंडिया अभियान : शीतांशु कुमार सहाय का अमृत और शीतांशु टीवी का सक्रिय योगदान FIT INDIA MOVEMENT

-शीतांशु कुमार सहाय
२९ अगस्त अर्थात् भारत का ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’। भारत के महान हॉकी खिलाड़ी ध्यानचन्द की जयन्ती को भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। बृहस्पतिवार, २९ अगस्त २०१९ का दिन भारत के इतिहास में महत्त्वपूर्ण रूप से शामिल हो गया कि इस दिन पहली बार सरकार ने आम भारतीय जनता के फिटनेस पर विशेष दृष्टिपात करने का अभियान ‘फिट इण्डिया मूवमेण्ट’ का श्रीगणेश किया। श्रीगणेश करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बताया कि अमेरिका, जर्मनी, चीन जैसे कई देशों में नागरिकों को स्वस्थ और फिट रखने की योजनाएँ चल रही हैं। उन्होंने कहा कि हर तरफ स्वार्थ की बात हो रही है, ऐसे में स्वार्थ से स्वास्थ्य की ओर जाना है। निश्चय ही इस अभियान का असर देशभर में पड़ेगा। 

यों हुई शुरुआत  

नई दिल्ली के इन्दिरा गाँधी स्टेडियम में इस महत्त्वपूर्ण अभियान को औपचारिक रूप से आरम्भ करने के लिए भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने १० बजकर ३४ मिनट से भाषण देना शुरू किया और ३५ मिनट में अभियान की आरम्भिक रूपरेखा रखी और रोगग्रस्त होते भारतीय को सचेत किया। राष्ट्रीय खेल दिवस यानी २९ अगस्त २०१९ को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के इंदिरा गाँधी स्टेडियम में फिट इंडिया अभियान की शुरुआत की। इस मौके पर उन्होंने कहा- बैडमिंटन हो, टेनिस हो, एथलेटिक्स हो, बॉक्सिंग हो, कुश्ती हो या फिर दूसरे खेल, हमारे खिलाड़ी हमारी उम्मीदों और आकांक्षाओं को नये पंख लगा रहे हैं। स्पोर्ट्स का सीधा नाता है फिटनेस से लेकिन आज जिस फिट इंडिया मूवमेंट की शुरुआत हुई है, उस का विस्तार स्पोर्ट्स से भी आगे बढ़कर है। फिटनेस एक शब्द नहीं है; बल्कि स्वस्थ और समृद्ध जीवन की एक ज़रूरी शर्त्त है।’’ आज यानी २९ अगस्त को हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की ११४वीं जयंती है। मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन को भारत में ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने शुभकामना देते हुए कहा कि मेजर ध्यानचंद के रूप में देश को एक महान स्पोर्ट्सपर्सन मिले थे। 

पहल प्रशन्सनीय.....परम्परा की ओर लौटें

निश्चय ही प्रधानमन्त्री की यह पहल प्रशन्सनीय है। मैं आप सुधी पाठकों से आग्रह करता हूँ कि स्वस्थ रहने, फिट रहने के लिए संकल्ति हो जायें और योग, पारम्परिक खेल, परिश्रम के कार्य, पैदल चलना, साइकिल चलाना, नाचना, उछलना-कूदना आदि को अपनी दिनचर्या में शामिल कर लें। घरेलू नुस्खों और आयुर्वेद की ओर लौटें। मैं सक्रिय रूप से फिट इण्डिया मूवमेण्ट में शामिल हूँ। 

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शीतांशु कुमार सहाय का अमृत के नियमित पाठकों को ज्ञात है कि आप को स्वस्थ और फिट बनाये रखने के लिए कई आलेखों का प्रकाशन पूर्व में किया जा चुका है जो अब भी जारी है। यह वेबसाइट https://Sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.com अपना कर्तव्य समझते हुए बिना औषधि के भी स्वस्थ रहने के तरीकों का प्रचार कर रहा है। आप यदि लैपटॉप या कम्प्यूटर पर देख रहे हैं तो दायीं तरफ के कॉलम में दिये गये ‘लोकप्रिय रचनाएँ’ और ‘पूर्व प्रकाशित अमृत रचनाएँ’ में वर्ष २०१० से अब तक के सभी आलेखों को पढ़ेंगे तो ज्ञान के कई रहस्य आप को मालूम होंगे। यदि आप मोबाइल फोन पर देख रहे हैं तो स्क्रॉल कर इस बेवसाइट के सब से नीचे आइये और वहाँ लिखे ‘वेब वर्जन देखें’ पर क्लिक करें। ऐसा करने पर आप के मोबाइल पर कम्प्यूटर की तरह ही ‘शीतांशु कुमार सहाय का अमृत’ दिखायी देगा। अब दायें कॉलम में Subscribe by Email जहाँ लिखा है, उस के नीचे के बॉक्स में अपना ईमेल का पता डालें और इस वेबसाइट पर डाली जानेवाली नयी सामग्रियों और बेहतरीन जानकारी को अपने ईमेल पर निःशुल्क प्राप्त करें।

अपनी भाषा में पढ़ें

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फिट रहने के मन्त्र वीडियो में

समय-समय पर शीतांशु टीवी में फिट रहने के मन्त्र बताये जाते हैं। दायीं तरफ के कॉलम में शीतांशु टीवी का लिंक दिया गया है। आप उस पर क्लिक कर फिटनेस और ज्ञान की अन्य बातों को निःशुल्क जानने-समझने के लिए नये और पुराने वीडियो देख सकते हैं। शीतांशु टीवी पर रीलिज किये जानेवाले नये वीडियो आप तुरन्त देखना चाहते हैं तो कृपया इसे सब्सक्राइब कर लें। ‘शीतांशु टीवी’ का कोई वीडियो आप देख रहे हैं ता नीचे लाल रंग से SUBSCRIBE लिखा हुआ मिलेगा, उस पर क्लिक कर दें। इस के बाइ वहीं पर घण्टी का निशान आयेगा, उस पर भी क्लिक करेंगे तो आप को नये वीडियो की सूचना मिलने लगेगी और निःशुल्क मिलने लगेगा फिटनेस का मन्त्र। 

तकनीक ने बनाया रोगी

फिट भारत अभियान का श्रीगणेश करने के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा- समय कैसे बदला है, उस का एक उदाहरण मैं आप को देता हूँ- कुछ दशक पहले तक एक सामान्य व्यक्ति एक दिन में ८-१० किलोमीटर पैदल चल ही लेता था। फिर धीरे-धीरे टेक्नोलॉजी बदली, आधुनिक साधन आये और व्यक्ति का पैदल चलना कम हो गया। अब स्थिति क्या है? टेक्नोलॉजी ने हमारी ये हालत कर दी है कि हम चलते कम हैं और अब वही टेक्नोलॉजी हमें गिन-गिन के बताती है कि आज आप इतने स्टेप्स चले, अभी ५ हजार स्टेप्स नहीं हुए, २ हजार स्टेप्स नहीं हुए, अभी और चलिए।

डाइबिटीज और हाइपरटेंशन

प्रधानमंत्री ने आगे कहा- भारत में डाइबिटीज और हाइपरटेंशन जैसी बीमारियाँ बढ़ती जा रही हैं। आजकल हम सुनते हैं कि हमारे पड़ोस में १२-१५ साल का बच्चा डाइबिटिक है। पहले सुनते थे कि ५०-६० की उम्र के बाद हार्ट अटैक का खतरा बढ़ता है लेकिन अब ३५-४० साल के युवाओं को हार्ट अटैक आ रहा है।

रविवार, 25 अगस्त 2019

आँसू से मत घबराइये, जीवन का अभिन्न अंग है रोना Do not be Afraid of Tears, Weeping is an Integral Part of Life

-शीतांशु कुमार सहाय
रूलाई और आँसू का सम्बन्ध लोग दु:ख से लगाते रहे हैं, किंतु रोना एक स्वाभाविक क्रिया है। रोने की कला मनुष्य को विरासत में मिली है। जन्म के समय से ही बच्चे रोना शुरू कर देते हैं। उस समय न रोने पर उसे रूलाने की कोशिश की जाती है; ताकि उस की मांसपेशियों व फेफड़ों का संचालन ठीक प्रकार से होने लगे।
कुछ लोग जोर से चिल्लाकर रोते हैं। ऐसी रूलाई सामान्य रूलाई से ज़्यादा फ़ायदेमन्द है। जोर से रोने पर मस्तिष्क में दबी भावनाओं का तनाव दूर हो जाता है, राहत मिलती है और बहुत शक्ति प्राप्त होती है; अत: पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में हृदयाघात यानी दिल का दौरा काफी कम पड़ता है।
अपने मानसिक तनाव को आँसू द्वारा शिथिल न कर पाने के कारण अक्सर पुरुष धमनियों से सम्बन्धित व्याधियों से पीड़ित रहते हैं।
आँसू ही आँखों को नम रखते हैं, स्वच्छ रखते हैं तथा धूल आदि पडऩे पर उसे धो डालते हैं। आँसू के विष के प्रभाव से ही हवा से उड़कर आँखों में पड़ऩेवाले कीट-पतंगे मर जाते हैं और वे हानि नहीं पहुँचा पाते। वैज्ञानिकों के मतानुसार, एक चम्मच आँसू 200 गैलन जल के कीटाणुओं को मारकर साफ करने में समर्थ है।
भावनात्मक आँसू हमें उदासी, अवसाद और गुस्से से मुक्ति दिलाते हैं। यही आँसू हद से बाहर जाने से भी रोकते हैं। रोने से मन का मैल धुल जाता है तथा एक प्रकार की शान्ति महसूस होती है। न रोनेवाले मानसिक तनाव से ग्रसित होकर चिड़चिड़े स्वभाव के हो जाते हैं। ऐेसे व्यक्ति शीघ्र निर्णय भी नहीं ले पाते।
आयुर्वेद के अनुसार, रूलाई रोकने पर कई रोगों के होने का डर है। ऐसे रोगों में जुकाम, आँख या हृदय में पीड़ा, अरुचि, डर, चक्कर आना, गर्दन में अकडऩ, मानसिक तनाव आदि मुख्य हैं। सदमा लगने पर रूलाई को जबरन रोकने से हृदयाघात, उच्च या निम्न रक्तचाप अथवा मस्तिष्क के निष्क्रिय होने का भय भी बना रहता है।
कभी-कभी ऐसा देखने को मिलता है कि माता-पिता या अध्यापक बच्चे को डाँट या पीट देते हैं और जब वे रोने लगते हैं तो उन्हें डरा-धमकाकर रोने नहीं देते हैं। यह अत्यन्त घातक कदम है। इस से बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस कारण बच्चों की बुद्धि कुंठित भी हो सकती है अथवा वे किसी मनोरोग से ग्रसित होकर आजीवन उस से पीड़ित रह सकते हैं।
रोना कभी निरर्थक नहीं जाता। बच्चे रोते हैं तो 'दूध' मिलता है, पत्नी के रोने पर 'जिद्द' पूरी हो जाती है। रूलाई का एक शानदार उदाहरण देखिये-- अंग्रेजी के प्रसिद्ध साहित्यकार शेक्सपियर वास्तव में एन. हेथवे को छोड़कर दूसरी लड़की से प्रेमालाप करने लगे। इस बात की जानकारी मिलने पर हेथवे घबरा गयीं। सहयोग की अपेक्षा से वह पड़ोसी के घर जाकर बहुत रोयीं और वृत्तान्त कह सुनाया।
हेथवे के रोने का प्रभाव पड़ोसी पर इतना पड़ा कि उस ने दूसरे दिन पूरे शहर में शेक्सपियर तथा हेथवे के विवाह के पोस्टर चिपकवा दिये। अंतत: विवश होकर शेक्सपियर को हेथवे से विवाह करना पड़ा।
आँसू की बहुपयोगिता को देखकर ही शायरों ने इसे 'मोती' की संज्ञा दी है। हिन्दी फिल्मों में कई गानों का मुख्य विषय आँसू ही है। .....तो आँसू से घबराएँ नहीं और रोने का मन करे तो अवश्य रोएँ; क्योंकि यह जीवन का अभिन्न अंग है।  

शुक्रवार, 9 अगस्त 2019

कुँवर सिंह और धरमन : प्रेम के पंचमात्राओं के मर्मज्ञ Love Story of Kunwar Singh and Dharman

अगस्त २०१९ में पटना के प्रेमचन्द रंगशाला में राम कुमार मोनार्क के निर्देशन में मंचित नाटक मे कुँवर सिंह की भूमिका में पंकज करपटने और धरमन का पात्र निभाती पिंकी सिंह।


-शीतांशु कुमार सहाय    
प्रेम.....पंचमात्राओं का छोटा शब्द। पर, इस की गहरायी प्रशान्त महासागर से अधिक और ऊँचाई हिमालय से ज़्यादा है। सृष्टि के प्रादुर्भाव से अब तक इसे परिभाषा की शाब्दिक सीमा देने में लाखों-करोड़ों शब्द जाया किये गये पर हाथ कुछ नहीं आया। आज भी यह अपरिभाषित है, अपरिमित है, अपरम्पार है। साधारण मनुष्य के वश की बात नहीं कि वह इन पंचमात्राओं को माप सके, इसे पा सके, इसे पार कर सके। पर, चूँकि मनुष्य में आत्मा निहित है जो परमात्मा का ही अंश है, अतः जो अपनी आत्मा को परमात्मातुल्य बनाने का प्रयत्न करता है, परमात्मतत्त्व को प्राप्त कर लेता है, वह इस पंचभूतशरीर में रहते हुए ही प्रेम की पंचमात्राओं को जान लेता है, इसे पा लेता है और इसे अपने जीवन का अंग बनाने में सफल हो जाता है। भारतीय इतिहास में सफल प्रेमी के रूप में महान स्वाधीनता सेनानी कुँवर सिंह भी जाने जाते हैं। 
कुँवर सिंह का प्रेम स्वार्थसिद्धि या काम-वासना का प्रतीक नहीं था। एक हिन्दू राजा होकर भी एक मुसलमान नर्तकी से प्रेम कर उन्होंने जाति और धर्म की दीवार ढाह दी। यह प्रेम का ही प्रतीक है कि उन्होंने अल्लाह की इबादत के लिए मस्जिद का निर्माण कराया तो अन्य धर्मों को भी पल्लवित-पुष्पित होने का भरपूर अवसर प्रदान किया। 
प्रेम को रहने के लिए, ठहरने के लिए, स्थिरता के लिए शुद्ध हृदय की आवश्यकता होती है। यह शुद्धता साबुन से नहीं, समर्पण- पूर्ण समर्पण से प्राप्त होती है। पूर्ण समर्पण तभी सम्भव है जब प्रेमी और प्रेमिका के बीच संशय न हो और न ही भविष्य में संशय उत्पन्न होने की सम्भावना हो। ऐसा हुआ तभी तो जगदीशपुर नरेश कुँवर सिंह के प्रति धरमन का समर्पण अमर हो गया, हम आज भी उसे याद करते हैं। संशय और दोषारोपण तो कुँवर-धरमन के प्रेम के बीच कभी जगह पा ही नहीं सके। 
यह भारतीय परम्परा है कि राजा के लिए उस की प्रजा सन्तान की तरह प्रिय होती है। सभी तबके की प्रजा पर कुँवर सिंह समान दृष्टि रखते थे। निर्धनों के प्रति उन का प्रेम देखते ही बनता था। एक निर्धन महिला को उन्होंने बहन का सम्मानित दर्जा प्रदान करते हुए निर्धनता दूर करने के लिए १०४० कट्ठे का भूखण्ड उपहार स्वरूप दिया। 
अँग्रेजों के आतंक से उन की प्रजा भी प्रताड़ित होने लगी। इसी दौरान प्रेमिका ने अपनी भूमिका निभायी और प्रेमी के भीतर के देशभक्त को जगाया। कुँवर सिंह के मनोरंजन के लिए धरमन जब भी नाचतीं तो उन के ओठ देशभक्ति की पंक्तियाँ ही गुनगुनाते। धरमन की राजमहल की विलासिता का त्याग देखकर महाराज कुँवर भी प्रेमिका के त्याग से आगे निकलने को प्रेम से भाव-विभोर होकर संकल्प लिया और हृदय में देशप्रेम की ज्योति जलायी। उन्होंने प्रमिका के व्यवहार और कहने का मर्म समझा और जान लिया कि देशभक्ति के बिना प्रेम अधूरा है। 
देशप्रेम की भावना जागते ही जब भोजपुर के शेर कुँवर सिंह ने तलवार उठायी तो अँग्रेजों की हुकूमत काँप उठी। प्रेम की भावना से ओत-प्रोत प्रेम की मिसाल कुँवर सिंह ने अस्सी-एकासी वर्ष की उम्र में भी महज नौ महीनों में पन्द्रह युद्ध किये और सभी युद्धों में अँग्रेजों को पराजित किया। अन्तिम युद्ध तो उन्होंने केवल बायें हाथ से ही किया और अँग्रेजों की सेना को बुरी तरह पराजित कर भोजपुर के आरा शहर में अँग्रेजों के झण्डा ‘यूनियन जैक’ को उतारकर अपना झण्डा फहराया। वह २३ अप्रील १९५८ ईस्वी का दिन था। कुँवर सिंह के साथ सब ने विजयोत्सव मनाया। इस विजयोत्सव को प्रेमी ने नृत्यांगना से वीरांगना बनी प्रेमिका को समर्पित किया, जो पहले ही रणक्षेत्र में वीरगति को प्राप्त हो गयी थी। वह प्रेमी के साथ विजयोत्सव का क्षणिक सुख तो नहीं बाँट सकी लेकिन प्रेम के मार्ग पर चलती हुई त्याग को बलिदान में परिवर्तित कर परमात्मा के साथ अमरत्व के सुख का भोग कर रही थी।  
प्रेम में त्याग और बलिदान न हो तो वह प्रेम है ही नहीं। अतः धरमन ने भी प्रेमी की सेना में न केवल स्वयं शामिल हुईं; बल्कि अपनी बहन करमन के हाथों को भी शस्त्र थमायीं और वीरगति को प्राप्त होकर त्याग और बलिदान की असीम ऊँचाई को स्पर्श किया। कोई उस ऊँचाई तक पहुँचने की कल्पना भी नहीं कर सकता।   
आमतौर पर महापुरुषों के जन्म दिन या पुण्यतिथि मनाये जाते हैं पर कुँवर सिंह के देशप्रेम को याद करने के लिए प्रतिवर्ष २३ अप्रील को ‘विजयोत्सव’ मनाया जाता है। इन महान प्रेमी और प्रेमिका को मेरा शत नमन!

गुरुवार, 8 अगस्त 2019

वीर कुँवर सिंह : अस्सी वर्षों की हड्डी में जागा जोश पुराना था Kunwar Singh

-शीतांशु कुमार सहाय
थे वयोवृद्ध तुम, किन्तु जवानी नस-नस में लहराती थी।
बिजली लज्जित हो जाती थी, तलवार चमक जब जाती थी।
तुम बढ़ते जिधर, उधर मचता अरि-दल में कोलाहल-क्रन्दन।
हे वीर तुम्हारा अभिनन्दन!
कविवर सत्यनारायण लाल ने अपनी कविता ‘वीर कुँवर सिंह के प्रति’ में प्रख्यात भारतीय स्वाधीनता सेनानी वीर बाबू कुँवर सिंह की शूरता व विजय अभियान का काव्यात्मक वर्णन किया है। कुँवर सिंह ने अन्तिम साँस तक परतन्त्रता को स्वीकार नहीं किया और बाद के स्वतन्त्रता संग्रामियों के लिए ऐसा आदर्श छोड़ गये, जिसे अपनाकर देश को स्वाधीन कराना सम्भव हो सका।
भारत के बिहार राज्य अन्तर्गत वर्तमान भोजपुर ज़िले के जगदीशपुर गाँव के ज़मीन्दार थे कुँवर सिंह के दादा उमराँव सिंह। विपरीत परिस्थिति आने पर उमराँव सिंह को परिवार सहित अपने मित्र वर्तमान उत्तर प्रदेश राज्य के ग़ाजीपुर के नवाब अब्दुल्ला के पास जाना पड़ा। वहीं उमराँव सिंह की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसे साहेबजादा सिंह का नाम दिया गया। साहेबजादा सिंह ताक़तवर होने के साथ-साथ क्रोधी और उग्र व्यवहार वाले थे। साहेबजादा सिंह का विवाह पंचरत्न देवी से हुआ। उन के चार पुत्र हुए- कुँवर सिंह, दयाल सिंह, राजपति सिंह और अमर सिंह।  
वर्ष 1777 ईस्वी को कुँवर सिंह का जन्म हुआ था। बचपन से ही कुँवर सिंह वीरता और साहस के कार्यों में संलग्न रहने के कारण पढ़ने पर ध्यान न दे सके। इस सन्दर्भ में लेखक रामनाथ पाठक ‘प्रणयी’ ने लिखा है- ‘‘वे प्रारम्भ से ही सरस्वती की सेवा से विरत रहकर चण्डी के चरणों में अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते रहे। .....उन्होंने जितौरा के वन में अपने लिए फूस का बंगला बनवाया था। वे वहीं रहकर शिकार प्रभृति वीरता के कार्यों से अपना मनोविनोद किया करते थे।’’
तरुणावस्था में ही कुँवर सिंह का विवाह गया के देवमँूगा के प्रसिद्ध ज़मीनदार राजा फतेह नारायण सिंह की पुत्री से हुआ। दाम्पत्य मधुर था पर कुँवर सिंह की आसक्ति अन्य औरतों में बनी रही। आरा की धरमन बीवी अन्त तक उन के शौर्य और प्रणय में साथ देती रही। धरमन और उन की बहन करमन ने कुँवर सिंह के नेतृत्व में युद्ध भी किया। 
सन् 1826 ईस्वी में साहबजादा सिंह की मृत्यु के बाद बाबू कुँवर सिंह को जगदीशपुर की रियासत की बागडोर सौंपी गयी। राजगद्दी पर बैठते ही कुँवर सिंह ने जगदीशपुर का काफ़ी विकास किया। जगदीशपुर दुर्ग को सुन्दर व ज़्यादा सुरक्षात्मक बनाकर हथियारों से लैस घुड़सवारों की फौज बनायी गयी। कुँवर सिंह के भाइयों के बीच सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध नहीं थे, पर इस की चिन्ता उन्हें नहीं थी। शेर की तरह अकेले ही वे दहाड़ते थे।
वर्ष 1845-46 से ही अँग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की चिंगारी सुलगने लगी थी। कई बिहारियों को कारागार में डाला जा चुका था। सोनपुर का गुप्त सम्मेलन इस सन्दर्भ में प्रभावशाली रहा, पर सफलता सन्दिग्ध रही। यों अन्दर-ही-अन्दर 1857 में देशभर में एकसाथ विद्रोह करने की योजना बनी पर बैरकपुर छावनी (बंगाल) के सिपाही मंगल पाण्डेय ने निर्धारित समय से कुछ माह पूर्व मार्च 1857 में ही ईस्ट इण्डिया कम्पनी सरकार के विरुद्ध विद्रोह का श्रीगणेश कर दिया। इस की सूचना बिहार में पटना के दानापुर छावनी के सैनिकों को भी मिली और वे सब भी समय से पूर्व ही अँग्रजों के विरुद्ध विद्रोह कर डाले। चूँकि सैनिकों यानी सिपाहियों ने इस की शुरुआत की, अतः इसे ‘सिपाही विद्रोह’ कहते हैं। 
सिपाही विद्रोह को भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम कहा जाता है। दानापुर के सैनिकों ने जगदीशपुर के महाराज कुँवर सिंह को नेतृत्व प्रदान किया। अस्सी वर्षों की अवस्था में उन्होंने इस चुनौती को स्वीकारा और कई युद्धों में कम्पनी की गोरी सेना को परास्त कर शौर्य और पराक्रम की अमिट गाथा लिख डाली। 
सम्पूर्ण भारतवर्ष को वीर विजयी कुँवर सिंह के शौर्य पर गुमान है। भारत माता के इस महान सपूत के चरणों में सम्पूर्ण भारतवासियों के प्रणाम निवेदित हैं। संसद भवन में वीर बाबू कुँवर सिंह के चित्र को ससम्मान लगाकर देश ने उन के प्रति अपना कर्तव्य निभाया। कुँवर सिंह सिपाही विद्रोह के प्रथम बिहारी सेनानी हैं जिन का चित्र संसद भवन में लगाया गया। 
स्वतन्त्र भारत भूमि पर साँस लेनेवाला प्रत्येक नागरिक प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के महानायक वीर बाबू कुँवर सिंह के बलिदान का ऋणी है। आइये, हम सब भारत की एकता, अखण्डता और स्वतन्त्रता को अक्षुण्ण रखकर उन के प्रति आंशिक ऋणमुक्ति का प्रयास जारी रखें। 
भारत में सिपाही विद्रोह की व्यापकता के मद्देनज़र 19 जून 1857 ईस्वी को पटना के आयुक्त विलियम टेलर ने स्थानीय प्रमुख व्यक्तियों की बैठक विद्रोह के दबाने के सन्दर्भ में बुलायी, जिन में से तीन मुसलमानों को गिरफ्तार कर लिया। भोजपुर के तरारी थानान्तर्गत लकवा गाँव के पीर अली को भी टेलर ने पाँच जुलाई 1857 ईस्वी को पकड़वाया और मात्र तीन घण्टों की न्यायालीय प्रक्रिया के पश्चात् फाँसी दे दी गयी। 
पीर अली पटना में पुस्तक की दूकान चलाते और विद्रोह में भाग लेते थे। एक पेड़ से लटकाकर उन्हें फाँसी दे दी गयी। पटना में गाँधी मैदान के निकट स्थित वर्तमान कारगिल शहीद स्मारक के निकट ही वह पेड़ स्थित था। तत्कालीन दण्डाधिकारी मौलवी बख्श के आदेश पर ही पीर अली को फाँसी की सज़ा दी गयी थी।  
भारत माता के सपूत पीर अली की शहादत ने देशभक्तों को उद्वेलित कर दिया। फलतः 19 जून 1857 की शाम को दानापुर छावनी के सैन्य सिपाहियों की टोली कुँवर सिंह के नेतृत्व में रणाहुति देने आरा की ओर कूच कर गयी। कुँवर के छोटे भाई अमर सिंह सहित विशाल सिंह व हरेकृष्ण सिंह भी युद्ध में शामिल हो गये। युद्ध की तैयारी के लिए जगदीशपुर के दुर्ग में 20 हज़ार सैनिकों के लिए छः महीनों की खाद्य सामग्रियों, अस्त्र-शस्त्र, वस्त्र और अन्य आवश्यक सामानों को संग्रहित कर लिया गया। यों अस्सी वर्षीय कुँवर सिंह के नेतृत्व में भारत माता के वीर सपूतों ने शाहाबाद क्षेत्र में अँग्रेजी हुकूमत को परास्त कर दिया। उस समय का शाहाबाद वर्तमान में बिहार के चार जिलों में बँटा है। ये ज़िले हैं- भोजपुर, बक्सर, कैमूर और रोहतास। अब शाहाबाद नाम का कोई ज़िला नहीं है। 
ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने 500 सैनिकों को डनवर के नेतृत्व में आरा भेजा। शाहाबाद के सैनिकों ने कुँवर सिंह के कुशल नेतृत्व में रणकौशल दिखाते हुए 29-30 जुलाई 1857 ईस्वी को डनवर की सेना को परास्त कर दिया। इसी तरह लायड को भी हार का सामना करना पड़ा। जीवित अँग्रेज सैनिकों को कुँवर सिंह ने बन्दी बना लिया। बिहार के भोजपुर ज़िले के वर्तमान आरा शहर में स्थित महाराजा महाविद्यालय परिसर में स्थित आरा हाउस कुँवर सिंह की जीत का परिचायक है, जहाँ अँग्रेजों को कैद कर रखा गया था। यहाँ ‘वीर कुँवर सिंह संग्रहालय’ बनाया गया है। बिहार सरकार ने आरा में उन के नाम पर ‘वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय’ की स्थापना की है।
बंगाल तोपखाने का मेजर आयर उस दौरान जलयान से प्रयाग जा रहा था। वह सैनिकों सहित आरा के बीवीगंज में कुँवर सेना से युद्ध करने आ गया। उस ने बन्दी बनाये गये अँग्रेज सैनिकों को मुक्त कराया। आयर ने कुँवर सेना के कई अधिकारियों को फाँसी दे दी। इस बीच कुँवर सिंह अपने बचे साथियों सहित आगे की रणनीति बनाने के लिए जगदीशपुर आ गये। 
इस के बाद कैप्टन रैटरे के सौ सिक्ख सैनिकों सहित दो सौ अन्य सैनिकों के साथ 12 अगस्त 1857 ईस्वी की सुबह जगदीशपुर पर हमला कर दिया। जितौरा गढ़ को बर्वाद कर अमर सिंह व दयाल सिंह के घर को जला दिया गया। पुनः सैनिकों को संगठित कर कुँवर सिंह 26 अगस्त 1857 ईस्वी को मिर्जापुर (वर्तमान उत्तर प्रदेश का एक ज़िला) पहुँचे। मिर्जापुर में अँग्रेजों को पराजित करने के बाद वे रामगढ़, घोरावाल, नेवारी, तप्पा उपरन्धा को जीतते हुए बाँदा और कालपी होते हुए कानपुर पहुँचे। ग्वालियर की क्रान्ति सेना, नाना साहेब व कुँवर सिंह ने मिलकर कानपुर में अँग्रेजों से युद्ध किया पर वे असफल रहे। इस के उपरान्त कुँवर सिंह लखनऊ आ गये। लखनऊ के नवाब ने उन्हें शाही वस्त्र व धन से सम्मानित किया। 
घटना 17 मार्च 1858 ईस्वी की है। आजमगढ़ के निकट अतरौलिया में कुँवर सिंह अपने पुराने साथियों से मिले और अँग्रेजों के चंगुल से भारत की मुक्ति पर रणनीतिक चर्चा की। सैनिकों को संगठित करने की नीति भी बनी। तैयारी चल ही रही थी कि अँग्रेज कर्नल मिलमैन ने कुँवर सिंह और उन के साथियों पर अचानक आक्रमण कर दिया। पूरी तैयारी न रहने के बावजूद अपने देशभक्त सैनिकों का कुशल नेतृत्व करते हुए कुँवर सिंह ने मिलमैन और उस के सैनिकों को बुरी तरह परास्त किया। सैकड़ों सैनिक मारे गये। अन्ततः 26 मार्च 1858 ईस्वी को भारत माता के महान सपूत महाराजा कुँवर सिंह ने पुनः आजमगढ़ को अपने कब्जे में किया। अभी महाराजा के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रदर्शित करती हुई आजमगढ़ की प्रजा खुशी मना ही रही थी कि फिर 27 मार्च 1858 ईस्वी को कर्नल डेम्स के नेतृत्व में अँग्रेजी सेना ने हमला कर दिया मगर इस बार भी कुँवर सिंह की सेना से मात खानी पड़ी। लगातार मात खाते अँग्रेजों ने कुँवर सिंह को अपना सब से बड़ा शत्रु मान लिया था और उन्हें मार डालने की हर सम्भव कोशिश की जाने लगी। 
बात 13 अप्रील 1858 ईस्वी की है। कुशल सेनापति निशान सिंह के नेतृत्व में दो हज़ार वीर सैनिकों को आजमगढ़ की सुरक्षा की जिम्मेवारी सौंपकर महाराज कुँवर सिंह गाजीपुर चले गये। 16 अप्रील 1858 ईस्वी को उन्होंने लुगार्ड पर हमला कर दिया। वे सैनिकों सहित पुनः आजमगढ़ आ गये और लुगार्ड के नेतृत्ववाली ब्रिटिश सेना से भयंकर युद्ध किया। कुछ देशद्रोही रियासतों के राजाओं ने अँग्रेजों को अपनी सेना मुहैया करायी और धन से भी सहायता की। इस कारण देशभक्तों पर देशद्रोहियों की टोली मजबूुत पड़ने लगी। इसलिए कुछ सैनिकों सहित कुँवर सिंह दूसरी तरफ कूच कर गये। लुगार्ड के निर्देश पर ब्रिगेडियर डगलस ने सैनिकों के साथ कुँवर सिंह का पीछा किया। 
डगलस 19 अप्रील 1858 ईस्वी को नागरा की ओर बढ़ा जिस की जानकारी गुप्तचरों ने दी तो कुँवर सिंह सैनिकों के साथ सिकन्दरपुर की ओर चल दिये और वहीं से घाघरा नदी पार कर गये। इस तरह वे 20 अप्रील 1858 ईस्वी की रात में गाजीपुर के मनिआर गाँव पहुँचे, जहाँ उन का भव्य स्वागत किया गया। गाजीपुर के ही शिवपुर के लोग ने बीस नावों की व्यवस्था की। भारत की स्वतऩ्त्रता के लिए प्राण उत्सर्ग करने को तत्पर सैकड़ों वीर सैनिकों के साथ कुँवर सिंह शिवपुर घाट से गंगा पार गये। इस तरह ईस्ट इण्डिया कम्पनी की तमाम चौकसियों के बावजू़द 22 अप्रील 1858 ईस्वी को एक हज़ार पैदल और घुड़सवार सैनिकों के साथ महाराज कुँवर सिंह जगदीशपुर पहुँचने में सफल रहे। उन्होंने पहले सभी सैनिकों को गंगा पार कराया और अन्तिम नाव से स्वयं पार करने लगे। इसी बीच अँग्रजी सेना वहाँ आ धमकी और कुँवर सिंह के नाव पर अन्धाधुन्ध गोलीबारी कर दी। एक गोली कुँवर सिंह के दायें बाँह में लगी। गोली का विष शरीर में न फैले, इसलिए कुँवर सिंह ने म्यान से तलवार निकाली और अपने बायें हाथ से बाँह के निकट से दायें हाथ को काटकर गंगा में डाल दिया। केवल स्वाधीनता संग्राम के दौरान ही नहीं; बल्कि विश्व इतिहास में ऐसा प्रकरण उपलब्ध नहीं है कि देशसेवा के लिए कोई सेनानी स्वयं अपने शरीर का महत्त्वपूर्ण अंग काटकर डाला हो। माता गंगा को भी किसी भक्त ने भगीरथ काल से अबतक ऐसा ‘भोग’ नहीं चढ़ाया है। 
भारत माता को ईस्ट इण्डिया कम्पनी की दास्तां से मुक्ति दिलाने के लिए नौ महीने में 15 युद्ध लड़नेवाले महान देशभक्त कुँवर सिंह के शरीर में जाँघ सहित कई अंगों में घाव थे। उस पर से दायाँ हाथ काट लेने पर दायीं बाँह पर भी असह्य दर्द देनेवाला बड़ा घाव हो गया। जगदीशपुर नरेश कुँवर सिंह के घायल होने की सूचना पाकर अँग्रेज प्रसन्न हुए। उन्होंने सोचा कि अब भोजपुर के रणबाँकुरों को पराजित करना आसान होगा। यों आरा से ले ग्रेण्ड के नेतृत्व में अँग्रेज सैनिकों ने जगदीशपुर पर आक्रमण कर दिया। प्रजा की भलाई के लिए कुँवर सिंह ने बायें हाथ से भारत माता की पवित्र मिट्टी का तिलक लगाया और बायें हाथ से ही तलवार लहराते हुए सैनिकों के साथ अँग्रेज सैनिकों पर कहर बनकर टूटे। यह कुँवर सिंह के जीवन का अन्तिम युद्ध था। इस युद्ध में भी वे विजेता ही रहे। इस तरह 23 अप्रील 1858 ईस्वी को जगदीशपुर ही नहीं, आरा से भी अँग्रेजों को खदेड़ दिया और आरा में विजयोत्सव मनाया गया। अँग्रेजों के ध्वज ‘यूनियन जैक’ को उतारकर कुँवर सिंह ने अपना ध्वज फहराया। सैकड़ों सैनिकों को कुँवर सिंह ने बन्दी भी बनाया। बिहार में अब भी 23 अप्रील को प्रतिवर्ष ‘कुँवर सिंह का विजयोत्सव’ मनाया जाता है। उन के अदम्य साहस, पराक्रम और शौर्य के कारण उन के नाम के आगे ‘वीर’ शब्द जोड़ते हैं। उन्होंने जीवन की चौथी अवस्था (80-81 वर्ष) में अपनी वीरता का लोहा मनवाया, अतः उन्हें ‘बाबू’ (पिता या अभिभावक) की भी संज्ञा दी जाती है।    
भारत के इतिहास कुँवर सिंह जैसे व्यक्तित्व नहीं मिलते हैं। आज भी उन की जीवनी हमें देशभक्ति, साम्प्रदायिक एकता और परहित की ओर प्रेरित करती है। उन के राज्य में सभी धर्मों और जातियों को समान अधिकार मिले हुए थे। उन्होंने विलासिता के बीच भी देशभक्ति और व्यक्तिगत खुशी के बीच भी परहित को प्रश्रय दिया। उन्होंने अपनी प्रेमिका धरमन के नाम पर आरा में ‘धरमन मस्जिद’ बनवायी जहाँ आज भी मुसलमान नमाज अदा करते हैं और कुँवर सिंह की साम्प्रदायिंक सौहार्द को बढ़ावा देने की भूमिका को सराहते हैं। धरमन की बहन करमन के नाम पर उन्होंने एक गाँव बसाया जो आज भी ‘करमन टोला’ के नाम से प्रसिद्ध है। धरमन और करमन केवल नृत्यांगना ही नहीं वीरांगना भी थीं। दोनों ने 1857 ईस्वी के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में कुँवर सिंह की सेना में शामिल होकर बहादुरी के साथ लड़ी और वीरगति को प्राप्त हुईं।
विजयोत्सव के तीन दिनों बाद 26 अप्रील 1858 ईस्वी को वीर बाबू कुँवर सिंह ने युद्ध, उन्माद और प्रतिशोध की इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। 
इस आलेख में तो अति संक्षिप्त रूप से ही वीर बाबू कुँवर सिंह के व्यक्तित्व व कृतित्व को रेखांकित करने का प्रयास मैं ने किया। पर, इस बात का अफसोस है कि भारतीय इतिहासकारों ने महाराणा प्रताप और शिवाजी की तरह ही प्रथम स्वाधीनता संग्राम के प्रमुख सेनानी बाबू कुँवर सिंह के साथ भी घोर अन्याय किया है। कुँवर सिंह और उन के परिजनों के बलिदान के अलावा धरमन और करमन जैसी वीरांगनाओं को भी इतिहासकारों ने नकारने का कुत्सित प्रयास किया है। हर भारतवासी उन्हें श्रद्धा से स्मरण करे और संघर्ष करते हुए आगे बढ़ने की प्रेरणा ले। अन्त में कवि मनोरंजन प्रसाद सिंह की कविता याद हो आयी-
उधर खड़ी थी लक्ष्मीबाई और पेशवा नाना था।
इधर बिहारी वीर बाँकुड़ा खड़ा हुआ मस्ताना था।।
अस्सी वर्षों की हड्डी में जागा जोश पुराना था।
सब कहते हैं कुँवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था।।

सोमवार, 5 अगस्त 2019

जानिये अनुच्छेद 370 के हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर में क्या-क्या बदल जायेगा What will Change in Jammu and Kashmir After the Temoval of Article 370

-शीतांशु कुमार सहाय
सोमवार, 5 अगस्त 2019 का दिन भारत के इतिहास में महत्त्वपूर्ण रूप से शामिल हो गया। इस दिन भारतीय संघ को दो और केन्द्रशासित प्रदेश मिले। अब भारत में कुल आठ केन्द्रशासित प्रदेश हो गये। जम्मू-कश्मीर विधायकों वाला केन्द्रशासित प्रदेश बनेगा और लद्दाख को बिना विधायकों का केन्द्रशासित प्रदेश बनाया जायेगा। अब प्रत्येक भारतवासी को यह जानना आवश्यक है कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में क्या परिवर्तन हो जायेगा। 
  1. अनुच्छेद 370 के हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष अधिकार पूरी तरह से खत्म हो गया है। केन्द्र सरकार के इस फैसले के बाद जम्मू-कश्मीर में भारतीय संविधान पूरी तरह से लागू होगा। 
  2. भारत का कोई भी नागरिक अब जम्मू-कश्मीर में ज़मीन और अन्य स्थायी संपत्ति खरीद सकेगा।
  3. जम्मू-कश्मीर का अब अलग ध्वज नहीं होगा। अब केवल एक राष्ट्रध्वज तिरंगा ही रहेगा और सभी राष्ट्रीय उत्सवों और अन्य मौकों पर तिरंगा ही शान से लहरायेगा। 
  4. जम्मू-कश्मीर में अब दुहरी नागरिकता नहीं होगी। 
  5. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के कारण जम्मू-कश्मीर में मताधिकार का अधिकार सिर्फ वहाँ के स्थायी नागरिकों को ही था। दूसरे राज्य के लोग वहाँ मतदान नहीं कर सकते थे और न चुनाव में प्रत्याशी बन सकते थे। अब नरेंद्र मोदी सरकार के इस ऐतिहासिक फैसले के बाद भारत का कोई भी नागरिक वहाँ के मतदाता और प्रत्याशी बन सकते हैं। 
  6. जम्मू-कश्मीर अब अलग राज्य नहीं बल्कि केंद्रशासित प्रदेश होगा। जम्मू-कश्मीर विधानसभा वाला केंद्रशासित प्रदेश होगा। 
  7. विधानसभा का कार्यकाल 6 साल की जगह 5 साल होगा। 
  8. लद्दाख को अलग केंद्रशासित प्रदेश घोषित किया गया। यहाँ विधानसभा नहीं होगी और इस का प्रशासन चंडीगढ़ की तरह केन्द्र सरकार द्वारा चलाया जायेगा। 
  9. अब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में सूचना का अधिकार (आरटीआई) और लेखा परीक्षण (सीएजी) जैसे कानून भी लागू होंगे। 
  10. जम्मू-कश्मीर में देश का कोई भी नागरिक अब सरकारी नौकरी पाने का अधिकारी हो गया है।
  11. इस फैसले के बाद जम्मू-कश्मीर का अपना अलग से कोई संविधान नहीं होगा। विदित हो कि कश्मीर में 17 नवम्बर 1956 ईस्वी को अपना संविधान लागू किया था। अब कश्मीर में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 का भी इस्तेमाल हो सकता है यानी राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। 


ऐतिहासिक फैसला : जम्मू-कश्मीर और लद्दाख बने केन्द्रशासित प्रदेश, 370 का आंशिक खात्मा Historical verdict : Jammu and Kashmir and Ladakh became Union Territories, Partial end of Artical 370

-शीतांशु कुमार सहाय
सोमवार, 5 अगस्त 2019 का दिन भारत के इतिहास में महत्त्वपूर्ण रूप से शामिल हो गया। इस दिन भारतीय संघ को दो और केन्द्रशासित प्रदेश मिले। अब भारत में कुल आठ केन्द्रशासित प्रदेश हो गये। जम्मू-कश्मीर विधायकों वाला केन्द्रशासित प्रदेश बनेगा और लद्दाख को बिना विधायकों का केन्द्रशासित प्रदेश बनाया जायेगा।
केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भारतीय संविधान की अनुच्छेद 370 का संकल्प विधेयक राज्यसभा में सोमवार, 5 अगस्त 2019 को पेश कर दिया है। विधेयक को प्रस्तुत करते ही विपक्ष दलों काँग्रेस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के सदस्यों ने जमकर हंगामा किया। एक पीडीपी सांसद ने कुर्ता तक फाड़ लिया। 
राज्यसभा में श्री शाह ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 के खंड 1 के सिवा इस अनुच्छेद के सारे खण्डों को रद्द करने की सिफारिश की। इसी के साथ जम्मू-कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दिया गया। साथ ही लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग करते हुए केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया है। उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति एम. वैंकेया नायडू ने सदन में मार्शल बुलाने का आदेश दिया। इसी के साथ सदन की कार्रवाई स्थगित कर दी गयी। 
विधेयक पेश करते हुए केन्द्रीय गृहमंत्री शाह ने कहा- जिस दिन से राष्ट्रपति द्वारा इस गैजेट नोटिफिकेशन को स्वीकार किया जायेगा, उस दिन से संविधान के अनुच्छेद 370 (1) के अलावा और कोई भी खण्ड लागू नहीं होंगे। शाह ने आगे कहा- हम जो चारों संकल्प और बिल लेकर आये हैं, वह कश्मीर मुद्दे पर ही है। संकल्प प्रस्तुत करता हूँ। अनुच्छेद 370 (1) के अलावा सभी खण्ड राष्ट्रपति के अनुमोदन के अलावा खत्म होंगे। 
विधेयक पर विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार ने इस विधेयक के बारे में पहले से नहीं बताया था। राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने सदन में बैठकर धरना भी दिया। राज्यसभा में जैसे ही गृह मंत्री अमित शाह बोलने के लिए खड़े हुए विपक्ष ने हंगामा शुरू किया। काँग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि कश्मीर में युद्ध जैसे हालात क्यों हैं? पूर्व मुख्यमंत्री नज़रबंद क्यों हैं? विदित हो कि 4 अगस्त 2019 की आधी रात को ही जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, फारूख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती को उन के घरों में ही नज़रबन्द कर दिया गया है।