गुरुवार, 4 अप्रैल 2024

जीवन के घटनाक्रमों को समझना आवश्यक Necessary To Understand The Events Of Life



-शीतांशु कुमार सहाय 

      कृपया समय निकालकर पूरा पढ़ें और कुछ समझ में आये तभी लाइक या कमेण्ट करें। जब आप इसे पूरा पढ़ेंगे, तो कुछ मेरे बारे में और बहुत-सी बातें अपने सन्दर्भ में समझ पायेंगे। हड़बड़ाहट में नहीं, समझ-समझकर पढ़िये....

      अगर आप का जीवन ख़ुशहाल है, भौतिक रूप से साधनसम्पन्न है, तो भी उस की सीमा निर्धारित है। वास्तव में प्रकृति में कुछ भी स्थिर और अनन्त नहीं है; क्योंकि प्रकृति ही स्थिर और अनन्त नहीं है। सब कुछ प्रतिक्षण बदल रहे हैं। किसी वस्तु या घटना की निरन्तरता सृष्टि के लिए उचित नहीं है और जब मनुष्य अपनी हठधर्मिता से कृत्रिम निरन्तरता जारी रखने का प्रयास करता है तो अनर्थ हो जाता है। मीठे भोजन की निरंतरता मधुमेह, तो नमकीन की निरन्तरता उच्च रक्तचाप का कारण बन सकता है। ऐसे कई उदाहरण आप इस विश्व में देख सकते हैं। 

      एक बार की बात है बलराम और श्रीकृष्ण को मथुरा छोड़ना पड़ा था और जंगल में भटकना पड़ रहा था। उन के पास पर्याप्त भोजन और आराम का समय भी नहीं था। तब बलरामजी ने श्रीकृष्ण से प्रश्न किया- "हमारे साथ ये सब क्यों हो रहा है, जबकि तुम मेरे साथ हो?" 

      भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया, "जब जीवन आप के साथ बहुत अच्छी तरह घटित होता है, तो आप शिकायत नहीं करते। जब आप कुछ विशेष स्थितियों को अच्छा और शेष को बुरा मानते हैं या कुछ स्थितियों को मनचाहा और बाकी को अवांछित मानते हैं। क्या उस समय आप स्वयं से पूछते हैं कि आप के साथ ये सब क्यों हो रहे हैं?" 

      द्वापर युग के इन दो भाइयों ने अपनी लौकिक लीला के इस वार्तालाप में जीवन का गूढ़ रहस्य समझाया है। हालाँकि यह वार्तालाप और लम्बी है, तथापि यहाँ आलोच्य सन्दर्भ में उस अपूर्व वार्तालाप का इतना ही अंश पर्याप्त है। 

      वास्तव में आप जीवन को केवल जीवन के रूप में नहीं देखते। जैसे ही आप आध्यात्मिकता में कदम रखते हैं, जीवन आप के साथ ज़बर्दस्त तरीके से घटित होता है। मतलब यह कि सब कुछ तेजी से घटित होता हुआ, भागता हुआ प्रतीत होता है। अगर आप किसी वस्तु की पहचान अच्छा या बुरा के रूप में नहीं करते, तो आप देखेंगे कि जीवन अत्यन्त तीव्रता से घटित हो रहा है। अच्छी या बुरी जैसी श्रेणी केवल आप बनाते हैं। सच तो यह है कि न कुछ अच्छी है और न कुछ बुरी, केवल जीवन घटित होता है। कुछ लोग उस का आनन्द उठाते हैं, कुछ लोग उसे झेलते हैं। हम बस इस बात का ध्यान रख सकते हैं कि हर कोई इस का आनन्द उठाये। मूलभूत स्तर के दृष्टिकोण से देखें तो इस धरती पर होनेवाली घटनाएँ कोई महत्त्व नहीं रखतीं। मैं चाहता हूँ कि आप अच्छे और बुरे की पहचान के बिना अपने जीवन की ओर देखें। जीवन अत्यन्त तीव्रता से घटित हो रहा है।

      परमसत्ता, जिसे भगवान कहते हैं, ईश्वर कहते हैं। वह परमसत्ता दीखती नहीं लेकिन उस के कई रूप दिखायी देते हैं। प्रकृति उसी सत्ता का दृश्यमान रूप है। प्रकृति के अन्तर्गत ही जीवन और घटनाएँ दिखायी देती हैं। 

      अगर आप आध्यात्मिकता की ओर मुड़ना चाहते हैं, तो इस का मतलब है कि प्राकृतिक रूप से आप जीवन के एक बड़े अंश की चाह करते हैं। इसे यों समझें कि जीवन में जिस वस्तु को भी पाने का प्रयास करते हैं, वह जीवन का एक बड़ा हिस्सा पाने की कोशिश होती है। 

      जिस के पास कार नहीं होती, उसे लगता है कि कार वाले लोग बड़े ख़ुशकिस्मत होते हैं। कार निश्चित रूप से आरामदेह और सुविधाजनक होती है, मगर वह कोई ख़ुशकिस्मती नहीं है। अगर विश्व में कारें होती ही नहीं, तो किसी को कार पाने की इच्छा नहीं होती। समस्या यह है कि आप दूसरों से इस तरह अपनी तुलना करते हैं, तो यह विषाद का कारण बन जाता है। अगर जिन के पास कार नहीं है, वे कार वाले से अपनी तुलना न करें, तो उन्हें पैदल चलने या साइकिल चलाने में कोई समस्या नहीं होगी, कोई लज्जा नहीं होगी, किसी प्रकार का दुःख नहीं होगा।

      मैं अस्तित्व के रूप में जीवन की बात कर रहा हूँ। अभी, आप बहुत-सी ऐसी चीजों या घटनाओं को जीवन मानते हैं, जिन का वास्तव में जीवन की वास्तविकता से कोई वास्ता नहीं है। ऐसी तुलना या ऐसा सोच केवल एक विकृत मानसिक अवस्था है। कई दुःख केवल इसी कारण होते हैं। 

      जब आध्यात्मिक रास्ते पर चलते हैं, तो आन्तरिक स्थितियाँ बहुत तेज गति से परिवर्तित होती हैं। इस के कई कारण हैं। एक मूलभूत कारण प्रारब्ध है। इस जीवन के लिए जो कर्म मिले हैं, उसे ही प्रारब्ध कहते हैं। 

      सृष्टि बहुत करुणामयी है। अगर वह इसी जीवन में आप के सारे कर्म दे देती, जिसे संचित कर्म कहते हैं, तो आप मर जाते। बहुत लोग इसी जीवन की स्मृतियों को नहीं झटक पाते। मान लीजिये कि मैं आप को गहरी तीव्रता में आप के सौ जीवनकालों की याद दिला दूँ, तो अधिकतर लोग उस स्मृति का बोझ न सह पाने पर तुरंत प्राण त्याग देंगे। इसलिए, सृष्टि और प्रकृति आप को उतना प्रारब्ध देती है, जितना आप संभाल सकें। अगर आप प्रकृति द्वारा सौंपे गये कर्मों पर ही चलें और आप कोई नया कर्म उत्पन्न नहीं करते– जो संभव नहीं है, तो सौ जन्मों के कर्मों को नष्ट करने के लिए, आप को कम-से-कम सौ और जन्म लेने पड़ेंगे। इन सौ जीवनकालों की प्रक्रिया में हो सकता है कि आप और हज़ार जीवनकालों के लिए कर्म इकट्ठा लें।

      जब कोई आध्यात्मिक पथ पर होता है, तो वह अपने गंतव्य यानी मुक्ति पर पहुँचने की हड़बड़ी में होता है।  वह सौ या हज़ार जीवनकाल नहीं लेना चाहता, वह जल्दी अपने लक्ष्य को पा लेना चाहता है। अगर विशेष रूप में दीक्षा दी जाय, तो मुक्ति के आयाम खुलते हैं जो अन्यथा नहीं खुलते। अगर आप आध्यात्मिक रास्ते पर नहीं होते, तो हो सकता है कि आप अधिक आरामदेह और शांतिपूर्ण जीवन बिता रहे होते, मगर साथ ही एक निर्जीव जीवन भी जी रहे होते। जब आप के साथ कोई मूलभूत चीज घटित नहीं होती, तो आप जीवन से अधिक मृत्यु के निकट होते हैं। 

      आध्यात्मिक प्रक्रिया में प्रवेश का मतलब है, जीवन को वास्तविक रूप से अनुभव करने की इच्छा रखना। जहाँ तक दशकों में नहीं पहुँचा जा सकता, आध्यात्मिकता से वहाँ कुछ दिनों में पहुँचा जा सकता है। यह केवल कहने की बात नहीं है, यह जीवन की सच्चाई है। भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में यही समझाया है। 

      आध्यात्मिक व्यक्ति किसी घटना को अच्छा या बुरा नहीं मानता, उस का सरोकार केवल इस बात से होता है कि जीवन उस के लिए कितनी तीव्रता से घटित हो रहा है। अच्छाई और बुराई समाज से जुड़ी होती है, उन का जीवन से कोई लेना-देना नहीं। अगर आप गुरु प्रदत्त साधना करते हैं, तो आप अपने प्रारब्ध तक सीमित नहीं रहते। गुरु आप की स्थिति के अनुसार ही आप के कालचक्र को तेज करते हैं। दस जीवन के कर्मों को संभालना है तो जीवन की गति संसार से थोड़ी तेज होगी लेकिन अगर सौ जीवनकालों के कर्मों को अभी संभालना है, तो निश्चय ही जीवन बहुत तीव्रता से घटित होगा। ऐसे में संतुलन बनाये रखना बहुत आवश्यक होता है। इस दौरान यदि सामाजिक स्थितियों के असर में आकर किसी से अपनी तुलना करने लगे, तो जीवन जिस गति से घटित होता है, उस से यह लग सकता है कि जीवन में कुछ गड़बड़ है लेकिन वास्तव में ऐसा कुछ नहीं होता।

      अगर आप आध्यात्मिक होना चाहते हैं, तो इस का मतलब है कि आप अभी जैसे हैं, उस में परिवर्तन चाहते हैं, चरम प्रकृति को अर्थात् परमसत्ता को पाना चाहते हैं, आप असीमित होना चाहते हैं, आप मुक्ति चाहते हैं। इस चाहत को पूरा करने के लिए बहुत अधिक ऊर्जा की आवश्यकता है। साधना के माध्यम से गुरु आप में इस ऊर्जा की पूर्ति करते हैं। अत्यधिक ऊर्जा के कारण ही जीवन तेज गति से, ज़बर्दस्त गति से घटित होता है।

      इतने शब्दों को लिखने का एक ही मतलब है कि जीवन के घटनाक्रमों को समझना आवश्यक है। अगर जीवन में भौतिक दु:खों की बारम्बारता बनी हुई है तो समझना चाहिए कि आप को ईश्वर की निकटता शीघ्र मिलेगी। इस के लिए आडम्बर और प्रचार से दूर रहनेवाले एक गुरु की खोज कीजिये। 

      कृष्णं वन्दे जगद्गुगुरुम्।