रविवार, 30 दिसंबर 2018

जानिये भारत के 8 एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर्स को Know 8 Accidental Prime Ministers of India

                                                

पहचानिये इन्हें
-शीतांशु कुमार सहाय
प्रख्यात फिल्म अभिनेता अनुपम खेर के लाज़वाब अभिनय से सजी-संवरी हिन्दी फिल्म ‘द एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर’ का आधिकारिक ट्रेलर प्रदर्शित होने के बाद जहाँ पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सुर्खियों में हैं, वहीं भारतीय जनता पार्टी और काँग्रेस में जबर्दस्त वाक्युद्ध जारी है। अब चर्चा यह भी हो रही है कि क्या वास्तव में मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पद के स्वाभाविक दावेदार नहीं थे? क्या मनमोहन सिंह एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर अर्थात् अचानक या संयोगवश बनाये गये प्रधानमंत्री थे? क्या वे प्रधानमंत्री पद के योग्य नहीं थे? क्या उन में निर्णय लेने की क्षमता नहीं थी? खैर इस विवाद को यहीं रहने दें। हम आप को भारत के एक-दो नहीं, पूरे आठ एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर्स के बारे में बता रहे हैं। इन के नाम अचानक ही सामने आ गये और वे संसार के सब से बड़े लोकतान्त्रिक देश के प्रधानमंत्री बन गये। ‘द एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर’ फिल्म के ट्रेलर लोकार्पित होने के बाद लोग यही जान रहे हैं कि केवल मनमोहन सिंह ही एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर थे। पर, यह सच नहीं है। भारत में अब तक आठ एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर्स हो चुके हैं। 
मैं इन के बारे में जरूर बताऊँगा।  लेकिन आप ऐसे ही राज जानने के लिए, भारत की समृद्ध परम्परा और प्राचीन ज्ञान को आधुनिक परिवेश में जानने-समझने के लिए, योग, अध्यात्म और स्वास्थ्य के आसान सूत्रों और बहुत-सी जानकारियों को हासिल करने के लिए 'शीतांशु कुमार सहाय का अमृत' (https://sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.com/) को नियमित पढ़ते रहें और जानकारी अच्छी लगे तो लाइक और शेयर ज़रूर करें। आलेख के नीचे में आप अपना मन्तव्य भी दे सकते हैं।  
आप इत्मीनान से पूरा आलेख पढ़ें; क्योंकि सब से ज़्यादा चर्चित हो चुके एक्सीडेण्टल प्राइम मिनिस्टर डॉक्टर मनमोहन सिंह की चर्चा तो मैं सब से अन्त में करूँगा। इस का कारण यह है कि वे फिलहाल भारत के अन्तिम एक्सीडेण्टल प्राइम मिनिस्टर हैं। 

1. इन्दिरा गाँधी 


आप को जानकर बहुत आश्चर्य होगा कि ‘आयरन लेडी’ के उपनाम से मशहूर इन्दिरा गाँधी भारत के इतिहास में पहली एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर हुई हैं। सन् 1966 ईस्वी में तत्कालीन सोवियत संघ के ताशकन्द शहर में तत्कालीन भारतीय प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री का निधन 11 जनवरी को हो गया। तब गुलजारी लाल नंदा को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाया गया। इस के बाद अचानक ही लाल बहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में सूचना-प्रसारण मंत्री के पद पर कार्यरत इन्दिरा गाँधी को देश का नियमित प्रधानमंत्री बनाया गया। इन्दिरा गाँधी 24 जनवरी 1966 ईस्वी को भारत की प्रधानमन्त्री बनीं। इस तरह वह कार्यवाहक प्रधानमन्त्री गुलजारी लाल नंदा सहित मोरारजी देसाई और जगजीवन राम जैसे दिग्गजों को पछाड़कर प्रधानमन्त्री की कुर्सी पर आसीन होने में सफल रहीं। उन्हें अपने पिता और भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू के वफ़ादार राजनीतिज्ञों का भरपूर सहयोग मिला। देश में आपातकाल लागू करने पर उन की बहुत निन्दा हुई।

2. चौधरी चरण सिंह

दूसरे एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर हुए चौधरी चरण सिंह। सन् 1977 ईस्वी में हुए लोकसभा आम निर्वाचन में इन्दिरा गाँधी बुरी तरह से हार गयीं और देश में पहली बार गैर-काँग्रेसी दलों ने मिलकर सरकार बनायी थी। जनता पार्टी की सरकार बनी और मोरारजी भाई देसाई भारत के प्रधानमन्त्री बने। चौधरी चरण सिंह उपप्रधानमंत्री और गृहमन्त्री बने। कुछ माह बाद जनता पार्टी में अन्दरूनी कलह हो गयी। इस कारण मोरारजी देसाई की सरकार गिर गयी। तब काँग्रेस के सहयोग से 28 जुलाई सन् 1979 ईस्वी को चौधरी चरण सिंह भारत के एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर बने। राष्ट्रपति ने उन्हें 20 अगस्त 1979 तक लोकसभा में बहुमत साबित करने का समय दिया था। पर परिपक्व राजनीतिज्ञ हो चुकी इन्दिरा गाँधी ने 19 अगस्त 1979 को ही समर्थन वापस ले लिया और चौधरी चरण सिंह की सरकार गिर गयी। इस तरह प्रधानमन्त्री के रूप में चौधरी चरण सिंह संसद में प्रवेश नहीं कर पाये। यही उन का सब से यादगार किन्तु नकारात्मक कीर्तिमान बन पाया। चौधरी चरण सिंह 28 जुलाई सन् 1979 ईस्वी से 14 जनवरी सन् 1980 ईस्वी तक प्रधानमन्त्री रहे।

3. राजीव गाँधी

देश को कम्प्यूटर का उपहार देनेवाले राजीव गाँधी को तीसरे एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर के रूप में याद किया जाता है। 31 अक्तूबर सन् 1984 ईस्वी को तत्कालीन प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी की उन के अंगरक्षकों बेअन्त सिंह और शतवन्त सिंह द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गयी। यों अचानक ही भारत के सामने नेतृत्व का संकट आ गया। ऐसे में नेहरू-इन्दिरा के वफ़ादार काँग्रेसियों ने कई वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कर तुरन्त ही इन्दिरा गाँधी के ज्येष्ठ पुत्र राजीव गाँधी को बतौर प्रधानमन्त्री देश की बागडोर सौंप दी। उस समय राजीव गाँधी लोकसभा सांसद थे। वह भारत के सातवें और सब से कम उम्र के प्रधानमंत्री बनेे। उन का यह कीर्तिमान अब तक कायम है। राजीव गाँधी हवाई जहाज के पायलट थे और राजनीति में नहीं आना चाहते थे। उन के अनुज संजय गाँधी राजनीति में सक्रिय थे जिन की सन् 1980 ईस्वी में हवाई जहाज दुर्घटना में मृत्यु हो गयी। ऐसे में माँ इन्दिरा गाँधी को सहयोग देने के लिए उन्होंने राजनीति में आना पड़ा। राजीव गाँधी 31 अक्तूबर 1984 से 2 दिसम्बर 1989 ईस्वी तक भारत के प्रधानमन्त्री रहे। तमिलनाडु के श्रीपेरम्बुदुर में 21 मई सन् 1991 ईस्वी को लोकसभा आम निर्वाचन के प्रचार के दौरान लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई/लिट्टे) के एक आत्मघाती हमलावर ने उन की हत्या कर दी। 

4. चन्द्रशेखर

भारत के चौथे एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर के रूप में चन्द्रशेखर याद आते हैं। इन्होंने ऐसा इतिहास बनाया जो किसी से भी शायद ही सम्भव हो। मात्र 64 सांसदों के समर्थन पर इन्होंने सरकार बनाने का दावा किया जो कदापि सम्भव नहीं था। पर, तत्कालीन विपक्षी दल काँग्रेस ने उन्हें बाहर से समर्थन दिया और वे एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर बन गये। अनोखे घटनाक्रम में सन् 1990 ईस्वी में समाजवादी जनता पार्टी के नेता चन्द्रशेखर 10 नवम्बर सन् 1990 ईस्वी को भारत के प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हुए। वह छः महीने प्रधानमन्त्री पद पर रहे। वास्तव में हुआ यह कि भारतीय जनता पार्टी के नेता लाल कृष्ण आडवाणी की गिरफ़्तारी के बाद भाजपा ने विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गयी। हालाँकि विश्वनाथ प्रताप सिंह यदि प्रधानमन्त्री का पद छोड़ देते और किसी भाजपा नेता को नेतृत्व मिलता तो सरकार बच सकती थी पर इस के लिए जनता दल नेता विश्वनाथ प्रताप सिंह तैयार नहीं थे। इसी बीच तत्कालीन विपक्षी नेता राजीव गाँधी ने चन्द्रशेखर से सम्पर्क किया। चन्द्रशेखर के नेतृत्व में जनता दल टूट गयी और 64 बागी सांसदों को लेकर समाजवादी जनता पार्टी का गठन हुआ और सरकार बनाने का दावा ठोंक दिया गया। राजीव गाँधी के नेतृत्व में काँग्रेस ने उन्हें समर्थन दिया जो टिकाऊ न रहा और 21 जून सन् 1991 ईस्वी को चन्द्रशेखर को त्याग पत्र देना पड़ा।

5. पीवी नरसिंह राव

भारत के एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर्स की पंक्ति में पामुलापति वेंकट नरसिंह राव पाँचवें स्थान पर रहे हैं। वह पेशे से कृषि विशेषज्ञ और अधिवक्ता थे।  काँग्रेस से जुड़कर वे राजनीति में आये कई महत्त्वपूर्ण मंत्रालयों के कार्यभार सम्भाले। उन में राजनीतिक सूझबूझ तो थी पर नेहरू-इन्दिरा के वफ़ादारों को कुछ सूझ नहीं रहा था। काँग्रेस चुनाव प्रचार के दौरान राजीव गाँधी को खो चुकी थी। इस का असर यह हुआ कि मतदाताओं का झुकाव काँगेस के प्रति हुआ और 1991 के लोकसभा आम निर्वाचन में काँग्रेस सत्ता में वापस आयी। अब प्रधानमन्त्री बनाने की बारी थी तो अचानक नरसिंह राव का नाम सामने आया और वह भारत के प्रधानमन्त्री बने। 20 जून 1991 से 16 मई 1996 ईस्वी तक पीवी नरसिंह राव भारत के प्रधानमन्त्री रहे।

6. एचडी देवगौड़ा

हरदनहल्ली डोडागौड़ा देवगौड़ा अर्थात् एचडी देवगौड़ा जनता दल के नेता के रूप में अचानक प्रधानमन्त्री बन गये थे। इन्हें भारत का छठा एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर कहिये। एचडी देवगौड़ा का प्रधानमन्त्री बनने का किस्सा आज भी लोग को बेहद चौंकाता है। राष्ट्रीय स्तर पर उन का नाम किसी ने नहीं सुना था। उस समय कुछ दल मिलकर राष्ट्रीय मोर्चा बनाये थे। अब जानिये कि कैसे अचानक प्रधानमन्त्री बन बैठे देवगौड़ा। सन् 1996 ईस्वी में हुए लोकसभा आम निर्वाचन में काँग्रेस 140 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही लेकिन वह बहुमत का जुगाड़ नहीं कर पा रही थी। लोकसभा में संख्याबल में तीसरे स्थान पर राष्ट्रीय मोर्चा था। राष्ट्रीय मोर्चे के 79 सांसद थे। इस राष्ट्रीय मोर्चे के प्रधान थे जनता दल नेता एचडी देवगौड़ा। वह कुछ दिन पहले ही विधानसभा निर्वाचन में जीत दर्जकर कर्नाटक में अपनी सरकार चला रहे थे। उन की पार्टी जनता दल के पास लोकसभा में 46 सांसद थे। भारतीय जनता पार्टी को दुबारा सत्ता में आने से रोकने के लिए काँग्रेस ने ऐसा बड़ा दाँव खेला जिस का किसी को भरोसा नहीं था। काँग्रेस ने राष्ट्रीय मोर्चे को बाहर से समर्थन देते हुए सरकार बनाने को प्रेरित किया। इस के लिए तुरन्त ही एचडी देवगौड़ा तैयार हो गये। उन्होंने अपने जनता दल के 46, समाजवादी पार्टी के 17 और तेलगुदेशम के 16 कुल 79 सांसदों और काँग्रेसी की बाहरी मदद से सरकार बनाने का दावा राष्ट्रपति के सामने पेश कर दिया। यों अचानक 1 जून 1996 को हरदनहल्ली डोडागौड़ा देवगौड़ा भारत के प्रधानमन्त्री बन गये। पर, यहाँ भी काँग्रेस ने जो काम चौधरी चरण सिंह और चन्द्रशेखर के साथ किया था, वही किया और देवगौड़ा सरकार से समर्थन वापस ले ली। इस तरह एचडी देवगौड़ा को 21 अप्रील सन् 1997 ईस्वी को प्रधानमन्त्री पद से त्याग पत्र देना पड़ा। 

7. इन्द्र कुमार गुजराल

एक आश्चर्यजनक राजनीतिक घटनाक्रम में इन्द्र कुमार गुजराल भारत के सातवें एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर बने। बात अप्रील 1997 की है। एचडी देवगौड़ा की केन्द्र सरकार को बाहर से समर्थन दे रही काँग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया। ऐसे में राजनीतिक संकट गहरा गया। मध्यावधि लोकसभा निर्वाचन को टालने के लिए संयुक्त मोर्चा और काँग्रेस के बीच एक समझौता हुआ। प्रधानमन्त्री पद से एचडी देवगौड़ा ने त्याग पत्र दिया और अचानक इन्द्र कुमार गुजराल संयुक्त मोर्चे के नये नेता चुने गये। वह 21 अप्रील सन् 1997 ईस्वी को भारत के 12वें प्रधानमन्त्री बने। नवम्बर 1997 में जैन आयोग के मामले पर काँग्रेस ने उन की सरकार से समर्थन वापस ले लिया। इस तरह 28 नवम्बर सन् 1997 ईस्वी को इन्द्र कुमार गुजराल को प्रधानमन्त्री पद से त्याग पत्र देना पड़ा। पत्रकार राजदीप सरदेसाई की एक पुस्तक में छपे प्रकरण को सच मानें तो प्रातःकाल में इन्द्र कुमार गुजराल को जगाकर यह बताया गया था कि वे भारत के प्रधानमन्त्री बनने जा रहे हैं।

8. मनमोहन सिंह

अब मैं चर्चा करता हूँ एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर डॉक्टर मनमोहन सिंह की। वह नौकरशाह थे और भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर भी रह चुके हैं। मनमोहन सिंह कभी लोकसभा निर्वाचन नहीं लड़े। इन के प्रधानमन्त्री बनने का किस्सा काफ़ी रोचक है। दरअसल, विदेशी मूल के विवाद की वज़ह से तत्कालीन काँग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने प्रधानमन्त्री बनना स्वीकार नहीं किया। तब यह पद किसे दिया जाय? उस समय कई दिग्गज काँग्रेसी नेता दावेदार थे पर अचानक मनमोहन सिंह का नाम सामने आ गया और सोनिया गाँधी के आदेश पर उन्हें काँग्रेसी सांसदों ने अपना नेता चुन लिया। इस तरह भारत को अचानक एक नया प्रधानमन्त्री मिल गया। 22 मई सन् 2004 ईस्वी से 26 मई सन् 2014 ईस्वी तक मनमोहन सिंह प्रधानमन्त्री रहे।
आजकल अनुपम खेर अभिनीत हिन्दी फिल्म ‘द एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर’ की बहुत चर्चा है। इस फिल्म का कथानक मनमोहन सिंह के प्रधानमन्त्री रहने के दौरान उन के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू की पुस्तक ‘द एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर’ पर आधारित है। बारू मई 2004 से अगस्त 2008 तक प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार रहे। वह प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह के मुख्य प्रवक्ता भी थे।

शुक्रवार, 21 दिसंबर 2018

आप के कम्प्यूटर या मोबाइल फोन पर 10 नज़रें, न करें गलत हरकत / 10 Types Watching on Your Computer or Mobile Phone, do not Act Wrong

-शीतांशु कुमार सहाय
यदि आप भारत में हैं तो अब आप का कम्प्यूटर और उस में रखी गयी व्यक्तिगत सामगियाँ बिना आप की इजाजत के ‘कोई’ देख सकता है। उस में अगर कुछ ‘गलत’ मिला तो आप के दरवाजे पर दस्तक होगी। आप दरवाजा खोलेंगे तो पुलिस होगी जो आप को थाने चलने, स्पष्टीकरण देने या सीधे गिरफ्तार भी कर सकती है। जी हाँ, यह सच है। भारत में केन्द्रीय सरकार के आदेश से ऐसा होनेवाला है।
केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने अप्रत्याशित कदम उठाते हुए बृहस्पतिवार, 20 दिसम्बर 2018 को 10 केन्द्रीय एजेंसियों को देश में चल रहे किसी भी कम्प्यूटर में सेंधमारी कर जासूसी करने की इजाजत दे दी है। गृह मंत्रालय के आदेश के अनुसार, देश की ये सुरक्षा एजेंसियाँ किसी भी व्यक्ति के कम्प्यूटर में जेनरेट, ट्रांसमिट, रिसीव और स्टोर किये गये किसी दस्तावेज को देख सकती हैं, उस का परीक्षण कर सकती हैं। किसी व्यक्ति या संस्थान के कॉल या डाटा को जाँचने-परखने के लिए अब इन 10 एजेंसियों को गृह मन्त्रालय का आदेश प्राप्त करने की आवश्यता नहीं है।
इस सरकारी आदेश पर कई तरह की प्रतिक्रियाएँ आ रही हैं। पर, चाहे जो भी प्रतिक्रिया आये मगर इसे गोपनीयता भंग करनेवाला बताकर खारिज नहीं किया जा सकता। दरअसल, कोई भी स्मार्टफोन या इण्टरनेट से युक्त कम्प्यूटर, लैपटॉप या टैब्लेट रखनेवाला व्यक्ति अपनी निजता को कई कम्पनियों के बीच बाँट चुका होता है। गौर करें, आप जैसे ही कोई ऐप अपने मोबाइल फोन, कम्प्यूटर, लैपटॉप या टैब्लेट में डाउनलोड करते हैं और उसे चालू करते हैं तो वह कई शर्त्तें आप से स्वीकार करवाता है और आप बिना सोचे-समझे उसे स्वीकार भी कर लेते हैं। प्रत्येक ऐप आप की फोटो गैलरी, डाउनलोडेड या अपलोडेड सामग्रियाँ, मीडिया, वाई-फाई, लोकेशन (आप कब, कहाँ हैं) आदि से सम्बन्धित पूरी जानकारी प्राप्त करती है और जब तक वह ऐप आप के फोन में है, तब तक के सारे अपडेट्स (फोटो गैलरी में डाले गये नये चित्र या वीडियो, नयी डाउनलोडेड या अपलोडेड सामग्रियाँ, मीडिया की नयी सामग्री, वाई-फाई या मोबाइल डाटा, लोकेशन) की जानकारी ऐप वाली कम्पनी को मिलती रहती है। 
इसी तरह अब गूगल का नया फीचर आया है। इस का लोग खूब उपयोग कर रहे हैं। पहले लोग मोबाइल फोन या सिम कार्ड में सम्पर्कवालों के नम्बर उन के नाम के साथ सुरक्षित रखते थे। पर अब गूगल के माध्यम से इसे सुरक्षित रख रहे हैं। यों महत्त्वपूर्ण सामग्रियाँ क्लाउड या ड्राइव में सुरक्षित रख रहे हैं। 
ऐसे में भारत सरकार के नये आदेश की आलोचना नहीं होनी चाहिये; क्योंकि ऐसा पहले से ही हो रहा है। निजी कम्पनियाँ सब की इलेक्ट्रॉनिक सेन्धमारी पहले से ही कर रही हैं। ऐसे में भारत सरकार तो नियमानुसार कानूनन ही अपनी दस एजेन्सियों को किसी व्यक्ति या संस्थान के कॉल या डाटा को जाँचने-परखने के लिए अधिकृत किया है।  
भारत के केन्द्रीय गृह मन्त्रालय के आदेश के अनुसार अब इण्टेलिजेंस ब्यूरो, नारकोटिक्स कण्ट्रोल ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय, सेण्ट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्स, डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इण्टेलिजेन्स, केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई), एनआईए, कैबिनेट सेक्रेटेरिएट (रॉ), डायरेक्टरेट ऑफ सिग्नल इण्टेलिजेन्स और दिल्ली के आरक्षी आयुक्त (कमिश्नर ऑफ पुलिस) को भारत देश की सीमा के अन्दर चलनेवाले सभी कम्प्यूटर की जासूसी की मंजूरी दी गयी है। यहाँ कम्प्यूटर एक व्यापक शब्द है जिस के अन्तर्गत स्मार्टफोन, लैपटॉप या टैब्लेट भी आयेंगे। .....तो हो जायें सावधान और गैर कानूनी कार्य न करें।  

गुरुवार, 13 दिसंबर 2018

२०१८ की तरह २०१९ में भी होंगे ३ सूर्य ग्रहण और २ चन्द्र ग्रहण

-शीतांशु कुमार सहाय
कुछ ही दिन शेष हैं नये वर्ष सन् २०१९ ईस्वी के आने में। लोग अपने-अपने तरीके से नये साल का स्वागत करने की तैयारी कर रहे हैं। इस बीच मैं कुछ काम की बात और आप को बता रहा हूँ। जिस तरह वर्ष २०१८ में पाँच ग्रहण- तीन सूर्य ग्रहण और दो चन्द्र ग्रहण पड़े, उसी तरह अगले साल २०१९ में भी पृथ्वी पर पाँच ग्रहण- तीन सूर्य ग्रहण और दो चन्द्र ग्रहण दिखायी देंगे। 
वर्ष २०१९ में तीन सूर्य ग्रहण होंगे और दो चन्द्र ग्रहण। पहला ग्रहण जनवरी में तो पाँचवाँ और अन्तिम ग्रहण दिसम्बर में होगा। अगले साल का पहला ग्रहण ६जनवरी को होगा। यह आंशिक सूर्य ग्रहण के रूप में दिखायी देगा। २०१९ साल के शुरुआती महीने में ही चन्द्र ग्रहण भी होगा। यह पूर्ण (खग्रास) चन्द्र ग्रहण के रूप में २१ जनवरी को दिखायी देगा। 
सन् २०१९ ईस्वी में जनवरी के बाद फरवरी, मार्च, अप्रील, मई और जून- इन पाँच महीनों में कोई ग्रहण नहीं पड़ेगा। फिर २ जुलाई को पूर्ण सूर्य ग्रहण होगा। उस के उपरान्त जुलाई में ही १६ तारीख को आंशिक चन्द्र ग्रहण भी होगा। पुनः अगस्त, सितम्बर, अक्तूबर और नवम्बर में कोई ग्रहण नहीं लगेगा। साल २०१९ का अन्तिम ग्रहण २६ दिसम्बर को पड़ेगा। यह सूर्य ग्रहण होगा। 
वर्ष २०१९ में लगनेवाले पाँचों ग्रहण में से भारत में तीन नहीं दिखायी देंगे। भारत में केवल दो ही ग्रहण दीखेंगे। १६ जुलाई और २६ दिसम्बर को लगनेवाले क्रमशः आंशिक चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण को ही भारतवासी देख पायेंगे।

बुधवार, 12 दिसंबर 2018

नरेन्द्र मोदी व अमित शाह की जोड़ी पर राहुल गाँधी भारी Rahul Gandhi Cumbersome on the Pair of Narendra Modi & Amit Shah

-शीतांशु कुमार सहाय
भारत में लोकसभा आम निर्वाचन 2019 से पहले केन्द्रीय सत्ता का सेमीफाइनल माने जा रहे पाँच राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और मिजोरम के विधानसभा आम निर्वाचन में तीन प्रमुख राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में भाजपा को सत्ता से बेदखल कर काँग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की ‘दमदार राजनीतिक जोड़ी’ पर भारी पड़े हैं। इस से जनता के बीच जो सन्देश गया है, वह काँग्रेस और राहुल गाँधी दोनों की स्वीकार्यता को बढ़ाने में सकारात्मक भूमिका अदा करेगा। 
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री मोदी व भाजपा अध्यक्ष शाह के जी-तोड़ चुनाव प्रचार पर काँग्रेस अध्यक्ष गाँधी की 82 जनसभाओं व 7 रोड शो ने पानी फेर दिया। इन तीन राज्यों के चुनाव परिणाम जहाँ काँग्रेस के लिए संजीवनी का काम करेंगे, वहीं राहुल की खुद की राजनीति में नया अध्याय लिखंेगे। तीन राज्यों से भाजपा को सत्ता से बेदखल करने पर राहुल देश की राजनीति की पिच पर मंझे राजनेता के रूप में स्थापित कर पाने में समर्थ हो पायेंगे। 
पिछले कुछ समय से सोशल साइटों पर राहुल गाँधी को लेकर जो व्यंग्यबाण चलाये जा रहे थे, उन पर अचानक ब्रेक लग गया है। चुनाव नतीजे ऐसे लोग के मुँह बंद कर दिये हैं। विरोधी लोग राहुल की नेतृत्व क्षमता पर भी सवाल उठा रहे थे। 
भाजपाशासित तीन राज्यों में राहुल के नेतृत्व में जीत के बाद उन का कद विपक्ष की राजनीति में बढ़ा है, इस से इंकार नहीं किया जा सकता। देशभर में यह संदेश भी गया है कि लोकसभा आम निर्वाचन 2019 में भी राहुल गाँधी भाजपा अर्थात् मोदी-शाह की जोड़ी को कड़ी चुनौती देने में सक्षम हैं। 
चुनावी समर में काँग्रेस ने इस बार भाजपा को उस के मोदी बनाम राहुल के अस्त्र से ही घेरा। यही कारण रहा कि पूरे अभियान में राहुल का पूरा फोकस मोदी को घेरने पर रहा। राफेल कांड, नोटबंदी, जीएसटी, सीबीआई विवाद, आरबीआई का सरकार से टकराव, रोजगार, किसानों की दयनीय स्थिति व युवाओं को लेकर राहुल के तेवर नरेन्द्र पर लगातार तल्ख रहे। इतना ही नहीं अपनी आक्रामक शैली से राहुल ने तीनों राज्यों में चुनावी एजेंडे सेट किये और मोदी से लेकर भाजपा के ज्यादातर बड़े नेता उन में फँसते चले गये। 
गाँधी युवाओं और किसानों को यह संदेश देने में भी सफल रहे कि मोदी के वायदे खोखले हैं और जुमलेबाजी से लोग का भला नहीं होनेवाला है। उन्होंने झूठे वायदों और नफरत की राजनीति पर मोदी व भाजपा को घेरा। नतीजे गवाह हैं कि राहुल का यह अंदाज मतदाताओं को रास आया। किसानों की कर्जमाफी और उन की फसल के मूल्य पर राहुल की चली गुगली में भाजपा बोल्ड हो गयी। दूसरी तरफ भाजपा नेताओं ने चुनाव प्रचार के दौरान जो भाषण दिये, उन के प्रभाव भी भाजपा पर नकारात्क पड़ा। कोई भाजपा प्रवक्ता अपने नेताओं के भाषण के नकारात्मक पहलुओं को सकारात्मक रूप से समझाने में सफल नहीं रहा।
अप्रत्याशित जीत दर्ज करने के बाद जो राहुल गाँधी का बयान आया, उस में अत्यन्त सधे हुए शब्द थे। काँग्रेस अध्यक्ष राहुल ने ‘काँग्रेसमुक्त भारत’ के भाजपा के नारे के बारे में स्पष्ट कहा कि उन की पार्टी भाजपा मुक्त करने के लिए नहीं; बल्कि भाजपा की विचारधारा के खिलाफ लड़ रही है और हमें उम्मीद है कि हम उस में जीत हासिल करेंगे। उन्होंने कहा कि आज हम जीते हैं और पूरा विपक्ष मिलकर 2019 में भी भाजपा को हरायेगा। 
प्रधानमंत्री मोदी के बारे में उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जिन तीन अहम मुद्दों को लेकर 2014 में सत्ता में आये थे- किसानों की समस्या का समाधान, युवाओं को रोजगार और भ्रष्टाचार पर लगाम- इन तीनों मुद्दों पर मोदी विफल रहे हैं। कहीं-न-कहीं विधानसभा चुनावों में भाजपा की हार का यह भी एक कारण है। जीएसटी, नोटबंदी लोग पर भारी पड़े तो जनता ने अपने वोट के जरिये अपना निर्णय सुना दिया है। नोटबंदी तो एक बड़ा स्कैम था।
छत्तीसगढ़ में पार्टी की दो तिहाई बहुमत के साथ जीत, राजस्थान में स्पष्ट बहुमत मिलने और मध्यप्रदेश में सब से बड़े दल के रूप में जीत दर्ज करने पर काँग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने पार्टी की जीत को किसान, युवाओं और छोटे दुकानदारों की जीत बताया।

राजस्थान, मध्यप्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ व मिजोरम में किस दल को कितनी सीटें मिलीं How many seats did the party get in Rajasthan, Madhya Pradesh, Telangana, Chhattisgarh and Mizoram

-शीतांशु कुमार सहाय

पाँच राज्यों में किस दल ने कितनी सीटों पर जीत दर्ज की, यहाँ जानिये-