सोमवार, 26 दिसंबर 2022

वीर बाल दिवस : धर्म और देश की रक्षा का संकल्प लें Veer Bal Diwas : Take a Pledge to Protect Religion and Country



  शीतांशु कुमार सहाय 

   यह शत प्रतिशत सच है कि जो क़ौम अपने इतिहास को भूल जाता है या भूलने की कोशिश करता है, उसे मिटने में देर नहीं लगती। 

      कल २५ दिसम्बर को सब ने क्रिसमस दिवस और तुलसी पूजन दिवस को याद किया लेकिन आज किसी ने देश और धर्म की रक्षा के लिए अपने बलिदान देनेवाले गुरु गोविन्द सिंह जी के सुपुत्रों को याद नहीं किया। जोरावर सिंह जी व फतेह सिंह जी को आज (२६ दिसम्बर) ही के दिन आततायी मुगलों ने ज़िन्दा ही दीवार में चुनवा दिया था। 

      २६ दिसंबर १७०४ ईस्वी को गुरु गोविन्द सिंह जी के दो पुत्रों जोरावर सिंह (९ वर्ष) और फतेह सिंह (७ वर्ष) को इस्लाम धर्म कबूल न करने पर सरहिन्द के नवाब मिर्जा अस्करी उर्फ वज़ीर खान ने दीवार में ज़िंदा चुनवा दिया था, माता गुजरी को किले की दीवार से गिराकर शहीद कर दिया गया था। उन की इस शहादत के लिए फतेहगढ़ साहिब गुरुद्वारा में शहीदी जोड़ मेले का आयोजन हर वर्ष किया जाता है।

      स्वयं वीर बनें और बच्चों को भी ऐतिहासिक वीरों और वीरांगनाओं से परिचित कराएँ; ताकि वे भी अपने अन्दर वीरता महसूस कर सकें। 

      आप सब 'वीर बाल दिवस' के अवसर पर धर्म और देश की रक्षा का संकल्प लेंगे, ऐसी प्रत्याशा है। 

      वन्दे मातरम्!

गुरुवार, 10 नवंबर 2022

लक्ष्मण रेखा और सोमतिती विद्या के रहस्य Secrets of Lakshman Rekha & Somatitee Vidya

 प्रस्तोता : शीतांशु कुमार सहाय 


    रामायण में एक प्रसङ्ग है कि माता सीता की सुरक्षा के लिए लक्ष्मण ने एक विशेष रेखा खींच दी थी। उन्होंने अपनी भाभी सीता से आग्रह किया था कि वह उस रेखा के अन्दर ही रहें। कोई भी व्यक्ति या कोई सूक्ष्म अथवा स्थूल जीव उस रेखा के अन्दर प्रवेश नहीं कर सकता। अगर वह प्रवेश करने का प्रयास करेगा तो भस्म हो जायेगा। हालाँकि रेखा के अन्दर वाला व्यक्ति सकुशल बाहर आ सकता है लेकिन बाहर से कोई अन्दर नहीं जा सकता।  कालान्तर में यह 'लक्ष्मण रेखा' के नाम से प्रसिद्ध हो गया। लक्ष्मण रेखा आप सभी जानते हैं पर इस का असली नाम सम्भवतः आप को नहीं पता होगा। मैं बताता हूँ कि लक्ष्मण रेखा खींचनेवाली विद्या को 'सोमतिती विद्या' कहा जाता है।

      रावण जब ब्राह्मण के वेश में सीता-हरण के लिए आया तो वह अपने तप-बल से यह जान गया कि अतिदुर्लभ सोमतिती विद्या से खींची गयी अग्नि और विद्युत तरंगों से युक्त अत्यन्त विध्वन्सक इस रेखा को वह पार नहीं कर सकता है तो उस ने छल से माँ सीता को ही रेखा के बाहर बुला लिया और अपहरण करने में सफल रहा।

      सोमतिती विद्या भारत की प्राचीन विद्याओ में से एक है। इस का अन्तिम प्रयोग द्वापर युग में महाभारत युद्ध के दौरान हुआ था। वर्तमान कलियुग में इस दुर्लभ विद्या का ज्ञाता कोई नही है। 

      महर्षि शृंगी ने सोमतिती विद्या के सन्दर्भ में बताया है कि वेदमन्त्र "सोमंब्रहि वृत्तं रत: स्वाहा वेतु सम्भव ब्रहे वाचम प्रवाणम अग्नं ब्रहे रेत: अवस्ति" के माध्यम से इस विद्या का प्रयोग किया जाता है। यह वेदमंत्र सोमना कृतिक यन्त्र का है। इसे पृथ्वी और बृहस्पति के मध्य अंतरिक्ष में स्थापित किया जाता है। कृतिक यंत्र जल, वायु और अग्नि के परमाणुओं को अपने अन्दर सोखता है और विशेष प्रकार से अग्नि और विद्युत के परमाणुओं को वापस बाहर की तरफ धकेलता है।

      ऊपर जिस वेदमन्त्र का उल्लेख किया गया है उसे सिद्ध करने से सोमना कृतिक यंत्र स्वयं में अग्नि और वायु में उपस्थित जल के परमाणु अवशोषित कर लेता है। उन परमाणुओं में आकाशीय विद्युत को शामिल किया जाता है। इस के उपरान्त अग्नि, जल और विद्युत के परमाणुओं को एक पंक्ति में व्यवस्थित किया जाता है। इस प्रकार एक अत्यन्त शक्तिशाली किरण का निर्माण होता है। यन्त्र की सहायता से इन विशेष किरणों द्वारा पृथ्वी पर गोलाकार रेखा खींची जाती है जो सोमतिती रेखा कहलाती है। इस के अन्दर जो भी रहेगा वह सुरक्षित रहेगा लेकिन बाहर से अन्दर अगर कोई बलात् प्रवेश करना चाहे तो उसे अग्नि और विद्युत का ऐसा झटका लगेगा कि वहीं भस्म बनकर उड़ जायेगा।

      एक बार महर्षि भारद्वाज ऋषि-मुनियों के साथ भ्रमण करते हुए वशिष्ठ आश्रम पहुँचे तो उन्होंने महर्षि वशिष्ठ से पूछा-- अयोध्या के राजकुमारों की शिक्षा कहाँ तक पहुँची?

      महर्षि वशिष्ठ ने बताया कि राम आग्नेयास्त्र, वरुणास्त्र और ब्रह्मास्त्र का सन्धान करना सीख लिया है। यह धनुर्वेद में पारंगत हो गया है। महर्षि विश्वामित्र से लक्ष्मण दुर्लभ सोमतिती विद्या सीख रहा है। 

      त्रेतायुग के उस काल में पृथ्वी पर चार गुरुकुलों में सोमतिती विद्या सिखायी जाती थी। ये चार गुरुकुल थे- महर्षि विश्वामित्र का गुरुकुल, महर्षि वशिष्ठ का गुरुकुल, महर्षि भारद्वाज का गुरुकुल और उदालक गोत्र के आचार्य शिकामकेतु का गुरुकुल।

      लक्ष्मण सोमतिती विद्या के इतने प्रसिद्ध जानकर के रूप में विख्यात हुए कि कालान्तर में यह विद्या सोमतिती के बदले लक्ष्मण रेखा कहलाई जाने लगी।

      महर्षि दधीचि, महर्षि शाण्डिल्य भी सोमतिती विद्या को जानते थे। 

      भगवान श्रीकृष्ण ने इस विद्या का अन्तिम बार पृथ्वी पर प्रयोग किया। उन्होंने महाभारत धर्मयुद्ध में कुरुक्षेत्र के युद्ध भूमि के चारों तरफ सोमतिती रेखा खींच दी थी; ताकि युद्ध में प्रयुक्त भयंकर शस्त्रास्त्रों का प्रतिकूल प्रभाव युद्धक्षेत्र से बाहर के प्राणियों पर न पड़े।

      सोमतिती की तरह कई दुर्लभ विद्याओं के जानकार प्राचीन भारत में रहते थे। भारतीय ग्रन्थों में आज भी कई कल्याणकारी विद्याओं के रहस्य छिपे हैं।  

बुधवार, 19 अक्तूबर 2022

रामायण की शूटिंग में साक्षात् काकभुशुण्डी आये और रामानन्द सागर के निर्देशन में शूटिंग की Kakbhushundi Came In The Shooting Of Ramayana & Shot Under The Direction Of Ramanand Sagar



-प्रस्तोता : शीतांशु कुमार सहाय      

     दूरदर्शन के अतिप्रसिद्ध धारावाहिक 'रामायण' की शूटिंग के समय निर्देशक रामानन्द सागर के लिए सब से मुश्किल कार्य था, काकभुशुण्डी और शिशु राम के दृश्य फिल्माना। दोनों ही निर्देशक के आदेश का तो पालन करने से रहे। इसी कारण रामानन्द सागर परेशान थे।

     इस अत्यन्त कठिन और असम्भव लग रहे कार्य को सागर ने अपनी भक्ति और आध्यात्मिक शक्ति की बदौलत पूरा किया। यह कार्य किस प्रकार सम्पूर्ण हुआ, आगे पढ़िये.....

     शूटिंग-यूनिट के सौ से अधिक सदस्य और स्टूडियो के लोग कौए को पकड़ने में घंटों लगे रहे। पूरे दिन की कड़ी मेहनत के बाद वे चार कौओं को जाल में फँसाने में सफल हुए। चारों को चेन से बाँध दिया गया; ताकि वे अगले दिन की शूट से पहले रात में उड़ न जाएँ। सुबह तक केवल एक ही बचा था और वह भी अल्युमीनियम की चेन को अपनी पैनी चोंच से काटकर उड़ जाने के लिए संघर्ष कर रहा था।

     अगले दिन शॉट तैयार था। कमरे के बीच शिशु श्रीराम और उन के पास ही चेन से बँधा कौआ था। लाइट्स ऑन हो गयी थीं। रामानंद सागर शांति से प्रार्थना कर रहे थे, जबकि कौआ छूटने के लिए हो-हल्ला कर रहा था। वे उस भयभीत कौए के पास गए और काकभुशुण्डी के समक्ष हाथ जोड़ दिए। फिर आत्मा से याचना की “काकभुशुण्डीजी, रविवार को इस एपिसोड का प्रसारण होना है। मैं आप की शरण में आया हूँ, कृपया मेरी सहायता कीजिए।" 

     निस्तब्ध सन्नाटा छा गया, चंचल कौआ एकदम शांत हो गया ऐसा प्रतीत होता था, जैसे कि काकभुशुण्डी स्वयं पृथ्वी पर उस बंधक कौए के शरीर में आ गए हों। रामानंद सागर ने जोर से कहा, 'कैमरा' 'रोलिंग', कौए की चेन खोल दी गयी और १० मिनट तक कैमरा चालू रहा। रामानंद सागर निर्देश देते रहे, “काकभुशुंडीजी! शिशु राम के पास जाओ और रोटी छीन लो।” कौए ने निर्देशों का अक्षरश: पालन किया, काकभुशुण्डीजी ने रोटी छीनी और रोते हुए शिशु को वापस कर दी, उसे संशय से देखा, उस ने प्रत्येक प्रतिक्रिया दर्शायी और दस मिनट के चित्रांकन के पश्चात् उड़ गया। मैं इस दैविक घटना का साक्षी था।

     निस्संदेह वे काकभुशुण्डी (कागराज) ही थे, जो रामानंद सागर का मिशन पूरा करने के लिए पृथ्वी पर उस कौए के शरीर में आये थे। 

     जय श्रीराम! जय काकभुशुण्डी!

     साभार : 'रामानंद सागर के जीवन की अकथ कथाएँ' (पुस्तक), पृष्ठ संख्या २०० से।

बुधवार, 12 अक्तूबर 2022

मनुष्य की कीमत Man's Value



-शीतांशु कुमार सहाय 

     लोहे की दुकान में अपने पिता के साथ काम कर रहे एक बालक ने अचानक ही अपने पिता से  पूछा, “पिताजी इस दुनिया में मनुष्य की क्या कीमत होती है?”

     पिताजी एक छोटे से बच्चे से ऐसा गंभीर सवाल सुन कर हैरान रह गये। फिर वे बोले, “बेटे एक मनुष्य की कीमत आँकना बहुत मुश्किल है, वह तो अनमोल है।”

     "क्या सभी उतनी ही कीमती और महत्त्वपूर्ण हैं?" बालक ने फिर प्रश्न किया। 

     पिताजी ने कहा, "हाँ बेटा।"

     बालक कुछ समझा नहीं। उस ने फिर प्रश्न किया, "तो फिर इस दुनिया में कोई ग़रीब तो कोई अमीर क्यों है? किसी की कम इज्ज़त तो किसी की ज़्यादा क्यों होती है?"

     प्रश्न सुनकर पिताजी कुछ देर तक शान्त रहे और फिर बालक से स्टोर रूम में पड़ा एक लोहे का रॉड लाने को कहा।

     रॉड लाते ही पिताजी ने पूछा, "इस की क्या कीमत होगी?"

     बालक ने २०० रुपये कीमत बतायी। 

     पिताजी ने समझाते हुए कहा, "अगर मैं इस के बहुत-से छोटे-छोटे कील बना दूँ तो इस की क्या कीमत हो जायेगी?"

     बालक कुछ देर सोचकर बोला, "तब तो ये और महंगा बिकेगा लगभग 1000 रुपये में।

     पिताजी ने पुनः प्रश्नात्मक अन्दाज़ में बताया, "अगर मैं इस लोहे से घड़ी के बहुत सारे स्प्रिंग बना दूँ तो?"

     बालक कुछ देर गणना करता रहा और फिर एकदम से उत्साहित होकर बोला, ”तब तो इस की कीमत बहुत अधिक हो जायेगी।”

     फिर पिताजी उसे मर्म समझाया, “ठीक इसी तरह मनुष्य की कीमत इस में नही है कि अभी वह क्या है; बल्कि इस में है कि वह अपने आप को क्या बना सकता है।” बालक अपने पिता की बात समझ चुका था।

     ...तो अब आप भी समझिये.....

     अक्सर हम अपनी सही कीमत आँकने में ग़लती कर देते हैं। हम अपनी वर्तमान स्थिति को देखकर अपने आप को निरुपयोगी समझने लगते हैं लेकिन हम में हमेशा अथाह शक्ति होती है। हमारा जीवन हमेशा सम्भावनाओं से भरा होता है। हमारे जीवन में कई बार स्थितियाँ अच्छी नहीं होती हैं पर इस से हमारी कीमत कम नहीं होती है। मनुष्य के रूप में हमारा जन्म इस दुनिया में हुआ है, इस का मतलब है कि हम बहुत विशेष और महत्त्वपूर्ण हैं। हमें हमेशा अपने आप में सुधार करते रहना चाहिये और अपनी सही कीमत प्राप्त करने की दिशा में बढ़ते रहना चाहिये।


शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2022

अद्भुत शक्तिशाली थे जामवन्त Jamwant was Amazingly Powerful

प्रस्तोता : शीतांशु कुमार सहाय 

     जामवन्त सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर युग में भी रहे लेकिन वे सर्वाधिक चर्चित त्रेतायुग में रहे जब भगवान श्रीराम की सेवा का पुण्य कार्य उन्होंने किया। वे अतुलनीय बलशाली थे। एक शाप के कारण वे बूढ़े दीखने लगे और उन के बल में कमी आयी। उस शाप के बारे में भी आप इसी आलेख में जानेंगे। पहले उन के बल के सन्दर्भ में थोड़ी चर्चा कर लेते हैं, जैसा ग्रन्थों में उल्लेख है। 

     वास्तव में जामवन्त रामायण के एक ऐसे पात्र हैं जिन के विषय में बहुत विस्तार से नहीं लिखा गया है। हालाँकि रामायण में ही उन के विषय में केवल एक-दो बातें ऐसी बतायी गयी हैं जिन से उन के बल के बारे में अनुमान लगा सकते हैं।

      पहली बात तो जामवन्त सतयुग के व्यक्ति थे। अब सतयुग में निःसन्देह योद्धा अन्य युगों की अपेक्षा बहुत अधिक शक्तिशाली होते थे। उन की उत्पत्ति सीधा ब्रह्माजी से बतायी गयी है। अब परमपिता ब्रह्मा से जो जन्मा हो उस की शक्ति के बारे में तो केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है।

      रामचरितमानस में उन के पराक्रम के बारे में दो घटना विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उन दोनों स्थानों पर जामवन्त का युद्ध रावण और मेघनाद के साथ हुआ था। इन दोनों को जामवन्त ने अपने पाद प्रहार से मूर्छित कर दिया था। मेघनाद की शक्ति तो उन्होंने अपने हाथों से ही पकड़ कर पलट दी थी। अत्यन्त वृद्धावस्था में भी जो रावण और मेघनाद जैसे योद्धाओं को अपने घात से मूर्छित कर दे, जरा सोचिये युवावस्था में उस का बल क्या होगा!

      जब द्वापर युग आया तो जामवन्त और अधिक बूढ़े हो गये। उस समय उन का युद्ध श्रीकृष्ण से हुआ था। जमवन्त को परास्त करने के लिए श्रीकृष्ण को उन से एक-दो नहीं; बल्कि २८ दिनों तक युद्ध करना पड़ा। स्वयं परमेश्वर कृष्ण को जिसे परास्त करने में अट्ठाइस दिन लग गये हों, वो भी वृद्धावस्था में, जवानी में उन के बल के बारे में हम केवल अनुमान ही लगा सकते हैं।

      जब सीता माता को खोजने के लिए समुद्र लाँघने की बात चल रही थी, उस समय जामवन्त कहते हैं-- "मैं तो अब बहुत बूढ़ा हो गया हूँ, फिर भी इस समुद्र में मैं नब्बे योजन तक जा सकता हूँ।" हनुमान जी अपनी युवावस्था में १०० योजन छलाँग गये, जामवन्त की आयु उस समय छः मन्वन्तर की बतायी गयी है। एक मन्वन्तर तीस करोड़ सड़सठ लाख बीस हजार वर्षों का होता है और इस से छः गुना अधिक उम्र का व्यक्ति समुद्र में ९० योजन तक जाने की क्षमता रखता था। इसी से उन के बल का पता चलता है।

      इस वार्तालाप के दौरान उन्होंने युवावस्था में अपने बल के बारे में दो बातें बतायीं जिन्हें ध्यान से सुनना आवश्यक है। इस से जामवन्त की वास्तविक शक्ति का पता चलेगा।

      पहली घटना तब की है जब समुद्र मन्थन चल रहा था जिसे देवता और दैत्य मिलकर बड़ी मुश्किल से कर पा रहे थे। उस समय जामवन्त ने अपनी जवानी के जोश में एक बार अकेले ही सम्पूर्ण मन्दराचल पर्वत को घुमा दिया था। मन्दराचल को अकेले घुमाने के लिए कितनी शक्ति चाहिए होगी, क्या आप अनुमान भी लगा सकते हैं? 

      दूसरी घटना भगवान विष्णु के वामन अवतार की है। जब श्रीहरि ने विराट स्वरुप लिया और एक पैर से स्वर्ग को माप लिया। फिर जब उन्होंने अपना पैर पृथ्वी को मापने के लिए उठाया, उस दौरान जामवंत ने केवल सात पल में पृथ्वी की सात परिक्रमा कर ली थी। जरा सोचिये, महावीर हनुमान एक ही रात में लंका से सैकड़ों योजन दूर से पर्वत शिखर उखाड़ कर ले आये लेकिन जामवन्त ने केवल सात पल में पृथ्वी की सात परिक्रमा कर ली थी। एक पल लगभग चौबीस सेकेण्ड का होता है। क्या आप उन की गति का अनुमान लगा सकते हैं?

      महाबलशाली जामवन्त के बल का ऐसा वर्णन सुनकर जब अंगद उन से पूछते हैं कि उन का बल क्षीण कैसे हुआ? तब वे बताते हैं कि जब वे पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे थे तो अन्तिम परिक्रमा के समय उन के पैर के अँगूठे का नाख़ून महामेरु पर्वत से छू गया, जिस से उस का शिखर खण्डित हो गया। इसे अपना अपमान मानते हुए मेरु ने जामवन्त को ये शाप दे दिया कि वह सदा के लिए बूढ़े हो जायेंगे और उन का बल क्षीण हो जायेगा।

      प्रत्याशा है कि आप को जामवन्त की शक्ति का कुछ अनुमान लग गया होगा। पर, इतने शक्तिशाली होने के बाद भी उन में लेश मात्र भी घमण्ड नहीं था। 

      जय श्रीराम!

बुधवार, 5 अक्तूबर 2022

समयसूचक AM और PM का उद्गम स्थल भारत Origin of Timeline AM & PM

-शीतांशु कुमार सहाय

   भारतीय ज्ञान की तुलना किसी से नहीं। अतुलनीय भारतीय ज्ञान-विज्ञान और सिद्धांत को कई विदेशियों ने अपने नाम से प्रचारित किया। विदेशियों के इन झूठे कारनामों को आज लोग सच मान रहे हैं। अफसोस की बात है कि भारत में भी वही झूठ प्रचारित है। यहाँ तक कि भारतीय पाठ्यपुस्तकों में भी वही झूठ पढ़ाया जा रहा है। पर, अब धीरे-धीरे सच्चाई सामने आने लगी है। ऐसे ही एक सच के बारे में इस आलेख में जानिये।

      भारतीय पुस्तकों में यह उल्लेख मिलता है कि समय सूचक शब्द AM और PM विदेशियों की देन है, अँग्रेज वैज्ञानिकों की देन है। साथ ही इस का Full form भी ग़लत बताया गया-

      AM : एंटी मेरिडियन (Ante Meridian)

      PM : पोस्ट मेरिडियन (Post Meridian)

      एंटी मतलब पहले, लेकिन किस आकाशीय पिण्ड के? पोस्ट मतलब बाद में, लेकिन किस के? यह कभी स्पष्ट नहीं किया गया; क्योंकि ये भारतीय ग्रन्थों से चुराये गये शब्दों के लघुतम रूप हैं।

    भारतीय ऋषियों-मुनियों के पास असीम ज्ञान-भण्डार था। उन्होंने पृथ्वी पर समय की गणना सूर्य और चन्द्र की गति के आधार पर की। समय की उसी भारतीय गणना प्रणाली को ही आज भी पूरा विश्व अनुसरण कर रहा है। समय गणना में दोपहर से पहले के समय को पूर्वाह्न और दोपहर के बाद के समय को अपराह्न कहा गया है। पूर्वाह्न में सूर्य (मार्तण्ड) पूर्व में उदित होकर आकाश में ऊपर की ओर चढ़ता (आरोहण) हुआ दिखायी देता है। इस के विपरीत अपराह्न में सूर्य पश्चिम की ओर ढलता (पतन) हुआ अर्थात् नीचे आता हुआ दीखता है। 

      अब भारतीय ऋषियों के ज्ञान को देखिये कि उन के संस्कृत ज्ञान पर किस प्रकार हल्की फेर-बदल कर अपने नाम की मुहर चिपका दी--

AM = आरोहणम् मार्तण्डस्य 

(Aarohanam Martandasya)

PM = पतनम् मार्तण्डस्य 

(Patanam Martandasya)

     पूर्वाह्न में सूर्य का चढ़ना अर्थात् संस्कृत में होता है आरोहणं मार्तण्डस्य Arohanam Martandasya और अपराह्न में सूर्य का ढलना मतलब संस्कृत में पतनं मार्तण्डस्य Patanam Martandasya होता है।


रविवार, 25 सितंबर 2022

वृन्दावन के राधा रमन मन्दिर में श्रीकृष्ण की भक्ति में ४६ वर्षों से साधनारत भक्तिन In The Radha Raman Temple of Vrindavan, The Devotee Engaged in Devotion to Shri Krishna For 46 Years

प्रस्तोता : शीतांशु कुमार सहाय 

        चित्र में जो बुजुर्ग महिला बैठी हुई है। इन का दर्शन करना भी बड़े सौभाग्य की बात है क्योंकि यह पिछले ४६ सालों से राधा रमन जी के प्रांगण में ही बैठी रहती हैं। कभी राधा रमन जी की गलियों और राधा रमन जी का मंदिर छोड़कर इधर-उधर वृंदावन में कहीं नहीं गयीं। 

     इन बुजुर्ग महिला की उमर ८१ साल हो चुकी है। जब यह ३५ साल की थीं। तब यह  जगन्नाथ पुरी से चलकर अकेली वृंदावन आयी थीं। वृंदावन पहुँचकर इन्होंने किसी बृजवासी से वृंदावन का रास्ता पूछा। उस ब्रजवासी ने इन को राधा रमन जी का मंदिर दिखा दिया। 

      आज से ४६ साल पहले कल्पना कीजिए वृंदावन कैसा होगा? वह अकेली जवान औरत सब कुछ छोड़ कर केवल भगवान के भरोसे वृंदावन आ गयीं। किसी बृजवासी ने जब इन को राधा रमन जी का मंदिर दिखाकर यह कह दिया कि यही वृंदावन है। तब से लेकर आज तक इन को ४६ वर्ष हो गये, यह राधा रमन जी का मंदिर छोड़कर कहीं नहीं गयीं। यह मंदिर के प्रांगण में बैठकर ४६ साल से श्रीकृष्ण की साधना में रत हैं और भजन गाती है। मंगला आरती के दर्शन करती हैं। कभी-कभी गोपी गीत गाती हैं। 

      जब इन को कोई भक्त यह कहता है कि माताजी वृंदावन घूम आओ, तो वह कहती है, मैं कैसे जाऊँ? लोग बोलते हैं। जब मुझे किसी बृजवासी ने यह बोल दिया कि यही वृंदावन है, तो मेरे बिहारीजी तो मुझे यहीं मिलेंगे। मेरे लिए तो सारा वृंदावन इसी राधा रमन मंदिर में ही है। 

      देखिए प्रेम और समर्पण की कैसी पराकाष्ठा है। आज के दौर में संत हो या आम जन- सब धन, रिश्ते- नातों के पीछे भाग रहे हैं तो आज भी संसार में ऐसे दुर्लभ भक्त हैं जो केवल और केवल भगवान के पीछे भागते हैं। 

     वह देखने में बहुत निर्धन हैं पर उन का परम धन इनके भगवान "राधा रमन" जी हैं। 

      हम संसार के लोग थोड़ी-सी भक्ति करते हैं और अपने आप को भक्त समझ बैठते हैं। कभी थोड़ी भी परेशानी आयी नहीं कि भगवान को कोसने लगते हैं। भगवान को छोड़कर किसी अन्य देवी-देवता की पूजा करने लग जाते हैं। हमारे अंदर समर्पण तो है ही नहीं। आज संसार के अधिकतर लोग अपनी परेशानियों से परेशान होकर कभी एक बाबा से दूसरे बाबा पर दूसरे बाबा से तीसरे बाबा पर भाग रहे हैं। और-तो-और हमारा न अपने गुरु पर विश्वास है, न किसी एक देवता को अपना इष्ट मानते हैं।  अधिकतर लोग भगवान को अगर प्यार भी करते हैं तो किसी-न-किसी भौतिक आवश्यकता के लिए। पर, इन दुर्लभ संत योगिनी को देखिये.....वह सब कुछ त्याग कर केवल भगवान के भरोसे ४६ साल से राधा रमन जी के प्रांगण में बैठी हैं, उन की साधना में लीन हैं। 

      भगवान श्रीकृष्ण की इस महान भक्तिन के श्रीचरणों में मेरा कोटि-कोटि प्रणाण!

      जय श्री राधे कृष्ण!

गुरुवार, 8 सितंबर 2022

पितृपक्ष में इन वस्तुओं को न खाएँ अन्यथा पितर हो जायेंगे रुष्ट Do Not Eat These Things During Pitru Paksha Otherwise The Ancestors Will Get Angry

 


-शीतांशु कुमार सहाय 

     सनातन धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्त्व है। आश्विन महीने में कृष्ण पक्ष प्रथमा अर्थात् प्रतिपदा से आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तक की अवधि को पितृपक्ष कहा जाता है। माँ, पिता या घर के अन्य सदस्यों की जिस तिथि को देहान्त होता है, प्रथमा से उस तिथि तक उन्हें पितर रूप मानकर जल तर्पण करने का विधान है। 

     पितृपक्ष में पितरों को तर्पण, पिण्डदान और श्राद्ध करने से उन की आत्मा को शान्ति मिलती है। बदले में पितर प्रसन्न होकर अपने वंशजों को सुख-समृद्धि और प्रगति का आशीर्वाद देते हैं।

क्या खाएँ, क्या न खाएँ...

     शास्त्र विधि के अनुसार, पितृपक्ष में चना और चने से बने पदार्थ जैसे- चने की दाल, बेसन और चने से बने सत्तू नहीं खाना चाहिए। पितृ पक्ष अर्थात् श्राद्ध पक्ष में चना वर्जित है। इस दौरान चने का उपयोग अशुभ माना जाता है। अरहर, मूँग और उड़द का उपयोग किया जा सकता है। 

     पितृ पक्ष में श्राद्ध के दौरान कच्चे अनाज का सेवन नहीं करना चाहिए। पितृ पक्ष में मसूर की दाल का सेवन नहीं करना चाहिए। साथ ही इस अवधि में दाल, चावल, गेहूँ जैसे अनाज को कच्चा सेवन करना वर्जित है। हाँ, इन्हें उबालकर खाया जा सकता है। पर, मसूर की दाल को किसी भी रूप में श्राद्ध के दौरान प्रयोग न करें। 

     पितृ पक्ष में लहसुन और प्याज का सेवन नहीं करना चाहिए। लहसुन और प्याज को तामसिक भोजन की श्रेणी में रखा गया है। पितृ पक्ष में लहसुन या प्याज के सेवन से पितृ रुष्ट होते हैं और घर की प्रगति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

     पितृपक्ष में कुछ सब्जियों के सेवन से बचना चाहिए। इस अवधि में आलू, मूली, अरबी (अरूई व कन्दा) और कन्द वाली सब्जियों यानी जो भूमि के अन्दर उपजते हैं) का सेवन कदापि नहीं करना चाहिए। इन सब्जियों को श्राद्ध या पितृपक्ष में न स्वयं सेवन करें और न ब्राह्मणों या पुरोहितों को भोजन में अर्पित करें। 


बुधवार, 7 सितंबर 2022

सूने घर ताक रहे बच्चों की राह...अकेलेपन में बुजुर्गियत The Path of the Children Staring at the Deserted House...Old Age in Loneliness

 -शीतांशु कुमार सहाय 


     आप से मेरा निवेदन है कि कल सुबह उठकर एक बार इस का जायज़ा लीजियेगा कि कितने घरों में अगली पीढ़ी के बच्चे रह रहे हैं? कितने बाहर निकलकर दिल्ली, नोएडा, गुड़गाँव, पुणे, बेंगलुरु, चंडीगढ़, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद, बड़ौदा जैसे बड़े शहरों में और कुछ तो विदेश में जाकर बस गये हैं?
     कल आप एक बार उन गली-मोहल्लों से पैदल निकलियेगा जहाँ से आप बचपन में विद्यालय जाते समय दोस्तों के संग मस्ती करते हुए निकलते थे।
      जरा तिरछी नज़रों से झाँकियेगा हर घर की ओर, आप को एक चुप्पी...अजीब सन्नाटा मिलेगा; न कोई आवाज़, न बच्चों का शोर, बस किसी किसी घर के बाहर या खिड़की में आते-जाते लोग को ताकते बूढ़े ज़रूर मिल जायेंगे। आखिर इन सूने होते घरों और खाली होते मुहल्लों के कारण क्या  हैं?
     भौतिकवादी युग में हर व्यक्ति चाहता है कि उस का एक बच्चा और अधिक-से-अधिक दो बच्चे हों और बेहतर-से-बेहतर पढ़ें-लिखें। उन को लगता है या फिर दूसरे लोग उन को ऐसा महसूस कराने लगते हैं कि छोटे शहर या कस्बे में पढ़ने से उन के बच्चे का कॅरियर खराब हो जायेगा या फिर बच्चा बिगड़ जायेगा। बस, यहीं से बच्चे निकल जाते हैं या माँ-बाप द्वारा भेज दिये जाते हैं देश-विदेश के बड़े शहरों के छात्रावासों में।
     भले ही बड़े शहरों और उस छोटे शहर के विद्यालय में पाठ्यक्रम और किताबें समान हों मगर मानसिक दबाव आ जाता है...बड़े शहर में पढ़ने भेजने का!
     विचार कीजियेगा तो पता चलेगा कि बाहर भेजने पर भी मुश्किल से एक-दो प्रतिशत बच्चे ही IIT, PMT या CLAT वगैरह में निकाल पाते हैं! फिर वही माँ-बाप बाकी बच्चों का 'पेमेण्ट सीट' पर इंजीनियरिंग, मेडिकल या फिर बिज़नेस मैनेजमेंट में दाखिला कराते हैं। चार-पाँच साल बाहर पढ़ते-पढ़ते बच्चे बड़े शहरों के माहौल में रच बस जाते हैं। फिर वहीं नौकरी ढूंढ लेते हैं। सहपाठियों से शादी भी कर लेते हैं। आप को तो शादी के लिए हाँ करना ही है, अपनी इज्ज़त बचानी है तो, अन्यथा शादी वह करेंगे ही अपने इच्छित साथी से।
      सच तो यह है कि ऐसे बच्चे केवल त्योहारों पर घर आते हैं माँ-बाप के पास सिर्फ रस्म अदायगी हेतु। पर्व-त्योहारों की छुट्टी में घर आने पर आस-पड़ोस के कुछ 'छुट चुके' मित्रों पर बड़े शहर या विदेश (जहाँ वह फिलहाल रह रहा है) की 'भव्यता' का किस्सा गाँठकर फिर उसी शहरी भीड़ का हिस्सा बनने चल पड़ता है। आप ने अनुभव किया होगा, यही होता है नऽ।
     इधर, घर पर वीरानगी के साथ रहने को अभिशप्त माँ-बाप सभी को अपने बच्चों के बारे में गर्व से बताते हैं। किसी कम्पनी में नौकरी लगने पर दो-तीन साल तक तो पड़ोसियों को बेटा या बेटी के पैकेज के बारे में बताते हैं। एक साल, दो साल, कुछ साल बीत गये। माँ-बाप बूढ़े होते जा रहे हैं। अब वे अकेले नहीं रह सकते। सहारे की सख्त आवश्यकता आ पड़ी है लेकिन बच्चों ने ॠण लेकर बड़े शहरों में या विदेश में फ्लैट ले लिये हैं। नया घर, नये सपने, नया परिवार...अब पुराने घर में बुढ़ाते माँ-बाप की सेवा का 'जोखिम' उठाने कौन आता है! अब अपना फ्लैट हो ही गया तो त्योहारों पर भी घर जाना बन्द।
     अब तो कोई ज़रूरी शादी या किसी पारिवारिक समारोह में ही आते-जाते हैं ऐसे 'होनहार' बच्चे। अब शादी या अन्य पारिवारिक समारोह तो बैंक्वेट हाॅल में होते हैं तो मुहल्ले में और घर जाने की भी ज़्यादा ज़रूरत नहीं पड़ती है। होटल में ही रह लेते हैं। हाँ, एक बात और है कि हाॅल वाले शादी-छट्ठी के समारोह में अगर कोई मुहल्लेवाला पूछ भी ले कि भाई अब कम आते-जाते हो तो छोटे शहर, छोटे माहौल और बच्चों की पढ़ाई का उलाहना देकर बोल देते हैं कि अब यहाँ रखा ही क्या है? वाह!
     बेटे-बहू साथ-साथ फ्लैट में बड़े शहर में रहने लगे हैं। अब फ्लैट में तो इतनी जगह होती नहीं कि बूढ़े खाँसते बीमार माँ-बाप को साथ में रखा जाये। बेचारे पड़े रहते हैं अपने बनाये या पैतृक मकानों में।
     कोई बच्चा 'बागवान' फिल्म की तरह माँ-बाप को आधा-आधा रखने को भी तैयार नहीं। 
     अब साहब, घर खाली-खाली, मकान खाली-खाली और धीरे-धीरे मुहल्ला खाली हो रहा है। अब ऐसे में छोटे शहरों में कुकुरमुत्तों की तरह उग आये "प्रॉपर्टी डीलरों" की गिद्ध जैसी निगाह इन खाली होते मकानों पर पड़ती है। वो इन बच्चों को घूमा-फिराकर उन के मकान के रेट समझाने शुरू करते हैं। उन को गणित समझाते हैं कि कैसे घर बेचकर शहर में खरीदे फ्लैट का ऋण खत्म किया जा सकता है। यही नहीं, बचे पैसे से एक प्लाॅट भी लिया जा सकता है। साथ ही ये किसी बड़े निवेशक को इन खाली होते मकानों में मार्केट और गोदामों का सुनहरा भविष्य भी दिखाने लगते हैं। ये ज़मीन के दलाल बाबूजी और माताजी को भी बेटे-बहू के साथ बड़े शहर में रहकर आराम से मज़ा लेने के सपने दिखाकर मकान बेचने को तैयार कर लेते हैं।
      हर दूसरा घर, हर तीसरा परिवार सभी के बच्चे बाहर निकल गये हैं। बड़े शहर में मकान ले लिये हैं, बच्चे पढ़ रहे हैं, अब वो वापस नहीं आयेंगे। छोटे शहर में रखा ही क्या है! इंग्लिश मीडियम स्कूल नहीं है, हॉबी क्लासेज नहीं है, IIT/PMT की कोचिंग नहीं है, मॉल नहीं है, माहौल नहीं है, नाइट क्लब नहीं है...कुछ नहीं है भाई, आखिर इन के बिना जीवन कैसे चलेगा? 
     भाईसाहब! ये खाली होते मकान, ये सूने होते मुहल्ले, इन्हें सिर्फ प्राॅपर्टी की नज़र से मत देखिये, बल्कि जीवन की खोती हुई जीवन्तता की नज़र से देखिये। आप पड़ोसीविहीन हो रहे हैं। आप वीरान हो रहे हैं।
     आज गाँव सूने हो चुके हैं, शहर कराह रहे हैं।
सूने घर आज भी राह देखते हैं,
वो बंद दरवाजे बुलाते हैं
पर कोई नहीं आता!
     घर छोड़कर बड़े शहरों की भीड़ में गुम होते युवाओं से मैं पूछता हूँ कि कि क्या आप का बुढ़ापा सुगमता व्यतीत होगा या जैसा आप ने किया, वैसा ही आप की सन्तान भी करेगी। एक बार विचार अवश्य कीजियेगा और मन करे तो नीचे के कमेण्ट बाॅक्स में अपने उद्गार लिखियेगा। 

रविवार, 4 सितंबर 2022

भगवान गणेश के १०८ नाम Lord Ganesh's 108 Names

 


प्रस्तोता : शीतांशु कुमार सहाय 

     किसी भी यज्ञ या पूजन कार्यक्रम में सर्वप्रथम भगवान गणेश की पूजा की जाती है। विघ्नों का नाश करनेवाले प्रथम पूज्य गणेश बुद्धि के अधिष्ठाता के रूप में पूज्य हैं। उन के १०८ नामों को जपने या ध्यानपूर्वक सुनने से शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ मिलते हैं। 

१) बालगणपति – Baalganapati

२) भालचन्द्र – Bhalchandra

३) बुद्धिनाथ – Buddhinath

४) धूम्रवर्ण – Dhumravarna

५) एकाक्षर – Ekakshar

६) एकदंत – Ekdant

७) गजकर्ण – Gajkarn

८) गजानन – Gajaanan

९) गजनान – Gajnaan

१०) गजवक्र – Gajvakra

११) गजवक्त्र – Gajvaktra

१२) गणाध्यक्ष – Ganaadhyaksha

१३) गणपति – Ganapati

१४) गौरीसुत – Gaurisut

१५) लंबकर्ण – Lambakar

१६) लंबोदर – Lambodar

१७) महाबल – Mahaabal

१८) महागणपति – Mahaaganapati

१९) महेश्वर – Maheshwar

२०) मंगलमूर्ति – Mangalmurti

२१) मूषकवाहन – Mushakvaahan

२२) निदीश्वरम – Nidishwaram

२३) प्रथमेश्वर – Prathameshwar

२४) शूपकर्ण – Shoopkarna

२५) शुभम – Shubham

२६) सिद्धिदाता – Siddhidata

२७) सिद्धिविनायक – Siddhivinaayak

२८) सुरेश्वरम – Sureshvaram

२९) वक्रतुंड – Vakratund

३०) अखूरथ – Akhurath

३१) अलंपत – Alampat

३२) अमित – Amit

३३) अनंतचिदरुपम – Anantchidrupam

३४) अवनीश – Avanish

३५) अविघ्न – Avighn

३६) भीम – Bheem

३७) भूपति – Bhupati

३८) भुवनपति – Bhuvanpati

३९) बुद्धिप्रिय – Buddhipriya

४०) बुद्धिविधाता – Buddhividhata

४१) चतुर्भुज – Chaturbhuj

४२) देवदेव – Devdev

४३) देवांतकनाशकारी – Devantaknaashkari

४४) देवव्रत – Devavrat

४५) देवेन्द्राशिक – Devendrashik

४६) धार्मिक – Dharmik

४७) दूर्जा – Doorja

४८) द्वैमातुर – Dwemaatur

४९) एकदंष्ट्र – Ekdanshtra

५०) ईशानपुत्र – Ishaanputra

५१) गदाधर – Gadaadhar

५२) गणाध्यक्षिण – Ganaadhyakshina

५३) गुणिन – Gunin

५४) हरिद्र – Haridra

५५) हेरंब – Heramb

५६) कपिल – Kapil

५७) कवीश – Kaveesh

५८) कीर्ति – Kirti

५९) कृपाकर – Kripakar

६०) कृष्णपिंगाक्ष – Krishnapingaksh

६१) क्षेमंकरी – Kshemankari

६२) क्षिप्रा – Kshipra

६३) मनोमय – Manomaya

६४) मृत्युंजय – Mrityunjay

६५) मूढ़ाकरम – Mudhakaram

६६) मुक्तिदायी – Muktidaayi

६७) नादप्रतिष्ठित – Naadpratishthit

६८) नमस्तेतु – Namastetu

६९) नन्दन – Nandan

७०) पाषिण – Pashin

७१) पीतांबर – Pitaamber

७२) प्रमोद –Pramod

७३) पुरुष – Purush

७४) रक्त – Rakta

७५) रुद्रप्रिय – Rudrapriya

७६) सर्वदेवात्मन – Sarvadevatmana

७७) सर्वसिद्धांत – Sarvasiddhanta

७८) सर्वात्मन – Sarvaatmana

७९) शांभवी – Shambhavi

८०) शशिवर्णम – Shashivarnam

८१) शुभगुणकानन – Shubhagunakaa     hnan

८२) श्वेता – Shweta

८३) सिद्धिप्रिय – Siddhipriya

८४) स्कंदपूर्वज – Skandapurvaj

८५) सुमुख – Sumukha

८६) स्वरुप – Swarup

८७) तरुण – Tarun

८८) उद्दण्ड – Uddanda

८९) उमापुत्र – Umaputra

९०) वरगणपति – Varganapati

९१) वरप्रद – Varprada

९२) वरदविनायक – Varadvinaayak

९३) वीरगणपति – Veerganapati

९४) विद्यावारिधि – Vidyavaaridhi

९५) विघ्नहर – Vighnahar

९६) विघ्नहर्ता – Vighnahartta

९७) विघ्नविनाशन – Vighnavinashan

९८) विघ्नराज – Vighnaraaj

९९) विघ्नराजेन्द्र – Vighnaraajendra

१००) विघ्नविनाशाय – Vighnavinashay

१०१) विघ्नेश्वर – Vighneshwar

१०२) विकट – Vikat

१०३) विनायक – Vinayak

१०४) विश्वमुख – Vshvamukh

१०५) यज्ञकाय – Yagyakaay

१०६) यशस्कर – Yashaskar

१०७) यशस्विन – Yashaswin

१०८) योगाधिप – Yogadhip

     भगवान गणेश की कृपा आप पर बनी रहे!

सोमवार, 15 अगस्त 2022

आज़ादी का अमृत महोत्सव : ७६वें स्वाधीनता दिवस पर लालकिले की प्राचीर से भारत से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भाषण Azadi Ka Amrit Mahotsav : Prime Minister Narendra Modi's Speech From The Ramparts of Red Fort on 76th Independence Day of India

प्रस्तोता : शीतांशु कुमार सहाय 

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    "हम वो लोग हैं, जो जीव में शिव देखते हैं, हम वो लोग हैं, जो नर में नारायण देखते हैं, हम वो लोग हैं, जो नारी को नारायणी कहते हैं, हम वो लोग हैं, जो पौधे में परमात्मा देखते हैं, हम वो लोग हैं, जो नदी को मां मानते हैं, हम वो लोग हैं, जो कंकड़-कंकड़ में शंकर देखते हैं।"

    नरेन्द्र मोदी, भारत के प्रधानमंत्री, 

५ अगस्त २०२२ को लालकिले की प्राचीर से 

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     भारत की राजधानी नयी दिल्ली में खुशनुमा माहौल में लाहौरी गेट से होते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सुबह-सुबह लाल किले की प्राचीर पर पहुँचे। रास्ते में दो हाथियों ने उन की अगुवानी की। पूरा लाल किले तिरंगे के रंगों से सराबोर नजर आ रहा था। ठीक ७.३० बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ध्वजारोहण किया। इस के बाद राष्ट्रगान की धुन ने हर भारतीयों को गौरव से भर दिया। 

     भारत अपनी आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। इस अवसर पर लालकिले की प्राचीर से भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र को सम्बोधित किया। यहाँ पढ़िये उन के भाषण का मुख्यांश :-

     लालकिले की प्राचीर से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज देशवासियों को संकल्प दिलाया कि अब हमें रूकना नहीं है, अगले २५ साल में भारत को विकसित राष्ट्र बनाना ही होगा। हमें छोटा नहीं, अब बहुत बड़ा लक्ष्य लेकर चलना होगा। अमृतकाल का पहला प्रभात आकांक्षी समाज की आकांक्षा को पूरा करने का सुनहरा अवसर है। हमारे देश के भीतर कितना बड़ा सामर्थ्य है, एक तिरंगे झंडे ने दिखा दिया है। उन्होंने शारीरिक स्वास्थ्य व मानसिक शान्ति के लिए योग को और सामाजिक सौहार्द व सह-अस्तित्व के लिए सन्युक्त परिवार की परम्परा को अपनाने पर बल दिया। इन दोनों को वर्तमान विश्व की आवश्यकता बताया। 

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नरेन्द्र मोदी ने नया नारा दिया :

जय जवान
जय किसान 
जय विज्ञान 
जय अनुसन्धान 

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     मोदी ने एक तरफ बापू, सुभाष को याद करते हुए नेहरू को नमन किया तो सावरकर के त्याग का भी जिक्र किया। उन्होंने इतिहास में भुला दिये गये उन क्रांतिकारियों को भी याद किया जिन्हें आज़ादी का अमृत महोत्सव में नमन किया जा रहा है। आज़ादी के ७५वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री ने एक और बड़ी बात कही कि किसी-न-किसी कारण से हमारे अंदर यह विकृति आयी है। हमारे बोलचाल में, हमारे व्यवहार में, हमारे कुछ शब्दों में.. हम नारी का अपमान करते हैं... क्या हम स्वभाव से, संस्कार से, रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में नारी को अपमानित करने वाली हर बात से मुक्ति का संकल्प ले सकते हैं.. मोदी यह बोलते हुए भावुक हो गये। वह बोलते-बोलते कुछ देर के लिए रूक भी गये।

     प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आगे कहा कि देश के सामने दो बड़ी चुनौतियाँ हैं। पहली चुनौती- भ्रष्टाचार और दूसरी चुनौती भाई-भतीजावाद और परिवारवाद है। मोदी ने आगे कहा कि भ्रष्टाचार देश को दीमक की तरह खोखला कर रहा है, उस से देश को लड़ना ही होगा। हमारी कोशिश है कि जिन्होंने देश को लूटा है, उन को लौटाना भी पड़े, हम इस की कोशिश कर रहे हैं। 

     आज का दिवस ऐतिहासिक दिवस है। एक पुण्य पड़ाव, एक नई राह, एक नए संकल्प और नए सामर्थ्य के साथ कदम बढ़ाने का यह शुभ अवसर है। आजादी की जंग में गुलामी का पूरा कालखंड संघर्ष में बीता है। भारत का कोई कोना ऐसा नहीं था, जब देशवासियों ने सैकड़ों सालों तक गुलामी के खिलाफ जंग न किया हो। जीवन न खपाया हो, आहुति न दी हो। आज हम सब देशवासियों के लिए ऐसे हर महापुरुष के लिए नमन करने का अवसर है, उनका स्मरण करते हुए।

     मोदी ने कहा, हम नहीं भूल सकते भगवान बिरसा मुण्डा, सीताराम राजू, गोविन्द गुरु अनगिनत नाम हैं जिन्होंने आज़ादी के आंदोलन की आवाज़ बनकर दूर जंगलों में रहनेवाले आदिवासियों के दिलों में मातृभूमि के लिए जीने-मरने की प्रेरणा जगायी। देश का सौभाग्य रहा है कि आज़ादी के जंग के कई रूप रहे हैं। एक रूप यह भी रहा जिस में नारायण गुरु हों, स्वामी विवेकानंद हों, महर्षि अरविंदो हों, टैगोर हों ऐसे अनेक महापुरुष भारत की चेतना को जगाते रहे।

     कल भारी मन से विभाजन विभीषिका दिवस मनाया। आज़ादी का अमृत महोत्सव के दौरान उन सभी महापुरुषों को याद करने का प्रयास किया गया जिन को किसी-न-किसी कारण से इतिहास में जगह न मिली, या उन्हें भुला दिया गया। देश ने खोज-खोजकर हर कोने में ऐसे लोगों को याद किया, नमन किया! अमृत महोत्सव के दौरान इन सभी महापुरुषों को याद किया। कल १४ अगस्त को भारत ने "विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस" भी बड़े भारी मन से हृदय के गहरे घावों को याद कर के मनाया।

     जब आज़ादी की लड़ाई अंतिम चरण में थी तो देश को डराने के लिए तमाम कोशिशें की गयीं। अंग्रेज चले जायेंगे तो देश बिखर जायेगा.... लेकिन उन्हें पता नहीं था कि ये हिंदुस्तान की मिट्टी है। इस मिट्टी में वो सामर्थ्य है जो शासकों से भी परे सामर्थ्य का एक अंतर प्रवाह लेकर जीता रहा है। उसी का परिणाम है। कभी अन्न का संकट झेला, युद्ध का शिकार हो गये, आतंकवाद ने चुनौतियाँ पैदा कीं। निर्दोषों को मारा गया। छद्म युद्ध चलते रहे। प्राकृतिक आपदाएँ आती रहीं। न जाने कितने पड़ाव आये लेकिन इन सब के बीच भारत आगे बढ़ता रहा।

     जिन के जेहन में लोकतंत्र होता है, वे जब संकल्प लेकर चल पड़ते हैं वो सामर्थ्य दुनिया की बड़ी सल्तनतों के लिए संकट का काल लेकर आती है। ये लोकतंत्र की जननी हमारे भारत ने सिद्ध कर दिया कि हमारे पास अनमोल सामर्थ्य है। ७५ साल की यात्रा में उतार चढ़ाव आये। २०१४ में देशवासियों ने मुझे दायित्व दिया। आज़ादी के बाद जन्मा मैं पहला व्यक्ति था जिसे लाल किले से देशवासियों का गौरव गान करने का अवसर मिला। लेकिन मेरे दिल में जो भी आप लोगों से सीखा हूँ, जितना आप लोगों को जान पाया हूँ, सुख-दुःख को समझ पाया हूँ- उस को लेकर मैंने अपना पूरा कालखण्ड देश के उन लोगों को सशक्त बनाने में खपाया- दलित, शोषित, किसान, महिला, युवा हों, हिमालय की कंदराएँ हों, समुद्र का तट हो- हर कोने में बापू का जो सपना था आखिरी इंसान को सामर्थ्यवान बनाने का, मैं ने अपने आप को उस के लिए समर्पित किया।

     आकांक्षी समाज किसी भी देश की अमानत होती है। आज समाज के हर वर्ग में, हर तबके में आकांक्षाएँ उफान पर हैं। देश का हर नागरिक चीजें बदलना चाहता है, इंतज़ार करने को तैयार नहीं है, अपनी आँखों के सामने चाहता है। ७५ साल में बचे सपने पूरा करने के लिए उतावला है। ऐसे में सरकारों को भी समय के साथ दौड़ना पड़ता है। केंद्र हो या राज्य या कोई और शासन व्यवस्था हो, हर किसी को आकांक्षाओं को पूरा करना होगा। हमारे समाज ने काफी इंतज़ार किया है लेकिन अब वह आनेवाली पीढ़ी को इंतज़ार करवाने के लिए तैयार नहीं है।

     भारत में सामूहिक चेतना का पुनर्जागरण हुआ है। ये चेतना का जागरण, यह हमारी सब से बड़ी अमानत है। १० अगस्त को लोगों को पता भी नहीं होगा शायद लेकिन पिछले तीन दिनों के भीतर जिस प्रकार से तिरंगे झण्डे को लेकर देश चल पड़ा है। बड़े-बड़े सोशल साइंस के एक्सपर्ट भी इस की कल्पना नहीं कर सकते कि देश के भीतर कितना बड़ा सामर्थ्य है, देश के झण्डे ने दिखा दिया है। जब देश का हर कोना जनता कर्फ्यू के लिए निकल पड़ता है, थाली-ताली बजाकर कोरोना योद्धाओं के साथ खड़ा होता है, दीया जलाकर योद्धाओं को शुभकामनाएँ देता है तो उस चेतना की अनुभूति होती है। दुनिया कोरोना वैक्सीन की उलझन में थी और देश २०० करोड़ डोज लगा चुका था।

     आज विश्व पर्यावरण की समस्या से जो जूझ रहा है। ग्लोबल वार्मिंग की समस्याओं के समाधान का रास्ता हमारे पास है। इस के लिए हमारे पास वो विरासत है, जो हमारे पूर्वजों ने हमें दी है।

     आज दुनिया का भारत को लेकर नज़रिया बदल चुका है। दुनिया भारत की धरती पर समाधान देखने लगी है। ७५ साल की अनुभव यात्रा का यह परिणाम है। विश्व भी उम्मीदें लेकर जी रहा है, उम्मीदें पूरी करने का सामर्थ्य कहाँ पड़ा है। त्रिशक्ति के रूप में मैं इसे देखता हूँ :-

१. एसपिरेशन

२. पुनर्जागरण और

३. विश्व की उम्मीदें

     आज दुनिया में विश्वास जगने में देशवासियों की भूमिका है। १३० करोड़ लोगों ने दशकों के अनुभव करने के बाद स्थिर सरकार का महत्त्व, राजनीतिक स्थिरता और इस के कारण दुनिया में असर, नीतियों को लेकर भरोसा जताया है। हम सब का साथ, सब का विकास के मंत्र लेकर चले थे, लोगों ने सब का विश्वास, सब का प्रयास बढ़ा दिया।

     प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लालकिले की प्राचीर से भारतीयों के लिए पञ्चप्रण की बात कही : 

      अगर हम अपनी ही पीठ थपथपाते रहेंगे तो हमारे सपने कहीं दूर चले जाएंगे। इसलिए हम ने कितना भी संघर्ष किया हो उस के बावजूद भी जब आज हम अमृत काल में प्रवेश कर रहे हैं तो अगरे २५ साल हमारे देश के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। आज मैं लाल किले से १३० करोड़ लोगों को आह्वान करता हूँ। साथियों! मुझे लगता है कि आनेवाले २५ साल के लिए भी हमें उन पाँच प्रण पर अपने संकल्पों को केंद्रित करना होगा। हमें पंच प्रण को लेकर २०४७ जब आजादी के १०० साल होंगे, आज़ादी के दीवानों के सारे सपने पूरे करने का जिम्मा उठाकर चलना होगा।

     पहला प्रण अब देश बड़े संकल्प लेकर चलेगा और वो बड़ा संकल्प है विकसित भारत। अब उस से कम नहीं होना चाहिए।

     दूसरा प्रण किसी भी कोने में, हमारे मन के भीतर गुलामी का एक भी अंश अगर है तो उसे किसी भी हालत में बचने नहीं देना है। सैकड़ों साल की गुलामी ने हमारे मनोभाव को बाँधकर रखा है, हमें गुलामी की छोटी-सी-छोटी चीज भी नज़र आती है,  हमें उस से मुक्ति पानी होगी।

     तीसरा प्रण हमें हमारी विरासत पर गर्व होना चाहिए; क्योंकि यही विरासत है जिस ने कभी भारत को स्वर्णिम काल दिया था।

     चौथा प्रण एकता और एकजुटता, १३० करोड़ देशवासियों में एकता, न कोई अपना न कोई पराया। एकता की ताकत 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' के सपनों के लिए है।

     पाँचवाँ प्रण नागरिकों का कर्तव्य। इस में पीएम और सीएम भी आते हैं। ये हमारे आनेवाले २५ साल के सपनों को पूरा करने के लिए बहुत बड़ी प्रणशक्ति है।

     जब सपने बड़े होते हैं, संकल्प बड़ा होता है, पुरुषार्थ भी बहुत बड़ा होता है, शक्ति भी बहुत बड़ी मात्रा में होती है।

      २५ साल में विकसित भारत बनाना है। आज जब अमृत काल की पहली प्रभात है तो संकल्प लेना है कि हमें इन २५ साल में विकसित भारत बनाकर रहना है। अपनी आँखों के सामने.... देश के नौजवानों! जब देश आज़ादी के १०० साल मनायेगा तो आप ५०-५५ साल के होंगे। आप संकल्प लेकर मेरे साथ चल पड़िये, तिरंगे की शपथ लेकर चल पड़िये। बड़ा संकल्प, मेरा देश विकसित होगा। हम मानवकेंद्रित व्यवस्था को विकसित करेंगे।

     हमारा प्रयास है कि देश के युवाओं को असीम अंतरिक्ष से लेकर समंदर की गहराई तक रिसर्च के लिए भरपूर मदद मिले। इसलिए हम स्पेस मिशन का, डीप ओसन मिशन का विस्तार कर रहे हैं। स्पेस और समंदर की गहराई में ही हमारे भविष्य के लिए ज़रूरी समाधान हैं। 

     आत्मनिर्भर भारत, ये हर नागरिक का, हर सरकार का, समाज की हर एक इकाई का दायित्व बन जाता है। आत्मनिर्भर भारत, ये सरकारी एजेंडा या सरकारी कार्यक्रम नहीं है। ये समाज का जनआंदोलन है, जिसे हमें आगे बढ़ाना है।

     आज़ादी के ७५ साल के बाद जिस आवाज़ को सुनने के लिए हमारे कान तरस गये थे, आज सुनायी दी है। ७५ साल के बाद लालकिले से तिरंगे को सलामी देने का काम मेड इन इंडिया तोप ने किया है। कौन हिंदुस्तानी होगा, जिसे ये आवाज़ प्रेरणा या ताकत न देती हो। आत्मनिर्भर भारत की बात को सेना ने जिस जिम्मेदारी के साथ कंधे पर उठाया है, उसे जितना सैल्यूट करूँ उतना कम है। पीएम ने कहा- सैल्यूट, सैल्यूट मेरी सेना के अधिकारियों को सैल्यूट!

     पुलिस से खेलकूद का मैदान या युद्ध की भूमि देखें। भारत की नारी शक्ति एक नए जोश के साथ आगे आ रही है। मैं आने वाले २५ सालों में नारी शक्ति हमें आगे बढ़ने में मौका देगा। जितनी सुविधाएँ हमारी बेटियों के लिए केंद्रिंत करेंगे। वो बहुत कुछ लौटाकर देंगी। इस अमृतकाल में जो सपने पूरे करने में जो मेहनत लगनेवाली है। अगर नारी शक्ति जुड़ जायेगी, हमारी मेहनत कम हो जायेगी, हमारे सपने और तेजस्वी, ओजस्वी होंगे। हम इन जिम्मेदारियों को लेकर आगे बढ़ें।



गुरुवार, 21 जुलाई 2022

भारत की १५वीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू 15th President of India Mrs. Draupadi Murmu


 -शीतांशु कुमार सहाय 

       विश्व के सब से बड़े लोकतान्त्रिक देश भारत के सब से बड़े संवैधानिक पद पर निर्वाचित होनेवाली द्रौपदी मुर्मू पहली आदिवासी महिला हैं। वह १५वीं राष्ट्रपति चुनी गयी हैं। 

      अत्यन्त निर्धन और पिछड़े परिवार से आने वाली मुर्मू का जीवन संघर्षों से भरा रहा हैं। उन्होंने पाँच साल के अंदर अपने दो जवान बेटों और पति को खो दिया। ये तो मुर्मू के संघर्ष की बातें हो गईं। द्रौपदी मुर्मू ने अध्यापिका के रूप में अपना व्यावसायिक जीवन आरम्भ किया। फिर धीरे-धीरे राजनीति में आ गयीं।  द्रौपदी मुर्मू ने साल १९९७ में राइरंगपुर नगर पंचायत के पार्षद चुनाव में जीत दर्ज कर अपने राजनीतिक जीवन का आरंभ किया था। 

      द्रौपदी मुर्मू  सन् २००० और २००९ इस्वी में ओडिशा के मयूरभंज जिले के रायरंगपुर से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर दो बार विधान सभा सदस्य चुनी गयीं। २००० से २००४ तक नवीन पटनायक के मंत्रिमंडल में स्वतंत्र प्रभार की राज्यमंत्री रहीं। उन्होंने मंत्री के रूप में लगभग दो-दो साल तक वाणिज्य और परिवहन विभाग तथा मत्स्य पालन के अलावा पशु संसाधन विभाग संभाला। उस दौरान नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल (बीजेडी) और भारतीय जनता पार्टी ओड़िशा मे गठबंधन की सरकार चला रही थी। उन्हें ओड़िशा में सर्वश्रेष्ठ विधायकों को मिलने वाला 'नीलकंठ पुरस्कार' भी मिल चुका है।

      द्रौपदी मुर्मू १८ मई २०१५ से १२ जुलाई २०२१ तक झारखण्ड की राज्यपाल थीं। 

      द्रौपदी मुर्मू का जन्म २० जून साल १९५८ ईस्वी को ओडिशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी गाँव में हुआ था। मुर्मू संथाल आदिवासी परिवार से आती हैं। उन के पिता का नाम बिरंची नारायण टुडू था। वह किसान थे। उन के दादा और पिता दोनों ही गाँव के प्रधान रहे। 

      मुर्मू की शादी श्याम चरण मुर्मू से हुई थी। दोनों से चार बच्चे हुए। इन में दो बेटे और दो बेटियाँ। साल १९८४ में एक बेटी की मौत हुई। इस के बाद २००९ में एक और २०१२ में दूसरे बेटे की अलग-अलग कारणों से मौत हो गई। २०१४ में मुर्मू के पति श्याम चरण मुर्मू की भी मौत हो गई है। बताया जाता है कि उन्हें दिल का दौरा पड़ गया था। अब उन के परिवार में सिर्फ एक पुत्री है। इस पुत्री का नाम इतिश्री मुर्मू है। वह झारखण्ड की राजधानी राँची में रहती हैं। इतिश्री के पति गणेश चंद्र हेम्ब्रम हैं। गणेश भी रायरंगपुर के रहने वाले हैं और इन की एक बेटी आद्याश्री है।

      द्रौपदी मुर्मू की आरम्भिक शिक्षा गाँव में ही हुई। साल १९६९ से १९७३ तक वह आदिवासी आवासीय विद्यालय में पढ़ीं। इस के बाद स्नातक करने के लिए उन्होंने भुवनेश्वर के रमा देवी महिला महाविद्यालय में दाखिला ले लिया। द्रौपदी अपने गाँव की पहली लड़की थीं, जो स्नातक की पढ़ाई के लिए भुवनेश्वर तक पहुँचीं।

      महाविद्यालय में अध्ययन के दौरान उन की मुलाकात श्याम चरण मुर्मू से हुई। श्याम चरण भुवनेश्वर के एक महाविद्यालय से पढ़ाई कर रहे थे। दोनों की मित्रता कुछ समय बाद प्यार में बदल गयी। द्रौपदी और श्याम चरण एक-दूसरे को पसंद करने लगे थे।

      वर्ष १९८० में दोनों ने विवाह करने का निर्णय लिया। परिवार की रजामंदी के लिए विवाह का प्रस्ताव लेकर द्रौपदी के घर श्याम पहुँचे। श्याम चरण के कुछ रिश्तेदार द्रौपदी के गाँव में रहते थे। अपनी बात रखने के लिए श्याम चरण अपने चाचा और रिश्तेदारों को लेकर द्रौपदी के घर गये थे। पर, द्रौपदी के पिता बिरंची नारायण टुडू ने विवाह के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। 

      दूसरी तरफ श्याम चरण ने तय कर लिया था कि वह द्रौपदी से ही विवाह करेंगे। द्रौपदी ने भी घर में साफ कह दिया था कि वह श्याम से ही विवाह करेंगी। श्याम चरण तीन दिन तक द्रौपदी के गाँव में ही अपने रिश्तेदार के घर रूके रहे। अन्ततः द्रौपदी के पिता ने विवाह की स्वीकृति दे दी। इस के बाद श्याम चरण और द्रौपदी के परिजन उपहार की बातचीत को लेकर बैठे। इस में तय हुआ कि श्याम चरण के घर से द्रौपदी को एक गाय, एक बैल और १६ जोड़ी कपड़े दिए जाएंगे। दोनों के परिवार इस पर सहमत हो गए। दरअसल द्रौपदी जिस संथाल समुदाय से आती हैं, उस में लड़की के घरवालों को लड़के की तरफ से उपहार दिये जाते हैं। 

      द्रौपदी मुर्मू का ससुराल पहाड़पुर गाँव में है, जहाँ उन्होंने अपने घर को ही वर्ष २०१६ में विद्यालय के रूप में बदल दिया है। इस का नाम श्याम लक्ष्मण शिपुन उच्चतर प्राथमिक विद्यालय है। हर साल द्रौपदी अपने दोनों पुत्रों और पति की पुण्यतिथि पर इस गाँव में अनिवार्य रूप से आती हैं। इन तीनों दिवंगतों की आवक्ष प्रतिमाएँ द्रौपदी मुर्मू ने अपने आवासीय परिसर में बनवायी हैं। 

     प्रत्याशा है कि द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति के रूप में भारत के प्रति अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायेंगी। 

मंगलवार, 19 जुलाई 2022

आज़ादी का अमृत महोत्सव :भारत का राष्ट्रगीत 'वन्दे मातरम्' का सम्पूर्ण पाठ Azadi Ka Amrit Mahotsav :Full Text of the National Song of India 'Vande Mataram'


-शीतांशु कुमार सहाय 
     आज़ादी का अमृत महोत्सव वर्ष में पढ़िये भारत के राष्ट्रीय गीत का पूरा स्वरूप। इसे वंकिमचन्द चट्टोपाध्याय ने लिखा और संगीत से संवारा पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर ने। 

वन्दे मातरम्

सुजलां सुफलाम्

मलयजशीतलाम्

शस्यश्यामलां मातरम्।


शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीम्

फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीम्

सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम्

सुखदां वरदां मातरम्॥ १॥


कोटि कोटि-कण्ठ-कल-कल-निनाद-कराले

कोटि-कोटि-भुजैर्धृत-खरकरवाले,

अबला केन मा एत बले।

बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीं

रिपुदलवारिणीं मातरम्॥ २॥


तुमि विद्या, तुमि धर्म

तुमि हृदि, तुमि मर्म

त्वम् हि प्राणा: शरीरे

बाहुते तुमि मा शक्ति,

हृदये तुमि मा भक्ति,

तोमारई प्रतिमा गडी मन्दिरे-मन्दिरे॥ ३॥


त्वम् हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी

कमला कमलदलविहारिणी

वाणी विद्यादायिनी,

नमामि त्वाम्

नमामि कमलाम्

अमलां अतुलाम्

सुजलां सुफलाम् मातरम्॥४॥


वन्दे मातरम्

श्यामलां सरलाम्

सुस्मितां भूषिताम्

धरणीं भरणीं मातरम्॥ ५॥

मंगलवार, 31 मई 2022

प्रेमचन्द के बिना हिन्दी साहित्य का इतिहास अधूरा The Great Author Premchand

 -शीतांशु कुमार सहाय 


जयन्ती (३१ जुलाई) पर महान हिन्दी साहित्यकार प्रेमचन्द को कोटि-कोटि प्रणाम!

आधुनिक भारत के शीर्षस्थ साहित्यकार प्रेमचंद की रचना दृष्टि साहित्य के विभिन्न रूपों में अभिव्यक्त हुई है। उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख संस्मरण आदि अनेक विधाओं में उन्होंने साहित्य सृजन किया।

अपने जीवनकाल में ही उन्हें उपन्यास सम्राट की उपाधि मिल गई थी किन्तु पाठकों के बीच आज भी उनका कहानीकार का रूप स्वीकारा, सराहा जाता है।

उन का जीवन जितनी गहनता लिये हुए है, साहित्य के फलक पर उतना ही व्यापक भी है। प्रेमचन्द ने हिन्दी साहित्य की महती सेवा की और इस के भण्डार को अपनी लेखनी की निधि से धन्य किया। 

उन्होंने कुल १५ उपन्यास, ३०० से अधिक कहानियाँ, ३ नाटक, १० अनुवाद, ७ बाल पुस्तकें तथा हजारों की संख्या में लेख आदि की रचना की।

वे स्वयं आजीवन ज़मीन से जुड़े रहे और अपने पात्रों का चयन भी हमेशा परिवेश के अनुसार ही किया।

हिन्दी साहित्य के आकाश में प्रेमचन्द सदा-सर्वदा दैदीप्यमान रहेंगे। 

सोमवार, 23 मई 2022

देश को खोखला बनाती हैं मुफ़्त वाली योजनाएँ Free Schemes Make The Country Weak

 -शीतांशु कुमार सहाय 


     
भारत महान है लेकिन इस की महानता दिखायी नहीं दे रही है। विश्व के सब से बड़े लोकतन्त्र के बहुत लोग (सभी नहीं) मुफ़्त सरकारी सुविधाओं की अपेक्षा रखते हैं। पर, यह स्थिति देश को हर तरीके से कमजोर और देशवासियों को अकर्मण्य बना देता है। प्रसन्नता इस बात की है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्रीय सरकार मुफतिया योजनाओं को धीरे-धीरे समाप्त कर रही है। इस सन्दर्भ को एक उदाहरण के माध्यम से समझिये...

     अर्थशास्त्र के एक प्राध्यापक ने अपने एक बयान में कहा, “मैं ने पहले कभी किसी छात्र को अनुत्तीर्ण नहीं किया, पर हाल ही में मुझे एक पूरी-की-पूरी क्लास को फेल करना पड़ा है l”

     आखिर ऐसा क्यों हुआ; क्योंकि उस क्लास छात्रों ने दृढ़तापूर्वक यह कहा था-- “समाजवाद सफल होगा। न कोई गरीब होगा और न कोई धनी होगा।”  उन छात्रों का दृढ़ विश्वास है कि यह सब को समान करनेवाला एक महान सिद्धांत है।

     तब प्राध्यापक ने कहा– अच्छा ठीक है ! आओ हम क्लास में समाजवाद के अनुरूप एक प्रयोग करते हैं। सफलता पाने वाले सभी छात्रों के विभिन्न ग्रेड (अंकों) का औसत निकाला जाएगा और सब को वही एक काॅमन ग्रेड दिया जायेगा।

पहली परीक्षा के बाद...

     सभी ग्रेडों का औसत निकाला गया और प्रत्येक छात्र को B ग्रेड प्राप्त हुआl

     जिन छात्रों ने कठिन परिश्रम किया था वे परेशान हो गए और जिन्होंने कम पढ़ाई की थी वे खुश हुए l

     दूसरी परीक्षा के लिए कम पढ़नेवाले छात्रों ने पहले से भी और कम पढ़ाई की और जिहोंने कठिन परिश्रम किया था, उन्होंने यह तय किया कि वे भी मुफ़्त का ग्रेड प्राप्त करेंगे और उन्होंने भी कम पढ़ाई की l

दूसरी परीक्षा में ...

     सभी का काॅमन ग्रेड D आया l

     इस से कोई खुश नहीं था और सब एक-दूसरे को कोसने लगे।

     जब तीसरी परीक्षा हुई तो काॅमन ग्रेड F हो गयाl

     जैसे-जैसे परीक्षाएँ आगे बढ़ने लगीं, स्कोर कभी ऊपर नहीं उठा; बल्कि और भी नीचे गिरता रहा। आपसी कलह, आरोप-प्रत्यारोप, गाली-गलौज और एक-दूसरे से नाराजगी के परिणाम स्वरूप कोई भी नहीं पढ़ता था; क्योंकि कोई भी छात्र अपने परिश्रम से दूसरे को लाभ नहीं पहुँचाना चाहता था l

     अंत में सभी आश्चर्यजनक रूप से फेल हो गए और प्राध्यापक ने उन्हें समझाया-

     इसी तरह समाजवाद  की नियति भी अंततोगत्वा फेल होने की ही है; क्योंकि इनाम जब बहुत बड़ा होता है तो सफल होने के लिए किया जानेवाला उद्यम भी बहुत बड़ा करना होता है l

     परन्तु जब सरकारें मेहनत के सारे लाभ मेहनत करने वालों से छीन कर वंचितों और निकम्मों में बाँट देगी, तो कोई भी न तो मेहनत करना चाहेगा और न ही सफल होने की कोशिश करेगा l

उन्होंने यह भी समझाया-

     "इस से निम्नलिखित पाँच सिद्धांत भी निष्कर्षित व प्रतिपादित होते हैं :-

१. यदि आप राष्ट्र को समृद्ध और समाज को सक्षम बनाना चाहते हैं, तो किसी भी व्यक्ति को उस की समृद्धि से बेदखल कर गरीब को समृद्ध बनाने का क़ानून नहीं बना सकते।

२. जो व्यक्ति बिना कार्य किये कुछ प्राप्त करता है, तो वह अवश्य ही अधिक परिश्रम करनेवाले किसी अन्य व्यक्ति के पुरस्कार को छीन कर उसे दिया जाता है।

३. सरकार तब तक किसी को कोई वस्तु नहीं दे सकती, जब तक वह उस वस्तु को किसी अन्य से छीन न ले।

४. आप सम्पदा को बाँटकर उस की वृद्धि नहीं कर सकते।

५. जब किसी राष्ट्र की आधी आबादी यह समझ लेती है कि उसे कोई काम नहीं करना है; क्योंकि शेष आधी आबादी उस की देख-भाल जो कर रही है और बाकी आधी आबादी यह सोचकर ज़्यादा अच्छा कार्य नहीं कर रही कि उस के कर्म का फल किसी दूसरे को मिलना है, तो वहीं से उस राष्ट्र के पतन की शुरुआत हो जाती है।

आप ने पूरा आलेख पढ़ा है तो आप को मैं धन्यवाद देता हूँ और यदि समझ में आया है तो देश हित में आगे शेयर करें...

रविवार, 8 मई 2022

माँ या पिता के नाम एक दिन का सम्मान भारतीय संस्कृति के विरुद्ध Mother's Day Or Father's Day Are Not Good In Indian Culture

-शीतांशु कुमार सहाय 


 हमारी परम्परा है... 

      प्रातः उठने के पश्चात् माँ, पिता और सभी बड़ों के चरण स्पर्श कर उन का अभिवादन करना।

      अर्थात् प्रतिदिन मदर्स डे, फादर्स डे, ब्रदर्स डे, सिस्टर्स डे मनाती आयी है हमारी पीढ़ियाँ।

      ऐसे में किसी एक दिन को तरजीह देना वास्तव में अपनी समृद्ध संस्कृति को निम्नतर आँकने के समतुल्य है। 

      मनुस्मृति में महर्षि मनु ने कहा है...

अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोसेविनः।

चत्वारि तस्य वर्द्धन्ते आयुर्विद्यायशोबलम्।।

      अर्थात्, प्रतिदिन बड़े-बुजुर्गों के अभिवादन से आयु, विद्या, यश और बल में वृद्धि होती है। 

      जय भारत!

मंगलवार, 19 अप्रैल 2022

आज़ादी का अमृत उत्सव : अँग्रेजों को हरानेवाले महान स्वाधीनता सेनानी वीर कुँवर सिंह The Great Feedom Fighter of Indìa Veer Kunwar Singh


 -शीतांशु कुमार सहाय

थे वयोवृद्ध तुम, किन्तु जवानी नस-नस में लहराती थी।

बिजली लज्जित हो जाती थी, तलवार चमक जब जाती थी।

तुम बढ़ते जिधर, उधर मचता अरि-दल में कोलाहल-क्रन्दन।

हे वीर तुम्हारा अभिनन्दन!

      कविवर सत्यनारायण लाल ने अपनी कविता ‘वीर कुँवर सिंह के प्रति’ में प्रख्यात भारतीय स्वाधीनता सेनानी वीर बाबू कुँवर सिंह की शूरता व विजय अभियान का काव्यात्मक वर्णन किया है। कुँवर सिंह ने अन्तिम साँस तक परतन्त्रता को स्वीकार नहीं किया और बाद के स्वतन्त्रता संग्रामियों के लिए ऐसा आदर्श छोड़ गये, जिसे अपनाकर देश को स्वाधीन कराना सम्भव हो सका।

      भारत के बिहार राज्य अन्तर्गत वर्तमान भोजपुर ज़िले के जगदीशपुर गाँव के ज़मीन्दार थे कुँवर सिंह के दादा उमराँव सिंह। विपरीत परिस्थिति आने पर उमराँव सिंह को परिवार सहित अपने मित्र वर्तमान उत्तर प्रदेश राज्य के ग़ाजीपुर के नवाब अब्दुल्ला के पास जाना पड़ा। वहीं उमराँव सिंह की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसे साहेबजादा सिंह का नाम दिया गया। साहेबजादा सिंह ताक़तवर होने के साथ-साथ क्रोधी और उग्र व्यवहार वाले थे। साहेबजादा सिंह का विवाह पंचरत्न देवी से हुआ। उन के चार पुत्र हुए- कुँवर सिंह, दयाल सिंह, राजपति सिंह और अमर सिंह।  

      वर्ष १७७७ ईस्वी को कुँवर सिंह का जन्म हुआ था। बचपन से ही कुँवर सिंह वीरता और साहस के कार्यों में संलग्न रहने के कारण पढ़ने पर ध्यान न दे सके। इस सन्दर्भ में लेखक रामनाथ पाठक ‘प्रणयी’ ने लिखा है- ‘‘वे प्रारम्भ से ही सरस्वती की सेवा से विरत रहकर चण्डी के चरणों में अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते रहे। .....उन्होंने जितौरा के वन में अपने लिए फूस का बंगला बनवाया था। वे वहीं रहकर शिकार प्रभृति वीरता के कार्यों से अपना मनोविनोद किया करते थे।’’

      तरुणावस्था में ही कुँवर सिंह का विवाह गया के देवमूँगा के प्रसिद्ध ज़मीनदार राजा फतेह नारायण सिंह की पुत्री से हुआ। दाम्पत्य मधुर था पर कुँवर सिंह की आसक्ति अन्य औरतों में बनी रही। आरा की धरमन बीवी अन्त तक उन के शौर्य और प्रणय में साथ देती रही। धरमन और उन की बहन करमन ने कुँवर सिंह के नेतृत्व में अँग्रेजों के विरुद्ध युद्ध भी किया। 

      सन् १८२६ ईस्वी में साहबजादा सिंह की मृत्यु के बाद बाबू कुँवर सिंह को जगदीशपुर की रियासत की बागडोर सौंपी गयी। राजगद्दी पर बैठते ही कुँवर सिंह ने जगदीशपुर का काफ़ी विकास किया। जगदीशपुर दुर्ग को सुन्दर व ज़्यादा सुरक्षित बनाकर हथियारों से लैस घुड़सवारों की फौज बनायी। कुँवर सिंह के भाइयों के बीच सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध नहीं थे, पर इस की चिन्ता उन्हें नहीं थी। शेर की तरह अकेले ही वे दहाड़ते थे।

      वर्ष १८४५-४६ से ही अँग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की चिंगारी सुलगने लगी थी। कई बिहारियों को कारागार में डाला जा चुका था। सोनपुर का गुप्त सम्मेलन इस सन्दर्भ में प्रभावशाली रहा, पर सफलता सन्दिग्ध रही। यों १८५७ में अन्दर-ही-अन्दर देशभर में एकसाथ विद्रोह करने की योजना बनी पर बैरकपुर छावनी (बंगाल) के सिपाही मंगल पाण्डेय ने निर्धारित समय से कुछ माह पूर्व मार्च १८५७ में ही ईस्ट इण्डिया कम्पनी सरकार के विरुद्ध विद्रोह का श्रीगणेश कर दिया। इस की सूचना बिहार में पटना के दानापुर छावनी के सैनिकों को भी मिली और वे सब भी समय से पूर्व ही अँग्रजों के विरुद्ध विद्रोह कर डाले। चूँकि सैनिकों यानी सिपाहियों ने इस की शुरुआत की, अतः इसे ‘सिपाही विद्रोह’ कहते हैं। 

      सिपाही विद्रोह को भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम कहा जाता है। दानापुर के सैनिकों ने जगदीशपुर के महाराज कुँवर सिंह को अपना नेतृत्व सौंपा। अस्सी वर्षों की अवस्था में उन्होंने इस चुनौती को स्वीकारा और कई युद्धों में कम्पनी की गोरी सेना को परास्त कर शौर्य और पराक्रम की अमिट गाथा लिख डाली। 

      सम्पूर्ण भारतवर्ष को वीर विजयी कुँवर सिंह के शौर्य पर गुमान है। भारत माता के इस महान सपूत के चरणों में सम्पूर्ण भारतवासियों के प्रणाम निवेदित हैं। संसद भवन में वीर बाबू कुँवर सिंह के चित्र को ससम्मान लगाकर देश ने उन के प्रति अपना कर्तव्य निभाया। कुँवर सिंह सिपाही विद्रोह के प्रथम बिहारी सेनानी हैं जिन का चित्र संसद भवन में लगाया गया। 

      स्वतन्त्र भारत भूमि पर साँस लेनेवाला प्रत्येक नागरिक प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के महानायक वीर बाबू कुँवर सिंह के बलिदान का ऋणी है। आइये, हम सब भारत की एकता, अखण्डता और स्वतन्त्रता को अक्षुण्ण रखकर उन के प्रति आंशिक ऋणमुक्ति का प्रयास जारी रखें। 

      भारत में सिपाही विद्रोह की व्यापकता के मद्देनज़र १९ जून १८५७ ईस्वी को पटना के आयुक्त विलियम टेलर ने स्थानीय प्रमुख व्यक्तियों की बैठक विद्रोह को दबाने के सन्दर्भ में बुलायी, जिन में से तीन मुसलमानों को गिरफ्तार कर लिया। भोजपुर के तरारी थानान्तर्गत लकवा गाँव के पीर अली को भी टेलर ने पाँच जुलाई १८५७ ईस्वी को पकड़वाया और मात्र तीन घण्टों की न्यायालीय प्रक्रिया के पश्चात् फाँसी दे दी गयी। 

      पीर अली पटना में पुस्तक की दूकान चलाते और स्वाधीनता विद्रोह में भाग लेते थे। एक पेड़ से लटकाकर उन्हें फाँसी दे दी गयी। पटना में गाँधी मैदान के निकट स्थित वर्तमान कारगिल शहीद स्मारक के निकट ही वह पेड़ स्थित था। तत्कालीन दण्डाधिकारी मौलवी बख्श के आदेश पर ही पीर अली को फाँसी की सज़ा दी गयी थी।  

      भारत माता के सपूत पीर अली की शहादत ने देशभक्तों को उद्वेलित कर दिया। फलतः १९ जून १८५७ की शाम को दानापुर छावनी के सैन्य सिपाहियों की टोली कुँवर सिंह के नेतृत्व में रणाहुति देने आरा की ओर कूच कर गयी। कुँवर के छोटे भाई अमर सिंह सहित विशाल सिंह व हरेकृष्ण सिंह भी युद्ध में शामिल हो गये। युद्ध की तैयारी के लिए जगदीशपुर के दुर्ग में २० हज़ार सैनिकों के लिए छः महीनों की खाद्य सामग्रियों, अस्त्र-शस्त्र, वस्त्र और अन्य आवश्यक सामानों को संग्रहित कर लिया गया। यों अस्सी वर्षीय कुँवर सिंह के नेतृत्व में भारत माता के वीर सपूतों ने शाहाबाद क्षेत्र में अँग्रेजी हुकूमत को परास्त कर दिया। उस समय का शाहाबाद वर्तमान में बिहार के चार जिलों में बँटा है। ये ज़िले हैं- भोजपुर, बक्सर, कैमूर और रोहतास। अब शाहाबाद नाम का कोई ज़िला नहीं है। 

      ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने ५०० सैनिकों को डनवर के नेतृत्व में आरा भेजा। शाहाबाद के सैनिकों ने कुँवर सिंह के कुशल नेतृत्व में रणकौशल दिखाते हुए २९-३० जुलाई १८५७ ईस्वी को डनवर की सेना को परास्त कर दिया। इसी तरह लायड को भी हार का सामना करना पड़ा। जीवित अँग्रेज सैनिकों को कुँवर सिंह ने बन्दी बना लिया। बिहार के भोजपुर ज़िले के वर्तमान आरा शहर में स्थित महाराजा महाविद्यालय परिसर में स्थित आरा हाउस कुँवर सिंह की जीत का परिचायक है, जहाँ अँग्रेजों को कैद कर रखा गया था। यहाँ ‘वीर कुँवर सिंह संग्रहालय’ बनाया गया है। बिहार सरकार ने आरा में उन के नाम पर ‘वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय’ की स्थापना की है

      बंगाल तोपखाने का मेजर आयर उस दौरान जलयान से प्रयागराज जा रहा था। वह सैनिकों सहित आरा के बीवीगंज में कुँवर सेना से युद्ध करने आ गया। उस ने बन्दी बनाये गये अँग्रेज सैनिकों को मुक्त कराया। आयर ने कुँवर सेना के कई अधिकारियों को फाँसी दे दी। इस बीच कुँवर सिंह अपने बचे साथियों सहित आगे की रणनीति बनाने के लिए जगदीशपुर आ गये।

      इस के बाद कैप्टन रैटरे के सौ सिक्ख सैनिकों सहित दो सौ अन्य सैनिकों के साथ १२ अगस्त १८५७ ईस्वी की सुबह जगदीशपुर पर हमला कर दिया। जितौरा गढ़ को बर्वाद कर अमर सिंह व दयाल सिंह के घर को जला दिया गया। पुनः सैनिकों को संगठित कर कुँवर सिंह २६ अगस्त १८५७ ईस्वी को मिर्जापुर (वर्तमान उत्तर प्रदेश का एक ज़िला) पहुँचे। मिर्जापुर में अँग्रेजों को पराजित करने के बाद वे रामगढ़, घोरावाल, नेवारी, तप्पा उपरन्धा को जीतते हुए बाँदा और कालपी होते हुए कानपुर पहुँचे। ग्वालियर की क्रान्ति सेना, नाना साहेब व कुँवर सिंह ने मिलकर कानपुर में अँग्रेजों से युद्ध किया पर वे असफल रहे। इस के उपरान्त कुँवर सिंह लखनऊ आ गये। लखनऊ के नवाब ने उन्हें शाही वस्त्र व धन से सम्मानित किया। 

      घटना १७ मार्च १८५८ ईस्वी की है। आजमगढ़ के निकट अतरौलिया में कुँवर सिंह अपने पुराने साथियों से मिले और अँग्रेजों के चंगुल से भारत की मुक्ति पर रणनीतिक चर्चा की। सैनिकों को संगठित करने की नीति भी बनी। तैयारी चल ही रही थी कि अँग्रेज कर्नल मिलमैन ने कुँवर सिंह और उन के साथियों पर अचानक आक्रमण कर दिया। पूरी तैयारी न रहने के बावजूद अपने देशभक्त सैनिकों का कुशल नेतृत्व करते हुए कुँवर सिंह ने मिलमैन और उस के सैनिकों को बुरी तरह परास्त किया। सैकड़ों सैनिक मारे गये। अन्ततः २६ मार्च १८५८ ईस्वी को भारत माता के महान सपूत महाराजा कुँवर सिंह ने पुनः आजमगढ़ को अपने कब्जे में किया। अभी महाराजा के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रदर्शित करती हुई आजमगढ़ की प्रजा खुशी मना ही रही थी कि फिर २७ मार्च १८५८ ईस्वी को कर्नल डेम्स के नेतृत्व में अँग्रेजी सेना ने हमला कर दिया मगर इस बार भी कुँवर सिंह की सेना से मात खानी पड़ी। लगातार मात खाते अँग्रेजों ने कुँवर सिंह को अपना सब से बड़ा शत्रु मान लिया था और उन्हें मार डालने की हर सम्भव कोशिश की जाने लगी। 

      बात १३ अप्रील १८५८ ईस्वी की है। कुशल सेनापति निशान सिंह के नेतृत्व में दो हज़ार वीर सैनिकों को आजमगढ़ की सुरक्षा की जिम्मेवारी सौंपकर महाराज कुँवर सिंह गाजीपुर चले गये। १६ अप्रील  ईस्वी को उन्होंने लुगार्ड पर हमला कर दिया। वे सैनिकों सहित पुनः आजमगढ़ आ गये और लुगार्ड के नेतृत्ववाली ब्रिटिश सेना से भयंकर युद्ध किया। कुछ देशद्रोही रियासतों के राजाओं ने अँग्रेजों को अपनी सेना मुहैया करायी और धन से भी सहायता की। इस कारण देशभक्तों पर देशद्रोहियों की टोली मजबूुत पड़ने लगी। इसलिए कुछ सैनिकों सहित कुँवर सिंह दूसरी तरफ कूच कर गये। लुगार्ड के निर्देश पर ब्रिगेडियर डगलस ने सैनिकों के साथ कुँवर सिंह का पीछा किया। 

      डगलस १९ अप्रील १८५८ ईस्वी को नागरा की ओर बढ़ा जिस की जानकारी गुप्तचरों ने दी तो कुँवर सिंह सैनिकों के साथ सिकन्दरपुर की ओर चल दिये और वहीं से घाघरा नदी पार कर गये। इस तरह वे २० अप्रील १८५८ ईस्वी की रात में गाजीपुर के मनिआर गाँव पहुँचे, जहाँ उन का भव्य स्वागत किया गया। गाजीपुर के ही शिवपुर के लोग ने बीस नावों की व्यवस्था की। भारत की स्वतऩ्त्रता के लिए प्राण उत्सर्ग करने को तत्पर सैकड़ों वीर सैनिकों के साथ कुँवर सिंह शिवपुर घाट से गंगा पार गये। इस तरह ईस्ट इण्डिया कम्पनी की तमाम चौकसियों के बावजू़द २२ अप्रील १८५८ ईस्वी को एक हज़ार पैदल और घुड़सवार सैनिकों के साथ महाराज कुँवर सिंह जगदीशपुर पहुँचने में सफल रहे। उन्होंने पहले सभी सैनिकों को गंगा पार कराया और अन्तिम नाव से स्वयं पार करने लगे। इसी बीच अँग्रजी सेना वहाँ आ धमकी और कुँवर सिंह के नाव पर अन्धाधुन्ध गोलीबारी कर दी। एक गोली कुँवर सिंह के दायें बाँह में लगी। गोली का विष शरीर में न फैले, इसलिए कुँवर सिंह ने म्यान से तलवार निकाली और अपने बायें हाथ से बाँह के निकट से दायें हाथ को काटकर गंगा में डाल दिया। केवल स्वाधीनता संग्राम के दौरान ही नहीं; बल्कि विश्व इतिहास में ऐसा प्रकरण उपलब्ध नहीं है कि देशसेवा के लिए कोई सेनानी स्वयं अपने शरीर का महत्त्वपूर्ण अंग काटकर डाला हो। माता गंगा को भी किसी भक्त ने भगीरथ काल से अबतक ऐसा ‘भोग’ नहीं चढ़ाया है। 

      भारत माता को ईस्ट इण्डिया कम्पनी की दास्तां से मुक्ति दिलाने के लिए नौ महीने में १५ युद्ध लड़नेवाले महान देशभक्त कुँवर सिंह के शरीर में जाँघ सहित कई अंगों में घाव थे। उस पर से दायाँ हाथ काट लेने पर दायीं बाँह पर भी असह्य दर्द देनेवाला बड़ा घाव हो गया। जगदीशपुर नरेश कुँवर सिंह के घायल होने की सूचना पाकर अँग्रेज प्रसन्न हुए। उन्होंने सोचा कि अब भोजपुर के रणबाँकुरों को पराजित करना आसान होगा। यों आरा से ले ग्रेण्ड के नेतृत्व में अँग्रेज सैनिकों ने जगदीशपुर पर आक्रमण कर दिया। प्रजा की भलाई के लिए कुँवर सिंह ने बायें हाथ से भारत माता की पवित्र मिट्टी का तिलक लगाया और बायें हाथ से ही तलवार लहराते हुए सैनिकों के साथ अँग्रेज सैनिकों पर कहर बनकर टूटे। यह कुँवर सिंह के जीवन का अन्तिम युद्ध था। इस युद्ध में भी वे विजेता ही रहे। इस तरह २३ अप्रील १८५८ ईस्वी को जगदीशपुर ही नहीं, आरा से भी अँग्रेजों को खदेड़ दिया और आरा में विजयोत्सव मनाया गया। अँग्रेजों के ध्वज ‘यूनियन जैक’ को उतारकर कुँवर सिंह ने अपना ध्वज फहराया। सैकड़ों सैनिकों को कुँवर सिंह ने बन्दी भी बनाया। बिहार में अब भी २३ अप्रील को प्रतिवर्ष ‘कुँवर सिंह का विजयोत्सव’ मनाया जाता है। उन के अदम्य साहस, पराक्रम और शौर्य के कारण उन के नाम के आगे ‘वीर’ शब्द जोड़ते हैं। उन्होंने जीवन की चौथी अवस्था (८०-८१ वर्ष) में अपनी वीरता का लोहा  मनवाया, अतः उन्हें ‘बाबू’ (पिता या अभिभावक) की भी संज्ञा दी जाती है।    

      भारत के इतिहास कुँवर सिंह जैसे व्यक्तित्व नहीं मिलते हैं। आज भी उन की जीवनी हमें देशभक्ति, साम्प्रदायिक एकता और परहित की ओर प्रेरित करती है। उन के राज्य में सभी धर्मों और जातियों को समान अधिकार मिले हुए थे। उन्होंने विलासिता के बीच भी देशभक्ति और व्यक्तिगत खुशी के बीच भी परहित को प्रश्रय दिया। उन्होंने अपनी प्रेमिका धरमन के नाम पर आरा में ‘धरमन मस्जिद’ बनवायी जहाँ आज भी मुसलमान नमाज अदा करते हैं और कुँवर सिंह की साम्प्रदायिंक सौहार्द को बढ़ावा देने की भूमिका को सराहते हैं। धरमन की बहन करमन के नाम पर उन्होंने एक गाँव बसाया जो आज भी ‘करमन टोला’ के नाम से प्रसिद्ध है। धरमन और करमन केवल नृत्यांगना ही नहीं वीरांगना भी थीं। दोनों ने १८५७ ईस्वी के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में कुँवर सिंह की सेना में शामिल होकर बहादुरी के साथ लड़ी और वीरगति को प्राप्त हुईं।

      विजयोत्सव के तीन दिनों बाद २६ अप्रील १८५८ ईस्वी को वीर बाबू कुँवर सिंह ने युद्ध, उन्माद और प्रतिशोध की इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। 

      इस आलेख में तो अति संक्षिप्त रूप से ही वीर बाबू कुँवर सिंह के व्यक्तित्व व कृतित्व को रेखांकित करने का प्रयास मैं ने किया। पर, इस बात का अफसोस है कि भारतीय इतिहासकारों ने महाराणा प्रताप और शिवाजी की तरह ही प्रथम स्वाधीनता संग्राम के प्रमुख सेनानी बाबू कुँवर सिंह के साथ भी घोर अन्याय किया है। कुँवर सिंह और उन के परिजनों के बलिदान के अलावा धरमन और करमन जैसी वीरांगनाओं को भी इतिहासकारों ने नकारने का कुत्सित प्रयास किया है। हर भारतवासी उन्हें श्रद्धा से स्मरण करे और संघर्ष करते हुए आगे बढ़ने की प्रेरणा ले। 

      अन्त में कवि मनोरंजन प्रसाद सिंह की कविता याद हो आयी-

उधर खड़ी थी लक्ष्मीबाई और पेशवा नाना था।

इधर बिहारी वीर बाँकुड़ा खड़ा हुआ मस्ताना था।।

अस्सी वर्षों की हड्डी में जागा जोश पुराना था।

सब कहते हैं कुँवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था।

बुधवार, 30 मार्च 2022

नववर्ष २०७९ विक्रम सम्वत् का आरम्भ २ अप्रैल को New Vikram Samvat 2079 From April 2, 2022

 -शीतांशु कुमार सहाय

विक्रम सम्वत् २०७९ चैत्र शुक्ल पक्ष प्रथमा (२ अप्रैल २०२२) को आरम्भ हो रहा है। विश्वभर में सनातनधर्मी इसी सम्वत् के आधार पर अपना पर्व-त्योहार मनाते हैं। यह सम्वत् चाँद की दिशा व दशा के आधार पर दिन-तिथि निर्धारित करता है। ग्रन्थों की बात मानें तो चैत्र शुक्ल पक्ष प्रथमा के दिन ही आदिशक्ति के आदेश से ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना आरम्भ की थी। भारतीय दर्शन में सृष्टि की उत्पत्ति आदिशक्ति से मानी जाती है। उन्होंने अपने रूप को जल, स्थल और वायु के साथ-साथ समस्त देवी-देवताओं, मानव व अन्य जीव-जन्तुओं की करोड़ों श्रेणियों में विभक्त किया। आदिशक्ति ने ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति की और ब्रह्माण्ड के कण-कण में वह स्वयं ही विभिन्न रूपों में विद्यमान हैं।
सर्वप्रथम आदिशक्ति ने नीरव शान्ति और भयंकर अन्धेरे के बीच अपने शब्द-स्वरूप ‘ऊँ’ को प्रकट किया जिससे नीली रश्मि उत्पन्न हुई और सर्वत्र ऊँ व्याप्त हो गया। ऊँ के नाद (स्वर) से ब्रह्माण्ड में उथल-पुथल हुई तो गति उत्पन्न हुई और विभिन्न वायु प्रकट हुए। यों सर्वत्र जल-ही-जल दिखायी देने लगा। तब आदिशक्ति ने नारायण (विष्णु) का पुरुषस्वरूप धारण किया। विष्णु के नाभि से एक कमल प्रकट हुआ जिससे ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई।
आदिदेव ब्रह्मा को आदिशक्ति ने सृष्टि का आदेश दिया। ब्रह्मा ने चारों ओर मुख घुमाकर ब्रह्माण्ड की व्यापकता का दर्शन किया तो उनके चार मुख हो गये। उन्होंने अपने अस्तित्व पर विचार करना और अपनी उत्पत्ति वाले स्थान के अन्वेषण में बहुत समय व्यतीत किया पर पता न चला तो तपस्या में लीन हो गये। सौ दिव्य वर्षों तक तपश्चर्या के दौरान उन्हें अन्तःकरण में दिव्य प्रकाश दिखायी दिया। साथ ही नारायण का दर्शन भी प्राप्त हुआ। नारायण ने उन्हें सृष्टि की रचना के लिए उत्प्रेरित किया। सभी मित्रों को भारतीय नववर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएँ!
भारतीय नववर्ष का ऐतिहासिक महत्व---
१. यह दिन सृष्टि रचना का पहला दिन है। इस दिन से एक अरब ९७ करोड़ ३९ लाख ४९ हजार ११७ वर्ष पूर्व इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्माजी ने जगत की रचना प्रारंभ की।
२. विक्रम सम्वत् का पहला दिन : उसी राजा के नाम पर संवत् प्रारंभ होता था जिसके राज्य में न कोई चोर हो, न अपराधी हो, और न ही कोई भिखारी हो। साथ ही राजा चक्रवर्ती सम्राट भी हो। सम्राट विक्रमादित्य ने २०७९ वर्ष पहले इसी दिन राज्य स्थापित किया था।
३. प्रभु श्री राम का राज्याभिषेक दिवस : प्रभु राम ने भी इसी दिन को लंका विजय के बाद अयोध्या में राज्याभिषेक के लिये चुना।
४. नवरात्र स्थापना : शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात् नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है। प्रभु राम के जन्मदिन रामनवमी से पूर्व नौ दिन उत्सव मनाने का प्रथम दिन।
५. गुरु अंगददेव प्रगटोत्सव : सिक्ख परंपरा के द्वितीय गुरु का जन्म दिवस।
६. समाज को श्रेष्ठ मार्ग पर ले जाने हेतु स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन को आर्य समाज स्थापना दिवस के रूप में चुना।
७. संत झूलेलाल जन्म दिवस : सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार संत झूलेलाल इसी दिन प्रगट हुए।
८. शालिवाहन संवत्सर का प्रारंभ दिवस : विक्रमादित्य की भांति शालिनवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना।
९. युगाब्द संवत्सर का प्रथम दिन : ५११२ वर्ष पूर्व युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ।
भारतीय नववर्ष का प्राकृतिक महत्व---
१. वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है।
२. फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है।
३. नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिये यह शुभ मुहूर्त होता है।
अत: हमारा नववर्ष कई कारणों को समेटे हुए है, अत: हर्षोउल्लास के साथ नववर्ष  मनायें और दूसरो को भी मनाने के लिए प्रेरित करें।

शुक्रवार, 11 मार्च 2022

उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में किसे मिली कितनी सीट Final Voting Results From Utter Pradesh, Uttarakhand, Punjab, Goa & Manipur


- शीतांशु कुमार सहाय
   यहाँ जानिये कि विभिन्न चरणों में गत दिनों पाँच राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में हुए विधानसभा आम निर्वाचन के परिणाम में किन राजनीतिक दलों को कितने निर्वाचन क्षेत्रों में जीत मिली--

उत्तर प्रदेश 

१) भारतीय जनता पार्टी : भाजपा को कुल २७४ क्षेत्रों में जीत मिली और पिछली बार (२०१७) से ४८ सीट कम हो गयी।  

२) समाजवादी पार्टी गठबन्धन : पिछली बार से ७२ सीट अधिक मिली और कुल १२४ क्षेत्रों में विजय मिली। 

३) काँग्रेस : केवल २ क्षेत्रों की जनता ने काँग्रेस में आस्था दिखायी। वर्ष २०१७ की अपेक्षा ५ सीट का नुकसान हुआ है। 

४) बहुजन समाज पार्टी : २०१७ की अपेक्षा १८ सीट कम हो गयी और एकमात्र सीट पर जीत मिली। 

उत्तराखण्ड :

१) भारतीय जनता पार्टी : वर्ष २०१७ में हुए विधानसभा आम निर्वाचन की अपेक्षा ९ क्षेत्रों की कमी हुई। ४८ सीट पर जीत मिली। 

२) काँग्रेस : पिछली बार से ७ सीट बढ़ गयी। कुल १८ क्षेत्रों में जीत मिली। 

३) बहुजन समाज पार्टी : पहली बार खाता खुला और २ क्षेत्रों में जीत मिली। 

पंजाब :

१) आम आदमी पार्टी : २०१७ में हुए पिछले विधानसभा आम निर्वाचन से इस बार ७२ सीट अधिक मिले। आप को कुल ९२ क्षेत्रों में जीत मिली। 

२) काँग्रेस : कुल १८ क्षेत्रों में जीत मिली और पिछली बार से ५९ सीट कम हो गयी। 

३) शिरोमणि अकाली दल : केवल ४ नेता विधानसभा के लिए चुने गये। पिछली बार से ११ विधायक कम हो गये।

४) भारतीय जनता पार्टी : वर्ष २०१७ की अपेक्षा एक सीट का नुकसान हुआ है और मात्र २ क्षेत्रों में जीत मिली है। 

गोवा : 

१) भारतीय जनता पार्टी : पिछले विधानसभा आम निर्वाचन के परिणाम से ७ सीट का मुनाफा हुआ। २० क्षेत्रों में जीत मिली। 

२) काँग्रेस : पिछली बार से नौ सीट कम हो गयी और ११ प्रत्याशी जीते।

३) आम आदमी पार्टी : पार्टी का खाता खुला और २ क्षेत्रों में जीत मिली। 

४) एमजीपी : एक सीट का नुकसान हुआ है और मात्र दो सीट पर जीत मिली। 

मणिपुर :

१) भारतीय जनता पार्टी : वर्ष २०१७ के विधानसभा आम निर्वाचन के परिणाम से इस बार ११ अधिक सीट पर जीत मिली। कुल ३२ क्षेत्रों में जीत मिली। 

२) एनपीपी : इस दल को पिछले विधानसभा आम निर्वाचन के परिणाम से ४ सीट अधिक मिले और कुल ७ प्रत्याशी जीते। 

३) जनता दल यूनाइटेड : राज्य में इस दल का खाता खुला और ६ क्षेत्रों में जीत मिली। 

४) काँग्रेस : पिछली बार से २३ सीट कम हो गयी और केवल ५ क्षेत्रों में जीत मिली। 

 

गुरुवार, 10 मार्च 2022

दुबारा मुख्यमंत्री बन कई कीर्तिमान बनायेंगे योगी आदित्यनाथ Yogi Adityanath Will Make Many Records By Becoming The Chief Minister Again In Utter Pradesh

अपने कार्यालय में योगी आदित्यनाथ

 

-शीतांशु कुमार सहाय

       उत्तर प्रदेश में एक बार फिर से भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने रही है। मुख्यमंत्री फिर से भाजपा के दिग्गज नेता योगी आदित्यनाथ बनेंगे और कई मिथकों को तोड़ेंगे। 

नोएडा का मिथक तोड़ेंगे 

       उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक मिथक हमेशा से चर्चा में रहा है कि जो भी मुख्यमंत्री अपने कार्यकाल के दौरान नोएडा जाता है, उस की कुर्सी अगले चुनाव में चली जाती है। नोएडा से जुड़े इस अंधविश्वास का खौफ नेताओं में इतना अधिक रहा है कि अखिलेश यादव बतौर मुख्यमंत्री एक बार भी नोएडा नहीं गये। उन से पहले उन के पिता मुलायम सिंह यादव, नारायण दत्त तिवारी, कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह जैसे नेताओं ने भी नोएडा से दूरी बनाये रखी। 

       वर्ष २००७ से २०१२ के बीच मायावती ने इस मिथक को तोड़ने के लिए दो बार नोएडा गईं। परिणाम यह हुआ कि वर्ष २०१२ में उन की सरकार गिर जाने के बाद नोएडा का ये मिथक फिर चर्चा में आ गया। 

      वर्ष २०१७ में पहली बार मुख्यमंत्री बनकर भाजपा के योगी आदित्यनाथ अपने कार्यकाल के दौरान कई बार नोएडा गये। इस के बावजूद उन पर नोएडा वाले अन्धविश्वास का असर नहीं हुआ और वह उत्तर प्रदेश के लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। मतलब यह कि अब नोएडा वाला मिथक भी टूट गया है।

लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बनेंगे योगी

       आज़ादी के बाद से उत्तर प्रदेश में अब तक कोई भी मुख्यमंत्री पाँच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद अगले चुनावी नतीजों के उपरान्त मुख्यमंत्री नहीं बन पाया। लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बनकर योगी आदित्यनाथ यह कीर्तिमान भी अपने नाम कर लेंगे।

अविवाहित मुख्यमंत्री 

       योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के पहले अविवाहित मुख्यमंत्री हैं, जो लगातार दुबारा मुख्यमंत्री के पद पर बैठेंगे। प्रदेश में विधि-व्यवस्था ठीक करने और विकास के नये कीर्तिमान बनाने के कारण ही जनता ने सत्ता की बागडोर उन्हें सौंपी। 

प्रथम संन्यासी मुख्यमंत्री 

       योगी आदित्यनाथ से पहले भारत के किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री के पद पर कोई संन्यासी नहीं बैठा था। यह कीर्तिमान भी योगी के नाम है।