मंगलवार, 19 जून 2018

योगः कर्मसु कौशलम्

''योगः कर्मसु कौशलम् । प्रत्येक कार्य में कुशलता और प्रवीणता के लिए योग का अनुसरण अनिवार्य है। प्रतिदिन योग किया जाय तो शारीरिक और मानसिक व्याधियों से आसानी से मुक्ति मिलेगी और सभी तरह के कर्म करने में व्यापक सुधार आयेगा जिसे भगवान ने गीता में कर्म में कुशलता कहा है। योग को दिनचर्या का अंग बनायें तो यह जीवन का आधार बन जायेगा।''

-शीतांशु कुमार सहाय की योग की एक पुस्तक से।

योग से अचेतन की शक्ति का लाभ लें

 
''प्रत्येक मनुष्य को प्राकृतिक रूप से अचेतन की अपरिमित शक्ति मिली हुई है। योग के अलावा कोई अन्य साधन है ही नहीं जो इस अपरम्पार सामर्थ्य का प्रतिलाभ दे सके। अतः योग को दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बनाएँ और आनन्द का अनुभव करें।''
-शीतांशु कुमार सहाय, (योग विशेषज्ञ) की पुस्तक से।



गुरुवार, 7 जून 2018

ताम्बे से बनते हैं कई मिश्रधातु / Many Alloys are Made with Copper

-शीतांशु कुमार सहाय 
ताम्बे को विभिन्न धातुओं में मिलाकर अलग-अलग प्रकार के मिश्रधातुओं का निर्माण किया जाता है। ऐसे कुछ मिश्रधातुओं के बारे में आप भी जानिये--    
पीतल (Brass) : इस में ताँबा 73-66 तथा जस्ता 27-34 प्रतिशत तक होता है। पीतल का उपयोग चादर, नली तथा बरतन बनाने में होता है।
काँसा या घंटा धातु (Bronze or Bell metal) : इस में ताँबा और टिन की मात्रा क्रमश: 75-80 प्रतिशत और 25-20 प्रतिशत तक होती है। काँसा से घंटे आदि बनते हैं।
ऐल्युमिनियम-पीतल (Aluminimum-brass) : इस के संगठन में ताँबा, जस्ता और ऐल्युमिनियम हैं, जो क्रमश: 71-55, 26-42 तथा 1-6 प्रतिशत तक होते हैं। ऐल्युमिनियम-पीतल का उपयोग पानी के जहाजों तथा वायुयान के नोदकों (propeller) के निर्माण में होता है।
ऐल्युमिनियम-काँसा (Aluminimum-bronze) : इस में ताँबा 99-89 तथा ऐल्युमिनियम 1-11 प्रतिशत तक होता है। यह अति कठोर तथा संक्षारण अवरोधक होता है। ऐल्युमिनियम-काँसा के बरतन बनते हैं।
बबिट (Babit) धातु : इस में टिन, ऐंटीमनी तथा ताँबा की मात्रा क्रमश: 89 प्रतिशत, 7.3 प्रतिशत तथा 3.7 प्रतिशत होती है। बबिट का मुख्य उपयोग बॉल बियरिंग बनाने में होता है।
कॉन्स्टैंटेन (Constantan) : इस में तांबा 60-45, निकल 40-55, मैगनीज 0-1.4, कार्बन 0.1 प्रतिशत तथा शेष लोहा होता है। कॉन्स्टैंटेन का उपयोग वैद्युत-तापमापक यंत्रों तथा ताप वैद्युत-युग्म (thermocouple) बनाने में होता है, क्योंकि यह विद्युत्‌ का प्रबल प्रतिरोधक होता है।
डेल्टा धातु (Delta metal) : इस में ताँबा 54-56, जस्ता 40-44, लोहा 0.9-1.3, मैंगनीज 0.8-1.4 और सीसा 0.4-1.8 प्रतिशत तक होता है। यह मृदु इस्पात के समान मजबूत है, किंतु उस की तरह सरलता से जंग खाकर नष्ट नहीं होती। डेल्टा धातु का उपयोग पानी के जहाज बनाने में होता है।
जर्मन सिल्वर : इस में ताँबा 55, जस्ता 25 और निकल 20 प्रतिशत होता है। कुछ वस्तुओं को बनाने में चाँदी के स्थान पर जर्मन सिल्वर का उपयोग करते हैं, क्योंकि इस से बनी वस्तुएँ चाँदी के समान ही होती हैं।
गन मेटल (Gun metal) : इस में ताँबा ७१-९५, टिन ०-११, सीसा ०-१३, जस्ता ०-५ तथा लोहा ०-१.४ प्रतिशत तक होता है। इस से बटन, बिल्ले, थालियाँ तथा दाँतीदार चक्र (gear) बनाए जाते हैं।
पर्मलॉय (Permalloy) : इस में निकल 78, लोहा 21, कोबल्ट 0.4 प्रतिशत तथा शेष मैगनीज, ताँबा, कार्बन, गंधक और सिलिकन होते हैं। इस से टेलीफोन के तार बनाये जाते हैं।
टिन की पन्नी (Tin foil) : इस में टिन 88, सीसा 8, ताँबा 4 और ऐंटिमनी 0.5 प्रतिशत होते हैं। यह पन्नी सिगरेट और खाद्य वस्तुओं को सुरक्षित रखने के लिए उन के ऊपर लपेटी जाती है।
डच मेटल (Dutch metal) : इस में ताम्बा 80 प्रतिशत और जस्ता 20 प्रतिशत होता है।
मोनल धातु (Monal metal) : इस में ताम्बा 27 प्रतिशत, निकिल 70 प्रतिशत और लोहा 3 प्रतिशत होता है।

ताम्बे के बर्तन का पूजा में उपयोग कब से / Use of Copper Utensils in Worship


-शीतांशु कुमार सहाय 
अधिकतर धार्मिक कार्यों में या पूजा-पाठ में ताम्बे के पात्रों का ही उपयोग किया जाता है। यह वैज्ञानिक रूप से अत्यन्त शुद्ध धातु माना जाता है। इस के अलावा ताम्बा और टिन मिलाकर काँसा तथा ताम्बा और जस्ता मिलाकर बनाये गये पीतल धातु से निर्मित पात्रों का भी धर्म-कर्म में प्रयोग होता है। सनातन धर्म यानी हिंदू धर्म में भगवान की पूजा से संबंधित अनेक नियम हैं। उन में से एक यह भी है कि पूजा के पात्र यानी बर्तन ताम्बे के होने चाहिये। पूजा में ताम्बे के बर्तनों के उपयोग से सम्बन्धित कथा का वर्णन 'वराहपुराण' में मिलता है।
सृष्टि के आरम्भिक काल में गुडाकेश नाम का एक असुर हुआ था। वह भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। 'गुडाका' का अर्थ है नींद और जो नींद को जीत लेता है वह 'गुडाकेश' है। नींद का अर्थ अज्ञान भी है। द्वापर युग में अर्जुन ने कृष्ण की मित्रता के कारण नींद तथा अज्ञान दोनों पर विजय प्राप्त की थी, अतः अर्जुन को 'गुडाकेश' कहा गया। 
असुर गुडाकेश ने भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की। वह ताम्बे का शरीर धारण कर १४ हज़ार वर्ष तक पूरी श्रद्धा और विश्वास से भगवान विष्णु की आराधना करता रहा। उस की कठिन तपस्‍या से संतुष्‍ट होकर भगवान विष्णु प्रसन्न होकर प्रकट हुए और वरदान माँगने को कहा।
भगवान को देखकर गुडाकेश अत्यन्त आनन्दित हुआ। पीताम्‍बर भगवान विष्णु शंख, चक्र और गदा से युक्त चतुर्भुज रूप में प्रकट हुए थे। वह अतिशय रोमांचित होकर भगवान के चरणों पर वह गिर पड़ा। उस के नेत्र हर्ष के आँसू से भींग गये, हृदय आह्लाद से भर गया, गला रुँध गया और वह कुछ भी नहीं बोल पा रहा था। कुछ देर पश्चात शरीर व मन को स्थिर कर हाथ जोड़कर नतमस्तक हो भगवान के सम्मुख खड़ा हो पाया। भगवान ने कहा, "निष्‍पाप गुडाकेश! तुम ने कर्म, मन और वाणी से जिस वस्‍तु को वांछनीय समझा हो, जो तुम्‍हें अच्‍छी लगती हो, माँग लो। मैं आज तुम्‍हें सब कुछ दे सकता हूँ।"
कमलनयन भगवान विष्णु की बात सुनकर गुडाकेश ने कहा, "भगवान! यदि आप मुझ पर पूर्ण रूप से प्रसन्‍न हैं तो ऐसी कृपा करें कि मैं जहाँ-जहाँ जन्‍म लूँ, प्रत्येक जन्‍म में आप के चरणों में ही मेरी आस्था व भक्ति बनी रहे। आप के हाथ से छोड़े गये चक्र से ही मेरी मृत्‍यु हो और जब चक्र से मैं मारा जाऊँ, तब मेरे मांस, मज्‍जा आदि अत्‍यन्‍त पवित्र ताम्बे के रूप में परिवर्तित हो जायें।" गुडाकेश ने यह भी वरदान माँग लिया कि ताम्बे के पात्र में भोग लगाने से भगवान प्रसन्‍न होंगे। इस तरह मरने के बाद भी गुडाकेश का शरीर भगवान के ही काम में आ रहा है। 
भक्तवत्सल भगवान ने गुडाकेश की प्रार्थना स्‍वीकार की और कहा कि वैशाख शुक्‍ल द्वादशी के दिन चक्र के माध्यम से उसे मुक्ति मिलेगी। यह वचन देकर भगवान अंतर्ध्यान हो गये। 
मुक्ति की तिथि वैशाख शुक्‍ल द्वादशी की प्रतीक्षा में गुडाकेश पुनः तपस्‍या करने लगा। तिथि आ गयी। वह उत्‍साह के साथ भगवान की प्रार्थना करने लगा, "हे प्रभु! शीघ्रातिशीघ्र धधकती अग्नि के समान जाज्‍वल्‍यमान चक्र मुझ पर छोड़ें, अब विलम्‍ब न करें। हे नाथ! मेरे शरीर को टुकड़े-टुकड़े कर मुझे शीघ्र ही अपने चरणों की सन्निधि में बुला लें।" 
भक्त की सच्‍ची प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने शीघ्र ही चक्र से गुडाकेश के शरीर को टुकड़े-टुकड़े कर अपने धाम वैकुण्ठ में बुला लिया। प्‍यारे भक्त के शरीर का अंश होने के कारण भगवान को आज भी ताम्बा प्रिय है। गुडाकेश के मांस से ताम्बा, रक्त से सोना, हड्डियों से चाँदी का निर्माण हुआ। यही कारण है कि भगवान की पूजा में हमेशा ताम्बे के बर्तनों का उपयोग किया जाता है। 

साथ ही ताम्बे के दो मिश्रधातुओं (पीतल व काँसा) का उपयोग भी धार्मिक कार्यों में होता है। पीतल में ताँबा 73-66 तथा जस्ता 27-34 प्रतिशत तक होता है। काँसा में ताँबा और टिन की मात्रा क्रमश: 75-80 प्रतिशत और 25-20 प्रतिशत तक होती है।