गुरुवार, 19 दिसंबर 2019

सावधान! आप की हर डिजिटल गतिविधि पर सरकार की नज़र #NATGRID #NationalInte...


रहिये सावधान, मत कीजिये ग़लत हरकत। इस वीडियो बुलेटिन में आप जानेंगे कि भारत में रहनेवाले लोग और भारत में आनेवाले विदेशियों की प्रत्येक डिजिटल गतिविधि पर सरकार और खुफिया व सुरक्षा एजेंसियों की पैनी नज़र होगी।

गुरुवार, 12 दिसंबर 2019

नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड आतंकियों की कमर तोड़ देगा, हर गलत हरकत पर नज़र National Intelligence Grid will Break the Backbone of Terrorists, Track Every Wrong Act

-शीतांशु कुमार सहाय
दुनिया के कई विकसित देशों में खुफिया एजेंसियाँ इलेक्ट्रोनिक इण्टीग्रेटेड सिस्टम या डिजिटल तकनीक की मदद से देश के अंदर होनेवाली सभी गतिविधियों पर नज़र रखती हैं। भारत में भी सुरक्षा एजेंसियों के लिए इस तरह के सिस्टम की लम्बे समय से ज़रूरत महसूस की जा रही थी, जो जनवरी २०२० तक पूरी हो जायेगी। सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड यानी नेटग्रिड भारत के भीतर आतंकियों की कमर तोड़ देगा। इस के बाद आतंकियों के लिए अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देना लगभग नामुमकिन हो जायेगा।

नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड यानी नेटग्रिड का वीडियो इस लिंक पर देखें 
शीतांशु टीवी

नेटग्रिड कैसे काम करेगा ?

खुफिया इनपुट का विश्लेषण करने के लिए नेटग्रिड के पास देश में आनेवाले और यहाँ से दूसरे देश जानेवाले हर देसी-विदेशी व्यक्ति का पूरा डाटा उपलब्ध होगा। बैंकिंग और वित्तीय लेन-देन, इमिग्रेशन, कार्ड से खरीददारी, ऑनलाइन शॉपिंग, मोबाइल या फोन कॉल, सोशल मीडिया प्रोफाइल, इण्टरनेट सर्च, व्यक्तिगत करदाता, हवाई यात्रियों और रेल यात्रियों का रीयल टाइम डाटा भी नेटग्रिड की पहुँच में होगा। इस की मदद से सुरक्षा एजेंसियाँ हर संदिग्ध हरकत पर २४ घण्टे नज़र रख सकेंगी। नेटग्रिड सभी तरह के डाटा का एनालिसिस कर, उन्हें खुफिया एजेंसियों तक पहुँचायेगा। सन्दिग्ध गतिविधियों के बाबत नेटग्रिड सुरक्षा एजेंसियों को अलर्ट करेगा।

  यह 3400 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट है

केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार, नेटग्रिड ३,४०० करोड़ रुपये की परियोजना है। इस के दो केन्द्र होंगे। पहला केन्द्र बेंगलुरू में होगा जहाँ डाटा रिकवरी किया जायेगा। दूसरा केन्द्र दिल्ली में होगा जो मुख्यालय के रूप में कार्य करेगा। दोनो केन्द्रों के निर्माण कार्य पूरे कर लिये गये हैं। जनवरी २०२० से नेटग्रिड काम करना शुरू कर देगा। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हाल में इस प्रोजेक्ट की प्रगति की समीक्षा की है, इस के बाद से इस के काम में और तेजी आ गयी है।

नेटग्रिड में 1000 संगठनों का डाटा होगा

नेटग्रिड के डाटा का काम तेजी से पूरा किया जा रहा है। आयकर विभाग के लगभग सभी करदाताओं के डाटा नेटग्रिड प्रबंधन को प्राप्त हो चुके हैं। इस के अलावा नागर विमानन मंत्रालय और सभी निजी एयरलाइंस कंपनियों से भी डाटा उपलब्ध कर लिया गया है। पहले चरण में नेटग्रिड से १० एजेंसियों और २० सेवा प्रदाताओं का डाटा जोड़ा गया है। आनेवाले वर्षों में करीब १००० अन्य संगठनों के गोपनीय डाटा को नेटग्रिड से जोड़ने की योजना है। फिलहाल, बैंकिंग लेन-देन और इमिग्रेशन का डाटा नेटग्रिड पर रियल टाइम मैकेनिज्म के तहत सुरक्षा एजेंसियों को उपलब्ध कराया जायेगा।

10 सुरक्षा एजेंसियों को मिलेगा डाटा

नेटग्रिड का रियल टाइम डाटा देश की १० सुरक्षा एजेंसियों को मिलेगा। इन में इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB), रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW), केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI), प्रवर्तन निदेशालय (ED), डीआइआइ (DII), फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट (FIU), सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टेक्सेशन (CBDT), सेंट्रल बोर्ड ऑफ इनडायरेक्ट टैक्सेस एंड कस्टम्स (CBIC), डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सेंट्रल एक्साइस इंटेलिजेंस (DGCEI) और नारकोटिक्स कण्ट्रोल ब्यूरो (NCB) शामिल हैं।

राज्य को नहीं मिलेगा डाटा

नेटग्रिड के पास देश के आम और खास हर वर्ग के नागरिक का डाटा मौजूद रहेगा। ऐसे में इसकी सुरक्षा सुनिश्चित करना भी बेहद महत्त्वपूर्ण है। लिहाजा राज्यों की सुरक्षा इकाइयों को सीधे डाटा उपलब्ध नहीं कराया जायेगा। राज्य की जाँच और सुरक्षा एजेंसियों को उन १० केंद्रीय एजेंसियों की मदद से ही डाटा प्राप्त करना होगा, जिन्हें नेटग्रिड में एक्सेस दिया गया है।

            काँग्रेस सरकार ने बनायी थी योजना

नेटग्रिड की योजना सन् २००८ ईस्वी के मुंबई आतंकी हमले के बाद बनी थी। उस हमले में १६६ लोग को जान गंवानी पड़ी थी। लश्कर-ए-तैयबा ने ये आतंकी हमला पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी आतंकी डेविड हेडली के फोटो-वीडियो इनपुट के आधार पर अंजाम दिया था। डेविड हेडली ने इस आतंकी हमले को अंजाम देने के लिए वर्ष २००६ ईस्वी से २००८ ईस्वी के बीच कई बार भारत की यात्रा की और इस दौरान आतंकियों के घुसपैठ और हमले के संभावित ठिकानों की रेकी कर उन की फोटो और वीडियो बनायी थी। उस वक्त खुफिया एजेंसियों के पास नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड यानी नेटग्रिड जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी, जिस वजह से हेडली की संदिग्ध गतिविधियों के बारे में खुफिया एजेंसियों को कोई जानकारी नहीं मिल सकी थी। मुंबई हमले के बाद काँग्रेस के नेतृत्ववाली सन्युक्त प्रगतिशील गठबन्धन यानी यूपीए की सरकार ने ८ अप्रैल २०१० ईस्वी को नेटग्रिड योजना को मंजूरी प्रदान की थी। २०१२ ईस्वी तक इस के गठन का काम केवल फाइलों में चलता रहा। 

           नरेंद्र मोदी ने शुरू करायी योजना

      २०१४ ईस्वी में केंद्र में सरकार बनानेवाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने १० जून २०१६ ईस्वी को एक बैठक कर इस योजना पर दुबारा काम शुरू करने का निर्देश दिया था। इस तरह ३,४०० करोड़ रुपये की नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड यानी नेटग्रिड का अनमोल उपहार भारतवासियों को प्राप्त हो रहा है।

शनिवार, 23 नवंबर 2019

वैद्यनाथधाम मंदिर के शीर्ष पर होता है पंचशूल VAIDYANATHDHAM & PANCHSHOOL


शीतांशु कुमार सहाय SHEETANSHU KUMAR SAHAY


भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में झारखण्ड के देवघर जिले में स्थित वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग शामिल है। विश्व के सभी शिव मंदिरों के शीर्ष पर त्रिशूल लगा दीखता है मगर वैद्यनाथधाम परिसर के शिव, पार्वती, लक्ष्मी-नारायण व अन्य सभी मंदिरों के शीर्ष पर पंचशूल लगे हैं। 

कहा जाता है कि रावण पंचशूल से ही अपने राज्य लंका की सुरक्षा करता था। चूंकि वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को लंका ले जाने के लिए कैलाश से रावण ही लेकर आया था पर विणाता को कुछ और ही मंजूर था। ज्योतिर्लिंग ले जाने की शर्त्त यह थी कि बीच में इसे कहीं नहीं रखना है मगर देव योग से रावण को लघुशंका का तीव्र वेग असहनशील हो गया और वह ज्योतिर्लिंग को भगवान के बदले हुए चरवाहे के रूप को ज्योतिर्लिंग देकर लघुशंका करने लगा। वह चरवाहा ज्योतिर्लिंग को जमीन पर रख दिया। इस तरह चरवाहे के नाम वैद्यनाथ पर वैद्यनाथधाम का निर्माण हुआ।

यहाँ प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि से 2 दिनों पूर्व बाबा मंदिर, माँ पार्वती व लक्ष्मी-नारायण के मंदिरों से पंचशूल उतारे जाते हैं। इस दौरान पंचशूल को स्पर्श करने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। जैसा कि नीचे के चित्रों में आपको दिखाई पड़ेगा। 

वैद्यनाथधाम परिसर में स्थित अन्य मंदिरों के शीर्ष पर स्थित पंचशूलों को महाशिवरात्रि के कुछ दिनों पूर्व ही उतार लिया जाता है। सभी पंचशूलों को नीचे लाकर महाशिवरात्रि से एक दिन पूर्व विशेष रूप से उनकी पूजा की जाती है और तब सभी पंचशूलों को मंदिरों पर यथा स्थान स्थापित कर दिया जाता है। इस दौरान बाबा व पार्वती मंदिरों के गठबंधन को हटा दिया जाता है। महाशिवरात्रि के दिन नया गठबंधन किया जाता है। गठबंधन के लाल पवित्र कपड़े को प्राप्त करने के लिए भी भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। 

महाशिवरात्रि के दौरान बहुत-से श्रद्धालु सुल्तानगंज से कांवर में गंगाजल भरकर 105 किलोमीटर पैदल चलकर और ‘बोल बम’ का जयघोष करते हुए वैद्यनाथधाम पहुंचते हैं। 



















All Photographs Mahashivratri on 10 March 2013


सच्चा मित्र Real Friend

फिल्म अभिनेता राकेश पाण्डेय के साथ शीतांशु 

-शीतांशु कुमार सहाय
सच्चा मित्र आप के अहंकार की परवाह किये बगैर आप को टोकेगा ज़रूर, जब भी आप को गलत राह पर चलता हुआ पायेगा। सच्चा मित्र कभी आप के साथ उस कर्म में खड़ा हुआ नहीं दिखायी देगा जो कर्म मानवता के बुनियादी उसूलों के खिलाफ जाते हों। आप को चाहे कितना बुरा लगे, वह इस बात की परवाह किये बिना ही आप को सत्य मार्ग पर चलने के लिये प्रेरित करेगा। वह आप को गलत कर्म को करने के लिए साथ होने की ऊर्जा नहीं देगा। सच्चा मित्र तो बहुत बार आप के विरोध में खड़ा दिखायी देगा; क्योंकि वह कटिबद्ध है आप को गलत मार्ग पर चलने से रोकने के लिए।


सोमवार, 18 नवंबर 2019

नींद की अधिकता और मधुमेह के बीच गहरा रिश्ता Deep Relationship Between Excess Sleeping And Diabetes

-शीतांशु कुमार सहाय
     अधिकतर रोग हमारी गलत आदत के कारण होते हैं। यदि आदतों को सुधार लिया जाय तो कई घातक व्याधियों से सुरक्षित रह सकते हैं। सामान्य व्यक्ति के लिए आठ घंटे तक की नींद पर्याप्त मानी जाती है। आठ घंटे से ज्यादा नींद लेना, भविष्य में कई स्वास्थ्य समस्याओं को भी बुलावा देती है। मधुमेह (डायबिटीज), हृदयरोग (हर्ट डिसीज), मोटापे और अल्पायु के लिए भी अधिक सोना (ओवर स्लीपिंग) जिम्मेदार हो सकती है।
   अमेरिका में हु अध्ययन में करीब नौ हज़ार लोग को शामिल किया गया। इस में कहा गया है कि सोने के समय पर कई पहलू निर्धारित होते हैं। अध्ययन के अनुसार नींद की अधिकता और डायबिटीज के बीच गहरा रिश्ता है। जो रोजाना नौ या इस से अधिक घंटे की नींद लेते हैं उन में डायबिटीज की आशंका सात घंटे नींद लेने वालों की तुलना में ५० प्रतिशत अधिक होती है। शोध में खुलासा किया गया है कि सामान्य से अधिक नींद शरीर के वजन को अनियंत्रित कर सकती है। 
     अमेरिकी शोधकर्ताओं के अनुसार जो रोजाना ९ से १० घंटे की नींद लेते हैं, उन में मोटापे की समस्या ७ से ८ घंटे की नींद लेने वालों की तुलना में २१ प्रतिशत अधिक होती है। योग-व्यायाम में लापरवाही, शारीरिक गतिशीलता की कमी और अधिक सोने के कारण पाचन की क्रिया ठीक से नहीं हो पाती है, इसलिए वजन बढ़ना स्वाभाविक है। 
     मोटापा बढ़ने के साथ ही अन्य बीमारियों के होने की आशंका बढ़ जाती है। हार्ट डिसीज, पीठ और कमर दर्द, घुटने का दर्द सहित अन्य परेशानियां हो सकती हैं। कई लोग वीकेंड या छुट्टी होने पर अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक नींद लेना पसंद करते हैं। इस कारण से भी पीड़ित को अगले दिन सिरदर्द होती है। कई बार अधिक नींद लेने की वजह से दिमाग के कुछ न्यूरोट्रांसमीटर्स और दिमाग में सक्रिय होनेवाले सेरोटॉनिन हार्मोन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।  
     दिन में अधिक नींद लेनेवालों की रात की नींद प्रभावित होती है। इस वजह से भी सुबह सिर में दर्द बना रहता है। कई लोग की शिकायत होती है कि बिस्तर पर लेटते ही पीठ में दर्द होने लगता है। यदि नियमित योग-व्यायाम के चलते पीठदर्द की शिकायत है, तो उसे तुरंत रोक दें या उस में बदलाव करें। 
     शोध के अनुसार, गहरे तनाव की स्थिति में पीड़ित को अधिक नींद आने की समस्या १५ प्रतिशत ज्यादा हो सकती है जो उस के तनाव की स्थिति को और गंभीर बना सकती है। नर्सेस हेल्थ स्टडी के मुताबिक, जो लोग रोजाना ९ से ११ घंटे की नींद लेते हैं उन में कोरोनरी हर्ट डिसीज का खतरा आठ घंटे की नींद लेनेवालों की तुलना में ३८ प्रतिशत अधिक होता है।
     नियम के अनुसार सोना और जागना हो तो ऊपर वर्णित रोगों से बचा जा सकता है। रात में नौ से दस बजे के बीच अवश्य सो जाना चाहिये।  

शुक्रवार, 8 नवंबर 2019

गुरु नानक, उन के उपदेश और करतारपुर कॉरिडोर GURU NANAK, HIS PREACHING AND KARTARPUR CORRIDOR

आशीर्वाद मुद्रा में गुरु नानक देव 
 -शीतांशु कुमार सहाय
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमर्धमस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
श्रीमद्भगवद्गीता के चौथे अध्याय के सातवें श्लोक में भगवान ने कहा है कि जब-जब धर्म की हानि होती है तब-तब मैं प्रकट होता हूँ और धर्म की रक्षा करता हूँ। कलियुग की पन्द्रहवीं सदी में भगवान ने नानक के रूप में धर्म की रक्षा के लिए अवतार लिया। 
सुधी पाठक! आप इस आलेख में जानेंगे कि गुरु नानक ने कौन-कौन से प्रमुख उपदेश दिये जो हम सब के जीवन को सकारात्मक रूप से बदलने में सक्षम हैं। यहाँ आप यह भी जानेंगे कि भारत को नानकदेव ने ‘हिन्दुस्तान’ कब और क्यों कहा? बिना स्कीप किये हुए पूरा आलेख पढ़ेंगे तो आप जान सकंेगे कि सिक्खों के प्रथम गुरु ने निराकार परमात्मा को एकमात्र किस मन्त्र से सम्बोधित किया। इन सब बातों को जानने से पहले थोड़ी चर्चा गुरु नानक की कर लेते हैं। 
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15 अप्रील सन् 1469 ईस्वी को पंजाब के तलवण्डी नाम के स्थान में नानक का जन्म हुआ था जो अब पाकिस्तान में लाहौर से करीब 120 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है। अधिकतर लोग उन का जन्म दिन कार्तिक पूर्णिमा सन् 1469 ईस्वी को मानते हैं। प्रतिवर्ष नानकदेव की जयन्ती या अवतरण दिवस के रूप में कार्तिक पूर्णिमा को ही प्रकाश पर्व मनाया जाता है। गुरु नानक के नाम पर अब तलवण्डी को ‘ननकाना’ कहा जाता है। वहाँ एक भव्य गुरुद्वारा बना है जो ‘ननकाना साहिब’ कहलाता है। 
विश्व को कल्याण का मार्ग दिखानेवाले महान सन्त नानक के पिता कल्याणचन्द थे जो मेहता कालू के नाम से भी जाने जाते थे। माता का नाम तृप्ता था। पाँच वर्ष बड़ी बहन नानकी थीं जिन के नाम के आधार पर ही इन्हें ‘नानक’ नाम दिया गया। सामान्यतः बच्चे रोते हुए जन्म लेते हैं पर नानक जन्म के समय हँस रहे थे। 
सामान्य बच्चों की तरह खेलने या पढ़ने में उन का मन नहीं लगा। बचपन से ही वे ध्यानस्थ हो जाया करते थे। न पण्डित हरदयाल उन्हें पढ़ा सके और न मौलवी कुतुबुद्दीन कोई सबक सिखा सके। ये दोनों शिक्षक बालक नानक के प्रश्नों का उत्तर देने में असमर्थ रहे।
नानक का विवाह सन् 1485 ईस्वी में बटाला की रहनेवाली कन्या सुलक्षणी (सुलक्खनी) से हुआ। इन्होंने दो पुत्रों श्रीचन्द और लक्ष्मीचन्द को जन्म दिया। दोनों सिद्ध योगी के रूप में प्रसिद्ध हुए। 
कृषि या व्यापार में नानक का मन नहीं लगा। कुछ दिनों बाद वे सुल्तानपुर में अपने बहनोई के घर चले गये और वहीं सुल्तानपुर के राजा दौलत खाँ के यहाँ नौकरी करने लगे।  
नानक प्रतिदिन बेई नदी में स्नान करते थे। एक दिन स्नान के पश्चात् नदी किनारे स्थित वन में अन्मर्ध्यान हो गये। उस दौरान परमात्मा ने उन्हें अमृत पिलाया और कहा- ‘‘मैं सदैव तुम्हारे साथ हूँ। तृम्हारे सम्पर्क में जो भी आयेगा, वह भी आनन्दित हो जायेगा। तुम दान दो और उपासना करो। मेरे नाम का कीर्तन और जप करो तथा दूसरों से भी कराओ।’’
परमात्म-दर्शन की इस घटना के पश्चात् सन् 1507 ईस्वी में नानक ने पारिवारिक जिम्मेदारी ससुर को सौंप दी और स्वयं देश-विदेश के तीर्थ-परिभ्रमण पर निकल गये। सिक्ख सम्प्रदाय में तीर्थ यात्रा को उदासी कहते हैं। नानक ने चार उदासियाँ कीं। उन्होंने धर्म रक्षार्थ प्रचार आरम्भ कर दिया और सद्मार्ग पर चलने का उपदेश दिया। 
करतारपुर में भव्य गुरुद्वारा करतारपुर साहिब 
सन् 1521 ईस्वी से जीवन के अन्तिम समय 1539 ईस्वी तक नानक करतारपुर में रहे। करतारपुर भी पाकिस्तान में ही पड़ता है। करतारपुर में भी विशाल गुरुद्वारा है, जहाँ विश्वभर से सिक्ख और अन्य धर्मों के श्रद्धालु सालोंभर आते हैं। पाकिस्तान और भारत के सम्मिलित सहयोग से करतारपुर कॉरिडोर का निर्माण हुआ है। फिलहाल करतारपुर जानेवाले भारतीय श्रद्धालुओं को 20 डॉलर का शुल्क पाकिस्तान सरकार को अदा करना पड़ता है। प्रतिदिन अधिकतम 5,000 भारतीय श्रद्धालु करतारपुर की तीर्थ यात्रा कर सकते हैं।
गुरु नानक देवजी ने जाति-पाँति को समाप्त करने और सब में समभाव प्रकट करने के लिए ‘लंगर’ की प्रथा आरम्भ की थी। लंगर में छोटे-बड़े और अमीर-ग़रीब एक ही पंक्ति में बैठकर भोजन करते हैं। आज भी गुरुद्वारों में लंगर की परम्परा जारी है। लंगर में सेवा और भक्ति का भाव मुख्य होता है।
गुरु नानक जी ने जो उपदेश दिये वे सदैव प्रासंगिक बने रहेंगे। उन्होंने कहा है- परमात्मा एक, अनन्त, सर्वशक्तिमान और सत्य हैं। वह सर्वत्र व्याप्त हैं।
नानकदेव ने मन्त्र को ‘नाम’ कहा है। भगवान के मन्त्र अर्थात् नाम का स्मरण ही सर्वाेपरि तत्त्व है और यह नाम गुरु द्वारा ही प्राप्त होता है। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान ने चौथे अध्याय के चौंतीसवें श्लोक में कहा है कि ज्ञान की बातें तत्त्वदर्शी गुरु को दण्डवत् प्रणाम और सेवा कर, उन के आगे झुककर ही प्राप्त किया जा सकता है। यही बात नानक ने भी कहा। 
नाम और गुरु की महत्ता बताने के बाद नानक कहते हैं कि परमात्मा निराकार हैं और जो भी दीख रहा है, वह सब उन का ही प्रकट रूप है, साकार रूप है। परमात्मा को उन्होंने ‘एक ओ अंकार’ (1ऊँ) अर्थात् एक मात्र ऊँकार के नाम से पुकारा है। इस ऊँकार शब्द को ही गुरु नानक ने गुरु माना है और कहा है कि इस शब्द के बिना यह विश्व पागल हो जायेगा। उन्हीं के शब्दों में-
सबदु गुरु, सुरति धुनि चेला;
सबदु गुर पीरा, गहिर गम्भीरा।
बिनु सबदै जगु बउरान। 
उन्होंने भगवान को काल से परे माना है। इसलिए भगवान को उन्होंने ‘अकाल’ कहा है। वह अकाल ही एकमात्र सत्य है। जो बोले सो निहाल सतश्री अकाल!
शिक्षा को सीख भी कहते हैं। इस तरह जिन्होंने नानकदेव की शिक्षा को माना और उन के अनुयायी बन गये, वे सिक्ख कहलाये।
सन् 1526 ईस्वी में जब बाबर ने पाँचवीं बार भारत पर आक्रमण कर दिल्ली सल्तनत के अन्तिम शासक इब्राहिम लोदी को परास्त कर मुगल राजवंश की स्थापना की और भारतीयों के सनातन धर्म-संस्कृति पर प्रहार करना आरम्भ किया तो उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए सिक्ख सम्प्रदाय की स्थापना की। उस दौरान सिक्खों के प्रथम गुरु नानक ने भारत को पहली बार ‘हिन्दुस्तान’ की संज्ञा दी। उन्होंने बाबर के हमले के सन्दर्भ में कहा था- 
खुरासान खसमाना कीआ 
हिन्दुस्तान डराईआ।
उपदेश और सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते नानक देव 
गुरु नानक की वाणी भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से ओत-प्रोत है। उन्होंने सिक्खों और समस्त श्रद्धालुओं को जीवन जीने और मोक्ष प्राप्त करने के आसान रास्ते बताये-
  • - ईश्वर एक हैं पर उन के रूप अनेक हैं। ईश्वर के अनन्त रूपों के जंजाल में उलझना नहीं चाहिये; बल्कि उन के किसी एक रूप की ही उपासना करनी चाहिये। 
  • - ईश्वर सब जगह व्याप्त हैं। वे सभी प्राणियों और निर्जीवोें में मौज़ूद हैं।  
  • - ईश्वर की भक्ति करनेवालों को किसी का भय नहीं रहता। भगवान का भक्त निर्भय हो जाता है।  
  • - ईमानदारी से मेहनत कर के ही जीवनयापन करना चाहिये। बेईमानी का धन रोग, शोक और दुःख का कारण होता है।
  • - मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से निर्धन और ज़रूरतमन्द व्यक्ति को भी कुछ दानस्वरूप देना चाहिये। 
  • - बुरा कार्य करने के बारे में कभी नहीं सोचना चाहिये और न ही किसी को सताना चाहिये। कोई आर्थिक रूप से कमजोर हो या शारीरिक रूप से, उसे सताने के बदले उस का सहयोग करना चाहिये। 
  • - सदैव प्रसन्न रहना चाहिये। जाने-अनजाने में हुई ग़लतियों के लिए ईश्वर से सदा अपने लिए क्षमा माँगनी चाहिये। हमेशा ऐसा कार्य करें जिस में ग़लतियों की सम्भावना न हो।  
  • - सभी स्त्री और पुरुष बराबर हैं। लिंग, जाति आदि किसी आधार पर भी भेदभाव नहीं करें। 
  • - शरीर को जीवित रखने के लिए भोजन आवश्यक है परन्तु स्वाद का गुलाम नहीं बनना चाहिये। रसना अर्थात् जीभ की गुलामी स्वीकार करने से शरीर रोगों का घर बन जाता है।  
  • - लोभ, लालच और धन संग्रह करने की वृत्ति यानी आदत बहुत ही बुरी है। ऐसा करने से कभी शान्ति नहीं मिलती और पारिवारिक-सामाजिक प्रतिष्ठा की क्षति होती है। 
गुरु नानकदेव जी के इन उपदेशों को अपनाकर आप भी सार्थक जीवन का आनन्द ले सकते हैं। आप चाहें तो अपने मित्रों और रिश्तेदारों को भी यह वीडियो शेयर कर सकते हैं। 
स्वस्थ रहिये, आनन्दित रहिये और पढ़ते रहिये शीतांशु कुमार सहाय का अमृत और देखत रहिये शीतांशु टीवी!

सोमवार, 16 सितंबर 2019

विश्वकर्मा पूजा : कीजिये कर्म की पूजा, बने रहिये कर्मशील Vishwakarma Puja

शीतांशु कुमार सहाय
विश्व को कर्म करने और निरन्तर कर्मशील रहने का सन्देश देनेवाले देव विश्वकर्मा के वार्षिक पूजन का दिन है १७ सितम्बर। वैसे तो सृष्टि के आरम्भिक काल से ही विश्वकर्मा की आराधना की जा रही है पर आज के विकासवादी माहौल में उन की आराधना का महत्त्व कुछ अधिक ही हो गया है। निर्माण-गतिविधियों को ही वर्तमान विकास का आधार माना जाता है। यों निर्माण के देव विश्वकर्मा के भक्तों की संख्या में वृद्धि हुई है। 
      सनातन धर्म के ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है कि नवनिर्माण की विशेषज्ञता के कारण ही उन्हें देवताओं का अभियन्ता माना गया। भारतीय परम्परा में मानव विकास को धार्मिक व्यवस्था के रूप में जीवन से जोड़ने के लिए विभिन्न अवतारों का विधान मिलता है। इन्हीं अवतारों में से एक भगवान विश्वकर्मा को प्रथम अभियन्ता और वास्तुविद् माना गया है। समूचे विश्व का ढाँचा, लोक-परलोक का खाका उन्होंने ही तैयार किया। वे ही प्रथम आविष्कारक हैं। यान्त्रिकी, वास्तुकला, धातुकर्म, प्रक्षेपास्त्र तकनीक, वैमानिकी विद्या, नवविद्या आदि के जो प्रसंग मिलते हैं, उन सब के अधिष्ठाता विश्वकर्मा ही माने जाते हैं। 
दरअसल, भारतीय परम्परा में ‘अहम् ब्रह्मास्मि’ अर्थात् मैं ही ब्रह्म (भगवान) हूँ की भी संकल्पना है। इसे कई लोग ने अपनाया, उसे साकार किया। विकास के इस युग में  निर्माण को अंजाम देनेवाले ही भगवान की श्रेणी में हैं, भगवान हैं। 
    धरती छोड़ते समय विश्वकर्मा निर्माण के गुण मनुष्य को दे गये। स्वयं मानव मन के उस उच्च स्थान पर विराजमान हो गये जहाँ पहुँचने के लिए निरन्तर उच्च श्रेणी का परिश्रम करना अनिवार्य है। ऐसे परिश्रम से ही आत्मविकास, समाज या परिवार का विकास सम्भव है। यहाँ यह जानने की बात है कि प्रत्येक ज्ञान अपने-आप में विशेष ज्ञान है। कोई भी ज्ञान जो विकास को बढ़ावा दे, वह ईश्वर की कृपा है। यही कृपा प्राप्त करने के लिए विश्वकर्मा की आराधना की जाती है। विश्वकर्मा ने मानव को सुख-सुविधाएँ प्रदान करने के लिए अनेक यन्त्रों व शक्ति-सम्पन्न भौतिक साधनों का निर्माण किया। इन्हीं साधनों द्वारा मानव समाज भौतिक चरमोत्कर्ष को प्राप्त करता रहा है।

वास्तव में केवल बाहरी विकास ही मनुष्य का अन्तिम लक्ष्य नहीं है। मानव जीवन का उद्देश्य मात्र उदर-पोषण या परिवार-पालन ही नहीं है। भौतिक विकास के साथ-साथ आध्यात्मिक व आत्मिक विकास ही मानव जीवन की सम्पूर्णता का लक्ष्य है। इस लक्ष्य को पूर्ण करने में विश्वकर्मा सहयोग करते हैं। निर्माण या विकास का मतलब केवल वास्तुगत या वस्तुगत ही नहीं, आत्मतत्त्वगत भी है। विकास के इस सोपान पर चढ़ने के लिए निरन्तर सदाचारी प्रयास (कर्म) अनिवार्य है। ऐसा तभी सम्भव है जब केन्द्रीकृत प्रयास हो। जैसे ही केन्द्र प्रसारित हो जाता है तो विकास का लक्ष्य भटक जाता है। इस भटकाव को दूर करने के लिए भगवान विश्वकर्मा की आराधना तो करनी ही पड़ेगी। जय विश्वकर्मा!

बुधवार, 11 सितंबर 2019

अपनी राशि के अनुसार करें शिव पूजन Method of Worshiping Shiva According to the Zodiac

-शीतांशु कुमार सहाय

शिव पूजन की विधि राशि के अनुसार इस प्रकार करें --
मेष : 
शिव जी को लाल चन्दन व लाल रंग के फूल चढ़ायें तथा नागेश्वराय नमः का जाप करें।
वृष :
चमेली के फूल चढ़ायें तथा रूद्राष्टाकर का पाठ करें।
मिथुन :
धतूरा, भांग चढ़ायें साथ में पंचाक्षरी मन्त्र का जाप करें।
कर्क :
भांग मिश्रित दूध से अभिषेक करें और रूद्राष्टाधयी का पाठ करें।
सिंह :
कनेर के लाल रंग फूल अर्पित करे तथा शिव चालीसा का पाठ करें।
कन्या :
बेलपत्र, धतूरा, भांग आदि चढ़ायें और पंचाक्षरी मन्त्र का जाप करें।
तुला : 
मिश्री मिले दूध से शिव का अभिषेक करें तथा शिव के सहस्त्रनाम का जाप करें।
वृश्चिक :
गुलाब का फूल व बिल्वपत्र की जड़ चढ़ायें और रूद्राष्टक का पाठ करें।
धनु :
पीले फूल अर्पित करें एंव खीर का भोग लगायें और शिवाष्टक का पाठ करें।
मकर : 
शिव जी को धूतरा, फूल, भांग एंव अष्टगंध चढ़ायें और पार्वतीनाथाय नमः का जाप करें।
कुम्भ : 
शिव जी का गन्ने के रस से अभिषेक करें एंव शिवाष्टाक का पाठ करें।
मीन :
शिव जी पर पंचामृत, दही, दूध व पीले फूल चढ़ायें और चन्दन की माला से १०८ बार पंचाक्षरी मन्त्र (नमः शिवाय) का जाप करें।


भारत महान {1} : आत्मा अमर है, वैज्ञानिकों को भी मानना पड़ा Great India {1} : The Soul is Immortal, Even Scientists had to Agree


-शीतांशु कुमार सहाय 
सुप्रिय पाठकों!
https://sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.com पर ‘भारत महान’ शृँखला के अन्तर्गत यह पहली प्रस्तुति है। इस शृँखला में आप जानेंगे अतुलनीय प्राचीन भारतीय ज्ञान-विज्ञान के बारे में। साथ ही शीतांशु टीवी पर भी ‘भारत महान’ शृँखला के तहत विशेष लघु फिल्मों के माध्यम से जानकारी उपलब्ध करायी जा रही है। ऐसी जानकारी को आप ग्रहण करें और मित्रों व रिश्तेदारों के बीच भी शेयर करें; ताकि समृद्ध भारतीय अतीत का सच सभी जान सकें।   
आम तौर पर भारतीय धर्मग्रन्थों में वर्णित तथ्यों को शेष विश्व कल्पना ही मानता रहा है। वैसे सच यह है कि वेद, वेदान्त, उपनिषद, पुराण, रामायण, महाभारत, श्रीमद्भगवद्गीता सहित चिकित्सा, अभियन्त्रण, भूगोल, ज्योतिष, अन्तरिक्ष, कला, संगीत आदि से सम्बद्ध भारतीय ग्रन्थों में उल्लिखित बातें आज भी वैज्ञानिक रूप से सच सिद्ध होती हैं। ऐसी कई बातें हैं जो पहले लोग नहीं माने पर कालान्तर में उन सच्चाइयों को स्वीकारना पड़ा। ‘भारत महान’ शृँखला के तहत आप ऐसी सच्चाइयों के बारे में जानते रहेंगे। 
पहली कड़ी में आत्मा की बात करते हैं। सभी भारतीय ग्रन्थों में शरीर को नश्वर और आत्मा को अमर बताया गया है। 'श्रीमद्भगवद्गीता' में भगवान श्रीकृष्ण ने इस बारे में विस्तार से बताया है। क्या मृत्यु के बाद जीवन होता है? कुछ लोग मृत्यु को अध्यात्म और भगवान से जोड़ते हैं। इस के विपरीत कुछ लोग मानते हैं कि मृत्यु के बाद कुछ नहीं होता। अपने को वैज्ञानिक कहनेवाले ऐसा ही मानते हैं। आज का विज्ञान किसी भी आध्यात्मिक बात पर यकीन करे, ऐसा कम ही देखा गया है, पर इस बार कुछ अलग हुआ है। वैज्ञानिकों को सृष्टि के आरम्भ काल से चले आ रहे सत्य का प्रमाण मिल गया है, जो भारतीय ग्रन्थों में पहले से ही विद्यमान है। वह सत्य है-- आत्मा अमर है और शरीर नश्वर है।

आत्मा में निहित ज्ञान अक्षुण्ण

आत्मा के अमर होने की बात को वैज्ञानिकों ने अब सच सिद्ध किया है। भौतिकी और गणित के दो वैज्ञानिकों ने मनुष्य के शरीर के मरने के बाद क्या होता है, इस पर दो दशकों तक लंबे अनुसन्धान के बाद भारतीय धर्मग्रन्थों में वर्णित तथ्यों को प्रयोगों के आधार पर सिद्ध किया है कि आत्मा कभी मरती नहीं है, केवल शरीर ही मरता है। मृत्यु के बाद आत्मा पुनः ब्रह्मांड में वापस चली जाती है लेकिन इस में निहित सूचनाएँ (ज्ञान) कभी नष्ट नहीं होती हैं, अक्षुण्ण रहती हैं और आत्मा के साथ दूसरे शरीर में प्रकट होती हैं। 

इन्होंने किये अनुसन्धान

ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के गणित व भौतिकी के प्रोफेसर सर रॉजर पेनरोज और अमेरिकी विश्वविद्यालय यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना के भौतिकी वैज्ञानिक डॉक्टर स्टुअर्ट हैमरॉफ ने करीब दो दशक के शोध के बाद इस विषय पर छ: शोधपत्र प्रकाशित किये हैं। उन के शोध पर अमेरिका के मशहूर साइंस चैनल ने वृत्तचित्र (डॉक्यूमेंट्री फिल्म) बनायी है। सर रॉजर पेनरोज और डॉ. स्टुअर्ट हैमरॉफ का मानना है कि जिसे हम चेतना या आत्मा कह सकते हैं, वह केवल शरीर के मरने के समय शरीर से निकला बहुत सूक्ष्म रूप में ब्रह्मांड में छोड़ी गयी इन्फॉर्मेशन (सूचना या ज्ञान) की तरह है। इन दोनों वैज्ञानिकों का कहना है कि इस प्रक्रिया को “Orchestrated Objective Reduction” (Orch-OR) कहा जाता है। आज का विज्ञान यह पहले ही साबित कर चुका है कि शरीर में प्रोटीन से बनी हुई सूक्ष्मनलिकाएँ होती हैं जो ज्ञान या सूचना को एक जगह से दूसरी जगह ले जा सकती हैं। वैज्ञानिकों को तब घोर आश्चर्य हुआ जब इस शोध में पता लगा कि इतने सूक्ष्म आकार में पूरे जीवन के कर्म का वृत्तान्त संकलित और सुरक्षित रहता है। भारतीय ग्रन्थों में इसे 'प्रारब्ध' कहते हैं। 

विज्ञान का सुर बदला 

आज का विज्ञान यही कहता आया है कि आत्मा कोई चीज़ नहीं होती, शरीर के मरने के बाद कोई जीवन नहीं रहता। पर, अब कुछ अलग कहा जा रहा है। वैज्ञानिक दावा कर रहे हैं कि वास्तव में आत्मा की मृत्यु नहीं होती; केवल शरीर मरता है। आत्मा के सम्बन्ध में श्रीमद्भगवद्गीता में जो बातें भगवान ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को बतायीं, वही बात अब वैज्ञानिकों के मुख से भी निकल रही है। 

क्वांटम सिद्धांत का आधार

वैज्ञानिकों को यह शोध भौतिकी के क्वाटंम सिद्धांत पर आधारित हैं। इस के अनुसार आत्मा चेतन मस्तिष्क की कोशिकाओं में प्रोटीन से बनी नलिकाओं में ऊर्जा के सूक्ष्म स्रोत अणुओं-परमाणुओं के रूप में रहती है। सूचनाएँ इन्हीं सूक्ष्म कणों में संग्रहित रहती हैं। क्वांटम मैकेनिक्स यानी मात्रा (कोई वस्तु कितनी मात्रा में है) की स्टडी करनेवाले कुछ नामी वैज्ञानिकों ने इस के बारे में बताया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि क्वांटम मेकैनिक्स के कारण ही शरीर के खत्म होने के बाद भी चेतना का कुछ भाग ब्रह्मांड में रह जाता है। वैसे वैज्ञानिक अभी भी इस बारे में पूरी तरह से एकमत नहीं हैं कि आखिर चेतना होती क्या है या आत्मा किसे कहा जाय? पाठकों को मैं बता दूँ कि यहाँ वैज्ञानिकों का शोध प्रेत पर आधारित नहीं है।

अनुसंधानकर्ताओं ने इस प्रकार समझाया  

डॉ. स्टुअर्ट हैमरॉफ अपने शोध निष्कर्ष को एक उदाहरण से समझाते हैं-- मान लीजिये कि हृदय की धड़कन बन्द हो गयी और शरीर में खून का संचार रूक गया। ऐसे में प्रोटीन से बनी हुई ये ज्ञान सम्वाहक सूक्ष्मनलिकाएँ (microtubules) अपने स्थान से हिल जायेंगी और जो जानकारी इन में सुरक्षित हैं वो नष्ट होने के बजाय ब्रह्मांड में जगह-जगह बिखर जायेंगी। जानकारी या ज्ञान के ये कण इतने छोटे होते हैं कि दिखायी नहीं देते। इसे ही मृत्यु कहते हैं। इस के विपरीत अगर मरीज एकदम से जाग जाता है जिसे मेडिकल हिस्ट्री (चिकित्सा इतिहास) में रिवाइव करना कहा जाता है तो इस का मतलब है कि हृदय की धड़कन फिर से चालू हो गयी और प्रोटीन निर्मित ज्ञान सम्वाहक सूक्ष्मनलिकाएँ अपनी जगह वापस आ गयी हैं। इसे ही मौत से सामना या नियर डेथ एक्सपीरियंस कहा जाता है। इस दौरान मरीज मरने का अनुभव कर लेता है। अगर मरीज रिवाइव नहीं करता है तो ऐसा सम्भव है कि इन नलिकाओं में मौजूद जानकारी या क्वांटम इन्फॉर्मेशन शरीर के बाहर चली जाय और ब्रह्माण्ड में बिखर जाय। शरीर से मुक्त होनेवाले इस सूक्ष्म ज्ञान-पुंज को 'आत्मा' कहा जा सकता है। .....तो डॉ. स्टुअर्ट हैमरॉफ के इस उदाहरण से आप भी समझ गये होंगे कि अन्ततः भारतीय ज्ञान का लोहा सब को मानना ही पड़ता है। 
वैज्ञानिकों के अनुसार, जब व्यक्ति दिमागी रूप से मृत होने लगता है तब मस्तिष्क में स्थित प्रोटीन निर्मित ज्ञान सम्वाहक सूक्ष्मनलिकाएँ क्वांटम ज्ञान खोने लगती हैं। सूक्ष्म ज्ञान के ऊर्जा कण मस्तिष्क की नलिकाओं से निकल ब्रह्मांड में चले जाते हैं। कभी मरता हुआ मनुष्य जीवित हो उठता है, इस का मतलब है कि ये कण वापस सूक्ष्म नलिकाओं में लौट आये हैं।

ज्ञान नष्ट नहीं होते 

क्रिया योग में कहा गया है कि गुरु से दीक्षा लेकर जो साधना करता है और मुक्ति प्राप्त नहीं कर पाता है तो अगले जन्म में उसे प्रारब्ध के रूप में पिछले योग-ज्ञान की प्राप्ति होती है और वह योग की जिस ऊँचाई पर पिछले जन्म में था, वहीँ से फिर साधना आरम्भ करता है और शीघ्र ही सफल हो जाता है। इस से पता चलता है कि आत्मा में पिछले कई जन्मों के संस्कार, ज्ञान या जानकारी संग्रहित रहती हैं जो शरीर रूप में प्रकट होने यानी जन्म लेने पर अपना प्रभाव दिखाती हैं। योग की इस बात को भी सर रॉजर पेनरोज और डॉक्टर स्टुअर्ट हैमरॉफ ने सच माना है। इन दोनों वैज्ञानिकों के शोध के अनुसार, सूक्ष्म ऊर्जा कणों के ब्रह्मांड में जाने के बावजूद उन में निहित सूचनाएँ (ज्ञान) नष्ट नहीं होती। क्वाटंम सिद्धांत प्रतिपादित करनेवाले वैज्ञानिक मैक्स प्लैंक के नाम पर जर्मनी के म्यूनिख नगर में 'मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर फिजिक्स' स्थापित है, वहाँ के वैज्ञानिक डॉक्टर हेंस पीटर टुर ने इस शोध से पहले ही आत्मा से सम्बन्धित इन तथ्यों की पुष्टि की है।

मरने के बाद अनन्त संभावनाएँ

'मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर फिजिक्स' का कहना है कि हमारे भौतिक ब्रह्माण्ड यानी फिजिकल यूनिवर्स में एक बार मरने के बाद अनन्त संभावनाएँ हो सकती हैं। इसी इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक डॉक्टर हेंस पीटर टुर ने माना है कि प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में जो ज्ञान के भण्डार हैं, उन्हें समझने में विश्व का मानव असमर्थ है। हेंस पीटर टुर ने कहा है-- "कई बातें ऐसी हैं जिन्हें हम अभी समझ सकते हैं, हमारी दुनिया असल में बहुत छोटे स्तर पर है और बहुत कुछ ऐसा भी है जो समझा नहीं जा सकता। इस के आगे असंख्य सच हैं जो बहुत बड़े हैं लेकिन जिन के बारे में हमें पता नहीं है। हमारा शरीर मर जाता है लेकिन आध्यात्मिक क्वांटम क्षेत्र खत्म नहीं होता। इस तरह से तो सब अमर हैं।" 

मानव दिमाग एक संगणक 

शोधकर्ताओं का कहना है कि मानव मस्तिष्क एक जैविक संगणक (कंप्यूटर) की तरह है। इस जैविक कंप्यूटर का प्रोग्राम चेतना या आत्मा है जो मस्तिष्क के अंदर मौजूद एक क्वांटम कंप्यूटर के जरिये संचालित होती है। क्वांटम कंप्यूटर से तात्पर्य मस्तिष्क की कोशिकाओं में स्थित सूक्ष्म नलिकाओं से है जो प्रोटीन आधारित अणुओं से निर्मित हैं। बड़ी संख्या में ऊर्जा के ये सूक्ष्म स्रोत अणु मिलकर एक क्वाटंम स्टेट तैयार करते हैं जो वास्तव में चेतना या आत्मा है।

भारतीय दर्शन में आत्मा 

भारतीय दर्शन के अनुसार, आत्मा का कोई धर्म नहीं होता, इस की कोई जाति नहीं होती। आत्मा न पुरुष है और न ही स्त्री। न यह पशु के रूप का है और न मनुष्य के आकार का। वास्तव में आत्मा निराकार है। यह केवल परमात्मा का अंश है। परमात्मा को जाति, धर्म या आकार की सीमा में नहीं आँका जा सकता। आत्मा एक ऐसी जीवन-शक्‍ति है, जिस के कारण हमारा शरीर जीवित है। इस जीवन-शक्ति के बिना शरीर निष्प्राण हो जाता है और हम मिट्टी में फिर मिल जाते हैं। मतलब यह कि शरीर से आत्मा या जीवन-शक्ति निकलती है, तो शरीर मर जाता है और वहीं लौट जाता है, जहाँ से वह निकला था यानी पंचतत्त्वों में। उसी तरह जीवन-शक्ति आत्मा भी वहीं लौट जाती है, जहाँ से वह आयी थी अर्थात् परमात्मा के पास। 
"वह कौन है जो अमर आत्मा और नश्वर शरीर का बार-बार संयोग करवाता है?" अर्जुन के इस प्रश्न का उत्तर भगवान श्रीकृष्ण ने इस प्रकार दिया-- "एक और शरीर है, जो आत्मा के लिए भीतर का वस्त्र है। वह है सूक्ष्म शरीर। उसे अंत:वस्त्र भी कह सकते हैं। वह शरीर विद्युत कणों का पुंज है जो इन भौतिक आँखों से नहीं दिखायी देता है। मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार से सूक्ष्म शरीर निर्मित है। यह शरीर पिछले जन्म के संस्कार और ज्ञान (प्रारब्ध) के साथ आता है। स्थूल शरीर माता-पिता से मिलता है और सूक्ष्म शरीर पूर्वजन्म से। सूक्ष्म शरीर न हो, तो स्थूल शरीर ग्रहण नहीं किया जा सकता। सूक्ष्म शरीर के पञ्चकोश हैं-- अन्नमय कोश, प्राणमय कोश, मनोमय कोश, विज्ञानमय कोश और आनन्दमय कोश। योग साधना से इन पञ्चकोशों को भेदकर पार करना पड़ता है, तब सूक्ष्म शरीर से छुटकारा मिलता है। सूक्ष्म शरीर छूटने का अर्थ है ‘मोक्ष’ यानी जन्म-मरण के बन्धन से मुक्ति।"
प्रारब्ध को ठीक करने के लिए भारतीय ग्रन्थों ने सदा अच्छे कार्य और सदाचार को अपनाने की सीख दी है; ताकि मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो सके।

गुरुवार, 29 अगस्त 2019

फिट इंडिया अभियान : शीतांशु कुमार सहाय का अमृत और शीतांशु टीवी का सक्रिय योगदान FIT INDIA MOVEMENT

-शीतांशु कुमार सहाय
२९ अगस्त अर्थात् भारत का ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’। भारत के महान हॉकी खिलाड़ी ध्यानचन्द की जयन्ती को भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। बृहस्पतिवार, २९ अगस्त २०१९ का दिन भारत के इतिहास में महत्त्वपूर्ण रूप से शामिल हो गया कि इस दिन पहली बार सरकार ने आम भारतीय जनता के फिटनेस पर विशेष दृष्टिपात करने का अभियान ‘फिट इण्डिया मूवमेण्ट’ का श्रीगणेश किया। श्रीगणेश करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बताया कि अमेरिका, जर्मनी, चीन जैसे कई देशों में नागरिकों को स्वस्थ और फिट रखने की योजनाएँ चल रही हैं। उन्होंने कहा कि हर तरफ स्वार्थ की बात हो रही है, ऐसे में स्वार्थ से स्वास्थ्य की ओर जाना है। निश्चय ही इस अभियान का असर देशभर में पड़ेगा। 

यों हुई शुरुआत  

नई दिल्ली के इन्दिरा गाँधी स्टेडियम में इस महत्त्वपूर्ण अभियान को औपचारिक रूप से आरम्भ करने के लिए भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने १० बजकर ३४ मिनट से भाषण देना शुरू किया और ३५ मिनट में अभियान की आरम्भिक रूपरेखा रखी और रोगग्रस्त होते भारतीय को सचेत किया। राष्ट्रीय खेल दिवस यानी २९ अगस्त २०१९ को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के इंदिरा गाँधी स्टेडियम में फिट इंडिया अभियान की शुरुआत की। इस मौके पर उन्होंने कहा- बैडमिंटन हो, टेनिस हो, एथलेटिक्स हो, बॉक्सिंग हो, कुश्ती हो या फिर दूसरे खेल, हमारे खिलाड़ी हमारी उम्मीदों और आकांक्षाओं को नये पंख लगा रहे हैं। स्पोर्ट्स का सीधा नाता है फिटनेस से लेकिन आज जिस फिट इंडिया मूवमेंट की शुरुआत हुई है, उस का विस्तार स्पोर्ट्स से भी आगे बढ़कर है। फिटनेस एक शब्द नहीं है; बल्कि स्वस्थ और समृद्ध जीवन की एक ज़रूरी शर्त्त है।’’ आज यानी २९ अगस्त को हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की ११४वीं जयंती है। मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन को भारत में ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने शुभकामना देते हुए कहा कि मेजर ध्यानचंद के रूप में देश को एक महान स्पोर्ट्सपर्सन मिले थे। 

पहल प्रशन्सनीय.....परम्परा की ओर लौटें

निश्चय ही प्रधानमन्त्री की यह पहल प्रशन्सनीय है। मैं आप सुधी पाठकों से आग्रह करता हूँ कि स्वस्थ रहने, फिट रहने के लिए संकल्ति हो जायें और योग, पारम्परिक खेल, परिश्रम के कार्य, पैदल चलना, साइकिल चलाना, नाचना, उछलना-कूदना आदि को अपनी दिनचर्या में शामिल कर लें। घरेलू नुस्खों और आयुर्वेद की ओर लौटें। मैं सक्रिय रूप से फिट इण्डिया मूवमेण्ट में शामिल हूँ। 

आप के ईमेल पर निःशुल्क जानकारी     

शीतांशु कुमार सहाय का अमृत के नियमित पाठकों को ज्ञात है कि आप को स्वस्थ और फिट बनाये रखने के लिए कई आलेखों का प्रकाशन पूर्व में किया जा चुका है जो अब भी जारी है। यह वेबसाइट https://Sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.com अपना कर्तव्य समझते हुए बिना औषधि के भी स्वस्थ रहने के तरीकों का प्रचार कर रहा है। आप यदि लैपटॉप या कम्प्यूटर पर देख रहे हैं तो दायीं तरफ के कॉलम में दिये गये ‘लोकप्रिय रचनाएँ’ और ‘पूर्व प्रकाशित अमृत रचनाएँ’ में वर्ष २०१० से अब तक के सभी आलेखों को पढ़ेंगे तो ज्ञान के कई रहस्य आप को मालूम होंगे। यदि आप मोबाइल फोन पर देख रहे हैं तो स्क्रॉल कर इस बेवसाइट के सब से नीचे आइये और वहाँ लिखे ‘वेब वर्जन देखें’ पर क्लिक करें। ऐसा करने पर आप के मोबाइल पर कम्प्यूटर की तरह ही ‘शीतांशु कुमार सहाय का अमृत’ दिखायी देगा। अब दायें कॉलम में Subscribe by Email जहाँ लिखा है, उस के नीचे के बॉक्स में अपना ईमेल का पता डालें और इस वेबसाइट पर डाली जानेवाली नयी सामग्रियों और बेहतरीन जानकारी को अपने ईमेल पर निःशुल्क प्राप्त करें।

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फिट रहने के मन्त्र वीडियो में

समय-समय पर शीतांशु टीवी में फिट रहने के मन्त्र बताये जाते हैं। दायीं तरफ के कॉलम में शीतांशु टीवी का लिंक दिया गया है। आप उस पर क्लिक कर फिटनेस और ज्ञान की अन्य बातों को निःशुल्क जानने-समझने के लिए नये और पुराने वीडियो देख सकते हैं। शीतांशु टीवी पर रीलिज किये जानेवाले नये वीडियो आप तुरन्त देखना चाहते हैं तो कृपया इसे सब्सक्राइब कर लें। ‘शीतांशु टीवी’ का कोई वीडियो आप देख रहे हैं ता नीचे लाल रंग से SUBSCRIBE लिखा हुआ मिलेगा, उस पर क्लिक कर दें। इस के बाइ वहीं पर घण्टी का निशान आयेगा, उस पर भी क्लिक करेंगे तो आप को नये वीडियो की सूचना मिलने लगेगी और निःशुल्क मिलने लगेगा फिटनेस का मन्त्र। 

तकनीक ने बनाया रोगी

फिट भारत अभियान का श्रीगणेश करने के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा- समय कैसे बदला है, उस का एक उदाहरण मैं आप को देता हूँ- कुछ दशक पहले तक एक सामान्य व्यक्ति एक दिन में ८-१० किलोमीटर पैदल चल ही लेता था। फिर धीरे-धीरे टेक्नोलॉजी बदली, आधुनिक साधन आये और व्यक्ति का पैदल चलना कम हो गया। अब स्थिति क्या है? टेक्नोलॉजी ने हमारी ये हालत कर दी है कि हम चलते कम हैं और अब वही टेक्नोलॉजी हमें गिन-गिन के बताती है कि आज आप इतने स्टेप्स चले, अभी ५ हजार स्टेप्स नहीं हुए, २ हजार स्टेप्स नहीं हुए, अभी और चलिए।

डाइबिटीज और हाइपरटेंशन

प्रधानमंत्री ने आगे कहा- भारत में डाइबिटीज और हाइपरटेंशन जैसी बीमारियाँ बढ़ती जा रही हैं। आजकल हम सुनते हैं कि हमारे पड़ोस में १२-१५ साल का बच्चा डाइबिटिक है। पहले सुनते थे कि ५०-६० की उम्र के बाद हार्ट अटैक का खतरा बढ़ता है लेकिन अब ३५-४० साल के युवाओं को हार्ट अटैक आ रहा है।

रविवार, 25 अगस्त 2019

आँसू से मत घबराइये, जीवन का अभिन्न अंग है रोना Do not be Afraid of Tears, Weeping is an Integral Part of Life

-शीतांशु कुमार सहाय
रूलाई और आँसू का सम्बन्ध लोग दु:ख से लगाते रहे हैं, किंतु रोना एक स्वाभाविक क्रिया है। रोने की कला मनुष्य को विरासत में मिली है। जन्म के समय से ही बच्चे रोना शुरू कर देते हैं। उस समय न रोने पर उसे रूलाने की कोशिश की जाती है; ताकि उस की मांसपेशियों व फेफड़ों का संचालन ठीक प्रकार से होने लगे।
कुछ लोग जोर से चिल्लाकर रोते हैं। ऐसी रूलाई सामान्य रूलाई से ज़्यादा फ़ायदेमन्द है। जोर से रोने पर मस्तिष्क में दबी भावनाओं का तनाव दूर हो जाता है, राहत मिलती है और बहुत शक्ति प्राप्त होती है; अत: पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में हृदयाघात यानी दिल का दौरा काफी कम पड़ता है।
अपने मानसिक तनाव को आँसू द्वारा शिथिल न कर पाने के कारण अक्सर पुरुष धमनियों से सम्बन्धित व्याधियों से पीड़ित रहते हैं।
आँसू ही आँखों को नम रखते हैं, स्वच्छ रखते हैं तथा धूल आदि पडऩे पर उसे धो डालते हैं। आँसू के विष के प्रभाव से ही हवा से उड़कर आँखों में पड़ऩेवाले कीट-पतंगे मर जाते हैं और वे हानि नहीं पहुँचा पाते। वैज्ञानिकों के मतानुसार, एक चम्मच आँसू 200 गैलन जल के कीटाणुओं को मारकर साफ करने में समर्थ है।
भावनात्मक आँसू हमें उदासी, अवसाद और गुस्से से मुक्ति दिलाते हैं। यही आँसू हद से बाहर जाने से भी रोकते हैं। रोने से मन का मैल धुल जाता है तथा एक प्रकार की शान्ति महसूस होती है। न रोनेवाले मानसिक तनाव से ग्रसित होकर चिड़चिड़े स्वभाव के हो जाते हैं। ऐेसे व्यक्ति शीघ्र निर्णय भी नहीं ले पाते।
आयुर्वेद के अनुसार, रूलाई रोकने पर कई रोगों के होने का डर है। ऐसे रोगों में जुकाम, आँख या हृदय में पीड़ा, अरुचि, डर, चक्कर आना, गर्दन में अकडऩ, मानसिक तनाव आदि मुख्य हैं। सदमा लगने पर रूलाई को जबरन रोकने से हृदयाघात, उच्च या निम्न रक्तचाप अथवा मस्तिष्क के निष्क्रिय होने का भय भी बना रहता है।
कभी-कभी ऐसा देखने को मिलता है कि माता-पिता या अध्यापक बच्चे को डाँट या पीट देते हैं और जब वे रोने लगते हैं तो उन्हें डरा-धमकाकर रोने नहीं देते हैं। यह अत्यन्त घातक कदम है। इस से बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस कारण बच्चों की बुद्धि कुंठित भी हो सकती है अथवा वे किसी मनोरोग से ग्रसित होकर आजीवन उस से पीड़ित रह सकते हैं।
रोना कभी निरर्थक नहीं जाता। बच्चे रोते हैं तो 'दूध' मिलता है, पत्नी के रोने पर 'जिद्द' पूरी हो जाती है। रूलाई का एक शानदार उदाहरण देखिये-- अंग्रेजी के प्रसिद्ध साहित्यकार शेक्सपियर वास्तव में एन. हेथवे को छोड़कर दूसरी लड़की से प्रेमालाप करने लगे। इस बात की जानकारी मिलने पर हेथवे घबरा गयीं। सहयोग की अपेक्षा से वह पड़ोसी के घर जाकर बहुत रोयीं और वृत्तान्त कह सुनाया।
हेथवे के रोने का प्रभाव पड़ोसी पर इतना पड़ा कि उस ने दूसरे दिन पूरे शहर में शेक्सपियर तथा हेथवे के विवाह के पोस्टर चिपकवा दिये। अंतत: विवश होकर शेक्सपियर को हेथवे से विवाह करना पड़ा।
आँसू की बहुपयोगिता को देखकर ही शायरों ने इसे 'मोती' की संज्ञा दी है। हिन्दी फिल्मों में कई गानों का मुख्य विषय आँसू ही है। .....तो आँसू से घबराएँ नहीं और रोने का मन करे तो अवश्य रोएँ; क्योंकि यह जीवन का अभिन्न अंग है।  

शुक्रवार, 9 अगस्त 2019

कुँवर सिंह और धरमन : प्रेम के पंचमात्राओं के मर्मज्ञ Love Story of Kunwar Singh and Dharman

अगस्त २०१९ में पटना के प्रेमचन्द रंगशाला में राम कुमार मोनार्क के निर्देशन में मंचित नाटक मे कुँवर सिंह की भूमिका में पंकज करपटने और धरमन का पात्र निभाती पिंकी सिंह।


-शीतांशु कुमार सहाय    
प्रेम.....पंचमात्राओं का छोटा शब्द। पर, इस की गहरायी प्रशान्त महासागर से अधिक और ऊँचाई हिमालय से ज़्यादा है। सृष्टि के प्रादुर्भाव से अब तक इसे परिभाषा की शाब्दिक सीमा देने में लाखों-करोड़ों शब्द जाया किये गये पर हाथ कुछ नहीं आया। आज भी यह अपरिभाषित है, अपरिमित है, अपरम्पार है। साधारण मनुष्य के वश की बात नहीं कि वह इन पंचमात्राओं को माप सके, इसे पा सके, इसे पार कर सके। पर, चूँकि मनुष्य में आत्मा निहित है जो परमात्मा का ही अंश है, अतः जो अपनी आत्मा को परमात्मातुल्य बनाने का प्रयत्न करता है, परमात्मतत्त्व को प्राप्त कर लेता है, वह इस पंचभूतशरीर में रहते हुए ही प्रेम की पंचमात्राओं को जान लेता है, इसे पा लेता है और इसे अपने जीवन का अंग बनाने में सफल हो जाता है। भारतीय इतिहास में सफल प्रेमी के रूप में महान स्वाधीनता सेनानी कुँवर सिंह भी जाने जाते हैं। 
कुँवर सिंह का प्रेम स्वार्थसिद्धि या काम-वासना का प्रतीक नहीं था। एक हिन्दू राजा होकर भी एक मुसलमान नर्तकी से प्रेम कर उन्होंने जाति और धर्म की दीवार ढाह दी। यह प्रेम का ही प्रतीक है कि उन्होंने अल्लाह की इबादत के लिए मस्जिद का निर्माण कराया तो अन्य धर्मों को भी पल्लवित-पुष्पित होने का भरपूर अवसर प्रदान किया। 
प्रेम को रहने के लिए, ठहरने के लिए, स्थिरता के लिए शुद्ध हृदय की आवश्यकता होती है। यह शुद्धता साबुन से नहीं, समर्पण- पूर्ण समर्पण से प्राप्त होती है। पूर्ण समर्पण तभी सम्भव है जब प्रेमी और प्रेमिका के बीच संशय न हो और न ही भविष्य में संशय उत्पन्न होने की सम्भावना हो। ऐसा हुआ तभी तो जगदीशपुर नरेश कुँवर सिंह के प्रति धरमन का समर्पण अमर हो गया, हम आज भी उसे याद करते हैं। संशय और दोषारोपण तो कुँवर-धरमन के प्रेम के बीच कभी जगह पा ही नहीं सके। 
यह भारतीय परम्परा है कि राजा के लिए उस की प्रजा सन्तान की तरह प्रिय होती है। सभी तबके की प्रजा पर कुँवर सिंह समान दृष्टि रखते थे। निर्धनों के प्रति उन का प्रेम देखते ही बनता था। एक निर्धन महिला को उन्होंने बहन का सम्मानित दर्जा प्रदान करते हुए निर्धनता दूर करने के लिए १०४० कट्ठे का भूखण्ड उपहार स्वरूप दिया। 
अँग्रेजों के आतंक से उन की प्रजा भी प्रताड़ित होने लगी। इसी दौरान प्रेमिका ने अपनी भूमिका निभायी और प्रेमी के भीतर के देशभक्त को जगाया। कुँवर सिंह के मनोरंजन के लिए धरमन जब भी नाचतीं तो उन के ओठ देशभक्ति की पंक्तियाँ ही गुनगुनाते। धरमन की राजमहल की विलासिता का त्याग देखकर महाराज कुँवर भी प्रेमिका के त्याग से आगे निकलने को प्रेम से भाव-विभोर होकर संकल्प लिया और हृदय में देशप्रेम की ज्योति जलायी। उन्होंने प्रमिका के व्यवहार और कहने का मर्म समझा और जान लिया कि देशभक्ति के बिना प्रेम अधूरा है। 
देशप्रेम की भावना जागते ही जब भोजपुर के शेर कुँवर सिंह ने तलवार उठायी तो अँग्रेजों की हुकूमत काँप उठी। प्रेम की भावना से ओत-प्रोत प्रेम की मिसाल कुँवर सिंह ने अस्सी-एकासी वर्ष की उम्र में भी महज नौ महीनों में पन्द्रह युद्ध किये और सभी युद्धों में अँग्रेजों को पराजित किया। अन्तिम युद्ध तो उन्होंने केवल बायें हाथ से ही किया और अँग्रेजों की सेना को बुरी तरह पराजित कर भोजपुर के आरा शहर में अँग्रेजों के झण्डा ‘यूनियन जैक’ को उतारकर अपना झण्डा फहराया। वह २३ अप्रील १९५८ ईस्वी का दिन था। कुँवर सिंह के साथ सब ने विजयोत्सव मनाया। इस विजयोत्सव को प्रेमी ने नृत्यांगना से वीरांगना बनी प्रेमिका को समर्पित किया, जो पहले ही रणक्षेत्र में वीरगति को प्राप्त हो गयी थी। वह प्रेमी के साथ विजयोत्सव का क्षणिक सुख तो नहीं बाँट सकी लेकिन प्रेम के मार्ग पर चलती हुई त्याग को बलिदान में परिवर्तित कर परमात्मा के साथ अमरत्व के सुख का भोग कर रही थी।  
प्रेम में त्याग और बलिदान न हो तो वह प्रेम है ही नहीं। अतः धरमन ने भी प्रेमी की सेना में न केवल स्वयं शामिल हुईं; बल्कि अपनी बहन करमन के हाथों को भी शस्त्र थमायीं और वीरगति को प्राप्त होकर त्याग और बलिदान की असीम ऊँचाई को स्पर्श किया। कोई उस ऊँचाई तक पहुँचने की कल्पना भी नहीं कर सकता।   
आमतौर पर महापुरुषों के जन्म दिन या पुण्यतिथि मनाये जाते हैं पर कुँवर सिंह के देशप्रेम को याद करने के लिए प्रतिवर्ष २३ अप्रील को ‘विजयोत्सव’ मनाया जाता है। इन महान प्रेमी और प्रेमिका को मेरा शत नमन!