-शीतांशु कुमार सहाय
भारत महान है लेकिन इस की महानता दिखायी नहीं दे रही है। विश्व के सब से बड़े लोकतन्त्र के बहुत लोग (सभी नहीं) मुफ़्त सरकारी सुविधाओं की अपेक्षा रखते हैं। पर, यह स्थिति देश को हर तरीके से कमजोर और देशवासियों को अकर्मण्य बना देता है। प्रसन्नता इस बात की है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्रीय सरकार मुफतिया योजनाओं को धीरे-धीरे समाप्त कर रही है। इस सन्दर्भ को एक उदाहरण के माध्यम से समझिये... अर्थशास्त्र के एक प्राध्यापक ने अपने एक बयान में कहा, “मैं ने पहले कभी किसी छात्र को अनुत्तीर्ण नहीं किया, पर हाल ही में मुझे एक पूरी-की-पूरी क्लास को फेल करना पड़ा है l”
आखिर ऐसा क्यों हुआ; क्योंकि उस क्लास छात्रों ने दृढ़तापूर्वक यह कहा था-- “समाजवाद सफल होगा। न कोई गरीब होगा और न कोई धनी होगा।” उन छात्रों का दृढ़ विश्वास है कि यह सब को समान करनेवाला एक महान सिद्धांत है।
तब प्राध्यापक ने कहा– अच्छा ठीक है ! आओ हम क्लास में समाजवाद के अनुरूप एक प्रयोग करते हैं। सफलता पाने वाले सभी छात्रों के विभिन्न ग्रेड (अंकों) का औसत निकाला जाएगा और सब को वही एक काॅमन ग्रेड दिया जायेगा।
पहली परीक्षा के बाद...
सभी ग्रेडों का औसत निकाला गया और प्रत्येक छात्र को B ग्रेड प्राप्त हुआl
जिन छात्रों ने कठिन परिश्रम किया था वे परेशान हो गए और जिन्होंने कम पढ़ाई की थी वे खुश हुए l
दूसरी परीक्षा के लिए कम पढ़नेवाले छात्रों ने पहले से भी और कम पढ़ाई की और जिहोंने कठिन परिश्रम किया था, उन्होंने यह तय किया कि वे भी मुफ़्त का ग्रेड प्राप्त करेंगे और उन्होंने भी कम पढ़ाई की l
दूसरी परीक्षा में ...
सभी का काॅमन ग्रेड D आया l
इस से कोई खुश नहीं था और सब एक-दूसरे को कोसने लगे।
जब तीसरी परीक्षा हुई तो काॅमन ग्रेड F हो गयाl
जैसे-जैसे परीक्षाएँ आगे बढ़ने लगीं, स्कोर कभी ऊपर नहीं उठा; बल्कि और भी नीचे गिरता रहा। आपसी कलह, आरोप-प्रत्यारोप, गाली-गलौज और एक-दूसरे से नाराजगी के परिणाम स्वरूप कोई भी नहीं पढ़ता था; क्योंकि कोई भी छात्र अपने परिश्रम से दूसरे को लाभ नहीं पहुँचाना चाहता था l
अंत में सभी आश्चर्यजनक रूप से फेल हो गए और प्राध्यापक ने उन्हें समझाया-
इसी तरह समाजवाद की नियति भी अंततोगत्वा फेल होने की ही है; क्योंकि इनाम जब बहुत बड़ा होता है तो सफल होने के लिए किया जानेवाला उद्यम भी बहुत बड़ा करना होता है l
परन्तु जब सरकारें मेहनत के सारे लाभ मेहनत करने वालों से छीन कर वंचितों और निकम्मों में बाँट देगी, तो कोई भी न तो मेहनत करना चाहेगा और न ही सफल होने की कोशिश करेगा l
उन्होंने यह भी समझाया-
"इस से निम्नलिखित पाँच सिद्धांत भी निष्कर्षित व प्रतिपादित होते हैं :-
१. यदि आप राष्ट्र को समृद्ध और समाज को सक्षम बनाना चाहते हैं, तो किसी भी व्यक्ति को उस की समृद्धि से बेदखल कर गरीब को समृद्ध बनाने का क़ानून नहीं बना सकते।
२. जो व्यक्ति बिना कार्य किये कुछ प्राप्त करता है, तो वह अवश्य ही अधिक परिश्रम करनेवाले किसी अन्य व्यक्ति के पुरस्कार को छीन कर उसे दिया जाता है।
३. सरकार तब तक किसी को कोई वस्तु नहीं दे सकती, जब तक वह उस वस्तु को किसी अन्य से छीन न ले।
४. आप सम्पदा को बाँटकर उस की वृद्धि नहीं कर सकते।
५. जब किसी राष्ट्र की आधी आबादी यह समझ लेती है कि उसे कोई काम नहीं करना है; क्योंकि शेष आधी आबादी उस की देख-भाल जो कर रही है और बाकी आधी आबादी यह सोचकर ज़्यादा अच्छा कार्य नहीं कर रही कि उस के कर्म का फल किसी दूसरे को मिलना है, तो वहीं से उस राष्ट्र के पतन की शुरुआत हो जाती है।
आप ने पूरा आलेख पढ़ा है तो आप को मैं धन्यवाद देता हूँ और यदि समझ में आया है तो देश हित में आगे शेयर करें...