गुरुवार, 7 अप्रैल 2016

शीतांशु की ओर से नव विक्रम सम्वत् २०७३ की मंगलकामना ! / HAPPY NEW VIKRAM SAMVAT 2073 BY SHEETANSHU

भारतीय संस्कृति और और धर्म में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाला विक्रम संवत् देश के प्रत्येक समाज में परंपरागत ढंग मनाया जाता है। देश पर अंग्रेजों ने बहुत समय तक राज्य किया फिर उनका बाह्य रूप इतना गोरा था कि भारतीय समुदाय उस पर मोहित हो गया और शनैः शनैः उनकी संस्कृति, परिधान, खानपान तथा रहन सहन अपना लिया भले ही वह अपने देश के अनुकूल नहीं था। अंग्रेज चले गये पर उनके मानसपुत्रों की कमी नहीं है। सच तो यह है कि अंग्रेज वह कौम है जिसको बिना मांगे ही दत्तक पुत्र मिल जाते हैं जो भारतीय माता पिता स्वयं उनको सौंपते हैं। सच तो यह है कि विक्रम संवत् ही हमें अपनी संस्कृति की याद दिलाता है और कम से कम इस बात की अनुभूति तो होती है कि भारतीय संस्कृति से जुड़े सारे समुदाय इसे एक साथ बिना प्रचार और नाटकीयता से परे होकर मनाते हैं। दुनिया का लगभग प्रत्येक कैलेण्डर सर्दी के बाद बसंत ऋतू से ही प्रारम्भ होता है, यहाँ तक की ईस्वी सन बाला कैलेण्डर (जो आजकल प्रचलन में है) वो भी मार्च से प्रारम्भ होना था। इस कलेंडर को बनाने में कोई नयी खगोलीये गणना करने के बजाये सीधे से भारतीय कैलेण्डर (विक्रम संवत्) में से ही उठा लिया गया था। आइये जाने क्या है इस कैलेण्डर का इतिहास: दुनिया में सबसे पहले तारों, ग्रहों, नक्षत्रो आदि को समझने का सफल प्रयास भारत में ही हुआ था, तारों, ग्रहों, नक्षत्रो, चाँद, सूरज आदि की गति को समझने के बाद भारत के महान खगोल शास्त्रीयो ने भारतीय कलेंडर (विक्रम संवत्) तैयार किया, इसके महत्व को उस समय सारी दुनिया ने समझा। लेकिन यह इतना अधिक व्यापक था कि - आम आदमी इसे आसानी से नहीं समझ पाता था, खासकर पश्चिम जगत के अल्पज्ञानी तो बिल्कुल भी नहीं। किसी भी विशेष दिन, त्यौहार आदि के बारे में जानकारी लेने के लिए विद्वान् (पंडित) के पास जाना पड़ता था। अलग अलग देशों के सम्राट और खगोलशास्त्री भी अपने अपने हिसाब से कैलेण्डर बनाने का प्रयास करते रहे। इसके प्रचलन में आने के 57 वर्ष के बाद सम्राट आगस्तीन के समय में पश्चिमी कैलेण्डर (ईस्वी सन) विकसित हुआ। लेकिन उसमें कुछ भी नया खोजने के बजाए, भारतीय कैलेंडर को लेकर सीधा और आसान बनाने का प्रयास किया था। पृथ्वी द्वारा 365/366 दिन में होनेवाली सूर्य की परिक्रमा को वर्ष और इस अवधि में चंद्रमा द्वारा पृथ्वी के लगभग 12 चक्कर को आधार मान कर कैलेण्डर तैयार किया और क्रम संख्या के आधार पर उनके नाम रख दिए गए। पहला महीना मार्च (एकम्बर) से नया साल प्रारम्भ होना था। 1. एकाम्बर ( 31 दिन) 2. दुयीआम्बर (30 दिन) 3. तिरियाम्बर (31 दिन) 4. चौथाम्बर (30 दिन) 5. पंचाम्बर (31 दिन) 6.षष्ठम्बर (30 दिन) 7. सेप्तम्बर (31 दिन) 8. ओक्टाम्बर (30 दिन) 9. नबम्बर (31 दिन) 10. दिसंबर ( 30 दिन) 11. ग्याराम्बर (31 दिन) 12. बारम्बर (30/29 दिन) निर्धारित किया गया।
सेप्तम्बर में सप्त अर्थात सात, अक्तूबर में ओक्ट अर्थात आठ, नबम्बर में नव अर्थात नौ, दिसंबर में दस का उच्चारण महज इत्तेफाक नहीं है लेकिन फिर सम्राट आगस्तीन ने अपने जन्म माह का नाम अपने नाम पर आगस्त (षष्ठम्बर को बदलकर) और भूतपूर्व महान सम्राट जुलियस के नाम पर जुलाई (पंचाम्बर) रख दिया। इसी तरह कुछ अन्य महीनों के नाम भी बदल दिए गए। फिर वर्ष की शरुआत ईसा मसीह के जन्म के 6 दिन बाद (जन्म छठी) से प्रारम्भ माना गया। नाम भी बदल इस प्रकार कर दिए गए थे। जनवरी (31 दिन), फरबरी (30/29 दिन), मार्च (31 दिन), अप्रैल (30 दिन), मई (31 दिन), जून (30 दिन), जुलाई (31 दिन), अगस्त (30 दिन), सितम्बर (31 दिन), अक्टूबर (30 दिन), नवम्बर (31 दिन), दिसंबर (30 दिन) माना गया। फिर अचानक सम्राट आगस्तीन को ये लगा कि उसके नाम वाला महीना आगस्त छोटा (30 दिन) का हो गया है तो उसने जिद पकड़ ली कि उसके नामवाला महीना 31 दिन का होना चाहिए। राजहठ को देखते हुए खगोल शास्त्रीयों ने जुलाई के बाद अगस्त को भी 31 दिन का कर दिया और उसके बाद वाले सेप्तम्बर को 30 दिन, अक्तूबर को 31 दिन, नबम्बर को 30 दिन, दिसंबर को 31 दिन का कर दिया। एक दिन को एडजस्ट करने के लिए पहले से ही छोटे महीने फरवरी को और छोटा करके 28/29 दिन कर दिया गया।
हमें पूर्णरूप से वैज्ञानिक और भारतीय कलेंडर (विक्रम संवत्) के अनुसार आनेवाले नववर्ष प्रतिपदा पर समाज उपयोगी सेवाकार्य करते हुए नववर्ष का स्वागत करना चाहिये। हिंदू धर्म की तरह ही हर धर्म में नया साल मनाया जाता है लेकिन इसका समय भिन्न-भिन्न होता है तथा तरीका भी। किसी धर्म में नाच-गाकर नए साल का स्वागत किया जाता है तो कहीं पूजा-पाठ व ईश्वर की आराधना कर। आप भी जानिए किस धर्म में नया साल कब मनाया जाता है-
1. हिंदू नववर्ष : हिंदू नवर्ष का प्रारंभ चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा (इस बार 08 अप्रैल 2016) से माना जाता है। इसे हिंदू नवसंवत्सर या नवसंवत् भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। इसी दिन से विक्रम संवत् के नए साल का आरंभ भी होता है। इसे गुड़ी पड़वा, उगादि आदि नामों से भारत के अनेक क्षेत्रों में मनाया जाता है।
2. इस्लामी नववर्ष : इस्लामी कैलेंडर के अनुसार मोहर्रम महीने की पहली तारीख को मुसलमानों का नया साल हिजरी शुरू होता है। इस्लामी या हिजरी कैलेंडर एक चंद्र कैलेंडर है, जो न सिर्फ मुस्लिम देशों में इस्तेमाल होता है बल्कि दुनियाभर के मुसलमान भी इस्लामिक धार्मिक पर्वों को मनाने का सही समय जानने के लिए इसी का इस्तेमाल करते हैं।
3. ईसाई नववर्ष : ईसाई धर्मावलंबी 1 जनवरी को नव वर्ष मनाते हैं। करीब 4000 वर्ष पहले बेबीलोन में नया वर्ष 21 मार्च को मनाया जाता था जो कि वसंत के आगमन की तिथि भी मानी जाती थी। तब रोम के तानाशाह जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45वें वर्ष में जब जूलियन कैलेंडर की स्थापना की, उस समय विश्व में पहली बार 1 जनवरी को नए वर्ष का उत्सव मनाया गया। तब से आज तक ईसाई धर्म के लोग इसी दिन नया साल मनाते हैं। यह सबसे ज्यादा प्रचलित नव वर्ष है।
4. सिंधी नववर्ष : सिंधी नववर्ष चेटीचंड उत्सव से शुरु होता है, जो चैत्र शुक्ल दिवतीया को मनाया जाता है। सिंधी मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान झूलेलाल का जन्म हुआ था जो वरुणदेव के अवतार थे।
सिक्ख नववर्ष : पंजाब में नया साल वैशाखी पर्व के रूप में मनाया जाता है। जो अप्रैल में आती है। सिक्ख नानकशाही कैलेंडर के अनुसार होला मोहल्ला (होली के दूसरे दिन) नया साल होता है।
5. जैन नववर्ष : ज़ैन नववर्ष दीपावली से अगले दिन होता है। भगवान महावीर स्वामी की मोक्ष प्राप्ति के अगले दिन यह शुरू होता है। इसे वीर निर्वाण संवत कहते हैं।
6. पारसी नववर्ष : पारसी धर्म का नया वर्ष नवरोज के रूप में मनाया जाता है। आमतौर पर 19 अगस्त को नवरोज का उत्सव पारसी लोग मनाते हैं। लगभग 3000 वर्ष पूर्व शाह जमशेदजी ने पारसी धर्म में नवरोज मनाने की शुरुआत की। नव अर्थात् नया और रोज यानि दिन।
7. हिब्रू नववर्ष : हिब्रू मान्यताओं के अनुसार भगवान द्वारा विश्व को बनाने में सात दिन लगे थे। इन सात दिन के संधान के बाद नया वर्ष मनाया जाता है। यह दिन ग्रेगरी कैलेंडर के मुताबिक 5 सितम्बर से 5 अक्टूबर के बीच आता है।

मंगलवार, 5 अप्रैल 2016

रूक सकता है फिल्म ‘फैन’ का प्रदर्शन / May Pause the Movie "Fan" Display

-शीतांशु कुमार सहाय
शाहरूख खान अभिनीत फिल्म ‘फैन’ का प्रदर्शन आगामी 15 अप्रैल 2016 को होना तय है। इसी लिहाज से फिल्म की निर्माण कम्पनी यशराज फिल्म्स ने जोर-शोर से प्रचार अभियान चला रखा है। पर, इस बीच यह समाचार आ रहा है कि फिल्म ‘फैन’ की कहानी चोरी की है। फिल्म राइटर्स एसोसिएशन के निबन्धित फिल्म कथाकार पटना के अमित कुमार नयनन ने दावा किया है कि फिल्म ‘फैन’ की कहानी उनकी है। उनकी यह कहानी फिल्म राइटर्स एसोसिएशन में पंजीकृत है। इस बाबत जब अमित को पता चला कि उनकी कहानी पर यशराज फिल्म्स के बैनर तले चोरी-छिपे मनीष शर्मा के निर्देशन में शाहरूख खान के नायकत्व में ‘फैन’ नाम से फिल्म का निर्माण जारी है तो उन्होंने उक्त बैनर के पते पर 20 से 29 अगस्त 2015 के बीच फोन किया और ई-मेल भी भेजे पर कोई जवाब नहीं दिया गया। अन्ततः अमित ने यशराज फिल्म्स के पते पर निर्देशक मनीष शर्मा के नाम 29 अक्तूबर 2015 को कानूनी नोटिस भेजा पर इसका भी प्रत्युत्तर नहीं आया। तब अमित ने 20 जनवरी 2016 को पटना उच्च न्यायालय की शरण ली। अमित के मामले की गंभीरता को देखते हुए पटना उच्च न्यायालय ने रिट याचिका के रूप में मामले को स्वीकृत किया है जिसकी सुनवाई शीघ्र होनी है। इस कारण शाहरूख खान व यशराज फिल्म्स की यह महत्त्वाकांक्षी फिल्म निर्धारिम तिथि 15 अप्रैल 2016 को प्रदर्शित नहीं भी हो सकती है। फिल्म के निर्माता आदित्य चोपड़ा हैं।



रविवार, 3 अप्रैल 2016

हिन्दू-मुस्लिम एकता को नया आयाम : पण्डित ने पढ़ा वैदिक मन्त्र, रखी मस्जिद की नींव / Vedic Mantras Read by the Priest, Laid the Foundations of the Mosque



-शीतांशु कुमार सहाय
इस समय देशभर में काँग्रेस और वामपंथी दल वाले भारत माता की बेइज्जती पर उतारू हैं। वे कभी तथाकथित साम्प्रदायिकता का मुद्दा उठाते हैं तो कभी आरक्षण के बहाने समाज को जातिवाद की ज्वाला में धकेलने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे देशद्रोही नेता भारत की एकता के दुश्मन हैं मगर देशवासी इनकी मौकापरस्ती को कामयाब नहीं होने देंगे। ऐसे नेताओं के गाल पर करारा तमाचा जड़ा है ग्रेटर नोएडा के मुसलमानों ने। वहाँ के मुसलमानों ने हिन्दू-मुस्लिम एकता को नया आयाम देते हुए ब्राह्मण पुजारी से वैदिक मन्त्रोच्चार करवाते हुए उन्हीं के हाथों मस्जिद की आधारशिला रखवायी। भारत के सभी कट्टर हिन्दुओं और कट्टर मुसलमानों को यह समझना ही होगा कि उनकी समाज में फूट डालने की रणनीति कभी कामयाब नहीं होगी। 
ग्रेटर नोएडा का बिसाहड़ा गाँव हिन्दू-मुस्लिम विवाद के लिए आजकल सुर्खियों में है। देश में भारत माता की जय बोलने पर फतवे आ रहे हैं। वहीं ग्रेटर नोएडा के खेरली भाव गाँव के मुसलमानों ने आपसी भाईचारे और सांप्रदायिक एकता की मिसाल पेश कर दी। गाँव में शनिवार को मस्जिद तामीर हुई। पंडित ने मंत्रोच्चारण के साथ नींव रखी। मुसलमानों ने भी कलाई पर कलावा (मौली) बँधवाये और प्रसाद बाँटा गया। खेरली गाँव में एक मस्जिद है। जनसंख्या के लिहाज से बड़ी मस्जिद की जरूरत है। गाँव के मंदिर में पंडित ने तय किया कि शनिवार 2 अप्रैल 2016 को नई मस्जिद की नींव रखी जाय, शुभ मुहूर्त है। खेरली समेत आसपास के गाँव से दोनों समुदायों के सैकड़ों लोग को बुलाया गया। पुजारी बाबा महेन्द्र गिरी ने वैदिक मंत्रोच्चारण किया। नींव खुदवाई। चावल और रोली से नाग देवता की पूजा की। हिन्दू परम्परा के मुताबिक मुसलमानों ने भी कलाई पर कलावा (मौली) बँधवाये। हाजी राज मौहम्मद, नसरू ठेकेदार, ओम प्रकाश सिंह, सतवीर सिंह, अब्दुल सलाम ने नींव में ईंटें रखीं। ग्रामीणों ने कहा गाँव में आज भी लोग भाईचारा व अमन के साथ रहते हैं। नेता अपने फायदे के लिए समाज में जहर घोल रहे हैं। करीब तीन हजार की आबादीवाले इस गाँव में हिन्दू व मुस्लिमों की संख्या लगभग बराबर है। लोग के बीच किसी तरह का मनमुटाव नहीं हुआ। कार्यक्रम में पहुँचे किसान नेता ठाकुर धीरेंद्र सिंह ने ग्रामीणों को बधाई दी।
मस्जिद की नींव रखने के बाद रबूपुरा में किसान नेता धीरेन्द्र सिंह के आवास पर किसान महापंचात का आयोजन किया गया। पंचायत के माध्यम से जाति और सम्प्रदायों में नहीं बंटने की अपील की गई। धीरेन्द्र सिंह ने महापंचायत में कहा कि आज राजनैतिक लोगों ने अपने फायदे के अनुसार समाज को ऐसी स्थिति में पहुँचा दिया है कि अमन पंसद लोग को भाईचारा कायम रखने के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है। वह देश जहाँ अहिंसा और शान्ति का संदेश दिया जाता था, आज धार्मिक उन्माद और जातीय संघर्ष का अखाड़ा बन चुका है।
दयौरार गाँव के पूर्व प्रधान यशपाल सिंह ने कहा कि कहने को तो देश को आजाद हुए 67 वर्ष हो चुके हैं लेकिन आज भी हम नौकरशाही और सरकारों के गुलाम हैं। पंचायत में करीब 100 गाँवों के लोग ने भाग लिया। ऐसी पंचायतें पूरे क्षेत्र में होंगी। अगली पंचायत थोरा गाँव में 24 अप्रैल 2016 को बुलाई गई है। इस दौरान किशनचंद शर्मा, राजा नम्बरदार, देवेन्द्र सिंह मास्टर जी, चन्द्रपाल सिंह, धर्मवीर सिंह, किरनपाल सिंह, इन्दर प्रधान, ईश्वरचंद शर्मा, लाला बरूआ, दुष्यन्त प्रताप शर्मा मौजदू रहे।

ठाकुर धीरेंद्र सिंह ने बताया कि खेरली गाँव में कई बिरादरी के लोग एक साथ रहते हैं। ग्रामीणों ने मस्जिद में नींव रखने के लिए बुलाया था। वहाँ हिन्दू पुजारी और मौलाना बैठे मिले। सबको देखकर बड़ी खुशी हुई। यह गाँववालों की ही इच्छा थी कि सारे लोग मिलकर मस्जिद की नींव रखें। मुस्लिम समाज ने बेहतरीन मिसाल पेश की है। 
भारत के सभी कट्टर हिन्दुओं और कट्टर मुसलमानों को यह समझना ही होगा कि उनकी समाज में फूट डालने की रणनीति कभी कामयाब नहीं होगी। 
आइये, भारत की एकता, अखण्डता और साम्प्रदायिक सौहार्द के सदियों पुराने ताने-बाने को और मजबूत बनायें।