-शीतांशु कुमार सहाय
हरिद्वार में भी गंगा का जल इतना गंदा है कि पीना तो दूर, यह नहाने लायक भी नहीं बचा है। अब वास्तव में गंगा प्रदूषित हो गयी है। कुछ समय पूर्व तक गंगा बड़े शहरों के किनारे ही प्रदूषित थी और माना जाता था कि यह उत्तर में हरिद्वार आदि स्थानों पर स्वच्छ व पवित्र है। वैसे गंगा की पवित्रता तो हमारी अन्तरात्मा से सम्बन्धित है पर इसके जल की स्वच्छता किसी भी कसौटी पर कानपुर से पटना तक सिद्ध न हो सकी है। इसके बावजूद हम सभी यही मानते थे कि कम-से-कम हरिद्वार में तो हमारी गंगा अवश्य ही स्वच्छ होगी। पर, यह भ्रम भी टूट गया। अब गंगा मैया हिमालय से धरती पर आते ही प्रदूषित हो गयीं। हिमालय के बाद हरिद्वार से मैदानी भाग में गंगा उतरती है। अतः इसे गंगाद्वार भी कहते हैं। हरिद्वार इंडस्ट्रियल और टूरिस्ट हब बन गया है, ऐसे में जब तक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट इन्स्टॉल नहीं किये जाते और पानी की गुणवत्ता पर सख्त निगरानी नहीं रखी जाती, घाटों का पानी प्रदूषित रहेगा।
हरिद्वार में गंगा नदी का जल तकरीबन हर पैमाने पर असुरक्षित है। गंगा को पवित्र नदी माना जाता है। केंद्र सरकार ने गंगा को साफ करने के लिए 'नमामि गंगे' योजना भी चलायी है लेकिन इसका कोई लाभ नहीं मिला पा रहा है। गंगा में प्रदूषण का स्तर इतना बढ़ गया है कि इसका पानी पीने तो क्या नहाने लायक भी नहीं बचा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने एक सूचना का अधिकार (आरटीआई) के जवाब में बताया कि उत्तराखंड में गंगोत्री से लेकर हरिद्वार तक की गंगा नहाने लायक नहीं है। हर पैमाने पर इस पवित्र नदी का पानी अपवित्र और असुरक्षित है। रिपोर्ट के अनुसार, हरिद्वार में गंगा के 20 घाटों पर हर रोज 50,000 से 1 लाख श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाते हैं। हरिद्वार जाकर लोग गंगा में डुबकी लगाकर अपने सारे पाप धोते हैं। पाप दूर हो या न हो पर गंगा अवश्य गन्दी हो गयी।
हरिद्वार के कई नाम हैं, जैसे कपिलस्थान, गंगाद्वार और मायापुरी। यह उस प्रसिद्ध स्थान पर बनाया गया है, जिसके बारे में मान्यता है कि यहाँ राजा दक्ष ने उस यज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें सती ने खुद को भस्म कर लिया था। यज्ञ की जिस अग्नि में सती ने खुद का दाह कर लिया था, वह अग्नि अब भी जल रही है।
चार मानकों पर मापी गयी गुणवत्ता
सीपीसीबी ने उत्तराखंड में गंगोत्री से हरिद्वार जिले तक 11 जगहों से गंगाजल के नमूने गुणवत्ता की जाँच के लिए एकत्रित किए थे। ये 11 जगह 294 किलोमीटर के इलाके में फैली हैं। आरटीआई में इन नमूनों के परीक्षण की रिपोर्ट माँगी गयी थी। सीपीसीबी के वरिष्ठ वैज्ञानिक आरएम भारद्वाज ने बताया कि गंगाजल की गुणवत्ता चार मानकों पर मापी गयी। इनमें डिजाल्वड ऑक्सीजन (डीओ), बॉयोलॉजिक ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी), कोलिफॉर्म (बैक्टीरिया) और तापमान शामिल है। जाँच में पता चला कि हरिद्वार के आसपास गंगाजन में बीओडी, कोलिफॉर्म और दूसरे जहरीले पदार्थों की मात्रा बहुत ज्यादा है।
गंगा जल में मिले जहरीले तत्व
सीपीसीबी के मानकों के मुताबिक, नहाने के एक लीटर पानी में बीओडी का स्तर 3 मिलीग्राम से कम होना चाहिये जबकि गंगा के पानी के नमूनों में यह 6.4 मिलीग्राम से ज्यादा पाया गया। इसके अलावा, हर की पौड़ी के प्रमुख घाटों सहित गंगा के पानी में कोलिफॉर्म भी काफी ज्यादा मात्रा में पाया गया। प्रति 100 मिलीलीटर पानी में कोलिफॉर्म 90 एमपीएन (मोस्ट प्रोबेबल नंबर) होना चाहिये, यह 1600 एमपीएन पाया गया। सीपीसीबी के मानकों के मुताबिक, नहाने के पानी में कोलिफॉर्म की मात्रा प्रति 100 मिलीग्राम में 500 एमपीएन या इससे कम होनी चाहिये। हरिद्वार के गंगा जल में डीओ भी प्रति लीटर 4 से 10.6 मिलीग्राम पाया गया जबकि यह 5 मिलीग्राम होना चाहिये।
गंगा को न करें गन्दा / Do'nt Mess With the Ganges
वर्षों से गंगा के प्रदूषण पर चिन्ता व्यक्त की जाती रही है पर ठोस पहल कभी नहीं हुई। वैसे सरकार अरबों रुपये खर्च करके भी गंगा को साफ नहीं कर सकती। गंगा तभी स्वच्छ हो सकती है जब हम उसे गन्दा करने से बाज आयेंगे। प्रत्येक भारतवासी की जिम्मेदारी है कि गंगा को प्रदूषणमुक्त करने के लिए उठ खड़े हों। इसमें कूड़ा-कचरा न डालें और दूसरों को भी स्वच्छता के लिए प्रेरित करें।
पॉलिथिन, शहर व गाँव की गन्दगियों, नालियों के गन्दे जल, प्रयोग किये गये पूजन की सामग्रियों को गंगा में कभी न फेंकें। नदियों को गन्दा करने की बात किसी भी ग्रन्थ में नहीं है। पूजन सामग्रियों को साफ भूमि को खोदकर उसमें गाड़ देना चाहिये। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति भी बनी रहती है। अब तो कई बड़े मन्दिरों में प्रयोग की गयी पूजन सामग्रियों से जैविक खाद बनाये जा रहे हैं।