-शीतांशु कुमार सहाय
हिन्दू धर्म में तुलसी पूजन की परम्परा प्राचीन काल से है। प्रतिदिन तुलसी की पूजा करना, उन की जड़ को शुद्ध जल अर्पित करना हमारी शुद्ध, स्वस्थ और आनन्दपूर्ण संस्कार का अभिन्न अंग है। हम गुरु, माँ, पिता, भाई या बहन के लिए विशेष डे नहीं मनाते; क्योंकि प्रतिदिन इन के अभिवादन करने का परामर्श हमारा ग्रन्थ देता है और यह हमारी दिनचर्या में शामिल है। वैसे आषाढ़ पूर्णिमा को 'गुरु पूर्णिमा' कहते हैं और उस दिन गुरु की विशेष आराधना की जाती है। पर, सच को थोड़ा और जानिये कि आषाढ़ पूर्णिमा के दिन गुरु वेद व्यास जी का अवतरण दिवस है। इसलिए उन की जयन्ती को 'गुरु पूर्णिमा' कहते हैं। 'श्रीमद्भगवद्गीता' में भगवान ने वेद व्यास जी को अपना ही प्रतिरूप बताया है। इस तरह "कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्" के आधार पर भी गुरु पूर्णिमा की सार्थकता समझ में आती है।
आखिर जिन का पूजन या अभिवादन दिनचर्या में सम्मिलित हो, उन के लिए वर्ष में एक दिन का निर्धारण क्यों?
वैसे पिछले कुछ वर्षों से भारत में २५ दिसम्बर को 'तुलसी पूजन दिवस' मनाने की प्रथा शुरू हुई। इस प्रथा की शुरुआत सन् २०१४ ईस्वी से हुई और इस दौरान देश के कई केंद्रीय मंत्रियों और सन्तों ने तुलसी पूजा के महत्त्व का बखान सोशल मीडिया द्वारा किया था। तब से २५ दिसम्बर को प्रतिवर्ष 'तुलसी पूजन दिवस' मनाया जाने लगा। यदि तुलसी की महत्ता बताने के लिए एक अदद दिवस की आवश्यकता थी तो पहले से ही विक्रम सम्वत् के पञ्चाञ्ग में 'तुलसी विवाह' (कार्तिक शुक्ल एकादशी) के रूप में विद्यमान है। तुलसी विवाह को ही और धूमधाम से, भव्य आयोजन कर, सोशल मीडिया पर प्रचार कर मनाया जाता तो अधिक अच्छा होता।
जब हमारे सारे पर्व-त्योहार विक्रम सम्वत् के अनुसार होते हैं तो फिर 'तुलसी पूजन' अंग्रेजी सम्वत् के अनुसार २५ दिसम्बर को क्यों? वैसे तुलसी पूजा हमारी दिनचर्या में शामिल है और इस के लिए वर्ष में केवल एक दिन का निर्धारण उचित नहीं? अगर इस का निर्धारण किया भी गया तो विक्रम सम्वत् के अनुसार ही दिन निर्धारित किया जाना चाहिये था।
कहीं ऐसा तो नहीं कि हम गणेश चतुर्थी के बदले गणेश दिवस, रामनवमी को छोड़कर राम दिवस, जन्माष्टमी को छोड़कर कृष्ण दिवस, महाशिवरात्रि के बदले शिव दिवस, नवरात्र की जगह दुर्गा दिवस, छठ को छोड़कर सूर्य दिवस की ओर बढ़ रहे हैं?