सोमवार, 15 नवंबर 2010

रंग चिकित्सा (ऋषियों के ज्ञान की पराकाष्ठा)

सूर्य की किरणों की कीटाणुनाशक क्षमता से हमारे ऋषि भलीभांति परिचित थे। वास्तु नियमों में पूर्व दिशा स्नानागार के लिए प्रशस्त मानी गई है। वैदिक काल में उषा काल में स्नान का प्रावधान था। व्यक्ति विटामिन डी से भरपूर लाल सूर्य की किरणों का सेवन करता था और स्वस्थ रहता था। योग में सूर्य नमस्कार और आसन का भी यही उद्देश्य है। त्राटक विधा में बाल सूर्य को एकटक देखे जाने का प्रावधान है। सूर्य की धातु सोना और ताँबा होती है। आयुर्वेदाचार्य ताँबे के पात्र में रात भर रखा हुआ पानी सुबह पीने की सलाह देते हैं, अत: सूर्य की सप्तरश्मियां पूर्ण स्वास्थ्य प्रदान करने वाली हैं। हमारे ऋषि-मुनि भी सूर्य की किरणों में निहित असीम रोगनाशक शक्तियों से अवगत थे। ऋग्वेद और अथर्ववेद में सूर्य भगवान से आरोग्य के आशीर्वाद की कामना के लिए अनेक श्लोक हैं। एक श्लोक का अर्थ है-- '' हे सूर्य नारायण! मेरे हृदय रोग का नाश करो। सर्व रोगों का विनाश कर शांति प्रदान करने वाले, हे सूर्यदेव! आपको शत्-शत् नमस्कार है। हे सूर्य भगवान् आप हमें आयु, आरोग्य और ऎश्वर्य दें।" प्राणियों का संपूर्ण शरीर रंगीन है। शरीर के समस्त अवयवों के रंग अलग-अलग हैं। शरीर की समस्त कोशिकाएँ भी रंगीन हैं। शरीर का कोई अंग रुग्ण (बीमार) होता है, तो उसके रासायनिक द्रव्यों के साथ-साथ रंगों का भी असंतुलन हो जाता है। उन रंगों को रंग चिकित्सा संतुलित कर देती है, जिसके कारण रोग का निवारण हो जाता है। शरीर में जहाँ भी विजातीय द्रव्य एकत्रित होकर रोग उत्पन्न करता है, रंग चिकित्सा उसे दबाती नहीं, शरीर के बाहर निकाल देती है। प्रकृति का यह नियम है कि जो चिकित्सा जितनी स्वाभाविक होगी, उतनी ही प्रभावशाली भी होगी और उसकी प्रतिक्रिया भी न्यूनतम होगी। रंग चिकित्सा जितनी सरल है, उतनी ही कम खर्चीली भी है। संसार में जितनी प्रकार की चिकित्साएँ हैं, उनमें सबसे कम खर्च वाली चिकित्सा है।
चिकित्सा

रंगों के तीन समूह बनाए गए हैं - 1. लाल, पीला और नारंगी 2. हरा 3. नीला, आसमानी और बैंगनी। प्रयोग की सरलता के लिए पहले समूह में से केवल नारंगी रंग का ही प्रयोग होता है। दूसरे में हरे रंग का और तीसरे समूह में से केवल नीले रंग का। अतः नारंगी, हरे और नीले रंग का उपयोग प्रत्येक रोग की चिकित्सा में किया जा सकता है।
जिस रंग की दवाएँ बनानी हों, उस रंग की काँच की बोतल लेकर शुद्ध पानी भरकर 8 घंटे धूप में रखने से दवा तैयार हो जाती है। बोतल थोड़ी खाली होनी चाहिए ढक्कन बंद होना चाहिए। इस प्रकार बनी हुई दवा को चार या पाँच दिन सेवन कर सकते हैं। नारंगी रंग की दवा भोजन करने के बाद 15 से 30 मिनट के अंदर दी जानी चाहिए। हरे तथा नीले रंग की दवाएँ खाली पेट या भोजन से एक घंटा पहले दी जानी चाहिए।
मात्रा-प्रत्येक रंग की दवा की साधारण खुराक 12 वर्ष से ऊपर की उम्र वाले व्यक्ति के लिए 2 औंस यानी 5 तोला होती है। कम आयु वाले बच्चों को कम मात्रा देनी चाहिए। आमतौर पर रोगी को एक दिन में तीन खुराक देना लाभदायक है। 
 सफेद बोतल में पीने का पानी 4-6 घंटे धूप में रखने से वह पानी कीटाणुमुक्त हो जाता है तथा कैल्शियमयुक्त हो जाता है। अगर बच्चों के दाँत निकलते समय वही पानी पिलाया जाए, तो दाँत निकलने में आसानी होती है। इस तथ्य से सामान्यजन अनजान हो सकते हैं परन्तु वैदिक काल में वैद्यों को ज्योतिष का पर्याप्त ज्ञान होता था। जिस प्रकार आयुर्वेद में ज्योतिष का उल्लेख है, उसी प्रकार ज्योतिष शास्त्र में भी कुछ श्लोकों में आयुर्वेद के नुस्खों का सुंदर प्रयोग किया गया है। आधुनिक व्यक्ति, वैदिक कालीन इस तथ्य को जानकर भी इससे अनजान बने हुए हैं। रात्रि में देर से सोना और सुबह देर से उठना, उन्होंने अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाया हुआ है। वे यह तो चाहते हैं कि स्वस्थ रहें परन्तु बाल सूर्य की किरणों के अभाव को ब्यूटी पार्लर में जाकर Sauna Bath से पूरा करते हैं। आधुनिकता का एक और उदाहरण ब़डे होटलों में रूपये देकर सूर्य स्नान का आनन्द लिया जाना भी है। हमें समझना होगा, अपने ऋषियों के ज्ञान की पराकाष्ठा को।
लाल रंग की दवा -- लाल रंग की बोतल में तैयार जल का प्रयोग शरीर पर ऊष्ण प्रभाव के लिए होता है। यह बलदायक होता है तथा विद्युत प्रभाव के कारण शरीर को शक्ति प्रदान करता है। ज्योतिष में लाल रंग मंगल का प्रतीक होता है। जन्म पत्रिका में यदि मंगल सुदृढ़ स्थिति में नहीं हो, तो इसका तात्पर्य है मंगल ग्रह की रश्मि की कमी। ऎसा व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर होता है। लाल रंग की कांच की बोतल लेकर उसमें साफ पानी भरकर धूप में रख दें और शाम को उस जल को पी लें। यही प्रयोग रात में करें। लाल रंग की कांच की बोतल में पानी भरकर रात को अपने घर की छत पर रख दें और सुबह इस जल को पी लें। इससे कमजोर ग्रह की स्थिति में सुधार होगा और आपको लाभ मिलेगा।

पीला
रंग की दवा -- पीले रंग की बोतल में तैयार पानी विशेष रूप से यकृत और प्लीहा पर होता है। यह यकृत की शिथिलता को दूर करता है। ज्योतिष में पीला रंग बृहस्पति देव का माना जाता है। मेडिकल एस्ट्रोलॉजी में बृहस्पति का यकृत पर आधिपत्य माना गया है। यदि जन्म पत्रिका में दुर्बल बृहस्पति छठे भाव में (छठा भाव रोग का भाव है) स्थित हों, तो व्यक्ति यकृत की बीमारी से पीड़ित होता है। पीलिया की शिकायत भी जन्मपत्रिका में पीड़ित बृहस्पति के कारण होती है। पीले रंग की कांच की बोतल लेकर उसमें साफ पानी भरकर धूप में रख दें और शाम को उस जल को पी लें। यही प्रयोग रात में करें। पीले रंग की कांच की बोतल में पानी भरकर रात को घर की छत पर रख दें और सुबह इस जल को पी लें। इससे कमजोर ग्रह की स्थिति में सुधार होगा और आपको लाभ मिलेगा।

नारंगी रंग की दवा- कफजनित खाँसी, बुखार, निमोनिया आदि में लाभदायक। श्वास प्रकोप, क्षय रोग, एसिडीटी, फेफड़े संबंधी रोग, स्नायु दुर्बलता, हृदय रोग, गठिया, पक्षाघात (लकवा) आदि में गुणकारी है। पाचन तंत्र को ठीक रखती है। भूख बढ़ाती है। स्त्रियों के मासिक स्राव की कमी संबंधी कठिनाइयों को दूर करती है।
हरे रंग की दवा खासतौर पर चर्म रोग जैसे- चेचक, फोड़ा-फुंशी, दाद, खुजली आदि में गुणकारी है। साथ ही नेत्र रोगियों के लिए (दवा आँखों में डालना) मधुमेह, रक्तचाप, सिरदर्द आदि में लाभदायक है। जल चिकित्सा में हरे रंग को राजा माना गया है। यह रंग गर्मी और सर्दी को संतुलित करता है। इसका प्रयोग रोगाणुनाशक के रूप में और विजातीय पदार्थ को शरीर से बाहर निकालने में होता है, जो एलर्जी का कारण बनते हैं। ज्योतिष में हरा रंग बुध ग्रह का रंग है। बुध शरीर की प्रतिरोधक क्षमता, एलर्जी आदि के कारक हैं। जन्म पत्रिका में बुध यदि कमजोर हो या पूर्ण अस्त हों तो व्यक्ति सर्दी, जुकाम आदि का शिकार जल्दी-जल्दी होता है तथा धूल, पराग आदि कणों से एलर्जी की शिकायत रहती है। एक हरे रंग की कांच की बोतल लेकर उसमें साफ पानी भरकर धूप में रख दें और शाम को उस जल को पी लें। यही प्रयोग रात में करें। हरे रंग की कांच की बोतल में पानी भरकर रात को अपने घर की छत पर रख दें और सुबह इस जल को पी लें। इससे कमजोर ग्रह की स्थिति में सुधार होगा और आपको लाभ मिलेगा।
नीले रंग की दवा -- शरीर में जलन होने पर, लू लगने पर, आंतरिक रक्तस्राव में आराम पहुँचाता है। तेज बुखार, सिरदर्द को कम करता है। नींद की कमी, उच्च रक्तचाप, हिस्टीरिया, मानसिक विक्षिप्तता में बहुत लाभदायक है। टांसिल, गले की बीमारियाँ, मसूड़े फूलना, दाँत दर्द, मुँह में छाले, पायरिया घाव आदि रोगों में अत्यंत प्रभावशाली है। डायरिया, डिसेन्टरी, वमन, जी मचलाना, हैजा आदि रोगों में आराम पहुँचाता है। जहरीले जीव-जंतु के काटने पर या फूड पॉयजनिंग में लाभ पहुँचाता है। नीले रंग से आवेशित जल का प्रयोग स्नायु तंत्र में दुर्बलता, डिप्रेशन, मिर्गी, कुष्ठ रोगादि के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है। मेडिकल एस्ट्रोलॉजी में शनि को स्नायु तंत्र, मिर्गी आदि का कारक माना गया है। जन्मपत्रिका में शनि यदि पीड़ित अवस्था में हों तो व्यक्ति को स्नायु तंत्र से संबंधित रोगों का सामना करना प़डता है। यदि शनि बलवान हो एवं बुध से संयोग कर लें तो व्यक्ति स्नायु शल्य चिकित्सक (Neuro Surgeon) हो सकता है। एक नीले रंग की कांच की बोतल लेकर उसमें साफ पानी भरकर धूप में रख दें और शाम को उस जल को पी लें। यही प्रयोग रात में करें। नीले रंग की कांच की बोतल में पानी भरकर रात को अपने घर की छत पर रख दें और सुबह इस जल को पी लें। Please read this Article and send to your friends.
रंग चिकित्सा में विभिन्न रंगों वाली बोतलों में तैयार किए गए जल के प्रयोग से इलाज किया जाता है। एक विशिष्ट रंग की बोतल में पानी भरकर उसे धूप में रखा जाता है और फिर इस जल का सेवन किया जाता है। इस विधि में बीमारी और अंग विशेष की पुष्टि के लिए प्रयुक्त रंग की तुलना, ज्योतिष में ग्रहों और उन्हें प्रदत्त रंगों से की जाए, तो आश्चर्यजनक तारतम्य देखने को मिलता है। सूर्य की रश्मियों में 7 रंग पाए जाते हैं- 1. लाल, 2. पीला, 3. नारंगी, 4. हरा, 5. नीला, 6.आसमानी, 7. बैंगनी।

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