स्वागत
नववर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनाएँ!
Please read this Article and send to your friends.! जीवन के नवल वर्ष आओ, नूतन-निर्माण लिये, इस महाजागरण के युग में जाग्रत जीवन अभिमान लिये;
दीनों-दु;खियों का त्राण लिये मानवता का कल्याण लिये, स्वागत! नवयुग के नवल वर्ष! तुम आओ स्वर्ण-विहान लिये।
संसार क्षितिज पर महाक्रान्ति की ज्वालाओं के गान लिये, मेरे भारत के लिये नई प्रेरणा नया उत्थान लिये;
मुर्दा शरीर में नये प्राण प्राणों में नव अरमान लिये, स्वागत!स्वागत! मेरे आगत! तुम आओ स्वर्ण विहान लिये!
युग-युग तक पिसते आये कृषकों को जीवन-दान लिये, कंकाल-मात्र रह गये शेष मजदूरों का नव त्राण लिये;
श्रमिकों का नव संगठन लिये, पददलितों का उत्थान लिये; स्वागत!स्वागत! मेरे आगत! तुम आओ स्वर्ण विहान लिये!
सत्ताधारी साम्राज्यवाद के मद का चिर-अवसान लिये, दुर्बल को अभयदान, भूखे को रोटी का सामान लिये;
जीवन में नूतन क्रान्ति क्रान्ति में नये-नये बलिदान लिये, स्वागत! जीवन के नवल वर्ष आओ, तुम स्वर्ण विहान लिये!
शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010
गुरुवार, 23 दिसंबर 2010
अयोध्या विवाद संबंधी इतिहास और घटनाक्रम
अयोध्या में विवादित भूमि का मुद्दा दशकों से एक भावनात्मक मुद्दा बना हुआ है और इसे लेकर विभिन्न हिंदू एवं मुस्लिम संगठनों ने तमाम कानूनी वाद दायर कर रखे हैं। अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद को लेकर इतिहास एवं घटनाक्रम इस प्रकार है।
--1528: मुगल बादशाह बाबर ने उस भूमि पर एक मस्जिद बनवाई जिसके बारे हिंदुओं का दावा है कि वह भगवान राम की जन्मभूमि है और वहां पहले एक मंदिर था।
--1853: विवादित भूमि पर सांप्रदायिक हिंसा संबंधी घटनाओं का दस्तावेजों में दर्ज पहला प्रमाण।
--1859: ब्रिटिश अधिकारियों ने एक बाड़ बनाकर पूजास्थलों को अलग-अलग किया। अंदरुनी हिस्सा मुस्लिमों को दिया गया और बाहरी हिस्सा हिंदुओं को।
--1885: महंत रघुवीर दास ने एक याचिका दायर कर रामचबूतरे पर छतरी बनवाने की अनुमति मांगी, लेकिन एक साल बाद फैजाबाद की जिला अदालत ने अनुरोध खारिज कर दिया।
--1949: मस्जिद के भीतर भगवान राम की प्रतिमाओं का प्राकट्य। मुस्लिमों का दावा कि हिंदुओं ने प्रतिमाएं भीतर रखवाई। मुस्लिमों का विरोध। दोनों पक्षों ने दीवानी याचिकाएं दायर की। सरकार ने परिसर को विवादित क्षेत्र घोषित किया और द्वार बंद कर दिए।
--18 जनवरी 1950: मालिकाना हक के बारे में पहला वाद गोपाल सिंह विशारद ने दायर किया। उन्होंने मांग की कि जन्मभूमि में स्थापित प्रतिमाओं की पूजा का अधिकार दिया जाए। अदालत ने प्रतिमाओं को हटाने पर रोक लगाई और पूजा जारी रखने की अनुमति दी।
--24 अपै्रल 1950: उप्र राज्य ने लगाई रोक। रोक के खिलाफ अपील।
--1950: रामचन्द्र परमहंस ने एक अन्य वाद दायर किया लेकिन बाद में वापस ले लिया।
--1959: निर्मोही अखाड़ा भी विवाद में शामिल हो गया तथा तीसरा वाद दायर किया। उसने विवादित भूमि पर स्वामित्व का दावा करते हुए कहा कि अदालत द्वारा नियुक्त रिसीवर हटाया जाए। उसने खुद को उस स्थल का संरक्षक बताया जहां माना जाता है कि भगवान राम का जन्म हुआ था।
--18 दिसंबर 1961: उप्र सुन्नी सेन्ट्रल बोर्ड आफ वक्फ भी विवाद में शामिल हुआ। उसने मस्जिद और आसपास की भूमि पर अपने स्वामित्व का दावा किया।
--1986: जिला न्यायाधीश ने हरिशंकर दुबे की याचिका पर मस्जिद के फाटक खोलने और 'दर्शन' की अनुमति प्रदान की। मुस्लिमों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित की।
--1989: विहिप के उपाध्यक्ष देवकी नंदन अग्रवाल ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में एक ताजा याचिका दायर करते हुए मालिकाना हक और स्वामित्व भगवान राम के नाम पर घोषित करने का अनुरोध किया।
--23 अक्टूबर 1989: फैजाबाद में विचाराधीन सभी चारों वादों को इलाहाबाद हाईकोर्ट की विशेष पीठ में स्थानांतरित किया गया।
--1989: विहिप ने विवादित मस्जिद के समीप की भूमि पर राममंदिर का शिलान्यास किया।
--1990: विहिप के स्वयंसेवकों ने मस्जिद को आंशिक तौर पर क्षतिग्रस्त किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने बातचीत के जरिए विवाद का हल निकालने का प्रयास किया।
--6 दिसंबर 1992: विवादित मस्जिद को विहिप, शिवसेना और भाजपा के समर्थन में हिंदू स्वयंसेवकों ने ढहाया। इसके चलते देश भर में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे, जिनमें 2000 से अधिक लोगों की जान गई।
--16 दिसंबर 1992: विवादित ढांचे को ढहाए जाने की जांच के लिए न्यायमूर्ति लिब्रहान आयोग का गठन। छह माह के भीतर जांच खत्म करने को कहा गया।
--जुलाई 1996: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सभी दीवानी वादों पर एकसाथ सुनवाई करवाने को कहा।
--2002: हाईकोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से खुदाई कर यह पता लगाने को कहा कि क्या विवादित भूमि के नीचे कोई मंदिर था।
--अपै्रल 2002: हाईकोर्ट के तीन न्यायाधीशों ने सुनवाई शुरू की।
--जनवरी 2003: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अदालत के आदेश पर खुदाई शुरू की, ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या वहां भगवान राम का मंदिर था।
--अगस्त 2003: सर्वेक्षण में कहा गया कि मस्जिद के नीचे मंदिर होने के प्रमाण। मुस्लिमों ने निष्कर्षो से मतभेद जताया।
--जुलाई 2005: संदिग्ध इस्लामी आतंकी ने विवादित स्थल पर हमला किया। सुरक्षा बलों ने पांच आदमियों को मारा।
--जून 2009: लिब्रहान आयोग ने अपनी जांच शुरू करने के 17 साल बाद अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस बीच आयोग का कार्यकाल 48 बार बढ़ाया गया।
--26 जुलाई 2010: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने वादों पर अपना फैसला सुरक्षित रखा। फैसला सुनाने की तारीख 24 सितंबर तय की।
--17 सितंबर 2010: हाईकोर्ट ने एक पक्ष रमेश चंद्र त्रिपाठी के अनुरोध को खारिज करते हुए अपना फैसला सुनाने की तिथि टालने से किया इनकार।
--21 सितंबर 2010: त्रिपाठी हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर और न्यायमूर्ति एके पटनायक की पीठ ने मामले पर सुनवाई से किया इनकार। मामले को अन्य पीठ के पास भेजा गया।
--23 सितंबर 2010: याचिका पर सुनवाई किए जाने के मामले में न्यायमूर्ति आर वी रवींद्रन और न्यायमूर्ति एच एल गोखले ने दी अलग-अलग राय। कोर्ट ने पक्षों को नोटिस जारी किए।
--28 सितंबर 2010: सुप्रीम कोर्ट का हाईकोर्ट को फैसला सुनाने की तिथि टालने का निर्देश देने से इकार। हाईकोर्ट ने फैसला सुनाने की तिथि 30 सितंबर तय की।
--30 सितंबर 2010 इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के न्यायाधीशों ने फैसला सुनाया।Please read this Article and send to your friends.
--1528: मुगल बादशाह बाबर ने उस भूमि पर एक मस्जिद बनवाई जिसके बारे हिंदुओं का दावा है कि वह भगवान राम की जन्मभूमि है और वहां पहले एक मंदिर था।
--1853: विवादित भूमि पर सांप्रदायिक हिंसा संबंधी घटनाओं का दस्तावेजों में दर्ज पहला प्रमाण।
--1859: ब्रिटिश अधिकारियों ने एक बाड़ बनाकर पूजास्थलों को अलग-अलग किया। अंदरुनी हिस्सा मुस्लिमों को दिया गया और बाहरी हिस्सा हिंदुओं को।
--1885: महंत रघुवीर दास ने एक याचिका दायर कर रामचबूतरे पर छतरी बनवाने की अनुमति मांगी, लेकिन एक साल बाद फैजाबाद की जिला अदालत ने अनुरोध खारिज कर दिया।
--1949: मस्जिद के भीतर भगवान राम की प्रतिमाओं का प्राकट्य। मुस्लिमों का दावा कि हिंदुओं ने प्रतिमाएं भीतर रखवाई। मुस्लिमों का विरोध। दोनों पक्षों ने दीवानी याचिकाएं दायर की। सरकार ने परिसर को विवादित क्षेत्र घोषित किया और द्वार बंद कर दिए।
--18 जनवरी 1950: मालिकाना हक के बारे में पहला वाद गोपाल सिंह विशारद ने दायर किया। उन्होंने मांग की कि जन्मभूमि में स्थापित प्रतिमाओं की पूजा का अधिकार दिया जाए। अदालत ने प्रतिमाओं को हटाने पर रोक लगाई और पूजा जारी रखने की अनुमति दी।
--24 अपै्रल 1950: उप्र राज्य ने लगाई रोक। रोक के खिलाफ अपील।
--1950: रामचन्द्र परमहंस ने एक अन्य वाद दायर किया लेकिन बाद में वापस ले लिया।
--1959: निर्मोही अखाड़ा भी विवाद में शामिल हो गया तथा तीसरा वाद दायर किया। उसने विवादित भूमि पर स्वामित्व का दावा करते हुए कहा कि अदालत द्वारा नियुक्त रिसीवर हटाया जाए। उसने खुद को उस स्थल का संरक्षक बताया जहां माना जाता है कि भगवान राम का जन्म हुआ था।
--18 दिसंबर 1961: उप्र सुन्नी सेन्ट्रल बोर्ड आफ वक्फ भी विवाद में शामिल हुआ। उसने मस्जिद और आसपास की भूमि पर अपने स्वामित्व का दावा किया।
--1986: जिला न्यायाधीश ने हरिशंकर दुबे की याचिका पर मस्जिद के फाटक खोलने और 'दर्शन' की अनुमति प्रदान की। मुस्लिमों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित की।
--1989: विहिप के उपाध्यक्ष देवकी नंदन अग्रवाल ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में एक ताजा याचिका दायर करते हुए मालिकाना हक और स्वामित्व भगवान राम के नाम पर घोषित करने का अनुरोध किया।
--23 अक्टूबर 1989: फैजाबाद में विचाराधीन सभी चारों वादों को इलाहाबाद हाईकोर्ट की विशेष पीठ में स्थानांतरित किया गया।
--1989: विहिप ने विवादित मस्जिद के समीप की भूमि पर राममंदिर का शिलान्यास किया।
--1990: विहिप के स्वयंसेवकों ने मस्जिद को आंशिक तौर पर क्षतिग्रस्त किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने बातचीत के जरिए विवाद का हल निकालने का प्रयास किया।
--6 दिसंबर 1992: विवादित मस्जिद को विहिप, शिवसेना और भाजपा के समर्थन में हिंदू स्वयंसेवकों ने ढहाया। इसके चलते देश भर में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे, जिनमें 2000 से अधिक लोगों की जान गई।
--16 दिसंबर 1992: विवादित ढांचे को ढहाए जाने की जांच के लिए न्यायमूर्ति लिब्रहान आयोग का गठन। छह माह के भीतर जांच खत्म करने को कहा गया।
--जुलाई 1996: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सभी दीवानी वादों पर एकसाथ सुनवाई करवाने को कहा।
--2002: हाईकोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से खुदाई कर यह पता लगाने को कहा कि क्या विवादित भूमि के नीचे कोई मंदिर था।
--अपै्रल 2002: हाईकोर्ट के तीन न्यायाधीशों ने सुनवाई शुरू की।
--जनवरी 2003: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अदालत के आदेश पर खुदाई शुरू की, ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या वहां भगवान राम का मंदिर था।
--अगस्त 2003: सर्वेक्षण में कहा गया कि मस्जिद के नीचे मंदिर होने के प्रमाण। मुस्लिमों ने निष्कर्षो से मतभेद जताया।
--जुलाई 2005: संदिग्ध इस्लामी आतंकी ने विवादित स्थल पर हमला किया। सुरक्षा बलों ने पांच आदमियों को मारा।
--जून 2009: लिब्रहान आयोग ने अपनी जांच शुरू करने के 17 साल बाद अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस बीच आयोग का कार्यकाल 48 बार बढ़ाया गया।
--26 जुलाई 2010: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने वादों पर अपना फैसला सुरक्षित रखा। फैसला सुनाने की तारीख 24 सितंबर तय की।
--17 सितंबर 2010: हाईकोर्ट ने एक पक्ष रमेश चंद्र त्रिपाठी के अनुरोध को खारिज करते हुए अपना फैसला सुनाने की तिथि टालने से किया इनकार।
--21 सितंबर 2010: त्रिपाठी हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर और न्यायमूर्ति एके पटनायक की पीठ ने मामले पर सुनवाई से किया इनकार। मामले को अन्य पीठ के पास भेजा गया।
--23 सितंबर 2010: याचिका पर सुनवाई किए जाने के मामले में न्यायमूर्ति आर वी रवींद्रन और न्यायमूर्ति एच एल गोखले ने दी अलग-अलग राय। कोर्ट ने पक्षों को नोटिस जारी किए।
--28 सितंबर 2010: सुप्रीम कोर्ट का हाईकोर्ट को फैसला सुनाने की तिथि टालने का निर्देश देने से इकार। हाईकोर्ट ने फैसला सुनाने की तिथि 30 सितंबर तय की।
--30 सितंबर 2010 इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के न्यायाधीशों ने फैसला सुनाया।Please read this Article and send to your friends.
सोमवार, 20 दिसंबर 2010
शाकाहार
विभिन्न प्रकार के अनुसंधानों से यह पुष्टि कर दिया है की मनुष्य शरीर की रचना के अनुसार शाकाहारी प्राणी है. शाकाहार ही मनुष्य की प्रकृति और उसके शरीर तंत्र की अन्दुरुनी एवं बाहरी संरचना के सर्वथा अनुकूल है. प्रसिद्ध अमेरिकी बिजनेस पत्रिका 'फोर्ब्स' के अनुसार 1998 से 2003 तक शाकाहारी खाद्य पदार्थों की बिक्री दुगुनी हो गई है. आज के तनाव भरी आर्थिक और विषम सामाजिक परिस्थितियों में जी रहा मनुष्य यही चाहता है कि वह किसी भी प्रकार के शारीरिक व मानसिक दुःख से पीड़ित न हो. प्रत्येक व्यक्ति मन और तन दोनों से स्वस्थ रहना चाहता है. सामान्य रूप से मनुष्य का शरीर सौ वर्ष तक या उससे अधिक भी स्वस्थ रह सकता है. स्वस्थ रहने और लम्बी आयु के लिए आवश्यक है संयमित और सात्विक जीवनचर्या का पालन. मनुष्य अपने आचार, विचार और आहार की पवित्रता से ही जीवन का सदुपयोग करते हुए भरपूर आनन्द उठा सकता है. आज दुनिया के बड़े-बड़े देश शाकाहार अपना रहे है. सर्वेक्षण के अनुसार शाकाहार अपनाने के पीछे 34 प्रतिशत लोगो का मानना है कि वे मांसाहार को अनैतिक मानते हुए शाकाहार बने है. 12 प्रतिशत धार्मिक कारणों से, तो 6 प्रतिशत अपने परिजनों और दोस्तों की वजह से शाकाहारी बने है. अब शाकाहार एक अभियान बनता जा रहा है. शाकाहार में भोजन तंतु उचित मात्रा में होते है. भोजन तंतुओं से पाचन तंत्र सही तरीके से संचालित होता है. शाकाहार से व्यक्ति कब्ज़, कोलाइटिस, बवासीर से काफी हद तक बचा रहता है और आँतों के कैंसर की सम्भावना कम हो जाती है. शाकाहार में सभी पोषक तत्व प्रोटीन, विटामिन, खनिज-लवण उचित अनुपात में होते है. वैज्ञानिक व विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह सिद्ध कर दिया है कि भीषण बीमारियों जैसे कैंसर, ह्रदय रोग आदि को शाकाहार द्वारा काफी हद तक कम किया जा सकता है. शाकाहारी भोजन में वसा उचित अनुपात में होती है, बहुत ज्यादा भी नहीं और बहुत कम भी नहीं परन्तु मांसाहारी भोजन में वसा की प्रचुरता होती है जिसके कारण हृदय रोग की सम्भावना भी बढ़ जाती है. वसा की अधिकता से रक्त में कोलेस्ट्रोल का स्तर बढ़ जाता है. कोलेस्ट्रोल से रक्त नलिकाएं तंग हो जाती है जिससे रक्त प्रवाह में अवरोध उत्पन्न होने लग जाता है. यह हार्ट अटैक का एक प्रमुख कारण है. हृदय रोग से बचने के लिए मनुष्य को मांसाहार का सेवन बिलकुल नहीं करना चाहिए. Please read this Article and send to your friends.
बुधवार, 8 दिसंबर 2010
सूर्य की आराधना
-
सभी प्राणियों के पोषक, दिवा-रात्रि और ऋतु परिवर्तन के कारक, विभिन्न व्याधियों के विनाशक सूर्यदेव को हम नमस्कार निवेदित करते हैं।
(
सूर्य
सूर्यदेव
Please read this Article and send to your friends. न केवल अन्न, फल आदि को पकाते हैं, बल्कि नदियों, समुद्रों से जल ग्रहण कर पृथ्वी पर वर्षा भी कराते हैं। संपूर्ण प्राणियों के वे पोषक हैं। साथ ही, उपासना करने पर वे सभी प्रकार की मनोकामनाओं की पूर्ति करने में भी सक्षम हैं। मान्यता है कि चर्म रोग, जिसमें कोढ़ के समान कठिन रोग भी सम्मिलित है, से छुटकारा पाने के लिए सूर्योपासना सर्वाधिक सशक्त साधन है। सूर्य की उपासना हमें दीर्घायु भी बनाती है। अथर्ववेद में कहा गया है- ''आकाश की पीठ पर उड़ते हुए अदिति (देवताओं की माता) के पुत्र सुंदर पक्षी सूर्य के निकट कुछ मांगने के लिए डरता हुआ जाता है। हे सूर्य! आप हमारी आयु दीर्घ करें। हमें कष्टों से रहित करें। हम पर आपकी अनुकंपा बनी रहे।'' की आराधना ऋग्वैदिक काल से ही प्रचलित है। ऋग्वेद के एक सूक्त में सूर्य को सभी मनुष्यों का जनक, उनका प्रेरक और इच्छित फलदाता बताया गया है। सूर्योपासना के विभिन्न रूप प्रचलित हैं। प्राचीनकाल में ऋषि-महर्षि नदियों-सरोवरों के जल में पूर्व की ओर मुख कर सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते थे। कुछ लोग गायत्री मंत्र ,जो सूर्य से संबंधित है, का जाप कर उन्हें प्रसन्न करते थे। गायत्री मंत्र में सूर्य को बुद्धि को प्रखर करने वाला और पाप का विनाशक माना गया है। गायत्री मंत्र है- ऊँ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्। (जो भू, भुव: और स्व: तीनों को प्रकाशित करता है, उस पापनाशक सूर्यदेव की श्रेष्ठ शक्ति का हम ध्यान करते हैं, जिससे हमारी बुद्धि प्रखर हो। ) ऊँ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्। )शीतांशु कुमार सहाय
सभी प्राणियों के पोषक, दिवा-रात्रि और ऋतु परिवर्तन के कारक, विभिन्न व्याधियों के विनाशक सूर्यदेव को हम नमस्कार निवेदित करते हैं।
(
सूर्य
सूर्यदेव
Please read this Article and send to your friends. न केवल अन्न, फल आदि को पकाते हैं, बल्कि नदियों, समुद्रों से जल ग्रहण कर पृथ्वी पर वर्षा भी कराते हैं। संपूर्ण प्राणियों के वे पोषक हैं। साथ ही, उपासना करने पर वे सभी प्रकार की मनोकामनाओं की पूर्ति करने में भी सक्षम हैं। मान्यता है कि चर्म रोग, जिसमें कोढ़ के समान कठिन रोग भी सम्मिलित है, से छुटकारा पाने के लिए सूर्योपासना सर्वाधिक सशक्त साधन है। सूर्य की उपासना हमें दीर्घायु भी बनाती है। अथर्ववेद में कहा गया है- ''आकाश की पीठ पर उड़ते हुए अदिति (देवताओं की माता) के पुत्र सुंदर पक्षी सूर्य के निकट कुछ मांगने के लिए डरता हुआ जाता है। हे सूर्य! आप हमारी आयु दीर्घ करें। हमें कष्टों से रहित करें। हम पर आपकी अनुकंपा बनी रहे।'' की आराधना ऋग्वैदिक काल से ही प्रचलित है। ऋग्वेद के एक सूक्त में सूर्य को सभी मनुष्यों का जनक, उनका प्रेरक और इच्छित फलदाता बताया गया है। सूर्योपासना के विभिन्न रूप प्रचलित हैं। प्राचीनकाल में ऋषि-महर्षि नदियों-सरोवरों के जल में पूर्व की ओर मुख कर सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते थे। कुछ लोग गायत्री मंत्र ,जो सूर्य से संबंधित है, का जाप कर उन्हें प्रसन्न करते थे। गायत्री मंत्र में सूर्य को बुद्धि को प्रखर करने वाला और पाप का विनाशक माना गया है। गायत्री मंत्र है- ऊँ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्। (जो भू, भुव: और स्व: तीनों को प्रकाशित करता है, उस पापनाशक सूर्यदेव की श्रेष्ठ शक्ति का हम ध्यान करते हैं, जिससे हमारी बुद्धि प्रखर हो। ) ऊँ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्। )शीतांशु कुमार सहाय
वास्तु / दिशाओं के रंग
-
, तो घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। इससे घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। साथ-ही-साथ घर के लोग स्वस्थ भी रहते हैं। आप भी करें रंगों का बेहतर चयन। -पूर्व दिशा अर्थात् ईशान कोण पृथ्वी तत्व से संबंधित है। इस कोण में पीले एवं मटमैले रंग श्रेष्ठ, लाल और नारंगी रंग मध्यम तथा हरे रंग अशुभ होते हैं। पीला रंग पृथ्वी का प्रतीक है। इसका प्रयोग सौहार्द और संबंध कायम करने के लिए किया जाता है। आप अपने संबंधों में सौहार्द या गरमाहट लाना चाहते हैं, तो ईशान दिशा में पीले रंग का प्रयोग करें। , सफेद रंग मध्यम तथा पीला व मटमैला रंग अशुभ होता है।-पश्चिम दिशा अर्थात् वायव्य कोण धातु तत्व से संबंधित मानी गई है। इस कोण में सफेद और रूपहला रंग श्रेष्ठ माना गया है, पीला एवं मटमैला रंग मध्यम प्रभाव देता है। लाल और नारंगी रंग वायव्य दिशा के लिए अशुभ माना गया है। वायव्य कोण के लिए यथासंभव श्रेष्ठ रंगों का प्रयोग ही किया जाना चाहिए। इससे घर में सुख-शांति बनी रहती है। -पश्चिम दिशा अर्थात् नैऋत्य कोण पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। इस कोण में पीला और मटमैला रंग श्रेष्ठ तथा लाल एवं नारंगी रंग मध्यम स्तर का प्रभाव डालता है। इस दिशा में हरे रंग का प्रयोग वर्जित है। दक्षिण दिशा में काला और नीला रंग अशुभ प्रभाव डालता है। -पूर्व दिशा यानी आग्नेय कोण काष्ठ तत्व से संबंधित है। इस कोण के लिए हल्का हरा रंग अच्छा माना गया है। आग्नेय कोण में नीला व काला रंग मध्यम प्रभाव देने वाला होता है। इस दिशा के लिए सफेद रंग अशुभ है। , नीला और काला रंग मध्यम दर्जे का तथा सफेद व रुपहला हानिकारक होता है। इस तरह शुभ रंगों का उपयोग कर आप जिंदगी खुशहाल बना सकते हैं।
रंगों का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। रंगों का संयोजन यदि दिशा के अनुकूल हो
उत्तर
उत्तर दिशा जल तत्व से संबंधित है। इस दिशा में नीला और काला रंग श्रेष्ठ
उत्तर
पश्चिम दिशा भी धातु तत्व का प्रतीक है। इस दिशा में सफेद और स्लेटी रंग अच्छा होता है। लेकिन पीला व मटमैला रंग मध्यम स्तर का प्रभाव डालता है। अतः पश्चिम दिशा की दीवारों में इन्हीं रंगों का प्रयोग करना चाहिए। इस दिशा में लाल या नारंगी रंग का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।
दक्षिण
दक्षिण दिशा अग्नि तत्व से संबंधित है। इस दिशा में लाल एवं नारंगी रंग शुभ होता है। हरा रंग मध्यम स्तर का प्रभाव डालता है।
दक्षिण
पूर्व दिशा काष्ठ तत्व से संबंधित है। इस दिशा में हरा रंग शुभ फलदायीशीतांशु कुमार सहाय
, तो घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। इससे घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। साथ-ही-साथ घर के लोग स्वस्थ भी रहते हैं। आप भी करें रंगों का बेहतर चयन। -पूर्व दिशा अर्थात् ईशान कोण पृथ्वी तत्व से संबंधित है। इस कोण में पीले एवं मटमैले रंग श्रेष्ठ, लाल और नारंगी रंग मध्यम तथा हरे रंग अशुभ होते हैं। पीला रंग पृथ्वी का प्रतीक है। इसका प्रयोग सौहार्द और संबंध कायम करने के लिए किया जाता है। आप अपने संबंधों में सौहार्द या गरमाहट लाना चाहते हैं, तो ईशान दिशा में पीले रंग का प्रयोग करें। , सफेद रंग मध्यम तथा पीला व मटमैला रंग अशुभ होता है।-पश्चिम दिशा अर्थात् वायव्य कोण धातु तत्व से संबंधित मानी गई है। इस कोण में सफेद और रूपहला रंग श्रेष्ठ माना गया है, पीला एवं मटमैला रंग मध्यम प्रभाव देता है। लाल और नारंगी रंग वायव्य दिशा के लिए अशुभ माना गया है। वायव्य कोण के लिए यथासंभव श्रेष्ठ रंगों का प्रयोग ही किया जाना चाहिए। इससे घर में सुख-शांति बनी रहती है। -पश्चिम दिशा अर्थात् नैऋत्य कोण पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। इस कोण में पीला और मटमैला रंग श्रेष्ठ तथा लाल एवं नारंगी रंग मध्यम स्तर का प्रभाव डालता है। इस दिशा में हरे रंग का प्रयोग वर्जित है। दक्षिण दिशा में काला और नीला रंग अशुभ प्रभाव डालता है। -पूर्व दिशा यानी आग्नेय कोण काष्ठ तत्व से संबंधित है। इस कोण के लिए हल्का हरा रंग अच्छा माना गया है। आग्नेय कोण में नीला व काला रंग मध्यम प्रभाव देने वाला होता है। इस दिशा के लिए सफेद रंग अशुभ है। , नीला और काला रंग मध्यम दर्जे का तथा सफेद व रुपहला हानिकारक होता है। इस तरह शुभ रंगों का उपयोग कर आप जिंदगी खुशहाल बना सकते हैं।
रंगों का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। रंगों का संयोजन यदि दिशा के अनुकूल हो
उत्तर
उत्तर दिशा जल तत्व से संबंधित है। इस दिशा में नीला और काला रंग श्रेष्ठ
उत्तर
पश्चिम दिशा भी धातु तत्व का प्रतीक है। इस दिशा में सफेद और स्लेटी रंग अच्छा होता है। लेकिन पीला व मटमैला रंग मध्यम स्तर का प्रभाव डालता है। अतः पश्चिम दिशा की दीवारों में इन्हीं रंगों का प्रयोग करना चाहिए। इस दिशा में लाल या नारंगी रंग का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।
दक्षिण
दक्षिण दिशा अग्नि तत्व से संबंधित है। इस दिशा में लाल एवं नारंगी रंग शुभ होता है। हरा रंग मध्यम स्तर का प्रभाव डालता है।
दक्षिण
पूर्व दिशा काष्ठ तत्व से संबंधित है। इस दिशा में हरा रंग शुभ फलदायीशीतांशु कुमार सहाय
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