बुधवार, 8 दिसंबर 2010

सूर्य की आराधना

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 सभी प्राणियों के पोषक, दिवा-रात्रि और ऋतु परिवर्तन के कारक, विभिन्न व्याधियों के विनाशक सूर्यदेव को हम नमस्कार निवेदित करते हैं।
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 सूर्य

सूर्यदेव
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केवल अन्न, फल आदि को पकाते हैं, बल्कि नदियों, समुद्रों से जल ग्रहण कर पृथ्वी पर वर्षा भी कराते हैं। संपूर्ण प्राणियों के वे पोषक हैं। साथ ही, उपासना करने पर वे सभी प्रकार की मनोकामनाओं की पूर्ति करने में भी सक्षम हैं। मान्यता है कि चर्म रोग, जिसमें कोढ़ के समान कठिन रोग भी सम्मिलित है, से छुटकारा पाने के लिए सूर्योपासना सर्वाधिक सशक्त साधन है। सूर्य की उपासना हमें दीर्घायु भी बनाती है। अथर्ववेद में कहा गया है- ''आकाश की पीठ पर उड़ते हुए अदिति (देवताओं की माता) के पुत्र सुंदर पक्षी सूर्य के निकट कुछ मांगने के लिए डरता हुआ जाता है। हे सूर्य! आप हमारी आयु दीर्घ करें। हमें कष्टों से रहित करें। हम पर आपकी अनुकंपा बनी रहे।''
की आराधना ऋग्वैदिक काल से ही प्रचलित है। ऋग्वेद के एक सूक्त में सूर्य को सभी मनुष्यों का जनक, उनका प्रेरक और इच्छित फलदाता बताया गया है। सूर्योपासना के विभिन्न रूप प्रचलित हैं। प्राचीनकाल में ऋषि-महर्षि नदियों-सरोवरों के जल में पूर्व की ओर मुख कर सूर्य को अ‌र्घ्य अर्पित करते थे। कुछ लोग गायत्री मंत्र ,जो सूर्य से संबंधित है, का जाप कर उन्हें प्रसन्न करते थे। गायत्री मंत्र में सूर्य को बुद्धि को प्रखर करने वाला और पाप का विनाशक माना गया है। गायत्री मंत्र है- ऊँ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो : प्रचोदयात्। (जो भू, भुव: और स्व: तीनों को प्रकाशित करता है, उस पापनाशक सूर्यदेव की श्रेष्ठ शक्ति का हम ध्यान करते हैं, जिससे हमारी बुद्धि प्रखर हो। )
ऊँ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो : प्रचोदयात्। )
शीतांशु कुमार सहाय

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