पटना उच्च न्यायालय के आदेश के बाद पूरे बिहार में नववर्ष 2013 में दैनिक हिन्दी अखबारों की काली करतूतों के और भी उजागर होने की प्रबल संभावना बन गई हैं। पटना उच्च न्यायालय की याचिका संख्या क्रमशः क्रिमिनल मिससेलेनियस नं0-2951 ।2012 और क्रिमिनल मिससेलेनियस नं0-1676 3।2012 में न्यायमूर्ति माननीय अंजना प्रकाश के 17 दिसंबर के आदेश आ जाने के बाद बिहार पुलिस, खासकर बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध इकाई, अब राज्य के 37 जिलों में पटना की निबंधन संख्या की आड़ में अवैध ढंग से मुद्रित, प्रकाशित और वितरित होने वाले हिन्दी दैनिक अखबार क्रमशः दैनिक हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण और दैनिक प्रभात खबर और पटना से ही अवैध ढंग से मुद्रित, प्रकाशित और वितरित उर्दू और अंग्रेजी दैनिकों के प्रबंधन और संपादकीय विभाग के प्रमुख, अवैध प्रकाशन और वितरण में सहयोग करनेवाली जिला स्तरीय पत्र-वितरण करनेवाली एजेंसियों के साथ-साथ अवैध प्रकाशन में समाचार आपूर्ति करनेवाली न्यूज एजेंसियों केप्रबंधन और संपादकों को किसी भी वक्त जांच के दायरे में ले सकती है, अवैध प्रकाशित अखबारों को जब्त कर सकती है और अवैध प्रकाशन से जुड़े किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी कर सकती है। बिहार के जिलों-जिलों के लिए अवैध ढंग से मुद्रित, प्रकाशित और वितरित होने वाले दैनिक अखबारों के फर्जीवाड़ा के मामलों में जिलों-जिलों के जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक भी अपने-अपने स्तर से फर्जी अखबारों के विरूद्ध किसी भी प्रकार की कानूनी काररवाई करने के लिए अब कानूनी रूप मेंपूरी तरह स्वतंत्र और सक्षम हैं। न्यायमूर्ति माननीय अंजना प्रकाश का आखिर आदेश क्या है? न्यायमूर्ति माननीय अंजना प्रकाश ने अपने 17 दिसंबर के आदेश मेंमुंगेर कोतवाली कांड संख्या-445।2011 में पुलिस अनुसंधान में हस्तक्षेप करने से इन्कार कर दिया और दैनिक हिन्दुस्तान के 200 करोड़ के सरकारी विज्ञापन फर्जीवाड़ा में पुलिस अनुसंधान तीन महीनों में पूरा करने का आदेश जारी कर दिया। न्यायमूर्ति अंजना प्रकाशन ने अपने आदेश में पैरा 12 में मुंगेर के जिलाधिकारी कुलदीप नारायण की जांच-रिपोर्ट को हू-बहू उद्धृत भी किया है जिसने बिहार के पटना छोड़कर 37 जिलों में हिन्दी अखबारोंके अवैध प्रकाशन की पोल खोल दी है।
स्मरणीय है कि अवैध प्रकाशन के जरिए ही अखबार के मालिक और संपादक करोड़ों और अरबों रूपयों में सरकारी विज्ञापन का फर्जीवाड़ा कर रहे हैं। जांच और गिरफ्तारी के दायरेमें अखबार क निदेशक, संपादक, प्रकाशक, मुद्रक, प्रसार व्यवस्थापक, विज्ञापन प्रबंधक भी आते हैं। आखिर मुंगेर जिलाधिकारी की रिपोर्ट में क्या है? मुंगेर के जिलाधिकारी ने पटना उच्च न्यायालय को भेजी अपनी रिपोर्ट में लिखा है--- ‘‘मैंने आज दैनिक हिन्दुस्तान के भागलपुर,मुंगेर और लखीसराय संस्करणों की प्रतियां प्राप्त कीं और पाया कि तीनों संस्करणों में समाचार भिन्न-भिन्न हैं, सरकारी विज्ञापन भी भिन्न-भिन्न हैं परन्तु तीनों संस्करणों के संपादक,मुद्रक,प्रकाशक,फोन नं. और आर.एन.आई. नं. एक ही हैं।'' पटना उच्च न्यायालय को भेजे अपनी रिपोर्ट में मुंगेर के जिलाधिकारी कुलदीप नारायण ने आगे लिखा है--- ''चूंकि तीनों संस्करणों में समाचार सामग्री भिन्न-भिन्न हैं,तीनों संस्करणों को अलग-अलग अखबार माना जायेगा और तीनों संस्करणों को अलग-अलग आर.एन.आई. नं. लेनी चाहिए।''
अभी भी अवैध ढंग से मुद्रित, प्रकाशित और वितरित हो रहा हैः---
दैनिक हिन्दुस्तान को अभी हाल में प्रेस रजिस्ट्रार, नई दिल्ली से भागलपुर प्रेस से मुद्रित और प्रकाशित करने की अनुमति मिली है। परन्तु, अखबार के मालिक और संपादक अवैध ढंग से मुंगेर,लखीसराय, जमुई, शेखपुरा, खगडि़या, बेगूसराय और अन्य जिलों के लिए अलग-अलग संस्करण मुद्रित,प्रकाशित और वितरित ढंका की चोंट पर कर रहे हैं। दैनिक हिन्दुस्तान के भागलपुर संस्करण का वर्तमान में रजिस्ट्र्शन नं0- आर.एन.आई.-बी.आई.एच.एच.आई.एन.2011।41407 है।
दैनिक प्रभात खबर को प्रेस रजिस्ट्रार, नई दिल्ली ने भागलपुर प्रेस से अखबार प्रकाशित करने की अनुमति दी है और इस अखबार का रजिस्ट्र्शन नम्बर -आर.एन.आई. -2011।37188 है। परन्तु, दैनिक प्रभात खबर भी भागलपुर के रजिसट्र्शन नम्बर की आड़में मुंगेर, लखीसराय,जमुई, शेखपुरा, खगडि़या,बेगूसराय और अन्य जिलों के लिए अलग-अलग अवैध संस्करण मुद्रित,प्रकाशित और वितरित कर रहा है जो कानूनी अपराध है।
प्रेस रजिस्ट्रार, नई दिल्ली ने दैनिक जागरण को पटना स्थित प्रेस से अखबार को प्रकाशित करने की इजाजत दी है। परन्तु, दैनिक जागरण प्रबंघन नेपटना के रजिस्ट्र्शन नम्बर की आड़ में भागलपुर ,मुंगेर,लखीसराय, जमुई, शेखपुरा, खगडि़या, बेगूसराय और अन्य जिलों के लिए अवैध ढंग से वर्षों तक अलग-अलग जिलाबार संस्करणों का प्रकाशन किया और सरकारी विज्ञापन की लूट मचाई। अभी दैनिक जागरण भागलपुर, मुंगेर,खगडि़या ,जमुई, लखीसराय, बेगूसराय और अन्य संस्करणों में निबंधन संख्या के स्थान पर 'आवेदित' छाप रहा है।परन्तु, बिहार और केन्द्र सरकार बिना निबंधन के छपने वाले दैनिक जागरण अखबार को सरकारी विज्ञापन अब भी प्रकाशन हेतु भेज रही है। यह अपने-आप मेंसूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के पदाधिकारियों का चमत्कारोंमें चमत्कार है। सरकारी विज्ञापन की लूट की संस्कृति का यह जीता जागता उदाहरण है। पटना से प्रकाशित कई उर्दू और अंग्रेजी दैनिकों को कोलकत्ता से अखबार प्रकाशित करने की अनुमति है। परन्तु पटना स्थित प्रेस से अवैध ढंग सेमुद्रित और प्रकाशित कर प्रबंधन कथित अंग्रेजी और उर्दूदैनिकों को पूरे बिहार में वितरित कर रहा है।उर्दू और अंग्रेजी अखबार भी अवैध ढंग से सरकारी विज्ञापन प्राप्त कर रहे हैं। सभी अखबारों के संस्करणों के अवैध ढंग से प्रकाशित करने के पीछे अवैध ढंग से केन्द्र और राज्य सरकारों का सरकारी विज्ञापन प्राप्त करना ही मात्र लक्ष्य है ।मजे की बात है कि सभी अखबारों का प्रबंधन और संपादकीय विभाग के प्रमुख आर्थिक भ्रष्टाचार में पूरी तरह लिप्त हैं और उल्टेसत्ता और विपक्ष के नेताओं, आईएएस और आईपीएस अधिकारियों पर आंखें तरेरने में पीछे नहीं रहते हैं। (www.raznama.com)
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