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आँसू जब बहने लगते हैं तो रूकने का नाम नहीं लेते। अक्सर ऐसा ही होता है। जब कोई मनाने वाला न हो, कोई चुप कराने वाला भी न आए तो आँसू को चुपचाप पी लेने को ही विवश होना पड़ता है- कभी प्यासे की तरह तो कभी परिन्दे की तरह!
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