शनिवार, 14 सितंबर 2013

आप नरेन्द्र मोदी को नजरअन्दाज नहीं कर सकते



शीतांशु कुमार सहाय
शुक्रवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने वर्ष 2014 के लोकसभा आम निर्वाचन में नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री का प्रत्याशी घोषित किया। यों राष्ट्रीय राजनीति में नरेन्द्र का कद और बढ़ गया जो लगातार बढ़ता ही जा रहा है। राष्ट्रीय राजनीति का ही नरेन्द्र समर्थक और नरेन्द्र विरोधी खेमों में विभाजन हो गया है। नरेन्द्र के बारे में एक कहावत बनी है जो केवल उन्हीं पर लागू हो रही है। वह कहावत है कि आप यदि नरेन्द्र के विरोध में या समर्थन में खड़े न भी हों तो भी आप नरेन्द्र को नजरअन्दाज नहीं कर सकते। आज यह राष्ट्रीय स्तर पर सच सिद्ध हो रहा है कि नरेन्द्र को भले ही श्रेष्ठ न मानें काँग्रेसी या अन्य विरोधी पर उन्हें या उनके कथनी-करनी को नजरअन्दाज नहीं कर सकते। अब कमर कसकर आलोचक नरेन्द्र के अतीत के कब्र को खोद रहे हैं, धुंधली पड़ी यादों की परतों पर जमी धूल को झाड़कर कुछ खोज रहे हैं, कुछ सामने ला रहे हैं। यह प्रयास है उनकी छवि को बिगाड़ने का; ताकि लोग उनके नाम पर मतदान न करें। विरोधी नरेन्द्र के साम्प्रदायिक अतीत को धूमिल नहीं होने देना चाहते हैं। वहीं नरेन्द्र समर्थक नरेन्द्र को बेहतर प्रशासक व विकास पुरुष के रुप में प्रतिस्थापित करने का अभियान संचालित कर रहे हैं।
    नरेन्द्र के आलोचक या विरोधी केवल विपक्षी दलों में ही नहीं भाजपा में भी हैं। लाल कृष्ण आडवाणी जैसे कुछ खुलकर बोल रहे हैं तो कुछ इशारों में अपनी असहमति जता रहे हैं। वैसे भाजपा के कुछ नरेन्द्र विरोधी ऐन मौके पर समर्थन का सुर अलापने लगे। बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने ऐसा ही किया। गुजराती मोदी व बिहारी मोदी के छत्तीस का आँकड़ा अब तिरसठ के आँकड़े में बदल गया। सुशील जैसे नेता नरेन्द्र की लहर के सामने नतमस्तक होकर भविष्य की राजनीति में अपनी अपरिहार्यता को बनाये रखना चाहते हैं। यों एक और सच्चाई यह है कि काँग्रेस व अन्य विरोधी दलों में भी नरेन्द्र समर्थक मौजूद हैं और वे नरेन्द्र की लहर पर ही सवार होकर अपनी डूबती नैया को पार लगाने की जुगत भिड़ा रहे हैं। काँग्रेस की नैया डूबोने में महंगाई महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, इसमें कोई संशय नहीं। इधर नरेन्द्र के नाम की घोषणा भाजपा ने की और उधर काँग्रेस नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार ने पेट्रोल की कीमत बढ़ा दी। वैसे रुपये का गिरता मूल्य और भ्रष्टाचार भी केन्द्र सरकार में शामिल काँग्रेस समेत अन्य दलों को मझधार में डूबोने के लिए पर्याप्त हैं।
    जहाँ तक आडवाणी को नजरअन्दाज करने की बात है तो इस सम्बन्ध में सुषमा स्वराज की बातों को मानें तो वे नरेन्द्र के नाम की घोषणा से गुस्से में नहीं हैं। अगर हैं भी तो उन्हें राजनीति की नयी फसल को आगे आने देने में आना-कानी के बदले सहयोग ही करना चाहिये। नरेन्द्र की ताकत को दिल्ली में घोषित छात्रसंघ के चुनाव परिणाम से भी जोड़कर देखा जा रहा है। इसमें भाजपा समर्थित छात्रसंघ की जीत हुई। लोकसभा निर्वाचन में यदि नरेन्द्र अपने बुते 273 के जादुई आँकड़े को छू लेते हैं तब तो बात बनेगी। पर, यह आज की परिस्थिति में संभव नहीं लगता। यदि भाजपा इस आँकड़े से दूर रहती है तो फिर राजग गठबंधन की याद आयेगी जो नरेन्द्र के कारण ही बिखरा। तब एक बार फिर राजग को विस्तारित करने के लिए वह कौन-सा चेहरा सामने लाया जायेगा जिसको लेकर भाजपा आगे बढ़ेगी?

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