सोमवार, 2 सितंबर 2013

बिहार-झारखण्ड : इन्द्र रूठे तो सूर्य प्रसन्न



शीतांशु कुमार सहाय

    पिछले कुछ वर्षों से उत्तर भारत में वर्षा अनियमित हो गयी है। एक ही राज्य में कुछ क्षेत्र अतिवृष्टि से तो कुछ क्षेत्र अनावृष्टि से त्रस्त हैं। इस बार झारखण्ड और बिहार में इतनी कम वर्षा हुई कि अधिकतर क्षेत्रों में अकाल की स्थिति बनी हुई है। वैसे कुछ क्षेत्रों में बाढ़ की भी भयावहता बरकरार है। बिहार के उत्तरी जिलों में बाढ़ की समस्या है तो झारखण्ड के जमशेदपुर के निचले इलाके में स्थानीय नदी का जल कहर बरपा रहा है। दोनों राज्यों के शेष भागों में अपेक्षाकृत वर्षा कम हुई। किसानों की परेशानी विशेष रूप से बढ़ी हुई है। खरीफ फसल की आरम्भिक तैयारियों में जो राशि किसानों ने खर्च की, वे बर्वाद हो गये। खेत तैयार करके धान का जो बिचड़ा डाला, वे सूख गये। ऋण लेकर बीज, उर्वरक या कीटनाशक का जो प्रबन्ध किया, वे धरे-के-घरे रह गये मगर ब्याज बढ़ता ही जा रहा है। यों किसानों की गरीबी घटने के बदले बढ़ी है। पर, अफसोस कि अब तक इस क्षेत्र में सरकार की ओर से कोई विशेष पहल न की गयी। वैसे झारखण्ड में कुछ दिनों पूर्व झारखण्ड विकास मोर्चा के समर्थकों ने राज्य को सूखा घोषित करवाने के लिए प्रखण्ड मुख्यालयों पर धरना दिया। बिहार में ऐसा ही किया भारतीय जनता पार्टी ने। दोनों राज्य सरकारें फिलहाल जो राहत कार्य करने का दावा कर रही हैं, वे नाकाफी हैं।
    झारखण्ड में सुखाड़ से निबटने के सरकारी प्रयास जारी हैं। सभी प्रखंडों के आँकड़े, सेटेलाइट मैपिंग और बुआई का आँकड़ा देखने के बाद स्थिति निराशाजनक लगी। लिहाजा सभी विभागों को स्थिति पर पैनी नजर रखने का निर्देश दिया गया है। फिलहाल 14 करोड़ रुपये की योजना को मंजूरी दी गयी है जिसके तहत किसानों को कम वर्षा में होने वाली फसलों अरहर, मक्का, मूँग व दलहन की खेती के लिए 75 प्रतिशत के अनुदान पर बीज उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया है। यों सभी जिले के उपायुक्तों को 2-2 करोड़ रुपये का कॉर्प्स फण्ड मुहैया कराया गया है; ताकि किसी गरीब परिवार को अविलम्ब राहत उपलब्ध करायी जा सके। उपायुक्त को यह भी निर्देश है कि वे किसानों को हरसंभव सहायता उपलब्ध कराएँ। पलायन न हो, इसके लिए आवश्यक कदम उठाएँ। हेमन्त सोरेन की बात मानें तो सुखाड़ के बारे में केंद्र सरकार के मापदण्ड को ध्यान में रखकर हर पहलुओं पर विचार किया गया है लेकिन पूर्ण आकलन अक्तूबर में ही सम्भव है, जब खरीफ फसलों के कटने का समय होता है। झारखण्ड सुखाड़ का अभी एक ही मानक पूरा कर रहा है। भारत सरकार ने सुखाड़ घोषित करने के लिए 4 मानक तय कर रखा है जिनमें वर्षापात, फसल का आच्छादन (रोपनी-बुआई), एनडीडब्ल्यूआइ (नॉर्मलाइज डिफरेंस वाटर इंडेक्स) और एनडीभीआइ (नॉर्मलाइज डिफरेंस भेजीटेशन इंडेक्स) शामिल हैं। राज्य को सुखाड़ घोषित करने के लिए 3 मानकों को पूरा करना जरूरी है जबकि झारखण्ड अभी एक ही मानक को पूरा कर रहा है। वर्षापात व फसलों का आच्छादन 50 प्रतिशत से कम होना चाहिये। राज्य में एक जून से 17 अगस्त तक मानक से 15.09 प्रतिशत अधिक अर्थात् कुल 65.09 प्रतिशत बारिश हुई है। धान की रोपनी 42.55 प्रतिशत हुई है जो मानक से 7.45 प्रतिशत कम है। यों मक्के की बुआई 81.55 प्रतिशत, दलहन 58.91 और तेलहन 42.44 प्रतिशत हुआ है। एनडीडब्ल्यूआइ 0.04 तथा एनडीभीआइ 0.01 से कम होना चाहिये। इसकी अंतरिम रिपोर्ट अभी नहीं सौंपी गयी है। राज्य में सुखाड़ का आकलन करने के लिए केन्द्र की एक टीम भी पिछले सप्ताह आयी थी। इसी तरह बिहार सरकार ने धान की आस छोड़कर अन्य फसलों की तरफ किसानों का ध्यान आकृष्ट कराया है। प्रत्येक प्रखण्डों में कृषि वैज्ञानिक भेजकर कृषकों को उचित सलाह देने की कवायद आरम्भ की है। बिहार में सुखाड़ की स्थिति में केंद्र सरकार से मदद माँगने के प्रश्न पर नीतीश कुमार का कहना है कि अभी वह स्थिति नहीं आयी है, अभी बिहार के संसाधनों से ही किसानों को राहत देने का प्रयास किया जा रहा है। राज्य को सुखाड़ क्षेत्र भी घोषित नहीं किया गया है। बिहार में बारिश कम हुई है। ऐसे में सरकारी दावा है कि किसानों को डीजल पर अनुदान सहित कई राहत दी जा रही है।

    दोनों राज्यों में वर्षा की कमी के कारण स्थिति भयावह है। खरीफ फसल हो नहीं पायी, अन्य फसलों के लिए भी सिंचाई का प्रबन्ध है नहीं। धान के अभाव में अन्य फसलों के बीज 75 प्रतिशत नहीं 100 प्रतिशत अनुदान पर भी दे दिये जायें तो भी उनके उपयोग सिंचाई के अभाव में झारखण्ड के किसान कैसे कर पाएंगे? यों एक-एक जिले में सुखाड़ से पीड़ितों को राहत के लिए 2-2 करोड़ रुपये की राशि ऊँट के मुँह में जीरा के समान है। यों बिहार के प्रखण्डों में जाकर भी कृषि वैज्ञानिक कोई मील का पत्थर वाला कार्य नहीं कर पाएंगे। यों केवल डीजल अनुदान देकर सुखाड़ से राहत का स्वांग रचा जा रहा है। झारखण्ड में 40 प्रतिशत से कम तो बिहार में 30 प्रतिशत से कम ही वर्षा हुई है। इस बीच अन्नदाताओं को राहत देने के लिए ईमानदार पहल करने की आवश्यकता है। रूठे इन्द्र यदि नहीं माने तो सूर्य की प्रसन्नता बढ़ेगी जो तीव्र गर्मी के रूप में प्रकट होगा।
   

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