शनिवार, 13 अक्टूबर 2018

नवदुर्गा का तृतीय रूप चन्द्रघण्टा / Chandraghanta is the Third Similitude of Navdurga

-शीतांशु कुमार सहाय 
नवरात्र के तीसरे दिवस को आदिशक्ति दुर्गा के तृृतीय स्वरूप चन्द्रघण्टा की आराधना की जाती है। इन के मस्तक में घण्टे के आकार वाला अर्द्धचन्द्र है, अतः इन्हें चन्द्रघण्टा कहा जाता है। स्वर्ण के समान आभा वाली यह स्वरूप परमशान्ति देनेवाला है। यह शीघ्र ही भक्तों का कल्याण करती हैं। इन्हें तृतीय दुर्गा भी कहते हैं।

माता चन्द्रघंटा का वीडियो नीचे के लिंक पर देखें--

दस भुजाओं वाली माँ चन्द्रघण्टा भक्तों के कल्याण के लिए विभिन्न अस्त्र-शस्त्रों को धारण करती हैं। माँ ने इस रूप में तीर, धनुष, तलवार, गदा, त्रिशूल, कमल, कमण्डलु, जप माला, आशीर्वाद मुद्रा व ज्ञान मुद्रा धारण किया है। इस रूप में माँ सदा असुरों से युद्ध के लिए तैयार हैं। सिंह की सवारी करनेवाली चन्द्रघण्टा देवी के घण्टे की विचित्र ध्वनि से असुर सदा भयभीत रहते हैं। अतः माँ दुर्गा के इस तीसरे स्वरूप की उपासना करनेवाले भक्तों को दुर्गुण, व्याधि व विविध प्रकार के कष्टों के अुसर तंग नहीं करते।
माता चन्द्रघण्टा की असीम कृपा से भक्त प्रसन्न रहते हैं, पाप मिट जाते हैं और बाधाएँ प्रबल नहीं हो पातीं। चन्द्रघण्टा के आराधक सिंह की तरह पराक्रमी व निर्भय हो जाते हैं और उन में सौम्यता व विनम्रता का विकास होता है। माँ दुर्गा के इस तीसरे स्वरूप का उपासक कान्तिवान और ऊर्जावान हो जाता है, उस के स्वर में अलौकिक माधुर्य का समावेश हो जाता है और मुखमण्डल पर प्रसन्नता छायी रहती है। ऐसे साधक के शरीर से दिव्य प्रकाशयुक्त परमाणुओं का अदृश्य विकिरण होता रहता है। इस कारण उस के सम्पर्क में आनेवाले लोग को भी अत्यन्त लाभ होता है। 
दुर्गा के तीसरे रूप चन्द्रघण्टा को जब भी कोई भक्त पुकारता है, उन्हें स्मरण करता है, उन की स्तुति करता है या उन की शरण में जाता है तो माता का घण्टा प्रकम्पित हो उठता है। यों भक्त शीघ्र ही कष्टमुक्त हो जाते हैं। 
योग के माध्यम से माँ चन्द्रघण्टा को मणिपुर चक्र में स्थित मानकर आराधना करनी चाहिये। मणिपुर चक्र दस पंखुड़ियोंवाला पीला कमल है जिस पर डं, दं, णं, तं, थं, दं, घं, नं, पं, फं मन्त्र अंकित हैं। इस के मध्य में लाल रंग का उल्टा त्रिभुज है। इस चक्र का बीजमन्त्र रं और वाहन चमकदार भेड़ है, जो आघात पहुँचानेवाले चौपाये पशु का प्रतीक है। मणिपुर चक्र के इष्टदेव रुद्र और देवी लाकिनी है जिन का अधिकार मांसपेशियों पर है। 
नवरात्र के तीसरे दिन भक्त को मणिपुर चक्र पर ही ध्यान लगाना चाहिये। ऐसा करने से भक्त को कई दिव्य व अलौकिक अनुभूतियाँ होती हैं। दिव्य सुगन्ध, दिव्य दर्शन, दिव्य संगीत व दिव्य ज्ञान का लाभ भक्तों को प्राप्त होता है। ध्यान के दौरान प्राप्त होनेवाले इन लाभों पर अहंकार में वृद्धि नहीं हो, इस के लिए भक्त को निरन्तर सावधान रहना चाहिए। भव बाधा को समाप्त कर कल्याण का मार्ग प्रशस्त करनेवाली ममतामयी माता चन्द्रघण्टा को हाथ जोड़कर नमन करें-
पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।

कोई टिप्पणी नहीं: