पहचानिये इन्हें |
प्रख्यात फिल्म अभिनेता अनुपम खेर के लाज़वाब अभिनय से सजी-संवरी हिन्दी फिल्म ‘द एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर’ का आधिकारिक ट्रेलर प्रदर्शित होने के बाद जहाँ पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सुर्खियों में हैं, वहीं भारतीय जनता पार्टी और काँग्रेस में जबर्दस्त वाक्युद्ध जारी है। अब चर्चा यह भी हो रही है कि क्या वास्तव में मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पद के स्वाभाविक दावेदार नहीं थे? क्या मनमोहन सिंह एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर अर्थात् अचानक या संयोगवश बनाये गये प्रधानमंत्री थे? क्या वे प्रधानमंत्री पद के योग्य नहीं थे? क्या उन में निर्णय लेने की क्षमता नहीं थी? खैर इस विवाद को यहीं रहने दें। हम आप को भारत के एक-दो नहीं, पूरे आठ एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर्स के बारे में बता रहे हैं। इन के नाम अचानक ही सामने आ गये और वे संसार के सब से बड़े लोकतान्त्रिक देश के प्रधानमंत्री बन गये। ‘द एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर’ फिल्म के ट्रेलर लोकार्पित होने के बाद लोग यही जान रहे हैं कि केवल मनमोहन सिंह ही एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर थे। पर, यह सच नहीं है। भारत में अब तक आठ एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर्स हो चुके हैं।
मैं इन के बारे में जरूर बताऊँगा। लेकिन आप ऐसे ही राज जानने के लिए, भारत की समृद्ध परम्परा और प्राचीन ज्ञान को आधुनिक परिवेश में जानने-समझने के लिए, योग, अध्यात्म और स्वास्थ्य के आसान सूत्रों और बहुत-सी जानकारियों को हासिल करने के लिए 'शीतांशु कुमार सहाय का अमृत' (https://sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.com/) को नियमित पढ़ते रहें और जानकारी अच्छी लगे तो लाइक और शेयर ज़रूर करें। आलेख के नीचे में आप अपना मन्तव्य भी दे सकते हैं।
आप इत्मीनान से पूरा आलेख पढ़ें; क्योंकि सब से ज़्यादा चर्चित हो चुके एक्सीडेण्टल प्राइम मिनिस्टर डॉक्टर मनमोहन सिंह की चर्चा तो मैं सब से अन्त में करूँगा। इस का कारण यह है कि वे फिलहाल भारत के अन्तिम एक्सीडेण्टल प्राइम मिनिस्टर हैं।
1. इन्दिरा गाँधी
आप को जानकर बहुत आश्चर्य होगा कि ‘आयरन लेडी’ के उपनाम से मशहूर इन्दिरा गाँधी भारत के इतिहास में पहली एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर हुई हैं। सन् 1966 ईस्वी में तत्कालीन सोवियत संघ के ताशकन्द शहर में तत्कालीन भारतीय प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री का निधन 11 जनवरी को हो गया। तब गुलजारी लाल नंदा को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाया गया। इस के बाद अचानक ही लाल बहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में सूचना-प्रसारण मंत्री के पद पर कार्यरत इन्दिरा गाँधी को देश का नियमित प्रधानमंत्री बनाया गया। इन्दिरा गाँधी 24 जनवरी 1966 ईस्वी को भारत की प्रधानमन्त्री बनीं। इस तरह वह कार्यवाहक प्रधानमन्त्री गुलजारी लाल नंदा सहित मोरारजी देसाई और जगजीवन राम जैसे दिग्गजों को पछाड़कर प्रधानमन्त्री की कुर्सी पर आसीन होने में सफल रहीं। उन्हें अपने पिता और भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू के वफ़ादार राजनीतिज्ञों का भरपूर सहयोग मिला। देश में आपातकाल लागू करने पर उन की बहुत निन्दा हुई।
2. चौधरी चरण सिंह
दूसरे एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर हुए चौधरी चरण सिंह। सन् 1977 ईस्वी में हुए लोकसभा आम निर्वाचन में इन्दिरा गाँधी बुरी तरह से हार गयीं और देश में पहली बार गैर-काँग्रेसी दलों ने मिलकर सरकार बनायी थी। जनता पार्टी की सरकार बनी और मोरारजी भाई देसाई भारत के प्रधानमन्त्री बने। चौधरी चरण सिंह उपप्रधानमंत्री और गृहमन्त्री बने। कुछ माह बाद जनता पार्टी में अन्दरूनी कलह हो गयी। इस कारण मोरारजी देसाई की सरकार गिर गयी। तब काँग्रेस के सहयोग से 28 जुलाई सन् 1979 ईस्वी को चौधरी चरण सिंह भारत के एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर बने। राष्ट्रपति ने उन्हें 20 अगस्त 1979 तक लोकसभा में बहुमत साबित करने का समय दिया था। पर परिपक्व राजनीतिज्ञ हो चुकी इन्दिरा गाँधी ने 19 अगस्त 1979 को ही समर्थन वापस ले लिया और चौधरी चरण सिंह की सरकार गिर गयी। इस तरह प्रधानमन्त्री के रूप में चौधरी चरण सिंह संसद में प्रवेश नहीं कर पाये। यही उन का सब से यादगार किन्तु नकारात्मक कीर्तिमान बन पाया। चौधरी चरण सिंह 28 जुलाई सन् 1979 ईस्वी से 14 जनवरी सन् 1980 ईस्वी तक प्रधानमन्त्री रहे।
3. राजीव गाँधी
देश को कम्प्यूटर का उपहार देनेवाले राजीव गाँधी को तीसरे एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर के रूप में याद किया जाता है। 31 अक्तूबर सन् 1984 ईस्वी को तत्कालीन प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी की उन के अंगरक्षकों बेअन्त सिंह और शतवन्त सिंह द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गयी। यों अचानक ही भारत के सामने नेतृत्व का संकट आ गया। ऐसे में नेहरू-इन्दिरा के वफ़ादार काँग्रेसियों ने कई वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कर तुरन्त ही इन्दिरा गाँधी के ज्येष्ठ पुत्र राजीव गाँधी को बतौर प्रधानमन्त्री देश की बागडोर सौंप दी। उस समय राजीव गाँधी लोकसभा सांसद थे। वह भारत के सातवें और सब से कम उम्र के प्रधानमंत्री बनेे। उन का यह कीर्तिमान अब तक कायम है। राजीव गाँधी हवाई जहाज के पायलट थे और राजनीति में नहीं आना चाहते थे। उन के अनुज संजय गाँधी राजनीति में सक्रिय थे जिन की सन् 1980 ईस्वी में हवाई जहाज दुर्घटना में मृत्यु हो गयी। ऐसे में माँ इन्दिरा गाँधी को सहयोग देने के लिए उन्होंने राजनीति में आना पड़ा। राजीव गाँधी 31 अक्तूबर 1984 से 2 दिसम्बर 1989 ईस्वी तक भारत के प्रधानमन्त्री रहे। तमिलनाडु के श्रीपेरम्बुदुर में 21 मई सन् 1991 ईस्वी को लोकसभा आम निर्वाचन के प्रचार के दौरान लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई/लिट्टे) के एक आत्मघाती हमलावर ने उन की हत्या कर दी।
4. चन्द्रशेखर
भारत के चौथे एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर के रूप में चन्द्रशेखर याद आते हैं। इन्होंने ऐसा इतिहास बनाया जो किसी से भी शायद ही सम्भव हो। मात्र 64 सांसदों के समर्थन पर इन्होंने सरकार बनाने का दावा किया जो कदापि सम्भव नहीं था। पर, तत्कालीन विपक्षी दल काँग्रेस ने उन्हें बाहर से समर्थन दिया और वे एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर बन गये। अनोखे घटनाक्रम में सन् 1990 ईस्वी में समाजवादी जनता पार्टी के नेता चन्द्रशेखर 10 नवम्बर सन् 1990 ईस्वी को भारत के प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हुए। वह छः महीने प्रधानमन्त्री पद पर रहे। वास्तव में हुआ यह कि भारतीय जनता पार्टी के नेता लाल कृष्ण आडवाणी की गिरफ़्तारी के बाद भाजपा ने विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गयी। हालाँकि विश्वनाथ प्रताप सिंह यदि प्रधानमन्त्री का पद छोड़ देते और किसी भाजपा नेता को नेतृत्व मिलता तो सरकार बच सकती थी पर इस के लिए जनता दल नेता विश्वनाथ प्रताप सिंह तैयार नहीं थे। इसी बीच तत्कालीन विपक्षी नेता राजीव गाँधी ने चन्द्रशेखर से सम्पर्क किया। चन्द्रशेखर के नेतृत्व में जनता दल टूट गयी और 64 बागी सांसदों को लेकर समाजवादी जनता पार्टी का गठन हुआ और सरकार बनाने का दावा ठोंक दिया गया। राजीव गाँधी के नेतृत्व में काँग्रेस ने उन्हें समर्थन दिया जो टिकाऊ न रहा और 21 जून सन् 1991 ईस्वी को चन्द्रशेखर को त्याग पत्र देना पड़ा।
5. पीवी नरसिंह राव
भारत के एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर्स की पंक्ति में पामुलापति वेंकट नरसिंह राव पाँचवें स्थान पर रहे हैं। वह पेशे से कृषि विशेषज्ञ और अधिवक्ता थे। काँग्रेस से जुड़कर वे राजनीति में आये कई महत्त्वपूर्ण मंत्रालयों के कार्यभार सम्भाले। उन में राजनीतिक सूझबूझ तो थी पर नेहरू-इन्दिरा के वफ़ादारों को कुछ सूझ नहीं रहा था। काँग्रेस चुनाव प्रचार के दौरान राजीव गाँधी को खो चुकी थी। इस का असर यह हुआ कि मतदाताओं का झुकाव काँगेस के प्रति हुआ और 1991 के लोकसभा आम निर्वाचन में काँग्रेस सत्ता में वापस आयी। अब प्रधानमन्त्री बनाने की बारी थी तो अचानक नरसिंह राव का नाम सामने आया और वह भारत के प्रधानमन्त्री बने। 20 जून 1991 से 16 मई 1996 ईस्वी तक पीवी नरसिंह राव भारत के प्रधानमन्त्री रहे।
6. एचडी देवगौड़ा
हरदनहल्ली डोडागौड़ा देवगौड़ा अर्थात् एचडी देवगौड़ा जनता दल के नेता के रूप में अचानक प्रधानमन्त्री बन गये थे। इन्हें भारत का छठा एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर कहिये। एचडी देवगौड़ा का प्रधानमन्त्री बनने का किस्सा आज भी लोग को बेहद चौंकाता है। राष्ट्रीय स्तर पर उन का नाम किसी ने नहीं सुना था। उस समय कुछ दल मिलकर राष्ट्रीय मोर्चा बनाये थे। अब जानिये कि कैसे अचानक प्रधानमन्त्री बन बैठे देवगौड़ा। सन् 1996 ईस्वी में हुए लोकसभा आम निर्वाचन में काँग्रेस 140 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही लेकिन वह बहुमत का जुगाड़ नहीं कर पा रही थी। लोकसभा में संख्याबल में तीसरे स्थान पर राष्ट्रीय मोर्चा था। राष्ट्रीय मोर्चे के 79 सांसद थे। इस राष्ट्रीय मोर्चे के प्रधान थे जनता दल नेता एचडी देवगौड़ा। वह कुछ दिन पहले ही विधानसभा निर्वाचन में जीत दर्जकर कर्नाटक में अपनी सरकार चला रहे थे। उन की पार्टी जनता दल के पास लोकसभा में 46 सांसद थे। भारतीय जनता पार्टी को दुबारा सत्ता में आने से रोकने के लिए काँग्रेस ने ऐसा बड़ा दाँव खेला जिस का किसी को भरोसा नहीं था। काँग्रेस ने राष्ट्रीय मोर्चे को बाहर से समर्थन देते हुए सरकार बनाने को प्रेरित किया। इस के लिए तुरन्त ही एचडी देवगौड़ा तैयार हो गये। उन्होंने अपने जनता दल के 46, समाजवादी पार्टी के 17 और तेलगुदेशम के 16 कुल 79 सांसदों और काँग्रेसी की बाहरी मदद से सरकार बनाने का दावा राष्ट्रपति के सामने पेश कर दिया। यों अचानक 1 जून 1996 को हरदनहल्ली डोडागौड़ा देवगौड़ा भारत के प्रधानमन्त्री बन गये। पर, यहाँ भी काँग्रेस ने जो काम चौधरी चरण सिंह और चन्द्रशेखर के साथ किया था, वही किया और देवगौड़ा सरकार से समर्थन वापस ले ली। इस तरह एचडी देवगौड़ा को 21 अप्रील सन् 1997 ईस्वी को प्रधानमन्त्री पद से त्याग पत्र देना पड़ा।
7. इन्द्र कुमार गुजराल
एक आश्चर्यजनक राजनीतिक घटनाक्रम में इन्द्र कुमार गुजराल भारत के सातवें एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर बने। बात अप्रील 1997 की है। एचडी देवगौड़ा की केन्द्र सरकार को बाहर से समर्थन दे रही काँग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया। ऐसे में राजनीतिक संकट गहरा गया। मध्यावधि लोकसभा निर्वाचन को टालने के लिए संयुक्त मोर्चा और काँग्रेस के बीच एक समझौता हुआ। प्रधानमन्त्री पद से एचडी देवगौड़ा ने त्याग पत्र दिया और अचानक इन्द्र कुमार गुजराल संयुक्त मोर्चे के नये नेता चुने गये। वह 21 अप्रील सन् 1997 ईस्वी को भारत के 12वें प्रधानमन्त्री बने। नवम्बर 1997 में जैन आयोग के मामले पर काँग्रेस ने उन की सरकार से समर्थन वापस ले लिया। इस तरह 28 नवम्बर सन् 1997 ईस्वी को इन्द्र कुमार गुजराल को प्रधानमन्त्री पद से त्याग पत्र देना पड़ा। पत्रकार राजदीप सरदेसाई की एक पुस्तक में छपे प्रकरण को सच मानें तो प्रातःकाल में इन्द्र कुमार गुजराल को जगाकर यह बताया गया था कि वे भारत के प्रधानमन्त्री बनने जा रहे हैं।
8. मनमोहन सिंह
अब मैं चर्चा करता हूँ एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर डॉक्टर मनमोहन सिंह की। वह नौकरशाह थे और भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर भी रह चुके हैं। मनमोहन सिंह कभी लोकसभा निर्वाचन नहीं लड़े। इन के प्रधानमन्त्री बनने का किस्सा काफ़ी रोचक है। दरअसल, विदेशी मूल के विवाद की वज़ह से तत्कालीन काँग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने प्रधानमन्त्री बनना स्वीकार नहीं किया। तब यह पद किसे दिया जाय? उस समय कई दिग्गज काँग्रेसी नेता दावेदार थे पर अचानक मनमोहन सिंह का नाम सामने आ गया और सोनिया गाँधी के आदेश पर उन्हें काँग्रेसी सांसदों ने अपना नेता चुन लिया। इस तरह भारत को अचानक एक नया प्रधानमन्त्री मिल गया। 22 मई सन् 2004 ईस्वी से 26 मई सन् 2014 ईस्वी तक मनमोहन सिंह प्रधानमन्त्री रहे।
आजकल अनुपम खेर अभिनीत हिन्दी फिल्म ‘द एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर’ की बहुत चर्चा है। इस फिल्म का कथानक मनमोहन सिंह के प्रधानमन्त्री रहने के दौरान उन के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू की पुस्तक ‘द एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर’ पर आधारित है। बारू मई 2004 से अगस्त 2008 तक प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार रहे। वह प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह के मुख्य प्रवक्ता भी थे।
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