-शीतांशु कुमार सहाय
मैं ने यह आलेख फेसबुक के एक मित्र से साभार लिया है। कुछ संशोधन के साथ यहाँ प्रस्तुत किया गया है.....
एक व्यक्ति को नदी में तर्पण करते देख एक फकीर अपनी बाल्टी से जल गिराकर जाप करने लगा कि घर पर स्थित उस की प्यासी गाय को जल मिले। श्राद्ध कर रहे व्यक्ति द्वारा पूछने पर उस फकीर ने कहा, "जब आप के चढाये जल और भोग आप के पुरखों को मिल जाते हैं तो मेरी गाय को भी मिल जायेगा। इस कारण श्राद्ध कर रहा व्यक्ति बहुत लज्जित हुआ।
यह मनगढ़न्त कहानी सुनाकर मेरा अभियन्ता मित्र ठठाकर हँसने लगा और मुझ से बोला, "सब पाखण्ड है जी!"
अधिकतर मित्र मुझ से ऐसी बकवास करने से पहले ज़्यादा सोच-समझकर ही बोलते हैं; क्योंकि, पहले मैं सामनेवाले की पूरी बात सुन लेता हूँ उस के बाद ही प्रत्युत्तर देता हूँ।
मै ने कुछ नहीं कहा। मैं ने मेज पर से कैलकुलेटर उठाकर एक नम्बर डायल किया और अपने कान से लगा लिया। बात न हो सकी तो मैं ने अभियन्ता मित्र की तरफ देखकर कहा कि पता नहीं टेलीफोन कम्पनी वाले कैसे निकम्मे अभियन्ता को रखते हैं जो नेटवर्क भी सही नहीं रख सकता।
मेरी बात सुनकर अभियन्ता मित्र भड़क गये और बोले, "ये क्या मज़ाक है! 'कैलकुलेटर' में मोबाइल का फंक्शन कैसे काम करेगा?"
तब मैंने कहा, "तुम ने सही कहा। वही तो मैं भी कह रहा हूँ कि स्थूल शरीर छोड़ चुके लोग के लिए बनी व्यवस्था जीवित प्राणियों पर कैसे लागू होगी!?"
इस पर इञ्जीनियर साहब अपनी झेंप मिटाते हुए कहने लगे, "ये सब पाखण्ड है। अगर यह सच है तो इसे सिद्ध कर दिखाओ।"
अब मैं थोड़ा सन्दर्भ बदला। "तुम यह बताओ कि न्युक्लीयर पर न्युट्रान के प्रहार या टकराव से क्या ऊर्जा निकलती है?"
"बिल्कुल! इट्स काॅल्ड एटॉमिक एनर्जी।"
फिर, मै ने उन्हें एक चॉक और पेपरवेट देकर कहा, "अब आप के हाथ में बहुत सारे न्युक्लीयर्स भी हैं और न्युट्रांस भी। अब तुम इन में से ऊर्जा निकालकर दिखाओ।"
मेरा मित्र समझ गया और तनिक लजा भी गया। वह बोला, ऐसा है कि एक काम याद आ गया। बाद में बात करते हैं।"
कहने का मतलब यह है कि यदि, हम किसी विषय या तथ्य को प्रत्यक्षतः भौतिक रूप से सिद्ध नहीं कर सकते तो इस का एक महत्त्वपूर्ण अर्थ यह भी है कि हमारे पास समुचित ज्ञान, संसाधन वा अनुकूल परिस्थितियाँ नहीं हैं। इस का तात्पर्य यह कतई नहीं कि वह तथ्य ही गलत है। वास्तव में हवा में तो हाइड्रोजन और ऑक्सीजन दोनों मौजूद है, फिर हवा से ही जल क्यों नहीं बना लेते!
अब आप हवा से जल नहीं बना रहे हैं तो इस का मतलब यह थोड़े ना घोषित कर दोगे कि हवा में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन ही नहीं है.
हमारे द्वारा श्रद्धा से किए गए सभी कर्म दान आदि आध्यात्मिक ऊर्जा के रूप में हमारे पितरों तक अवश्य पहुँचते हैं.
इसीलिए, व्यर्थ के कुतर्को मे फँसकर अपने धर्म व संस्कार के प्रति कुण्ठा न पालें...!
और हाँ...
जहाँ तक रह गई वैज्ञानिकता की बात तो....
क्या आपने किसी भी दिन पीपल और बरगद के पौधे लगाए हैं...या, किसी को लगाते हुए देखा है?
क्या फिर पीपल या बरगद के बीज मिलते हैं ?
इस का जवाब है नहीं....
ऐसा इसीलिए है क्योंकि... बरगद या पीपल की कलम जितनी चाहे उतनी रोपने की कोशिश करो परंतु वह नहीं लगेगी.
इसका कारण यह है कि प्रकृति ने यह दोनों उपयोगी वृक्षों को लगाने के लिए अलग ही व्यवस्था कर रखी है.
जब कौए इन दोनों वृक्षों के फल को खाते हैं तो उनके पेट में ही बीज की प्रोसेसिंग होती है और तब जाकर बीज उगने लायक होते हैं.
उसके पश्चात कौवे जहां-जहां बीट करते हैं, वहां वहां पर यह दोनों वृक्ष उगते हैं.
और... किसी को भी बताने की आवश्यकता नहीं है कि पीपल जगत का एकमात्र ऐसा वृक्ष है जो round-the-clock ऑक्सीजन (O2) देता है और वहीं बरगद के औषधि गुण अपरम्पार है.
साथ ही आप में से बहुत लोगों को यह मालूम ही होगा कि मादा कौआ भादो महीने में अंडा देती है और नवजात बच्चा पैदा होता है.
तो, इस नयी पीढ़ी के उपयोगी पक्षी को पौष्टिक और भरपूर आहार मिलना जरूरी है...
शायद, इसलिए ऋषि मुनियों ने कौवों के नवजात बच्चों के लिए हर छत पर श्राघ्द के रूप मे पौष्टिक आहार की व्यवस्था कर दी होगी.
जिससे कि कौवों की नई जनरेशन का पालन पोषण हो जाये......
इसीलिए.... श्राघ्द का तर्पण करना न सिर्फ हमारी आस्था का विषय है बल्कि यह प्रकृति के रक्षण के लिए नितांत आवश्यक है.
साथ ही... जब आप पीपल के पेड़ को देखोगे तो अपने पूर्वज तो याद आएंगे ही क्योंकि उन्होंने श्राद्ध दिया था इसीलिए यह दोनों उपयोगी पेड़ हम देख रहे हैं.
अतः.... सनातन धर्म और उसकी परंपराओं पे उंगली उठाने वालों से इतना ही कहना है कि....
जब दुनिया में तुम्हारे ईसा-मूसा-भूसा आदि का नामोनिशान नहीं था...
उस समय भी हमारे ऋषि मुनियों को मालूम था कि धरती गोल है और हमारे सौरमंडल में 9 ग्रह हैं.
साथ ही... हमें ये भी पता था कि किस बीमारी का इलाज क्या है...
कौन सी चीज खाने लायक है और कौन सी नहीं...?
भारत की स्वतंत्रता के बाद सात दशक तक धर्म से जुड़ी ऐसी वैज्ञानिक बातों को अंधविश्वास और पाखंड साबित करने का काम हुआ है। अब धीरे-धीरे सनातन संस्कृति पुनर्जीवित हो रही है। लोग मूल ग्रन्थ न पढ़कर सुनी हुई बातों पर विश्वास करते थे।
1 टिप्पणी:
सुंदर व बहुमूल्य जानकारी,
साधूवाद
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