इन्दिरा गाँधी और लाल कृष्ण आडवाणी |
-शीतांशु कुमार सहाय
भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी को जब 12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राजनारायण की चुनाव संबंधी याचिका पर फैसला सुनाया कि चुनाव संबंधी भ्रष्टाचार के लिए वह दोषी हैं तब उन की लोकसभा की सदस्यता समाप्त हो गयी। इंदिरा गाँधी ने इस फ़ैसले को मानने से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की घोषणा की और 26 जून को आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी गई। पूरे देश में लोकनायक जयप्रकाश नारायण (जेपी) सहित तमाम जागरूक लोग ने 25 जून 1975 को इंदिरा गाँधी के इस्तीफे की माँग को लेकर दिल्ली के रामलीला मैदान की सभा में हिस्सा लिया। जेपी ने तालियों के बीच रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियाँ ‘‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’’ का उद्बोधन किया। 25 जून को ही जेपी ने घोषणा की कि इंदिरा गाँधी को इस्तीफे के लिए मजबूर करने के लिए अहिंसक प्रदर्शन और सत्याग्रह किया जायेगा। जेपी ने सेना और पुलिस को गैर-कानूनी आदेशों का पालन नहीं करने की सलाह दी। जेपी और आम जनता की आवाज तथा माँगों को कुचलने के लिये इंदिरा गाँधी ने 25 जून कीे मध्य रात्रि में बिना मंत्रिमंडल की सलाह के आंतरिक आपातकाल लगाने की प्रस्ताव पर राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद को हस्ताक्षर करने को बाध्य किया। इस के साथ ही कानून की दृष्टि से समानता का अधिकार एवं मौलिक अधिकारों के कार्यान्वयन के लिए न्यायालय में अपील करने के अधिकारों को राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 359 के अंतर्गत निरस्त करने के संबंध में आदेश जारी कर दिया। 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 मास की अवधि में भारत में आपातकाल घोषित था।
न्यायालय के आदेश को न मानी इन्दिरा
मामला 1971 में हुए लोकसभा चुनाव का था जिस में उन्होंने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी राज नारायण को पराजित किया था लेकिन चुनाव परिणाम आने के चार साल बाद राज नारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी। उन की दलील थी कि रायबरेली से इंदिरा गाँधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग किया, तय सीमा से अधिक खर्च किए और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए ग़लत तरीकों का इस्तेमाल किया। अदालत ने इन आरोपों को सही ठहराया। इस के बावजूद इंदिरा गाँधी टस-से-मस नहीं हुईं। यहाँ तक कि काँग्रेस पार्टी ने भी बयान जारी कर कहा कि इंदिरा का नेतृत्व पार्टी के लिए अपरिहार्य है। आकाशवाणी पर प्रसारित अपने संदेश में इंदिरा गाँधी ने कहा, "जब से मैं ने आम आदमी और देश की महिलाओं के फायदे के लिए कुछ प्रगतिशील क़दम उठाए हैं, तभी से मेरे ख़िलाफ़ गहरी साजिश रची जा रही थी।"
26 जून को आंतरिक आपातकाल की घोषणा
26 जून 1975 को इंदिरा गाँधी ने देश में आंतरिक आपातकाल की घोषणा कर दी एवं लोकनायक जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, नानाजी देशमुख, जॉर्ज फर्नांडिस, राजनारायण, मधु लिमये और काँग्रेसी युवा तुर्क नेता चन्द्रशेखर, रामधन, कृष्णकांत, मोहन धारिया तथा देश के वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर सहित लाखों विरोधी दल के नेता कार्यकर्ता, सामाजिक संगठन के लोग एवं पत्रकार को जेल में डाल दिया गया। अखबारों पर सेंसरशिप लगा दी गयी। नागरिकों के मूलभूत अधिकारों को स्थगित कर दिया गया। जय प्रकाश नारायण ने अपनी-जेल डायरी में व्यथित हृदय से लिखा था, ’’लोकतंत्र के क्षितिज को विस्तृत करने की बात तो एक ओर रह गयी और मानों लोकतंत्र ही एकाएक काल का ग्रास बन गया।’’ इस प्रकार दुनिया के सब से बड़े लोकतंत्र को तानाशाही में बदल डाला गया।
लालकृष्ण आडवाणी की आत्मकथा में आपातकाल
''8.00 बजे आकाशवाणी से समाचार सुनने के लिए मैंने रेडियो चलाया। मुझे आकाशवाणी समाचारवाचक की परिचित आवाज के स्थान पर इंदिरा गाँधी की ग़मगीन आवाज़ सुनायी दी। यह उन का राष्ट्र के नाम किया जानेवाला अचानक प्रसारण था, इस सूचना के साथ कि राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 352 के अंतर्गत आपातकाल घोषित कर दिया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आंतरिक अशांति से निबटने के लिए आपातकाल लागू करना आवश्यक था।''
-लालकृष्ण आडवाणी,वरिष्ठ भाजपा नेता एवंपूर्व उपप्रधानमंत्री, भारत
(यह वरिष्ठ भाजपा नेता एवं पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की आत्मकथा 'मेरा देश मेरा जीवन' से लिया गया है। प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का लोकार्पण 25 जून 2015 को भोपाल में श्रीश्री रविशंकर ने किया।)
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