मंगलवार, 1 मार्च 2016

भगवान शिव का रहस्य / The secret of Lord Shiva

-शीतांशु कुमार सहाय/Sheetanshu Kumar Sahay

शिव का दिन सोमवार 

 

सभी मित्रों की ओर से भगवान शिव के श्रीचरणों में कोटिशः नमस्कार!

सनातन धर्म में हर दिवस का सम्बन्ध किसी--किसी देवता से है। सप्ताह का प्रथम दिवस रविवार को भगवान भास्कर की उपासना की जाती है। मंगलवार को भगवान मारूतिनन्दन हनुमान का दिन माना जाता है। कहीं-कहीं इसे मंगलमूर्ति गणपति का भी दिवस मानते हैं। बुधवार को बुध की पूजा का विधान है; क्योंकि यह शांति का दिवस है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी विशेष साप्ताहिक आराधना की जाती है। बृहस्पतिवार को कदली यानी कला वृक्ष में देवगुरु बृहस्पति की पूजा की जाती है। अत: बृहस्पतिवार को गुरुवार भी कहते हैं। गुरुवार को भगवान विष्णु की अर्चना का भी विधान है। शुक्रवार भगवती संतोषी के दिवस के रूप में प्रसिद्ध है तो शनिवार को महाकाल रूप भैरव एवं महाकाली की उपासना के जाती है। शनिवार को भी भगवान हनुमान की विशेष पूजा होती है। ठीक ऐसे ही भगवान शंकर सोमवार को सब से ज्यादा पूजे जाते हैं। हर सनातनधर्मी का आग्रह होता है कि और किसी दिन शिव मंदिर जाएँ या जाएँ लेकिन सोमवार को दर्शन अवश्य करेंगे। आखिर ऐसा क्यों? शिव के लिए सोमवार का आग्रह ही क्यों? इस पर कुछ चिंतन करें, विचार करें।
सब से पहले दिनों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में विचार करते हैं। वास्तव में ये सारे दिवस भगवान शिव से ही प्रकट माने जाते हैं। शिवमहापुराण के अनुसार, प्राणियों की आयु का निर्धारण करने के लिए भगवान शंकर ने काल की कल्पना की। उसी से ही ब्रह्मा से लेकर अत्यन्त छोटे जीवों तक की आयुष्य का अनुमान लगाया जाता है। उस काल को ही व्यवस्थित करने के लिए महाकाल ने सप्तवारों की कल्पना की। सब से पहले ज्योतिस्वरूप सूर्य के रूप में प्रकट होकर आरोग्य के लिए प्रथमवार (रविवार) की कल्पना की-
संसारवैद्यः सर्वज्ञः सर्वभेषजभेषजम्।
आय्वारोग्यदं वारं स्ववारं कृतवान्प्रभुः॥
अपनी सर्वसौभाग्यदात्री शक्ति के लिए द्वितीयवार की कल्पना की। उस के बाद अपने ज्येष्ठ पुत्र कुमार के लिए अत्यन्त सुन्दर तृतीयवार की कल्पना की। तदनन्तर सर्वलोकों की रक्षा का भार वहन करनेवाले परम मित्र मुरारी के लिए चतुर्थवार की कल्पना की। देवगुरु के नाम से पञ्चमवार की कल्पना कर उस का स्वामी यम को बना दिया। असुरगुरु के नाम से छठे वार की कल्पना कर उस का स्वामी ब्रह्मा को बना दिया एवं सप्तमवार की कल्पना कर उस का स्वामी इंद्र को बना दिया।
नक्षत्र चक्र में सात मूल ग्रह ही दृष्टिगोचर होते हैं, इसलिए भगवान ने सूर्य से लेकर शनि तक के लिए सातवारों की कल्पना की। राहु और केतु छाया ग्रह होने के कारण दृष्टिगत होने से उन के वार की कल्पना नहीं की गयी।
भगवान शिव की उपासना हर वार को अलग फल प्रदान करती है। शिवमहापुराण में यह श्लोक कहा गया है--
आरोग्यम्सम्पद चैव व्याधीनांशान्तिरेव च।
पुष्टिरायुस्तथाभोगोमृतेर्हानिर्यथाक्रमम्॥
अर्थात् स्वास्थ्य, सम्पत्ति, रोग-नाश, पुष्टि, आयु, भोग तथा मृत्यु की हानि के लिए रविवार से लेकर शनिवार तक भगवान शिव या उन के साकार रूप शंकर की आराधना करनी चाहिये। सभी वारों में जब शिव फलप्रद हैं तो फिर सोमवार का आग्रह क्यों? ऐसा लगता है की मनुष्य मात्र को सम्पत्ति से अत्यधिक प्रेम होता है, इसलिए उस ने शिव के लिए सोमवार का चयन किया।
पुराणों के अनुसार, सोम का अर्थ चन्द्र या चाँद होता है और चन्द्र भगवान् शङ्कर के शीश पर मुकुटायमान होकर अत्यन्त सुशोभित होता है। लगता है कि भगवान शङ्कर ने जैसे कुटिल, कलंकी, कामी, वक्री एवं क्षीण चन्द्रमा को उस के अपराधी होते हुए भी क्षमा कर अपने शीश पर स्थान दिया। ऐसे ही भगवान हमें भी सिर पर नहीं तो चरणों में जगह अवश्य देंगे। यह याद दिलाने के लिए सोमवार को ही भक्तों ने शिव का वार बना दिया। चन्द्र मन का प्रतीक है। जड़ मन को चेतनता से प्रकाशित करनेवाला परमेश्वर ही है। मन की चेतनता को पकड़कर हम परमात्मा तक पहुँच सकें, इसलिए परमेश्वर महादेव की उपासना सोमवार को की जाती है।
सोम का एक अर्थ सौम्य भी होता है। भगवान शङ्कर अत्यन्त शांत और समाधिस्थ देव हैं। इस सौम्य भाव को देखकर ही भक्तों ने इन्हें सोमवार का देवता मान लिया। सहजता और सरलता के कारण ही इन्हें भोलेनाथ कहा जाता है।
सोम का एक विशेष अर्थ होता है-- उमा के सहित शिव। केवल कल्याणरी शिव की उपासना कर साधक भगवती शक्ति की भी साथ में उपासना करना चाहता है; क्योंकि बिना शक्ति के शिव के रहस्य को समझना अत्यन्त कठिन है। इसलिए भक्तों ने सोमवार को शिव का वार स्वीकृत किया।
एक विशेष बात बताता हूँ। जरा 'सोम' शब्द का उच्चारण कीजिये और इस उच्चारण पर ध्यान दीजिये। आप को 'सोम' में '' समाया हुआ मिलेगा। है नऽ गज़ब की बात! भगवान शिव ॐकारस्वरूप हैं। ॐकार की उपासना द्वारा ही साधक अद्वय स्थिति में पहुँच सकता है। अद्वय स्थिति ही एकेश्वरवाद है। अद्वय स्थिति आने पर योग साधना में सहस्रार चक्र (सिर के मध्य में स्थित) में शिव-शक्ति के मिलन का साक्षात् अनुभव होता है। इसलिए भगवान शिव को सोमवार का देव कहा जाता है।
सृष्टि का मूल आधार माता शक्ति हैं, जिन्हें आदिशक्तिकहा जाता है। आदिशक्ति ने सब से पहले सृष्टि की कल्पना की तो शक्ति का अनन्त प्रवाह निकला जो अनन्त आकार का अण्डस्वरूप शिवलिंग रूप में प्रकट हुआ। आदिशक्ति ने इस शिवलिंग का साकार रूप प्रकट किया जिन्हें हम भगवान शंकर कहते हैं। शक्ति को आदिस्त्रीरूप और शंकर को आदिपुरुषरूप की मान्यता है। इन दोनों का मिलन ही सृष्टि की रचना का मूल है। इन दोनों का मिलन रूप दर्शन ही मुक्ति का कारण है। अतः योग साधना द्वारा शिव और शक्ति का मिलन अद्वय रूप प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है।    
वेदों ने 'सोम' का जहाँ अर्थ किया है, वहाँ सोमवल्ली का ग्रहण किया जाता है। जैसे सोमवल्ली में सोमरस आरोग्य और आयुष्यवर्द्धक है, वैसे ही शिव हमारे लिए कल्याणकारी हों, इसलिए सोमवार को महादेव की उपासना की जाती है।

सोमवार की शिव पूजा हमेशा सूर्योदय से पूर्व करना ही सर्वश्रेष्ठ है। सम्भव न हो पाने पर दोपहर से पूर्व अवश्य कर लें। शिव के विशेष स्थान या ज्योतिर्लिंगों की पूजा दिनभर या परम्परागत रूप से किसी भी समय की जा सकती है।

शिव उपासना  और बेलपत्र

       धर्मशास्त्रों में उजागर देव भक्ति की महिमा से उपजी श्रद्धा ने हर युग में भक्त भगवान के रिश्तों को मजबूती से जोड़े रखा है। भक्ति के लिए कई पूजा परंपराएं और उपासना के उपाय प्रचलित है। आस्था में डूबे सारे भक्त शास्त्रों में बताई देव उपासना से जुड़ी सारी बातों के जानकार नहीं होते, इसलिए वे पूजा-पाठ के दौरान कई अनजाने में कई छोटी-छोटी चूक भी करते हैं। इसी कड़ी में शिव पूजा के दौरान भी एक ऐसी गलती कई भक्त अनजाने में करते नजर आते हैं, हालाँकि शिव भक्तवत्सल है और पूजा का पूरा पुण्य देते हैं। हर शिव भक्त को भक्ति की मर्यादा का ध्यान जरूर रखना चाहिए।
शिव उपासना में बेलपत्र का चढ़ावा पापनाशक सांसारिक सुखों को देने के नजरिये से बहुत अहमियत रखता है। खासतौर पर शिव भक्ति के दिनों जैसे सोमवार को बेलपत्र का चढ़ावा मनोरथ सिद्धि का श्रेष्ठ उपाय भी है। शास्त्रों में शिव उपासना की नियत मर्यादाओं की कड़ी में बेलपत्र चढ़ाने से जुड़ी कुछ खास बातें उजागर हैं। इन नियमों में बिल्वपत्रों को कुछ खास दिनों पर ही तोडऩा बेलपत्र होने पर शिव पूजा का तरीके बताए गए हैं।
शास्त्रों के मुताबिक इन तिथियों या दिनों पर बेलपत्र नहीं तोड़ना चाहिए -
चतुर्थी,
अष्टमी,
नवमी,
चतुर्दशी,
अमावस्या,
संक्रांति (सूर्य का राशि बदल दूसरी राशि में प्रवेश) और
सोमवार।
बेलपत्र होने की स्थिति में शिव पूजा में यह उपाय करना चाहिए। चूँकि बेलपत्र शिव पूजा का अहम अंग है, इसलिए इन दिनों में बेलपत्र तोडऩे के नियम के कारण बेलपत्र होने पर नये बेलपत्रों की जगह पर पुराने बेलपत्रों को जल से पवित्र कर शिव पर चढ़ाये जा सकते हैं या इन तिथियों के पहले तोड़ा बेलपत्र चढ़ाएँ।

शिव और सर्प के रिश्ते

भगवान शिव और साँप का अटूट रिश्ता है। शिव के गले में लिपटा साँप या नाग इस बात का संकेत है कि कोई जीव कितना भी जहरीला क्यों होपर्यावरण संतुलन में उस का भी योगदान है योग में साँप वास्तव में कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक है। यह शरीर के भीतर की वह ऊर्जा है, जो सुप्तावस्था में पड़ी है और इस्तेमाल नहीं हो रही है। योग बल से कुंडलिनी को जाग्रत कर इस ऊर्जा का इस्तेमाल किया जा सकता है।
भगवान शिव के साथ साँप इस बात का प्रतीक है कि मनुष्य अगर आन्तरिक ऊर्जा मतलब कुंडलिनी शक्ति को जागृत कर ले तो वह शिवत्व को प्राप्त हो सकता है। साँप को शिव ने सिर पर धारण कार यह बताया कि कुंडलिनी शक्ति ही सर्वोपरि है।
साँप भगवान शंकर के गले के चारों ओर लिपटा रहता है। इस के पीछे एक पूरा विज्ञान है। ऊर्जा शरीर में ११४ चक्र होते हैं। आप उन्हें शरीर के ११४ संधि स्थलों या नाडिय़ों के संगम के रूप में देख सकते हैं। इन ११४ में से शरीर के सात मूल चक्रों के बारे में ही प्रायः बात की जाती है। इन सात मूल चक्रों में से विशुद्धि चक्र गले के गड्ढे में मौजूद होता है। यह खास चक्र साँप के साथ बहुत मजबूती से जुड़ा है। शिव का केंद्र विशुद्धि चक्र में है। उन्हें विषकंठ या नीलकंठ भी कहा जाता है; क्योंकि वह सारे जहर को छान लेते हैं और उसे अपने शरीर में प्रवेश नहीं करने देते।
गवान शंकर और सर्प का जुड़ाव गहरा है तभी तो वह उन के शरीर से लिपटे रहते हैं। यह बात सिर्फ मान्यताओं तक ही सीमित नहीं है; बल्कि यह हकीकत है। भगवान आमजन के लिए अपनी कृपा बरसाने में अति दयालु हैं। अगर सर्प के दर्शन हो जाएँ तो समझिये कि साक्षात भगवान शंकर के ही दर्शन हो गये।
भगवान शंकर जिस के आराध्य हों या फिर अगर कोई साधक भगवान शंकर का ध्यान करता हो तो उन के बारे में कई भाव मन में प्रस्फुटित होते हैं। साधन क्रम में विचार सागर में कई विचारों का आगमन होता है। जैसे कि भगवान शंकर त्रिशूल लिये साधना पर बैठे हैं। उन का तीसरा नेत्र यानी भृकुटी बंद है। उन की जटाओं से गंगा प्रवाहित हो रही है। उन का शरीर समुद्र मंथन के समय विषपान करने की वजह से नीला दीख रहा है। भगवान शंकर की जटाओं और शरीर के इर्द-गिर्द कई साँप लिपटे हुए है। शिव के मस्तक पर एक ओर चंद्र है तो दूसरी ओर महाविषधर सर्प भी उन के गले का हार है। उन के परिवार में भूत-प्रेत, नंदी, सिंह, सर्प, मयूर मूषक सभी का समभाव देखने को मिलता है। भगवान शंकर से जुड़ी कथाएँ साधकों के लिए वह प्रेरणादायी है।
राजस्थान के माउंट आबू में शिवलिंग से साँपों के लिपटने की घटनाएँ सब से ज़्यादा होती हैं। राजस्थान का इकलौता हिल स्टेशन है माउंट आबू जो अर्द्धकाशी भी कहलाता है। माउंट आबू अर्द्धकाशी इसलिए कहलाता है; क्योंकि यहाँ भगवान शंकर के १०८ छोटे-बड़े मंदिर हैं। दुनिया की इकलौती जगह है जहाँ भगवान शंकर नहीं, उन की शिवलिंग भी नहीं; बल्कि उन के अंगूठे की पूजा होती है। माउंट आबू में ही अचलगढ़ दुनिया की इकलौती ऐसी जगह है जहाँ भगवान शिव के अंगूठे की पूजा होती है। भगवान शिव के सभी मंदिरों में तो उन के शिवलिंग की पूजा होती है लेकिन यहाँ भगवान शिव के अंगूठे की पूजा होती है।
माउंट आबू पर एक मंदिर है पांडव गुफा के करीब, जहाँ के बारे में कहा जाता है कि पांडव ने अज्ञातवास के दौरान कुछ समय यहाँ बिताया था।
साँप इंसानों के लिए खतरनाक होता है लेकिन यह बात भी सच है कि उसे हम इंसानों से ज्यादा डर लगता है। आस्था, विश्वास की परिभाषा आध्यात्म की सीमा रेखा में सब कुछ मानने पर ही निर्भर है। स्थानीय लोग के मुताबिक माउंट आबू के उन मंदिरों में जो जंगल के बीच हैं, वहाँ शिवलिंग से साँप लिपटे रहते हैं। इस प्रकार की घटना सावन के महीने में सोमवार को या फिर शिवरात्रि के मौके पर जरूर होती है।
शिव (शिवलिंग) और सर्प का गहरा नाता है। यह रिश्ता इंसानी समझ से परे है। क्या मानें, क्या मानें, यह हमारे विवेक पर निर्भर करता है। कुछ लोग के लिए यह भोले का रूप हो सकता है तो कुछ के लिए कोरा अंधविश्वास।
सर्पराज वासुकि भगवान शिव के परम भक्त थे। नाग जाति के लोग ने ही सर्वप्रथम शिवलिंग की पूजा का प्रचलन शुरू किया था। वासुकि की भक्ति से प्रसन्न होकर ही भगवान शिव ने उन्हें अपने गणों में शामिल कर लिया था। वासुकि को नागलोक का राजा माना गया है। झारखण्ड के दुमका जिले में वासुकिनाथ धाम है, जहाँ के शिवलिंग पर जलार्पण करने सालोंभर लोग आते हैं देवघर के वैद्यनाथ धाम से करीब ४० किलोमीटर दूर है।  

भगवान शिव ही समस्त सृष्टि के आदि कारण हैं

सृष्टि की उत्पत्ति के बारे में ग्रन्थों में वर्णन है। सब में शक्ति विद्यमान है और शक्ति के अभाव में मृत। जीव में जब तक शक्ति का अंश मौजूद है, तब तक ही वह जीवित है और जीव की श्रेणी में आता है। जब उस में से शक्ति का अंश निकल जाता है तो व निर्जीव हो जाता है, मर जाता है और पार्थिव कहलाता है। पार्थिव- अर्थात् जो पृथ्वी पर गिर गया, जो अब उठ नहीं सकता, जो पृथ्वी के समानान्तर हो गया, जो अब पृथ्वी में मिल जायेगा। यही कारण है कि मृत व्यक्ति के शरीर को पार्थिव शरीर' कहते हैं। इस तरह ज्ञात होता है कि सभी में शक्ति विराजमान है, चाहे वह सजीव हो या निर्जीव। भारतीय ऋषि हज़ारों वर्षों पूर्व ही कह गये हैं कि जड़ व चेतन- दोनों में शक्ति का अंश विद्वमान है। आज का भौतिक विज्ञान भी यही कहता है कि जड़ अर्थात् निर्जीव में स्थितिज ऊर्जा और सजीव में गतिज ऊर्जा व्याप्त है। प्राचीन वैज्ञानिकों को भारतीय ग्रन्थों में ऋषिकी संज्ञा दी गयी है। ऋषियों ने सब में, अखिल विश्व में व्याप्त शक्ति को कई नाम दिये हैं, जिन में एक नाम आत्माभी है।
          शक्ति ही आदि है। अतः इसे आदिशक्तिभी कहते हैं। यह अनन्त है। कहाँ से कहाँ तक शक्ति का प्रसार है, इसे परिभाषित नहीं किया जा सकता। यह सब में और सर्वत्र है। शक्ति सब में और सभी शक्ति में हैं; क्योंकि यह ब्रह्माण्ड शक्ति या आदिशक्ति का ही व्यापक प्रसारित रूप है। ब्रह्माण्ड में ऊर्जा या शक्ति परमाणु के रूप में बिखरी है। ब्रह्माण्ड में दो ही तरह की परमाणु शक्ति है- चैतन्य और जड़। चैतन्य शक्ति से भरे परमाणु संयोजित होकर जीव की उत्पत्ति करते हैं और जड़ शक्तिवाले परमाणु मिलकर जड़ पदार्थ जैसे ग्रह, तारे, नक्षत्र, उपग्रह, धूमकेतु, पर्वत, वायु, धातु आदि का निर्माण करते हैं। यों प्रतीत हुआ कि समस्त सृष्टि या निर्माण में केवल और केवल शक्ति का ही हाथ है।   
          आदिशक्ति को ऋषियों ने देवीके रूप में पूजा है। उस परम्परा का निर्वहन करते हुए धरतीवासी शक्ति की आराधना करते हैं। धरती के सभी धर्मों में केवल शक्ति और उस के रूप की ही चर्चा है। उन का कोई रूप नहीं, कोई आकार नहीं; पर यह साकार रूप धारण करती रहती हैं। ऊपर में मैं ने जिस परमाणु-शक्ति की चर्चा की है, उस के माध्यम से समझिये कि परमाणुओं (शुक्राणु व अण्डाणु) के मिलन से कोशिकांग, कोशिकांगों के संयोजन से कोशिका और कोशिकाओं से अंग बनते हैं। अंगों से अंगतन्त्र और अंगतन्त्रों का समूह एक सम्पूर्ण जीव का निर्माण करता है।  
          आदिकाल में जब महादेवी आदिशक्ति में कम्पन हुआ तो ॐ की प्रथम ध्वनि के साथ विशाल शिवलिंग का निर्माण हुआ जिस का न आदि है और न अन्त। ॐ की प्रथम ध्वनि के साथ उत्पन्न होने के कारण शिव को ॐकार भी कहते हैं
वास्तव में शिवलिंग का अभिप्राय स्त्री या पुरुष सूचक लिंग से कदापि नहीं है। किसी भी ग्रन्थ में ऐसा उल्लेख मुझे नहीं मिला। वैज्ञानिक तथ्य यह है कि जब भी कोई ऊर्जा समूह एक साथ मुक्त होता है तो वह बड़े गोलाकार रूप धारण करता है जो शिवलिंगस्वरूप होता है। हमारे प्राचीन वैज्ञानिकों (ऋषियों) ने ऊर्जा अर्थात् शक्ति के इस रूप को शिवलिंग का पवित्र नाम दिया। आदिशक्ति के इस रूप को पुरुषवाचक माना गया। इस तरह आदिशक्ति ने अपने को दो रूपों में विभक्त किया- स्त्री रूप में माता शक्ति और पुरुष रूप में भगवान शिव। साकार रूप में इन्हें शंकर कहा गया।
      भगवान शिव की पूजा या आराधना का मतलब है ब्रह्माण्ड में बिखरी परमाणु-शक्ति को प्राप्त कर उस का जीवन पालन में उपयोग करते हुए मुक्ति की ओर अग्रसर होना। जो शक्तिशाली है, वही कल्याण को प्राप्त होता है। अतः शिव को कल्याण का कारक माना गया है। yax  
      भगवान शिव ही समस्त सृष्टि के आदि कारण हैं। उन्हीं से ब्रह्मा, विष्णु सहित समस्त सृष्टि का उद्भव होता है। संक्षेप में यह कथा इस प्रकार है- प्रलयकाल के पश्चात सृष्टि के आरम्भ में भगवान नारायण की नाभि से एक कमल प्रकट हुआ और उस कमल से ब्रह्मा प्रकट हुए। ब्रह्माजी अपने कारण का पता लगाने के लिए कमलनाल के सहारे नीचे उतरे। वहाँ उन्होंने शेषशायी भगवान नारायण को योगनिद्रा में लीन देखा। उन्होंने भगवान नारायण को जगाकर पूछा- ''आप कौन हैं?''
नारायण ने कहा- "मैं लोकों का उत्पत्तिस्थल और लयस्थल पुरुषोत्तम हूँ।"
ब्रह्मा ने पूछा- "किन्तु सृष्टि की रचना करनेवाला तो मैं हूँ।"
      ब्रह्माजी के ऐसा कहने पर भगवान विष्णु ने उन्हें अपने शरीर में व्याप्त सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का दर्शन कराया।
      इस पर ब्रह्माजी ने कहा- "इस का तात्पर्य है कि इस संसार के स्रष्टा मैं और आप दोनों हैं।"
        भगवान विष्णु ने समझाया- "ब्रह्माजी! आप भ्रम में हैं। सब के परम कारण परमेश्वर ईशान भगवान शिव को आप नहीं देख रहे हैं। आप अपनी योगदृष्टि से उन्हें देखने का प्रयत्न कीजिये। हम सब के आदि कारण भगवान सदाशिव आप को दिखायी देंगे।"
      जब ब्रह्माजी ने योगदृष्टि से देखा तो उन्हें त्रिशूल धारण किये परम तेजस्वी नीलवर्ण की एक मूर्ति दिखायी दी। उन्होंने नारायण से पूछा- "ये कौन हैं?"
      भगवान विष्णु ने बताया- "ये ही देवाधिदेव भगवान महादेव हैं। ये ही सब को उत्पन्न करने के उपरान्त सब का भरण-पोषण करते हैं और अन्त में सब इन्हीं में लीन हो जाते हैं। इन का कोई आदि है अन्त। यही सम्पूर्ण जगत में व्याप्त हैं।" इस प्रकार ब्रह्माजी ने भगवान विष्णु की कृपा से सदाशिव का दर्शन किया।

भगवान शिव का परिवार

    भगवान शिव का परिवार बहुत बड़ा है। एकादश रुद्राणियाँ, चौंसठ योगिनियाँ तथा भैरवादि इनके सहचर और सहचरी हैं।
    माता पार्वती की सखियों में विजया आदि प्रसिद्ध हैं।
    गणपति-परिवार में उनकी सिद्धि, बुद्धि नामक दो पत्नियाँ तथा क्षेम और लाभ दो पुत्र हैं। उनका वाहन मूषक है।
    भगवान कार्तिकेय की पत्नी देवसेना तथा वाहन मयूर है।
    भगवती पार्वती का वाहन सिंह है तथा भगवान शिव स्वयं धर्मावतार नन्दी पर आरूढ़ होते हैं।
    यद्यपि भगवान शिव सर्वत्र व्याप्त हैं, तथापि काशी और कैलास- ये दो उनके मुख्य निवास स्थान कहे गये हैं।
    भगवान शिव देवताओं के उपास्य तो हैं ही, साथ ही उन्होंने अनेक असुरों- अन्धक, दुन्दुभी, महिष, त्रिपुर, रावण, निवात-कवच आदि को भी अतुल ऐश्वर्य प्रदान किया।
    कुबेर आदि लोकपालों को उनकी कृपा से यक्षों का स्वामित्व प्राप्त हुआ। सभी देवगणों तथा ऋषि-मुनियों को दु:खी देखकर उन्होंने कालकूट विष का पान किया। इसी से वे नीलकण्ठ कहलाये। इस प्रकार भगवान शिव की महिमा और नाम अनन्त हैं।
    उनके अनेक रूपों में उमा-महेश्वर, अर्द्धनारीश्वर, पशुपति, कृत्तिवासा, दक्षिणामूर्ति तथा योगीश्वर आदि अति प्रसिद्ध हैं।
    महाभारत, आदिपर्व के अनुसार पांचाल नरेश द्रुपद की पुत्री द्रौपदी पूर्वजन्म में एक ऋषि कन्या थी। उसने श्रेष्ठ पति पाने की कामना से भगवान शिव की तपस्या की थी। शंकर ने प्रसन्न होकर उसे वर देने की इच्छा की। उसने शंकर से पाँच बार कहा कि वह सर्वगुणसंपन्न पति चाहती है। शंकरजी ने कहा कि अगले जन्म में उसके पाँच भरतवंशी पति होंगे, क्योंकि उसने पति पाने की कामना पाँच बार दोहरायी थी।
    भगवान शिव की ईशान, तत्पुरुष, वामदेव, अघोर तथा अद्योजात पाँच विशिष्ट मूर्तियाँ और शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव- ये अष्टमूर्तियाँ प्रसिद्ध हैं।
    सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, केदारेश्वर, भीमशंकर, विश्वेश्वर, त्र्यंबक, वैद्यनाथ, नागेश, रामेश्वर तथा घुश्मेश्वर– ये प्रसिद्ध बारह ज्योतिर्लिंग हैं।
    भगवान शिव के मन्त्र-उपासना में पंचाक्षर नम: शिवाय तथा महामृत्युंजय विशेष प्रसिद्ध है।
    इसके अतिरिक्त भगवान शिव की पार्थिव-पूजा का भी विशेष महत्त्व है।
    शिव हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से हैं । वेद में इनका नाम रुद्र है। यह व्यक्ति की चेतना के अर्न्तयामी हैं । इनकी अर्ध्दांगिनी (शक्ति) का नाम पार्वती और इनके पुत्र स्कन्द और गणेश हैं।
    शिव योगी के रूप में माने जाते हैं और उनकी पूजा लिंग के रूप में होती है ।
    भगवान शिव सौम्य एवं रौद्ररूप दोनों के लिए जाने जाते हैं ।
    सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने जाते हैं । शिव का अर्थ कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे उनका लय और प्रलय दोनों पर समान अधिकार है।
    भक्त पूजन में शिव जी की आरती की जाती है।
    शिवजी के अन्य भक्तों में त्रिहारिणी भी थे और शिव जी त्रिहारिणी को अपने पुत्रों से भी अधिक प्यार करते थे।

भावुक प्रेमी शिव

शिव को अक्सर एक शांत और संयमी योगी के रूप में दिखाया जाता है। परंतु हम शिव के बारे में जो भी कहें, इसके ठीक उल्टा भी उतना ही सही है। यह शांत योगी एक समय में एक भावुक प्रेमी भी बन गया था। पुण्याक्षी एक अत्यंत ज्ञानी स्त्री और भविष्यवक्‍ता थी, जो भारत के दक्षिणी सिरे पर रहती थीं। उनमें शिव को पाने की लालसा पैदा हो गई या कहें कि उन्हें शिव से प्रेम हो गया और वह उनकी पत्नी बनकर उनका हाथ थामना चाहती थीं। उन्होंने फैसला किया कि वह शिव के अलावा किसी और से विवाह नहीं करेंगी। इसलिए, पुण्याक्षी ने शिव का ध्यान आकर्षित करने के लिए अपने आप को उनके योग्य और उपयुक्त बनाना शुरू कर दिया। वह अपने जीवन का प्रत्येक क्षण पूरी तरह उनके ध्यान में बितातीं, उनकी भक्ति ने सभी सीमाएं पार कर लीं और उनकी तपस्या पागलपन की हद तक पहुंच गई। उनके प्रेम की तीव्रता को देखते हुए, शिव प्रेम और करूणा से विचलित हो उठे। उनके हृदय में भी पुण्याक्षी से विवाह करने की इच्छा जागी। परंतु जिस समाज में पुण्याक्षी रहती थी, उन लोगों को चिंता होने लगी। उन्हें लगा कि विवाह के बाद पुण्याक्षी भविष्यवाणी करने की अपनी क्षमता खो देंगी और उनका मार्गदर्शन करने के लिए उपलब्ध नहीं होंगी। इसलिए उन्होंने इस विवाह को रोकने की हर संभव कोशिश की। लेकिन पुण्याक्षी अपने इरादे पर दृढ़ रहीं और शिव के प्रति अपनी भक्ति जारी रखी। परंतु समुदाय के बुजुर्गों ने उन्हें रोक कर कहा, “यदि आप इस कन्या को अपनी पत्‍नी बनाना चाहते हैं, तो आपको कुछ शर्तें माननी होंगी। आपको हमें वधू का मूल्य देना होगा। शिव ने भी बदले में करूणा दिखाई और उनके विवाह की तिथि तय हो गई। वे भारत के दक्षिणी छोर की ओर चल पड़े। लेकिन पुण्याक्षी के समुदाय के लोग उनके विवाह के खिलाफ थे, इसलिए उन्होंने शिव से गुहार लगाई, ''हे शिव, यदि आप उससे विवाह कर लेंगे, तो हम अपना इकलौता ज्ञानचक्षु या पथ-प्रदर्शक खो देंगे। कृपया आप उससे विवाह न करें।'' लेकिन शिव उनकी बात सुनने को तैयार नहीं थे और उन्होंने विवाह के लिए अपनी यात्रा जारी रखी। परंतु समुदाय के बुजुर्गों ने उन्हें रोक कर कहा, “यदि आप इस कन्या को अपनी पत्‍नी बनाना चाहते हैं, तो आपको कुछ शर्तें माननी होंगी। आपको हमें वधू का मूल्य देना होगा। शिव ने पूछा, ''वधू का मूल्य क्या है? वह जो भी हो, मैं आप लोगों को दूंगा।'' फिर उन्होंने तीन चीजों की मांग की जो शिव को वधू मूल्य के रूप में देना था, “हम बिना छल्‍लों वाला एक गन्ना, बिना धारियों वाला एक पान का पत्ता, और बिना आंखों वाला एक नारियल चाहते हैं। आपको यही वधू मूल्य देना है। ये सभी वस्तुएं अप्राकृतिक हैं। गन्ना हमेशा छल्लों के साथ आता है, बिना धारियों का कोई पान का पत्ता नहीं होता और आंखों के बिना कोई नारियल नहीं हो सकता। यह एक असंभव वधू मूल्य था जो विवाह रोकने का अचूक तरीका था। लेकिन शिव को पुण्याक्षी से बहुत प्रेम था और वह किसी भी कीमत पर उससे विवाह करना चाहते थे। इसलिए, उन्होंने अपनी तंत्र-मंत्र की शक्ति और अपनी चमत्कारी क्षमताओं का इस्तेमाल करते हुए इन तीनों वस्तुओं की रचना कर दी। उन्होंने अन्यायपूर्ण और असंभव वधू मूल्य को चुकाने के लिए प्रकृति के नियमों को तोड़ दिया। इन मांगों को पूरा करने के बाद, वह विवाह के लिए फिर से आगे बढ़ने लगे।
फिर समुदाय के बुजुर्गों ने शिव के सामने एक आखिरी शर्त रखी। उन्होंने कहा, ''आपको कल सुबह का सूरज उगने से पहले विवाह करना होगा। यदि आप देर से आए, तो आप उस कन्या से विवाह नहीं कर सकते।'' यह सुनने के बाद, शिव तेजी से आगे बढ़ने लगे। उन्हें यकीन था कि वह समय पर पुण्याक्षी के पास पहुंच जाएंगे। समुदाय के बुजुर्गों ने देखा कि शिव उन सभी असंभव शर्तों को पार करते जा रहे हैं, जो उन्होंने तय की थी और वह अपना वादा पूरा कर लेंगे। फिर उन्हें चिंता होने लगी।
अपने सफर पर जल्दी-जल्दी आगे बढ़ते हुए शिव विवाह स्थल से कुछ ही किलोमीटर दूर रह गए थे। यह जगह आज सुचिंद्रम के नाम से जाना जाता है। यहां पर उन बुजुर्गों ने अपना आखिरी दांव खेला, उन्होंने एक नकली सूर्योदय का आभास पैदा करने की सोची। उन्होंने कपूर का एक विशाल ढेर लगाया और उसमें आग लगा दी। कपूर की अग्नि इतनी चमकीली और तीव्र थी कि जब शिव ने कुछ दूरी से उसे देखा, तो उन्हें लगा कि सूर्योदय हो गया है और वह अपना लक्ष्य पूरा नहीं कर पाए। वह बहुत नजदीक, सिर्फ कुछ किलोमीटर दूर थे, लेकिन उनके साथ छल करते हुए उन्हें यह सोचने पर मजबूर कर दिया गया कि समय पूरा हो गया है और वह पुण्याक्षी से किया अपना वादा पूरा नहीं कर पाए।
पुण्याक्षी इस बात से पूरी तरह अनजान थीं कि उनका समाज इस विवाह को रोकने की कोशिशें कर रहा है, वह शिव के साथ अपने भव्य विवाह की तैयारी में जुटी थीं। जब आकाश में असली सूर्योदय हुआ, तब उन्हें महसूस हुआ कि शिव नहीं आ रहे हैं। वह क्रोधित हो उठीं। उन्होंने जश्न की तैयारी के लिए बनाए गए भोजन से भरे सभी बरतनों को पांव की ठोकर से तोड़ दिया और गुस्से में भूमि के सिरे पर जाकर खड़ी हो गईं। वह एक सिद्ध योगिनी थीं, उन्होंने इस उपमहाद्वीप के आखिरी सिरे पर खड़े-खड़े अपना शरीर त्याग दिया। आज भी उस स्थान पर एक मंदिर है, जहां उन्होंने अपना शरीर त्यागा था और उस स्थान को कन्याकुमारी के नाम से जाना जाता है।
शिव नहीं जानते थे कि उनके साथ छल किया गया। उन्हें लगा कि वह पुण्याक्षी से किया वादा पूरा नहीं कर पाए और वह अपने आप से बहुत मायूस और हताश थे। वह पीछे मुड़कर वापस जाने लगे। लेकिन अपने अंदर के गुस्से के कारण उन्हें कहीं बैठने और अपनी निराशा दूर करने की जरूरत थी। इसलिए वह वेलंगिरि पहाड़ पर चढ़ गए और उसकी चोटी पर बैठ गए। वह आनंदपूर्वक या ध्यानमग्न होकर नहीं बैठे थे। वह एक किस्म की निराशा में और खुद पर क्रोधित हो कर बैठे थे। उन्होंने काफी समय वहां बिताया। पहाड़ ने उनकी ऊर्जा को आत्मसात कर लिया। ये ऊर्जा किसी भी और जगह की ऊर्जा से बहुत ही अलग है।
परंपरा है कि शिव ने जहां पर भी कुछ अधिक समय बिताया, उसे कैलाश का नाम दे दिया जाता है। इसलिए इस पहाड़ को दक्षिण का कैलाश कहा जाता है। ऊंचाई, रंग और आकार में वेलंगिरि पहाड़ हिमालय में मौजूद कैलाश की टक्कर का भले न हो, परंतु क्षमता में, सौंदर्य में और पवित्रता में यह उससे कम भी नहीं है। हजारों वर्षों में बहुत से संतों, योगियों और आध्यात्मिक गुरुओं ने इस पहाड़ पर अपने कदम रखे हैं। वेलंगिरि की इन पर्वत-श्रेणियों पर काफी मात्रा में आध्यात्मिक कार्य हुआ है। इतने प्राणियों ने और ऐसे महान पुरुषों ने इस पर्वत पर कदम रखे हैं, जिनकी गरिमा और प्रतिष्ठा से ईश्वर को भी ईर्ष्या होगी। इन महान प्राणियों ने इस पूरे पर्वत को अपने ज्ञान से परिपूर्ण किया और वह ज्ञान कभी नष्ट नहीं हो सकता। इस पर्वत को ‘सेवेन हिल्स’ (सात पहाड़ों) के रूप में जाना जाता है क्योंकि जब आप उस पर चढ़ाई करते हैं तो वहां सात उतार-चढ़ाव आते हैं जिससे आपको महसूस होता है कि आप सात पहाड़ों पर चढ़ रहे हैं। आखिरी चोटी पर तेज हवा चलती है, वहां घास के अलावा कुछ नहीं उगता। वहां बस तीन बहुत विशाल चट्टानें हैं जो मिलकर एक एक छोटे मंदिर की तरह दिखती हैं, जिसमें एक छोटा लिंगम है। उस स्थान पर बहुत ही जबरदस्त ऊर्जा है।

भगवान शिव के 19 अवतार

महाशिवरात्रि का पावन पर्व हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। कहते है इसी दिन भगवान शिव लिंग रूप में प्रकट हुए थे। शिव महापुराण में भगवान शिव के अनेक अवतारों का वर्णन मिलता है, लेकिन बहुत ही कम लोग इन अवतारों के बारे में जानते हैं। धर्म ग्रंथों  के अनुसार भगवान शिव के 19 अवतार हुए थे। महाशिवरात्रि के इस पावन अवसर पर हम आपको बता रहे हैं भगवान शिव के 19 अवतारों के बारे में-
1- वीरभद्र अवतार : -
भगवान शिव का यह अवतार तब हुआ था, जब दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में माता सती ने अपनी देह का त्याग किया था। जब भगवान शिव को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने क्रोध में अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे रोषपूर्वक पर्वत के ऊपर पटक दिया। उस जटा के पूर्वभाग से महाभंयकर वीरभद्र प्रगट हुए। शिव के इस अवतार ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काटकर उसे मृत्युदंड दिया।
2- पिप्पलाद अवतार :-
मानव जीवन में भगवान शिव के पिप्पलाद अवतार का बड़ा महत्व है। शनि पीड़ा का निवारण पिप्पलाद की कृपा से ही संभव हो सका। कथा है कि पिप्पलाद ने देवताओं से पूछा- क्या कारण है कि मेरे पिता दधीचि जन्म से पूर्व ही मुझे छोड़कर चले गए? देवताओं ने बताया शनिग्रह की दृष्टि के कारण ही ऐसा कुयोग बना। पिप्पलाद यह सुनकर बड़े क्रोधित हुए। उन्होंने शनि को नक्षत्र मंडल से गिरने का श्राप दे दिया।
श्राप के प्रभाव से शनि उसी समय आकाश से गिरने लगे। देवताओं की प्रार्थना पर पिप्पलाद ने शनि को इस बात पर क्षमा किया कि शनि जन्म से लेकर 16 साल तक की आयु तक किसी को कष्ट नहीं देंगे। तभी से पिप्पलाद का स्मरण करने मात्र से शनि की पीड़ा दूर हो जाती है। शिव महापुराण के अनुसार स्वयं ब्रह्मा ने ही शिव के इस अवतार का नामकरण किया था।
3- नंदी अवतार :-
भगवान शंकर सभी जीवों का प्रतिनिधित्व करते हैं। भगवान शंकर का नंदीश्वर अवतार भी इसी बात का अनुसरण करते हुए सभी जीवों से प्रेम का संदेश देता है। नंदी (बैल) कर्म का प्रतीक है, जिसका अर्थ है कर्म ही जीवन का मूल मंत्र है। इस अवतार की कथा इस प्रकार है- शिलाद मुनि ब्रह्मचारी थे। वंश समाप्त होता देख उनके पितरों ने शिलाद से संतान उत्पन्न करने को कहा। शिलाद ने अयोनिज और मृत्युहीन संतान की कामना से भगवान शिव की तपस्या की। तब भगवान शंकर ने स्वयं शिलाद के यहां पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। कुछ समय बाद भूमि जोतते समय शिलाद को भूमि से उत्पन्न एक बालक मिला। शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा। भगवान शंकर ने नंदी को अपना गणाध्यक्ष बनाया। इस तरह नंदी नंदीश्वर हो गए। मरुतों की पुत्री सुयशा के साथ नंदी का विवाह हुआ।
4- भैरव अवतार :-
शिव महापुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का पूर्ण रूप बताया गया है। एक बार भगवान शंकर की माया से प्रभावित होकर ब्रह्मा व विष्णु स्वयं को श्रेष्ठ मानने लगे। तब वहां तेज-पुंज के मध्य एक पुरुषाकृति दिखलाई पड़ी। उन्हें देखकर ब्रह्माजी ने कहा- चंद्रशेखर तुम मेरे पुत्र हो। अत: मेरी शरण में आओ। ब्रह्मा की ऐसी बात सुनकर भगवान शंकर को क्रोध आ गया। उन्होंने उस पुरुषाकृति से कहा- काल की भांति शोभित होने के कारण आप साक्षात कालराज हैं। भीषण होने से भैरव हैं। भगवान शंकर से इन वरों को प्राप्त कर कालभैरव ने अपनी अंगुली के नाखून से ब्रह्मा के पांचवे सिर को काट दिया। ब्रह्मा का पांचवा सिर काटने के कारण भैरव ब्रह्महत्या के पाप से दोषी हो गए। काशी में भैरव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली। काशीवासियों के लिए भैरव की भक्ति अनिवार्य बताई गई है।
5- अश्वत्थामा :-
महाभारत के अनुसार पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के अंशावतार थे। आचार्य द्रोण ने भगवान शंकर को पुत्र रूप में पाने की लिए घोर तपस्या की थी और भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया था कि वे उनके पुत्र के रूप मे अवतीर्ण होंगे। समय आने पर सवन्तिक रुद्र ने अपने अंश से द्रोण के बलशाली पुत्र अश्वत्थामा के रूप में अवतार लिया। ऐसी मान्यता है कि अश्वत्थामा अमर हैं तथा वह आज भी धरती पर ही निवास करते हैं। शिवमहापुराण (शतरुद्रसंहिता-37) के अनुसार अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं और वे गंगा के किनारे निवास करते हैं किंतु उनका निवास कहां हैं, यह नहीं बताया गया है।
6- शरभावतार :-
भगवान शंकर का छटा अवतार है शरभावतार। शरभावतार में भगवान शंकर का स्वरूप आधा मृग (हिरण) तथा शेष शरभ पक्षी (पुराणों में वर्णित आठ पैरों वाला जंतु जो शेर से भी शक्तिशाली था) का था। इस अवतार में भगवान शंकर ने नृसिंह भगवान की क्रोधाग्नि को शांत किया था। लिंगपुराण में शिव के शरभावतार की कथा है, उसके अनुसार- हिरण्यकशिपु का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंहावतार लिया था। हिरण्यकशिपु के वध के पश्चात भी जब भगवान नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ तो देवता शिवजी के पास पहुंचे। तब भगवान शिव ने शरभावतार लिया और वे इसी रूप में भगवान नृसिंह के पास पहुंचे तथा उनकी स्तुति की, लेकिन नृसिंह की क्रोधाग्नि शांत नहीं हुई। यह देखकर शरभ रूपी भगवान शिव अपनी पूंछ में नृसिंह को लपेटकर ले उड़े। तब कहीं जाकर भगवान नृसिंह की क्रोधाग्नि शांत हुई। उन्होंने शरभावतार से क्षमा याचना कर अति विनम्र भाव से उनकी स्तुति की।
7- गृहपति अवतार :-
भगवान शंकर का सातवां अवतार है गृहपति। इसकी कथा इस प्रकार है- नर्मदा के तट पर धर्मपुर नाम का एक नगर था। वहां विश्वानर नाम के एक मुनि तथा उनकी पत्नी शुचिष्मती रहती थीं। शुचिष्मती ने बहुत काल तक नि:संतान रहने पर एक दिन अपने पति से शिव के समान पुत्र प्राप्ति की इच्छा की। पत्नी की अभिलाषा पूरी करने के लिए मुनि विश्वनार काशी आ गए। यहां उन्होंने घोर तप द्वारा भगवान शिव के वीरेश लिंग की आराधना की। एक दिन मुनि को वीरेश लिंग के मध्य एक बालक दिखाई दिया। मुनि ने बालरूपधारी शिव की पूजा की। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने शुचिष्मति के गर्भ से अवतार लेने का वरदान दिया। कालांतर में शुचिष्मति गर्भवती हुई और भगवान शंकर शुचिष्मती के गर्भ से पुत्ररूप में प्रकट हुए। कहते हैं, पितामह ब्रह्मï ने ही उस बालक का नाम गृहपति रखा था। 
8- ऋषि दुर्वासा :-
भगवान शंकर के विभिन्न अवतारों में ऋषि दुर्वासा का अवतार भी प्रमुख है। धर्म ग्रंथों के अनुसार सती अनुसूइया के पति महर्षि अत्रि ने ब्रह्मा के निर्देशानुसार पत्नी सहित ऋक्षकुल पर्वत पर पुत्रकामना से घोर तप किया। उनके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों उनके आश्रम पर आए। उन्होंने कहा- हमारे अंश से तुम्हारे तीन पुत्र होंगे, जो त्रिलोकी में विख्यात तथा माता-पिता का यश बढ़ाने वाले होंगे। समय आने पर ब्रह्माजी के अंश से चंद्रमा उत्पन्न हुए। विष्णु के अंश से श्रेष्ठ संन्यास पद्धति को प्रचलित करने वाले दत्तात्रेय उत्पन्न हुए और रुद्र के अंश से मुनिवर दुर्वासा ने जन्म लिया।
9- हनुमान :-
भगवान शिव का हनुमान अवतार सभी अवतारों में श्रेष्ठ माना गया है। इस अवतार में भगवान शंकर ने एक वानर का रूप धरा था। शिवमहापुराण के अनुसार देवताओं और दानवों को अमृत बांटते हुए विष्णुजी के मोहिनी रूप को देखकर लीलावश शिवजी ने कामातुर होकर अपना वीर्यपात कर दिया। सप्तऋषियों ने उस वीर्य को कुछ पत्तों में संग्रहित कर लिया। समय आने पर सप्तऋषियों ने भगवान शिव के वीर्य को वानरराज केसरी की पत्नी अंजनी के कान के माध्यम से गर्भ में स्थापित कर दिया, जिससे अत्यंत तेजस्वी एवं प्रबल पराक्रमी श्री हनुमानजी उत्पन्न हुए।
10- वृषभ अवतार :-
भगवान शंकर ने विशेष परिस्थितियों में वृषभ अवतार लिया था। इस अवतार में भगवान शंकर ने विष्णु पुत्रों का संहार किया था। धर्म ग्रंथों के अनुसार जब भगवान विष्णु दैत्यों को मारने पाताल लोक गए तो उन्हें वहां बहुत सी चंद्रमुखी स्त्रियां दिखाई पड़ी। विष्णु ने उनके साथ रमण करके बहुत से पुत्र उत्पन्न किए। विष्णु के इन पुत्रों ने पाताल से पृथ्वी तक बड़ा उपद्रव किया। उनसे घबराकर ब्रह्माजी ऋषिमुनियों को लेकर शिवजी के पास गए और रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे। तब भगवान शंकर ने वृषभ रूप धारण कर विष्णु पुत्रों का संहार किया।
11- यतिनाथ अवतार :-
भगवान शंकर ने यतिनाथ अवतार लेकर अतिथि के महत्व का प्रतिपादन किया था। उन्होंने इस अवतार में अतिथि बनकर भील दम्पत्ति की परीक्षा ली थी, जिसके कारण भील दम्पत्ति को अपने प्राण गवाने पड़े। धर्म ग्रंथों के अनुसार अर्बुदाचल पर्वत के समीप शिवभक्त आहुक-आहुका भील दम्पत्ति रहते थे। एक बार भगवान शंकर यतिनाथ के वेष में उनके घर आए। उन्होंने भील दम्पत्ति के घर रात व्यतीत करने की इच्छा प्रकट की। आहुका ने अपने पति को गृहस्थ की मर्यादा का स्मरण कराते हुए स्वयं धनुषबाण लेकर बाहर रात बिताने और यति को घर में विश्राम करने देने का प्रस्ताव रखा। इस तरह आहुक धनुषबाण लेकर बाहर चला गया। प्रात:काल आहुका और यति ने देखा कि वन्य प्राणियों ने आहुक का मार डाला है। इस पर यतिनाथ बहुत दु:खी हुए। तब आहुका ने उन्हें शांत करते हुए कहा कि आप शोक न करें। अतिथि सेवा में प्राण विसर्जन धर्म है और उसका पालन कर हम धन्य हुए हैं। जब आहुका अपने पति की चिताग्नि में जलने लगी तो शिवजी ने उसे दर्शन देकर अगले जन्म में पुन: अपने पति से मिलने का वरदान दिया।
12- कृष्णदर्शन अवतार :-
भगवान शिव ने इस अवतार में यज्ञ आदि धार्मिक कार्यों के महत्व को बताया है। इस प्रकार यह अवतार पूर्णत: धर्म का प्रतीक है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इक्ष्वाकुवंशीय श्राद्धदेव की नवमी पीढ़ी में राजा नभग का जन्म हुआ। विद्या-अध्ययन को गुरुकुल गए नभग जब बहुत दिनों तक न लौटे तो उनके भाइयों ने राज्य का विभाजन आपस में कर लिया। नभग को जब यह बात ज्ञात हुई तो वह अपने पिता के पास गए। पिता ने नभग से कहा कि वह यज्ञ परायण ब्राह्मणों के मोह को दूर करते हुए उनके यज्ञ को सम्पन्न करके, उनके धन को प्राप्त करे। तब नभग ने यज्ञभूमि में पहुंचकर वैश्य देव सूक्त के स्पष्ट उच्चारण द्वारा यज्ञ संपन्न कराया। अंगारिक ब्राह्मण यज्ञ अवशिष्ट धन नभग को देकर स्वर्ग को चले गए। उसी समय शिवजी कृष्णदर्शन रूप में प्रकट होकर बोले कि यज्ञ के अवशिष्ट धन पर तो उनका अधिकार है। विवाद होने पर कृष्णदर्शन रूपधारी शिवजी ने उसे अपने पिता से ही निर्णय कराने को कहा। नभग के पूछने पर श्राद्धदेव ने कहा-वह पुरुष शंकर भगवान हैं। यज्ञ में अवशिष्ट वस्तु उन्हीं की है। पिता की बातों को मानकर नभग ने शिवजी की स्तुति की।
13- अवधूत अवतार :-
भगवान शंकर ने अवधूत अवतार लेकर इंद्र के अंहकार को चूर किया था। धर्म ग्रंथों के अनुसार एक समय बृहस्पति और अन्य देवताओं को साथ लेकर इंद्र शंकर जी के दर्शनों  के लिए कैलाश पर्वत पर गए। इंद्र की परीक्षा लेने के लिए शंकरजी ने अवधूत रूप धारण कर उनका मार्ग रोक लिया। इंद्र ने उस पुरुष से अवज्ञापूर्वक बार-बार उसका परिचय पूछा तो भी वह मौन रहा। इस पर क्रुद्ध होकर इंद्र ने ज्यों ही अवधूत पर प्रहार करने के लिए वज्र छोडऩा चाहा, वैसे ही उनका हाथ स्तंभित हो गया। यह देखकर बृहस्पति ने शिवजी को पहचान कर अवधूत की बहुविधि स्तुति की, जिससे प्रसन्न होकर शिवजी ने इंद्र को क्षमा कर दिया।
14- भिक्षुवर्य अवतार :-
भगवान शंकर देवों के देव हैं। संसार में जन्म लेने वाले हर प्राणी के जीवन के रक्षक भी हैं। भगवान शंकर काभिक्षुवर्य अवतार यही संदेश देता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार विदर्भ नरेश सत्यरथ को शत्रुओं ने मार डाला। उसकी गर्भवती पत्नी ने शत्रुओं से छिपकर अपने प्राण बचाए। समय आने पर उसने एक पुत्र को जन्म दिया। रानी जब जल पीने के लिए सरोवर गई तो उसे घडिय़ाल ने अपना आहार बना लिया। तब वह बालक भूख-प्यास से तड़पने लगा। इतने में ही शिवजी की प्रेरणा से एक भिखारिन वहां पहुंची। तब शिवजी ने भिक्षुक का रूप धर उस भिखारिन को बालक का परिचय दिया और उसके पालन-पोषण का Sureनिर्देश दिया तथा यह भी कहा कि यह बालक विदर्भ नरेश सत्यरथ का पुत्र है। यह सब कह कर भिक्षुक रूपधारी शिव ने उस भिखारिन को अपना वास्तविक रूप दिखाया। शिव के आदेश अनुसार भिखारिन ने उस बालक का पालन-पोषण किया। बड़ा होकर उस बालक ने शिवजी की कृपा से अपने दुश्मनों को हराकर पुन: अपना राज्य प्राप्त किया।
15- सुरेश्वर अवतार :-
भगवान शंकर का सुरेश्वर (इंद्र) अवतार भक्त के प्रति उनकी प्रेमभावना को प्रदर्शित करता है। इस अवतार में भगवान शंकर ने एक छोटे से बालक उपमन्यु की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे अपनी परम भक्ति और अमर पद का वरदान दिया। धर्म ग्रंथों के अनुसार व्याघ्रपाद का पुत्र उपमन्यु अपने मामा के घर पलता था। वह सदा दूध की इच्छा से व्याकुल रहता था। उसकी मां ने उसे अपनी अभिलाषा पूर्ण करने के लिए शिवजी की शरण में जाने को कहा। इस पर उपमन्यु वन में जाकर ऊँ नम: शिवाय का जप करने लगा। शिवजी ने सुरेश्वर (इंद्र) का रूप धारण कर उसे दर्शन दिया और शिवजी की अनेक प्रकार से निंदा करने लगा। इस पर उपमन्यु क्रोधित होकर इंद्र को मारने के लिए खड़ा हुआ। उपमन्यु को अपने में दृढ़ शक्ति और अटल विश्वास देखकर शिवजी ने उसे अपने वास्तविक रूप के दर्शन कराए तथा क्षीरसागर के समान एक अनश्वर सागर उसे प्रदान किया। उसकी प्रार्थना पर कृपालु शिवजी ने उसे परम भक्ति का पद भी दिया।
16- किरात अवतार :-
किरात अवतार में भगवान शंकर ने पाण्डुपुत्र अर्जुन की वीरता की परीक्षा ली थी। महाभारत के अनुसार कौरवों ने छल-कपट से पाण्डवों का राज्य हड़प लिया व पाण्डवों को वनवास पर जाना पड़ा। वनवास के दौरान जब अर्जुन भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए तपस्या कर रहे थे, तभी दुर्योधन द्वारा भेजा हुआ मूड़ नामक दैत्य अर्जुन को मारने के लिए शूकर (सूअर) का रूप धारण कर वहां पहुंचा।
अर्जुन ने शूकर पर अपने बाण से प्रहार किया, उसी समय भगवान शंकर ने भी किरात वेष धारण कर उसी शूकर पर बाण चलाया। शिव कीमाया के कारण अर्जुन उन्हें पहचान न पाए और शूकर का वध उसके बाण से हुआ है, यह कहने लगे। इस पर दोनों में विवाद हो गया। अर्जुन ने किरात वेषधारी शिव से युद्ध किया। अर्जुन की वीरता देख भगवान शिव प्रसन्न हो गए और अपने वास्तविक स्वरूप में आकर अर्जुन को कौरवों पर विजय का आशीर्वाद दिया।
17- सुनटनर्तक अवतार :-
पार्वती के पिता हिमाचल से उनकी पुत्री का हाथ मागंने के लिए शिवजी ने सुनटनर्तक वेष धारण किया था। हाथ में डमरू लेकर शिवजी नट के रूप में हिमाचल के घर पहुंचे और नृत्य करने लगे। नटराज शिवजी ने इतना सुंदर और मनोहर नृत्य किया कि सभी प्रसन्न हो गए। जब हिमाचल ने नटराज को भिक्षा मांगने को कहा तो नटराज शिव ने भिक्षा में पार्वती को मांग लिया। इस पर हिमाचलराज अति क्रोधित हुए। कुछ देर बाद नटराज वेषधारी शिवजी पार्वती को अपना रूप दिखाकर स्वयं चले गए। उनके जाने पर मैना और हिमाचल को दिव्य ज्ञान हुआ और उन्होंने पार्वती को शिवजी को देने का निश्चय किया।
18- ब्रह्मचारी अवतार :-
दक्ष के यज्ञ में प्राण त्यागने के बाद जब सती ने हिमालय के घर जन्म लिया तो शिवजी को पति रूप में पाने के लिए घोर तप किया। पार्वती की परीक्षा लेने के लिए शिवजी ब्रह्मचारी का वेष धारण कर उनके पास पहुंचे। पार्वती ने ब्रह्मचारी  को देख उनकी विधिवत पूजा की। जब ब्रह्मचारी ने पार्वती से उसके तप का उद्देश्य पूछा और जानने पर शिव की निंदा करने लगे तथा उन्हें श्मशानवासी व कापालिक भी कहा। यह सुन पार्वती को बहुत क्रोध हुआ। पार्वती की भक्ति व प्रेम को देखकर शिव ने उन्हें अपना वास्तविक स्वरूप दिखाया। यह देख पार्वती अति प्रसन्न हुईं।
19- यक्ष अवतार :-
यक्ष अवतार  शिवजी ने देवताओं के अनुचित और मिथ्या अभिमान को दूर करने के लिए धारण किया था। धर्म ग्रंथों के अनुसार देवता व असुर द्वारा किए गए समुद्रमंथन के दौरान जब भयंकर विष निकला तो भगवान शंकर ने उस विष को ग्रहण कर अपने कण्ठ में रोक लिया। इसके बाद अमृत कलश निकला। अमृतपान करने से सभी देवता अमर तो हो गए साथ ही उनहें अभिमान भी हो गया कि वे सबसे बलशाली हैं।
देवताओं के इसी अभिमान को तोडऩे के लिए शिवजी ने यक्ष का रूप धारण किया व देवताओं के आगे एक तिनका रखकर उसे काटने को कहा। अपनी पूरी शक्ति लगाने पर भी देवता उस तिनके को काट नहीं पाए। तभी आकाशवाणी हुई कि यह यक्ष सब गर्वों के विनाशक शंकर भगवान हैं। सभी देवताओं ने भगवान शंकर की स्तुति की तथा अपने अपराध के लिए क्षमा मांगी।

शिव की शक्ति से रावण प्रभावित

हिमाचल प्रदेश के नूरपूर के पहाड़ियों पर ही भगवान शिव ने लंकापति रावण को सैकड़ों सालों तक अपने पैरों के नीचे दबा लिया था जब रावण कैलाश पर अपना कब्जा करने आया था। जब भगवान शिव की शक्ति के आगे रावण का कुछ नहीं चला तो फिर शिव भक्त हो गए। उसी गुफा में रावण शिव की तपस्या करने लगा। गुफा में हजारों साल पुराने शिवलिंग आज भी मौजूद हैं। गुफा के अंदर से एक रास्ता हरिद्वार और दूसरा सीधा अमरनाथ को जाता है। मंदिर के चारों ओर झरने से बहते रहते हैं। उस जगह पर एक सरोवर भी है। शास्त्रों के मुताबिक रावण जिस जगह से शिवलिंग को उठाकर ले गया था वह लिंग उसी सरोवर में स्थापित था। जब रावण ने शिवलिंग को उखाड़ा तो उस जगह एक गड्ढ़ा बन हो गया जो बाद में सरोवर में तब्दील हो गया। उस सरोवर की सबसे खास बात यह है कि पिछले सैकड़ों सालों में कई बार उस इलाके में अकाल की नौबत आई। लेकिन वह सरोवर का जल कभी नहीं सूखा। मान्यता तो ये है कि किसी भी तरह के चर्म रोग हो उस सरोवर में स्नान करने के बाद ठीक हो जाता है। नूरपूर से बैजनाथ की दूरी लगभग 150 किलोमीटर है। देश ही नहीं दुनिया भर के शिव भक्त वहां जाते हैं। वहां के बैजनाथ मंदिर वही शिवलिंग स्थापित है जिसे रावण लंका लेकर जा रहा था। जिसके ऊपर अब चांदी का लेप लगा दिया गया है। मंदिर में पुजारी सुरेन्द्र शर्मा के मुताबिक शिवलिंग का आकार इतना बड़ा है कि जिसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है।

गुप्तेश्वर धाम : शिव भी छुपे थे यहाँ

झारखंड बंटवारे के बाद शेष बिहार में बचे गिने-चुने प्राकृतिक शिवलिंगों में शुमार रोहतास जिला के गुप्तेश्वर धाम की गुफा में स्थित भगवान शिव की महिमा की बखान आदिकाल से ही होती आ रही है। कैमूर की प्राकृतिक सुषमा से सुसज्जित वादियों में स्थित इस गुफा में जलाभिषेक करने के बाद भक्तों की सभी मन्नतें पूरी हो जाती है। कहते हैं कैलाश पर्वत पर मां पार्वती के साथ विराजमान भगवान शिव जब भस्मासुर की तपस्या से खुश होकर उसे किसी के सिर पर हाथ रखते ही भष्म करने का वरदान दिया था। भस्मासुर मां पार्वती के सौंदर्य पर मोहित होकर शिव से मिले वरदान की परीक्षा लेने उन्हीं के सिर पर हाथ रखने के लिए दौड़ा। जहां से भाग कर भगवान भोले यहीं की गुफा के गुप्त स्थान में छुपे थे। भगवान विष्णु से शिव की यह विवशता देखी नहीं गयी और उन्होंने मोहिनी रूप धारण कर भस्मासुर का नाश किया। उसके बाद गुफा के अंदर छुपे भोलेदानी बाहर निकले। शाहाबाद गजेटियर में दर्ज फ्रांसिस बुकानन नामक अंग्रेज विद्वान की टिप्पणियों के अनुसार गुफा में जलने के कारण उसका आधा हिस्सा काला होने के सबूत देखने को मिलते हैं। बक्सर से गंगाजल लेकर पहुंचते हैं भक्त शिवरात्रि के दिन बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और नेपाल से हजारों शिवभक्त यहां आकर जलाभिषेक करते हैं। काफी दुर्गम हैं रास्ते जिला मुख्यालय सासाराम से 65 किमी की दूरी पर स्थित इस गुफा में पहुंचने के लिए रेहल, पनारी घाट और उगहनी घाट से तीन रास्ते हैं जो अतिविकट व दुर्गम हैं। दुर्गावती नदी को पांच बार पार कर पांच पहाड़ियों की यात्रा करने के बाद लोग यहां पहुंचते हैं।

शिव की पूजा में वर्जित हैं शंखनाद

विश्व के सभी धर्मों में हिन्दू धर्म सबसे पुराना धर्म है। ये वेदों पर आधारित है, यह अपने गर्भ में विभिन्न देवी देवताओं की उपासनाओं, मतों, धार्मिक पंथों, और दर्शनों को समेटे हुए है। हिन्दु धर्म के लोग अपनी-अपनी अास्था के अनुसार अपने इष्ट देव को मानते हैं। मानव मन जिस भी देवी-देवता की लीलाओं से अधिक प्रभावित होता है उसे उस देवता को अपना इष्ट देव बनाना चाहिए और उनका ध्यान करना चाहिए। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार पांच प्रमुख देवता हैं विष्णु, गणेश, सूर्य, शिव और शक्ति। जो शक्तियों के अलग-अलग रूप हैं। हिन्दू धर्म के इन प्रमुख देवताओं में से भगवान शिव को देवों के देव महादेव कहा जाता हैं। भगवान शिव के 108 नाम हैं। भगवान शिव को सभी विद्याओं का जनक भी माना जाता है। वे तंत्र से लेकर मंत्र तक और योग से लेकर समाधि तक प्रत्येक क्षेत्र के आदि और अंत हैं। यही नहीं वे संगीत के आदि सृजनकर्ता भी हैं, और नटराज के रुप में कलाकारों के आराध्य भी हैं। वास्तव में भगवान शिव देवताओं में सबसे अद्भुत देवता हैं ।
कोई भी प्रार्थना, पूजा पाठ, आराधना, मंत्र, स्तोत्र और स्तुतियों का फल तभी प्राप्त होता है जब आराधना विधि-विधान और शास्त्रोक्त तरीकों से की जाए। शिव उपासना में शंख का प्रयोग वर्जित माना गया है। पुरातन कथाओं के अनुसार भगवान शिव की पूजा में शंख का प्रयोग नहीं होता। इन्हें शंख से न तो जल अर्पित किया जाता है और न ही शंख बजाया जाता है।
आध्यात्मिक ग्रंथों, पौराणिक मतों के अनुसार देवता और दानवों ने अमृत की खोज के लिए मंदराचल पर्वत की मथानी से क्षीरसागर मंथन किया, उससे 14 प्रकार के रत्न प्राप्त हुए। आठवें रत्न के रूप में शंखों का जन्म हुआ। शंख को विजय, समृद्धि, सुख, यश, कीर्ति तथा लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है। वैदिक अनुष्ठानों एवं तांत्रिक क्रियाओं में भी विभिन्न प्रकार के शंखों का प्रयोग किया जाता है।
पुरातन कथा के अनुसार एक समय श्री राधा रानी गोलोक धाम से कहीं बाहर गई हुई थी। श्री कृष्ण अपनी सखी विरजा के साथ विहार कर रहे थे। संयोगवश उसी समय श्री राधा रानी वहां आ गई। सखी विरजा को अपने प्राण प्रिय श्री कृष्ण के साथ देख कर श्री राधा रानी को बहुत क्रोध आया। क्रोध में उन्होंने कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जिससे विरजा को बहुत लज्जा महसूस हुई। लज्जावश विरजा ने नदी का रूप धारण कर लिया और वह नदी बनकर बहने लगी। श्री राधा रानी के क्रोध भरे शब्दों को सुन कर श्री कृष्ण के मित्र सुदामा को बहुत बुरा लगा उन्हेंने श्री राधा रानी से  ऊंचे स्वर में बात की। जिससे क्रोधित श्री राधा रानी ने सुदामा को दानव बनने का श्राप दे दिया।
आवेश में आए सुदामा ने भी हित-अहित का विचार किए बिना श्री राधा रानी को मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया। श्री राधा रानी के श्राप से सुदामा शंखचूर नाम का दानव बना। दंभ के पुत्र शंखचूर का वर्णन शिवपुराण में भी मिलता है। यह अपने बल के ख़ुमार में तीनों लोकों का स्वामी बन बैठा।
साधु-संतों को सताने लगा। साधु-संतों की रक्षा के लिए भगवान शिव ने शंखचूर का वध कर दिया। शंखचूर श्री विष्णु और देवी लक्ष्मी का परम प्रिय भक्त था। भगवान विष्णु ने इसकी हड्डियों से शंख का निर्माण किया इसलिए विष्णु एवं अन्य देवी देवताओं को शंख से जल अर्पित किया जाता है। शंख भगवान विष्णु को बहुत ही प्रिय हैं लेकिन शिव जी ने शंखचूर का वध किया था  इसलिए शंख भगवान शिव की पूजा में वर्जित माना गया है।

आप की शिव पूजा हो सकती है बेकार

भोलेनाथ को देवों के देव यानी महादेव भी कहा जाता है। कहते हैं कि शिव आदि और अनंत हैं। शिव ही एक मात्र ऐसे देवता हैं जिनकी लिंग रूप में भी पूजा जाता है। शिव को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अनेक ऐसी चीजें पूजा में अर्पित की जाती हैं जो और किसी देवता को नहीं चढ़ाई जाती। जैसे आंक, बिल्वपत्र, भांग आदि। लेकिन शास्त्रों के अनुसार, कुछ चीज़ें शिव पूजा में कभी उपयोग नहीं करनी चाहिए..
हल्दी--- धार्मिक कार्यों में हल्दी का महत्वपूर्ण स्थान है। कई पूजन कार्य हल्दी के बिना पूर्ण नहीं माने जाते। लेकिन हल्दी, शिवजी के अलावा सभी देवी-देवताओं को अर्पित की जाती है। हल्दी का स्त्री सौंदर्य प्रसाधन में मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग पुरुषत्व का प्रतीक है, इसी वजह से महादेव को हल्दी इसीलिए नहीं चढ़ाई जाती है। शिवलिंग पर हल्दी नहीं चढ़ाना चाहिए परंतु जलाधारी पर चढ़ाई जानी चाहिए। शिवलिंग दो भागों से मिलकर बनी होती है। एक भाग शिवजी का प्रतीक है और दूसरा हिस्सा माता पार्वती का। शिवलिंग चूंकि पुरुषत्व का प्रतिनिधित्व करता है अत: इस पर हल्दी नहीं चढ़ाई जाती है। हल्दी स्त्री सौंदर्य प्रसाधन की सामग्री है और जलाधारी मां पार्वती से संबंधित है अत: इस पर हल्दी जाती है।
फूल--- शिव को कनेर, और कमल के अलावा लाल रंग के फूल प्रिय नहीं हैं। शिव को केतकी और केवड़े के फूल चढ़ाने का निषेध किया गया है। सफेद रंग के फूलों से शिव जल्दी प्रसन्न होते हैं। कारण शिव कल्याण के देवता हैं। सफेद शुभ्रता का प्रतीक रंग है। जो शुभ्र है, सौम्य है, शाश्वत है वह श्वेत भाव वाला है। यानि सात्विक भाव वाला। पूजा में शिव को आक और धतूरा के फूल अत्यधिक प्रिय हैं। इसका कारण शिव वनस्पतियों के देवता हैं। अन्य देवताओं को जो फूल बिल्कुल नहीं चढ़ाए जाते, वे शिव को प्रिय हैं। उन्हें मौलसिरी चढ़ाने का उल्लेख मिलता है। एक धारना के अनुसार, शिव पूजा में तरह-तरह के फूलों को चढ़ाने से अलग-अलग तरह की इच्छाएं पूरी हो जाती है। जानिए किस कामना के लिए कैसा फूल शिव को चढ़ाएं.... वाहन सुख के लिए चमेली का फूल। दौलतमंद बनने के लिए कमल का फूल, शंखपुष्पी या बिल्वपत्र। विवाह में समस्या दूर करने के लिए बेला के फूल। इससे योग्य वर-वधू मिलते हैं। पुत्र प्राप्ति के लिए धतुरे का लाल फूल वाला धतूरा शिव को चढ़ाएं। यह न मिलने पर सामान्य धतूरा ही चढ़ाएं। मानसिक तनाव दूर करने के लिए शिव को शेफालिका के फूल चढ़ाएं। जूही के फूल को अर्पित करने से अपार अन्न-धन की कमी नहीं होती। अगस्त्य के फूल से शिव पूजा करने पर पद, सम्मान मिलता है। शिव पूजा में कनेर के फूलों के अर्पण से वस्त्र-आभूषण की इच्छा पूरी होती है। लंबी आयु के लिए दुर्वाओं से शिव पूजन करें। सुख-शांति और मोक्ष के लिए महादेव की तुलसी के पत्तों या सफेद कमल के फूलों से पूजा करें।
अनाज--- इसी तरह भगवान शिव की प्रसन्नता से मनोरथ पूरे करने के लिए शिव पूजा में कई तरह के अनाज चढ़ाने का महत्व बताया गया है। इसलिए श्रद्धा और आस्था के साथ इस उपाय को भी करना न चूकें। जानिए किस अन्न के चढ़ावे से कैसी कामना पूरी होती है... शिव पूजा में गेहूं से बने व्यंजन चढ़ाने पर कुंटुब की वृद्धि होती है। मूंग से शिव पूजा करने पर हर सुख और ऐश्वर्य मिलता है। चने की दाल अर्पित करने पर श्रेष्ठ जीवन साथी मिलता है। कच्चे चावल अर्पित करने पर कलह से मुक्ति और शांति मिलती है। तिलों से शिवजी पूजा और हवन में एक लाख आहुतियां करने से हर पाप का अंत हो जाता है। उड़द चढ़ाने से ग्रहदोष और खासतौर पर शनि पीड़ा शांति होती है।

 राशि के अनुसार करें ज्योतिर्लिंगों की आराधना

भगवान शिव के 12 ज्योर्तिलिंग देश के अलग-अलग हिस्सों में स्थित हैं. जिसे साक्षात शिवस्वरूप माना जाता है। शास्त्रों के मुताबिक हर दिन भगवान शिव 24 घंटे में एक बार शिवलिंग में स्थित होते हैं इसलिए अपनी राशि के मुताबिक ज्योर्तिर्लिंग का ध्यान करते हुए शिव आराधना करने से विशेष लाभ मिलते हैं...
मेष राशि--- शिव की पूजा के बाद 'ह्रीं ओम नमः शिवाय ह्रीं' इस मंत्र का 108 बार जप करें. शहद, गु़ड़, गन्ने का रस, लाल पुष्प चढ़ाएं।
वृष राशि--- इस राशि के व्यक्ति मल्लिकार्जुन का ध्यान करते हुए 'ओम नमः शिवाय' मंत्र का जप करें और कच्चे दूध, दही, श्वेत पुष्प चढ़ाएं।
मिथुन राशि---  महाकालेश्वर का ध्यान करते हुए 'ओम नमो भगवते रूद्राय' मंत्र का यथासंभव जप करें. हरे फलों का रस, मूंग, बेलपत्र आदि चढाएं।
कर्क राशि--- शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए 'ओम हौं जूं सः' मंत्र का जितना संभव हो जप करें और शिवलिंग पर कच्चा दूध, मक्खन, मूंग, बेलपत्र आदि चढाएं।
सिंह राशि--- 'ओम त्र्यंबकं यजामहे सुगंधि पुष्टिवर्धनम, उर्वारूकमिव बन्ध्नान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्.' इस मंत्र का कम से कम 51 बार जप करें. इसके साथ ही ज्योतिर्लिंग पर शहद, गु़ड़, शुद्ध घी, लाल पुष्प आदि चढाएं।
कन्या राशि--- 'ओम नमो भगवते रूद्राय' मंत्र का यथासंभव जप करें. हरे फलों का रस, बिल्वपत्र, मूंग, हरे व नीले पुष्प अर्पित करें।
तुला राशि--- शिव पंचाक्षरी मंत्र 'ओम नमः शिवाय' का 108 बार जप करें और दूध, दही, घी, मक्खन, मिश्री चढ़ाएं।
वृश्चिक राशि---  ‘ह्रीं ओम नमः शिवाय ह्रीं’ मंत्र का जप करें और शहद, शुद्ध घी, गु़ड़, बेलपत्र, लाल पुष्प शिवलिंग पर अर्पित करें।
धनु राशि--- इस राशि वाले 'ओम तत्पुरूषाय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रूद्रः प्रचोदयात।।' इस मंत्र से शिव की पूजा करें. धनु राशि वाले मंत्र जाप के अलावा शिवलिंग पर शुद्ध घी, शहद, मिश्री, बादाम, पीले पुष्प, पीले फल चढ़ाएं।
कुंभ राशि--- कुंभ राशि के स्वामी भी शनि देव हैं इसलिए इस राशि के व्यक्ति भी मकर राशि की तरह 'ओम नमः शिवाय' का जप करें. जप के समय केदरनाथ का ध्यान करें. कच्चा दूध, सरसों का तेल, तिल का तेल, नीले पुष्प चढाएं।
मीन राशि--- ओम तत्पुरूषाय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रूद्र प्रचोदयात।। इस मंत्र का जितना अधिक हो सके जप करें. गन्ने का रस, शहद, बादाम, बेलपत्र, पीले पुष्प, पीले फल चढाएं।

 राशि के अनुसार शिव की पूजा

मे मेष- शिव जी को लाल चन्दन लाल रंग के फूल चढ़ायें तथा नागेश्वराय नमः का जाप करें।
वृष- चमेली के फूल चढ़ायें तथा रूद्राष्टाकर का पाठ करें।
मिथुन- धतूरा, भांग चढ़ायें साथ में पंचाक्षरी मन्त्र का जाप करें।
कर्क- भांग मिश्रित दूध से अभिषेक करें और रूद्राष्टाधयी का पाठ करें।
सिंह- कनेर के लाल रंग फूल अर्पित करे तथा शिव चालीसा का पाठ करें।
कन्या- बेलपत्र, धतूरा, भांग आदि चढ़ायें और पंचाक्षरी मन्त्र का जाप करें।
तुला- मिश्री मिले दूध से शिव का अभिषेक करें तथा शिव के सहस्त्रनाम का जाप करें।
वृश्चिक- गुलाब का फूल बिल्वपत्र की जड़ चढ़ायें और रूद्राष्टक का पाठ करें।
धनु- पीले फूल अर्पित करें एंव खीर का भोग लगायें और शिवाष्टक का पाठ करें।
मकर- शिव जी को धूतरा, फूल, भांग एंव अष्टगंध चढ़ायें और पार्वतीनाथाय नमः का जाप करें।
कुम्भ- शिव जी का गन्ने के रस से अभिषेक करें तथा शिवाष्टाक का पाठ करें।
मीन- शिव जी पर पंचामृत, दही, दूध पीले फूल चढ़ायें एंव चन्दन की माला से 108 बार पंचाक्षरी मन्त्र का जाप करें।

ग्रहों के अनुकूल पूजा

सावन के महीने में शिव पूजन बहुत महत्‍वपूर्ण होता है। इस मौके पर शिव जी का अभिषेक एंव पूजन करने पर ग्रहो का अनुकूल फल मिलने लगता है। शिव को प्रसन्न करने के लिए राशियों के मुताबिक पूजन करें। नवग्रह शान्ति के लिए आप आप निम्न प्रकार से शिवलिंग का अभिषेक एंव की पूजा कर सकते हैं।
1- सूर्य- आक पुष्प एंव बिल्व पत्र से शिवलिंग की पूजा करें।
2- चन्द्र- दूध में काले तिल मिलाकर अभिषेक करें।
3. मंगल- गिलोय बूटी के रस से अभिषेक करें।
4. बुध- बिधारा की जड़ के रस से शिव जी का अभिषेक करें।
5. गुरू- दूध में हल्दी मिलाकर अभिषेक करें।
6. शुक्र- पंचामृत एंव शहद व घी से अभिषेक करें।
7. शनि- गन्ने का रस व छाछ से शिव जी का अभिषेक करें।

नाथ सम्प्रदाय

जब तांत्रिकों और सिद्धों के चमत्कार एवं अभिचार बदनाम हो गए, शाक्तमद्य, मांसादि के लिए तथा सिद्ध, तांत्रिक आदि स्त्री-संबंधी आचारों के कारण घृणा की दृष्टि से देखें जाने वाले तथा जब इनकी यौगिक क्रियाएँ भी मन्द पड़ने लगी, तब इन यौगिक क्रियाओं के उद्धार के लिए ही उस समय नाथ सम्प्रदाय का उदय हुआ। इसमें नवनाथ मुख्य कहे जाते हैं :- गोरक्षनाथ, ज्वालेन्द्रनाथ, कारिणनाथ, गहिनीनाथ, चर्पटनाथ, रेवणनाथ, नागनाथ, भर्तृनाथ और गोपीचन्द्रनाथ। गोरक्षनाथ ही गोरखनाथ के नाम से प्रसिद्ध है।
इस सम्प्रदाय के परम्परा संस्थापक आदिनाथ स्वयं शंकर के अवतार माने जाते हैं। इसका संबंध रसेश्वरों से है और इसके अनुयायी आगमों में आदिष्ट योग साधन करते हैं। अतः इसे अनेक इतिहासज्ञ शैव सम्प्रदाय मानते हैं। परन्तु और शैवों की तरह ये न तो लिंगार्चन करते हैं और न शिवोपासना के और अंगों का निर्वाह करते हैं। किन्तु तीर्थ, देवता आदि को मानते हैं, शिवमंदिर और देवीमंदिरों में दर्शनार्थ जाते हैं। कैला देवी जी तथा हिंगलाज माता के दर्शन विशेषतः कहते हैं, जिससे इनका शाक्त संबंध भी स्पष्ट है। योगी भस्म भी रमाते हैं, परन्तु भस्मस्नान का एक विशेष तात्पर्य है-जब ये लोग शरीर में श्वास का प्रवेश रोक देते हैं। प्राणायाम की क्रिया मे ंयह महत्व की युक्ति है। फिर भी यह शुद्ध योगसाधना का पन्थ है। इसीलिए इसे महाभारतकाल के योगसम्प्रदाय की परम्परा के अंतर्गत हैं मानना चाहिए। विशेषता इसलिए कि पाशुपत सम्प्रदाय से इसका सम्बन्ध हलका सा ही देख पड़ता है। साथ ही योगसाधना इसके आदि, मध्य और अंत में हैं। अतः यह शैव मत का शुद्ध योग सम्प्रदाय है।
इस पंथ वालों की योग साधना पातंजल विधि का विकसित रूप है। उसका दार्शनिक अंश छोड़कर हठयोग की क्रिया जोड़ देने से नाथपंत की योगक्रिया हो जाती है। नाथपंत में ‘ऊर्ध्वरेता’ या अखण्ड ब्रह्मचारी होना सबसे महत्व की बात है। मांस-मद्यादि सभी तामसिक भोजनों का पूरा निषेध है। यह पंथ चौरासी सिद्धों के तांत्रिक वज्रयान का सात्विक रूप में परिपालक प्रतीत होता है।
उनका तात्विक सिद्धांत है कि परमात्मा ‘केवल’ है। उसी परमात्मा तक पहुँचना मोक्ष है। जीव का उससे चाहे जैसा संबंध माना जाए, परन्तु व्यावहारिक दृष्टि से उससे सम्मिलित ही कैवल्य मोक्ष या योग है। इसी जीवन में उसकी अनुभूति हो जाए, पंथ का यही लक्ष्य है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रथम सीढ़ी काया की साधना है। कोई काया को शत्रु समझकर भाँति-भाँति के कष्ट देता है और कोई विषयवासना में लिप्त होकर उसे अनियंत्रित छोड़ देता है। परन्तु नाथपंथी काया को परमात्मा का आवास मानकर उसकी उपयुक्त साधना करता है। काया उसके लिए वह यंत्र है जिसके द्वारा वह इसी जीवन में मोक्षानुभूति कर लेता है, जन्म मरण जीवन पर पूरा अधिकार कर लेता है, जरा-भरण-व्याधि और काल पर विजय पा जाता है।
इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वह पहले काया शोधन करता है। इसके लिए वह यम, नियम के साथ हठयोग के षट् कर्म(नेति, धौति, वस्ति, नौलि, कपालभांति और त्राटक) करता है कि काया शुद्ध हो जाए। यह नाथपंतियों का अपना आविष्कार नहीं है; हठयोग पर लिखित ‘घेरण्डसंहिता’ नामक प्राचीन ग्रंथ में वर्णित सात्विकयोग प्रणाली का ही यह उद्धार नाथपंथियों ने किया है।
इस मत में शुद्ध हठयोग तथा राजयोग की साधनाएँ अनुशासित हैं। योगासन, नाड़ीज्ञान, षट्चक्र निरूपण तथा प्राणायाम द्वारा समाधि की प्राप्ति इसके मुख्य अंग हैं। शारीरिक पुष्टि तथा पंच महाभूतों पर विजय की सिद्धि के लिए रसविद्या का भी इस मत में एक विशेष स्थान है। इस पंथ के योगी या तो जीवित समाधि लेते हैं या शरीर छोड़ने पर उन्हें समाधि दी जाती है। वे जलाये नहीं जाते। यह माना जाता है कि उनका शरीर योग से ही शुद्ध हो जाता है, उसे जलाने की आवश्यकता नहीं। नाथपंथी योगी अलख(अलक्ष) जगाते हैं। इसी शब्द से इष्टदेव का ध्यान करते हैं और इसी से भिक्षाटन भी करते हैं। इनके शिष्य गुरू के ‘अलक्ष’ कहने पर ‘आदेश’ कहकर सम्बोधन का उत्तर देते हैं। इन मंत्रों का लक्ष्य वहीं प्रणवरूपी परम पुरूष है जो वेदों और उपनिषदों का ध्येय हैं। नाथपंथी जिन ग्रंथों को प्रमाण मानते हैं उनमें सबसे प्राचीन हठयोग संबंधी ग्रंथ घेरण्डसंहिता और शिवसंहिता है। गोरक्षनाथकृत हठयोग, गोरक्षनाथ ज्ञानामृत, गोरक्षकल्प सहस्त्रनाम, चतुरशीत्यासन, योगचिन्तामणि, योगमहिमा, योगमार्तण्ड, योग सिद्धांत पद्धति, विवेकमार्तण्ड, सिद्ध सिद्धांत पद्धति, गोरखबोध, दत्त गोरख संवाद, गोरखनाथ जी के पद, गोरखनाथ के स्फुट ग्रंथ, ज्ञान सिद्धांत योग, ज्ञानविक्रम, योगेश्वरी साखी, नरवैबोध, विरहपुराण और गोरखसार ग्रंथ भी नाथ सम्प्रदाय के प्रमाण ग्रंथ हैं।

गंगा के शिव की जटाओं में उतरने का आशय

हिंदू मायथोलॉजी में गंगा के बारे में दो कहानियां बहुत महत्वपूर्ण हैं। एक तो यह कि जब वे स्वर्ग से इस पृथ्वी पर उतरीं तो उन्हें थामने के लिए शिव को अपनी जटाएं खोलनी पड़ीं। दूसरी यह कि शाप से भस्म हुए जो साठ हजार सगर पुत्र उनकी राह में आए, उन सबको मुक्ति मिल गई। पुराणों में वर्णन आता है कि राजा सगर के साठ हजार पुत्र थे। उन्होंने खेल-खेल में उच्छृंखलता पूर्वक कपिल मुनि की तपस्या में बाधा डाली। कपिल मुनि कहीं शांत, निर्जन स्थल पर बैठ कर अपनी साधना कर रहे थे। सगर पुत्रों के आचरण से दुखी हो कर उन्होंने शाप दिया और वे सभी वहीं जल कर भस्म हो गए।सगर पुत्रों को मुक्ति दिलाने के लिए उनके वंशज राजा भगीरथ ने अपना राजपाट छोड़ कर ब्रह्मा की तपस्या की और उनसे अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए मां गंगा को पृथ्वी पर भेजने का वरदान मांगा। तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने हां तो कर दी, किंतु भगीरथ को एक परामर्श भी दिया। उन्होंने कहा कि गंगा का वेग बहुत प्रचंड है। यदि वह स्वर्ग लोक से उतरकर सीधे पृथ्वी पर आएगी, तो पूरी पृथ्वी को ही बहा ले जाएगी।इसलिए भगीरथ से कहा कि तुम अपनी तपस्या से भगवान महादेव को प्रसन्न कर लो। वे गंगा को अपनी जटाओं में धारण करने की स्वीकृति दे देंगे। ऐसा होने से गंगा का वेग मध्यम हो जाएगा और तब वह पृथ्वी पर धीरे से अवतरित होगी। इस सलाह के बाद भगीरथ ने शिव को अपनी कठिन तपस्या से प्रसन्न किया और उनसे गंगा को अपने सिर पर धारण करने की प्रार्थना की। इस के बाद ही स्वर्ग से गंगा का अवतरण भगवान शिव की जटाओं में हुआ और वहां से वह हिमालय के गोमुख में प्रगट हुई। महादेव की जटाओं से निकलकर हिमालय में गंगोत्री धाम से 18 किमी. दूर स्थित गोमुख में प्रगट होने के बाद यह भागीरथी के रूप में गंगोत्री पहुंचती है और वहां पर दो अलग-अलग धाराओं में आगे बढ़ती है। इन्हीं दो धाराओं को हम अलकनंदा और मंदाकिनी के नाम से जानते हैं। केदारनाथ के साथ बहने वाली धारा को मंदाकिनी कहा जाता है। गंगोत्री के बाद देवप्रयाग में यही मंदाकिनी, अलकनंदा में समाहित होकर आगे मैदानी भागों में बहने लगती है, जिसे हम गंगा के नाम से जानते हैं।हमने पुराणों की इन कहानियों को तो याद रखा, पर उसका मतलब भूल गए। शिव की जटाओं में उतरने का आशय यह बताना था कि गंगा के अवतरण का वेग बहुत ज्यादा होगा। उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। लेकिन हमने इसके बारे में सोचना ही छोड़ दिया कि गंगा के उदगम के पास भी कभी जल का प्रवाह इतना तेज और विनाशकारी हो सकता है। दूसरे, सगर पुत्रों की मुक्ति का आशय यह है कि जो मृत और अचेतन है, वह इसकी राह में बचा नहीं रह सकता। गंगा उसे बहा कर ले ही जाएगी। प्राचीन हिंदू चिंतन में देवी- देवताओं को अदम्य शक्ति से परिपूर्ण माना गया है। इन अदम्य शक्तियों में पालक और विध्वंसकारी -दोनों प्रकार के तत्वों का समावेश होता है। वैदिक ग्रंथों में देवताओं की स्तुति करते समय उनसे यही प्रार्थना की जाती थी कि आपकी कृपा हम पर बनी रहे और आप हमारे शत्रुओं का विनाश करें। उत्तराखंड में आई तबाही यह बताती है कि हमने इन दैवी तत्वों की विनाशकारी शक्तियों को भुला दिया है। इनकी प्रचंडता और सार्मथ्य को भुला कर हमने इसके अस्तित्व और पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ की और अंधाधुंध निर्माण कर इसकी अविरल धारा के आसपास सघन बस्तियां बसा दीं, नतीजा सामने है।पुराणों का मतलब सिर्फ चमत्कारपूर्ण किस्से-कहानी और कर्मकांड नहीं है। 

शिवपुराण में शिव 

ऐसे परोपकारी और अपरिग्रही शिव का चरित्र वर्णित करने के लिए ही 'शिव पुराण' की रचना की गई है। यह पुराण पूर्णत: भक्ति ग्रन्थ है। पुराणों के मान्य पांच विषयों का 'शिव पुराण' में अभाव है। इस पुराण में कलियुग के पापकर्म से ग्रसित व्यक्ति को 'मुक्ति' के लिए शिव-भक्ति का मार्ग सुझाया गया है। 'रामचरितमानस' में तुलसीदास ने जिन्हें 'अशिव वेषधारी' और 'नाना वाहन नाना भेष' वाले गणों का अधिपति कहा है, वे शिव जन-सुलभ तथा आडम्बर विहीन वेष को ही धारण करने वाले हैं। वे 'नीलकंठ' कहलाते हैं। क्योंकि समुद्र मंथन के समय जब देवगण एवं असुरगण अद्भुत और बहुमूल्य रत्नों को हस्तगत करने के लिए मरे जा रहे थे, तब कालकूट विष के बाहर निकलने से सभी पीछे हट गए। उसे ग्रहण करने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ। तब शिव ने ही उस महाविनाशक विष को अपने कंठ में धारण कर लिया। तभी से शिव नीलकंठ कहलाए। क्योंकि विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया था। मनुष्य को निष्काम भाव से अपने समस्त कर्म शिव को अर्पित कर देने चाहिए। वेदों और उपनिषदों में प्रणव (ॐ) के जप को मुक्ति का आधार बताया गया है। प्रणव के अतिरिक्त 'गायत्री मन्त्र' के जप को भी शान्ति और मोक्षकारक कहा गया है। इस प्रसंग में चंचुला नामक एक पतिता स्त्री की कथा है जो 'शिव पुराण' सुनकर स्वयं सद्गति को प्राप्त हो जाती है। यही नहीं, वह अपने कुमार्गगामी पति को भी मोक्ष दिला देती है। तदुपरान्त शिव पूजा की विधि बताई गई है। शिव कथा सुनने वालों को उपवास आदि न करने के लिए कहा गया है, क्योंकि भूखे पेट कथा में मन नहीं लगता। साथ ही गरिष्ठ भोजन, बासी भोजन, वायु विकार उत्पन्न करने वाली दालें, बैंगन, मूली, प्याज, लहसुन, गाजर तथा मांस-मदिरा का सेवन वर्जित बताया गया है। 'शिव पुराण' का सम्बन्ध शैव मत से है। इस पुराण में प्रमुख रूप से शिव-भक्ति और शिव-महिमा का प्रचार-प्रसार किया गया है। प्राय: सभी पुराणों में शिव को त्याग, तपस्या, वात्सल्य तथा करुणा की मूर्ति बताया गया है। कहा गया है कि शिव सहज ही प्रसन्न हो जाने वाले एवं मनोवांछित फल देने वाले हैं। किन्तु 'शिव पुराण' में शिव के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए उनके रहन-सहन, विवाह और उनके पुत्रों की उत्पत्ति के विषय में विशेष रूप से बताया गया है। भगवान शिव सदैव लोकोपकारी और हितकारी हैं। त्रिदेवों में इन्हें संहार का देवता भी माना गया है। अन्य देवताओं की पूजा-अर्चना की तुलना में शिवोपासना को अत्यन्त सरल माना गया है। अन्य देवताओं की भांति को सुगंधित पुष्पमालाओं और मीठे पकवानों की आवश्यकता नहीं पड़ती। शिव तो स्वच्छ जल, बिल्व पत्र, कंटीले और न खाए जाने वाले पौधों के फल यथा-धूतरा आदि से ही प्रसन्न हो जाते हैं। शिव को मनोरम वेशभूषा और अलंकारों की आवश्यकता भी नहीं है। वे तो औघड़ बाबा हैं। जटाजूट धारी, गले में लिपटे नाग और रुद्राक्ष की मालाएं, शरीर पर बाघम्बर, चिता की भस्म लगाए एवं हाथ में त्रिशूल पकड़े हुए वे सारे विश्व को अपनी पद्चाप तथा डमरू की कर्णभेदी ध्वनि से नचाते रहते हैं। इसीलिए उन्हें नटराज की संज्ञा भी दी गई है। उनकी वेशभूषा से 'जीवन' और 'मृत्यु' का बोध होता है। शीश पर गंगा और चन्द्र –जीवन एवं कला के द्योतम हैं। शरीर पर चिता की भस्म मृत्यु की प्रतीक है। यह जीवन गंगा की धारा की भांति चलते हुए अन्त में मृत्यु सागर में लीन हो जाता है। शिव पुराण में आठ संहिताओं सका उल्लेख प्राप्त होता है, जो मोक्ष कारक हैं। ये संहिताएं हैं- विद्येश्वर संहिता, रुद्र संहिता, शतरुद्र संहिता, कोटिरुद्र संहिता, उमा संहिता, कैलास संहिता, वायु संहिता (पूर्व भाग) और वायु संहिता (उत्तर भाग)। इस विभाजन के साथ ही सर्वप्रथम 'शिव पुराण' का माहात्म्य प्रकट किया गया है।
विद्येश्वर संहिता...
इस संहिता में शिवरात्रि व्रत, पंचकृत्य, ओंकार का महत्व, शिवलिंग की पूजा और दान के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। शिव की भस्म और रुद्राक्ष का महत्त्व भी बताया गया है। रुद्राक्ष जितना छोटा होता है, उतना ही अधिक फलदायक होता है। खंडित रुद्राक्ष, कीड़ों द्वारा खाया हुआ रुद्राक्ष या गोलाई रहित रुद्राक्ष कभी धारण नहीं करना चाहिए। सर्वोत्तम रुद्राक्ष वह है जिसमें स्वयं ही छेद होता है। सभी वर्ण के मनुष्यों को प्रात:काल की भोर वेला में उठकर सूर्य की ओर मुख करके देवताओं अर्थात् शिव का ध्यान करना चाहिए। अर्जित धन के तीन भाग करके एक भाग धन वृद्धि में, एक भाग उपभोग में और एक भाग धर्म-कर्म में व्यय करना चाहिए। इसके अलावा क्रोध कभी नहीं करना चाहिए और न ही क्रोध उत्पन्न करने वाले वचन बोलने चाहिए।
रुद्र संहिता...
रुद्र संहिता में शिव का जीवन-चरित्र वर्णित है। इसमें नारद मोह की कथा, सती का दक्ष-यज्ञ में देह त्याग, पार्वती विवाह, मदन दहन, कार्तिकेय और गणेश पुत्रों का जन्म, पृथ्वी परिक्रमा की कथा, शंखचूड़ से युद्ध और उसके संहार आदि की कथा का विस्तार से उल्लेख है। शिव पूजा के प्रसंग में कहा गया है कि दूध, दही, मधु, घृत और गन्ने के रस (पंचामृत) से स्नान कराके चम्पक, पाटल, कनेर, मल्लिका तथा कमल के पुष्प चढ़ाएं। फिर धूप, दीप, नैवेद्य और ताम्बूल अर्पित करें। इससे शिवजी प्रसन्न हो जाते हैं। इसी संहिता में 'सृष्टि खण्ड' के अन्तर्गत जगत् का आदि कारण शिव को माना गया हैं शिव से ही आद्या शक्ति 'माया' का आविर्भाव होता हैं फिर शिव से ही 'ब्रह्मा' और 'विष्णु' की उत्पत्ति बताई गई है।
शतरुद्र संहिता...
इस संहिता में शिव के अन्य चरित्रों-हनुमान, श्वेत मुख और ऋषभदेव का वर्णन है। उन्हें शिव का अवतार कहा गया है। शिव की आठ मूर्तियां भी बताई गई हैं। इन आठ मूर्तियों से भूमि, जल, अग्नि, पवन, अन्तरिक्ष, क्षेत्रज, सूर्य और चन्द्र अधिष्ठित हैं। इस संहिता में शिव के लोकप्रसिद्ध 'अर्द्धनारीश्वर' रूप धारण करने की कथा बताई गई है। यह स्वरूप सृष्टि-विकास में 'मैथुनी क्रिया' के योगदान के लिए धरा गया था।
कोटिरुद्र संहिता...
कोटिरुद्र संहिता में शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों का वर्णन है। ये ज्योतिर्लिंगों क्रमश: सौराष्ट्र में सोमनाथ, श्रीशैल में मल्लिकार्जुन, उज्जयिनी में महाकालेश्वर, ओंकार में अम्लेश्वर, हिमालय में केदारनाथ, डाकिनी में भीमेश्वर, काशी में विश्वनाथ, गोमती तट पर त्र्यम्बकेश्वर, चिताभूमि में वैद्यनाथ, सेतुबंध में रामेश्वर, दारूक वन में नागेश्वर और शिवालय में घुश्मेश्वर हैं। इसी संहिता में विष्णु द्वारा शिव के सहस्त्र नामों का वर्णन भी है। साथ ही शिवरात्रि व्रत के माहात्म्य के संदर्भ में व्याघ्र और सत्यवादी मृग परिवार की कथा भी है।
उमा संहिता...
इस संहिता में शिव के लिए तप, दान और ज्ञान का महत्त्व समझाया गया है। यदि निष्काम कर्म से तप किया जाए तो उसकी महिमा स्वयं ही प्रकट हो जाती है। अज्ञान के नाश से ही सिद्धि प्राप्त होती है। 'शिव पुराण' का अध्ययन करने से अज्ञान नष्ट हो जाता है। इस संहिता में विभिन्न प्रकार के पापों का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि कौन से पाप करने से कौन-सा नरक प्राप्त होता है। पाप हो जाने पर प्रायश्चित्त के उपाय भी बताए गए हैं।
कैलास संहिता...
कैलास संहिता में ओंकार के महत्त्व का वर्णन है। इसके अलावा योग का विस्तार से उल्लेख है। इसमें विधिपूर्वक शिवोपासना, नान्दी श्राद्ध और ब्रह्मयज्ञादि की विवेचना भी की गई है। गायत्री जप का महत्त्व तथा वेदों के बाईस महावाक्यों के अर्थ भी समझाए गए हैं।
वायु संहिता...
इस संहिता के पूर्व और उत्तर भाग में पाशुपत विज्ञान, मोक्ष के लिए शिव ज्ञान की प्रधानता, हवन, योग और शिव-ध्यान का महत्त्व समझाया गया है। शिव ही चराचर जगत् के एकमात्र देवता हैं। शिव के 'निर्गुण' और 'सगुण' रूप का विवेचन करते हुए कहा गया है कि शिव एक ही हैं, जो समस्त प्राणियों पर दया करते हैं। इस कार्य के लिए ही वे सगुण रूप धारण करते हैं। जिस प्रकार 'अग्नि तत्त्व' और 'जल तत्त्व' को किसी रूप विशेष में रखकर लाया जाता है, उसी प्रकार शिव अपना कल्याणकारी स्वरूप साकार मूर्ति के रूप में प्रकट करके पीड़ित व्यक्ति के सम्मुख आते हैं शिव की महिमा का गान ही इस पुराण का प्रतिपाद्य विषय है।

भगवान शिव आप सब पर कृपा बनाये रखें.....



आदत और स्वभाव /Habit and disposition

-शीतांशु कुमार सहाय

 

प्रत्येक जीव पर रखें दया का भाव / Take pity on every living

-शीतांशु कुमार सहाय

 

अपने आन्तरिक गुणों और शक्तियों को पहचानें / Identify your inner qualities and strengths

-शीतांशु कुमार सहाय
 

अपयश का कारण है अहंकार / The ego is the cause of infamy

-शीतांशु कुमार सहाय
 

दृष्टिकोण हमेशा सकारात्मक ही रखें / Always keep a positive attitude

-शीतांशु कुमार सहाय
 

भीतर से खोलें हृदय के द्वार / Open the doors of your heart

-शीतांशु कुमार सहाय
 

स्वयं द्वारा आजमाये हुए तरकीब ही बच्चों को बतायें / Tell the ideas to children

-शीतांशु कुमार सहाय


शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

इलेक्ट्रॉनिक कचरों से निपटने की समस्या / Dealing with the Problem of Electronic Waste

-शीतांशु कुमार सहाय


शिक्षा के बिना मेक इन इण्डिया अधूरा / Make in India is Incomplete Without Education

-शीतांशु कुमार सहाय


अपने खालीपन को ऊर्जा बनायें / Emptiness....Create Energy

-शीतांशु कुमार सहाय

 

प्रतिभा व परिश्रम का मेल / Combining the Talents and Labor

-शीतांशु कुमार सहाय
 

गुरुवार, 25 फ़रवरी 2016

रेल बजट 2016-17 : 50 प्रमुख बातें / बिहार, झारखण्ड व पश्चिम बंगाल को क्या मिला....Railway Budget 2016-17: 50 key points / Bihar, Jharkhand and West Bengal did ....

 -शीतांशु कुमार सहाय
रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने वृहस्पतिवार 25 फरवरी 2016 को लोकसभा में पेश अपने रेल बजट भाषण में रेलवे के समक्ष पेश चुनौतियों का जिक्र किया लेकिन साथ ही कहा कि इन चुनौतियों से निपटने में वह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की कविता की पंक्तियों से प्रेरणा पाते हैं। रेल मंत्री ने कहा कि रेलवे को बेहतर स्थिति में लाने का हम पर दबाव बना हुआ है, लेकिन मुझे इस समय, हमारे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की कुछ पंक्तियां याद आ रही हैं जिन्होंने कहा था :
विपदाएं आती हैं आएं,
हम न रुकेंगे, हम न रुकेंगे,
आघातों की क्या चिंता है?
हम न झुकेंगे, हम न झुकेंगे।

रेल मंत्री ने कवि हरिवंश राय बच्चन की भी कुछ पंक्तियों को उद्धृत किया और अपनी अंदरूनी ताकत, विविध प्रतिभाओं और भरपूर अनुभव का इस्तेमाल करने की प्रतिबद्धता को कुछ इस प्रकार बयान किया :
नव उमंग, नव तरंग,
जीवन का नव प्रसंग,
नवल चाह, नवजीवन का नव प्रवाह।

रेल मंत्री ने फिर से वाजपेयी जी को याद करते हुए कहा :
जब तक ध्येय पूरा न होगा, तब तक पग की गति न रुकेगी,
आज कहे चाहे कुछ दुनिया, कल को बिना झुके न रहेगी।

सुरेश प्रभु ने अपना बजट भाषण समाप्त करते हुए भगवान बुद्ध का स्मरण किया और कहा कि भगवान बुद्ध ने कहा है कि जब भी कोई व्यक्ति यात्रा करता है तो वह दो गलतियां कर सकता है : पहली यात्रा शुरू ही न करे और दूसरी सफर पूरा न करे। उन्होंने कहा,  हम अपना सफर पहले ही शुरू कर चुके हैं और मैं इस यात्रा को पूरा भी करना चाहता हूं। हम भारतीय रेल को समृद्धि अथवा सफलता की मंजिल तक पहुंचाने से पहले नहीं रुकेंगे।

रेल बजट 2016-17 की 50 प्रमुख बातें :

1-रेल बजट 2016-17 में तीन नयी सुपरफास्ट रेल गाड़ियां चलाने की घोषणा की गई है।
2-हमसफर नाम की गाड़ियां पूरी तरह से वातानुकूलित 3एसी के डिब्बों वाली होंगी जिनमें भोजन का भी विकल्प होगा।
3-तेजस नाम से चलाई जाने वाली नयी गाड़ियां 130 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलेंगी।
4-इन दोनों ट्रेनों के परिचालन की लागत किराए के साथ साथ दूसरे तरीकों से वसूली जाएगी।
5-तीसरी प्रकार की ट्रेन उदय नाम से चलाई जाएगी जो डबल डेकर होगी।
6-उत्कृष्ट नाम से वातानुकूलित दो तला गाड़ियां चलाने की घोषणा की गई है। ये दोतला गाड़ियां व्यस्त मार्गों पर चलाने की योजना है।
7-बजट में अनारक्षित यात्रियों की सुविधा का भी ध्यान रखा गया है।
8-सुपरफास्ट अंत्योदय एक्सप्रेस सेवा शुरू करने की घोषणा।
9-ऐसे यात्रियों के लिए दीन दयालु अनारक्षित डिब्बे लगाए जाएंगे जिनमें पेयजल और मोबाइल चार्जिंग की सुविधा होगी।
10-रेल विकास प्राधिकरण के गठन की घोषणा। रेल विकास प्राधिकरण सेवाओं की दरों के निर्धारण में रेलवे की मदद करेगा ताकि देश की यह सबसे बड़ी परिवहन प्रणाली अपनी प्रतिस्पर्धा क्षमता बनाए रख सके। साथ ही इसके ग्राहकों के हितों की भी रक्षा हो और सेवा की दक्षता, मानक स्तर की हो।
11-रेलमंत्री ने कहा कि माल ढुलाई के मामले में मौजूदा वस्तुओं की सूची के विस्तार के लिए अपने मौजूदा दृष्टिकोण से बढ़कर सोचना होगा। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि हमें भाड़ा फिर से मिले।
12-वर्ष 2016-17 में भारतीय रेलवे के लिए 1,21 लाख करोड़ रुपये के योजना व्यय का प्रस्ताव किया।
13-योजनाओं के लिए धन की व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए वित्त पोषण की मिली-जुली व्यवस्था करने का प्रस्ताव।
14-अगले वित्त वर्ष में रेलवे को यातायात कारोबार से सकल राजस्व प्राप्ति 1.84 लाख करोड़ रपये रहने का अनुमान है। वर्ष के दौरान यात्री किराए से 51,012 करोड़ रुपये की आय का लक्ष्य रखा गया है जो चालू वित्त वर्ष के बजट से 12.4 प्रतिशत अधिक होगा।
15-रेलवे ने 2016-17 में 5 करोड़ टन अतिरिक्त माल ढुलाई का लक्ष्य रखा है और उम्मीद की है कि बुनियादी क्षेत्र के स्वस्थ विकास से यह लक्ष्य हासिल हो जाएगा। माल ढुलाई से 1.17 लाख करोड़ रुपये की आमदनी होने का अनुमान है।
16-कोचिंग और छोटी मोटी सेवाओं से रेलवे को अगले वित्त वर्ष में क्रमश: 6,185 करोड़ रुपये और 9,590 करोड़ रुपये की आय होने का अनुमान है।
17-आगामी वित्त वर्ष में रेलवे को पेंशन पर 45,500 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ सकते हैं।
18-चालू वित्त वर्ष में रेलवे के वित्तीय कारोबार में 8,720 करोड़ रुपये की बचत दिखाई गई है।
19-सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने से रेलवे पर अगले वित्त वर्ष में दबाव बढ़ने और इस कारण परिचालन अनुपात (कुल आय के मुकाबले परिचालन खर्च) बिगड़ने का अनुमान है।
20-बजट में वर्ष 2016-17 के दौरान परिचालन अनुपात बढ़कर 92 प्रतिशत पहुंचने का अनुमान लगाया गया है जो चालू वित्त वर्ष में 90 प्रतिशत रहने का अनुमान है।
21-रेलवे ने अनुमान लगाया है कि वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के बावजूद उसके साधारण खर्च में वृद्धि 11.16 प्रतिशत तक सीमित रहेगी। इसके लिए उसने डीजल और बिजली की खपत में कटौती की योजना बनाई है।
22-तीन नए मालगाड़ी मार्ग बनाए जाएंगे जिनमें एक उत्तर दक्षिण गलियारा दिल्ली से चेन्नई के बीच होगा, जबकि दूसरा पूरब पश्चिम गलियारा खड़गपुर से मुंबई और तीसरा पूर्वी तटीय गलियारा खड़गपुर को विजयवाड़ा से जोड़ेगा।
23-इन तीन परियोजनाओं को उच्च प्राथमिकता देने का प्रस्ताव है ताकि इन परियोजना प्रस्तावों को तैयार करने, उनका ठेका देने और उन पर अमल करने का काम समय पर सुनिश्चित हो सके।
24-इन तीनों परियोजनाओं के लिए धन की व्यवस्था पीपीपी (निजी सरकारी भागीदारी) मॉडल सहित नए तरीकों से की जाएगी।
25-इन परियोजनाओं में चालू वित्त वर्ष की समाप्ति से पहले सिविल इंजीनियरिंग काम के सारे ठेके दिए भी जा चुके होंगे।
26-प्रभु ने कहा कि उनके रेल मंत्रालय संभालने के बाद से 24,000 करोड़ रुपये के ठेके दिए जा चुके हैं, जबकि उससे पहले के छह साल में कुल मिलाकर 13,000 करोड़ रुपये के ठेके दिए गए थे।
27-2,800 किलोमीटर तक रेल पटरी को बड़ी लाइन में बदलने का प्रावधान।
28-2016-17 में रोजाना सात किलोमीटर तक नई बड़ी लाइन पर संचालन शुरू।
29-2018-19 तक रोजाना 19 किलोमीटर नई बड़ी लाइन पर संचालन शुरू करने का लक्ष्य।
30-अगले पांच साल में 8.8 लाख करोड़ रुपये अवसंरचना पर होंगे खर्च।
31-सरकार से 40 हजार करोड़ रुपये बजटीय सहयोग की उम्मीद।
32-पारदर्शिता बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया के उपयोग को बढ़ावा।
33-रिटायरिंग रूम की ऑनलाइन बुकिंग हो सकेगी।
34-मौजूदा वित्त वर्ष की समाप्ति तक 17 हजार अतिरिक्त जैविक शौचालय चालू होंगे।
35-मेक इन इंडिया पहल के तहत दो नए लोको कारखाने की बोली पूरी।
36-इस साल 100 और स्टेशनों पर और अगले वर्ष 400 स्टेशनों पर वाई-फाई सुविधा।
37-रेलवे स्टेशनों पर स्थानीय कला शैली को तरजीह।
38-वडोदरा स्थिति अकादमिक संस्थान को विश्वविद्यालय का दर्जा।
39-रेलवे 2017-18 में नौ करोड़ श्रम दिवस रोजगार पैदा करेगा। 2018-19 में 14 करोड़ श्रम दिवस का लक्ष्य।
40-वरिष्ठ नागरिकों के लिए लोवर बर्थ का कोटा 50 फीसदी बढ़ेगा।
41-एलआईसी पांच साल में करेगी 1.5 लाख करोड़ रुपये निवेश।
42-मुंबई उपनगरीय रेल नेटवर्क पर चर्चगेट और सीएसटी के बीच दो उपरिगामी रेल मार्गो का निर्माण होगा।
43-पूरे देश के लिए दिन-रात चालू रहने वाली महिला हेल्पलाइन।
44-व्यस्त मार्गो पर पूरी तरह अनारक्षित रेलगाड़ियों का संचालन।
45-नए शोध एवं विकास (आरएंडडी) संगठन होंगे स्थापित।
46-रेल कर्मचारियों के स्टार्ट-अप में होगा 50 करोड़ रुपये का निवेश।
47-रेल यात्रियों के लिए पसंदीदा स्थानीय व्यंजन होंगे उपलब्ध।
48-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपने को साकार करने की पूरी कोशिश।
49-रेल नेटवर्क के आधुनिकीकरण का काम पटरी पर रखने के लिए राजस्व के नए स्रोत तलाशे जाएंगे, खर्च घटाए जाएंगे और परिचालन का नया ढांचा लागू किया जाएगा।
50-यात्री किराए में और न ही माल भाड़े की दरों में कोई छेड़छाड़।



बिहार, झारखण्ड व पश्चिम बंगाल को क्या मिला....

Announcements for Bihar in Railway Budget 2016-17

Amount in Rs. Crore

Total  Outlay    Total  Outlay    Total  Outlay    Total  Outlay    Total  Outlay    Total  Outlay    Total  Outlay    Total Outlay    % increase from last year      
2009-10    2010-11    2011-12    2012-13    2013-14    2014-15    2015-16    2016-17    15-16 vs 16-17      
994.2    890.8    1090.6    1444    1244.8    1023    2489    3171    29%   

New Works

S.No    Name of Survey/Project    Plan head    Allocation    Approx Length (Km)    Cost (Rs in Crore)      
     Survey                        
1    Dehri-On-Son – BhunathpurNew line    NL        39    0.06      
2    Madhubani-Benipatti-PupriNew line    NL        45    0.07      
3    Sitamarhi-Janakpur via BathnahaNew line    NL        45    0.07      
4    Radhkpuir -Barsoi Doubling    DL        52    0.20      
     New Work                      
1    Vikramshila-KatareahNew line    NL    Cap & EBR (Partnership)    18    1601      
2    Triangle between KarotaPatner to Mankatha Station Doubling    DL    Cap & EBR (IF)    10    130.9      
3    Gaya Bye pass Doubling    DL    Cap & EBR (IF)    2    12.56      
4    GMO- Flyover for DN trains Doubling    DL    Cap & EBR (IF)    15    94.56      
5    Muzaffarpur-Sugauli doubling    DL    Cap & EBR (IF) Cap & EBR (IF)    100.6    731.64      
6    Sagauli-Valmiknagar doubling    DL    Cap & EBR (IF)    109.7    744.04   

New ROB/RUB Sanctioned

2011-12    2012-13    2013-14    2014-15    2015-16    2016-17      
ROB    RUB/
Subways    ROB    RUB/
Subways    ROB    RUB
/Subways    ROB    RUB/
Subways    ROB    RUB/
Subways    ROB    RUB/
Subways      
20    0    1    0    21    109    5    0    47    28    25    4   

 
Details of ROB/RUB    ROB/ RUB/ Subway    No. of ROBs/ RUBs      
Nabinagar Yard- Road over bridge in lieu of level crossing No. 29    ROB    1      
Raghunathpur-Twinninganj- Road over bridge in lieu of level crossing No. 59 in Raghunathpur Yard    ROB    1      
Muzaffarpur-Sagauli - Road over bridge in lieu of level crossing No. 145 in Pipra Yard    ROB    1      
Muirpur Road-Sagauli- Road over bridge in lieu of level crossing No. 158 between Jivdhara-BapuDhamMotihari    ROB    1      
Muirpur Road-Sagauli- Road over bridge in lieu of level crossing No. 163 between Jivdhara-BapuDhamMotihari    ROB    1      
Muirpur Road-Sagauli- Road over bridge in lieu of level crossing No. 175 between Semra-Sagauli    ROB    1      
Sagauli-Raxaul- Road over bridge in lieu of level crossing No. 11 between Raxaul-Ramgharwa    ROB    1      
Sagauli-Raxaul- Road over bridge in lieu of level crossing No. 1 between Sagauli-Ramgharwa    ROB    1      
Saharsa-Paniara - Road over bridge in lieu of level crossing No. 95 between Baijnahpur-DauramMadhepura    ROB    1      
Saharsa-Paniara- Road over bridge in lieu of level crossing No. 90 in DauramMadhepura Yard    ROB    1      
Saharsa-Purnea- Road over bridge in lieu of  level crossing No. 104 between Saharsa-Baijnathpur    ROB    1      
Darbhanga-Sakri- Road over bridge in lieu of level crossing No. 39 in Sakri Yard    ROB    1      
Subways in lieu of level crossings No.57, 58, 60 between KopaSamhota-Daudpur    Subway    3      
Bansipur-Kiul- Road over bridge in lieu of level crossing No. 55    ROB    1      
Patna-Gaya- Road over bridge in lieu of level crossing No. 21/A in Taregna yard     ROB    1      
Tall-Mokama- Road over bridge in lieu of level crossing No. 50    ROB    1      
Mokama-Mor- Road over bridge in lieu of level crossing No. 51    ROB    1      
Punarakh-Barh- Road over bridge in lieu of level crossing No. 53/1    ROB    1      
Barh-Athmalgola- Road over bridge in lieu of level crossing No. 54 (RH Yard)    ROB    1      
Danapur-Neora- Road over bridge in lieu of level crossing No. 39    ROB    1      
Darbhanga-Sitamarhi- Road over bridge in lieu of level crossing No. 55 between Parsauni-Sitamarhi    ROB    1      
Subways in lieu of level crossings No. 103 between Jiradei-Mairwa    Subway    1      
Narkatiaganj-Paniyahawa- Road over bridge in lieu of level crossing No. 55 between Bugha-Valmikinagar    ROB    1      
Narkatiaganj-Paniyahawa- Road over bridge in lieu of level crossing No. 59 between Bugha-Valmikinagar    ROB    1      
Sagauli-Narkatiaganj- Road over bridge in lieu of level crossing No. 184 between Majhaulia-Bettiah    ROB    1      
Sagauli-Narkatiaganj- Road over bridge in lieu of level crossing No. 188 between Majhaulia-Bettiah    ROB    1      
Sagauli-Narkatiaganj- Road over bridge in lieu of level crossing No. 178 between Sagauli-Majhaulia    ROB    1   

New Railway Electrification work

SN    Name of Section    Rly    Approx. Length (km)    Cost           (Rs. in cr)      
1    Mansi-Sahrsa-DauraMadhepura -Purnea-Katihar    ECR    172    227.14   




Railway Electrification work under joint venture

SN    Name of Section    Rly    Approx. Length    Cost (Rs. in cr)      
1    Ara - Sasaram    ECR    97    76.51      
2    Darbhanga-Jaynagar    ECR    81    106      
3    Raxaul-Sitamarhi-Darbanga-Samastipur    ECR    231    305.05      
4    Kaptanganj-Thawe-Khairah-ChhapraKacheri    NER    206    144.18   








Announcements for Jharkhand in Railway Budget 2016-17

Amount in Rs. Crore

Total  Outlay    Total  Outlay    Total  Outlay    Total  Outlay    Total  Outlay    Total  Outlay    Total  Outlay    Total Outlay    % increase       
2009-10    2010-11    2011-12    2012-13    2013-14    2014-15    2015-16    2016-17    15-16 vs 16-17      
237.5    418.5    509.2    466.5    654.2    504    1894    2235    37%   

New Works

S.No.    Name of Survey/Project    Plan head    Allocation    Approx Length (Km)    Cost (Rs in Crore)      
    Survey                        
1    Dehri-On-Son – Bhunathpur New line    NL        39    0.06      
    New Work                        
1    Vikramshila- Katareah New line    NL    Cap & EBR (Partnership)    18    1601      
2    ROR Flyover at Gharwa Road New line    DL    Cap & EBR (IF)    10    48.73      
3    Chitra-Basukinath New line    NL    Cap & EBR (Partnership)    37    859      
4    Godda-Pakur New line    NL    Cap & EBR (Partnership)    80    1723   

New ROB/RUB Sanctioned

2011-12    2012-13    2013-14    2014-15    2015-16    2016-17      
ROB    RUB/
Subways    ROB    RUB/
Subways        ROB    RUB
/Subways    ROB    RUB/
Subways    ROB    RUB/
Subways    ROB    RUB/
Subways      
4    0    2    1    16    95    1    0    2    44    12    5   
 
Details of ROB/RUB    ROB/ RUB/ Subway    No. of ROBs/ RUBs      
Demu-Latehar- Road over bridge in lieu of level crossing No. 35/B/T (S&T No.13/B/T)    ROB    1      
Dhanbad-Kusunda- Road over bridge in lieu of level crossing No. 2/B/3T    ROB    1      
Phusro-Amlo- Road over bridge in lieu of level crossing No. 13/Spl/T    ROB    1      
Bhandaridah-Phusro- Road over bridge in lieu of level crossing No. 10/Spl/E    ROB    1      
Amlo-Bermo- Road over bridge in lieu of level crossing No. 14/Spl/E    ROB    1      
Adra Division- Subway in lieu of level crossings Nos. BG-14 & BG-15- 2 Nos.     Subway    2      
Kasitarh-Vidyasagar - Road over bridge in lieu of level crossing No. 13/B/E    ROB    1      
Kasitarh-Vidyasagar- Road over bridge in lieu of level crossing No. 14/A/T    ROB    1      
Adra Division- Subway in lieu of level crossing Nos. AM-50/AM-51- 1 No.    Subway    1      
Chainpur-Karmahat- Road over bridge in lieu of level crossing No 26/Spl/T    ROB    1      
Asanboni-Salgajhari- Road over bridge in lieu of level crossing No. 138    ROB    1      
Sahibganj- Road over bridge in lieu of level crossing No. 82-B/T near west cabin    ROB    1      
Sakrigali-Sahibganj- Road over bridge in lieu of level crossing No. 56/T    ROB    1      
Bhurkunda-Patratu- Road over bridge in lieu of level crossing No. 39/Spl/T    ROB    1      
Adra Division- Subway in lieu of level crossing Nos.  JC-48 and JC-54- 2 Nos.    Subway    2   

New Railway Electrification work

SN    Name of Section    Rly    Approx. Length (km)    Cost   (Rs. in cr)      
1    Ranchi- Lohardaga-Tori     SER    116    102.66   






Announcements for West Bengal in Railway Budget 2016-17

Amount in Rs. Crore

Total  Outlay    Total  Outlay    Total  Outlay    Total  Outlay    Total  Outlay    Total  Outlay    Total  Outlay    Total Outlay      
2009-10    2010-11    2011-12    2012-13    2013-14    2014-15    2015-16    2016-17      
1145.6    2193.7    10888.5    6067.9    1604.1    3059    3793    3820   

New Works

S.
No.    Name of Survey    Plan
Head    Allocation    Approx. Length
(Km)    Cost
(Rs in Cr)      
     Survey                         
1    Digha-Rupsa via Baliapal new line    NL        58    0.09      
2    Radhkpuir -Barsoi    DL        52    0.20      
     New Work                         
1    New Mainaguri- Gumanihat remaining portion    DL    Cap & EBR (IF)    51.65    556.31      
2    Damodar-Mohisila doubling    DL    Cap & EBR (IF)    8    70.91      
3    Narayangarh-Bhadrak 3rd line    DL    Cap & EBR (IF)    155    2037.13      
4    Haldibari to International border    NL    Cap & EBR (IF)    3    67      
5    Central Park Metro-Haliram    MTP    Cap & EBR (IF)    6    1347   

 
Details of ROB/RUB    ROB/ RUB/ Subway    No. of ROBs/ RUBs      
Road over bridge in lieu of level crossing No. 1-A/E-3 over old GT Road near Kumarpur on Barachak-Hirapur Yard line    ROB    1      
Adra-Sanka- Subway in lieu of level crossing No. AM-5    Subway    1      
Adra Division- Subway in lieu of level crossing Nos. AM-3, KA-120-- 2 Nos.    Subway    2      
Barasat-Hasnabad- Road over bridge in lieu of level crossing No. E/39 between Champapukur-Basirhat    ROB    1      
Katwa- Road over bridge in lieu of level crossing No. 22 (Spl)    ROB    1      
Adra Division- Subway in lieu of level crossing Nos.PK-1/PK-2, PK-7,PK-10, MR-27, JC-8, JC-30, RA-2- 7 Nos.    Subway    7      
Panskura- Road over bridge in lieu of level crossing No. 47 between Howrah-Kharagpur    ROB    1      
Santragachi- Road over bridge in lieu of level crossing No. 6 (Buxara Gate) on Howrah-Kharagpur    ROB    1      
Adra Division- Subway in lieu of level crossing Nos.PK-1/PK-2, PK-7,PK-10, MR-27, JC-8, JC-30, RA-2- 7 Nos.    Subway    7      
Sealdah-Ranaghat- Road over bridge in lieu of level crossing No. 50/T between Simurali-Chakdaha    ROB    1      
Ranaghat-Lalgola- Road over bridge in lieu of level crossing No. 60B between Birnagar-Badkulla    ROB    1      
New Jalpaiguri-Aluabari- Road over bridge in lieu of level crossing No. NC-5 between Rangapani-New Jalpaiguri    ROB    1      
Dumdum-Dankuni- Replacement of old steel girder of Br. No.15 CCR into Road Under Bridge (RCC box) between Bally Ghat-Bally Halt    Subway    1   

Kolkata Metro
·    Ongoing Metro works of around 100 kms which when completed would quadruple the installed capacity.
·    Resolved all issues related to East West Corridor of Kolkata Metro and Phase I of this project would be completed by June 2018.
·    Working on the possibility of extending the East West Corridor by 5 km

*****

सोमवार, 8 फ़रवरी 2016

निदा फ़ाज़ली : साम्प्रदायिक सौहार्द के प्रतिमूर्ति की अविस्मरणीय रचनाएँ My Tribute to Nida Fazli





जन्म : 12 अक्तूबर 1938 (दिल्ली)
निधन : 8 फ़रवरी 2016 (मुंबई) 
 


-शीतांशु कुमार सहाय
     बचपन से जिन के नज़्मों, गीतों और ग़ज़लों को सुनकर मैंने कुछ तुकबन्दी लिखना सीखा, उस महान साहित्यकार निदा फ़ाज़ली के निधन को वास्तव में मैं व्यक्तिगत क्षति मानता हूँ। 
     वे हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल व व्यावहारिक समर्थक थे। साम्प्रदायिक सौहार्द की बातें उन की रचनाओं में मुखरित होती रही हैं। वर्तमान में उन की रचनाओं से हमें सीख लेने की जरूरत है। 
     मशहूर शायर निदा फ़ाज़ली का सोमवार ८ फ़रवरी २०१६ को दिल का दौरा पड़ने से मुंबई में निधन हो गया। वह ७७ साल के थे। शायरी की दुनिया में निदा जाना-पहचाना नाम थे। उन्‍होंने शायरी और ग़ज़ल के अलावा कई फिल्‍मों के लिए गाने भी लिखे। मुक़्तदा हसन निदा फ़ाज़ली- एक ऐसा शायर, जो जीता रहा, वही लिखता रहा। अपने वक़्त की तमाम दरो-दीवारों को चंद शब्‍दों से हटाता रहा, तोड़ता रहा और इंसानियत की ऐसी दुनिया रचने की कोशिश में लगा रहा, जो मस्‍जिदों से बाहर थी, मंदिरों से दूर थी और गिरिजाघरों की दीवारों से अलग थी। शायर जो बच्‍चे की मुस्‍कान में खुदा ढूँढता रहा,  किसी रोते हुए को हँसाने की कोशिश में लगा रहा,  दिलों को मिलाने और जोड़ने की कोशिश में लगा रहा, ज़िंदगी को किताबों से बाहर तलाशता रहा, ऐसे शायर का ऐसे बिना कुछ कहे, अचानक चले जाना सालता है और उन तमाम लोग को सन्‍न कर जाता है, जो आप में होते हुए इस दुनिया के साथ आप की तरह ही चलते रहे। 
     मुक़्तदा हसन निदा फ़ाज़ली या मात्र निदा फ़ाज़ली हिन्दी और उर्दू के मशहूर शायर थे। वह छोटी उम्र से ही लिखने लगे थे। निदा फ़ाज़ली इन का लेखन का नाम है। निदा का अर्थ है स्वर। फ़ाज़िला क़श्मीर के एक इलाके का नाम है जहाँ से निदा के पुरखे आकर दिल्ली में बस गए थे, इसलिए उन्होंने अपने उपनाम में 'फ़ाज़ली' जोड़ा। जब वह पढ़ते थे तो उन के सामने की पंक्ति में एक लड़की बैठा करती थी जिस से वह एक अनजाना, अनबोला-सा रिश्ता अनुभव करने लगे थे। एक दिन कॉलेज के बोर्ड पर एक नोटिस दिखा "Miss Tondon met with an accident and has expired" (कुमारी टंडन का एक्सीडेण्ट हुआ और उन का देहान्त हो गया है)। निदा बहुत दु:खी हुए और उन्होंने पाया कि उन का अभी तक का लिखा कुछ भी उन के इस दुःख को व्यक्त नहीं कर पा रहा है, न ही उन को लिखने का जो तरीका आता था उस में वह कुछ ऐसा लिख पा रहे थे जिस से उन के अंदर के दुःख की गिरहें खुलें। 
     एक दिन सुबह वह एक मंदिर के पास से गुजरे जहाँ पर उन्होंने किसी को सूरदास का भजन "मधुबन तुम क्यों रहत हरे? बिरह बियोग स्याम सुंदर के ठाढ़े क्यों न जरे...।" गाते सुना, जिस में कृष्ण के मथुरा से द्वारका चले जाने पर उन के वियोग में डूबी राधा और गोपियाँ फुलवारी से पूछ रही होती हैं- "ऐ फुलवारी, तुम हरी क्यों बनी हुई हो? कृष्ण के वियोग में तुम खड़े क्यों नहीं जल गईं? वह सुन कर निदा को लगा कि उन के अंदर दबे हुए दुःख की गिरहें खुल रही हैं। फिर उन्होंने कबीरदास, तुलसीदास, बाबा फ़रीद इत्यादि कई अन्य कवियों को भी पढ़ा और उन्होंने पाया कि इन कवियों की सीधी-सादी, बिना लाग लपेट की, दो-टूक भाषा में लिखी रचनाएँ अधिक प्रभावकारी हैं। जैसे- सूरदास की ही "उधो, मन न भए दस बीस। एक हुतो सो गयो स्याम संग, को अराधै ते ईस॥" इसी तरह मिर्ज़ा ग़ालिब की एब्सट्रैक्ट भाषा में "दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है?"। तब से वैसी ही सरल भाषा सदैव के लिए उन की अपनी शैली बन गयी। 
     हिन्दू-मुस्लिम क़ौमी दंगों से तंग आकर उन के माता-पिता पाकिस्तान जाकर बस गए लेकिन निदा यहीं भारत में रहे। कमाई की तलाश में कई शहरों में भटके। उस समय बम्बई (मुंबई) हिन्दी/ उर्दू साहित्य का केन्द्र था और वहाँ से धर्मयुग, सारिका जैसी लोकप्रिय और सम्मानित पत्रिकाएँ छपती थीं तो १९६४ में निदा काम की तलाश में वहाँ चले गए और धर्मयुग, ब्लिट्ज़ जैसी पत्रिकाओं, समाचार पत्रों के लिए लिखने लगे। उन की सरल और प्रभावकारी लेखन-शैली ने शीघ्र ही उन्हें सम्मान और लोकप्रियता दिलायी। उर्दू कविता का उन का पहला संग्रह १९६९ में छपा। यहाँ मैं हिन्दी व उर्दू के प्रतिष्ठित कलमकार निदा फाजली की कुछ रचनाएँ पेश कर रहा हूँ। इन में जो सब से पहली रचना है, वह मुझे सब से प्रिय है। १९८१ में रिलीज हुई फिल्म 'आहिस्ता-आहिस्ता' का यह गाना जब भी बजता, संगीत से प्यार करनेवाले हर शख्स गीतकार निदा फाजली को याद करते हैं-

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता,
कहीं ज़मीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता। 

बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले,
ये ऐसी आग है जिस में धुआँ नहीं मिलता।

तमाम शहर में ऐसा नहीं कि ख़ुलूस न हो,
जहाँ उम्मीद हो सकी वहाँ नहीं मिलता।

कहाँ चिराग़ जलायें, कहाँ गुलाब रखें,
छतें तो मिलती हैं लेकिन मकां नहीं मिलता।

ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैं,
ज़ुबां मिली है मगर हमज़ुबां नहीं मिलता।

चिराग़ जलते ही बीनाई बुझने लगती है,
खुद अपने घर में ही घर का निशां नहीं मिलता।

जिसे भी देखिये वो अपने आप में गुम है,
ज़ुबां मिली है मगर हमज़ुबां नहीं मिलता।

तेरे जहान में ऐसा नहीं कि प्यार न हो,
जहाँ उम्मीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता।

(गायक : भूपेंद्र, संगीतकार : खय्याम, चित्रपट : आहिस्ता-आहिस्ता (१९८१))

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मस्जिदों-मन्दिरों की दुनिया में
मुझको पहचानते कहाँ हैं लोग

रोज़ मैं चाँद बन के आता हूँ
दिन में सूरज-सा जगमगाता हूँ

खनखनाता हूँ माँ के गहनों में
हँसता रहता हूँ छुप के बहनों में

मैं ही मज़दूर के पसीने में
मैं ही बरसात के महीने में

मेरी तस्वीर आँख का आँसू
मेरी तहरीर जिस्म का जादू

मस्जिदों-मन्दिरों की दुनिया में
मुझको पहचानते नहीं जब लोग

मैं ज़मीनों को बे-ज़िया करके
आसमानों में लौट जाता हूँ

मैं ख़ुदा बन के क़हर ढाता हूँ

शब्दार्थ :- तहरीर= लिखावट,  ज़िया= प्रकाश

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*

बृन्दाबन के कृष्ण-कन्हैय्या अल्लाह हू
बँसी राधा गीता गैय्या अल्लाह हू

थोड़े तिनके थोड़े दाने थोड़ा जल
एक ही जैसी हर गौरय्या अल्लाह हू

जैसा जिस का बर्तन वैसा उस का तन
घटती बढ़ती गंगा मैय्या अल्लाह हू

एक ही दरिया नीला पीला लाल हरा
अपनी अपनी सब की नैय्या अल्लाह हू

मौलवियों का सजदा पंडित की पूजा
मज़दूरों की हैय्या हैय्या अल्लाह हू

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*


नज़दीकियों में दूर का मंज़र तलाश कर
जो हाथ में नहीं है वो पत्थर तलाश कर।

सूरज के इर्द-गिर्द भटकने से फ़ायदा
दरिया हुआ है गुम तो समुंदर तलाश कर।

तारीख़ में महल भी है हाकिम भी तख़्त भी
गुम-नाम जो हुए हैं वो लश्कर तलाश कर।

रहता नहीं है कुछ भी यहाँ एक सा सदा
दरवाज़ा घर का खोल के फिर घर तलाश कर।

कोशिश भी कर उमीद भी रख रास्ता भी चुन
फिर उस के बाद थोड़ा मुक़द्दर तलाश कर।

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*

उठ के कपड़े बदल
घर से बाहर निकल
जो हुआ सो हुआ॥

जब तलक साँस है
भूख है प्यास है
ये ही इतिहास है
रख के कांधे पे हल
खेत की ओर चल
जो हुआ सो हुआ॥

खून से तर-ब-तर
कर के हर राहगुज़र
थक चुके जानवर
लकड़ियों की तरह
फिर से चूल्हे में जल
जो हुआ सो हुआ॥

जो मरा क्यों मरा
जो जला क्यों जला
जो लुटा क्यों लुटा
मुद्दतों से हैं गुम
इन सवालों के हल
जो हुआ सो हुआ॥

मंदिरों में भजन
मस्ज़िदों में अज़ाँ
आदमी है कहाँ
आदमी के लिए
एक ताज़ा ग़ज़ल
जो हुआ सो हुआ।।

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*

ये दिल कुटिया है संतों की यहाँ राजा भिकारी क्या
वो हर दीदार में ज़रदार है गोटा किनारी क्या

ये काटे से नहीं कटते ये बांटे से नहीं बंटते
नदी के पानियों के सामने आरी कटारी क्या

उसी के चलने-फिरने, हंसने-रोने की हैं तस्वीरें
घटा क्या, चाँद क्या, संगीत क्या, बाद-ए-बहारी क्या

किसी घर के किसी बुझते हुए चूल्हे में ढूँढ उसको
जो चोटी और दाढ़ी में रहे वो दीनदारी क्या

हमारा मीर जी से मुत्तफ़िक़ होना है नामुमकिन
उठाना है जो पत्थर इश्क़ का तो हल्का-भारी क्या

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*


बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी माँ

याद आती है चौका-बासन
चिमटा फुकनी जैसी माँ

बाँस की खुर्री खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे

आधी सोई आधी जागी
थकी दोपहरी जैसी माँ

चिड़ियों के चहकार में गूंजे
राधा-मोहन अली-अली

मुर्ग़े की आवाज़ से खुलती
घर की कुंडी जैसी माँ

बिवी, बेटी, बहन, पड़ोसन
थोड़ी थोड़ी सी सब में

दिन भर इक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी जैसी माँ

बाँट के अपना चेहरा, माथा,
आँखें जाने कहाँ गई

फटे पुराने इक अलबम में
चंचल लड़की जैसी माँ

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*

होश वालों को ख़बर क्या बेख़ुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िन्दगी क्या चीज़ है

उन से नज़रें क्या मिली रोशन फिजाएँ हो गईं
आज जाना प्यार की जादूगरी क्या चीज़ है

ख़ुलती ज़ुल्फ़ों ने सिखाई मौसमों को शायरी
झुकती आँखों ने बताया मयकशी क्या चीज़ है

हम लबों से कह न पाये उन से हाल-ए-दिल कभी
और वो समझे नहीं ये ख़ामोशी क्या चीज़ है

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*

सब की पूजा एक सी, अलग-अलग हर रीत
मस्जिद जाये मौलवी, कोयल गाये गीत

पूजा घर में मूर्ती, मीरा के संग श्याम
जितनी जिसकी चाकरी, उतने उसके दाम

सीता, रावण, राम का, करें विभाजन लोग
एक ही तन में देखिये, तीनों का संजोग

मिट्टी से माटी मिले, खो के सभी निशां
किस में कितना कौन है, कैसे हो पहचान

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*

तुम्हारी कब्र पर मैं
फ़ातेहा पढ़ने नही आया,

मुझे मालूम था, तुम मर नही सकते
तुम्हारी मौत की सच्ची खबर
जिसने उड़ाई थी, वो झूठा था,
वो तुम कब थे?
कोई सूखा हुआ पत्ता, हवा मे गिर के टूटा था।

मेरी आँखे
तुम्हारी मंज़रो मे कैद है अब तक
मैं जो भी देखता हूँ, सोचता हूँ
वो, वही है
जो तुम्हारी नेक-नामी और बद-नामी की दुनिया थी।

कहीं कुछ भी नहीं बदला,
तुम्हारे हाथ मेरी उंगलियों में सांस लेते हैं,
मैं लिखने के लिये जब भी कागज कलम उठाता हूं,
तुम्हे बैठा हुआ मैं अपनी कुर्सी में पाता हूं।

बदन में मेरे जितना भी लहू है,
वो तुम्हारी लगजिशों नाकामियों के साथ बहता है,
मेरी आवाज में छुपकर तुम्हारा जेहन रहता है,
मेरी बीमारियों में तुम, मेरी लाचारियों में तुम।

तुम्हारी कब्र पर जिसने तुम्हारा नाम लिखा है,
वो झूठा है, वो झूठा है, वो झूठा है,
तुम्हारी कब्र में मैं दफन, तुम मुझमें जिन्दा हो,
कभी फुरसत मिले तो फातहा पढनें चले आना |

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*

कहीं छत थी दीवार-ओ-दर थे कहीं
मिला मुझको घर का पता देर से
दिया तो बहुत ज़िन्दगी ने मुझे
मगर जो दिया वो दिया देर से

हुआ न कोई काम मामूल से
गुज़ारे शब-ओ-रोज़ कुछ इस तरह
कभी चाँद चमका ग़लत वक़्त पर
कभी घर में सूरज उगा देर से

कभी रुक गये राह में बेसबब
कभी वक़्त से पहले घिर आई शब
हुये बंद दरवाज़े खुल खुल के सब
जहाँ भी गया मैं गया देर से

ये सब इत्तिफ़ाक़ात का खेल है
यही है जुदाई यही मेल है
मैं मुड़ मुड़ के देखा किया दूर तक
बनी वो ख़ामोशी सदा देर से

सजा दिन भी रौशन हुई रात भी
भरे जाम लहराई बरसात भी
रहे साथ कुछ ऐसे हालात भी
जो होना था जल्दी हुआ देर से

भटकती रही यूँ ही हर बंदगी
मिली न कहीं से कोई रौशनी
छुपा था कहीं भीड़ में आदमी
हुआ मुझ में रौशन ख़ुदा देर से

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हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा
मैं ही कश्ती हूँ मुझी में है समंदर मेरा

किससे पूछूँ कि कहाँ गुम हूँ बरसों से
हर जगह ढूँढता फिरता है मुझे घर मेरा

एक से हो गए मौसमों के चेहरे सारे
मेरी आँखों से कहीं खो गया मंज़र मेरा

मुद्दतें बीत गईं ख़्वाब सुहाना देखे
जागता रहता है हर नींद में बिस्तर मेरा

आईना देखके निकला था मैं घर से बाहर
आज तक हाथ में महफ़ूज़ है पत्थर मेरा

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अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं

पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है
अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं

वक़्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों तक
किसको मालूम कहाँ के हैं किधर के हम हैं

चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब
सोचते रहते हैं कि किस राहगुज़र के हम हैं

गिनतियों में ही गिने जाते हैं हर दौर में हम
हर क़लमकार की बेनाम ख़बर के हम हैं

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बदला न अपने आप को जो थे वही रहे
मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे

दुनिया न जीत पाओ तो हारो न ख़ुद को तुम
थोड़ी बहुत तो ज़हन में नाराज़गी रहे

अपनी तरह सभी को किसी की तलाश थी
हम जिसके भी क़रीब रहे दूर ही रहे

गुज़रो जो बाग़ से तो दुआ माँगते चलो
जिसमें खिले हैं फूल वो डाली हरी रहे

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कुछ तबीयत ही मिली थी ऐसी चैन से जीने की सूरत ना हुई
जिसको चाहा उसे अपना ना सके जो मिला उससे मुहब्बत ना हुई

जिससे जब तक मिले दिल ही से मिले दिल जो बदला तो फसाना बदला
रस्में दुनिया की निभाने के लिए हमसे रिश्तों की तिज़ारत ना हुई

दूर से था वो कई चेहरों में पास से कोई भी वैसा ना लगा
बेवफ़ाई भी उसी का था चलन फिर किसीसे भी शिकायत ना हुई

वक्त रूठा रहा बच्चे की तरह राह में कोई खिलौना ना मिला
दोस्ती भी तो निभाई ना गई दुश्मनी में भी अदावत ना हुई


शनिवार, 6 फ़रवरी 2016

अभ्युदय ने मनाया पाँचवाँ जन्मोत्सव / Abhyudaya Celebrated the fifth birthday


-शीतांशु कुमार सहाय
भगवान की शरण में अभ्युदय

वैद्यनाथधाम परिसर में माँ और पिता के साथ अभ्युदय

वैद्यनाथधाम परिसर में माँ और पिता के साथ अभ्युदय

वैद्यनाथधाम परिसर में माँ के साथ अभ्युदय

वैद्यनाथधाम परिसर में माँ और पिता के साथ अभ्युदय

वैद्यनाथधाम परिसर में माँ और पिता के साथ अभ्युदय

वैद्यनाथधाम परिसर में माँ की ममतामयी गोद में अभ्युदय

भगवान की शरण में अभ्युदय

मेरे पुत्र अभ्युदय ने शनिवार 6 फरवरी 2016 को अपना पाँचवाँ जन्मोत्सव मनाया। पारिवारिक संस्कारों के कारण उसने अपना जन्मोत्सव झारखण्ड के देवघर जिले में स्थित वैद्यनाथधाम में बाबा वैद्यनाथ के ज्योतिर्लिंग पर जलार्पण कर मनाया। अभ्युदय के साथ मैं और उसकी माँ रीना भी थी और हमदोनों पति-पत्नी को भी पुत्र के पाँचवें जन्मोत्सव पर बाबा वैद्यनाथ के ज्योतिर्लिंग की पूजार्चना का पावन मौका मिला। हम अपने तमाम मित्रों को भी इसमें सहभागी बनाते हुए उक्त मौके के कुछ चित्रों को प्रकाशित कर रहा हूँ।

सोमवार, 25 जनवरी 2016

67वें गणतन्त्र दिवस की बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ! / 67th Republic Day



66 वर्ष के गणतन्त्र भारत के तमाम वासियों को शीतांशु कुमार सहाय की ओर से 67वें गणतन्त्र दिवस (26 जनवरी 2016 ) की बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ! गणतन्त्र के सातवें दशक में भारत को मिला है सबसे मजबूत नेतृत्व.....प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में विश्व फलक पर उभरता भारत.....दमदार भारत! आइये, हाथ मिलायें और ताकतवर भारत बनायें।