-शीतांशु कुमार सहाय
भगवान शिव और साँप का अटूट रिश्ता है। शिव के गले में लिपटा साँप या नाग इस बात का संकेत है कि कोई जीव कितना भी जहरीला क्यों न हो, पर्यावरण संतुलन में उस का भी योगदान है।
योग में साँप वास्तव में कुंडलिनी शक्ति
का प्रतीक है। यह
शरीर के भीतर की
वह ऊर्जा है, जो
सुप्तावस्था में पड़ी
है और इस्तेमाल नहीं
हो रही है। योग
बल से कुंडलिनी को
जाग्रत कर इस ऊर्जा
का इस्तेमाल किया जा
सकता है।
भगवान शिव के
साथ साँप इस बात
का प्रतीक है कि
मनुष्य अगर आन्तरिक ऊर्जा
मतलब कुंडलिनी शक्ति को
जागृत कर ले तो
वह शिवत्व को प्राप्त हो सकता है।
साँप को शिव
ने सिर पर धारण
कार यह बताया कि
कुंडलिनी शक्ति ही
सर्वोपरि है।
साँप भगवान शंकर के गले
के चारों ओर लिपटा
रहता है। इस के
पीछे एक पूरा विज्ञान है। ऊर्जा शरीर
में ११४ चक्र होते हैं।
आप उन्हें शरीर के ११४
संधि स्थलों या नाडिय़ों के संगम के
रूप में देख सकते
हैं। इन ११४ में से
शरीर के सात मूल
चक्रों के बारे में
ही प्रायः बात की
जाती है। इन सात
मूल चक्रों में से विशुद्धि चक्र
गले के गड्ढे में
मौजूद होता है। यह
खास चक्र साँप के साथ बहुत
मजबूती से जुड़ा है।
शिव का केंद्र विशुद्धि चक्र में है।
उन्हें विषकंठ या नीलकंठ भी कहा जाता
है; क्योंकि वह सारे
जहर को छान लेते
हैं और उसे अपने
शरीर में प्रवेश नहीं
करने देते।
भगवान शंकर और सर्प का जुड़ाव गहरा है तभी तो वह उन के शरीर से लिपटे रहते हैं। यह बात सिर्फ मान्यताओं तक ही सीमित नहीं है; बल्कि यह हकीकत है। भगवान आमजन के लिए अपनी कृपा बरसाने में अति दयालु हैं। अगर सर्प के दर्शन हो जाएँ तो समझिये कि साक्षात भगवान शंकर के ही दर्शन हो गये।
भगवान शंकर जिस के आराध्य हों या फिर अगर कोई साधक भगवान शंकर का ध्यान करता हो तो उन के बारे में कई भाव मन में प्रस्फुटित होते हैं। साधन क्रम में विचार सागर में कई विचारों का आगमन होता है। जैसे कि भगवान शंकर त्रिशूल लिये साधना पर बैठे हैं। उन का तीसरा नेत्र यानी भृकुटी बंद है। उन की जटाओं से गंगा प्रवाहित हो रही है। उन का शरीर समुद्र मंथन के समय विषपान करने की वजह से नीला दीख रहा है। भगवान शंकर की जटाओं और शरीर के इर्द-गिर्द कई साँप लिपटे हुए है। शिव के मस्तक पर एक ओर चंद्र है तो दूसरी ओर महाविषधर सर्प भी उन के गले का हार है। उन के परिवार में भूत-प्रेत, नंदी, सिंह, सर्प, मयूर व मूषक सभी का समभाव देखने को मिलता है। भगवान शंकर से जुड़ी कथाएँ साधकों के लिए वह प्रेरणादायी है।
राजस्थान के माउंट आबू में शिवलिंग से साँपों के लिपटने की घटनाएँ सब से ज़्यादा होती हैं। राजस्थान का इकलौता हिल स्टेशन है माउंट आबू जो अर्द्धकाशी भी कहलाता है। माउंट आबू अर्द्धकाशी इसलिए कहलाता है; क्योंकि यहाँ भगवान शंकर के १०८ छोटे-बड़े मंदिर हैं। दुनिया की इकलौती जगह है जहाँ भगवान शंकर नहीं, उन की शिवलिंग भी नहीं; बल्कि उन के अंगूठे की पूजा होती है। माउंट आबू में ही अचलगढ़ दुनिया की इकलौती ऐसी जगह है जहाँ भगवान शिव के अंगूठे की पूजा होती है। भगवान शिव के सभी मंदिरों में तो उन के शिवलिंग की पूजा होती है लेकिन यहाँ भगवान शिव के अंगूठे की पूजा होती है।
माउंट आबू पर एक मंदिर है पांडव गुफा के करीब, जहाँ के बारे में कहा जाता है कि पांडव ने अज्ञातवास के दौरान कुछ समय यहाँ बिताया था।
साँप इंसानों के लिए खतरनाक होता है लेकिन यह बात भी सच है कि उसे हम इंसानों से ज्यादा डर लगता है। आस्था, विश्वास की परिभाषा आध्यात्म की सीमा रेखा में सब कुछ मानने पर ही निर्भर है। स्थानीय लोग के मुताबिक माउंट आबू के उन मंदिरों में जो जंगल के बीच हैं, वहाँ शिवलिंग से साँप लिपटे रहते हैं। इस प्रकार की घटना सावन के महीने में सोमवार को या फिर शिवरात्रि के मौके पर जरूर होती है।
शिव (शिवलिंग) और सर्प का गहरा नाता है। यह रिश्ता इंसानी समझ से परे है। क्या मानें, क्या न मानें, यह हमारे विवेक पर निर्भर करता है। कुछ लोग के लिए यह भोले का रूप हो सकता है तो कुछ के लिए कोरा अंधविश्वास।
सर्पराज वासुकि भगवान शिव के परम भक्त थे। नाग जाति के लोग ने ही सर्वप्रथम शिवलिंग की पूजा का प्रचलन शुरू किया था। वासुकि की भक्ति से प्रसन्न होकर ही भगवान शिव ने उन्हें अपने गणों में शामिल कर लिया था। वासुकि को नागलोक का राजा माना गया है। झारखण्ड के दुमका जिले में वासुकिनाथ धाम है, जहाँ के शिवलिंग पर जलार्पण करने सालोंभर लोग आते हैं। देवघर के वैद्यनाथ धाम से करीब ४० किलोमीटर दूर है।