"मार्कण्डेय पुराण" दक्षिण दिशा के दिक्पाल और मृत्यु के देवता को यम कहता है। वेदों में "यम" और "यमी" दोनों देवता मंत्रद्रष्टा ऋषि माने गए हैं। वेदों के "यम" का मृत्यु से कोई संबंध नहीं था। पर वे पितरों के अधिपति माने गए है। पुराणों में यमराज के बारे में वर्णन मिलता है- इनका रंग हरा है। यमराज लाल वस्त्र पहनते हैं। यम का वाहन भैंसा है। यमराज के मुंशी "चित्रगुप्त" हैं। ये जीव के पाप-पुण्य का हिसाब रखते हैं। चित्रगुप्त की बही "अग्रसन्धानी" में प्रत्येक जीव के पाप-पुण्य का हिसाब है। इनकी नगरी को "यमपुरी", और राजमहल को "कालीत्री" कहते हैं। यमराज के सिंहासन का नाम "विचार-भू" है। महाचण्ड और कालपुरूष इनके शरीर रक्षक और यमदूत इनके अनुचर है। वैध्यत यमराज का द्वारपाल है। चार आंखें तथा चौड़े नथुने वाले दो प्रचण्ड कुत्ते यम द्वार के संरक्षक हैं।
स्मृतियों के अनुसार 14 यम माने गए हैं- यम, धर्मराज, मृत्यु, अन्तक, वैवस्वत, काल, सर्वभूतक्षय, औदुम्बर, दध्न, नील, परमेष्ठी, वृकोदर, चित्र और चित्रगुप्त। "धर्मशास्त्र संग्रह" के अनुसार 14 यमों को उनके नाम से 3-3 अंजलि जल तर्पण में देते हैं। इनका संसार "यमलोक" के नाम से जाना जाता है।
विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा के गर्भ से उत्पन्न सूर्य के पुत्र को भी यम कहा गया है। एक मान्यता में यम की बहन "यमी" को यमुना नदी कहा गया है। यम और यमी यमज यानी जुड़वाँ थे।
यम के लिए पितृपति, कृतांत, शमन, काल, दंडधर, श्राद्धदेव, धर्म, जीवितेश, महिषध्वज, महिषवाहन, शीर्णपाद, हरि और कर्मकर विशेषणों का प्रयोग होता है। अंग्रेजी में यम को प्लूटो कहते हैं। "योग सूत्र" में साधना के आठ अंगों यानी अष्टांग योग में यम का स्थान पहला है। संयम, आत्मनियंत्रण और दमन के अर्थ में यम शब्द का प्रयोग हुआ है।
यम में धर्मराज के रूप में देवत्व और यमराज के रूप में पितृत्व के दोनों अंश विद्यमान है। इसलिए इन्हें तर्पण में काल में तिल और सफेद तिल अर्पित किए जाते हैं।
भाई दूज को यम द्वितीया कहते हैं। "स्कन्दपुराण" में कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को दीये जलाकर यम को प्रसन्न किया जाता है। एक धर्मशास्त्र का नाम भी यम है।
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